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https://ift.tt/2HPhRcz दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया। जीव-जन्तु से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है। वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैग्जीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है। यह जमीन अमरीका, यूरोपी यूनियन, चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं। वीगनिज्म आखिर है क्या? फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है। प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं। मांस के साथ दूध छोड़ना पृथ्वी को बचाने का अकेला सबसे बड़ा रास्ता 76 साल पहले अंग्रेज डॉनल्ड वाटसन ने वीगन शब्द इजाद किया ब्रिटेन में पशु अधिकारों के पैरोकार डॉनल्ड वाटसन ने सबसे पहले वीगन शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने नवंबर 1944 में अपनी पत्नी डोरोथी और तीन दोस्तों के साथ दी वीगन सोसाइटी बनाई थी। उन्होंने ऐसे शाकाहारियों को वीगन कहा जो डेयरी प्रोडक्ट और अंडे नहीं खाते। मगर 1951 में वीगन सोसाइटी ने हर तरह की पशुक्रूरता को जीवन से खत्म करने को वीगनिज्म में शामिल कर लिया। 14 बरस की उम्र में न्यू इयर रेजोलुशन लेकर मांसाहार छोड़ा 1910 में यूके के यॉर्कशायर में जन्मे वॉटसन के पिता खनन करने वाले समुदाय के हेडमास्टर थे। बचपन में वे अपने चाचा के खेतों पर अक्सर जाते थे। वहीं मांस के लिए सुअर को मारने की घटना ने उन्हें काफी बेचैन कर दिया। 1924 में 14 वर्ष के वॉटसन ने नए साल का प्रण लेकर मांसाहार छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें लगा कि दूध के लिए भी मवेशी पालना अनैतिक है। इसके बाद उन्होंने दूध भी छोड़ दिया। पिछले 5 सालों में देश की कई हस्तियों ने वीगनिज्म को अपनाया विराट कोहली: 2018 में दक्षिण अफ्रीका के टूर के दौरान रीढ़ की हड्डी में एक नस दबने से हाथ की उंगली तक तेज उठा। जांच हुई तो पता चला कि मांसाहार से शरीर में बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगा। आंतों ने कैल्शियम सोखना बंद कर दिया। शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचने लगा था। इसके बाद ही विराट ने वीगनिज्म को अपना लिया। उनका दावा है कि इन दो वर्षों जैसा पहले कभी महसूस नहीं किया। इससे उनका खेल पहले से बेहतर हुआ है। अनुष्का शर्मा : 2015 में वीगनिज्म को अपनाया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने ट्वीट किया, "लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं प्रोटीन कहां से लेती हूं। फिल्म गेम चेंजर उनको मेरा जवाब है।" फिल्म में अरनॉल्ड श्वार्जनेगर समेत तमाम एथलीट्स ने बताया कि मांसाहार से ही प्रोटीन मिलने की बात मार्केटिंग का हथकंडा है। कंगना रनौत: खुलकर अपनी बात रखने वाली कंगना ने पांच साल पहले ही वीगनिज्म को अपना लिया। मांसाहार छोडऩे पर भी उन्हें एसिडिटी होती रही तो वह पूरी तरह वीगन हो गईं। अक्षय कुमार: 52 साल के अक्षय कुमार देश के सबसे फिट फिल्म स्टारों में से एक हैं। उन्होंने तीन साल पहले वीगनिज्म को अपनाया था। अक्षय पार्टियों में नहीं जाते। सुबह चार बजे उठकर योग करते हैं। आलिया भट्टः गर्मी ज्यादा लगने के चलते पहले मांसाहार छोड़ा फिर दूध से बने प्रोडक्ट। आलिया को अब फल और सब्जी अच्छे लगते हैं। कहती हैं कि उन्हें वीगन डाइट का मजा आ रहा है। आमिर खान-किरण राव: वीगन किरण राव ने आमिर खान को 2015 में एक वीडियो दिखाया, जिसमें दिखाया गया था कि मौत की वजह बनने वाली 15 सबसे आम बीमारियों से डाइट बदलकर बचा जा सकता है। इसके बाद आमिर वीगन हो गए। सोनम कपूर: पेटा ने 2018 में इंडियाज पर्सन ऑफ द ईयर बनाया। दूध के लैक्टोज को पचाने में परेशानी के चलते वीगन बनीं। बाद में उन्होंने चमड़े से बने प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल बंद कर दिया। माधवन: पशु अधिकारों के लिए अक्सर आवाज उठाने वाले RHTDM फेम आर माधवन ने हमेशा के लिए वीगनिज्म को अपना लिया है। उन्हें पेटा पर्सन आफ द इयर बना चुका है। 1918 में ही वीगनिज्म का आइडियाः महात्मा की दुविधा, गाय-भैंस का दूध छोड़ा तो बकरी का दूध कैसे पिएं यह तस्वीर 5 दिसंबर 1931 को लंदन में ली गई थी। लंदन दौरे में भी महात्मा गांधी के लिए दो बकरियों का इंतजाम किया गया था। भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है। दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं। एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी। गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोडऩे के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Google search doubling veganism in India, than meat-milk with milk-curd, butter-desi ghee; Animal husbandry accounts for 83% of the world's cultivated land, calories are only 18%, from Dainik Bhaskar /national/news/google-search-doubling-veganism-in-india-than-meat-milk-with-milk-curd-butter-desi-ghee-animal-husbandry-accounts-for-83-of-the-worlds-cultivated-land-calories-are-only-18-127867957.html via IFTTT https://ift.tt/2TGOL1N दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया। जीव-जन्तु से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है। वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैग्जीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है। यह जमीन अमरीका, यूरोपी यूनियन, चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं। वीगनिज्म आखिर है क्या? फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है। प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं। मांस के साथ दूध छोड़ना पृथ्वी को बचाने का अकेला सबसे बड़ा रास्ता 76 साल पहले अंग्रेज डॉनल्ड वाटसन ने वीगन शब्द इजाद किया ब्रिटेन में पशु अधिकारों के पैरोकार डॉनल्ड वाटसन ने सबसे पहले वीगन शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने नवंबर 1944 में अपनी पत्नी डोरोथी और तीन दोस्तों के साथ दी वीगन सोसाइटी बनाई थी। उन्होंने ऐसे शाकाहारियों को वीगन कहा जो डेयरी प्रोडक्ट और अंडे नहीं खाते। मगर 1951 में वीगन सोसाइटी ने हर तरह की पशुक्रूरता को जीवन से खत्म करने को वीगनिज्म में शामिल कर लिया। 14 बरस की उम्र में न्यू इयर रेजोलुशन लेकर मांसाहार छोड़ा 1910 में यूके के यॉर्कशायर में जन्मे वॉटसन के पिता खनन करने वाले समुदाय के हेडमास्टर थे। बचपन में वे अपने चाचा के खेतों पर अक्सर जाते थे। वहीं मांस के लिए सुअर को मारने की घटना ने उन्हें काफी बेचैन कर दिया। 1924 में 14 वर्ष के वॉटसन ने नए साल का प्रण लेकर मांसाहार छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें लगा कि दूध के लिए भी मवेशी पालना अनैतिक है। इसके बाद उन्होंने दूध भी छोड़ दिया। पिछले 5 सालों में देश की कई हस्तियों ने वीगनिज्म को अपनाया विराट कोहली: 2018 में दक्षिण अफ्रीका के टूर के दौरान रीढ़ की हड्डी में एक नस दबने से हाथ की उंगली तक तेज उठा। जांच हुई तो पता चला कि मांसाहार से शरीर में बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगा। आंतों ने कैल्शियम सोखना बंद कर दिया। शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचने लगा था। इसके बाद ही विराट ने वीगनिज्म को अपना लिया। उनका दावा है कि इन दो वर्षों जैसा पहले कभी महसूस नहीं किया। इससे उनका खेल पहले से बेहतर हुआ है। अनुष्का शर्मा : 2015 में वीगनिज्म को अपनाया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने ट्वीट किया, "लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं प्रोटीन कहां से लेती हूं। फिल्म गेम चेंजर उनको मेरा जवाब है।" फिल्म में अरनॉल्ड श्वार्जनेगर समेत तमाम एथलीट्स ने बताया कि मांसाहार से ही प्रोटीन मिलने की बात मार्केटिंग का हथकंडा है। कंगना रनौत: खुलकर अपनी बात रखने वाली कंगना ने पांच साल पहले ही वीगनिज्म को अपना लिया। मांसाहार छोडऩे पर भी उन्हें एसिडिटी होती रही तो वह पूरी तरह वीगन हो गईं। अक्षय कुमार: 52 साल के अक्षय कुमार देश के सबसे फिट फिल्म स्टारों में से एक हैं। उन्होंने तीन साल पहले वीगनिज्म को अपनाया था। अक्षय पार्टियों में नहीं जाते। सुबह चार बजे उठकर योग करते हैं। आलिया भट्टः गर्मी ज्यादा लगने के चलते पहले मांसाहार छोड़ा फिर दूध से बने प्रोडक्ट। आलिया को अब फल और सब्जी अच्छे लगते हैं। कहती हैं कि उन्हें वीगन डाइट का मजा आ रहा है। आमिर खान-किरण राव: वीगन किरण राव ने आमिर खान को 2015 में एक वीडियो दिखाया, जिसमें दिखाया गया था कि मौत की वजह बनने वाली 15 सबसे आम बीमारियों से डाइट बदलकर बचा जा सकता है। इसके बाद आमिर वीगन हो गए। सोनम कपूर: पेटा ने 2018 में इंडियाज पर्सन ऑफ द ईयर बनाया। दूध के लैक्टोज को पचाने में परेशानी के चलते वीगन बनीं। बाद में उन्होंने चमड़े से बने प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल बंद कर दिया। माधवन: पशु अधिकारों के लिए अक्सर आवाज उठाने वाले RHTDM फेम आर माधवन ने हमेशा के लिए वीगनिज्म को अपना लिया है। उन्हें पेटा पर्सन आफ द इयर बना चुका है। 1918 में ही वीगनिज्म का आइडियाः महात्मा की दुविधा, गाय-भैंस का दूध छोड़ा तो बकरी का दूध कैसे पिएं यह तस्वीर 5 दिसंबर 1931 को लंदन में ली गई थी। लंदन दौरे में भी महात्मा गांधी के लिए दो बकरियों का इंतजाम किया गया था। भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है। दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं। एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी। गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोडऩे के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Google search doubling veganism in India, than meat-milk with milk-curd, butter-desi ghee; Animal husbandry accounts for 83% of the world's cultivated land, calories are only 18%, https://ift.tt/2HPhRcz Dainik Bhaskar वीगनिज्म पर भारत में गूगल सर्च दोगुनी, मांसाहार के साथ दूध से बनी हर चीज से तौबा

दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, ...
- November 01, 2020
https://ift.tt/2HPhRcz दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया। जीव-जन्तु से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है। वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैग्जीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है। यह जमीन अमरीका, यूरोपी यूनियन, चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं। वीगनिज्म आखिर है क्या? फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है। प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं। मांस के साथ दूध छोड़ना पृथ्वी को बचाने का अकेला सबसे बड़ा रास्ता 76 साल पहले अंग्रेज डॉनल्ड वाटसन ने वीगन शब्द इजाद किया ब्रिटेन में पशु अधिकारों के पैरोकार डॉनल्ड वाटसन ने सबसे पहले वीगन शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने नवंबर 1944 में अपनी पत्नी डोरोथी और तीन दोस्तों के साथ दी वीगन सोसाइटी बनाई थी। उन्होंने ऐसे शाकाहारियों को वीगन कहा जो डेयरी प्रोडक्ट और अंडे नहीं खाते। मगर 1951 में वीगन सोसाइटी ने हर तरह की पशुक्रूरता को जीवन से खत्म करने को वीगनिज्म में शामिल कर लिया। 14 बरस की उम्र में न्यू इयर रेजोलुशन लेकर मांसाहार छोड़ा 1910 में यूके के यॉर्कशायर में जन्मे वॉटसन के पिता खनन करने वाले समुदाय के हेडमास्टर थे। बचपन में वे अपने चाचा के खेतों पर अक्सर जाते थे। वहीं मांस के लिए सुअर को मारने की घटना ने उन्हें काफी बेचैन कर दिया। 1924 में 14 वर्ष के वॉटसन ने नए साल का प्रण लेकर मांसाहार छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें लगा कि दूध के लिए भी मवेशी पालना अनैतिक है। इसके बाद उन्होंने दूध भी छोड़ दिया। पिछले 5 सालों में देश की कई हस्तियों ने वीगनिज्म को अपनाया विराट कोहली: 2018 में दक्षिण अफ्रीका के टूर के दौरान रीढ़ की हड्डी में एक नस दबने से हाथ की उंगली तक तेज उठा। जांच हुई तो पता चला कि मांसाहार से शरीर में बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगा। आंतों ने कैल्शियम सोखना बंद कर दिया। शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचने लगा था। इसके बाद ही विराट ने वीगनिज्म को अपना लिया। उनका दावा है कि इन दो वर्षों जैसा पहले कभी महसूस नहीं किया। इससे उनका खेल पहले से बेहतर हुआ है। अनुष्का शर्मा : 2015 में वीगनिज्म को अपनाया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने ट्वीट किया, "लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं प्रोटीन कहां से लेती हूं। फिल्म गेम चेंजर उनको मेरा जवाब है।" फिल्म में अरनॉल्ड श्वार्जनेगर समेत तमाम एथलीट्स ने बताया कि मांसाहार से ही प्रोटीन मिलने की बात मार्केटिंग का हथकंडा है। कंगना रनौत: खुलकर अपनी बात रखने वाली कंगना ने पांच साल पहले ही वीगनिज्म को अपना लिया। मांसाहार छोडऩे पर भी उन्हें एसिडिटी होती रही तो वह पूरी तरह वीगन हो गईं। अक्षय कुमार: 52 साल के अक्षय कुमार देश के सबसे फिट फिल्म स्टारों में से एक हैं। उन्होंने तीन साल पहले वीगनिज्म को अपनाया था। अक्षय पार्टियों में नहीं जाते। सुबह चार बजे उठकर योग करते हैं। आलिया भट्टः गर्मी ज्यादा लगने के चलते पहले मांसाहार छोड़ा फिर दूध से बने प्रोडक्ट। आलिया को अब फल और सब्जी अच्छे लगते हैं। कहती हैं कि उन्हें वीगन डाइट का मजा आ रहा है। आमिर खान-किरण राव: वीगन किरण राव ने आमिर खान को 2015 में एक वीडियो दिखाया, जिसमें दिखाया गया था कि मौत की वजह बनने वाली 15 सबसे आम बीमारियों से डाइट बदलकर बचा जा सकता है। इसके बाद आमिर वीगन हो गए। सोनम कपूर: पेटा ने 2018 में इंडियाज पर्सन ऑफ द ईयर बनाया। दूध के लैक्टोज को पचाने में परेशानी के चलते वीगन बनीं। बाद में उन्होंने चमड़े से बने प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल बंद कर दिया। माधवन: पशु अधिकारों के लिए अक्सर आवाज उठाने वाले RHTDM फेम आर माधवन ने हमेशा के लिए वीगनिज्म को अपना लिया है। उन्हें पेटा पर्सन आफ द इयर बना चुका है। 1918 में ही वीगनिज्म का आइडियाः महात्मा की दुविधा, गाय-भैंस का दूध छोड़ा तो बकरी का दूध कैसे पिएं यह तस्वीर 5 दिसंबर 1931 को लंदन में ली गई थी। लंदन दौरे में भी महात्मा गांधी के लिए दो बकरियों का इंतजाम किया गया था। भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है। दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं। एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी। गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोडऩे के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Google search doubling veganism in India, than meat-milk with milk-curd, butter-desi ghee; Animal husbandry accounts for 83% of the world's cultivated land, calories are only 18%, from Dainik Bhaskar /national/news/google-search-doubling-veganism-in-india-than-meat-milk-with-milk-curd-butter-desi-ghee-animal-husbandry-accounts-for-83-of-the-worlds-cultivated-land-calories-are-only-18-127867957.html via IFTTT https://ift.tt/2TGOL1N दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया। जीव-जन्तु से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है। वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैग्जीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है। यह जमीन अमरीका, यूरोपी यूनियन, चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं। वीगनिज्म आखिर है क्या? फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है। प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं। मांस के साथ दूध छोड़ना पृथ्वी को बचाने का अकेला सबसे बड़ा रास्ता 76 साल पहले अंग्रेज डॉनल्ड वाटसन ने वीगन शब्द इजाद किया ब्रिटेन में पशु अधिकारों के पैरोकार डॉनल्ड वाटसन ने सबसे पहले वीगन शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने नवंबर 1944 में अपनी पत्नी डोरोथी और तीन दोस्तों के साथ दी वीगन सोसाइटी बनाई थी। उन्होंने ऐसे शाकाहारियों को वीगन कहा जो डेयरी प्रोडक्ट और अंडे नहीं खाते। मगर 1951 में वीगन सोसाइटी ने हर तरह की पशुक्रूरता को जीवन से खत्म करने को वीगनिज्म में शामिल कर लिया। 14 बरस की उम्र में न्यू इयर रेजोलुशन लेकर मांसाहार छोड़ा 1910 में यूके के यॉर्कशायर में जन्मे वॉटसन के पिता खनन करने वाले समुदाय के हेडमास्टर थे। बचपन में वे अपने चाचा के खेतों पर अक्सर जाते थे। वहीं मांस के लिए सुअर को मारने की घटना ने उन्हें काफी बेचैन कर दिया। 1924 में 14 वर्ष के वॉटसन ने नए साल का प्रण लेकर मांसाहार छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें लगा कि दूध के लिए भी मवेशी पालना अनैतिक है। इसके बाद उन्होंने दूध भी छोड़ दिया। पिछले 5 सालों में देश की कई हस्तियों ने वीगनिज्म को अपनाया विराट कोहली: 2018 में दक्षिण अफ्रीका के टूर के दौरान रीढ़ की हड्डी में एक नस दबने से हाथ की उंगली तक तेज उठा। जांच हुई तो पता चला कि मांसाहार से शरीर में बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगा। आंतों ने कैल्शियम सोखना बंद कर दिया। शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचने लगा था। इसके बाद ही विराट ने वीगनिज्म को अपना लिया। उनका दावा है कि इन दो वर्षों जैसा पहले कभी महसूस नहीं किया। इससे उनका खेल पहले से बेहतर हुआ है। अनुष्का शर्मा : 2015 में वीगनिज्म को अपनाया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने ट्वीट किया, "लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं प्रोटीन कहां से लेती हूं। फिल्म गेम चेंजर उनको मेरा जवाब है।" फिल्म में अरनॉल्ड श्वार्जनेगर समेत तमाम एथलीट्स ने बताया कि मांसाहार से ही प्रोटीन मिलने की बात मार्केटिंग का हथकंडा है। कंगना रनौत: खुलकर अपनी बात रखने वाली कंगना ने पांच साल पहले ही वीगनिज्म को अपना लिया। मांसाहार छोडऩे पर भी उन्हें एसिडिटी होती रही तो वह पूरी तरह वीगन हो गईं। अक्षय कुमार: 52 साल के अक्षय कुमार देश के सबसे फिट फिल्म स्टारों में से एक हैं। उन्होंने तीन साल पहले वीगनिज्म को अपनाया था। अक्षय पार्टियों में नहीं जाते। सुबह चार बजे उठकर योग करते हैं। आलिया भट्टः गर्मी ज्यादा लगने के चलते पहले मांसाहार छोड़ा फिर दूध से बने प्रोडक्ट। आलिया को अब फल और सब्जी अच्छे लगते हैं। कहती हैं कि उन्हें वीगन डाइट का मजा आ रहा है। आमिर खान-किरण राव: वीगन किरण राव ने आमिर खान को 2015 में एक वीडियो दिखाया, जिसमें दिखाया गया था कि मौत की वजह बनने वाली 15 सबसे आम बीमारियों से डाइट बदलकर बचा जा सकता है। इसके बाद आमिर वीगन हो गए। सोनम कपूर: पेटा ने 2018 में इंडियाज पर्सन ऑफ द ईयर बनाया। दूध के लैक्टोज को पचाने में परेशानी के चलते वीगन बनीं। बाद में उन्होंने चमड़े से बने प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल बंद कर दिया। माधवन: पशु अधिकारों के लिए अक्सर आवाज उठाने वाले RHTDM फेम आर माधवन ने हमेशा के लिए वीगनिज्म को अपना लिया है। उन्हें पेटा पर्सन आफ द इयर बना चुका है। 1918 में ही वीगनिज्म का आइडियाः महात्मा की दुविधा, गाय-भैंस का दूध छोड़ा तो बकरी का दूध कैसे पिएं यह तस्वीर 5 दिसंबर 1931 को लंदन में ली गई थी। लंदन दौरे में भी महात्मा गांधी के लिए दो बकरियों का इंतजाम किया गया था। भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है। दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं। एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी। गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोडऩे के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Google search doubling veganism in India, than meat-milk with milk-curd, butter-desi ghee; Animal husbandry accounts for 83% of the world's cultivated land, calories are only 18%, https://ift.tt/2HPhRcz Dainik Bhaskar वीगनिज्म पर भारत में गूगल सर्च दोगुनी, मांसाहार के साथ दूध से बनी हर चीज से तौबा https://ift.tt/2HPhRcz 

दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया। जीव-जन्तु से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है।

वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैग्जीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है। यह जमीन अमरीका, यूरोपी यूनियन, चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं।

वीगनिज्म आखिर है क्या?
फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है।

प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं।

मांस के साथ दूध छोड़ना पृथ्वी को बचाने का अकेला सबसे बड़ा रास्ता

76 साल पहले अंग्रेज डॉनल्ड वाटसन ने वीगन शब्द इजाद किया
ब्रिटेन में पशु अधिकारों के पैरोकार डॉनल्ड वाटसन ने सबसे पहले वीगन शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने नवंबर 1944 में अपनी पत्नी डोरोथी और तीन दोस्तों के साथ दी वीगन सोसाइटी बनाई थी। उन्होंने ऐसे शाकाहारियों को वीगन कहा जो डेयरी प्रोडक्ट और अंडे नहीं खाते। मगर 1951 में वीगन सोसाइटी ने हर तरह की पशुक्रूरता को जीवन से खत्म करने को वीगनिज्म में शामिल कर लिया।

14 बरस की उम्र में न्यू इयर रेजोलुशन लेकर मांसाहार छोड़ा
1910 में यूके के यॉर्कशायर में जन्मे वॉटसन के पिता खनन करने वाले समुदाय के हेडमास्टर थे। बचपन में वे अपने चाचा के खेतों पर अक्सर जाते थे। वहीं मांस के लिए सुअर को मारने की घटना ने उन्हें काफी बेचैन कर दिया। 1924 में 14 वर्ष के वॉटसन ने नए साल का प्रण लेकर मांसाहार छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें लगा कि दूध के लिए भी मवेशी पालना अनैतिक है। इसके बाद उन्होंने दूध भी छोड़ दिया।

पिछले 5 सालों में देश की कई हस्तियों ने वीगनिज्म को अपनाया

विराट कोहली: 2018 में दक्षिण अफ्रीका के टूर के दौरान रीढ़ की हड्डी में एक नस दबने से हाथ की उंगली तक तेज उठा। जांच हुई तो पता चला कि मांसाहार से शरीर में बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगा। आंतों ने कैल्शियम सोखना बंद कर दिया। शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचने लगा था। इसके बाद ही विराट ने वीगनिज्म को अपना लिया। उनका दावा है कि इन दो वर्षों जैसा पहले कभी महसूस नहीं किया। इससे उनका खेल पहले से बेहतर हुआ है।

अनुष्का शर्मा : 2015 में वीगनिज्म को अपनाया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने ट्वीट किया, "लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं प्रोटीन कहां से लेती हूं। फिल्म गेम चेंजर उनको मेरा जवाब है।" फिल्म में अरनॉल्ड श्वार्जनेगर समेत तमाम एथलीट्स ने बताया कि मांसाहार से ही प्रोटीन मिलने की बात मार्केटिंग का हथकंडा है।

कंगना रनौत: खुलकर अपनी बात रखने वाली कंगना ने पांच साल पहले ही वीगनिज्म को अपना लिया। मांसाहार छोडऩे पर भी उन्हें एसिडिटी होती रही तो वह पूरी तरह वीगन हो गईं।

अक्षय कुमार: 52 साल के अक्षय कुमार देश के सबसे फिट फिल्म स्टारों में से एक हैं। उन्होंने तीन साल पहले वीगनिज्म को अपनाया था। अक्षय पार्टियों में नहीं जाते। सुबह चार बजे उठकर योग करते हैं।

आलिया भट्टः गर्मी ज्यादा लगने के चलते पहले मांसाहार छोड़ा फिर दूध से बने प्रोडक्ट। आलिया को अब फल और सब्जी अच्छे लगते हैं। कहती हैं कि उन्हें वीगन डाइट का मजा आ रहा है।

आमिर खान-किरण राव: वीगन किरण राव ने आमिर खान को 2015 में एक वीडियो दिखाया, जिसमें दिखाया गया था कि मौत की वजह बनने वाली 15 सबसे आम बीमारियों से डाइट बदलकर बचा जा सकता है। इसके बाद आमिर वीगन हो गए।

सोनम कपूर: पेटा ने 2018 में इंडियाज पर्सन ऑफ द ईयर बनाया। दूध के लैक्टोज को पचाने में परेशानी के चलते वीगन बनीं। बाद में उन्होंने चमड़े से बने प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल बंद कर दिया।

माधवन: पशु अधिकारों के लिए अक्सर आवाज उठाने वाले RHTDM फेम आर माधवन ने हमेशा के लिए वीगनिज्म को अपना लिया है। उन्हें पेटा पर्सन आफ द इयर बना चुका है।

1918 में ही वीगनिज्म का आइडियाः महात्मा की दुविधा, गाय-भैंस का दूध छोड़ा तो बकरी का दूध कैसे पिएं

यह तस्वीर 5 दिसंबर 1931 को लंदन में ली गई थी। लंदन दौरे में भी महात्मा गांधी के लिए दो बकरियों का इंतजाम किया गया था।

भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है। दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं।
एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी।
गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोडऩे के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं।

