Facebook SDK

Recent Posts

test
Delhi: 15,000 samples to be collected during five-day sero survey beginning Saturday Delhi: 15,000 samples to be collected during five-day sero survey beginning Saturday Reviewed by Manish Pethev on August 01, 2020 Rating: 5

आज हम दिल्ली एम्स के दो डॉक्टरों की कहानी बताने जा रहे हैं। दोनों कोरोना मरीजों का इलाज करते-करते खुद कोरोना से संक्रमित हुए। ठीक होने के बाद एक तो वापस कोरोना वॉर्ड में भी लौट आए, मरीजों का फिर इलाज करने। पहली कहानी - डॉक्टर सुनील ज्याणी की, जो संक्रमित हुए, आईसीयू में इलाज चला, 10 किलो वजन कम हो गया, अब ड्यूटी पर लौटे मैं 24 मार्च से ही कोरोना पेशेंट का ट्रीटमेंट कर रहा था। सात-सात दिन के रोटेशन में हमारी ड्यूटी हुआ करती थी। 29 मई को मुझे अचानक बुखार आ गया। कपकपी लगने लगी। कमजोरी बहुत ज्यादा आ गई। मैंने अनुमान लगा लिया था कि मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया हूं। उस दिन मैंने 15 मिनट पहले ही अपनी ड्यूटी खत्म कर दी और तुरंत अपने रूम में चला गया। उसी दिन रात में मुझे बहुत तेज ठंड लगी। घर राजस्थान में है। दिल्ली में एम्स के हॉस्टल में अकेला ही रहता हूं, इसलिए कोई देखने वाला नहीं था। सुबह होते ही मैंने डिपार्टमेंट में बताया कि ऐसे लक्षण हैं। उस दिन मेरा ब्लड लिया गया और दूसरे दिन रिपोर्ट निगेटिव आई। लेकिन, उस समय प्रोटोकॉल था कि यदि बुखार आया है तो 7 दिनों तक क्वारैंटाइन ही रहना है। इसलिए मैं क्वारैंटाइन ही था। डॉक्टर सुनील ज्याणी ने बताया कि हम पीपीई किट पहनकर ड्यूटी करते हैं। सभी प्रिकॉशन ले रहे थे, फिर भी संक्रमण का शिकार हो गए। क्वारैंटाइन के चौथे दिन मुझे बहुत तेज बुखार आया। कफ बनाना शुरू हो गया और बलगम में खून आने लगा। हालत ऐसी हो गई थी कि मैं खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। साथियों ने मुझे तुरंत एम्स के ही कोविड वॉर्ड में एडमिट कर दिया। फिर मेरा दूसरा टेस्ट हुआ, जो पॉजिटिव आया। यह 4 जून की बात है। अगले पांच से छ दिन मैं नॉर्मल रहा, लेकिन 11 जून आते-आते एक बार फिर लक्षण काफी ज्यादा बढ़ गए और मेरी सांस फूलने लगी। मेरी बॉडी में ऑक्सीजन का लेवल 91 पर आ गया था। यह बहुत ही गंभीर स्थिति होती है। इसके बाद मुझे तुरंत आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। किस्मत से आईसीयू में ट्रीटमेंट मिलते ही मैं रिस्पॉन्स कर गया और आठ से दस घंटे में काफी रिलीफ मिला। हॉस्पिटल में कलीग्स ही सुनील का सहारा थे, क्योंकि उन्होंने घर पर यह बात नहीं बताई थी। इसके बाद मुझे आईसीयू से नॉर्मल वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया क्योंकि बिना वजह आईसीयू वॉर्ड में रहना और ज्यादा खतरनाक हो जाता है। फिर 26 जून तक नॉर्मल वॉर्ड में ही रहा। कोरोना से जीतने में मुझे करीब 22 दिन लग गए। जब मैं कोरोना से संक्रमित हुआ था तो ये बात घर पर नहीं बताई थी। क्योंकि बताता भी तो वो लोग मुझसे मिल नहीं सकते थे। उनका दिल्ली आना ज्यादा खतरनाक था, क्योंकि यहां तो बहुत कोरोना फैला हुआ था। डिस्चार्ज होने के दो दिन बाद 28 जून को मैं अपने घर पहुंचा। तभी घर में सबको बताया कि मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया था और अब पूरी तरह से स्वस्थ हूं। मेरा करीब दस किलो वजन कम हो गया। पंद्रह दिन घर पर रेस्ट किया। 15 जुलाई से मैंने फिर ड्यूटी ज्वॉइन कर ली है। हालांकि, अभी कोरोना वॉर्ड में ड्यूटी नहीं है। मेरे पापा आर्मी से रिटायर हुए हैं, इसलिए वो छोटी-छोटी बातों से घबराते नहीं। उन्होंने कहा कि बिना डरे काम करो। 22 दिन लगातार ट्रीटमेंट के बाद सुनील कोरोना से ठीक हो सके। फिर अपने घर गए। मुझे कभी कोरोना का डर नहीं रहा क्योंकि हमारे वॉर्ड में स्वाइन फ्लू, एचआईवी, हेपेटाइटिस तक के पेशेंट आते हैं, जिनका मोर्टेलिटी रेट कोरोना से ज्यादा है और संक्रमण का खतरा भी। हम पूरे प्रिकॉशन लेकर काम कर रहे हैं। कोरोना वॉर्ड में जब भी ड्यूटी लगेगी, मैं फिर करना चाहूंगा। वॉर्ड में ड्यूटी करने पर लगता है कि हम भी कोरोना वॉरियर हैं और कुछ अलग कर रहे हैं। दूसरी कहानी - डॉक्टर प्रमोद कुमार की जो ठीक होकर दोबारा कोरोना वॉर्ड में मुस्तैद हो गए हैं मैं 24 मार्च से ही एम्स के ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में पोस्टेड हूं। हर चौथे हफ्ते हमारी ड्यूटी हुआ करती है। कोरोना के क्रिटिकल पेशेंट्स को देखने की जिम्मेदारी हमारी होती है। हम पूरे प्रिकॉशन के साथ वॉर्ड में होते हैं। पीपीई किट पहने होते हैं। 7 घंटे तक कुछ खाना-पीना नहीं। 6 घंटे मरीजों के बीच होते हैं तो कोरोना संक्रमित होने की रिस्क तो होती ही है। 5 जुलाई को मुझे हल्का बुखार आया। उसी दिन मैंने जांच के लिए खून दिया। 8 जुलाई को मैं कोरोना पॉजिटिव आया। मेरा घर झारखंड में है। घर पर मां, पापा और बहन हैं। यहां पर एम्स के हॉस्टल में रहता हूं। घरवालों को बता दिया था, लेकिन सिंपटम्स माइल्ड थे, इसलिए ज्यादा टेंशन की बात नहीं थी। 10 दिनों तक मैं एम्स के वॉर्ड में आइसोलेशन में रहा। ये डॉक्टर प्रमोद कुमार हैं। एम्स के हॉस्टल में ही रहते हैं। परिवार झारखंड में रहता है। कोरोना ड्यूटी के बाद से ही मैंने बाहर जाना बंद कर दिया था। मार्च से कहीं नहीं गया। सिर्फ हॉस्टल और कोरोना वॉर्ड में ही आना-जाना होता था। मुलाकात भी सिर्फ कलीग्स के साथ ही होती थी। घर जानबूझकर नहीं गया क्योंकि अभी यहां ड्यूटी चल रही है। कोरोना वॉर्ड के अंदर हमें कम से कम ये पता होता है कि कौन कोरोना पॉजिटिव है। हम पूरे प्रिकॉशन के साथ जाते हैं। वरना जिन लोगों को काम के सिलसिले में बाहर निकलना पड़ रहा है वो तो ये भी नहीं जानते कि कौन पॉजिटिव है और कौन नहीं। हालांकि, अभी मैं ठीक हो चुका हूं और ड्यूटी के लिए कोरोना वॉर्ड में वापस आ चुका हूं। वापस आने से पहले मैंने पढ़ा कि दोबारा संक्रमण का खतरा कितना होता है। यह कितना रिस्की हो सकता है, लेकिन इस बारे में ज्यादा कोई डाटा नहीं है तो मैं तो आ गया फिर ड्यूटी करने। कोरोना वॉर्ड में मरीज चिढ़ने लगते हैं कोरोना वॉर्ड में मरीजों का इलाज करने और खुद आइसोलेशन में रहने के दौरान हुए एक्सपीरियंस से पता चलता है कि जो वॉर्ड में या आइसोलेशन में होता है वो चिढ़ने लगता है। क्योंकि कोई मिलने-जुलने वाला नहीं होता। किसी से बात नहीं हो पाती। आईसीयू में तो मॉनिटर की आवाज आते रहती है। पीपीई किट पहनकर डॉक्टर आते रहते हैं। कई बार आपके आसपास ही किसी की डेथ भी हो जाती है, यह सब देखकर किसी का भी इरिटेट होना एक नॉर्मल बात है। डॉक्टर प्रमोद कुमार कोरोना से लड़ने के बाद एक बार फिर ड्यूटी पर लौट चुके हैं। आईसीयू में कई बार कुछ पेशेंट डेलिरियम में चले जाते हैं। यानी अपना होश खो बैठते हैं। ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जो मेंटली प्रिपेयर नहीं होते। मैं भी जब आइसोलेशन में था तो थोड़ा इरिटेट हो गया था। ऐसे में जरूरी है कि हम घरवालों से फोन पर ज्यादा से ज्यादा बात करते रहें। मोबाइल पर कुछ न कुछ करते रहें। काम करने की कंडीशन है तो करें या फिर कुछ पढ़ते रहें। खुद को कहीं न कहीं व्यस्त रखना जरूरी है वरना कोरोना ट्रीटमेंट का ये पीरियड काटना बहुत मुश्किल हो जाता है। खैर, मैं अपनी ड्यूटी पर दोबारा लौट चुका हूं। घरवालों ने कहा था कि हो सके तो कोरोना के बजाए किसी दूसरे वॉर्ड में ड्यूटी लगवा लो, लेकिन अभी हम नई उम्र के हैं। हमें गंभीर संक्रमण होने की आशंका कम है। पूरे प्रिकॉशन लेते हुए इलाज कर रहे हैं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें परिवार ने कहा कि, हो सके तो अब कोरोना वॉर्ड से ड्यूटी हटवा लो लेकिन डॉक्टर प्रमोद कुमार ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि, यह हमारी जिम्मेदारी है। पीछे नहीं हट सकते। https://ift.tt/33daOTU Dainik Bhaskar तेज बुखार आया, मुंह से खून आने लगा, अकेले इलाज करवाते रहे लेकिन घरवालों को नहीं बताया

