https://ift.tt/39bvU62 आज से दो महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की। इस बातचीत में मोदी ने जिस बात पर सबसे ज्यादा चिंता जताई थी, वो थी गांवों में कोरोनावायरस को फैलने से कैसे रोका जाए? मोदी ने माना था कि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती कोरोनावायरस को गांवों में नहीं फैलने देना है। मुख्यमंत्रियों के साथ मोदी की ये मीटिंग 11 मई को हुई थी। इस मीटिंग को हुए दो महीने से ज्यादा का समय भी बीत गया। और कोरोनावायरस का आंकड़ा 10 लाख के पार भी हो गया। इस चिंता की एक वाजिब वजह भी थी और वो ये कि भारत की 68% से ज्यादा आबादी गांवों में ही रहती है। 2011 में हुई जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश के 83.30 करोड़ से ज्यादा लोग गांवों में रहते हैं। जबकि, शहरों में सिर्फ 37.71 करोड़ आबादी ही रहती है। देश में 10 राज्य ऐसे हैं, जहां देश की 74% से ज्यादा आबादी गांवों में ही रहती है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा और आंध्र प्रदेश का नाम आता है। इन सभी राज्यों में 87.29 करोड़ की आबादी में से 61.94 करोड़ आबादी गांवों में रहती है। यानी, देश में जितनी आबादी गांवों में रहती है, उसमें से 74.36% आबादी इन्हीं 10 राज्यों में रहती है। इन 10 राज्यों के सभी जिलों में पहुंचा कोरोना 30 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना संक्रमितों की संख्या के आधार पर देश के सभी जिलों को रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांटा था। उस समय इस लिस्ट में 733 जिलों में से 130 जिले रेड, 284 जिले ऑरेंज और 319 जिले ग्रीन जोन में थे। इन 10 राज्यों के भी 367 जिलों में से 114 जिले उस समय ग्रीन जोन में थे। यानी यहां पर 30 अप्रैल तक कोरोना का एक भी मरीज नहीं मिला था। लेकिन, अब इन सभी 367 जिलों में कोरोना के मामले आ गए हैं। इससे जाहिर है कि कोरोना कोगांवों में नहीं फैलने देने के लिए भले ही कोशिशें हुई हों, लेकिन अब संक्रमण गांवों में भी फैल चुका है। इन 10 राज्यों के 94 जिले ऐसे, जहां एक हजार से ज्यादा मामले इन सभी राज्यों के 367 जिलों में से 94 जिले ऐसे हैं, जहां कोरोना मरीजों की संख्या एक हजार से ज्यादा है। आंध्र प्रदेश के सभी 13 जिलों में कोरोना के 1 हजार से ज्यादा मामले हैं। 5 कारण, जिनसे गांवों में फैला कोरोना 1. प्रवासी मजदूरः 1 मई को जब तेलंगाना से पहली श्रमिक ट्रेन रांची पहुंची, तो झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, 'हम जानते हैं कि अपने लोगों के साथ हम कोरोना को भी ला रहे हैं।' एक अनुमान के मुताबिक, श्रमिक ट्रेनों के जरिए देशभर में 65 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को उनके गांव भेजा गया। इनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार के ही मजदूर थे। 2. श्रमिक ट्रेन में नाम की सोशल डिस्टेंसिंगः प्रवासी मजदूरों को उनके घर-गांव तक पहुंचाने के लिए सरकार ने श्रमिक ट्रेनें शुरू तो कर दीं, लेकिन इनमें सोशल डिस्टेंसिंग नाम की ही रखी। रेलवे ने गाइडलाइन में साफ लिखा था कि ट्रेन तभी चलेगी, जब उसमें 1200 यानी 90% यात्री होंगे। एक ट्रेन में अगर 90% यात्री हैं, तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना नामुमकीन सा है। ऐसे में अगर किसी एक को कोरोना हुआ, तो सबको उसका खतरा। 