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें

Google search doubling veganism in India, than meat-milk with milk-curd, butter-desi ghee; Animal husbandry accounts for 83% of the world's cultivated land, calories are only 18%,

from Dainik Bhaskar /national/news/google-search-doubling-veganism-in-india-than-meat-milk-with-milk-curd-butter-desi-ghee-animal-husbandry-accounts-for-83-of-the-worlds-cultivated-land-calories-are-only-18-127867957.html
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बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं। वीगनिज्म आखिर है क्या? फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है। प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं। मांस के साथ दूध छोड़ना पृथ्वी को बचाने का अकेला सबसे बड़ा रास्ता 76 साल पहले अंग्रेज डॉनल्ड वाटसन ने वीगन शब्द इजाद किया ब्रिटेन में पशु अधिकारों के पैरोकार डॉनल्ड वाटसन ने सबसे पहले वीगन शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने नवंबर 1944 में अपनी पत्नी डोरोथी और तीन दोस्तों के साथ दी वीगन सोसाइटी बनाई थी। उन्होंने ऐसे शाकाहारियों को वीगन कहा जो डेयरी प्रोडक्ट और अंडे नहीं खाते। मगर 1951 में वीगन सोसाइटी ने हर तरह की पशुक्रूरता को जीवन से खत्म करने को वीगनिज्म में शामिल कर लिया। 14 बरस की उम्र में न्यू इयर रेजोलुशन लेकर मांसाहार छोड़ा 1910 में यूके के यॉर्कशायर में जन्मे वॉटसन के पिता खनन करने वाले समुदाय के हेडमास्टर थे। बचपन में वे अपने चाचा के खेतों पर अक्सर जाते थे। वहीं मांस के लिए सुअर को मारने की घटना ने उन्हें काफी बेचैन कर दिया। 1924 में 14 वर्ष के वॉटसन ने नए साल का प्रण लेकर मांसाहार छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें लगा कि दूध के लिए भी मवेशी पालना अनैतिक है। इसके बाद उन्होंने दूध भी छोड़ दिया। पिछले 5 सालों में देश की कई हस्तियों ने वीगनिज्म को अपनाया विराट कोहली: 2018 में दक्षिण अफ्रीका के टूर के दौरान रीढ़ की हड्डी में एक नस दबने से हाथ की उंगली तक तेज उठा। जांच हुई तो पता चला कि मांसाहार से शरीर में बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगा। आंतों ने कैल्शियम सोखना बंद कर दिया। शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचने लगा था। इसके बाद ही विराट ने वीगनिज्म को अपना लिया। उनका दावा है कि इन दो वर्षों जैसा पहले कभी महसूस नहीं किया। इससे उनका खेल पहले से बेहतर हुआ है। अनुष्का शर्मा : 2015 में वीगनिज्म को अपनाया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने ट्वीट किया, "लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं प्रोटीन कहां से लेती हूं। फिल्म गेम चेंजर उनको मेरा जवाब है।" फिल्म में अरनॉल्ड श्वार्जनेगर समेत तमाम एथलीट्स ने बताया कि मांसाहार से ही प्रोटीन मिलने की बात मार्केटिंग का हथकंडा है। कंगना रनौत: खुलकर अपनी बात रखने वाली कंगना ने पांच साल पहले ही वीगनिज्म को अपना लिया। मांसाहार छोडऩे पर भी उन्हें एसिडिटी होती रही तो वह पूरी तरह वीगन हो गईं। अक्षय कुमार: 52 साल के अक्षय कुमार देश के सबसे फिट फिल्म स्टारों में से एक हैं। उन्होंने तीन साल पहले वीगनिज्म को अपनाया था। अक्षय पार्टियों में नहीं जाते। सुबह चार बजे उठकर योग करते हैं। आलिया भट्टः गर्मी ज्यादा लगने के चलते पहले मांसाहार छोड़ा फिर दूध से बने प्रोडक्ट। आलिया को अब फल और सब्जी अच्छे लगते हैं। कहती हैं कि उन्हें वीगन डाइट का मजा आ रहा है। आमिर खान-किरण राव: वीगन किरण राव ने आमिर खान को 2015 में एक वीडियो दिखाया, जिसमें दिखाया गया था कि मौत की वजह बनने वाली 15 सबसे आम बीमारियों से डाइट बदलकर बचा जा सकता है। इसके बाद आमिर वीगन हो गए। सोनम कपूर: पेटा ने 2018 में इंडियाज पर्सन ऑफ द ईयर बनाया। दूध के लैक्टोज को पचाने में परेशानी के चलते वीगन बनीं। बाद में उन्होंने चमड़े से बने प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल बंद कर दिया। माधवन: पशु अधिकारों के लिए अक्सर आवाज उठाने वाले RHTDM फेम आर माधवन ने हमेशा के लिए वीगनिज्म को अपना लिया है। उन्हें पेटा पर्सन आफ द इयर बना चुका है। 1918 में ही वीगनिज्म का आइडियाः महात्मा की दुविधा, गाय-भैंस का दूध छोड़ा तो बकरी का दूध कैसे पिएं यह तस्वीर 5 दिसंबर 1931 को लंदन में ली गई थी। लंदन दौरे में भी महात्मा गांधी के लिए दो बकरियों का इंतजाम किया गया था। भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है। दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं। एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी। गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोडऩे के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Google search doubling veganism in India, than meat-milk with milk-curd, butter-desi ghee; Animal husbandry accounts for 83% of the world's cultivated land, calories are only 18%, https://ift.tt/2HPhRcz Dainik Bhaskar वीगनिज्म पर भारत में गूगल सर्च दोगुनी, मांसाहार के साथ दूध से बनी हर चीज से तौबा Reviewed by Manish Pethev on November 01, 2020 Rating: 5

दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया। जीव-जन्तु से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है। वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैग्जीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है। यह जमीन अमरीका, यूरोपी यूनियन, चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं। वीगनिज्म आखिर है क्या? फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है। प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं। मांस के साथ दूध छोड़ना पृथ्वी को बचाने का अकेला सबसे बड़ा रास्ता 76 साल पहले अंग्रेज डॉनल्ड वाटसन ने वीगन शब्द इजाद किया ब्रिटेन में पशु अधिकारों के पैरोकार डॉनल्ड वाटसन ने सबसे पहले वीगन शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने नवंबर 1944 में अपनी पत्नी डोरोथी और तीन दोस्तों के साथ दी वीगन सोसाइटी बनाई थी। उन्होंने ऐसे शाकाहारियों को वीगन कहा जो डेयरी प्रोडक्ट और अंडे नहीं खाते। मगर 1951 में वीगन सोसाइटी ने हर तरह की पशुक्रूरता को जीवन से खत्म करने को वीगनिज्म में शामिल कर लिया। 14 बरस की उम्र में न्यू इयर रेजोलुशन लेकर मांसाहार छोड़ा 1910 में यूके के यॉर्कशायर में जन्मे वॉटसन के पिता खनन करने वाले समुदाय के हेडमास्टर थे। बचपन में वे अपने चाचा के खेतों पर अक्सर जाते थे। वहीं मांस के लिए सुअर को मारने की घटना ने उन्हें काफी बेचैन कर दिया। 1924 में 14 वर्ष के वॉटसन ने नए साल का प्रण लेकर मांसाहार छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें लगा कि दूध के लिए भी मवेशी पालना अनैतिक है। इसके बाद उन्होंने दूध भी छोड़ दिया। पिछले 5 सालों में देश की कई हस्तियों ने वीगनिज्म को अपनाया विराट कोहली: 2018 में दक्षिण अफ्रीका के टूर के दौरान रीढ़ की हड्डी में एक नस दबने से हाथ की उंगली तक तेज उठा। जांच हुई तो पता चला कि मांसाहार से शरीर में बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगा। आंतों ने कैल्शियम सोखना बंद कर दिया। शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचने लगा था। इसके बाद ही विराट ने वीगनिज्म को अपना लिया। उनका दावा है कि इन दो वर्षों जैसा पहले कभी महसूस नहीं किया। इससे उनका खेल पहले से बेहतर हुआ है। अनुष्का शर्मा : 2015 में वीगनिज्म को अपनाया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने ट्वीट किया, "लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं प्रोटीन कहां से लेती हूं। फिल्म गेम चेंजर उनको मेरा जवाब है।" फिल्म में अरनॉल्ड श्वार्जनेगर समेत तमाम एथलीट्स ने बताया कि मांसाहार से ही प्रोटीन मिलने की बात मार्केटिंग का हथकंडा है। कंगना रनौत: खुलकर अपनी बात रखने वाली कंगना ने पांच साल पहले ही वीगनिज्म को अपना लिया। मांसाहार छोडऩे पर भी उन्हें एसिडिटी होती रही तो वह पूरी तरह वीगन हो गईं। अक्षय कुमार: 52 साल के अक्षय कुमार देश के सबसे फिट फिल्म स्टारों में से एक हैं। उन्होंने तीन साल पहले वीगनिज्म को अपनाया था। अक्षय पार्टियों में नहीं जाते। सुबह चार बजे उठकर योग करते हैं। आलिया भट्टः गर्मी ज्यादा लगने के चलते पहले मांसाहार छोड़ा फिर दूध से बने प्रोडक्ट। आलिया को अब फल और सब्जी अच्छे लगते हैं। कहती हैं कि उन्हें वीगन डाइट का मजा आ रहा है। आमिर खान-किरण राव: वीगन किरण राव ने आमिर खान को 2015 में एक वीडियो दिखाया, जिसमें दिखाया गया था कि मौत की वजह बनने वाली 15 सबसे आम बीमारियों से डाइट बदलकर बचा जा सकता है। इसके बाद आमिर वीगन हो गए। सोनम कपूर: पेटा ने 2018 में इंडियाज पर्सन ऑफ द ईयर बनाया। दूध के लैक्टोज को पचाने में परेशानी के चलते वीगन बनीं। बाद में उन्होंने चमड़े से बने प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल बंद कर दिया। माधवन: पशु अधिकारों के लिए अक्सर आवाज उठाने वाले RHTDM फेम आर माधवन ने हमेशा के लिए वीगनिज्म को अपना लिया है। उन्हें पेटा पर्सन आफ द इयर बना चुका है। 1918 में ही वीगनिज्म का आइडियाः महात्मा की दुविधा, गाय-भैंस का दूध छोड़ा तो बकरी का दूध कैसे पिएं यह तस्वीर 5 दिसंबर 1931 को लंदन में ली गई थी। लंदन दौरे में भी महात्मा गांधी के लिए दो बकरियों का इंतजाम किया गया था। भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है। दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं। एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी। गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोडऩे के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Google search doubling veganism in India, than meat-milk with milk-curd, butter-desi ghee; Animal husbandry accounts for 83% of the world's cultivated land, calories are only 18%, https://ift.tt/2HPhRcz Dainik Bhaskar वीगनिज्म पर भारत में गूगल सर्च दोगुनी, मांसाहार के साथ दूध से बनी हर चीज से तौबा

दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार,...
- November 01, 2020
दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया। जीव-जन्तु से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है। वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैग्जीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है। यह जमीन अमरीका, यूरोपी यूनियन, चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं। वीगनिज्म आखिर है क्या? फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है। प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं। मांस के साथ दूध छोड़ना पृथ्वी को बचाने का अकेला सबसे बड़ा रास्ता 76 साल पहले अंग्रेज डॉनल्ड वाटसन ने वीगन शब्द इजाद किया ब्रिटेन में पशु अधिकारों के पैरोकार डॉनल्ड वाटसन ने सबसे पहले वीगन शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने नवंबर 1944 में अपनी पत्नी डोरोथी और तीन दोस्तों के साथ दी वीगन सोसाइटी बनाई थी। उन्होंने ऐसे शाकाहारियों को वीगन कहा जो डेयरी प्रोडक्ट और अंडे नहीं खाते। मगर 1951 में वीगन सोसाइटी ने हर तरह की पशुक्रूरता को जीवन से खत्म करने को वीगनिज्म में शामिल कर लिया। 14 बरस की उम्र में न्यू इयर रेजोलुशन लेकर मांसाहार छोड़ा 1910 में यूके के यॉर्कशायर में जन्मे वॉटसन के पिता खनन करने वाले समुदाय के हेडमास्टर थे। बचपन में वे अपने चाचा के खेतों पर अक्सर जाते थे। वहीं मांस के लिए सुअर को मारने की घटना ने उन्हें काफी बेचैन कर दिया। 1924 में 14 वर्ष के वॉटसन ने नए साल का प्रण लेकर मांसाहार छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें लगा कि दूध के लिए भी मवेशी पालना अनैतिक है। इसके बाद उन्होंने दूध भी छोड़ दिया। पिछले 5 सालों में देश की कई हस्तियों ने वीगनिज्म को अपनाया विराट कोहली: 2018 में दक्षिण अफ्रीका के टूर के दौरान रीढ़ की हड्डी में एक नस दबने से हाथ की उंगली तक तेज उठा। जांच हुई तो पता चला कि मांसाहार से शरीर में बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगा। आंतों ने कैल्शियम सोखना बंद कर दिया। शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचने लगा था। इसके बाद ही विराट ने वीगनिज्म को अपना लिया। उनका दावा है कि इन दो वर्षों जैसा पहले कभी महसूस नहीं किया। इससे उनका खेल पहले से बेहतर हुआ है। अनुष्का शर्मा : 2015 में वीगनिज्म को अपनाया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने ट्वीट किया, "लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं प्रोटीन कहां से लेती हूं। फिल्म गेम चेंजर उनको मेरा जवाब है।" फिल्म में अरनॉल्ड श्वार्जनेगर समेत तमाम एथलीट्स ने बताया कि मांसाहार से ही प्रोटीन मिलने की बात मार्केटिंग का हथकंडा है। कंगना रनौत: खुलकर अपनी बात रखने वाली कंगना ने पांच साल पहले ही वीगनिज्म को अपना लिया। मांसाहार छोडऩे पर भी उन्हें एसिडिटी होती रही तो वह पूरी तरह वीगन हो गईं। अक्षय कुमार: 52 साल के अक्षय कुमार देश के सबसे फिट फिल्म स्टारों में से एक हैं। उन्होंने तीन साल पहले वीगनिज्म को अपनाया था। अक्षय पार्टियों में नहीं जाते। सुबह चार बजे उठकर योग करते हैं। आलिया भट्टः गर्मी ज्यादा लगने के चलते पहले मांसाहार छोड़ा फिर दूध से बने प्रोडक्ट। आलिया को अब फल और सब्जी अच्छे लगते हैं। कहती हैं कि उन्हें वीगन डाइट का मजा आ रहा है। आमिर खान-किरण राव: वीगन किरण राव ने आमिर खान को 2015 में एक वीडियो दिखाया, जिसमें दिखाया गया था कि मौत की वजह बनने वाली 15 सबसे आम बीमारियों से डाइट बदलकर बचा जा सकता है। इसके बाद आमिर वीगन हो गए। सोनम कपूर: पेटा ने 2018 में इंडियाज पर्सन ऑफ द ईयर बनाया। दूध के लैक्टोज को पचाने में परेशानी के चलते वीगन बनीं। बाद में उन्होंने चमड़े से बने प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल बंद कर दिया। माधवन: पशु अधिकारों के लिए अक्सर आवाज उठाने वाले RHTDM फेम आर माधवन ने हमेशा के लिए वीगनिज्म को अपना लिया है। उन्हें पेटा पर्सन आफ द इयर बना चुका है। 1918 में ही वीगनिज्म का आइडियाः महात्मा की दुविधा, गाय-भैंस का दूध छोड़ा तो बकरी का दूध कैसे पिएं यह तस्वीर 5 दिसंबर 1931 को लंदन में ली गई थी। लंदन दौरे में भी महात्मा गांधी के लिए दो बकरियों का इंतजाम किया गया था। भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है। दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं। एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी। गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोडऩे के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Google search doubling veganism in India, than meat-milk with milk-curd, butter-desi ghee; Animal husbandry accounts for 83% of the world's cultivated land, calories are only 18%, https://ift.tt/2HPhRcz Dainik Bhaskar वीगनिज्म पर भारत में गूगल सर्च दोगुनी, मांसाहार के साथ दूध से बनी हर चीज से तौबा 

दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया। जीव-जन्तु से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है।

वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैग्जीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है। यह जमीन अमरीका, यूरोपी यूनियन, चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं।

वीगनिज्म आखिर है क्या?
फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है।

प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं।

मांस के साथ दूध छोड़ना पृथ्वी को बचाने का अकेला सबसे बड़ा रास्ता

76 साल पहले अंग्रेज डॉनल्ड वाटसन ने वीगन शब्द इजाद किया
ब्रिटेन में पशु अधिकारों के पैरोकार डॉनल्ड वाटसन ने सबसे पहले वीगन शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने नवंबर 1944 में अपनी पत्नी डोरोथी और तीन दोस्तों के साथ दी वीगन सोसाइटी बनाई थी। उन्होंने ऐसे शाकाहारियों को वीगन कहा जो डेयरी प्रोडक्ट और अंडे नहीं खाते। मगर 1951 में वीगन सोसाइटी ने हर तरह की पशुक्रूरता को जीवन से खत्म करने को वीगनिज्म में शामिल कर लिया।

14 बरस की उम्र में न्यू इयर रेजोलुशन लेकर मांसाहार छोड़ा
1910 में यूके के यॉर्कशायर में जन्मे वॉटसन के पिता खनन करने वाले समुदाय के हेडमास्टर थे। बचपन में वे अपने चाचा के खेतों पर अक्सर जाते थे। वहीं मांस के लिए सुअर को मारने की घटना ने उन्हें काफी बेचैन कर दिया। 1924 में 14 वर्ष के वॉटसन ने नए साल का प्रण लेकर मांसाहार छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें लगा कि दूध के लिए भी मवेशी पालना अनैतिक है। इसके बाद उन्होंने दूध भी छोड़ दिया।

पिछले 5 सालों में देश की कई हस्तियों ने वीगनिज्म को अपनाया

विराट कोहली: 2018 में दक्षिण अफ्रीका के टूर के दौरान रीढ़ की हड्डी में एक नस दबने से हाथ की उंगली तक तेज उठा। जांच हुई तो पता चला कि मांसाहार से शरीर में बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगा। आंतों ने कैल्शियम सोखना बंद कर दिया। शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचने लगा था। इसके बाद ही विराट ने वीगनिज्म को अपना लिया। उनका दावा है कि इन दो वर्षों जैसा पहले कभी महसूस नहीं किया। इससे उनका खेल पहले से बेहतर हुआ है।

अनुष्का शर्मा : 2015 में वीगनिज्म को अपनाया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने ट्वीट किया, "लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं प्रोटीन कहां से लेती हूं। फिल्म गेम चेंजर उनको मेरा जवाब है।" फिल्म में अरनॉल्ड श्वार्जनेगर समेत तमाम एथलीट्स ने बताया कि मांसाहार से ही प्रोटीन मिलने की बात मार्केटिंग का हथकंडा है।

कंगना रनौत: खुलकर अपनी बात रखने वाली कंगना ने पांच साल पहले ही वीगनिज्म को अपना लिया। मांसाहार छोडऩे पर भी उन्हें एसिडिटी होती रही तो वह पूरी तरह वीगन हो गईं।

अक्षय कुमार: 52 साल के अक्षय कुमार देश के सबसे फिट फिल्म स्टारों में से एक हैं। उन्होंने तीन साल पहले वीगनिज्म को अपनाया था। अक्षय पार्टियों में नहीं जाते। सुबह चार बजे उठकर योग करते हैं।

आलिया भट्टः गर्मी ज्यादा लगने के चलते पहले मांसाहार छोड़ा फिर दूध से बने प्रोडक्ट। आलिया को अब फल और सब्जी अच्छे लगते हैं। कहती हैं कि उन्हें वीगन डाइट का मजा आ रहा है।

आमिर खान-किरण राव: वीगन किरण राव ने आमिर खान को 2015 में एक वीडियो दिखाया, जिसमें दिखाया गया था कि मौत की वजह बनने वाली 15 सबसे आम बीमारियों से डाइट बदलकर बचा जा सकता है। इसके बाद आमिर वीगन हो गए।

सोनम कपूर: पेटा ने 2018 में इंडियाज पर्सन ऑफ द ईयर बनाया। दूध के लैक्टोज को पचाने में परेशानी के चलते वीगन बनीं। बाद में उन्होंने चमड़े से बने प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल बंद कर दिया।

माधवन: पशु अधिकारों के लिए अक्सर आवाज उठाने वाले RHTDM फेम आर माधवन ने हमेशा के लिए वीगनिज्म को अपना लिया है। उन्हें पेटा पर्सन आफ द इयर बना चुका है।

1918 में ही वीगनिज्म का आइडियाः महात्मा की दुविधा, गाय-भैंस का दूध छोड़ा तो बकरी का दूध कैसे पिएं

यह तस्वीर 5 दिसंबर 1931 को लंदन में ली गई थी। लंदन दौरे में भी महात्मा गांधी के लिए दो बकरियों का इंतजाम किया गया था।

भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है। दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं।
एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी।
गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोडऩे के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं।

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें

Google search doubling veganism in India, than meat-milk with milk-curd, butter-desi ghee; Animal husbandry accounts for 83% of the world's cultivated land, calories are only 18%,

https://ift.tt/2HPhRcz Dainik Bhaskar वीगनिज्म पर भारत में गूगल सर्च दोगुनी, मांसाहार के साथ दूध से बनी हर चीज से तौबा Reviewed by Manish Pethev on November 01, 2020 Rating: 5

इतिहास में आज के दिन से अच्छी और बुरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं। एक तो भारत को आकार देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन है। वहीं, आयरन लेडी यानी इंदिरा गांधी की हत्या का दिन भी यही है। बात 36 साल पुरानी है। 1984 में 30 अक्टूबर को ओडिशा में चुनाव प्रचार से उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिल्ली लौटी थीं। उन पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने पीटर उस्तीनोव आए हुए थे। 31 अक्टूबर को मुलाकात का वक्त तय था। सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर इंटरव्यू की तैयारी पूरी हो चुकी थी। इंदिरा बाहर निकलीं। सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिंह और संतरी बूथ पर कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह स्टेनगन लेकर खड़ा था। इंदिरा ने आगे बढ़कर बेअंत और सतवंत को नमस्ते कहा। इतने में बेअंत ने .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर तीन गोलियां दाग दीं। सतवंत ने भी स्टेनगन से गोलियां दागनी शुरू कर दीं। एक मिनट से कम वक्त में स्टेनगन की 30 गोलियों की मैगजीन खाली कर दी। साथ वाले लोग तो कुछ समझ नहीं सके। उस समय पीएम आवास पर खड़ी एंबुलेंस का ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था। कार से इंदिरा गांधी को एम्स ले गए। शरीर से लगातार खून बह रहा था। एम्स के डॉक्टर सक्रिय हुए। खून बहने से रोकने की कोशिश की। बाहर से सपोर्ट दिया गया। 88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया, लेकिन कुछ काम नहीं आया। राजीव गांधी भी तब तक दिल्ली पहुंच गए थे। दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर औपचारिक रूप से इंदिरा गांधी की मौत की घोषणा हुई। उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं। एम्स में सैकड़ों लोग जुटे थे। धीरे-धीरे यह खबर भी फैल गई कि इंदिरा गांधी को दो सिखों ने गोली मारी है। इससे माहौल बदलने लगा। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर पथराव हुआ। शाम को अस्पताल से लौटते लोगों ने कुछ इलाकों में तोड़फोड़ शुरू कर दी। धीरे-धीरे दिल्ली सिख दंगों की आग में झुलस गई थी। रात होते-होते तो देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क गए। हत्या का कारणः पंजाब में सिख आतंकवाद को दबाने के लिए इंदिरा ने 5 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। इसमें प्रमुख आतंकी भिंडरावाला सहित कई की मौत हो गई। ऑपरेशन में स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों को क्षति पहुंची। इससे सिख समुदाय में एक तबका इंदिरा से नाराज हो गया था। इंदिरा के दो हत्यारों को 6 जनवरी 1989 को फांसी पर चढ़ाया गया था। गुजरात में देश के सरदार का जन्म महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के साथ सरदार पटेल। वल्लभ भाई पटेल को भारत का लौह पुरुष भी कहते हैं और सरदार भी। 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में उनका जन्म हुआ था और उन्होंने अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली। सरदार पटेल का जन्म किसान परिवार में हुआ, लेकिन उन्हें कूटनीतिक क्षमताओं के लिए जाना जाता है। आजाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है। आज 10वीं की परीक्षा आम तौर पर 16 साल में पास हो जाती है, लेकिन सरदार पटेल ने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। परिवार में आर्थिक तंगी थी और इस वजह से वो कॉलेज जाने के बजाय जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी में जुट गए। सबसे ज्यादा अंक भी हासिल किए। 36 साल की उम्र में वल्लभ भाई वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए। कॉलेज का अनुभव नहीं था, फिर 36 महीने का कोर्स सिर्फ 30 महीने में पूरा किया। देश आजाद हुआ, तब पटेल प्रधानमंत्री पद के तगड़े दावेदार थे, लेकिन उन्होंने नेहरू के लिए यह पद छोड़ दिया। खुद उप-प्रधानमंत्री बने और ऐसा काम किया कि सदियों तक याद रखे जाएंगे। उन्होंने पाकिस्तान में जाने का मन बना रही जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों को कूटनीति से भारत में ही रोक लिया। जम्मू-कश्मीर आज भारत में है, तो उसका श्रेय भी कुछ हद तक पटेल को जाता है। गुजरात के सरदार सरोवर डैम के पास दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति- स्टेच्यू ऑफ यूनिटी है, जो सरदार पटेल की याद में बनाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्टूबर 2018 को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को लॉन्च किया था। भारत और विश्व इतिहास में 31 अक्टूबर की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं- 1759ः फिलीस्तीन के साफेद में भूकंप से 100 लोग मारे गए। 1864ः नेवादा अमेरिका का 36वां प्रांत बना। 1905ः अमेरिका के सेंट पीटर्सबर्ग में क्रांतिकारी प्रदर्शन। 1914ः ब्रिटेन तथा फ्रांस ने तुर्की के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। 1920ः मध्य यूरोपीय देश रोमानिया ने पूर्वी यूरोप के बेसाराबिया पर कब्जा किया। 1943ः भारतीय वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर का जन्म हुआ। 1953ः बेल्जियम में टेलीविजन का प्रसारण शुरू हुआ। 1956ः स्वेज नहर को फिर से खोलने के लिए ब्रिटेन तथा फ्रांस ने मिस्र पर बमबारी शुरू की। 1966ः भारत के मशहूर तैराक मिहिर सेन ने पनामा नहर को तैरकर पार किया। 1975ः बांग्ला और हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक सचिन देव बर्मन का निधन। 1978ः यमन ने अपना संविधान अपनाया। 1999ः इजिप्टएयर फ्लाइट 990 अमेरिका के पूर्वी तट पर क्रैश हुई और 217 की मौत हुई। 2005ः भारत की प्रसिद्ध पंजाबी एवं हिन्दी लेखिका अमृता प्रीतम का निधन हुआ। 2011: दुनिया की आबादी औपचारिक रूप से 7 अरब हुई। यूएन पापुलेशन फंड ने इस दिन को डे ऑफ सेवन बिलियन कहा। 2015ः रूसी एयरलाइन कोगलीमाविया का विमान-9268 उत्तरी सिनाई में दुर्घटनाग्रस्त होने से विमान में सवार सभी 224 लोगों की मौत। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Today History for October 31st/ What Happened Today | Indira Gandhi Shot Dead By Her Bodyguards In 1984 All You Need To Know | Sardar Vallabh Bhai Patel Birthday https://ift.tt/3oKCmZ5 Dainik Bhaskar इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद के भयावह 12 घंटे; सरदार पटेल का जन्मदिन भी