आज हम दिल्ली एम्स के दो डॉक्टरों की कहानी बताने जा रहे हैं। दोनों कोरोना मरीजों का इलाज करते-करते खुद कोरोना से संक्रमित हुए। ठीक होने के ब...
- July 31, 2020
आज हम दिल्ली एम्स के दो डॉक्टरों की कहानी बताने जा रहे हैं। दोनों कोरोना मरीजों का इलाज करते-करते खुद कोरोना से संक्रमित हुए। ठीक होने के बाद एक तो वापस कोरोना वॉर्ड में भी लौट आए, मरीजों का फिर इलाज करने। पहली कहानी - डॉक्टर सुनील ज्याणी की, जो संक्रमित हुए, आईसीयू में इलाज चला, 10 किलो वजन कम हो गया, अब ड्यूटी पर लौटे मैं 24 मार्च से ही कोरोना पेशेंट का ट्रीटमेंट कर रहा था। सात-सात दिन के रोटेशन में हमारी ड्यूटी हुआ करती थी। 29 मई को मुझे अचानक बुखार आ गया। कपकपी लगने लगी। कमजोरी बहुत ज्यादा आ गई। मैंने अनुमान लगा लिया था कि मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया हूं। उस दिन मैंने 15 मिनट पहले ही अपनी ड्यूटी खत्म कर दी और तुरंत अपने रूम में चला गया। उसी दिन रात में मुझे बहुत तेज ठंड लगी। घर राजस्थान में है। दिल्ली में एम्स के हॉस्टल में अकेला ही रहता हूं, इसलिए कोई देखने वाला नहीं था। सुबह होते ही मैंने डिपार्टमेंट में बताया कि ऐसे लक्षण हैं। उस दिन मेरा ब्लड लिया गया और दूसरे दिन रिपोर्ट निगेटिव आई। लेकिन, उस समय प्रोटोकॉल था कि यदि बुखार आया है तो 7 दिनों तक क्वारैंटाइन ही रहना है। इसलिए मैं क्वारैंटाइन ही था। डॉक्टर सुनील ज्याणी ने बताया कि हम पीपीई किट पहनकर ड्यूटी करते हैं। सभी प्रिकॉशन ले रहे थे, फिर भी संक्रमण का शिकार हो गए। क्वारैंटाइन के चौथे दिन मुझे बहुत तेज बुखार आया। कफ बनाना शुरू हो गया और बलगम में खून आने लगा। हालत ऐसी हो गई थी कि मैं खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। साथियों ने मुझे तुरंत एम्स के ही कोविड वॉर्ड में एडमिट कर दिया। फिर मेरा दूसरा टेस्ट हुआ, जो पॉजिटिव आया। यह 4 जून की बात है। अगले पांच से छ दिन मैं नॉर्मल रहा, लेकिन 11 जून आते-आते एक बार फिर लक्षण काफी ज्यादा बढ़ गए और मेरी सांस फूलने लगी। मेरी बॉडी में ऑक्सीजन का लेवल 91 पर आ गया था। यह बहुत ही गंभीर स्थिति होती है। इसके बाद मुझे तुरंत आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। किस्मत से आईसीयू में ट्रीटमेंट मिलते ही मैं रिस्पॉन्स कर गया और आठ से दस घंटे में काफी रिलीफ मिला। हॉस्पिटल में कलीग्स ही सुनील का सहारा थे, क्योंकि उन्होंने घर पर यह बात नहीं बताई थी। इसके बाद मुझे आईसीयू से नॉर्मल वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया क्योंकि बिना वजह आईसीयू वॉर्ड में रहना और ज्यादा खतरनाक हो जाता है। फिर 26 जून तक नॉर्मल वॉर्ड में ही रहा। कोरोना से जीतने में मुझे करीब 22 दिन लग गए। जब मैं कोरोना से संक्रमित हुआ था तो ये बात घर पर नहीं बताई थी। क्योंकि बताता भी तो वो लोग मुझसे मिल नहीं सकते थे। उनका दिल्ली आना ज्यादा खतरनाक था, क्योंकि यहां तो बहुत कोरोना फैला हुआ था। डिस्चार्ज होने के दो दिन बाद 28 जून को मैं अपने घर पहुंचा। तभी घर में सबको बताया कि मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया था और अब पूरी तरह से स्वस्थ हूं। मेरा करीब दस किलो वजन कम हो गया। पंद्रह दिन घर पर रेस्ट किया। 15 जुलाई से मैंने फिर ड्यूटी ज्वॉइन कर ली है। हालांकि, अभी कोरोना वॉर्ड में ड्यूटी नहीं है। मेरे पापा आर्मी से रिटायर हुए हैं, इसलिए वो छोटी-छोटी बातों से घबराते नहीं। उन्होंने कहा कि बिना डरे काम करो। 22 दिन लगातार ट्रीटमेंट के बाद सुनील कोरोना से ठीक हो सके। फिर अपने घर गए। मुझे कभी कोरोना का डर नहीं रहा क्योंकि हमारे वॉर्ड में स्वाइन फ्लू, एचआईवी, हेपेटाइटिस तक के पेशेंट आते हैं, जिनका मोर्टेलिटी रेट कोरोना से ज्यादा है और संक्रमण का खतरा भी। हम पूरे प्रिकॉशन लेकर काम कर रहे हैं। कोरोना वॉर्ड में जब भी ड्यूटी लगेगी, मैं फिर करना चाहूंगा। वॉर्ड में ड्यूटी करने पर लगता है कि हम भी कोरोना वॉरियर हैं और कुछ अलग कर रहे हैं। दूसरी कहानी - डॉक्टर प्रमोद कुमार की जो ठीक होकर दोबारा कोरोना वॉर्ड में मुस्तैद हो गए हैं मैं 24 मार्च से ही एम्स के ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में पोस्टेड हूं। हर चौथे हफ्ते हमारी ड्यूटी हुआ करती है। कोरोना के क्रिटिकल पेशेंट्स को देखने की जिम्मेदारी हमारी होती है। हम पूरे प्रिकॉशन के साथ वॉर्ड में होते हैं। पीपीई किट पहने होते हैं। 7 घंटे तक कुछ खाना-पीना नहीं। 6 घंटे मरीजों के बीच होते हैं तो कोरोना संक्रमित होने की रिस्क तो होती ही है। 5 जुलाई को मुझे हल्का बुखार आया। उसी दिन मैंने जांच के लिए खून दिया। 8 जुलाई को मैं कोरोना पॉजिटिव आया। मेरा घर झारखंड में है। घर पर मां, पापा और बहन हैं। यहां पर एम्स के हॉस्टल में रहता हूं। घरवालों को बता दिया था, लेकिन सिंपटम्स माइल्ड थे, इसलिए ज्यादा टेंशन की बात नहीं थी। 10 दिनों तक मैं एम्स के वॉर्ड में आइसोलेशन में रहा। ये डॉक्टर प्रमोद कुमार हैं। एम्स के हॉस्टल में ही रहते हैं। परिवार झारखंड में रहता है। कोरोना ड्यूटी के बाद से ही मैंने बाहर जाना बंद कर दिया था। मार्च से कहीं नहीं गया। सिर्फ हॉस्टल और कोरोना वॉर्ड में ही आना-जाना होता था। मुलाकात भी सिर्फ कलीग्स के साथ ही होती थी। घर जानबूझकर नहीं गया क्योंकि अभी यहां ड्यूटी चल रही है। कोरोना वॉर्ड के अंदर हमें कम से कम ये पता होता है कि कौन कोरोना पॉजिटिव है। हम पूरे प्रिकॉशन के साथ जाते हैं। वरना जिन लोगों को काम के सिलसिले में बाहर निकलना पड़ रहा है वो तो ये भी नहीं जानते कि कौन पॉजिटिव है और कौन नहीं। हालांकि, अभी मैं ठीक हो चुका हूं और ड्यूटी के लिए कोरोना वॉर्ड में वापस आ चुका हूं। वापस आने से पहले मैंने पढ़ा कि दोबारा संक्रमण का खतरा कितना होता है। यह कितना रिस्की हो सकता है, लेकिन इस बारे में ज्यादा कोई डाटा नहीं है तो मैं तो आ गया फिर ड्यूटी करने। कोरोना वॉर्ड में मरीज चिढ़ने लगते हैं कोरोना वॉर्ड में मरीजों का इलाज करने और खुद आइसोलेशन में रहने के दौरान हुए एक्सपीरियंस से पता चलता है कि जो वॉर्ड में या आइसोलेशन में होता है वो चिढ़ने लगता है। क्योंकि कोई मिलने-जुलने वाला नहीं होता। किसी से बात नहीं हो पाती। आईसीयू में तो मॉनिटर की आवाज आते रहती है। पीपीई किट पहनकर डॉक्टर आते रहते हैं। कई बार आपके आसपास ही किसी की डेथ भी हो जाती है, यह सब देखकर किसी का भी इरिटेट होना एक नॉर्मल बात है। डॉक्टर प्रमोद कुमार कोरोना से लड़ने के बाद एक बार फिर ड्यूटी पर लौट चुके हैं। आईसीयू में कई बार कुछ पेशेंट डेलिरियम में चले जाते हैं। यानी अपना होश खो बैठते हैं। ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जो मेंटली प्रिपेयर नहीं होते। मैं भी जब आइसोलेशन में था तो थोड़ा इरिटेट हो गया था। ऐसे में जरूरी है कि हम घरवालों से फोन पर ज्यादा से ज्यादा बात करते रहें। मोबाइल पर कुछ न कुछ करते रहें। काम करने की कंडीशन है तो करें या फिर कुछ पढ़ते रहें। खुद को कहीं न कहीं व्यस्त रखना जरूरी है वरना कोरोना ट्रीटमेंट का ये पीरियड काटना बहुत मुश्किल हो जाता है। खैर, मैं अपनी ड्यूटी पर दोबारा लौट चुका हूं। घरवालों ने कहा था कि हो सके तो कोरोना के बजाए किसी दूसरे वॉर्ड में ड्यूटी लगवा लो, लेकिन अभी हम नई उम्र के हैं। हमें गंभीर संक्रमण होने की आशंका कम है। पूरे प्रिकॉशन लेते हुए इलाज कर रहे हैं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें परिवार ने कहा कि, हो सके तो अब कोरोना वॉर्ड से ड्यूटी हटवा लो लेकिन डॉक्टर प्रमोद कुमार ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि, यह हमारी जिम्मेदारी है। पीछे नहीं हट सकते। https://ift.tt/33daOTU Dainik Bhaskar तेज बुखार आया, मुंह से खून आने लगा, अकेले इलाज करवाते रहे लेकिन घरवालों को नहीं बताया 

आज हम दिल्ली एम्स के दो डॉक्टरों की कहानी बताने जा रहे हैं। दोनों कोरोना मरीजों का इलाज करते-करते खुद कोरोना से संक्रमित हुए। ठीक होने के बाद एक तो वापस कोरोना वॉर्ड में भी लौट आए, मरीजों का फिर इलाज करने।

पहली कहानी - डॉक्टर सुनील ज्याणी की, जो संक्रमित हुए, आईसीयू में इलाज चला, 10 किलो वजन कम हो गया, अब ड्यूटी पर लौटे

मैं 24 मार्च से ही कोरोना पेशेंट का ट्रीटमेंट कर रहा था। सात-सात दिन के रोटेशन में हमारी ड्यूटी हुआ करती थी। 29 मई को मुझे अचानक बुखार आ गया। कपकपी लगने लगी। कमजोरी बहुत ज्यादा आ गई। मैंने अनुमान लगा लिया था कि मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया हूं। उस दिन मैंने 15 मिनट पहले ही अपनी ड्यूटी खत्म कर दी और तुरंत अपने रूम में चला गया।

उसी दिन रात में मुझे बहुत तेज ठंड लगी। घर राजस्थान में है। दिल्ली में एम्स के हॉस्टल में अकेला ही रहता हूं, इसलिए कोई देखने वाला नहीं था। सुबह होते ही मैंने डिपार्टमेंट में बताया कि ऐसे लक्षण हैं। उस दिन मेरा ब्लड लिया गया और दूसरे दिन रिपोर्ट निगेटिव आई। लेकिन, उस समय प्रोटोकॉल था कि यदि बुखार आया है तो 7 दिनों तक क्वारैंटाइन ही रहना है। इसलिए मैं क्वारैंटाइन ही था।

डॉक्टर सुनील ज्याणी ने बताया कि हम पीपीई किट पहनकर ड्यूटी करते हैं। सभी प्रिकॉशन ले रहे थे, फिर भी संक्रमण का शिकार हो गए।

क्वारैंटाइन के चौथे दिन मुझे बहुत तेज बुखार आया। कफ बनाना शुरू हो गया और बलगम में खून आने लगा। हालत ऐसी हो गई थी कि मैं खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। साथियों ने मुझे तुरंत एम्स के ही कोविड वॉर्ड में एडमिट कर दिया। फिर मेरा दूसरा टेस्ट हुआ, जो पॉजिटिव आया। यह 4 जून की बात है।

अगले पांच से छ दिन मैं नॉर्मल रहा, लेकिन 11 जून आते-आते एक बार फिर लक्षण काफी ज्यादा बढ़ गए और मेरी सांस फूलने लगी। मेरी बॉडी में ऑक्सीजन का लेवल 91 पर आ गया था। यह बहुत ही गंभीर स्थिति होती है। इसके बाद मुझे तुरंत आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। किस्मत से आईसीयू में ट्रीटमेंट मिलते ही मैं रिस्पॉन्स कर गया और आठ से दस घंटे में काफी रिलीफ मिला।

हॉस्पिटल में कलीग्स ही सुनील का सहारा थे, क्योंकि उन्होंने घर पर यह बात नहीं बताई थी।

इसके बाद मुझे आईसीयू से नॉर्मल वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया क्योंकि बिना वजह आईसीयू वॉर्ड में रहना और ज्यादा खतरनाक हो जाता है। फिर 26 जून तक नॉर्मल वॉर्ड में ही रहा। कोरोना से जीतने में मुझे करीब 22 दिन लग गए। जब मैं कोरोना से संक्रमित हुआ था तो ये बात घर पर नहीं बताई थी। क्योंकि बताता भी तो वो लोग मुझसे मिल नहीं सकते थे।

उनका दिल्ली आना ज्यादा खतरनाक था, क्योंकि यहां तो बहुत कोरोना फैला हुआ था। डिस्चार्ज होने के दो दिन बाद 28 जून को मैं अपने घर पहुंचा। तभी घर में सबको बताया कि मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया था और अब पूरी तरह से स्वस्थ हूं। मेरा करीब दस किलो वजन कम हो गया। पंद्रह दिन घर पर रेस्ट किया।

15 जुलाई से मैंने फिर ड्यूटी ज्वॉइन कर ली है। हालांकि, अभी कोरोना वॉर्ड में ड्यूटी नहीं है। मेरे पापा आर्मी से रिटायर हुए हैं, इसलिए वो छोटी-छोटी बातों से घबराते नहीं। उन्होंने कहा कि बिना डरे काम करो।

22 दिन लगातार ट्रीटमेंट के बाद सुनील कोरोना से ठीक हो सके। फिर अपने घर गए।

मुझे कभी कोरोना का डर नहीं रहा क्योंकि हमारे वॉर्ड में स्वाइन फ्लू, एचआईवी, हेपेटाइटिस तक के पेशेंट आते हैं, जिनका मोर्टेलिटी रेट कोरोना से ज्यादा है और संक्रमण का खतरा भी। हम पूरे प्रिकॉशन लेकर काम कर रहे हैं। कोरोना वॉर्ड में जब भी ड्यूटी लगेगी, मैं फिर करना चाहूंगा। वॉर्ड में ड्यूटी करने पर लगता है कि हम भी कोरोना वॉरियर हैं और कुछ अलग कर रहे हैं।

