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Chunky's post for daughter Ananya on her bday
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Suhana wishes BFF Ananya on her 22nd bday
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नमस्कार!
पुणे में गुरुवार को किसानों ने एक नवजात को बचाया, जिसे दो लोग जिंदा गाड़ने की कोशिश कर रहे थे। वहीं, बिहार के मुंगेर में भीड़ ने बासुदेवपुर पुलिस चौकी में आग लगा दी। इसके बाद EC ने डीएम-एसपी को हटा दिया। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
सबसे पहले देखते हैं, बाजार क्या कह रहा है…
BSE का मार्केट कैप 157 लाख करोड़ रुपए रहा। BSE पर करीब 57% कंपनियों के शेयरों में गिरावट रही।
2,776 कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग हुई। इसमें 998 कंपनियों के शेयर बढ़े और 1,610 कंपनियों के शेयर गिरे।
आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर
IPL में आज किंग्स इलेवन पंजाब और राजस्थान रॉयल्स के बीच अबु धाबी में शाम साढ़े 7 बजे से मैच खेला जाएगा।
ग्वालियर में आज सीएम शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया का रोड शो।
छत्तीसगढ़ के मरवाही में उपचुनाव के चलते आज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की चुनावी सभा।
देश-विदेश
पुलवामा की कामयाबी हमारी कौम की कामयाबी
इमरान खान सरकार के मंत्री फवाद चौधरी ने गुरुवार को पाकिस्तान की संसद में कहा कि पुलवामा की कामयाबी, हमारी कौम की कामयाबी है। चौधरी ने यह बात पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन के नेता अयाज सादिक के आरोपों के जवाब में कही। सादिक के मुताबिक, विंग कमांडर अभिनंदन को हिरासत में लिए जाने के बाद हुई मीटिंग में विदेश मंत्री कुरैशी और आर्मी चीफ बाजवा डरे हुए थे।
विंग कमांडर अभिनंदन पर नया खुलासा
फरवरी 2019 में भारत ने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक की थी। इस दौरान विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तानी सेना ने हिरासत में ले लिया था। बाद में रिहा भी कर दिया था। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन के नेता अयाज सादिक ने बुधवार को कहा कि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने मीटिंग में कहा था कि अगर हम अभिनंदन को नहीं छोड़ते हैं, तो भारत रात 9 बजे तक हमला कर देगा।
बिहार के मुंगेर में हिंसा, डीएम-एसपी हटाए गए
बिहार के मुंगेर में भड़की हिंसा गुरुवार को फिर तेज हुई। गुस्साई भीड़ ने बासुदेवपुर पुलिस चौकी में आग लगा दी। मुफस्सिल थाने में 6 गाड़ियां फूंकी गईं। इसके बाद EC ने डीएम-एसपी को हटा दिया। लोगों का गुस्सा एसपी लिपि सिंह को लेकर था, इसलिए स्थिति को काबू करने के लिए चुनाव आयोग ने मुंगेर एसपी के साथ डीएम राजेश मीणा को भी हटा दिया।
भास्कर ब्रेकिंग: मुंगेर में पुलिस ने फायरिंग की शुरुआत की थी
मुंगेर में दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन जुलूस के दौरान 26 अक्टूबर की रात फायरिंग में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। बिहार पुलिस का दावा था कि उपद्रव कर रहे लोगों ने फायरिंग की थी और उपद्रवियों की गोली से एक की मौत हुई थी। हालांकि, भास्कर को मिली CISF की इंटरनल रिपोर्ट के मुताबिक, फायरिंग की शुरुआत मुंगेर पुलिस ने की थी।
