चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ और साथ ही बिहार में चुनावी सरगर्मी तेज हो गई। सभी पार्टियां अपनी तरफ से लुभावने दावों के दौर में प्रवेश कर चुकी हैं। लेकिन, बिहार की आधी आबादी यानी महिला वोटर्स क्या सोच रही है, यह एक बड़ा सवाल है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां पुरुषों की तुलना में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत ज्यादा होता है। इस आधार पर यह कह सकते हैं कि बिहार में सरकार की लगाम आधी आबादी के हाथों में आ चुकी है। महिलाओं ने लगातार हर चुनाव में, बार-बार यह साबित किया है कि उनका वोट पार्टियों की जीत या हार में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। यही वजह रही कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी सरकार के फैसलों में बालिका शिक्षा से लेकर महिलाओं को पंचायत चुनाव में आरक्षण देने जैसी पहल की, जिसका फायदा भी उन्हें मिलता रहा। लेकिन, इस बार बहुत कुछ बदला हुआ है। आधी आबादी की ओर से उठते सवाल यह सोचने को मजबूर कर रहे हैं कि क्या वाकई इस बार सब कुछ पहले जैसा ही रहेगा या कि कुछ बदला-बदला सा दिखेगा! यह सवाल इसलिए भी कि इस बार बिहार चुनाव सामान्य परिस्थितियों में नहीं बल्कि कोरोना के भय के बीच हो रहा है। राजनीतिक पार्टियों में भी इस बात को लेकर आशंका है कि क्या इस बार भी वोटर हमेशा की तरह घर से बाहर निकलेंगे या नहीं। इस लिहाज से महिलाओं की वोटिंग का मसला और गंभीर हो जाता है। इन दिनों महिलाएं आमतौर पर वैसे भी घर से कम ही निकल रही हैं। उन्हें कोरोना का डर है कि कहीं परिवार के अन्य सदस्यों, खासकर बच्चों में संक्रमण की कैरियर न बन जाएं। उनकी चिंता गैरवाजिब भी नहीं है। उषा झा उद्यमी हैं और कहती हैं, अगर हालात सही रहे, तभी वोट डालने जाएंगी। महिलाओं पर खुद के साथ अपने बच्चों ही नहीं, घर के बड़े-बुजुर्गों की देखभाल की दोहरी जिम्मेदारी भी होती है। मौजूदा दौर में तो कोरोना संक्रमण के भय ने उन्हें चौतरफा जिम्मेदारी के एक नए अहसास में घेर दिया है। कामकाज के कारण मजबूरी में पुरुष तो कोरोना जनित विपरीत हालात में भी घर से बाहर काम करने को निकल रहे हैं, लेकिन वर्किंग महिलाओं को छोड़कर ज्यादातर महिलाएं घरों से कम ही निकल रही हैं। वर्किंग महिलाएं भी सुरक्षा कारणों से वर्क फ्रॉम होम ही ज्यादा पसंद कर रही हैं। हमने जानी महिलाओं से उनकी राय अपने ऐसे ही कुछ सवाल लेकर हम सीधे महिलाओं तक पहुंचे। सबसे पहले हमारी मुलाकात महिला उद्यमी उषा झा से हुई। वोट डालने जाएंगी या नहीं? उनका सीधा जवाब था यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। मतदान केंद्रों पर कोरोना से बचाव को लेकर की गई तैयारियों से संतुष्ट हुई तभी वोट डालने जाऊंगी। लेकिन, उन्होंने सवाल भी किया- क्या पोलिंग बूथ कि तैयारियां मात्र ही कोरोना से बचाने को पर्याप्त हैं? कहा- अगर वोट नहीं डाल पाई तो इस बात का दुख जरूर होगा, लेकिन इस समय सबसे ज्यादा जरूरी स्वस्थ और सुरक्षित रहना है। चुनाव थोड़े और दिनों बाद होता तो अच्छा होता। हमारी मुलाकात इंदु और अमृता से भी हुई। दोनों उषा झा के यहां ही काम करती हैं। उनकी राय भी ज्यादा अलग नहीं है। कहती हैं काम पर आना इतना मुश्किल हो गया है कि वोट डालने जाने की सोच तो भी नहीं सकते। परिवार चलाने के लिए काम करना जरूरी है इसलिए निकल रहे हैं, लेकिन वोट डालने के बारे में सोचेंगे। उनका इशारा आसपास के दबाव पर भी है। प्रतिभा सिंह गृहिणी और ब्लॉगर हैं। कहती हैं कि मैं