दूसरी कहानी - डॉक्टर प्रमोद कुमार की जो ठीक होकर दोबारा कोरोना वॉर्ड में मुस्तैद हो गए हैं

मैं 24 मार्च से ही एम्स के ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में पोस्टेड हूं। हर चौथे हफ्ते हमारी ड्यूटी हुआ करती है। कोरोना के क्रिटिकल पेशेंट्स को देखने की जिम्मेदारी हमारी होती है। हम पूरे प्रिकॉशन के साथ वॉर्ड में होते हैं। पीपीई किट पहने होते हैं। 7 घंटे तक कुछ खाना-पीना नहीं। 6 घंटे मरीजों के बीच होते हैं तो कोरोना संक्रमित होने की रिस्क तो होती ही है।

5 जुलाई को मुझे हल्का बुखार आया। उसी दिन मैंने जांच के लिए खून दिया। 8 जुलाई को मैं कोरोना पॉजिटिव आया। मेरा घर झारखंड में है। घर पर मां, पापा और बहन हैं। यहां पर एम्स के हॉस्टल में रहता हूं। घरवालों को बता दिया था, लेकिन सिंपटम्स माइल्ड थे, इसलिए ज्यादा टेंशन की बात नहीं थी। 10 दिनों तक मैं एम्स के वॉर्ड में आइसोलेशन में रहा।

ये डॉक्टर प्रमोद कुमार हैं। एम्स के हॉस्टल में ही रहते हैं। परिवार झारखंड में रहता है।

कोरोना ड्यूटी के बाद से ही मैंने बाहर जाना बंद कर दिया था। मार्च से कहीं नहीं गया। सिर्फ हॉस्टल और कोरोना वॉर्ड में ही आना-जाना होता था। मुलाकात भी सिर्फ कलीग्स के साथ ही होती थी। घर जानबूझकर नहीं गया क्योंकि अभी यहां ड्यूटी चल रही है। कोरोना वॉर्ड के अंदर हमें कम से कम ये पता होता है कि कौन कोरोना पॉजिटिव है। हम पूरे प्रिकॉशन के साथ जाते हैं।

वरना जिन लोगों को काम के सिलसिले में बाहर निकलना पड़ रहा है वो तो ये भी नहीं जानते कि कौन पॉजिटिव है और कौन नहीं। हालांकि, अभी मैं ठीक हो चुका हूं और ड्यूटी के लिए कोरोना वॉर्ड में वापस आ चुका हूं। वापस आने से पहले मैंने पढ़ा कि दोबारा संक्रमण का खतरा कितना होता है। यह कितना रिस्की हो सकता है, लेकिन इस बारे में ज्यादा कोई डाटा नहीं है तो मैं तो आ गया फिर ड्यूटी करने।

कोरोना वॉर्ड में मरीज चिढ़ने लगते हैं

कोरोना वॉर्ड में मरीजों का इलाज करने और खुद आइसोलेशन में रहने के दौरान हुए एक्सपीरियंस से पता चलता है कि जो वॉर्ड में या आइसोलेशन में होता है वो चिढ़ने लगता है। क्योंकि कोई मिलने-जुलने वाला नहीं होता। किसी से बात नहीं हो पाती। आईसीयू में तो मॉनिटर की आवाज आते रहती है। पीपीई किट पहनकर डॉक्टर आते रहते हैं। कई बार आपके आसपास ही किसी की डेथ भी हो जाती है, यह सब देखकर किसी का भी इरिटेट होना एक नॉर्मल बात है।

डॉक्टर प्रमोद कुमार कोरोना से लड़ने के बाद एक बार फिर ड्यूटी पर लौट चुके हैं।

आईसीयू में कई बार कुछ पेशेंट डेलिरियम में चले जाते हैं। यानी अपना होश खो बैठते हैं। ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जो मेंटली प्रिपेयर नहीं होते। मैं भी जब आइसोलेशन में था तो थोड़ा इरिटेट हो गया था। ऐसे में जरूरी है कि हम घरवालों से फोन पर ज्यादा से ज्यादा बात करते रहें। मोबाइल पर कुछ न कुछ करते रहें।

काम करने की कंडीशन है तो करें या फिर कुछ पढ़ते रहें। खुद को कहीं न कहीं व्यस्त रखना जरूरी है वरना कोरोना ट्रीटमेंट का ये पीरियड काटना बहुत मुश्किल हो जाता है। खैर, मैं अपनी ड्यूटी पर दोबारा लौट चुका हूं। घरवालों ने कहा था कि हो सके तो कोरोना के बजाए किसी दूसरे वॉर्ड में ड्यूटी लगवा लो, लेकिन अभी हम नई उम्र के हैं। हमें गंभीर संक्रमण होने की आशंका कम है। पूरे प्रिकॉशन लेते हुए इलाज कर रहे हैं।

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें

परिवार ने कहा कि, हो सके तो अब कोरोना वॉर्ड से ड्यूटी हटवा लो लेकिन डॉक्टर प्रमोद कुमार ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि, यह हमारी जिम्मेदारी है। पीछे नहीं हट सकते।

https://ift.tt/33daOTU Dainik Bhaskar तेज बुखार आया, मुंह से खून आने लगा, अकेले इलाज करवाते रहे लेकिन घरवालों को नहीं बताया Reviewed by Manish Pethev on July 31, 2020 Rating: 5

अलग -अलग ओवर द टॉप (ओटीटी) माध्यमों पर इस वीकेंड पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं। ‘शकुंतला देवी’ एमेजॉन पर आ रही है। ‘रात अकेली है’ नेटफ्लि‍क्स, ‘यारा’ जी5 पर, ‘माई क्लाइंट्स वाइफ’ शेमारूमी पर और ‘लूटकेस’ डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर आ रही है। ये फिल्म प्रदर्शन शैली सिनेमाघरों वाली मारामारी की याद दिला रही है, जहां किसी बड़े वीकेंड पर दो या तीन फिल्में एक साथ रिलीज होती थीं। सालभर मेंं हमारे देश में लगभग 1000 से 1400 फिल्में रिलीज होती हैं और रिलीज के वीकेंड मात्र 52 होते हैं, ऐसे में थिएटर्स में तो यह भीड़भाड़ समझ आती है, लेकिन ओटीटी तो बिल्कुल अलग तरह का माध्यम है। वहां एक बार फिल्म आने के बाद स्थायी रूप से उपलब्ध रहती है। ऐसे में एक वीकेंड पर पांच फिल्में रिलीज़ करने का औचित्य समझ से परे है, मैं हैरान हूं कि एक साथ रिलीज के पीछे क्या तर्क और बिज़नेस स्ट्रेटजी है? ओटीटी पर रिलीज करना और उनका प्रचार करके फिल्म के बारे में दर्शकों को बताना दो अलग बातें हैं। बड़े स्टार्स वाली ‌बड़ी फिल्म तो इस तरह अपनी मौजूदगी दर्ज करा लेंगी, लेकिन छोटी फिल्म्स फिर भीड़ में खो जाएंगी। शकुंतला देवी में विद्या बालन हैं, ऊपर से एमेजॉन जैसा प्लेटफॉर्म है। ऐसे में इस फिल्म को तो भरपूर पब्लिसिटी मिल गई है। यही अनुकूल परिस्थिति ‘रात अकेली है’ के साथ है। यहां बड़े नाम हैं। नवाज हैं, राधिका आप्टे भी हैं। मगर बाकी का क्या? सवाल है कि अगर फिल्में बनाने में काफी प्लानिंग होती है, तो रिलीज करने को लेकर बेहतर प्लानिंग क्यों नहीं हो सकती। यह प्रगतिशील सोच है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फिल्म करोड़ों घरों तक पहुंचेगी, लेकिन अगर लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि कोई फिल्म किसी प्लेटफॉर्म पर आई है कि नहीं, ऐसे में वह सफल कैसे होगी। ओटीटी पर ही लोगों के पास अनगिनत विकल्प हैं। ऐसे में ये फिल्म ही देखी जाएंगी, कैसे तय होगा। सिनेमाघरों के दोबारा खुलने पर यकीनन सब पहले जैसा हो जाएगा। पर इन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के लिए नई बदलाव वाली रणनीति होनी चाहिए। दर्शकों के साथ संदेश आदान-प्रदान के नवीन तरीके विकसित होने चाहिए। जहां तक दर्शकों को दूसरे प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ फिल्मों के पता चलने का सवाल है, तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन इसमें यह तय नहीं होता कि वह अपना प्लेटफॉर्म बदलकर उस फिल्म के लिए दूसरे माध्यम पर जाए। थिएटर्स में वीकेंड्स पर चार-पांच फिल्में आती थीं, उस स्थिति में किसी को फायदा नहीं होता था। यही चीज़ इन माध्यमों पर दोहराई जा रही है। जब इतना शोर होगा, तो दर्शक भी कन्फ्यूज हो जाएगा। अगर वाकई मनोरंजन की दुनिया बदल रही है, तो जाहिर तौर पर रिलीज की रणनीति भी अलग होनी चाहिए। इसमें नए प्रयोग किए जा सकते हैं जैसे कि शुक्रवार के अलावा नए कंटेंट के लिए आप मंगलवार आ सकते हैं। ताकि शुक्रवार से सोमवार तक लोग एक कंटेंट देख लें। मंगलवार से दूसरा कंटेंट देखें। ऐसे में एक ही टाइम पर रिलीज की मारामारी नहीं रहेगी। इसमें हर्ज क्या है? मैं भी डिजिटल पर ही काम करती हूं। यहां मालूम नहीं होता कि कौन सी चीज क्लिक कर जाए। जैसा फिल्मों के साथ भी है कि नहीं मालूम कौन सी चल जाए। दुनियाभर में फिल्में शुक्रवार को रिलीज़ करने का रिवाज़ रहा है, मगर शुक्रवार का इंतजार जरूरी नहीं। आज ज्यादातर काम वर्क फ्रॉम होम हो रहा है। क्या पता लोग बुधवार को ही कंटेंट देख लें! अगर रविवार की दोपहर को कंटेंट रिलीज़ करते हैं, तो इससे ओटीटी माध्यमों को क्या फर्क पड़ेगा? एक ही वीकेंड पर कौन इतनी फिल्में देख पाएगा। ऐसे में एक दो तो मिस होने वाली हैं। जो फिल्में मैं देख पाती, वह मिस होगी। इसमें फायदा किसका है? (ये लेखिका के अपने विचार हैं।) आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें अनुपमा चोपड़ा https://ift.tt/39FlBY7 Dainik Bhaskar इस बार ओटीटी पर एक साथ पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं, क्या दर्शक एक वीकेंड पर पांच फिल्में देख सकते हैं?