मध्य प्रदेश उपचुनाव में सामने आई सौदेबाजी
मध्य प्रदेश में उपचुनाव से पहले बयानबाजी के बीच अब सौदेबाजी की बातें भी सामने आने लगी हैं। सोशल मीडिया में कांग्रेस नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का एक ऑडियो वायरल हो रहा है। इसमें दिग्विजय सिंह ग्वालियर से सपा कैंडिडेट रोशन मिर्जा से कह रहे हैं कि आपके चुनाव लड़ने से भाजपा को फायदा होगा, इसलिए नाम वापस ले लीजिए।
फ्रांस में हमलावर ने महिला का सिर कलम किया
फ्रांस में 15 दिन में दूसरी बार आतंकी हमला हुआ। नीस शहर में हमलावर ने एक महिला का सिर कलम कर दिया और चर्च के बाहर 2 लोगों की चाकू मारकर हत्या कर दी। नीस के मेयर क्रिस्टियन एट्रोसी ने इसे आतंकवादी घटना कहा। उन्होंने बताया कि आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
ओरिजिनल
बिहार के वो गांव जो कोसी नदी का जहर पीने को मजबूर हैं
1953 से अब तक कोसी में आने वाली बाढ़ के चलते पांच हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। पूरी दुनिया में शायद कोसी अकेली ऐसी नदी है, जिसे मां भी कहा जाता है और डायन भी। मां इसलिए कि ये लाखों लोगों को जीवन देती है और डायन इसलिए कि ये हर साल कई जिंदगियां लील भी लेती है। ये तमाम गांव छोटे-छोटे टापू जैसे बन गए हैं, यहां पहुंचने के लिए नाव का ही सहारा है।
एक्सप्लेनर
6 तारीखों से समझिए अमेरिका की राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए 3 नवंबर को वोटिंग होनी है। जो वोटर अब तक इलेक्शन डे (इस साल 3 नवंबर) को पोलिंग बूथ पर जाकर वोटिंग करते रहे हैं, वे घर बैठे मेल-इन या पोस्टल बैलट से वोटिंग कर रहे हैं। अमेरिका में कुछ राज्यों में इलेक्शन डे से पहले भी वोट डाले जा सकते हैं, जिसे अर्ली वोटिंग कहते हैं। 6 तारीखों से समझिए अमेरिका की राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया।
सुर्खियों में और क्या है...
गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल का 92 साल की उम्र में गुरुवार को निधन हो गया। हार्ट अटैक के बाद उन्हें बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया था। सुबह 11.55 पर उनका निधन हो गया।
देश में कोरोना मरीजों का आंकड़ा 80 लाख के पार हो गया है। दिल्ली, केरल और पश्चिम बंगाल में कोरोना के मामलों में सितंबर के बाद एक बार फिर तेजी देखने को मिली है।
IPL-13 में बुधवार को मुंबई इंडियंस और रॉयल चैलेंजर्स के बीच मैच हुआ। इस दौरान कप्तान कोहली मुंबई के सूर्यकुमार को घूरते हुए दिखे तो इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Pakistan's confession on Pulwama; Terrorist attack in France; New disclosure on greetings
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पूरी दुनिया में शायद कोसी अकेली ऐसी नदी है, जिसे मां भी कहा जाता है और डायन भी। मां इसलिए कि ये लाखों लोगों को जीवन देती है और डायन इसलिए कि ये हर साल कई जिंदगियां लील भी लेती है। सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि 1953 से अब तक कोसी में आने वाली बाढ़ के चलते 5 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। जानकार मानते हैं कि मौत का असल आंकड़ा सरकारी आंकड़ों से कहीं ज्यादा है।