3. न जांच हुई, न क्वारैंटाइन कियाः जिन मजदूरों को सरकार ने ही ट्रेन या बसों से छोड़ा, उन्हें तो क्वारैंटाइन सेंटर में रख लिया गया। लेकिन, इनसे पहले बहुत से ऐसे मजदूर और लोग भी थे, जो अपने साधनों से ही अपने घर-गांव तक पहुंच गए। इनमें से भी कुछ भले ही क्वारैंटाइन सेंटर में रह लिए हों, लेकिन बहुत से ऐसे थे जो सीधे अपने घर या गांव ही चले गए। यानी, ऐसे लोगों की न ही कोई जांच हुई और न ही क्वारैंटाइन रहे। ये तस्वीर 26 मार्च की है। लॉकडाउन लगने के एक दिन बाद की। किस तरह प्रवासी मजदूर एक ट्रक में भरकर अपने गांव की तरफ जा रहे हैं। 4. क्वारैंटाइन सेंटर में भी लापरवाहीः गांव के सरकारी स्कूलों में ही लौटकर आए मजदूरों के लिए क्वारैंटाइन सेंटर बना तो दिए गए थे, लेकिन यहां नियमों का पालन ही नहीं किया गया। कई जगहों से खबरें आईं कि मजदूर यहां खुलेआम घूम रहे हैं। ताश खेल रहे हैं। खबरें तो ये भी थीं कि जिन क्वारैंटाइन सेंटर में मजदूरों को रखा गया, वहां सिक्योरिटी ही नहीं थी। नतीजा मजदूर सेंटर से निकलकर गांव में घूमने निकल पड़े। 5. गांवों में टेस्टिंग लैब भी नहींः आईसीएमआर के मुताबिक, देशभर में 17 जुलाई तक कोरोना के टेस्ट के लिए 1 हजार 244 लैब हैं। इनमें से 880 सरकारी और 364 प्राइवेट लैब हैं। इनमें भी आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए सिर्फ 638 लैब ही हैं। कोरोना की जांच के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट जरूरी है। अब ये जो लैब बनी हैं, ये सभी लैब शहरों के बीचों-बीच या राजधानी में बनी हैं। गांवों में टेस्टिंग लैब ही नहीं हैं। तो अगर गांवों में किसी शख्स में संक्रमण के लक्षण दिखते हैं, तो उसकी जांच ही नहीं हो पाती और अगर होती भी है तो रिपोर्ट आने में ही टाइम लग जाता है। भारत में 6.5 लाख से ज्यादा गांव सरकार की लोकल गवर्नमेंट डायरेक्ट्री के डेटा के मुताबिक, देश में 6 लाख 64 हजार 119 गांव हैं। सबसे ज्यादा 1.07 लाख गांव उत्तर प्रदेश में है। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है, जहां 55 हजार 825 गांव है। वहीं चंडीगढ़ इकलौता है, जहां एक भी गांव नहीं है। उसके बाद सबसे कम 27 गांव लक्षद्वीप में हैं। इसके अलावा दादरा नगर हवेली में 101, पुडुच्चेरी में 122 और दिल्ली में 222 गांव हैं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें coronavirus covid 19 cases in india village, uttarpradesh (lucknow), bihar (patna), rajasthan (jaipur), madhyapradesh (bhopal) from Dainik Bhaskar /db-original/news/coronavirus-covid-19-cases-in-india-village-uttarpradesh-bihar-rajasthan-madhyapradesh-127525205.html via IFTTT https://ift.tt/2WxBE4J आज से दो महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की। इस बातचीत में मोदी ने जिस बात पर सबसे ज्यादा चिंता जताई थी, वो थी गांवों में कोरोनावायरस को फैलने से कैसे रोका जाए? मोदी ने माना था कि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती कोरोनावायरस को गांवों में नहीं फैलने देना है। मुख्यमंत्रियों के साथ मोदी की ये मीटिंग 11 मई को हुई थी। इस मीटिंग को हुए दो महीने से ज्यादा का समय भी बीत गया। और कोरोनावायरस का आंकड़ा 10 लाख के पार भी हो गया। इस चिंता की एक वाजिब वजह भी थी और वो ये कि भारत की 68% से ज्यादा आबादी गांवों में ही रहती है। 