अलग -अलग ओवर द टॉप (ओटीटी) माध्यमों पर इस वीकेंड पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं। ‘शकुंतला देवी’ एमेजॉन पर आ रही है। ‘रात अकेली है’ नेटफ्लि‍क...
- July 31, 2020
अलग -अलग ओवर द टॉप (ओटीटी) माध्यमों पर इस वीकेंड पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं। ‘शकुंतला देवी’ एमेजॉन पर आ रही है। ‘रात अकेली है’ नेटफ्लि‍क्स, ‘यारा’ जी5 पर, ‘माई क्लाइंट्स वाइफ’ शेमारूमी पर और ‘लूटकेस’ डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर आ रही है। ये फिल्म प्रदर्शन शैली सिनेमाघरों वाली मारामारी की याद दिला रही है, जहां किसी बड़े वीकेंड पर दो या तीन फिल्में एक साथ रिलीज होती थीं। सालभर मेंं हमारे देश में लगभग 1000 से 1400 फिल्में रिलीज होती हैं और रिलीज के वीकेंड मात्र 52 होते हैं, ऐसे में थिएटर्स में तो यह भीड़भाड़ समझ आती है, लेकिन ओटीटी तो बिल्कुल अलग तरह का माध्यम है। वहां एक बार फिल्म आने के बाद स्थायी रूप से उपलब्ध रहती है। ऐसे में एक वीकेंड पर पांच फिल्में रिलीज़ करने का औचित्य समझ से परे है, मैं हैरान हूं कि एक साथ रिलीज के पीछे क्या तर्क और बिज़नेस स्ट्रेटजी है? ओटीटी पर रिलीज करना और उनका प्रचार करके फिल्म के बारे में दर्शकों को बताना दो अलग बातें हैं। बड़े स्टार्स वाली ‌बड़ी फिल्म तो इस तरह अपनी मौजूदगी दर्ज करा लेंगी, लेकिन छोटी फिल्म्स फिर भीड़ में खो जाएंगी। शकुंतला देवी में विद्या बालन हैं, ऊपर से एमेजॉन जैसा प्लेटफॉर्म है। ऐसे में इस फिल्म को तो भरपूर पब्लिसिटी मिल गई है। यही अनुकूल परिस्थिति ‘रात अकेली है’ के साथ है। यहां बड़े नाम हैं। नवाज हैं, राधिका आप्टे भी हैं। मगर बाकी का क्या? सवाल है कि अगर फिल्में बनाने में काफी प्लानिंग होती है, तो रिलीज करने को लेकर बेहतर प्लानिंग क्यों नहीं हो सकती। यह प्रगतिशील सोच है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फिल्म करोड़ों घरों तक पहुंचेगी, लेकिन अगर लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि कोई फिल्म किसी प्लेटफॉर्म पर आई है कि नहीं, ऐसे में वह सफल कैसे होगी। ओटीटी पर ही लोगों के पास अनगिनत विकल्प हैं। ऐसे में ये फिल्म ही देखी जाएंगी, कैसे तय होगा। सिनेमाघरों के दोबारा खुलने पर यकीनन सब पहले जैसा हो जाएगा। पर इन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के लिए नई बदलाव वाली रणनीति होनी चाहिए। दर्शकों के साथ संदेश आदान-प्रदान के नवीन तरीके विकसित होने चाहिए। जहां तक दर्शकों को दूसरे प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ फिल्मों के पता चलने का सवाल है, तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन इसमें यह तय नहीं होता कि वह अपना प्लेटफॉर्म बदलकर उस फिल्म के लिए दूसरे माध्यम पर जाए। थिएटर्स में वीकेंड्स पर चार-पांच फिल्में आती थीं, उस स्थिति में किसी को फायदा नहीं होता था। यही चीज़ इन माध्यमों पर दोहराई जा रही है। जब इतना शोर होगा, तो दर्शक भी कन्फ्यूज हो जाएगा। अगर वाकई मनोरंजन की दुनिया बदल रही है, तो जाहिर तौर पर रिलीज की रणनीति भी अलग होनी चाहिए। इसमें नए प्रयोग किए जा सकते हैं जैसे कि शुक्रवार के अलावा नए कंटेंट के लिए आप मंगलवार आ सकते हैं। ताकि शुक्रवार से सोमवार तक लोग एक कंटेंट देख लें। मंगलवार से दूसरा कंटेंट देखें। ऐसे में एक ही टाइम पर रिलीज की मारामारी नहीं रहेगी। इसमें हर्ज क्या है? मैं भी डिजिटल पर ही काम करती हूं। यहां मालूम नहीं होता कि कौन सी चीज क्लिक कर जाए। जैसा फिल्मों के साथ भी है कि नहीं मालूम कौन सी चल जाए। दुनियाभर में फिल्में शुक्रवार को रिलीज़ करने का रिवाज़ रहा है, मगर शुक्रवार का इंतजार जरूरी नहीं। आज ज्यादातर काम वर्क फ्रॉम होम हो रहा है। क्या पता लोग बुधवार को ही कंटेंट देख लें! अगर रविवार की दोपहर को कंटेंट रिलीज़ करते हैं, तो इससे ओटीटी माध्यमों को क्या फर्क पड़ेगा? एक ही वीकेंड पर कौन इतनी फिल्में देख पाएगा। ऐसे में एक दो तो मिस होने वाली हैं। जो फिल्में मैं देख पाती, वह मिस होगी। इसमें फायदा किसका है? (ये लेखिका के अपने विचार हैं।) आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें अनुपमा चोपड़ा https://ift.tt/39FlBY7 Dainik Bhaskar इस बार ओटीटी पर एक साथ पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं, क्या दर्शक एक वीकेंड पर पांच फिल्में देख सकते हैं? 

अलग -अलग ओवर द टॉप (ओटीटी) माध्यमों पर इस वीकेंड पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं। ‘शकुंतला देवी’ एमेजॉन पर आ रही है। ‘रात अकेली है’ नेटफ्लि‍क्स, ‘यारा’ जी5 पर, ‘माई क्लाइंट्स वाइफ’ शेमारूमी पर और ‘लूटकेस’ डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर आ रही है।

ये फिल्म प्रदर्शन शैली सिनेमाघरों वाली मारामारी की याद दिला रही है, जहां किसी बड़े वीकेंड पर दो या तीन फिल्में एक साथ रिलीज होती थीं। सालभर मेंं हमारे देश में लगभग 1000 से 1400 फिल्में रिलीज होती हैं और रिलीज के वीकेंड मात्र 52 होते हैं, ऐसे में थिएटर्स में तो यह भीड़भाड़ समझ आती है, लेकिन ओटीटी तो बिल्कुल अलग तरह का माध्यम है। वहां एक बार फिल्म आने के बाद स्थायी रूप से उपलब्ध रहती है। ऐसे में एक वीकेंड पर पांच फिल्में रिलीज़ करने का औचित्य समझ से परे है, मैं हैरान हूं कि एक साथ रिलीज के पीछे क्या तर्क और बिज़नेस स्ट्रेटजी है?

ओटीटी पर रिलीज करना और उनका प्रचार करके फिल्म के बारे में दर्शकों को बताना दो अलग बातें हैं। बड़े स्टार्स वाली ‌बड़ी फिल्म तो इस तरह अपनी मौजूदगी दर्ज करा लेंगी, लेकिन छोटी फिल्म्स फिर भीड़ में खो जाएंगी। शकुंतला देवी में विद्या बालन हैं, ऊपर से एमेजॉन जैसा प्लेटफॉर्म है। ऐसे में इस फिल्म को तो भरपूर पब्लिसिटी मिल गई है। यही अनुकूल परिस्थिति ‘रात अकेली है’ के साथ है। यहां बड़े नाम हैं। नवाज हैं, राधिका आप्टे भी हैं। मगर बाकी का क्या? सवाल है कि अगर फिल्में बनाने में काफी प्लानिंग होती है, तो रिलीज करने को लेकर बेहतर प्लानिंग क्यों नहीं हो सकती।

यह प्रगतिशील सोच है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फिल्म करोड़ों घरों तक पहुंचेगी, लेकिन अगर लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि कोई फिल्म किसी प्लेटफॉर्म पर आई है कि नहीं, ऐसे में वह सफल कैसे होगी। ओटीटी पर ही लोगों के पास अनगिनत विकल्प हैं। ऐसे में ये फिल्म ही देखी जाएंगी, कैसे तय होगा।

सिनेमाघरों के दोबारा खुलने पर यकीनन सब पहले जैसा हो जाएगा। पर इन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के लिए नई बदलाव वाली रणनीति होनी चाहिए। दर्शकों के साथ संदेश आदान-प्रदान के नवीन तरीके विकसित होने चाहिए। जहां तक दर्शकों को दूसरे प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ फिल्मों के पता चलने का सवाल है, तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन इसमें यह तय नहीं होता कि वह अपना प्लेटफॉर्म बदलकर उस फिल्म के लिए दूसरे माध्यम पर जाए। थिएटर्स में वीकेंड्स पर चार-पांच फिल्में आती थीं, उस स्थिति में किसी को फायदा नहीं होता था। यही चीज़ इन माध्यमों पर दोहराई जा रही है। जब इतना शोर होगा, तो दर्शक भी कन्फ्यूज हो जाएगा।

अगर वाकई मनोरंजन की दुनिया बदल रही है, तो जाहिर तौर पर रिलीज की रणनीति भी अलग होनी चाहिए। इसमें नए प्रयोग किए जा सकते हैं जैसे कि शुक्रवार के अलावा नए कंटेंट के लिए आप मंगलवार आ सकते हैं। ताकि शुक्रवार से सोमवार तक लोग एक कंटेंट देख लें। मंगलवार से दूसरा कंटेंट देखें। ऐसे में एक ही टाइम पर रिलीज की मारामारी नहीं रहेगी। इसमें हर्ज क्या है? मैं भी डिजिटल पर ही काम करती हूं। यहां मालूम नहीं होता कि कौन सी चीज क्लिक कर जाए। जैसा फिल्मों के साथ भी है कि नहीं मालूम कौन सी चल जाए।

दुनियाभर में फिल्में शुक्रवार को रिलीज़ करने का रिवाज़ रहा है, मगर शुक्रवार का इंतजार जरूरी नहीं। आज ज्यादातर काम वर्क फ्रॉम होम हो रहा है। क्या पता लोग बुधवार को ही कंटेंट देख लें! अगर रविवार की दोपहर को कंटेंट रिलीज़ करते हैं, तो इससे ओटीटी माध्यमों को क्या फर्क पड़ेगा? एक ही वीकेंड पर कौन इतनी फिल्में देख पाएगा। ऐसे में एक दो तो मिस होने वाली हैं। जो फिल्में मैं देख पाती, वह मिस होगी। इसमें फायदा किसका है? (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें

अनुपमा चोपड़ा

https://ift.tt/39FlBY7 Dainik Bhaskar इस बार ओटीटी पर एक साथ पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं, क्या दर्शक एक वीकेंड पर पांच फिल्में देख सकते हैं? Reviewed by Manish Pethev on July 31, 2020 Rating: 5

भारतीय राजनीति में आप कहां खड़े हैं, यह इसपर निर्भर है कि आप कहां बैठते हैं। इसका ताजा उदाहरण हैं राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र। मिश्र 1998 में उस भाजपा प्रतिनिधि मंडल का हिस्सा थे जो उप्र के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी द्वारा कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करने के खिलाफ धरने पर बैठा था। अब कांग्रेस के विधायक जो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तुरंत सत्र बुलाने की मांग को मिश्र द्वारा खारिज करने के विरोध में धरने पर बैठे। राज्यपाल ने मांग मान ली, लेकिन सत्र बुलाने के लिए 21 दिन के नोटिस पीरियड पर जोर दिया है, जो कि विधायकों की खरीद-फरोख्त व एक और कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए पर्याप्त समय होगा। स्पष्ट है कि मिश्र की निष्ठा संविधान में नहीं, केंद्र में है। मिश्र विवादों में आने वाले पहले राज्यपाल नहीं हैं। 2017 में गोवा में मृदुला सिन्हा और मणिपुर में नजमा हेपतुल्लाह ने भाजपा सरकारों को जल्दबाजी में शपथ दिलाई। कर्नाटक में 2018 में वजूभाई वाला, जो कि गुजरात बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष थे, ने बीएस येद्दुरप्पा को बिना बहुमत सरकार बनाने का आमंत्रण दिया था। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सरकार 48 घंटे में ही गिर गई। महाराष्ट्र में 2019 में बीएस कोशियारी ने अलसुबह देवेंद्र फडनवीस को शपथ दिलवा दी थी। इन सभी राज्यपालों में एक बात समान है। ये सभी बीजेपी के ‘मार्गदर्शक मंडल’ राजनेता हैं, जिनके लिए राज भवन आलीशान रिटायरमेंट होम की तरह है। ये संवैधानिक प्राधिकारी अपने पक्षपाती कामों के बचाव में कहते हैं कि वे तो बस कांग्रेस पार्टी द्वारा स्थापित पुरानी परंपरा निभा रहे हैं, जिसमें हमेशा राज्यपाल कार्यालय का दुरुपयोग होता था। एक तरह से यह भाजपा के ‘कांग्रेसीकरण’ का ही सबूत है। इन्होंने बाकियों से अलग होने का जो दावा जोर-शोर से किया था, उसका मतलब सिर्फ कांग्रेस का विकल्प बनना नहीं बल्कि एक वैकल्पिक राजनीतिक संस्कृति देना भी था। वाजपेयी-आडवाणी के दौर में ‘मूल्य-आधारित’ राजनीति का दावा करने वाली भाजपा में अब ऊंचे मोल की राजनीति हो रही है, जहां राजनीतिक साजिशों के साथ कीमत जुड़ी है। उदाहरण के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गहलोत के भाई को खाद घोटाले के 2007 के एक मामले में समन भेज दिया। ईडी पर भाजपा के सहयोगी और राजनीतिक बदला लेने का हथियार होने के आरोप लगते रहे हैं। यहां भी बचाव में यही कहा जा रहा है कि कांग्रेस का भी सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। लेकिन अगर कांग्रेस के शासन में सीबीआई पिंजरे का तोता थी तो क्या ईडी भाजपा शासन में खूंखार कुत्ता है? फिर अलग होने का दावा करने वाली पार्टी का क्या हुआ? राजस्थान में पार्टी बदलने के लिए भारी मात्रा में पैसे दिए जाने के आरोपों का भी विश्लेषण करें। भले ही यह अटकलबाजी हो, लेकिन दल-बदल के पीछे मंत्री बनने के लालच से इनकार नहीं कर सकते। जिन्होंने पार्टी बदली उन्हें नवाजा गया, फिर वह गोवा रहा हो, मणिपुर, कर्नाटक या एमपी। पैसे की ताकत के नशे को कांग्रेस के पतन का कारण माना गया और इसके विपरीत भाजपा नेताओं की सादगीपसंद छवि मानी गई। अब दल बदलने के लिए भड़काने वाली भाजपा के अलग होने के दावे का क्या हुआ? सच्चाई यह है कि भाजपा पूर्ण प्रभुत्व की लालसा में आदर्शवाद के किसी भी अवशेष से समझौता कर सकती है। वह संसद में हो या विधानसभा या फिर नगर निगमों में, भाजपा की जितनी ‘जीत’ रही हैं, वे दरअसल पूर्व कांग्रेसी रहे हैं, जो भगवा लहर में बह गए। फिर वे मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह हो, गोवा के उपमुख्यमंत्री चंद्रकांत कावलेखर, मप्र में शिवराज सरकार के आधे मंत्री हो, असम के हेमंत बिस्व सरमा हों या फिर अरुणाचल के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू। ये सभी भाजपा में शामिल होने से पहले लंबे समय कांग्रेस में रहे। फेहरिस्त लंबी है। यह ‘नई’ भाजपा की हिंसक, अनैतिक प्रवृत्ति का खुलासा भी करता है, जो किसी भी तरह अपने विरोधी को तबाह करना चाहती है। इस प्रक्रिया में कभी बहुत अनुशासित रहा भाजपा का ढांचा और वैचारिक सामंजस्य खतरे में है। जब आप अवसरवादिता को बढ़ावा दें और नैतिक व्यवहार को कमजोर करें तो आप भविष्य के संभावित राजनीतिक खतरों को जन्म देते हैं। उधर राजनीति की कठोर वास्तविकताओं से आरएसएस का भी अपनी राजनीतिक शाखा पर से नियंत्रण लगातार कम हो रहा है। जहां पहले नैतिक अधिकार आरएसएस सरसंघचालक का माना जाता था, अब मोदी-शाह युग में वे स्पष्टरूप से दूसरे पायदान पर आ गए हैं। वहीं अब संस्थागत नियंत्रण लगभग पूरा हो चुका है। एक चुनाव आयुक्त, जो असहमति जताते हैं तो उन्हें गैरजरूरी पद पर मनिला भेज देते हैं। एक सुप्रीम कोर्ट जज को रिटायरमेंट के कुछ ही महीनों में राज्यसभा के लिए नामित कर देते हैं, जबकि प्रधानमंत्री की तारीफ करने वाले एक मौजूदा जज राजनीति के विवादास्पद मामलों की सुनवाई करते हैं। संसद एक नोटिस बोर्ड बनकर रह गई है। और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा चीयरलीडर की भूमिका में है। इस बीच भाजपा विस्तार कर रही है। कल मध्यप्रदेश, आज राजस्थान और पता नहीं कल कौन-सा विपक्ष शासित राज्य। क्या विरोधी आवाज के लिए कोई जगह बची है? (ये लेखक के अपने विचार हैं) आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें राजदीप सरदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार https://ift.tt/2Xf3HGx Dainik Bhaskar ‘नई’ भाजपा वैसी नहीं है, जैसा वह दावा करती थी; अब दिखने लगा है कि भाजपा का ‘कांग्रेसीकरण’ हो रहा