तिब्बत से नेपाल होते हुए भारत में दाखिल होने वाली कोसी की कुल लंबाई करीब 730 किलोमीटर है। बिहार के सुपौल जिले से भारत में दाखिल होने वाली कोसी कटिहार जिले के कुरसेला में गंगा से मिल जाती है। इस यात्रा के दौरान कोसी सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, किशनगंज, मधुबनी, दरभंगा, अररिया, खगड़िया और कटिहार के कई इलाकों को प्रभावित करती है।
इस इलाके के लाखों परिवारों के लिए कोसी वरदान भी है और अभिशाप भी। कोसी अपने साथ जो मिट्टी लेकर आती है, उसके चलते इस पूरे इलाके में जमीन बेहद उपजाऊ होती है, लेकिन बरसात में जब कोसी अपना विकराल रूप धरती है तो इस पूरे इलाके में तबाही मचा देती ही। यही कारण है कि कोसी को बिहार का अभिशाप या बिहार का शोक भी कहा जाता है।
सहरसा जिले का बीरगांव ऐसा ही एक गांव है, जो कोसी के पेट में बसा है।
कोसी में हर साल आने वाली बाढ़ से निपटने के लिए 1953-54 में कोसी प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई थी। मकसद था कि कोसी के दोनों तरफ तटबंध बना दिए जाएं ताकि इसका पानी एक सीमित धारा में ही सिमटा रहे और इससे होने वाले नुकसान को रोका जा सके। माना जा रहा था कि तटबंध बन जाने से करीब 2.14 हेक्टेयर जमीन को बचाया जा सकेगा, लेकिन इसके उलट तटबंध बनने के बाद करीब चार लाख हेक्टेयर जमीन बर्बाद हो गई।
तटबंध बनने से इतना जरूर हुआ कि कोसी से प्रभावित होने वाला इलाका कुछ कम हो गया। नदी को बांध दिया गया लिहाजा पानी एक सीमित क्षेत्र के भीतर ही रोक दिया गया। ‘बाढ़ मुक्ति अभियान’ से जुड़े दिनेश मिश्रा कहते हैं कि पहले कोसी अपने प्राकृतिक बहाव में बाढ़ के समय दूर तक फैलती जरूर थी, लेकिन नुकसान कम करती थी। इसका पानी गांवों में आता था, लेकिन बहुत कम समय के लिए रुकता था।
तटबंध बन जाने से कोसी का पानी एक सीमित क्षेत्र में सिमट गया। लिहाजा, अब जब तटबंध टूटता है तो पानी भारी तबाही मचाता है। इसके साथ ही कोसी का सारा जहर अब उन गांवों को पीना पड़ रहा है, जो कोसी तटबंध के अंदर ही छूट गए हैं। ऐसे गांवों की संख्या 350 से भी अधिक है और इनमें लाखों लोग रहते हैं। तटबंध बनने से इसके बाहर के इलाके तो बाढ़ से सुरक्षित हो गए, लेकिन बांध के भीतर के ये तमाम गांव चक्की के दो पाटों में बीच फंस गए। सहरसा जिले का बीरगांव ऐसा ही एक गांव है, जो कोसी के पेट में बसा है।
इसी गांव के रहने वाले नागेश्वर यादव याद करते हैं, ‘पहले मुश्किल से 5-6 दिन के लिए कोसी का पानी गांव और खेत में आता था। हम लोग इसका इंतजार करते थे, क्योंकि पानी के साथ जो मिट्टी आती थी, उससे खेत भी अच्छे होते थे और उसका इस्तेमाल घरों में भी होता था।'
करीमुल्लाह और मुनर पासवान। करीमुल्लाह मानते हैं कि जदयू की सरकार को इस बार बदलना जरूरी है।
वो कहते हैं कि तटबंध बन जाने से अब पानी तीन-चार महीनों तक खड़ा रहता है। साल में 18-19 बार बाढ़ आती है। अब धान की अच्छी फसल भी नहीं होती, जबकि ये यहां की मुख्य फसल थी। घर की ऊंचाई भी हमें हर साल बढ़ानी पड़ती है, ताकि बाढ़ का पानी घर के भीतर न घुस सके।