इतिहास में आज के दिन से अच्छी और बुरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं। एक तो भारत को आकार देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन है। वहीं, ...
- October 31, 2020
इतिहास में आज के दिन से अच्छी और बुरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं। एक तो भारत को आकार देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन है। वहीं, आयरन लेडी यानी इंदिरा गांधी की हत्या का दिन भी यही है। बात 36 साल पुरानी है। 1984 में 30 अक्टूबर को ओडिशा में चुनाव प्रचार से उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिल्ली लौटी थीं। उन पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने पीटर उस्तीनोव आए हुए थे। 31 अक्टूबर को मुलाकात का वक्त तय था। सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर इंटरव्यू की तैयारी पूरी हो चुकी थी। इंदिरा बाहर निकलीं। सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिंह और संतरी बूथ पर कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह स्टेनगन लेकर खड़ा था। इंदिरा ने आगे बढ़कर बेअंत और सतवंत को नमस्ते कहा। इतने में बेअंत ने .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर तीन गोलियां दाग दीं। सतवंत ने भी स्टेनगन से गोलियां दागनी शुरू कर दीं। एक मिनट से कम वक्त में स्टेनगन की 30 गोलियों की मैगजीन खाली कर दी। साथ वाले लोग तो कुछ समझ नहीं सके। उस समय पीएम आवास पर खड़ी एंबुलेंस का ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था। कार से इंदिरा गांधी को एम्स ले गए। शरीर से लगातार खून बह रहा था। एम्स के डॉक्टर सक्रिय हुए। खून बहने से रोकने की कोशिश की। बाहर से सपोर्ट दिया गया। 88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया, लेकिन कुछ काम नहीं आया। राजीव गांधी भी तब तक दिल्ली पहुंच गए थे। दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर औपचारिक रूप से इंदिरा गांधी की मौत की घोषणा हुई। उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं। एम्स में सैकड़ों लोग जुटे थे। धीरे-धीरे यह खबर भी फैल गई कि इंदिरा गांधी को दो सिखों ने गोली मारी है। इससे माहौल बदलने लगा। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर पथराव हुआ। शाम को अस्पताल से लौटते लोगों ने कुछ इलाकों में तोड़फोड़ शुरू कर दी। धीरे-धीरे दिल्ली सिख दंगों की आग में झुलस गई थी। रात होते-होते तो देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क गए। हत्या का कारणः पंजाब में सिख आतंकवाद को दबाने के लिए इंदिरा ने 5 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। इसमें प्रमुख आतंकी भिंडरावाला सहित कई की मौत हो गई। ऑपरेशन में स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों को क्षति पहुंची। इससे सिख समुदाय में एक तबका इंदिरा से नाराज हो गया था। इंदिरा के दो हत्यारों को 6 जनवरी 1989 को फांसी पर चढ़ाया गया था। गुजरात में देश के सरदार का जन्म महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के साथ सरदार पटेल। वल्लभ भाई पटेल को भारत का लौह पुरुष भी कहते हैं और सरदार भी। 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में उनका जन्म हुआ था और उन्होंने अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली। सरदार पटेल का जन्म किसान परिवार में हुआ, लेकिन उन्हें कूटनीतिक क्षमताओं के लिए जाना जाता है। आजाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है। आज 10वीं की परीक्षा आम तौर पर 16 साल में पास हो जाती है, लेकिन सरदार पटेल ने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। परिवार में आर्थिक तंगी थी और इस वजह से वो कॉलेज जाने के बजाय जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी में जुट गए। सबसे ज्यादा अंक भी हासिल किए। 36 साल की उम्र में वल्लभ भाई वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए। कॉलेज का अनुभव नहीं था, फिर 36 महीने का कोर्स सिर्फ 30 महीने में पूरा किया। देश आजाद हुआ, तब पटेल प्रधानमंत्री पद के तगड़े दावेदार थे, लेकिन उन्होंने नेहरू के लिए यह पद छोड़ दिया। खुद उप-प्रधानमंत्री बने और ऐसा काम किया कि सदियों तक याद रखे जाएंगे। उन्होंने पाकिस्तान में जाने का मन बना रही जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों को कूटनीति से भारत में ही रोक लिया। जम्मू-कश्मीर आज भारत में है, तो उसका श्रेय भी कुछ हद तक पटेल को जाता है। गुजरात के सरदार सरोवर डैम के पास दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति- स्टेच्यू ऑफ यूनिटी है, जो सरदार पटेल की याद में बनाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्टूबर 2018 को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को लॉन्च किया था। भारत और विश्व इतिहास में 31 अक्टूबर की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं- 1759ः फिलीस्तीन के साफेद में भूकंप से 100 लोग मारे गए। 1864ः नेवादा अमेरिका का 36वां प्रांत बना। 1905ः अमेरिका के सेंट पीटर्सबर्ग में क्रांतिकारी प्रदर्शन। 1914ः ब्रिटेन तथा फ्रांस ने तुर्की के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। 1920ः मध्य यूरोपीय देश रोमानिया ने पूर्वी यूरोप के बेसाराबिया पर कब्जा किया। 1943ः भारतीय वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर का जन्म हुआ। 1953ः बेल्जियम में टेलीविजन का प्रसारण शुरू हुआ। 1956ः स्वेज नहर को फिर से खोलने के लिए ब्रिटेन तथा फ्रांस ने मिस्र पर बमबारी शुरू की। 1966ः भारत के मशहूर तैराक मिहिर सेन ने पनामा नहर को तैरकर पार किया। 1975ः बांग्ला और हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक सचिन देव बर्मन का निधन। 1978ः यमन ने अपना संविधान अपनाया। 1999ः इजिप्टएयर फ्लाइट 990 अमेरिका के पूर्वी तट पर क्रैश हुई और 217 की मौत हुई। 2005ः भारत की प्रसिद्ध पंजाबी एवं हिन्दी लेखिका अमृता प्रीतम का निधन हुआ। 2011: दुनिया की आबादी औपचारिक रूप से 7 अरब हुई। यूएन पापुलेशन फंड ने इस दिन को डे ऑफ सेवन बिलियन कहा। 2015ः रूसी एयरलाइन कोगलीमाविया का विमान-9268 उत्तरी सिनाई में दुर्घटनाग्रस्त होने से विमान में सवार सभी 224 लोगों की मौत। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Today History for October 31st/ What Happened Today | Indira Gandhi Shot Dead By Her Bodyguards In 1984 All You Need To Know | Sardar Vallabh Bhai Patel Birthday https://ift.tt/3oKCmZ5 Dainik Bhaskar इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद के भयावह 12 घंटे; सरदार पटेल का जन्मदिन भी 

इतिहास में आज के दिन से अच्छी और बुरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं। एक तो भारत को आकार देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन है। वहीं, आयरन लेडी यानी इंदिरा गांधी की हत्या का दिन भी यही है।

बात 36 साल पुरानी है। 1984 में 30 अक्टूबर को ओडिशा में चुनाव प्रचार से उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिल्ली लौटी थीं। उन पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने पीटर उस्तीनोव आए हुए थे। 31 अक्टूबर को मुलाकात का वक्त तय था। सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर इंटरव्यू की तैयारी पूरी हो चुकी थी। इंदिरा बाहर निकलीं। सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिंह और संतरी बूथ पर कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह स्टेनगन लेकर खड़ा था।

इंदिरा ने आगे बढ़कर बेअंत और सतवंत को नमस्ते कहा। इतने में बेअंत ने .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर तीन गोलियां दाग दीं। सतवंत ने भी स्टेनगन से गोलियां दागनी शुरू कर दीं। एक मिनट से कम वक्त में स्टेनगन की 30 गोलियों की मैगजीन खाली कर दी। साथ वाले लोग तो कुछ समझ नहीं सके। उस समय पीएम आवास पर खड़ी एंबुलेंस का ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था। कार से इंदिरा गांधी को एम्स ले गए। शरीर से लगातार खून बह रहा था।

एम्स के डॉक्टर सक्रिय हुए। खून बहने से रोकने की कोशिश की। बाहर से सपोर्ट दिया गया। 88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया, लेकिन कुछ काम नहीं आया। राजीव गांधी भी तब तक दिल्ली पहुंच गए थे। दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर औपचारिक रूप से इंदिरा गांधी की मौत की घोषणा हुई। उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं।

एम्स में सैकड़ों लोग जुटे थे। धीरे-धीरे यह खबर भी फैल गई कि इंदिरा गांधी को दो सिखों ने गोली मारी है। इससे माहौल बदलने लगा। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर पथराव हुआ। शाम को अस्पताल से लौटते लोगों ने कुछ इलाकों में तोड़फोड़ शुरू कर दी। धीरे-धीरे दिल्ली सिख दंगों की आग में झुलस गई थी। रात होते-होते तो देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क गए।

हत्या का कारणः पंजाब में सिख आतंकवाद को दबाने के लिए इंदिरा ने 5 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। इसमें प्रमुख आतंकी भिंडरावाला सहित कई की मौत हो गई। ऑपरेशन में स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों को क्षति पहुंची। इससे सिख समुदाय में एक तबका इंदिरा से नाराज हो गया था। इंदिरा के दो हत्यारों को 6 जनवरी 1989 को फांसी पर चढ़ाया गया था।

गुजरात में देश के सरदार का जन्म

महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के साथ सरदार पटेल।

वल्लभ भाई पटेल को भारत का लौह पुरुष भी कहते हैं और सरदार भी। 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में उनका जन्म हुआ था और उन्होंने अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली। सरदार पटेल का जन्म किसान परिवार में हुआ, लेकिन उन्हें कूटनीतिक क्षमताओं के लिए जाना जाता है। आजाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है।

आज 10वीं की परीक्षा आम तौर पर 16 साल में पास हो जाती है, लेकिन सरदार पटेल ने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। परिवार में आर्थिक तंगी थी और इस वजह से वो कॉलेज जाने के बजाय जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी में जुट गए। सबसे ज्यादा अंक भी हासिल किए। 36 साल की उम्र में वल्लभ भाई वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए। कॉलेज का अनुभव नहीं था, फिर 36 महीने का कोर्स सिर्फ 30 महीने में पूरा किया।

देश आजाद हुआ, तब पटेल प्रधानमंत्री पद के तगड़े दावेदार थे, लेकिन उन्होंने नेहरू के लिए यह पद छोड़ दिया। खुद उप-प्रधानमंत्री बने और ऐसा काम किया कि सदियों तक याद रखे जाएंगे। उन्होंने पाकिस्तान में जाने का मन बना रही जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों को कूटनीति से भारत में ही रोक लिया। जम्मू-कश्मीर आज भारत में है, तो उसका श्रेय भी कुछ हद तक पटेल को जाता है।

गुजरात के सरदार सरोवर डैम के पास दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति- स्टेच्यू ऑफ यूनिटी है, जो सरदार पटेल की याद में बनाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्टूबर 2018 को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को लॉन्च किया था।

भारत और विश्व इतिहास में 31 अक्टूबर की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं-

1759ः फिलीस्तीन के साफेद में भूकंप से 100 लोग मारे गए।

1864ः नेवादा अमेरिका का 36वां प्रांत बना।

1905ः अमेरिका के सेंट पीटर्सबर्ग में क्रांतिकारी प्रदर्शन।

1914ः ब्रिटेन तथा फ्रांस ने तुर्की के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।

1920ः मध्य यूरोपीय देश रोमानिया ने पूर्वी यूरोप के बेसाराबिया पर कब्जा किया।

1943ः भारतीय वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर का जन्म हुआ।

1953ः बेल्जियम में टेलीविजन का प्रसारण शुरू हुआ।

1956ः स्वेज नहर को फिर से खोलने के लिए ब्रिटेन तथा फ्रांस ने मिस्र पर बमबारी शुरू की।

1966ः भारत के मशहूर तैराक मिहिर सेन ने पनामा नहर को तैरकर पार किया।

1975ः बांग्ला और हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक सचिन देव बर्मन का निधन।

1978ः यमन ने अपना संविधान अपनाया।

1999ः इजिप्टएयर फ्लाइट 990 अमेरिका के पूर्वी तट पर क्रैश हुई और 217 की मौत हुई।

2005ः भारत की प्रसिद्ध पंजाबी एवं हिन्दी लेखिका अमृता प्रीतम का निधन हुआ।

2011: दुनिया की आबादी औपचारिक रूप से 7 अरब हुई। यूएन पापुलेशन फंड ने इस दिन को डे ऑफ सेवन बिलियन कहा।

2015ः रूसी एयरलाइन कोगलीमाविया का विमान-9268 उत्तरी सिनाई में दुर्घटनाग्रस्त होने से विमान में सवार सभी 224 लोगों की मौत।

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Today History for October 31st/ What Happened Today | Indira Gandhi Shot Dead By Her Bodyguards In 1984 All You Need To Know | Sardar Vallabh Bhai Patel Birthday