भारतीय राजनीति में आप कहां खड़े हैं, यह इसपर निर्भर है कि आप कहां बैठते हैं। इसका ताजा उदाहरण हैं राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र। मिश्र 19...
- July 31, 2020
भारतीय राजनीति में आप कहां खड़े हैं, यह इसपर निर्भर है कि आप कहां बैठते हैं। इसका ताजा उदाहरण हैं राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र। मिश्र 1998 में उस भाजपा प्रतिनिधि मंडल का हिस्सा थे जो उप्र के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी द्वारा कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करने के खिलाफ धरने पर बैठा था। अब कांग्रेस के विधायक जो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तुरंत सत्र बुलाने की मांग को मिश्र द्वारा खारिज करने के विरोध में धरने पर बैठे। राज्यपाल ने मांग मान ली, लेकिन सत्र बुलाने के लिए 21 दिन के नोटिस पीरियड पर जोर दिया है, जो कि विधायकों की खरीद-फरोख्त व एक और कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए पर्याप्त समय होगा। स्पष्ट है कि मिश्र की निष्ठा संविधान में नहीं, केंद्र में है। मिश्र विवादों में आने वाले पहले राज्यपाल नहीं हैं। 2017 में गोवा में मृदुला सिन्हा और मणिपुर में नजमा हेपतुल्लाह ने भाजपा सरकारों को जल्दबाजी में शपथ दिलाई। कर्नाटक में 2018 में वजूभाई वाला, जो कि गुजरात बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष थे, ने बीएस येद्दुरप्पा को बिना बहुमत सरकार बनाने का आमंत्रण दिया था। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सरकार 48 घंटे में ही गिर गई। महाराष्ट्र में 2019 में बीएस कोशियारी ने अलसुबह देवेंद्र फडनवीस को शपथ दिलवा दी थी। इन सभी राज्यपालों में एक बात समान है। ये सभी बीजेपी के ‘मार्गदर्शक मंडल’ राजनेता हैं, जिनके लिए राज भवन आलीशान रिटायरमेंट होम की तरह है। ये संवैधानिक प्राधिकारी अपने पक्षपाती कामों के बचाव में कहते हैं कि वे तो बस कांग्रेस पार्टी द्वारा स्थापित पुरानी परंपरा निभा रहे हैं, जिसमें हमेशा राज्यपाल कार्यालय का दुरुपयोग होता था। एक तरह से यह भाजपा के ‘कांग्रेसीकरण’ का ही सबूत है। इन्होंने बाकियों से अलग होने का जो दावा जोर-शोर से किया था, उसका मतलब सिर्फ कांग्रेस का विकल्प बनना नहीं बल्कि एक वैकल्पिक राजनीतिक संस्कृति देना भी था। वाजपेयी-आडवाणी के दौर में ‘मूल्य-आधारित’ राजनीति का दावा करने वाली भाजपा में अब ऊंचे मोल की राजनीति हो रही है, जहां राजनीतिक साजिशों के साथ कीमत जुड़ी है। उदाहरण के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गहलोत के भाई को खाद घोटाले के 2007 के एक मामले में समन भेज दिया। ईडी पर भाजपा के सहयोगी और राजनीतिक बदला लेने का हथियार होने के आरोप लगते रहे हैं। यहां भी बचाव में यही कहा जा रहा है कि कांग्रेस का भी सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। लेकिन अगर कांग्रेस के शासन में सीबीआई पिंजरे का तोता थी तो क्या ईडी भाजपा शासन में खूंखार कुत्ता है? फिर अलग होने का दावा करने वाली पार्टी का क्या हुआ? राजस्थान में पार्टी बदलने के लिए भारी मात्रा में पैसे दिए जाने के आरोपों का भी विश्लेषण करें। भले ही यह अटकलबाजी हो, लेकिन दल-बदल के पीछे मंत्री बनने के लालच से इनकार नहीं कर सकते। जिन्होंने पार्टी बदली उन्हें नवाजा गया, फिर वह गोवा रहा हो, मणिपुर, कर्नाटक या एमपी। पैसे की ताकत के नशे को कांग्रेस के पतन का कारण माना गया और इसके विपरीत भाजपा नेताओं की सादगीपसंद छवि मानी गई। अब दल बदलने के लिए भड़काने वाली भाजपा के अलग होने के दावे का क्या हुआ? सच्चाई यह है कि भाजपा पूर्ण प्रभुत्व की लालसा में आदर्शवाद के किसी भी अवशेष से समझौता कर सकती है। वह संसद में हो या विधानसभा या फिर नगर निगमों में, भाजपा की जितनी ‘जीत’ रही हैं, वे दरअसल पूर्व कांग्रेसी रहे हैं, जो भगवा लहर में बह गए। फिर वे मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह हो, गोवा के उपमुख्यमंत्री चंद्रकांत कावलेखर, मप्र में शिवराज सरकार के आधे मंत्री हो, असम के हेमंत बिस्व सरमा हों या फिर अरुणाचल के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू। ये सभी भाजपा में शामिल होने से पहले लंबे समय कांग्रेस में रहे। फेहरिस्त लंबी है। यह ‘नई’ भाजपा की हिंसक, अनैतिक प्रवृत्ति का खुलासा भी करता है, जो किसी भी तरह अपने विरोधी को तबाह करना चाहती है। इस प्रक्रिया में कभी बहुत अनुशासित रहा भाजपा का ढांचा और वैचारिक सामंजस्य खतरे में है। जब आप अवसरवादिता को बढ़ावा दें और नैतिक व्यवहार को कमजोर करें तो आप भविष्य के संभावित राजनीतिक खतरों को जन्म देते हैं। उधर राजनीति की कठोर वास्तविकताओं से आरएसएस का भी अपनी राजनीतिक शाखा पर से नियंत्रण लगातार कम हो रहा है। जहां पहले नैतिक अधिकार आरएसएस सरसंघचालक का माना जाता था, अब मोदी-शाह युग में वे स्पष्टरूप से दूसरे पायदान पर आ गए हैं। वहीं अब संस्थागत नियंत्रण लगभग पूरा हो चुका है। एक चुनाव आयुक्त, जो असहमति जताते हैं तो उन्हें गैरजरूरी पद पर मनिला भेज देते हैं। एक सुप्रीम कोर्ट जज को रिटायरमेंट के कुछ ही महीनों में राज्यसभा के लिए नामित कर देते हैं, जबकि प्रधानमंत्री की तारीफ करने वाले एक मौजूदा जज राजनीति के विवादास्पद मामलों की सुनवाई करते हैं। संसद एक नोटिस बोर्ड बनकर रह गई है। और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा चीयरलीडर की भूमिका में है। इस बीच भाजपा विस्तार कर रही है। कल मध्यप्रदेश, आज राजस्थान और पता नहीं कल कौन-सा विपक्ष शासित राज्य। क्या विरोधी आवाज के लिए कोई जगह बची है? (ये लेखक के अपने विचार हैं) आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें राजदीप सरदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार https://ift.tt/2Xf3HGx Dainik Bhaskar ‘नई’ भाजपा वैसी नहीं है, जैसा वह दावा करती थी; अब दिखने लगा है कि भाजपा का ‘कांग्रेसीकरण’ हो रहा 

भारतीय राजनीति में आप कहां खड़े हैं, यह इसपर निर्भर है कि आप कहां बैठते हैं। इसका ताजा उदाहरण हैं राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र। मिश्र 1998 में उस भाजपा प्रतिनिधि मंडल का हिस्सा थे जो उप्र के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी द्वारा कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करने के खिलाफ धरने पर बैठा था।

अब कांग्रेस के विधायक जो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तुरंत सत्र बुलाने की मांग को मिश्र द्वारा खारिज करने के विरोध में धरने पर बैठे। राज्यपाल ने मांग मान ली, लेकिन सत्र बुलाने के लिए 21 दिन के नोटिस पीरियड पर जोर दिया है, जो कि विधायकों की खरीद-फरोख्त व एक और कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए पर्याप्त समय होगा। स्पष्ट है कि मिश्र की निष्ठा संविधान में नहीं, केंद्र में है।

मिश्र विवादों में आने वाले पहले राज्यपाल नहीं हैं। 2017 में गोवा में मृदुला सिन्हा और मणिपुर में नजमा हेपतुल्लाह ने भाजपा सरकारों को जल्दबाजी में शपथ दिलाई। कर्नाटक में 2018 में वजूभाई वाला, जो कि गुजरात बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष थे, ने बीएस येद्दुरप्पा को बिना बहुमत सरकार बनाने का आमंत्रण दिया था।

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सरकार 48 घंटे में ही गिर गई। महाराष्ट्र में 2019 में बीएस कोशियारी ने अलसुबह देवेंद्र फडनवीस को शपथ दिलवा दी थी। इन सभी राज्यपालों में एक बात समान है। ये सभी बीजेपी के ‘मार्गदर्शक मंडल’ राजनेता हैं, जिनके लिए राज भवन आलीशान रिटायरमेंट होम की तरह है।

ये संवैधानिक प्राधिकारी अपने पक्षपाती कामों के बचाव में कहते हैं कि वे तो बस कांग्रेस पार्टी द्वारा स्थापित पुरानी परंपरा निभा रहे हैं, जिसमें हमेशा राज्यपाल कार्यालय का दुरुपयोग होता था। एक तरह से यह भाजपा के ‘कांग्रेसीकरण’ का ही सबूत है।

इन्होंने बाकियों से अलग होने का जो दावा जोर-शोर से किया था, उसका मतलब सिर्फ कांग्रेस का विकल्प बनना नहीं बल्कि एक वैकल्पिक राजनीतिक संस्कृति देना भी था। वाजपेयी-आडवाणी के दौर में ‘मूल्य-आधारित’ राजनीति का दावा करने वाली भाजपा में अब ऊंचे मोल की राजनीति हो रही है, जहां राजनीतिक साजिशों के साथ कीमत जुड़ी है।

उदाहरण के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गहलोत के भाई को खाद घोटाले के 2007 के एक मामले में समन भेज दिया। ईडी पर भाजपा के सहयोगी और राजनीतिक बदला लेने का हथियार होने के आरोप लगते रहे हैं।

यहां भी बचाव में यही कहा जा रहा है कि कांग्रेस का भी सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। लेकिन अगर कांग्रेस के शासन में सीबीआई पिंजरे का तोता थी तो क्या ईडी भाजपा शासन में खूंखार कुत्ता है? फिर अलग होने का दावा करने वाली पार्टी का क्या हुआ?