तो वोट डालने जरूर जाऊंगी। सारे काम तो हो ही रहे हैं, फिर इस काम को क्यों छोड़ा जाए? यह भी जरूरी है, हां थोड़ी मुश्किल जरूर है, लेकिन वोट डालने जाऊंगी। मेडिकल की छात्रा साक्षी की भी यही राय है। सामाजिक कार्यकर्ता सरिता सजल तो वोट डालने को लेकर पूरे जोश में दिखती हैं। कहती हैं, मुश्किल है लेकिन वोट डालने जरूर जाऊंगी। अपनी सुरक्षा का पूरा ख्याल रखूंगी। हालांकि, कोरोना से पैदा हुए डर का असर सब पर बराबर है। साक्षी मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं और जब उनसे वोट डालने के बारे में पूछा गया तो जवाब में उन्होंने कहा कि जरूर जाएंगी। यह तो थी युवाओं की राय। हमने अपना सवाल 65 साल की प्रभावती देवी से पूछा कि क्या वह वोट डालने जाएंगी? अब तक उत्साह से वोट डालती आ रहीं प्रभावती देवी ने साफ तौर से मना कर दिया। कहा कि आज की परिस्थितियों में जब हमारा घर से निकलना मुश्किल है, ऐसे में हमें नहीं लगता कि हमारे बच्चे हमें वोट डालने जाने देंगे। कुछ ऐसी ही राय ब्यूटी पार्लर चला रहीं मेनका भी रखती हैं। कहती हैं कि ना तो मैं घर से निकल रही हूं और ना महिलाएं ही पार्लर आ रही हैं। ऐसे में वोट डालने जाने की बात बेहद मुश्किल लगती है। खुद को मना भी लूं तो परिवार को कैसे समझाऊंगी। बिहार में महिला और पुरुष वोटरों की संख्या में है 40 लाख 14 हजार 432 का अंतर बिहार में कुल 7 करोड़ 6 लाख 3778 वोटर हैं। पुरुष और महिला वोटर्स की संख्या में 40 लाख 14432 का अंतर है। राज्य के प्रमुख जिलों में पुरुषों की तुलना में अगर महिला वोटरों की संख्या को देखें तो प्रति 1000 में सबसे अधिक महिला वोटर्स गोपालगंज में हैं। यहां इनकी संख्या 992 है। वहीं, सबसे कम महिला वोटर्स मुंगेर में हैं, जहां इनकी संख्या प्रति 1000 पुरुषों पर 848 है। पटना की बात करें तो यहां प्रति हजार पुरुष वोटर्स पर 905 महिला वोटर्स हैं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Whatever the Election Commission is ready for Bihar, parties, leaders should say, but half the population is confused about whether to vote or see the safety of the family. https://ift.tt/3kTzOF8 Dainik Bhaskar बिहार कितना तैयार; पार्टियां, नेता जो कहें, लेकिन आधी आबादी उलझन में है कि वोट डालने जाएं या परिवार की सुरक्षा देखें
चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ और साथ ही बिहार में चुनावी सरगर्मी तेज हो गई। सभी पार्टियां अपनी तरफ से लुभावने दावों के दौर में प्रवेश कर चुकी हैं। लेकिन, बिहार की आधी आबादी यानी महिला वोटर्स क्या सोच रही है, यह एक बड़ा सवाल है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां पुरुषों की तुलना में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत ज्यादा होता है।
इस आधार पर यह कह सकते हैं कि बिहार में सरकार की लगाम आधी आबादी के हाथों में आ चुकी है। महिलाओं ने लगातार हर चुनाव में, बार-बार यह साबित किया है कि उनका वोट पार्टियों की जीत या हार में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
यही वजह रही कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी सरकार के फैसलों में बालिका शिक्षा से लेकर महिलाओं को पंचायत चुनाव में आरक्षण देने जैसी पहल की, जिसका फायदा भी उन्हें मिलता रहा। लेकिन, इस बार बहुत कुछ बदला हुआ है। आधी आबादी की ओर से उठते सवाल यह सोचने को मजबूर कर रहे हैं कि क्या वाकई इस बार सब कुछ पहले जैसा ही रहेगा या कि कुछ बदला-बदला सा दिखेगा!