कोसी के अंदर बसे ये तमाम गांव अब छोटे-छोटे टापू जैसे बन गए हैं। यहां पहुंचने के लिए बारहों महीने नांव का ही सहारा होता है। कुछ गांवों में सड़कें अगर बनती भी हैं तो एक बरसात में ही उजड़ जाती है। इन गांवों में न तो कोई अस्पताल हैं और न ही डॉक्टर। दरभंगा जिले के ऐसे ही एक गांव बरदीपुर के रहने वाले बाबुकांत झा कहते हैं, ‘इन गांवों की स्थिति ऐसी है कि अगर कोई मेडिकल इमरजेंसी होती है तो मरीज गांव में ही मर जाता है। नजदीक से नजदीक अस्पताल तक पहुंचने में भी कई घंटे लगते हैं।'
कोसी प्रोजेक्ट के तहत जब तटबंध बनाने की शुरुआत हुई तो तटबंध के अंदर छूट रहे गांवों के पुनर्वास की भी शुरुआत की गई थी, लेकिन इनके खेत तटबंध के भीतर ही छूट रहे थे। ऐसे में कोई भी गांव वाला आवंटित जमीनों पर जाकर नहीं बस सका।
बीरगांव के रहने वाले मुनर पासवान कहते हैं, ‘जहां जमीन मिली, वहां से रोज यहां आकर खेती करना संभव नहीं था। ऊपर से उन जमीनों पर आज भी दबंगों का कब्जा है। सिर्फ कागज पर ही आवंटन हमारे नाम हुआ है। हम अगर कभी अपनी उस जमीन पर जाते हैं तो दबंग लोग हमसे ही उसका पैसा मांगते हैं। इसलिए गांव के कोई भी लोग तटबंध से बाहर नहीं बस सके हैं।’ बीते सालों में इन गांवों की स्थिति सुधरने की जगह लगातार खराब ही हुई है।
ये श्याम नंदन पासवान हैं। इनका मानना है कि भाजपा को सत्ता में वापसी करनी चाहिए।
दशकों से बाढ़ झेल रहे ये गांव वाले अब बाढ़ के साथ जीना सीख चुके हैं। बाढ़ के निपटने के तमाम इंतजाम ये लोग खुद ही करते हैं और इसके लिए सरकार पर निर्भर नहीं रहते। नीतीश सरकार के कार्यकाल के बारे में गांव वाले अलग-अलग राय रखते हैं।
राम नारायण कहते हैं, ‘इस सरकार में मुफ्त राशन भी मिल रहा है और जन-धन खातों में पैसा भी आ रहा है। मोदी जी के साथ मिलकर नीतीश सरकार का काम बेहतर ही रहा है।’ इसके ठीक उलट नारायण यादव कहते हैं, ‘इस सरकार में कुछ नहीं हुआ, बल्कि भ्रष्टाचार बहुत बहुत बढ़ गया। आज एक ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए 7 हजार रुपए घूस लगती है। लालू यादव की सरकार आम आदमी की सरकार थी, जबकि नीतीश सरकार अधिकारियों की सरकार है।’
इसी गांव के रहने वाले करीमुल्लाह मानते हैं कि जदयू की सरकार को इस बार बदलना जरूरी है। दूसरी तरफ श्याम नंदन पासवान मानते हैं कि भाजपा को सत्ता में वापसी करनी चाहिए। क्या लोगों की राय मुद्दों से ज्यादा जाति के आधार पर बनती है? यह सवाल करने पर राम नारायण मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘आप मूल बात पकड़ लिए सर। चुनाव में सब मुद्दे पीछे रह जाते हैं, वोट आखिर में जाति के नाम पर ही पड़ता है।’
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Villages in Bihar who are forced to drink the poison of Kosi river, which is called both 'witch' and 'mother'
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यह सवाल करने पर राम नारायण मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘आप मूल बात पकड़ लिए सर। चुनाव में सब मुद्दे पीछे रह जाते हैं, वोट आखिर में जाति के नाम पर ही पड़ता है।’ आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Villages in Bihar who are forced to drink the poison of Kosi river, which is called both 'witch' and 'mother' https://ift.tt/31QlNB5 Dainik Bhaskar वो गांव, जो ‘डायन’ और ‘मां’ दोनों कहलाने वाली कोसी का जहर पीने को मजबूर हैं