राजस्थान में पार्टी बदलने के लिए भारी मात्रा में पैसे दिए जाने के आरोपों का भी विश्लेषण करें। भले ही यह अटकलबाजी हो, लेकिन दल-बदल के पीछे मंत्री बनने के लालच से इनकार नहीं कर सकते। जिन्होंने पार्टी बदली उन्हें नवाजा गया, फिर वह गोवा रहा हो, मणिपुर, कर्नाटक या एमपी।

पैसे की ताकत के नशे को कांग्रेस के पतन का कारण माना गया और इसके विपरीत भाजपा नेताओं की सादगीपसंद छवि मानी गई। अब दल बदलने के लिए भड़काने वाली भाजपा के अलग होने के दावे का क्या हुआ?

सच्चाई यह है कि भाजपा पूर्ण प्रभुत्व की लालसा में आदर्शवाद के किसी भी अवशेष से समझौता कर सकती है। वह संसद में हो या विधानसभा या फिर नगर निगमों में, भाजपा की जितनी ‘जीत’ रही हैं, वे दरअसल पूर्व कांग्रेसी रहे हैं, जो भगवा लहर में बह गए।

फिर वे मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह हो, गोवा के उपमुख्यमंत्री चंद्रकांत कावलेखर, मप्र में शिवराज सरकार के आधे मंत्री हो, असम के हेमंत बिस्व सरमा हों या फिर अरुणाचल के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू। ये सभी भाजपा में शामिल होने से पहले लंबे समय कांग्रेस में रहे। फेहरिस्त लंबी है।

यह ‘नई’ भाजपा की हिंसक, अनैतिक प्रवृत्ति का खुलासा भी करता है, जो किसी भी तरह अपने विरोधी को तबाह करना चाहती है। इस प्रक्रिया में कभी बहुत अनुशासित रहा भाजपा का ढांचा और वैचारिक सामंजस्य खतरे में है। जब आप अवसरवादिता को बढ़ावा दें और नैतिक व्यवहार को कमजोर करें तो आप भविष्य के संभावित राजनीतिक खतरों को जन्म देते हैं।

उधर राजनीति की कठोर वास्तविकताओं से आरएसएस का भी अपनी राजनीतिक शाखा पर से नियंत्रण लगातार कम हो रहा है। जहां पहले नैतिक अधिकार आरएसएस सरसंघचालक का माना जाता था, अब मोदी-शाह युग में वे स्पष्टरूप से दूसरे पायदान पर आ गए हैं।

वहीं अब संस्थागत नियंत्रण लगभग पूरा हो चुका है। एक चुनाव आयुक्त, जो असहमति जताते हैं तो उन्हें गैरजरूरी पद पर मनिला भेज देते हैं। एक सुप्रीम कोर्ट जज को रिटायरमेंट के कुछ ही महीनों में राज्यसभा के लिए नामित कर देते हैं, जबकि प्रधानमंत्री की तारीफ करने वाले एक मौजूदा जज राजनीति के विवादास्पद मामलों की सुनवाई करते हैं।

संसद एक नोटिस बोर्ड बनकर रह गई है। और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा चीयरलीडर की भूमिका में है। इस बीच भाजपा विस्तार कर रही है। कल मध्यप्रदेश, आज राजस्थान और पता नहीं कल कौन-सा विपक्ष शासित राज्य। क्या विरोधी आवाज के लिए कोई जगह बची है? (ये लेखक के अपने विचार हैं)

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें

राजदीप सरदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार

https://ift.tt/2Xf3HGx Dainik Bhaskar ‘नई’ भाजपा वैसी नहीं है, जैसा वह दावा करती थी; अब दिखने लगा है कि भाजपा का ‘कांग्रेसीकरण’ हो रहा Reviewed by Manish Pethev on July 31, 2020 Rating: 5

देश के सबसे ज्यादा कोरोना मरीजों वाले 20 शहरों में संक्रमण दर 17% हो चुकी है, जो राष्ट्रीय दर (8.7%) से दोगुनी है। यानी, देश में हर 100 टेस्ट में 8-9 मरीज मिले हैं, जबकि इन शहरों में 17 मरीज मिले हैं। कारण- टेस्ट कम होना। इन शहरों में देश के कुल 49% मरीज हैं, जबकि देश में कुल टेस्ट में इन शहरों के मरीजों की हिस्सेदारी सिर्फ 24% है। इसीलिए, संक्रमण दर ऊंची है। लेकिन, अच्छी बात यह है कि इन शहरों में 70% मरीज ठीक हो चुके हैं। यह दर राष्ट्रीय औसत से 6% ज्यादा है। यह आंकड़ा इसलिए अहम है, क्योंकि देश में रिकवरी रेट 6% बढ़ने में 45 दिन लगे हैं। जिन शहरों में मरीज ज्यादा हैं, रिकवरी रेट भी वहीं ज्यादा है। इसलिए बढ़ रही चिंता - चिंता की बात यह कि जयपुर-जोधपुर को छोड़कर सभी शहरों में संक्रमण की दर 5% से ज्यादा। (डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 5% से ज्यादा संक्रमण का मतलब है कि टेस्ट कम हो रहे हैं) ठाणे में हर 100 टेस्ट में 40 से ज्यादा मरीज मिल रहे हैं, यह दर ब्राजील के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा। दुनिया में एक दिन में रिकॉर्ड 2.90 लाख नए मरीज मिले दुनिया में कोरोनाकाल के साढ़े चार महीने में पहली बार बुधवार को एक दिन में रिकॉर्ड 2,90,393 कोरोना मरीज मिले। सबसे ज्यादा 70,869 मरीज ब्राजील और 66,921 मरीज अमेरिका में मिले। यानी दुनिया के 47.4% मरीज सिर्फ इन दो देशों में मिले हैं। अगर इनमें भारत के 52,656 मरीज भी जोड़ दें तो यह संख्या 1,90,464 बनती है। यानी दुनिया के 66% मरीज सिर्फ ब्राजील, अमेरिका और भारत में मिलने लगे हैं। दुनिया में बुधवार को कुल 7,032 मौतें हुईं। 21 अप्रैल के बाद सिर्फ दो बार मौतों का आंकड़ा 7 हजार के ऊपर गया है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें नई दिल्ली में कोरोना की जांच के लिए स्वाब सैंपल लेता स्वास्थ्यकर्मी। https://ift.tt/2BIFW1Z Dainik Bhaskar 20 शहरों में देश के 49% मरीज, लेकिन टेस्ट सिर्फ 24%; इसीलिए संक्रमण दोगुना, बड़े शहरों में संक्रमण की दर 17% हुई

देश के सबसे ज्यादा कोरोना मरीजों वाले 20 शहरों में संक्रमण दर 17% हो चुकी है, जो राष्ट्रीय दर (8.7%) से दोगुनी है। यानी, देश में हर 100 टेस...
- July 31, 2020
देश के सबसे ज्यादा कोरोना मरीजों वाले 20 शहरों में संक्रमण दर 17% हो चुकी है, जो राष्ट्रीय दर (8.7%) से दोगुनी है। यानी, देश में हर 100 टेस्ट में 8-9 मरीज मिले हैं, जबकि इन शहरों में 17 मरीज मिले हैं। कारण- टेस्ट कम होना। इन शहरों में देश के कुल 49% मरीज हैं, जबकि देश में कुल टेस्ट में इन शहरों के मरीजों की हिस्सेदारी सिर्फ 24% है। इसीलिए, संक्रमण दर ऊंची है। लेकिन, अच्छी बात यह है कि इन शहरों में 70% मरीज ठीक हो चुके हैं। यह दर राष्ट्रीय औसत से 6% ज्यादा है। यह आंकड़ा इसलिए अहम है, क्योंकि देश में रिकवरी रेट 6% बढ़ने में 45 दिन लगे हैं। जिन शहरों में मरीज ज्यादा हैं, रिकवरी रेट भी वहीं ज्यादा है। इसलिए बढ़ रही चिंता - चिंता की बात यह कि जयपुर-जोधपुर को छोड़कर सभी शहरों में संक्रमण की दर 5% से ज्यादा। (डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 5% से ज्यादा संक्रमण का मतलब है कि टेस्ट कम हो रहे हैं) ठाणे में हर 100 टेस्ट में 40 से ज्यादा मरीज मिल रहे हैं, यह दर ब्राजील के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा। दुनिया में एक दिन में रिकॉर्ड 2.90 लाख नए मरीज मिले दुनिया में कोरोनाकाल के साढ़े चार महीने में पहली बार बुधवार को एक दिन में रिकॉर्ड 2,90,393 कोरोना मरीज मिले। सबसे ज्यादा 70,869 मरीज ब्राजील और 66,921 मरीज अमेरिका में मिले। यानी दुनिया के 47.4% मरीज सिर्फ इन दो देशों में मिले हैं। अगर इनमें भारत के 52,656 मरीज भी जोड़ दें तो यह संख्या 1,90,464 बनती है। यानी दुनिया के 66% मरीज सिर्फ ब्राजील, अमेरिका और भारत में मिलने लगे हैं। दुनिया में बुधवार को कुल 7,032 मौतें हुईं। 21 अप्रैल के बाद सिर्फ दो बार मौतों का आंकड़ा 7 हजार के ऊपर गया है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें नई दिल्ली में कोरोना की जांच के लिए स्वाब सैंपल लेता स्वास्थ्यकर्मी। https://ift.tt/2BIFW1Z Dainik Bhaskar 20 शहरों में देश के 49% मरीज, लेकिन टेस्ट सिर्फ 24%; इसीलिए संक्रमण दोगुना, बड़े शहरों में संक्रमण की दर 17% हुई 

देश के सबसे ज्यादा कोरोना मरीजों वाले 20 शहरों में संक्रमण दर 17% हो चुकी है, जो राष्ट्रीय दर (8.7%) से दोगुनी है। यानी, देश में हर 100 टेस्ट में 8-9 मरीज मिले हैं, जबकि इन शहरों में 17 मरीज मिले हैं। कारण- टेस्ट कम होना।

इन शहरों में देश के कुल 49% मरीज हैं, जबकि देश में कुल टेस्ट में इन शहरों के मरीजों की हिस्सेदारी सिर्फ 24% है। इसीलिए, संक्रमण दर ऊंची है। लेकिन, अच्छी बात यह है कि इन शहरों में 70% मरीज ठीक हो चुके हैं। यह दर राष्ट्रीय औसत से 6% ज्यादा है। यह आंकड़ा इसलिए अहम है, क्योंकि देश में रिकवरी रेट 6% बढ़ने में 45 दिन लगे हैं। जिन शहरों में मरीज ज्यादा हैं, रिकवरी रेट भी वहीं ज्यादा है।

इसलिए बढ़ रही चिंता -

चिंता की बात यह कि जयपुर-जोधपुर को छोड़कर सभी शहरों में संक्रमण की दर 5% से ज्यादा। (डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 5% से ज्यादा संक्रमण का मतलब है कि टेस्ट कम हो रहे हैं)

ठाणे में हर 100 टेस्ट में 40 से ज्यादा मरीज मिल रहे हैं, यह दर ब्राजील के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा।

दुनिया में एक दिन में रिकॉर्ड 2.90 लाख नए मरीज मिले

दुनिया में कोरोनाकाल के साढ़े चार महीने में पहली बार बुधवार को एक दिन में रिकॉर्ड 2,90,393 कोरोना मरीज मिले। सबसे ज्यादा 70,869 मरीज ब्राजील और 66,921 मरीज अमेरिका में मिले। यानी दुनिया के 47.4% मरीज सिर्फ इन दो देशों में मिले हैं।

अगर इनमें भारत के 52,656 मरीज भी जोड़ दें तो यह संख्या 1,90,464 बनती है। यानी दुनिया के 66% मरीज सिर्फ ब्राजील, अमेरिका और भारत में मिलने लगे हैं। दुनिया में बुधवार को कुल 7,032 मौतें हुईं। 21 अप्रैल के बाद सिर्फ दो बार मौतों का आंकड़ा 7 हजार के ऊपर गया है।

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें

नई दिल्ली में कोरोना की जांच के लिए स्वाब सैंपल लेता स्वास्थ्यकर्मी।

https://ift.tt/2BIFW1Z Dainik Bhaskar 20 शहरों में देश के 49% मरीज, लेकिन टेस्ट सिर्फ 24%; इसीलिए संक्रमण दोगुना, बड़े शहरों में संक्रमण की दर 17% हुई Reviewed by Manish Pethev on July 31, 2020 Rating: 5