2011 में हुई जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश के 83.30 करोड़ से ज्यादा लोग गांवों में रहते हैं। जबकि, शहरों में सिर्फ 37.71 करोड़ आबादी ही रहती है। देश में 10 राज्य ऐसे हैं, जहां देश की 74% से ज्यादा आबादी गांवों में ही रहती है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा और आंध्र प्रदेश का नाम आता है। इन सभी राज्यों में 87.29 करोड़ की आबादी में से 61.94 करोड़ आबादी गांवों में रहती है। यानी, देश में जितनी आबादी गांवों में रहती है, उसमें से 74.36% आबादी इन्हीं 10 राज्यों में रहती है। इन 10 राज्यों के सभी जिलों में पहुंचा कोरोना 30 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना संक्रमितों की संख्या के आधार पर देश के सभी जिलों को रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांटा था। उस समय इस लिस्ट में 733 जिलों में से 130 जिले रेड, 284 जिले ऑरेंज और 319 जिले ग्रीन जोन में थे। इन 10 राज्यों के भी 367 जिलों में से 114 जिले उस समय ग्रीन जोन में थे। यानी यहां पर 30 अप्रैल तक कोरोना का एक भी मरीज नहीं मिला था। लेकिन, अब इन सभी 367 जिलों में कोरोना के मामले आ गए हैं। इससे जाहिर है कि कोरोना कोगांवों में नहीं फैलने देने के लिए भले ही कोशिशें हुई हों, लेकिन अब संक्रमण गांवों में भी फैल चुका है। इन 10 राज्यों के 94 जिले ऐसे, जहां एक हजार से ज्यादा मामले इन सभी राज्यों के 367 जिलों में से 94 जिले ऐसे हैं, जहां कोरोना मरीजों की संख्या एक हजार से ज्यादा है। आंध्र प्रदेश के सभी 13 जिलों में कोरोना के 1 हजार से ज्यादा मामले हैं। 5 कारण, जिनसे गांवों में फैला कोरोना 1. प्रवासी मजदूरः 1 मई को जब तेलंगाना से पहली श्रमिक ट्रेन रांची पहुंची, तो झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, 'हम जानते हैं कि अपने लोगों के साथ हम कोरोना को भी ला रहे हैं।' एक अनुमान के मुताबिक, श्रमिक ट्रेनों के जरिए देशभर में 65 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को उनके गांव भेजा गया। इनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार के ही मजदूर थे। 2. श्रमिक ट्रेन में नाम की सोशल डिस्टेंसिंगः प्रवासी मजदूरों को उनके घर-गांव तक पहुंचाने के लिए सरकार ने श्रमिक ट्रेनें शुरू तो कर दीं, लेकिन इनमें सोशल डिस्टेंसिंग नाम की ही रखी। रेलवे ने गाइडलाइन में साफ लिखा था कि ट्रेन तभी चलेगी, जब उसमें 1200 यानी 90% यात्री होंगे। एक ट्रेन में अगर 90% यात्री हैं, तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना नामुमकीन सा है। ऐसे में अगर किसी एक को कोरोना हुआ, तो सबको उसका खतरा। 3. न जांच हुई, न क्वारैंटाइन कियाः जिन मजदूरों को सरकार ने ही ट्रेन या बसों से छोड़ा, उन्हें तो क्वारैंटाइन सेंटर में रख लिया गया। लेकिन, इनसे पहले बहुत से ऐसे मजदूर और लोग भी थे, जो अपने साधनों से ही अपने घर-गांव तक पहुंच गए। इनमें से भी कुछ भले ही क्वारैंटाइन सेंटर में रह लिए हों, लेकिन बहुत से ऐसे थे जो सीधे अपने घर या गांव ही चले गए। यानी, ऐसे लोगों की न ही कोई जांच हुई और न ही क्वारैंटाइन रहे। ये तस्वीर 26 मार्च की है। लॉकडाउन लगने के एक दिन बाद की। किस तरह प्रवासी मजदूर एक ट्रक में भरकर अपने गांव की तरफ जा रहे हैं। 4. क्वारैंटाइन सेंटर में भी लापरवाहीः गांव के सरकारी स्कूलों में ही लौटकर आए मजदूरों के लिए क्वारैंटाइन सेंटर बना तो दिए गए थे, लेकिन यहां नियमों का पालन ही नहीं किया गया। कई जगहों से खबरें आईं कि मजदूर यहां खुलेआम घूम रहे हैं। ताश खेल रहे हैं। खबरें तो ये भी थीं कि जिन क्वारैंटाइन सेंटर में मजदूरों को रखा गया, वहां सिक्योरिटी ही नहीं थी। नतीजा मजदूर सेंटर से निकलकर गांव में घूमने निकल पड़े। 