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दंतेवाड़ा का धुर नक्सल प्रभावित गदापाल की रहने वाली महिला रायबती की तबीयत खराब थी। उसे अस्पताल जाना था। एम्बुलेंस को कॉल किया, दंतेवाड़ा से 20 किमी की दूरी होने और रास्ता खराब होने के कारण पहुंचने में 30 मिनट का वक्त लगना निश्चित था। सरपंच को सूचना मिली। तुरंत गांव की ही रजिस्टर्ड गाड़ी के मालिक के पास कॉल किया। 5 मिनट के अंदर गाड़ी पहुंची और महिला को तुरंत अस्पताल ले जाकर इलाज कराया। वाहन मालिक को कर्मचारियों ने भाड़ा दिया।
मरीज की बीमारी की खबर मिलते ही गांव के ही वाहन मालिकों को बुलाया जाता है।
धुर नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा के कई गांवों तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क नहीं। गांवों में नेटवर्क भी नहीं। बीमार पड़ने पर मरीजों को खाट के सहारे ढोकर मीलों पैदल चलना गांव वालों की मजबूरी है। इसी तस्वीर को बदलने के लिए दंतेवाड़ा प्रशासन ने सुगम स्वास्थ्य दंतेवाड़ा योजना की शुरुआत की। गांवों की गाड़ियों को एम्बुलेंस का विकल्प बनाया। इसका अच्छा फायदा अब गांव वालों को मिलने लगा है। खास बात ये है कि मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने वाले वाहन मालिकों को किराया प्रशासन दे रहा है, जो इनकी आय का अतिरिक्त जरिया बना है।
पहले अस्पताल पहुंचने में घंटों समय लगता था, वहीं अब मिनटों में यह काम हो रहा है। नीति आयोग भी इस पहल की तारीफ कर चुका है।
योजना शुरू होने के 3 महीने के अंदर इस सुविधा से 105 मरीज बिना समय गंवाए अस्पताल पहुंचाए गए हैं। वाहन मालिकों ने भी 32 हजार रुपए कमा लिए हैं। सबसे अच्छी बात ये है कि इस योजना से जुड़ने के लिए दंतेवाड़ा के सबसे करीबी गांव बालपेट, टेकनार से लेकर नक्सलियों के गढ़ मारजूम तक के वाहन मालिकों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया है। नीति आयोग भी इसकी तारीफ कर चुका है।
कलेक्टर दीपक सोनी ने बताया कि अब मरीज समय पर अस्पताल पहुंच रहे और गांव के युवाओं को भी कमाई का साधन मिला है। अस्पताल तक पहुंचाने की राशि बढ़ाई जाएगी। इस व्यवस्था को और और मजबूत किया जा रहा। नोडल अधिकारी अंकित सिंह कुशवाह ने बताया कि गर्भवती महिलाओं को भी इस योजना का अच्छा फायदा मिल रहा।
इस तरह से हो रहा संपर्क
गांव में उपलब्ध वाहन मालिकों से संपर्क पर उनकी गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन कराया गया। अभी 78 वाहनों का रजिस्ट्रेशन हुआ है। उनके मोबाइल नंबर को गांव के ही सरपंच, सचिव, मितानिन, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में बांट दिया गया। मरीज की बीमारी की खबर मिलते ही एम्बुलेंस में कॉल नहीं लगने या दूरी अधिक होने पर गांव के ही वाहन मालिकों से संपर्क कर बुलाया जा रहा।
दंतेवाड़ा की समस्याएं
गांवों व पारों की अस्पतालों से दूरी ज्यादा।
नक्सली इलाकों में एम्बुलेंस का जल्द पहुंचना मुश्किल।
जो गांव अस्पतालों से दूर हैं, वहां समय पर एम्बुलेंस नहीं पहुंचती।
किराए की गाड़ी के लिए हर ग्रामीण सक्षम नहीं।
गांवों तक पहुंचने सड़क, पुल, पुलिया, नेटवर्क नहीं होना भी एक बड़ी चुनौती है।
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Where the ambulance is not reaching, the village vehicles are reaching the hospital in a few minutes as soon as the call is made, so far 105 lives have been saved.