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​​​​लीसा डैमऑर. कोरोना के चलते इस साल बच्चों की पढ़ाई आधी-अधूरी ही हुई है। बच्चे करीब 8 महीने से घर पर ही हैं। बच्चों का एकेडमिक मोटिवेशन लेवल बहुत कम हो गया है। अब जरूरत उन्हें नए तरीके से मोटिवेट करने की है, लेकिन क्या आप उन्हें ज्यादा पढ़ाई और ज्यादा नंबर लाने के लिए मोटिवेट करने वाले हैं? यदि हां तो ऐसा बिल्कुल मत करिएगा, क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना की वजह से जीने का तौर-तरीका बदला है। आप भी खुद को बदलें। परंपरागत तौर-तरीकों से बाहर आएं। बच्चों की सोच को समझने की कोशिश करें। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, मोटिवेशन दो तरीके के होते हैं। पहला आंतरिक (Internal) और दूसरा बाहरी (External)। जानते हैं कि दोनों क्या हैं- इंटरनल मोटिवेशन से किसी काम को करने में हमें ज्यादा मजा आता है। काम के बाद संतुष्टि मिलती है। इसके अलावा सीखने की हमारी ललक और ज्यादा बढ़ जाती है। एक्सटर्नल मोटिवेशन से किसी काम में हमारा आउटकम यानी परिणाम बेहतर होता है। जैसे- जब हम किसी परीक्षा से पहले कड़ी मेहनत करते हैं और नंबर अच्छा आ जाते हैं तो उसके पीछे हमारी एक्सटर्नल मोटिवेशन होती है। यह भी पढ़ें- महामारी के बाद हम खुद को नहीं बदल रहे, इसलिए तनाव में; 4 तरीकों से खुद को मोटिवेट करें... बच्चों पर रिजल्ट का बोझ कैसे कम करें? पढ़ाई में हमारी मोटिवेशन ज्यादातर मौकों पर इंटरनल होनी चाहिए, न कि एक्सटर्नल। इंटरनल मोटिवेशन हमें बड़े और मजबूत लक्ष्य तक ले जाती है। इससे हमारा रहन-सहन भी बेहतर होता है। हालांकि, हमेशा हम सिर्फ इंटरनल रूप से मोटिवेट नहीं हो सकते हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में हम ज्यादातर मौकों पर रिजल्ट ओरिएंटेड हो जाते हैं, यानी हम नतीजे तलाशने लगते हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि युवाओं में सबसे ज्यादा इंटरनल मोटिवेशन की कमी देखी जाती है। पैरेंट्स बच्चों को तो सिर्फ रिजल्ट के बारे में ही बताते हैं। इसलिए बच्चे रिजल्ट से ही खुद की काबिलियत को आंकते हैं और रिजल्ट के बारे में सोचते हैं। कोरोना की वजह से स्कूल न जाने से भी बच्चों में एंग्जाइटी और तनाव देखा जा सकता है। इसलिए बाहरी चीजों से प्रेरित बच्चों को इंटरनल तौर पर मोटिवेट करने की कोशिश करें। उनके बेहतर भविष्य के लिए उन्हें रिजल्ट के बोझ से मुक्त करें। पैरेंट्स बच्चों को कैसे मोटिवेट करें? इंटरनल मोटिवेशन कई मौकों पर बहुत मददगार होती है। हर पैरेंट्स को अपने बच्चों को आंतरिक तौर पर प्रेरित करना चाहिए। जिंदगी में कई मौके ऐसे आते हैं, जब हम असफल होते हैं, उस वक्त हम इंटरनल मोटिवेशन से अगले मौके के लिए तैयार हो सकते हैं। जब हम जरूरत से ज्यादा रिजल्ट ओरिएंटेड होते हैं और असफलता मिल जाती है तो तनाव में आ जाते हैं। कोरोना के दौर में स्कूल से दूर हो चुके बच्चों को आप इंटरनल मोटिवेशन के बारे में बताएं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें There are two motivations| wrong motivation can cause depression to the child| know how to motive| https://ift.tt/3eobGIV Dainik Bhaskar बच्चों पर रिजल्ट का बोझ न डालें, दूर की सोचने को कहें; जानिए मोटिवेशन के क्या फायदे हैं

​​​​ लीसा डैमऑर. कोरोना के चलते इस साल बच्चों की पढ़ाई आधी-अधूरी ही हुई है। बच्चे करीब 8 महीने से घर पर ही हैं। बच्चों का एकेडमिक मोटिवेशन ...
- October 31, 2020
​​​​लीसा डैमऑर. कोरोना के चलते इस साल बच्चों की पढ़ाई आधी-अधूरी ही हुई है। बच्चे करीब 8 महीने से घर पर ही हैं। बच्चों का एकेडमिक मोटिवेशन लेवल बहुत कम हो गया है। अब जरूरत उन्हें नए तरीके से मोटिवेट करने की है, लेकिन क्या आप उन्हें ज्यादा पढ़ाई और ज्यादा नंबर लाने के लिए मोटिवेट करने वाले हैं? यदि हां तो ऐसा बिल्कुल मत करिएगा, क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना की वजह से जीने का तौर-तरीका बदला है। आप भी खुद को बदलें। परंपरागत तौर-तरीकों से बाहर आएं। बच्चों की सोच को समझने की कोशिश करें। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, मोटिवेशन दो तरीके के होते हैं। पहला आंतरिक (Internal) और दूसरा बाहरी (External)। जानते हैं कि दोनों क्या हैं- इंटरनल मोटिवेशन से किसी काम को करने में हमें ज्यादा मजा आता है। काम के बाद संतुष्टि मिलती है। इसके अलावा सीखने की हमारी ललक और ज्यादा बढ़ जाती है। एक्सटर्नल मोटिवेशन से किसी काम में हमारा आउटकम यानी परिणाम बेहतर होता है। जैसे- जब हम किसी परीक्षा से पहले कड़ी मेहनत करते हैं और नंबर अच्छा आ जाते हैं तो उसके पीछे हमारी एक्सटर्नल मोटिवेशन होती है। यह भी पढ़ें- महामारी के बाद हम खुद को नहीं बदल रहे, इसलिए तनाव में; 4 तरीकों से खुद को मोटिवेट करें... बच्चों पर रिजल्ट का बोझ कैसे कम करें? पढ़ाई में हमारी मोटिवेशन ज्यादातर मौकों पर इंटरनल होनी चाहिए, न कि एक्सटर्नल। इंटरनल मोटिवेशन हमें बड़े और मजबूत लक्ष्य तक ले जाती है। इससे हमारा रहन-सहन भी बेहतर होता है। हालांकि, हमेशा हम सिर्फ इंटरनल रूप से मोटिवेट नहीं हो सकते हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में हम ज्यादातर मौकों पर रिजल्ट ओरिएंटेड हो जाते हैं, यानी हम नतीजे तलाशने लगते हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि युवाओं में सबसे ज्यादा इंटरनल मोटिवेशन की कमी देखी जाती है। पैरेंट्स बच्चों को तो सिर्फ रिजल्ट के बारे में ही बताते हैं। इसलिए बच्चे रिजल्ट से ही खुद की काबिलियत को आंकते हैं और रिजल्ट के बारे में सोचते हैं। कोरोना की वजह से स्कूल न जाने से भी बच्चों में एंग्जाइटी और तनाव देखा जा सकता है। इसलिए बाहरी चीजों से प्रेरित बच्चों को इंटरनल तौर पर मोटिवेट करने की कोशिश करें। उनके बेहतर भविष्य के लिए उन्हें रिजल्ट के बोझ से मुक्त करें। पैरेंट्स बच्चों को कैसे मोटिवेट करें? इंटरनल मोटिवेशन कई मौकों पर बहुत मददगार होती है। हर पैरेंट्स को अपने बच्चों को आंतरिक तौर पर प्रेरित करना चाहिए। जिंदगी में कई मौके ऐसे आते हैं, जब हम असफल होते हैं, उस वक्त हम इंटरनल मोटिवेशन से अगले मौके के लिए तैयार हो सकते हैं। जब हम जरूरत से ज्यादा रिजल्ट ओरिएंटेड होते हैं और असफलता मिल जाती है तो तनाव में आ जाते हैं। कोरोना के दौर में स्कूल से दूर हो चुके बच्चों को आप इंटरनल मोटिवेशन के बारे में बताएं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें There are two motivations| wrong motivation can cause depression to the child| know how to motive| https://ift.tt/3eobGIV Dainik Bhaskar बच्चों पर रिजल्ट का बोझ न डालें, दूर की सोचने को कहें; जानिए मोटिवेशन के क्या फायदे हैं 

​​​​लीसा डैमऑर. कोरोना के चलते इस साल बच्चों की पढ़ाई आधी-अधूरी ही हुई है। बच्चे करीब 8 महीने से घर पर ही हैं। बच्चों का एकेडमिक मोटिवेशन लेवल बहुत कम हो गया है। अब जरूरत उन्हें नए तरीके से मोटिवेट करने की है, लेकिन क्या आप उन्हें ज्यादा पढ़ाई और ज्यादा नंबर लाने के लिए मोटिवेट करने वाले हैं? यदि हां तो ऐसा बिल्कुल मत करिएगा, क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना की वजह से जीने का तौर-तरीका बदला है। आप भी खुद को बदलें। परंपरागत तौर-तरीकों से बाहर आएं। बच्चों की सोच को समझने की कोशिश करें।

मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, मोटिवेशन दो तरीके के होते हैं। पहला आंतरिक (Internal) और दूसरा बाहरी (External)। जानते हैं कि दोनों क्या हैं-

इंटरनल मोटिवेशन से किसी काम को करने में हमें ज्यादा मजा आता है। काम के बाद संतुष्टि मिलती है। इसके अलावा सीखने की हमारी ललक और ज्यादा बढ़ जाती है।

एक्सटर्नल मोटिवेशन से किसी काम में हमारा आउटकम यानी परिणाम बेहतर होता है। जैसे- जब हम किसी परीक्षा से पहले कड़ी मेहनत करते हैं और नंबर अच्छा आ जाते हैं तो उसके पीछे हमारी एक्सटर्नल मोटिवेशन होती है।

यह भी पढ़ें- महामारी के बाद हम खुद को नहीं बदल रहे, इसलिए तनाव में; 4 तरीकों से खुद को मोटिवेट करें...

बच्चों पर रिजल्ट का बोझ कैसे कम करें?

पढ़ाई में हमारी मोटिवेशन ज्यादातर मौकों पर इंटरनल होनी चाहिए, न कि एक्सटर्नल। इंटरनल मोटिवेशन हमें बड़े और मजबूत लक्ष्य तक ले जाती है। इससे हमारा रहन-सहन भी बेहतर होता है। हालांकि, हमेशा हम सिर्फ इंटरनल रूप से मोटिवेट नहीं हो सकते हैं।

रोजमर्रा की जिंदगी में हम ज्यादातर मौकों पर रिजल्ट ओरिएंटेड हो जाते हैं, यानी हम नतीजे तलाशने लगते हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि युवाओं में सबसे ज्यादा इंटरनल मोटिवेशन की कमी देखी जाती है। पैरेंट्स बच्चों को तो सिर्फ रिजल्ट के बारे में ही बताते हैं। इसलिए बच्चे रिजल्ट से ही खुद की काबिलियत को आंकते हैं और रिजल्ट के बारे में सोचते हैं।

कोरोना की वजह से स्कूल न जाने से भी बच्चों में एंग्जाइटी और तनाव देखा जा सकता है। इसलिए बाहरी चीजों से प्रेरित बच्चों को इंटरनल तौर पर मोटिवेट करने की कोशिश करें। उनके बेहतर भविष्य के लिए उन्हें रिजल्ट के बोझ से मुक्त करें।

पैरेंट्स बच्चों को कैसे मोटिवेट करें?

इंटरनल मोटिवेशन कई मौकों पर बहुत मददगार होती है। हर पैरेंट्स को अपने बच्चों को आंतरिक तौर पर प्रेरित करना चाहिए। जिंदगी में कई मौके ऐसे आते हैं, जब हम असफल होते हैं, उस वक्त हम इंटरनल मोटिवेशन से अगले मौके के लिए तैयार हो सकते हैं।

जब हम जरूरत से ज्यादा रिजल्ट ओरिएंटेड होते हैं और असफलता मिल जाती है तो तनाव में आ जाते हैं। कोरोना के दौर में स्कूल से दूर हो चुके बच्चों को आप इंटरनल मोटिवेशन के बारे में बताएं।

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There are two motivations| wrong motivation can cause depression to the child| know how to motive|

https://ift.tt/3eobGIV Dainik Bhaskar बच्चों पर रिजल्ट का बोझ न डालें, दूर की सोचने को कहें; जानिए मोटिवेशन के क्या फायदे हैं Reviewed by Manish Pethev on October 31, 2020 Rating: 5

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें बिहार चुनाव में RJD से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। वीडियो बिहार चुनाव प्रचार का ही बताया जा रहा है। चुनाव प्रचार में नोट बांटते हुए तेजस्वी यादव 😂😂😂😂 क्या दिन आ गए 😂😂😂 pic.twitter.com/roWajI9K1c — मनीषा मिश्रा 🇮🇳टी,,ए,,एफ🇮🇳 हिंदी में नाम लिखें (@Nisha2522) October 30, 2020 और सच क्या है ? वायरल वीडियो में तेजस्वी मास्क लगाए दिख रहे हैं। साफ है कि वीडियो कोरोना काल का ही है यानी ज्यादा पुराना नहीं है। अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि तेजस्वी यादव बिहार चुनाव प्रचार में वोटरों को नोट बांटते देखे गए हैं। पड़ताल के दौरान हमें तेजस्वी यादव के 31 जुलाई के ट्वीट में वायरल वीडियो से मिलता-जुलता एक वीडियो मिला। इस वीडियो में भी तेजस्वी लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। यहां से हमें क्लू मिला कि वायरल वीडियो इसी साल बिहार में आई बाढ़ का हो सकता है। मेरी नहीं जनता की सुनिए। बिहार के जलसंसाधन मंत्री बाढ़ नियंत्रण और जल संसाधन छोड़कर जेडीयू के लिए संसाधन उत्पन्न करते मिलेंगे। 4 महीनों के विपदा काल में आपदा प्रबंधन मंत्री को किसी ने देखा ही नहीं। 135 दिन से मुख्यमंत्री घर से बाहर नहीं निकले है।जनता त्राहिमाम है। pic.twitter.com/sTr7gKzR2u — Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) July 31, 2020 दैनिक भास्कर वेबसाइट पर 22 जुलाई, 2020 की एक खबर है। जिससे पता चलता है कि तेजस्वी यादव ने बाढ़ पीड़ितों के भोजन की व्यवस्था की थी। हमें नवभारत टाइम्स वेबसाइट पर 31 जुलाई, 2020 की रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट में वही वीडियो है जिसमें तेजस्वी लोगों को पैसे बांटते दिख रहे हैं। साफ है कि वायरल वीडियो का बिहार चुनाव से कोई संबंध नहीं है। 3 महीने पुराने वीडियो में तेजस्वी बाढ़ पीड़ितों को पैसे बांट रहे हैं। न की वोट के बदले नोट। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Fact Check: In the midst of Bihar elections, Tejashwi Yadav distributed money? Know the reality of viral video https://ift.tt/3kIOEid Dainik Bhaskar बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव ने वोट के बदले बांटे नोट, जानें वायरल वीडियो का सच