यह सवाल इसलिए भी कि इस बार बिहार चुनाव सामान्य परिस्थितियों में नहीं बल्कि कोरोना के भय के बीच हो रहा है। राजनीतिक पार्टियों में भी इस बात को लेकर आशंका है कि क्या इस बार भी वोटर हमेशा की तरह घर से बाहर निकलेंगे या नहीं। इस लिहाज से महिलाओं की वोटिंग का मसला और गंभीर हो जाता है।
इन दिनों महिलाएं आमतौर पर वैसे भी घर से कम ही निकल रही हैं। उन्हें कोरोना का डर है कि कहीं परिवार के अन्य सदस्यों, खासकर बच्चों में संक्रमण की कैरियर न बन जाएं। उनकी चिंता गैरवाजिब भी नहीं है।
महिलाओं पर खुद के साथ अपने बच्चों ही नहीं, घर के बड़े-बुजुर्गों की देखभाल की दोहरी जिम्मेदारी भी होती है। मौजूदा दौर में तो कोरोना संक्रमण के भय ने उन्हें चौतरफा जिम्मेदारी के एक नए अहसास में घेर दिया है।
कामकाज के कारण मजबूरी में पुरुष तो कोरोना जनित विपरीत हालात में भी घर से बाहर काम करने को निकल रहे हैं, लेकिन वर्किंग महिलाओं को छोड़कर ज्यादातर महिलाएं घरों से कम ही निकल रही हैं। वर्किंग महिलाएं भी सुरक्षा कारणों से वर्क फ्रॉम होम ही ज्यादा पसंद कर रही हैं।
हमने जानी महिलाओं से उनकी राय
अपने ऐसे ही कुछ सवाल लेकर हम सीधे महिलाओं तक पहुंचे। सबसे पहले हमारी मुलाकात महिला उद्यमी उषा झा से हुई। वोट डालने जाएंगी या नहीं? उनका सीधा जवाब था यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। मतदान केंद्रों पर कोरोना से बचाव को लेकर की गई तैयारियों से संतुष्ट हुई तभी वोट डालने जाऊंगी।
लेकिन, उन्होंने सवाल भी किया- क्या पोलिंग बूथ कि तैयारियां मात्र ही कोरोना से बचाने को पर्याप्त हैं? कहा- अगर वोट नहीं डाल पाई तो इस बात का दुख जरूर होगा, लेकिन इस समय सबसे ज्यादा जरूरी स्वस्थ और सुरक्षित रहना है। चुनाव थोड़े और दिनों बाद होता तो अच्छा होता।
हमारी मुलाकात इंदु और अमृता से भी हुई। दोनों उषा झा के यहां ही काम करती हैं। उनकी राय भी ज्यादा अलग नहीं है। कहती हैं काम पर आना इतना मुश्किल हो गया है कि वोट डालने जाने की सोच तो भी नहीं सकते। परिवार चलाने के लिए काम करना जरूरी है इसलिए निकल रहे हैं, लेकिन वोट डालने के बारे में सोचेंगे। उनका इशारा आसपास के दबाव पर भी है।
प्रतिभा सिंह गृहिणी और ब्लॉगर हैं। कहती हैं कि मैं तो वोट डालने जरूर जाऊंगी। सारे काम तो हो ही रहे हैं, फिर इस काम को क्यों छोड़ा जाए? यह भी जरूरी है, हां थोड़ी मुश्किल जरूर है, लेकिन वोट डालने जाऊंगी।
मेडिकल की छात्रा साक्षी की भी यही राय है। सामाजिक कार्यकर्ता सरिता सजल तो वोट डालने को लेकर पूरे जोश में दिखती हैं। कहती हैं, मुश्किल है लेकिन वोट डालने जरूर जाऊंगी। अपनी सुरक्षा का पूरा ख्याल रखूंगी। हालांकि, कोरोना से पैदा हुए डर का असर सब पर बराबर है।
यह तो थी युवाओं की राय। हमने अपना सवाल 65 साल की प्रभावती देवी से पूछा कि क्या वह वोट डालने जाएंगी? अब तक उत्साह से वोट डालती आ रहीं प्रभावती देवी ने साफ तौर से मना कर दिया। कहा कि आज की परिस्थितियों में जब हमारा घर से निकलना मुश्किल है, ऐसे में हमें नहीं लगता कि हमारे बच्चे हमें वोट डालने जाने देंगे।
कुछ ऐसी ही राय ब्यूटी पार्लर चला रहीं मेनका भी रखती हैं। कहती हैं कि ना तो मैं घर से निकल रही हूं और ना महिलाएं ही पार्लर आ रही हैं। ऐसे में वोट डालने जाने की बात बेहद मुश्किल लगती है। खुद को मना भी लूं तो परिवार को कैसे समझाऊंगी।
बिहार में महिला और पुरुष वोटरों की संख्या में है 40 लाख 14 हजार 432 का अंतर
बिहार में कुल 7 करोड़ 6 लाख 3778 वोटर हैं। पुरुष और महिला वोटर्स की संख्या में 40 लाख 14432 का अंतर है। राज्य के प्रमुख जिलों में पुरुषों की तुलना में अगर महिला वोटरों की संख्या को देखें तो प्रति 1000 में सबसे अधिक महिला वोटर्स गोपालगंज में हैं। यहां इनकी संख्या 992 है।
वहीं, सबसे कम महिला वोटर्स मुंगेर में हैं, जहां इनकी संख्या प्रति 1000 पुरुषों पर 848 है। पटना की बात करें तो यहां प्रति हजार पुरुष वोटर्स पर 905 महिला वोटर्स हैं।
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