बीएसएफ ने गुजरात के पश्चिमी बॉर्डर की सबसे खतरनाक सीमा से पाकिस्तानी घुसपैठ को पूरी तरह ब्लॉक कर दिया है। अथाह दलदल वाले हरामी नाले तक जहां सुरक्षा करना मुश्किल था, उसे तीन ओर से सील कर दिया है। बीएसएफ ने 22 किलोमीटर लंबी फ्लड लाइट से लैस सड़क बना दी, जो नाले के मुहाने तक जाती है और इसी सड़क किनारे खड़े कर दिए वॉच/ओपी टॉवर और पोस्ट (बीओपी)। चूंकि यहां दलदल से आया नहीं जा सकता, सिर्फ हरामी नाले से घुसपैठ हो सकती थी। यह 22 किमी लंबा नाला 1.5 किमी से ज्यादा चौड़ा है। चार हजार वर्ग किमी इसी दलदली क्षेत्र में है 92 किमी लंबा सर क्रीक इलाका, जिस पर पाकिस्तान अपना कब्जा बताता रहा है। पहले लखपत पोस्ट से घुसपैठ को रोकना था बहुत मुश्किल हरामी नाले तक जाने के लिए जवान ऑल टरेन व्हीकल, बोट और पैदल चलकर पहुंचते थे। ये सफर 25 किमी दूर लखपत कोट से शुरू होता था अन्यथा कोटेश्वर होकर आना पड़ता था। भारतीय बीओपी भी लखपत के पास ही थी। यहां से सीधी रोड कनेक्टिवटी पर काम शुरू हुआ। बिजली की लाइन बिछाई और फ्लड लाइट्स भी लगाई गईं। अब पिलर संख्या 1175 के पास नई बीओपी का निर्माण कर दिया। सड़क के छोर पर ओपी टॉवर हैं। 55 साल में 30 फीट से डेढ़ किमी चौड़ा हुआ नाला 965 से पहले ये नाला 30-35 फीट चौड़ा था, अब इसका फैलाव डेढ़ किमी तक हो गया है। इसका दूसरा नाला 700 मीटर और तीसरा 500 मीटर चौड़ा है। तीनों का 22 किमी लंबा चैनल। क्रीक में 2 बार भारत और 2 बार पाकिस्तान में बहाव होता है। बेपरवाह पाक रेंजर्स, हरामी नाले तक भेज रहे मछुआरे बीएसएफ की मौजूदगी नहीं होने से पहले पाकिस्तानी आसानी से हरामी नाला में फिशिंग और घुसपैठ करते थे, लेकिन बीएसएफ ने इंटरनेशनल बॉर्डर के सहारे सब रोक दिया। हरामी नाले के होरिजेंटल व वर्टिकल दोनों प्रवाह के चैनल को सील कर दिया है। इतनी सख्ती के बावजूद पाकिस्तानी मछुआरे जीरो लाइन तक फिशिंग करने आ रहे हैं। पाकिस्तानी रेंजर्स मछुआरों को 5 से 10 दिन की अवैध पर्ची देकर भेज दिया करते हैं। हमने हरामी नाले को तीन तरफ से सील कर दिया है सरक्रीक इलाके में स्थित हरामी नाला सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ था। यहां से पाकिस्तानी मछुआरे घुसते थे। घुसपैठ की भी आशंका रहती थी। अब हमने यहां नाले को तीन ओर से सील कर दिया है। नाले के मुहाने तक सड़क बनाई गई है। निगरानी के लिए यहां नए निर्माण भी किए जा रहे हैं। - जीएस मलिक, आईजी, बीएसएफ गुजरात फ्रंटियर आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें हरामी नाले तक जाने के लिए जवान ऑल टरेन व्हीकल, बोट और पैदल चलकर पहुंचते थे। ये सफर 25 किमी दूर लखपत कोट से शुरू होता था अन्यथा कोटेश्वर होकर आना पड़ता था। https://ift.tt/30dJnqO Dainik Bhaskar सबसे घातक बॉर्डर हरामीनाला तीन तरफ से सील; बीएसएफ ने राेड, फ्लड लाइट, टावर से खत्म की पाक से घुसपैठ की गुंजाइश

बीएसएफ ने गुजरात के पश्चिमी बॉर्डर की सबसे खतरनाक सीमा से पाकिस्तानी घुसपैठ को पूरी तरह ब्लॉक कर दिया है। अथाह दलदल वाले हरामी नाले तक जहां...
- July 31, 2020
बीएसएफ ने गुजरात के पश्चिमी बॉर्डर की सबसे खतरनाक सीमा से पाकिस्तानी घुसपैठ को पूरी तरह ब्लॉक कर दिया है। अथाह दलदल वाले हरामी नाले तक जहां सुरक्षा करना मुश्किल था, उसे तीन ओर से सील कर दिया है। बीएसएफ ने 22 किलोमीटर लंबी फ्लड लाइट से लैस सड़क बना दी, जो नाले के मुहाने तक जाती है और इसी सड़क किनारे खड़े कर दिए वॉच/ओपी टॉवर और पोस्ट (बीओपी)। चूंकि यहां दलदल से आया नहीं जा सकता, सिर्फ हरामी नाले से घुसपैठ हो सकती थी। यह 22 किमी लंबा नाला 1.5 किमी से ज्यादा चौड़ा है। चार हजार वर्ग किमी इसी दलदली क्षेत्र में है 92 किमी लंबा सर क्रीक इलाका, जिस पर पाकिस्तान अपना कब्जा बताता रहा है। पहले लखपत पोस्ट से घुसपैठ को रोकना था बहुत मुश्किल हरामी नाले तक जाने के लिए जवान ऑल टरेन व्हीकल, बोट और पैदल चलकर पहुंचते थे। ये सफर 25 किमी दूर लखपत कोट से शुरू होता था अन्यथा कोटेश्वर होकर आना पड़ता था। भारतीय बीओपी भी लखपत के पास ही थी। यहां से सीधी रोड कनेक्टिवटी पर काम शुरू हुआ। बिजली की लाइन बिछाई और फ्लड लाइट्स भी लगाई गईं। अब पिलर संख्या 1175 के पास नई बीओपी का निर्माण कर दिया। सड़क के छोर पर ओपी टॉवर हैं। 55 साल में 30 फीट से डेढ़ किमी चौड़ा हुआ नाला 965 से पहले ये नाला 30-35 फीट चौड़ा था, अब इसका फैलाव डेढ़ किमी तक हो गया है। इसका दूसरा नाला 700 मीटर और तीसरा 500 मीटर चौड़ा है। तीनों का 22 किमी लंबा चैनल। क्रीक में 2 बार भारत और 2 बार पाकिस्तान में बहाव होता है। बेपरवाह पाक रेंजर्स, हरामी नाले तक भेज रहे मछुआरे बीएसएफ की मौजूदगी नहीं होने से पहले पाकिस्तानी आसानी से हरामी नाला में फिशिंग और घुसपैठ करते थे, लेकिन बीएसएफ ने इंटरनेशनल बॉर्डर के सहारे सब रोक दिया। हरामी नाले के होरिजेंटल व वर्टिकल दोनों प्रवाह के चैनल को सील कर दिया है। इतनी सख्ती के बावजूद पाकिस्तानी मछुआरे जीरो लाइन तक फिशिंग करने आ रहे हैं। पाकिस्तानी रेंजर्स मछुआरों को 5 से 10 दिन की अवैध पर्ची देकर भेज दिया करते हैं। हमने हरामी नाले को तीन तरफ से सील कर दिया है सरक्रीक इलाके में स्थित हरामी नाला सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ था। यहां से पाकिस्तानी मछुआरे घुसते थे। घुसपैठ की भी आशंका रहती थी। अब हमने यहां नाले को तीन ओर से सील कर दिया है। नाले के मुहाने तक सड़क बनाई गई है। निगरानी के लिए यहां नए निर्माण भी किए जा रहे हैं। - जीएस मलिक, आईजी, बीएसएफ गुजरात फ्रंटियर आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें हरामी नाले तक जाने के लिए जवान ऑल टरेन व्हीकल, बोट और पैदल चलकर पहुंचते थे। ये सफर 25 किमी दूर लखपत कोट से शुरू होता था अन्यथा कोटेश्वर होकर आना पड़ता था। https://ift.tt/30dJnqO Dainik Bhaskar सबसे घातक बॉर्डर हरामीनाला तीन तरफ से सील; बीएसएफ ने राेड, फ्लड लाइट, टावर से खत्म की पाक से घुसपैठ की गुंजाइश 

बीएसएफ ने गुजरात के पश्चिमी बॉर्डर की सबसे खतरनाक सीमा से पाकिस्तानी घुसपैठ को पूरी तरह ब्लॉक कर दिया है। अथाह दलदल वाले हरामी नाले तक जहां सुरक्षा करना मुश्किल था, उसे तीन ओर से सील कर दिया है। बीएसएफ ने 22 किलोमीटर लंबी फ्लड लाइट से लैस सड़क बना दी, जो नाले के मुहाने तक जाती है और इसी सड़क किनारे खड़े कर दिए वॉच/ओपी टॉवर और पोस्ट (बीओपी)।

चूंकि यहां दलदल से आया नहीं जा सकता, सिर्फ हरामी नाले से घुसपैठ हो सकती थी। यह 22 किमी लंबा नाला 1.5 किमी से ज्यादा चौड़ा है। चार हजार वर्ग किमी इसी दलदली क्षेत्र में है 92 किमी लंबा सर क्रीक इलाका, जिस पर पाकिस्तान अपना कब्जा बताता रहा है।

पहले लखपत पोस्ट से घुसपैठ को रोकना था बहुत मुश्किल

हरामी नाले तक जाने के लिए जवान ऑल टरेन व्हीकल, बोट और पैदल चलकर पहुंचते थे। ये सफर 25 किमी दूर लखपत कोट से शुरू होता था अन्यथा कोटेश्वर होकर आना पड़ता था। भारतीय बीओपी भी लखपत के पास ही थी। यहां से सीधी रोड कनेक्टिवटी पर काम शुरू हुआ। बिजली की लाइन बिछाई और फ्लड लाइट्स भी लगाई गईं। अब पिलर संख्या 1175 के पास नई बीओपी का निर्माण कर दिया। सड़क के छोर पर ओपी टॉवर हैं।

55 साल में 30 फीट से डेढ़ किमी चौड़ा हुआ नाला

965 से पहले ये नाला 30-35 फीट चौड़ा था, अब इसका फैलाव डेढ़ किमी तक हो गया है।

इसका दूसरा नाला 700 मीटर और तीसरा 500 मीटर चौड़ा है। तीनों का 22 किमी लंबा चैनल।

क्रीक में 2 बार भारत और 2 बार पाकिस्तान में बहाव होता है।

बेपरवाह पाक रेंजर्स, हरामी नाले तक भेज रहे मछुआरे

बीएसएफ की मौजूदगी नहीं होने से पहले पाकिस्तानी आसानी से हरामी नाला में फिशिंग और घुसपैठ करते थे, लेकिन बीएसएफ ने इंटरनेशनल बॉर्डर के सहारे सब रोक दिया। हरामी नाले के होरिजेंटल व वर्टिकल दोनों प्रवाह के चैनल को सील कर दिया है। इतनी सख्ती के बावजूद पाकिस्तानी मछुआरे जीरो लाइन तक फिशिंग करने आ रहे हैं। पाकिस्तानी रेंजर्स मछुआरों को 5 से 10 दिन की अवैध पर्ची देकर भेज दिया करते हैं।

हमने हरामी नाले को तीन तरफ से सील कर दिया है

सरक्रीक इलाके में स्थित हरामी नाला सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ था। यहां से पाकिस्तानी मछुआरे घुसते थे। घुसपैठ की भी आशंका रहती थी। अब हमने यहां नाले को तीन ओर से सील कर दिया है। नाले के मुहाने तक सड़क बनाई गई है। निगरानी के लिए यहां नए निर्माण भी किए जा रहे हैं। - जीएस मलिक, आईजी, बीएसएफ गुजरात फ्रंटियर

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें

हरामी नाले तक जाने के लिए जवान ऑल टरेन व्हीकल, बोट और पैदल चलकर पहुंचते थे। ये सफर 25 किमी दूर लखपत कोट से शुरू होता था अन्यथा कोटेश्वर होकर आना पड़ता था।

https://ift.tt/30dJnqO Dainik Bhaskar सबसे घातक बॉर्डर हरामीनाला तीन तरफ से सील; बीएसएफ ने राेड, फ्लड लाइट, टावर से खत्म की पाक से घुसपैठ की गुंजाइश Reviewed by Manish Pethev on July 31, 2020 Rating: 5