5. गांवों में टेस्टिंग लैब भी नहींः आईसीएमआर के मुताबिक, देशभर में 17 जुलाई तक कोरोना के टेस्ट के लिए 1 हजार 244 लैब हैं। इनमें से 880 सरकारी और 364 प्राइवेट लैब हैं। इनमें भी आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए सिर्फ 638 लैब ही हैं। कोरोना की जांच के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट जरूरी है। अब ये जो लैब बनी हैं, ये सभी लैब शहरों के बीचों-बीच या राजधानी में बनी हैं। गांवों में टेस्टिंग लैब ही नहीं हैं। तो अगर गांवों में किसी शख्स में संक्रमण के लक्षण दिखते हैं, तो उसकी जांच ही नहीं हो पाती और अगर होती भी है तो रिपोर्ट आने में ही टाइम लग जाता है। भारत में 6.5 लाख से ज्यादा गांव सरकार की लोकल गवर्नमेंट डायरेक्ट्री के डेटा के मुताबिक, देश में 6 लाख 64 हजार 119 गांव हैं। सबसे ज्यादा 1.07 लाख गांव उत्तर प्रदेश में है। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है, जहां 55 हजार 825 गांव है। वहीं चंडीगढ़ इकलौता है, जहां एक भी गांव नहीं है। उसके बाद सबसे कम 27 गांव लक्षद्वीप में हैं। इसके अलावा दादरा नगर हवेली में 101, पुडुच्चेरी में 122 और दिल्ली में 222 गांव हैं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें coronavirus covid 19 cases in india village, uttarpradesh (lucknow), bihar (patna), rajasthan (jaipur), madhyapradesh (bhopal) https://ift.tt/39bvU62 Dainik Bhaskar जिन 10 राज्यों में देश की 74% आबादी गांवों में रहती है, वहां के सभी 367 जिलों में संक्रमण
आज से दो महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की। इस बातचीत में मोदी ने...
Manish Pethev -
July 18, 2020
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आज से दो महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की। इस बातचीत में मोदी ने जिस बात पर सबसे ज्यादा चिंता जताई थी, वो थी गांवों में कोरोनावायरस को फैलने से कैसे रोका जाए? मोदी ने माना था कि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती कोरोनावायरस को गांवों में नहीं फैलने देना है।
मुख्यमंत्रियों के साथ मोदी की ये मीटिंग 11 मई को हुई थी। इस मीटिंग को हुए दो महीने से ज्यादा का समय भी बीत गया। और कोरोनावायरस का आंकड़ा 10 लाख के पार भी हो गया। इस चिंता की एक वाजिब वजह भी थी और वो ये कि भारत की 68% से ज्यादा आबादी गांवों में ही रहती है। 2011 में हुई जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश के 83.30 करोड़ से ज्यादा लोग गांवों में रहते हैं। जबकि, शहरों में सिर्फ 37.71 करोड़ आबादी ही रहती है।
देश में 10 राज्य ऐसे हैं, जहां देश की 74% से ज्यादा आबादी गांवों में ही रहती है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा और आंध्र प्रदेश का नाम आता है। इन सभी राज्यों में 87.29 करोड़ की आबादी में से 61.94 करोड़ आबादी गांवों में रहती है। यानी, देश में जितनी आबादी गांवों में रहती है, उसमें से 74.36% आबादी इन्हीं 10 राज्यों में रहती है।
इन 10 राज्यों के सभी जिलों में पहुंचा कोरोना
30 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना संक्रमितों की संख्या के आधार पर देश के सभी जिलों को रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांटा था। उस समय इस लिस्ट में 733 जिलों में से 130 जिले रेड, 284 जिले ऑरेंज और 319 जिले ग्रीन जोन में थे।
इन 10 राज्यों के भी 367 जिलों में से 114 जिले उस समय ग्रीन जोन में थे। यानी यहां पर 30 अप्रैल तक कोरोना का एक भी मरीज नहीं मिला था। लेकिन, अब इन सभी 367 जिलों में कोरोना के मामले आ गए हैं।
इससे जाहिर है कि कोरोना कोगांवों में नहीं फैलने देने के लिए भले ही कोशिशें हुई हों, लेकिन अब संक्रमण गांवों में भी फैल चुका है।
इन 10 राज्यों के 94 जिले ऐसे, जहां एक हजार से ज्यादा मामले