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें बिहार चुनाव में RJD से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव लोगों...
- October 31, 2020
क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें बिहार चुनाव में RJD से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। वीडियो बिहार चुनाव प्रचार का ही बताया जा रहा है। चुनाव प्रचार में नोट बांटते हुए तेजस्वी यादव 😂😂😂😂 क्या दिन आ गए 😂😂😂 pic.twitter.com/roWajI9K1c — मनीषा मिश्रा 🇮🇳टी,,ए,,एफ🇮🇳 हिंदी में नाम लिखें (@Nisha2522) October 30, 2020 और सच क्या है ? वायरल वीडियो में तेजस्वी मास्क लगाए दिख रहे हैं। साफ है कि वीडियो कोरोना काल का ही है यानी ज्यादा पुराना नहीं है। अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि तेजस्वी यादव बिहार चुनाव प्रचार में वोटरों को नोट बांटते देखे गए हैं। पड़ताल के दौरान हमें तेजस्वी यादव के 31 जुलाई के ट्वीट में वायरल वीडियो से मिलता-जुलता एक वीडियो मिला। इस वीडियो में भी तेजस्वी लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। यहां से हमें क्लू मिला कि वायरल वीडियो इसी साल बिहार में आई बाढ़ का हो सकता है। मेरी नहीं जनता की सुनिए। बिहार के जलसंसाधन मंत्री बाढ़ नियंत्रण और जल संसाधन छोड़कर जेडीयू के लिए संसाधन उत्पन्न करते मिलेंगे। 4 महीनों के विपदा काल में आपदा प्रबंधन मंत्री को किसी ने देखा ही नहीं। 135 दिन से मुख्यमंत्री घर से बाहर नहीं निकले है।जनता त्राहिमाम है। pic.twitter.com/sTr7gKzR2u — Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) July 31, 2020 दैनिक भास्कर वेबसाइट पर 22 जुलाई, 2020 की एक खबर है। जिससे पता चलता है कि तेजस्वी यादव ने बाढ़ पीड़ितों के भोजन की व्यवस्था की थी। हमें नवभारत टाइम्स वेबसाइट पर 31 जुलाई, 2020 की रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट में वही वीडियो है जिसमें तेजस्वी लोगों को पैसे बांटते दिख रहे हैं। साफ है कि वायरल वीडियो का बिहार चुनाव से कोई संबंध नहीं है। 3 महीने पुराने वीडियो में तेजस्वी बाढ़ पीड़ितों को पैसे बांट रहे हैं। न की वोट के बदले नोट। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Fact Check: In the midst of Bihar elections, Tejashwi Yadav distributed money? Know the reality of viral video https://ift.tt/3kIOEid Dainik Bhaskar बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव ने वोट के बदले बांटे नोट, जानें वायरल वीडियो का सच 

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें बिहार चुनाव में RJD से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। वीडियो बिहार चुनाव प्रचार का ही बताया जा रहा है।

चुनाव प्रचार में नोट बांटते हुए
तेजस्वी यादव 😂😂😂😂
क्या दिन आ गए
😂😂😂 pic.twitter.com/roWajI9K1c

— मनीषा मिश्रा 🇮🇳टी,,ए,,एफ🇮🇳 हिंदी में नाम लिखें (@Nisha2522) October 30, 2020

और सच क्या है ?

वायरल वीडियो में तेजस्वी मास्क लगाए दिख रहे हैं। साफ है कि वीडियो कोरोना काल का ही है यानी ज्यादा पुराना नहीं है।

अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि तेजस्वी यादव बिहार चुनाव प्रचार में वोटरों को नोट बांटते देखे गए हैं।

पड़ताल के दौरान हमें तेजस्वी यादव के 31 जुलाई के ट्वीट में वायरल वीडियो से मिलता-जुलता एक वीडियो मिला। इस वीडियो में भी तेजस्वी लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। यहां से हमें क्लू मिला कि वायरल वीडियो इसी साल बिहार में आई बाढ़ का हो सकता है।

मेरी नहीं जनता की सुनिए।

बिहार के जलसंसाधन मंत्री बाढ़ नियंत्रण और जल संसाधन छोड़कर जेडीयू के लिए संसाधन उत्पन्न करते मिलेंगे। 4 महीनों के विपदा काल में आपदा प्रबंधन मंत्री को किसी ने देखा ही नहीं। 135 दिन से मुख्यमंत्री घर से बाहर नहीं निकले है।जनता त्राहिमाम है। pic.twitter.com/sTr7gKzR2u

— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) July 31, 2020

दैनिक भास्कर वेबसाइट पर 22 जुलाई, 2020 की एक खबर है। जिससे पता चलता है कि तेजस्वी यादव ने बाढ़ पीड़ितों के भोजन की व्यवस्था की थी।

हमें नवभारत टाइम्स वेबसाइट पर 31 जुलाई, 2020 की रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट में वही वीडियो है जिसमें तेजस्वी लोगों को पैसे बांटते दिख रहे हैं।

साफ है कि वायरल वीडियो का बिहार चुनाव से कोई संबंध नहीं है। 3 महीने पुराने वीडियो में तेजस्वी बाढ़ पीड़ितों को पैसे बांट रहे हैं। न की वोट के बदले नोट।

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Fact Check: In the midst of Bihar elections, Tejashwi Yadav distributed money? Know the reality of viral video

https://ift.tt/3kIOEid Dainik Bhaskar बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव ने वोट के बदले बांटे नोट, जानें वायरल वीडियो का सच Reviewed by Manish Pethev on October 31, 2020 Rating: 5

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रैलियों में जो शब्द बार-बार सुनाई दे रहा है, वो है ‘15 साल’। नीतीश लोगों को 15 साल पहले के बिहार की तस्वीर दिखा रहे हैं। अपने 15 साल की तुलना लालू के 15 साल से करते हैं। मानो इन सालों में बिहार की कायापलट हो गई हो। पर, आंकड़े क्या कहते हैं? आंकड़े कहते हैं कि बिहार आज भी देश के बाकी राज्यों से पिछड़ा हुआ है। ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार में आज हर आदमी रोज सिर्फ 120 रुपए ही कमाता है। जबकि, झारखंड का आदमी रोज 220 रुपए तक की कमाई कर रहा। बिहार से 100 रुपए ज्यादा। सिर्फ कमाई ही नहीं, बेरोजगारी के मामले में भी बिहार, झारखंड से कोसों आगे है। यहां बिहार की तुलना झारखंड से इसलिए, क्योंकि आज भले ही बिहार और झारखंड की पहचान दो अलग-अलग राज्यों की हो, लेकिन 20 साल पहले तक दोनों एक ही तो थे। आइए 5 पैमानों पर परखते हैं कि नीतीश के 15 सालों में बिहार कितना बदला? 1. पर कैपिटा इनकमः झारखंड से भी पीछे बिहार इकोनॉमिक सर्वे और RBI के आंकड़े बताते हैं कि 15 साल में बिहार में हर आदमी की कमाई 5 गुना बढ़ी है। नीतीश जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तब यहां हर आदमी की सालाना कमाई 7914 रुपए थी। आज 43,822 रुपए है। यानी रोज की कमाई 120 रुपए और महीने की कमाई 3651 रुपए। इसकी तुलना जब झारखंड से करेंगे, तो यहां बिहार की तुलना में लोगों की कमाई 4 गुना से ज्यादा बढ़ी है। लेकिन, फिर भी झारखंड का आदमी बिहार के आदमी से हर साल डेढ़ गुना से ज्यादा कमाई करता है। झारखंड में हर आदमी की सालाना कमाई 79,873 रुपए है। वहीं, 15 साल में देश में हर आदमी की सालाना कमाई एक लाख रुपए से ज्यादा बढ़ गई, पर बिहार में सिर्फ 35,000 रुपए। 2.बेरोजगारी दरः झारखंड के मुकाबले बिहार में ज्यादा देश में बेरोजगारी दर के आंकड़े अब केंद्र सरकार जारी करती है। 2011-12 तक नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी NSSO सर्वे करता था, लेकिन अब पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी PLFS सर्वे होता है। इसका डेटा बताता है कि बिहार और झारखंड ही नहीं, बल्कि देश में ही बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है। 2004-05 बिहार के गांवों में बेरोजगारी दर 1.5% और शहरों में 6.4% थी। अब यहां के गांवों में 10.2% और शहरों में 10.5% बेरोजगारी दर है। बेरोजगारी दर झारखंड और देश में भी बढ़ी है। बिहार के लिए ये इसलिए भी चिंताजनक हो जाती है, क्योंकि यहां की करीब 90% आबादी आज भी गांवों में ही रहती है। तर्क या कुतर्क:नीतीश बोले- बिहार समुद्र किनारे नहीं, इसलिए उद्योग नहीं आते; उधर पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश भी ऐसे, पर बिहार से ज्यादा फैक्ट्रियां 3. गरीबी रेखाः बिहार में आज भी 34% आबादी गरीब हमारे देश में गरीबी के आंकड़ों का हिसाब-किताब 1956 से रखा जा रहा है। गरीब कौन होगा? इसकी भी परिभाषा है, जो बताती है कि अगर शहर में रहने वाला व्यक्ति हर महीने 1000 रुपए से ज्यादा कमाता है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा। इसी तरह गांव का व्यक्ति अगर हर महीने 816 रुपए कमाता है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा। नीतीश 15 साल पहले जब सत्ता में आए थे, तब बिहार की 54% से ज्यादा यानी 4.93 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011-12 के हैं। इसके मुताबिक, 2011-12 में बिहार में गरीबी रेखा के नीचे आने वाली आबादी 3.58 करोड़ यानी 33.7% है। वहीं, बिहार की तुलना में झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे आने वाली आबादी ज्यादा है। झारखंड की अब भी 37% आबादी गरीबी रेखा से नीचे आती है, जबकि देश में ये आंकड़ा 22% का है। 4. GDP: यहां झारखंड के मुकाबले बिहार की हालत बेहतर 15 साल में बिहार की GDP 7.5 गुना बढ़ गई। RBI का डेटा बताता है कि 2005-06 में बिहार की GDP 82 हजार 490 करोड़ रुपए थी, जो 2019-20 में बढ़कर 6.11 लाख करोड़ रुपए हो गई। वहीं, 15 सालों में झारखंड और देश की GDP 5.5 गुना बढ़ी है। लॉकडाउन में 15 लाख प्रवासी मजदूर लौटे थे बिहार, हर साल ढाई करोड़ से ज्यादा लोग बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों में जाते हैं 5. क्राइम रेट: अपराध के मामले में झारखंड के मुकाबले बिहार आगे चाहें प्रधानमंत्री मोदी हों या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों ही कह रहे हैं कि पहले जंगलराज हुआ करता था। उधर, केंद्र सरकार की ही एजेंसी NCRB का डेटा बताता है कि नीतीश सरकार के आने के बाद बिहार में क्राइम बढ़ा है। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2005 में बिहार में 1.07 लाख क्रिमिनल केस दर्ज किए गए थे, यानी रोजाना 293 मामले। लेकिन, 2019 में बिहार में 2.69 लाख मामले सामने आए हैं यानी, रोज 737 केस। ये आंकड़े ये भी बताते हैं कि 15 सालों में देश में क्राइम बढ़ा तो था, लेकिन बाद में कम भी होने लगा, लेकिन बिहार और झारखंड में लगातार केस बढ़ रहे हैं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Nitish Kumar Government 15 Years Vs Tejashwi Yadav: Bihar Election 2020 | Bihar Per Capita Income | Bihar Crime Rate - Here's Latest News Updates https://ift.tt/2JjFoDb Dainik Bhaskar 15 साल में देश में हर आदमी की सालाना कमाई एक लाख रु. बढ़ी, पर बिहार में सिर्फ 35 हजार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रैलियों में जो शब्द बार-बार सुनाई दे रहा है, वो है ‘15 साल’। नीतीश लोगों को 15 साल पहले के बिहार की तस्...
- October 31, 2020
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रैलियों में जो शब्द बार-बार सुनाई दे रहा है, वो है ‘15 साल’। नीतीश लोगों को 15 साल पहले के बिहार की तस्वीर दिखा रहे हैं। अपने 15 साल की तुलना लालू के 15 साल से करते हैं। मानो इन सालों में बिहार की कायापलट हो गई हो। पर, आंकड़े क्या कहते हैं? आंकड़े कहते हैं कि बिहार आज भी देश के बाकी राज्यों से पिछड़ा हुआ है। ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार में आज हर आदमी रोज सिर्फ 120 रुपए ही कमाता है। जबकि, झारखंड का आदमी रोज 220 रुपए तक की कमाई कर रहा। बिहार से 100 रुपए ज्यादा। सिर्फ कमाई ही नहीं, बेरोजगारी के मामले में भी बिहार, झारखंड से कोसों आगे है। यहां बिहार की तुलना झारखंड से इसलिए, क्योंकि आज भले ही बिहार और झारखंड की पहचान दो अलग-अलग राज्यों की हो, लेकिन 20 साल पहले तक दोनों एक ही तो थे। आइए 5 पैमानों पर परखते हैं कि नीतीश के 15 सालों में बिहार कितना बदला? 1. पर कैपिटा इनकमः झारखंड से भी पीछे बिहार इकोनॉमिक सर्वे और RBI के आंकड़े बताते हैं कि 15 साल में बिहार में हर आदमी की कमाई 5 गुना बढ़ी है। नीतीश जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तब यहां हर आदमी की सालाना कमाई 7914 रुपए थी। आज 43,822 रुपए है। यानी रोज की कमाई 120 रुपए और महीने की कमाई 3651 रुपए। इसकी तुलना जब झारखंड से करेंगे, तो यहां बिहार की तुलना में लोगों की कमाई 4 गुना से ज्यादा बढ़ी है। लेकिन, फिर भी झारखंड का आदमी बिहार के आदमी से हर साल डेढ़ गुना से ज्यादा कमाई करता है। झारखंड में हर आदमी की सालाना कमाई 79,873 रुपए है। वहीं, 15 साल में देश में हर आदमी की सालाना कमाई एक लाख रुपए से ज्यादा बढ़ गई, पर बिहार में सिर्फ 35,000 रुपए। 2.बेरोजगारी दरः झारखंड के मुकाबले बिहार में ज्यादा देश में बेरोजगारी दर के आंकड़े अब केंद्र सरकार जारी करती है। 2011-12 तक नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी NSSO सर्वे करता था, लेकिन अब पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी PLFS सर्वे होता है। इसका डेटा बताता है कि बिहार और झारखंड ही नहीं, बल्कि देश में ही बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है। 2004-05 बिहार के गांवों में बेरोजगारी दर 1.5% और शहरों में 6.4% थी। अब यहां के गांवों में 10.2% और शहरों में 10.5% बेरोजगारी दर है। बेरोजगारी दर झारखंड और देश में भी बढ़ी है। बिहार के लिए ये इसलिए भी चिंताजनक हो जाती है, क्योंकि यहां की करीब 90% आबादी आज भी गांवों में ही रहती है। तर्क या कुतर्क:नीतीश बोले- बिहार समुद्र किनारे नहीं, इसलिए उद्योग नहीं आते; उधर पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश भी ऐसे, पर बिहार से ज्यादा फैक्ट्रियां 3. गरीबी रेखाः बिहार में आज भी 34% आबादी गरीब हमारे देश में गरीबी के आंकड़ों का हिसाब-किताब 1956 से रखा जा रहा है। गरीब कौन होगा? इसकी भी परिभाषा है, जो बताती है कि अगर शहर में रहने वाला व्यक्ति हर महीने 1000 रुपए से ज्यादा कमाता है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा। इसी तरह गांव का व्यक्ति अगर हर महीने 816 रुपए कमाता है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा। नीतीश 15 साल पहले जब सत्ता में आए थे, तब बिहार की 54% से ज्यादा यानी 4.93 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011-12 के हैं। इसके मुताबिक, 2011-12 में बिहार में गरीबी रेखा के नीचे आने वाली आबादी 3.58 करोड़ यानी 33.7% है। वहीं, बिहार की तुलना में झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे आने वाली आबादी ज्यादा है। झारखंड की अब भी 37% आबादी गरीबी रेखा से नीचे आती है, जबकि देश में ये आंकड़ा 22% का है। 4. GDP: यहां झारखंड के मुकाबले बिहार की हालत बेहतर 15 साल में बिहार की GDP 7.5 गुना बढ़ गई। RBI का डेटा बताता है कि 2005-06 में बिहार की GDP 82 हजार 490 करोड़ रुपए थी, जो 2019-20 में बढ़कर 6.11 लाख करोड़ रुपए हो गई। वहीं, 15 सालों में झारखंड और देश की GDP 5.5 गुना बढ़ी है। लॉकडाउन में 15 लाख प्रवासी मजदूर लौटे थे बिहार, हर साल ढाई करोड़ से ज्यादा लोग बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों में जाते हैं 5. क्राइम रेट: अपराध के मामले में झारखंड के मुकाबले बिहार आगे चाहें प्रधानमंत्री मोदी हों या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों ही कह रहे हैं कि पहले जंगलराज हुआ करता था। उधर, केंद्र सरकार की ही एजेंसी NCRB का डेटा बताता है कि नीतीश सरकार के आने के बाद बिहार में क्राइम बढ़ा है। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2005 में बिहार में 1.07 लाख क्रिमिनल केस दर्ज किए गए थे, यानी रोजाना 293 मामले। लेकिन, 2019 में बिहार में 2.69 लाख मामले सामने आए हैं यानी, रोज 737 केस। ये आंकड़े ये भी बताते हैं कि 15 सालों में देश में क्राइम बढ़ा तो था, लेकिन बाद में कम भी होने लगा, लेकिन बिहार और झारखंड में लगातार केस बढ़ रहे हैं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Nitish Kumar Government 15 Years Vs Tejashwi Yadav: Bihar Election 2020 | Bihar Per Capita Income | Bihar Crime Rate - Here's Latest News Updates https://ift.tt/2JjFoDb Dainik Bhaskar 15 साल में देश में हर आदमी की सालाना कमाई एक लाख रु. बढ़ी, पर बिहार में सिर्फ 35 हजार 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रैलियों में जो शब्द बार-बार सुनाई दे रहा है, वो है ‘15 साल’। नीतीश लोगों को 15 साल पहले के बिहार की तस्वीर दिखा रहे हैं। अपने 15 साल की तुलना लालू के 15 साल से करते हैं। मानो इन सालों में बिहार की कायापलट हो गई हो।