टेक टाइटंस अमेजन, फेसबुक, गूगल और एपल के सीईओ अमेरिकी कांग्रेस में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेश हुए। ये ऑनलाइन मार्केट में ताकत का बेजा इस्तेमाल, कारोबारी प्रतिस्पर्धा खत्म करने के आरोपों पर सुनवाई का सामना कर रहे हैं। 4 घंटे से ज्यादा चली सुनवाई के दौरान दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस स्नैक्स खाते रहे। दो घंटे तक वह सवाल टालते रहे। इसी तरह सांसदों के डेटा सिक्योरिटी को लेकर तीखे सवालों पर बाकी को भी जवाब नहीं सूझा। कमेटी की जांच में पाया गया कि ये कंपनियां विस्तार के लिए प्रतिस्पर्धियों को दबा रही हैं। सभी ने दलील दी कि उन्होंने कुछ भी गैरकानूनी नहीं किया है। 5 घंटे सुनवाई: कठघरे में 360 लाख करोड़ रु. की कंपनियों के अधिकारी, सांसदों के तीखे सवालों का नहीं सूझा सीधा जवाब इंस्टाग्राम खरीदने संबंधी 8 साल पुराने ईमेल पर पैनल ने घेरा फेसबुक सीईओ मार्क जकरबर्ग 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस के प्रभाव के सवाल पर बचाव की मुद्रा में दिखे। डेटा चोरी और इंस्टाग्राम खरीदने संबंधी अपने 8 साल पुराने ईमेल पर भी वह घिरे। ईमेल में कहा गया था कि फेसबुक के लिए इंस्टाग्राम बहुत ही विध्वंसकारी हो सकता है। उन्होंने कहा, फेडरल ट्रेड कमीशन ने उस डील को अपनी स्वीकृति दी थी। ‘प्राइवेसी-डेटा सिक्योरिटी पर यूजर्स के हाथों में कंट्रोल दिया’ दूसरी साइटों से आइडिया-सूचनाएं चुराकर उसे अपना बताने, फिर मोटा लाभ कमाने संबंधी सवाल पर सीईओ सुंदर पिचई ने कहा, ‘गूगल सरल तरीके से उपयोगी सूचनाएं लोगों तक पहुंचाता है। प्राइवेसी-सिक्योरिटी पर हमने यूजर्स के हाथों में पूरा कंट्रोल दिया है।’ एड कंपनी से डेटा लेने के सवाल पर पिचई बोले- यूजर्स के फायदे के लिए ज्यादा से ज्यादा डेटा कलेक्ट कर रहे हैं। ‘स्मार्ट फोन बिजनेस में मार्केट शेयर हासिल करना गली की लड़ाई जैसा’ एपल प्ले स्टोर पर कंपनी के खुद के पूर्ण नियंत्रण संबंधी सवाल पर सीईओ टिम कुक ने कहा, ‘सॉफ्टवेयर मार्केट में बहुत कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। डेवलपर्स के सामने भी उतनी ही प्रतिस्पर्धा है जितनी कि कस्टमर्स के लिए। मैं इसे इस तरह से समझाना चाहूंगा कि स्मार्ट फोन के बिजनेस में मार्केट शेयर हासिल करना गली की लड़ाई जैसा हो गया है।’ ‘गारंटी नहीं दे सकता कि पॉलिसी का उल्लंघन नहीं हुआ होगा’ कांग्रेस में पहली बार पेश हुए बेजोस से प्राइसिंग, अधिग्रहण और थर्ड पार्टी सेलर्स के डेटा इस्तेमाल पर सवाल किए गए। इस पर उन्होंने कहा, ‘डेटा इस्तेमाल रोकने को पॉलिसी है, लेकिन मैं गारंटी नहीं दे सकता कि उसका उल्लंघन नहीं हुआ।’ ज्यादातर सवालों पर जवाब था, ‘मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता है, मुझे वो वाकया याद नहीं।’ बेजोस ने बड़ी कंपनी की पैरवी की। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें फेसबुक सीईओ मार्क जकरबर्ग 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस के प्रभाव के सवाल पर बचाव की मुद्रा में दिखे। डेटा चोरी और इंस्टाग्राम खरीदने संबंधी अपने 8 साल पुराने ईमेल पर भी वह घिरे। (फाइल फोटो) https://ift.tt/2Dn47Dw Dainik Bhaskar चुनाव में रूसी दखल के सवाल पर बचाव में दिखे जकरबर्ग, सुनवाई में स्नैक्स खाते रहे बेजोस, पिचई से पूछा-सूचनाएं चुराकर अपनी क्यों बताता है गूगल

टेक टाइटंस अमेजन, फेसबुक, गूगल और एपल के सीईओ अमेरिकी कांग्रेस में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेश हुए। ये ऑनलाइन मार्केट में ताकत का बेजा इस्त...
- July 31, 2020
टेक टाइटंस अमेजन, फेसबुक, गूगल और एपल के सीईओ अमेरिकी कांग्रेस में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेश हुए। ये ऑनलाइन मार्केट में ताकत का बेजा इस्तेमाल, कारोबारी प्रतिस्पर्धा खत्म करने के आरोपों पर सुनवाई का सामना कर रहे हैं। 4 घंटे से ज्यादा चली सुनवाई के दौरान दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस स्नैक्स खाते रहे। दो घंटे तक वह सवाल टालते रहे। इसी तरह सांसदों के डेटा सिक्योरिटी को लेकर तीखे सवालों पर बाकी को भी जवाब नहीं सूझा। कमेटी की जांच में पाया गया कि ये कंपनियां विस्तार के लिए प्रतिस्पर्धियों को दबा रही हैं। सभी ने दलील दी कि उन्होंने कुछ भी गैरकानूनी नहीं किया है। 5 घंटे सुनवाई: कठघरे में 360 लाख करोड़ रु. की कंपनियों के अधिकारी, सांसदों के तीखे सवालों का नहीं सूझा सीधा जवाब इंस्टाग्राम खरीदने संबंधी 8 साल पुराने ईमेल पर पैनल ने घेरा फेसबुक सीईओ मार्क जकरबर्ग 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस के प्रभाव के सवाल पर बचाव की मुद्रा में दिखे। डेटा चोरी और इंस्टाग्राम खरीदने संबंधी अपने 8 साल पुराने ईमेल पर भी वह घिरे। ईमेल में कहा गया था कि फेसबुक के लिए इंस्टाग्राम बहुत ही विध्वंसकारी हो सकता है। उन्होंने कहा, फेडरल ट्रेड कमीशन ने उस डील को अपनी स्वीकृति दी थी। ‘प्राइवेसी-डेटा सिक्योरिटी पर यूजर्स के हाथों में कंट्रोल दिया’ दूसरी साइटों से आइडिया-सूचनाएं चुराकर उसे अपना बताने, फिर मोटा लाभ कमाने संबंधी सवाल पर सीईओ सुंदर पिचई ने कहा, ‘गूगल सरल तरीके से उपयोगी सूचनाएं लोगों तक पहुंचाता है। प्राइवेसी-सिक्योरिटी पर हमने यूजर्स के हाथों में पूरा कंट्रोल दिया है।’ एड कंपनी से डेटा लेने के सवाल पर पिचई बोले- यूजर्स के फायदे के लिए ज्यादा से ज्यादा डेटा कलेक्ट कर रहे हैं। ‘स्मार्ट फोन बिजनेस में मार्केट शेयर हासिल करना गली की लड़ाई जैसा’ एपल प्ले स्टोर पर कंपनी के खुद के पूर्ण नियंत्रण संबंधी सवाल पर सीईओ टिम कुक ने कहा, ‘सॉफ्टवेयर मार्केट में बहुत कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। डेवलपर्स के सामने भी उतनी ही प्रतिस्पर्धा है जितनी कि कस्टमर्स के लिए। मैं इसे इस तरह से समझाना चाहूंगा कि स्मार्ट फोन के बिजनेस में मार्केट शेयर हासिल करना गली की लड़ाई जैसा हो गया है।’ ‘गारंटी नहीं दे सकता कि पॉलिसी का उल्लंघन नहीं हुआ होगा’ कांग्रेस में पहली बार पेश हुए बेजोस से प्राइसिंग, अधिग्रहण और थर्ड पार्टी सेलर्स के डेटा इस्तेमाल पर सवाल किए गए। इस पर उन्होंने कहा, ‘डेटा इस्तेमाल रोकने को पॉलिसी है, लेकिन मैं गारंटी नहीं दे सकता कि उसका उल्लंघन नहीं हुआ।’ ज्यादातर सवालों पर जवाब था, ‘मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता है, मुझे वो वाकया याद नहीं।’ बेजोस ने बड़ी कंपनी की पैरवी की। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें फेसबुक सीईओ मार्क जकरबर्ग 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस के प्रभाव के सवाल पर बचाव की मुद्रा में दिखे। डेटा चोरी और इंस्टाग्राम खरीदने संबंधी अपने 8 साल पुराने ईमेल पर भी वह घिरे। (फाइल फोटो) https://ift.tt/2Dn47Dw Dainik Bhaskar चुनाव में रूसी दखल के सवाल पर बचाव में दिखे जकरबर्ग, सुनवाई में स्नैक्स खाते रहे बेजोस, पिचई से पूछा-सूचनाएं चुराकर अपनी क्यों बताता है गूगल 

टेक टाइटंस अमेजन, फेसबुक, गूगल और एपल के सीईओ अमेरिकी कांग्रेस में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेश हुए। ये ऑनलाइन मार्केट में ताकत का बेजा इस्तेमाल, कारोबारी प्रतिस्पर्धा खत्म करने के आरोपों पर सुनवाई का सामना कर रहे हैं।

4 घंटे से ज्यादा चली सुनवाई के दौरान दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस स्नैक्स खाते रहे। दो घंटे तक वह सवाल टालते रहे। इसी तरह सांसदों के डेटा सिक्योरिटी को लेकर तीखे सवालों पर बाकी को भी जवाब नहीं सूझा। कमेटी की जांच में पाया गया कि ये कंपनियां विस्तार के लिए प्रतिस्पर्धियों को दबा रही हैं। सभी ने दलील दी कि उन्होंने कुछ भी गैरकानूनी नहीं किया है।

5 घंटे सुनवाई: कठघरे में 360 लाख करोड़ रु. की कंपनियों के अधिकारी, सांसदों के तीखे सवालों का नहीं सूझा सीधा जवाब

इंस्टाग्राम खरीदने संबंधी 8 साल पुराने ईमेल पर पैनल ने घेरा

फेसबुक सीईओ मार्क जकरबर्ग 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस के प्रभाव के सवाल पर बचाव की मुद्रा में दिखे। डेटा चोरी और इंस्टाग्राम खरीदने संबंधी अपने 8 साल पुराने ईमेल पर भी वह घिरे। ईमेल में कहा गया था कि फेसबुक के लिए इंस्टाग्राम बहुत ही विध्वंसकारी हो सकता है। उन्होंने कहा, फेडरल ट्रेड कमीशन ने उस डील को अपनी स्वीकृति दी थी।

‘प्राइवेसी-डेटा सिक्योरिटी पर यूजर्स के हाथों में कंट्रोल दिया’

दूसरी साइटों से आइडिया-सूचनाएं चुराकर उसे अपना बताने, फिर मोटा लाभ कमाने संबंधी सवाल पर सीईओ सुंदर पिचई ने कहा, ‘गूगल सरल तरीके से उपयोगी सूचनाएं लोगों तक पहुंचाता है। प्राइवेसी-सिक्योरिटी पर हमने यूजर्स के हाथों में पूरा कंट्रोल दिया है।’ एड कंपनी से डेटा लेने के सवाल पर पिचई बोले- यूजर्स के फायदे के लिए ज्यादा से ज्यादा डेटा कलेक्ट कर रहे हैं।

‘स्मार्ट फोन बिजनेस में मार्केट शेयर हासिल करना गली की लड़ाई जैसा’

एपल प्ले स्टोर पर कंपनी के खुद के पूर्ण नियंत्रण संबंधी सवाल पर सीईओ टिम कुक ने कहा, ‘सॉफ्टवेयर मार्केट में बहुत कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। डेवलपर्स के सामने भी उतनी ही प्रतिस्पर्धा है जितनी कि कस्टमर्स के लिए। मैं इसे इस तरह से समझाना चाहूंगा कि स्मार्ट फोन के बिजनेस में मार्केट शेयर हासिल करना गली की लड़ाई जैसा हो गया है।’

‘गारंटी नहीं दे सकता कि पॉलिसी का उल्लंघन नहीं हुआ होगा’

कांग्रेस में पहली बार पेश हुए बेजोस से प्राइसिंग, अधिग्रहण और थर्ड पार्टी सेलर्स के डेटा इस्तेमाल पर सवाल किए गए। इस पर उन्होंने कहा, ‘डेटा इस्तेमाल रोकने को पॉलिसी है, लेकिन मैं गारंटी नहीं दे सकता कि उसका उल्लंघन नहीं हुआ।’ ज्यादातर सवालों पर जवाब था, ‘मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता है, मुझे वो वाकया याद नहीं।’ बेजोस ने बड़ी कंपनी की पैरवी की।

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें

फेसबुक सीईओ मार्क जकरबर्ग 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस के प्रभाव के सवाल पर बचाव की मुद्रा में दिखे। डेटा चोरी और इंस्टाग्राम खरीदने संबंधी अपने 8 साल पुराने ईमेल पर भी वह घिरे। (फाइल फोटो)

https://ift.tt/2Dn47Dw Dainik Bhaskar चुनाव में रूसी दखल के सवाल पर बचाव में दिखे जकरबर्ग, सुनवाई में स्नैक्स खाते रहे बेजोस, पिचई से पूछा-सूचनाएं चुराकर अपनी क्यों बताता है गूगल Reviewed by Manish Pethev on July 31, 2020 Rating: 5

Flickr

Powered by Blogger.