इन सभी राज्यों के 367 जिलों में से 94 जिले ऐसे हैं, जहां कोरोना मरीजों की संख्या एक हजार से ज्यादा है। आंध्र प्रदेश के सभी 13 जिलों में कोरोना के 1 हजार से ज्यादा मामले हैं।
5 कारण, जिनसे गांवों में फैला कोरोना
1. प्रवासी मजदूरः 1 मई को जब तेलंगाना से पहली श्रमिक ट्रेन रांची पहुंची, तो झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, 'हम जानते हैं कि अपने लोगों के साथ हम कोरोना को भी ला रहे हैं।' एक अनुमान के मुताबिक, श्रमिक ट्रेनों के जरिए देशभर में 65 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को उनके गांव भेजा गया। इनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार के ही मजदूर थे।
2. श्रमिक ट्रेन में नाम की सोशल डिस्टेंसिंगः प्रवासी मजदूरों को उनके घर-गांव तक पहुंचाने के लिए सरकार ने श्रमिक ट्रेनें शुरू तो कर दीं, लेकिन इनमें सोशल डिस्टेंसिंग नाम की ही रखी। रेलवे ने गाइडलाइन में साफ लिखा था कि ट्रेन तभी चलेगी, जब उसमें 1200 यानी 90% यात्री होंगे। एक ट्रेन में अगर 90% यात्री हैं, तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना नामुमकीन सा है। ऐसे में अगर किसी एक को कोरोना हुआ, तो सबको उसका खतरा।
3. न जांच हुई, न क्वारैंटाइन कियाः जिन मजदूरों को सरकार ने ही ट्रेन या बसों से छोड़ा, उन्हें तो क्वारैंटाइन सेंटर में रख लिया गया। लेकिन, इनसे पहले बहुत से ऐसे मजदूर और लोग भी थे, जो अपने साधनों से ही अपने घर-गांव तक पहुंच गए। इनमें से भी कुछ भले ही क्वारैंटाइन सेंटर में रह लिए हों, लेकिन बहुत से ऐसे थे जो सीधे अपने घर या गांव ही चले गए। यानी, ऐसे लोगों की न ही कोई जांच हुई और न ही क्वारैंटाइन रहे।
ये तस्वीर 26 मार्च की है। लॉकडाउन लगने के एक दिन बाद की। किस तरह प्रवासी मजदूर एक ट्रक में भरकर अपने गांव की तरफ जा रहे हैं।
4. क्वारैंटाइन सेंटर में भी लापरवाहीः गांव के सरकारी स्कूलों में ही लौटकर आए मजदूरों के लिए क्वारैंटाइन सेंटर बना तो दिए गए थे, लेकिन यहां नियमों का पालन ही नहीं किया गया। कई जगहों से खबरें आईं कि मजदूर यहां खुलेआम घूम रहे हैं। ताश खेल रहे हैं। खबरें तो ये भी थीं कि जिन क्वारैंटाइन सेंटर में मजदूरों को रखा गया, वहां सिक्योरिटी ही नहीं थी। नतीजा मजदूर सेंटर से निकलकर गांव में घूमने निकल पड़े।
5. गांवों में टेस्टिंग लैब भी नहींः आईसीएमआर के मुताबिक, देशभर में 17 जुलाई तक कोरोना के टेस्ट के लिए 1 हजार 244 लैब हैं। इनमें से 880 सरकारी और 364 प्राइवेट लैब हैं। इनमें भी आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए सिर्फ 638 लैब ही हैं। कोरोना की जांच के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट जरूरी है। अब ये जो लैब बनी हैं, ये सभी लैब शहरों के बीचों-बीच या राजधानी में बनी हैं। गांवों में टेस्टिंग लैब ही नहीं हैं। तो अगर गांवों में किसी शख्स में संक्रमण के लक्षण दिखते हैं, तो उसकी जांच ही नहीं हो पाती और अगर होती भी है तो रिपोर्ट आने में ही टाइम लग जाता है।
भारत में 6.5 लाख से ज्यादा गांव
सरकार की लोकल गवर्नमेंट डायरेक्ट्री के डेटा के मुताबिक, देश में 6 लाख 64 हजार 119 गांव हैं। सबसे ज्यादा 1.07 लाख गांव उत्तर प्रदेश में है। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है, जहां 55 हजार 825 गांव है।
वहीं चंडीगढ़ इकलौता है, जहां एक भी गांव नहीं है। उसके बाद सबसे कम 27 गांव लक्षद्वीप में हैं। इसके अलावा दादरा नगर हवेली में 101, पुडुच्चेरी में 122 और दिल्ली में 222 गांव हैं।
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