पर, आंकड़े क्या कहते हैं? आंकड़े कहते हैं कि बिहार आज भी देश के बाकी राज्यों से पिछड़ा हुआ है। ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार में आज हर आदमी रोज सिर्फ 120 रुपए ही कमाता है। जबकि, झारखंड का आदमी रोज 220 रुपए तक की कमाई कर रहा। बिहार से 100 रुपए ज्यादा। सिर्फ कमाई ही नहीं, बेरोजगारी के मामले में भी बिहार, झारखंड से कोसों आगे है।

यहां बिहार की तुलना झारखंड से इसलिए, क्योंकि आज भले ही बिहार और झारखंड की पहचान दो अलग-अलग राज्यों की हो, लेकिन 20 साल पहले तक दोनों एक ही तो थे।

आइए 5 पैमानों पर परखते हैं कि नीतीश के 15 सालों में बिहार कितना बदला?

1. पर कैपिटा इनकमः झारखंड से भी पीछे बिहार

इकोनॉमिक सर्वे और RBI के आंकड़े बताते हैं कि 15 साल में बिहार में हर आदमी की कमाई 5 गुना बढ़ी है। नीतीश जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तब यहां हर आदमी की सालाना कमाई 7914 रुपए थी। आज 43,822 रुपए है। यानी रोज की कमाई 120 रुपए और महीने की कमाई 3651 रुपए।

इसकी तुलना जब झारखंड से करेंगे, तो यहां बिहार की तुलना में लोगों की कमाई 4 गुना से ज्यादा बढ़ी है। लेकिन, फिर भी झारखंड का आदमी बिहार के आदमी से हर साल डेढ़ गुना से ज्यादा कमाई करता है। झारखंड में हर आदमी की सालाना कमाई 79,873 रुपए है। वहीं, 15 साल में देश में हर आदमी की सालाना कमाई एक लाख रुपए से ज्यादा बढ़ गई, पर बिहार में सिर्फ 35,000 रुपए।

2.बेरोजगारी दरः झारखंड के मुकाबले बिहार में ज्यादा

देश में बेरोजगारी दर के आंकड़े अब केंद्र सरकार जारी करती है। 2011-12 तक नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी NSSO सर्वे करता था, लेकिन अब पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी PLFS सर्वे होता है। इसका डेटा बताता है कि बिहार और झारखंड ही नहीं, बल्कि देश में ही बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है।

2004-05 बिहार के गांवों में बेरोजगारी दर 1.5% और शहरों में 6.4% थी। अब यहां के गांवों में 10.2% और शहरों में 10.5% बेरोजगारी दर है। बेरोजगारी दर झारखंड और देश में भी बढ़ी है। बिहार के लिए ये इसलिए भी चिंताजनक हो जाती है, क्योंकि यहां की करीब 90% आबादी आज भी गांवों में ही रहती है।

तर्क या कुतर्क:नीतीश बोले- बिहार समुद्र किनारे नहीं, इसलिए उद्योग नहीं आते; उधर पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश भी ऐसे, पर बिहार से ज्यादा फैक्ट्रियां

3. गरीबी रेखाः बिहार में आज भी 34% आबादी गरीब

हमारे देश में गरीबी के आंकड़ों का हिसाब-किताब 1956 से रखा जा रहा है। गरीब कौन होगा? इसकी भी परिभाषा है, जो बताती है कि अगर शहर में रहने वाला व्यक्ति हर महीने 1000 रुपए से ज्यादा कमाता है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा। इसी तरह गांव का व्यक्ति अगर हर महीने 816 रुपए कमाता है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा।

नीतीश 15 साल पहले जब सत्ता में आए थे, तब बिहार की 54% से ज्यादा यानी 4.93 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011-12 के हैं। इसके मुताबिक, 2011-12 में बिहार में गरीबी रेखा के नीचे आने वाली आबादी 3.58 करोड़ यानी 33.7% है।

वहीं, बिहार की तुलना में झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे आने वाली आबादी ज्यादा है। झारखंड की अब भी 37% आबादी गरीबी रेखा से नीचे आती है, जबकि देश में ये आंकड़ा 22% का है।

4. GDP: यहां झारखंड के मुकाबले बिहार की हालत बेहतर

15 साल में बिहार की GDP 7.5 गुना बढ़ गई। RBI का डेटा बताता है कि 2005-06 में बिहार की GDP 82 हजार 490 करोड़ रुपए थी, जो 2019-20 में बढ़कर 6.11 लाख करोड़ रुपए हो गई। वहीं, 15 सालों में झारखंड और देश की GDP 5.5 गुना बढ़ी है।

लॉकडाउन में 15 लाख प्रवासी मजदूर लौटे थे बिहार, हर साल ढाई करोड़ से ज्यादा लोग बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों में जाते हैं

5. क्राइम रेट: अपराध के मामले में झारखंड के मुकाबले बिहार आगे

चाहें प्रधानमंत्री मोदी हों या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों ही कह रहे हैं कि पहले जंगलराज हुआ करता था। उधर, केंद्र सरकार की ही एजेंसी NCRB का डेटा बताता है कि नीतीश सरकार के आने के बाद बिहार में क्राइम बढ़ा है।

NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2005 में बिहार में 1.07 लाख क्रिमिनल केस दर्ज किए गए थे, यानी रोजाना 293 मामले। लेकिन, 2019 में बिहार में 2.69 लाख मामले सामने आए हैं यानी, रोज 737 केस। ये आंकड़े ये भी बताते हैं कि 15 सालों में देश में क्राइम बढ़ा तो था, लेकिन बाद में कम भी होने लगा, लेकिन बिहार और झारखंड में लगातार केस बढ़ रहे हैं।

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1. महामारी न फैलती तो ट्रम्प के जीतने की संभावना थी, वैसे उन्होंने देश को कई मोर्चों पर नुकसान पहुंचाया 2. महामारी के बाद भारत सहित कई देशों में अधिक बच्चों का जन्म संभव 3. कारीगरों की बढ़ती उम्र से मुसीबत, सिंगापुर में स्ट्रीट फूड सेंटरों के बंद होने का बढ़ता खतरा 4. पर्यावरण की ओर बढ़ते कदम, जलवायु के अनुकूल प्रोजेक्ट में 2.68 लाख करोड़ रुपए लगे आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Read, select stories from The Economist with just one click https://ift.tt/35VTmmC Dainik Bhaskar पढ़िए, दि इकोनॉमिस्ट की इस हफ्ते की चुनिंदा स्टोरीज सिर्फ एक क्लिक पर

1. महामारी न फैलती तो ट्रम्प के जीतने की संभावना थी, वैसे उन्होंने देश को कई मोर्चों पर नुकसान पहुंचाया 2. महामारी के बाद भारत सहित कई देश...
- October 31, 2020
1. महामारी न फैलती तो ट्रम्प के जीतने की संभावना थी, वैसे उन्होंने देश को कई मोर्चों पर नुकसान पहुंचाया 2. महामारी के बाद भारत सहित कई देशों में अधिक बच्चों का जन्म संभव 3. कारीगरों की बढ़ती उम्र से मुसीबत, सिंगापुर में स्ट्रीट फूड सेंटरों के बंद होने का बढ़ता खतरा 4. पर्यावरण की ओर बढ़ते कदम, जलवायु के अनुकूल प्रोजेक्ट में 2.68 लाख करोड़ रुपए लगे आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Read, select stories from The Economist with just one click https://ift.tt/35VTmmC Dainik Bhaskar पढ़िए, दि इकोनॉमिस्ट की इस हफ्ते की चुनिंदा स्टोरीज सिर्फ एक क्लिक पर 

1. महामारी न फैलती तो ट्रम्प के जीतने की संभावना थी, वैसे उन्होंने देश को कई मोर्चों पर नुकसान पहुंचाया

2. महामारी के बाद भारत सहित कई देशों में अधिक बच्चों का जन्म संभव

3. कारीगरों की बढ़ती उम्र से मुसीबत, सिंगापुर में स्ट्रीट फूड सेंटरों के बंद होने का बढ़ता खतरा

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