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via IFTTT https://ift.tt/37SUpWJ दंतेवाड़ा का धुर नक्सल प्रभावित गदापाल की रहने वाली महिला रायबती की तबीयत खराब थी। उसे अस्पताल जाना था। एम्बुलेंस को कॉल किया, दंतेवाड़ा से 20 किमी की दूरी होने और रास्ता खराब होने के कारण पहुंचने में 30 मिनट का वक्त लगना निश्चित था। सरपंच को सूचना मिली। तुरंत गांव की ही रजिस्टर्ड गाड़ी के मालिक के पास कॉल किया। 5 मिनट के अंदर गाड़ी पहुंची और महिला को तुरंत अस्पताल ले जाकर इलाज कराया। वाहन मालिक को कर्मचारियों ने भाड़ा दिया। मरीज की बीमारी की खबर मिलते ही गांव के ही वाहन मालिकों को बुलाया जाता है। धुर नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा के कई गांवों तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क नहीं। गांवों में नेटवर्क भी नहीं। बीमार पड़ने पर मरीजों को खाट के सहारे ढोकर मीलों पैदल चलना गांव वालों की मजबूरी है। इसी तस्वीर को बदलने के लिए दंतेवाड़ा प्रशासन ने सुगम स्वास्थ्य दंतेवाड़ा योजना की शुरुआत की। गांवों की गाड़ियों को एम्बुलेंस का विकल्प बनाया। इसका अच्छा फायदा अब गांव वालों को मिलने लगा है। खास बात ये है कि मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने वाले वाहन मालिकों को किराया प्रशासन दे रहा है, जो इनकी आय का अतिरिक्त जरिया बना है। पहले अस्पताल पहुंचने में घंटों समय लगता था, वहीं अब मिनटों में यह काम हो रहा है। नीति आयोग भी इस पहल की तारीफ कर चुका है। योजना शुरू होने के 3 महीने के अंदर इस सुविधा से 105 मरीज बिना समय गंवाए अस्पताल पहुंचाए गए हैं। वाहन मालिकों ने भी 32 हजार रुपए कमा लिए हैं। सबसे अच्छी बात ये है कि इस योजना से जुड़ने के लिए दंतेवाड़ा के सबसे करीबी गांव बालपेट, टेकनार से लेकर नक्सलियों के गढ़ मारजूम तक के वाहन मालिकों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया है। नीति आयोग भी इसकी तारीफ कर चुका है। कलेक्टर दीपक सोनी ने बताया कि अब मरीज समय पर अस्पताल पहुंच रहे और गांव के युवाओं को भी कमाई का साधन मिला है। अस्पताल तक पहुंचाने की राशि बढ़ाई जाएगी। इस व्यवस्था को और और मजबूत किया जा रहा। नोडल अधिकारी अंकित सिंह कुशवाह ने बताया कि गर्भवती महिलाओं को भी इस योजना का अच्छा फायदा मिल रहा। इस तरह से हो रहा संपर्क गांव में उपलब्ध वाहन मालिकों से संपर्क पर उनकी गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन कराया गया। अभी 78 वाहनों का रजिस्ट्रेशन हुआ है। उनके मोबाइल नंबर को गांव के ही सरपंच, सचिव, मितानिन, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में बांट दिया गया। मरीज की बीमारी की खबर मिलते ही एम्बुलेंस में कॉल नहीं लगने या दूरी अधिक होने पर गांव के ही वाहन मालिकों से संपर्क कर बुलाया जा रहा। दंतेवाड़ा की समस्याएं गांवों व पारों की अस्पतालों से दूरी ज्यादा। नक्सली इलाकों में एम्बुलेंस का जल्द पहुंचना मुश्किल। जो गांव अस्पतालों से दूर हैं, वहां समय पर एम्बुलेंस नहीं पहुंचती। किराए की गाड़ी के लिए हर ग्रामीण सक्षम नहीं। गांवों तक पहुंचने सड़क, पुल, पुलिया, नेटवर्क नहीं होना भी एक बड़ी चुनौती है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Where the ambulance is not reaching, the village vehicles are reaching the hospital in a few minutes as soon as the call is made, so far 105 lives have been saved. https://ift.tt/3jHrsj1 Dainik Bhaskar नक्सली इलाकों में एम्बुलेंस नहीं पहुंचती, इसलिए वहां रहनेवालों की गाड़ियों को ही एम्बुलेंस बना दिया
Reviewed by
Manish Pethev
on
October 30, 2020
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5