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चार साल पहले भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। यह पहला मौका था जब हमने दुश्मन पर नियंत्रण रेखा के पार जाकर हमला किया था। तब क्यों, उससे पहले क्यों नहीं? जबकि पाकिस्तान तो नियंत्रण रेखा को पार कर कई दशकों से हम पर हमला करता आ रहा है। इसकी शुरुआत हुई थी उसी साल 18 सितंबर को। जब आतंकवादियों ने कश्मीर के उड़ी में आर्मी कैम्प पर हमला किया और हमने अपने 18 जवानों को खो दिया। शायद शुरुआत तो और पहले हो गई थी, जनवरी में जब आतंकियों ने पठानकोट के एयरफोर्स बेस पर हमला किया था, जिसमें जान और माल दोनों का नुकसान हुआ था। फरवरी में आतंकियों ने श्रीनगर के बाहरी इलाके में छह मंजिला इमारत पर कब्जा कर 66 लोगों को बंधक बना लिया, देश में बंधक बनाने की शायद सबसे बड़ी घटना थी वो। सीमा पार से पाकिस्तान ऐसी कई बड़ी आतंकी वारदातों को अंजाम देता आया है। आतंकियों को भेजने में कम खर्च था, ओछे हमले की घटनाएं, सैनिकों के शवों के साथ छेड़छाड़ और उस पर इंकार की राजनीति। यह कहना कि इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं, ये तो कश्मीरी आतंकियों की कारस्तानी है। उलट इसके हम कभी ये हथकंडे नहीं अपना सके। यही वजह रही की भारतीय सेना और ज्यादा रक्षात्मक बनती गई। हम जानते हैं कि जो शुरुआत करता है वो ज्यादा नुकसान पहुंचा पाता है। और पाकिस्तान जब आतंकी हमले करता तो अपने सैनिकों की जिंदगी को भी दांव पर नहीं लगाना पड़ता। वो उनके लिए कम खर्च में ज्यादा मुनाफे वाला सौदा बन जाता है। इसलिए उड़ी हमला आखरी कील साबित हुआ। मेरे लिए काला रविवार था वो, बतौर कोर कमांडर मैंने 18 जवानों को खोया था। उस आग को जलते देखना, उस जगह जाकर, उनके शवों को आखिरी सलामी देना, लेकिन वो दिन था प्रण लेने का था। उस दिन जब रक्षामंत्री और सेना प्रमुख एक ही दिन में मेरे दफ्तर में थे। वो दिन जब पूरे देश में उबाल था, नेता बौखलाए हुए थे, और वो दिन जब हर जवान बदला चाहता था, अपने साथी की मौत का बदला। रक्षामंत्री स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर और सेना प्रमुख के साथ मेरे दफ्तर में होने का ये फायदा हुआ कि तीन घंटे में हमें आतंकियों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की इजाजत मिल गई, ताकि पाकिस्तान को उपयुक्त सबक सिखाया जा सके। देश का नेतृत्व मजबूत था, इसलिए पाकिस्तान को वैसा ही दर्द देने का फैसला लिया गया। हम जंग को अब उनके इलाके में ले जाने को राजी थे, आतंकियों पर नियंत्रण रेखा के पार जाकर हमला करने को। कुछ ऐसा जो इससे पहले कभी नही हुआ था, जो हमारे देश ने पहले कभी नहीं किया था। राजनीतिक और राजनयिक पावर ने एक साथ आकर, यूएन जनरल एसेंबली में और उससे बाहर भी। दस दिन बाद एक ऑपरेशन लॉन्च किया गया। अलग-अलग जगहों से। जैसा प्लान किया था वैसा ही हुआ। अगली सुबह सेना के डीजी मिलिट्री ऑपरेशन्स ने पाकिस्तानी डीजी मिलिट्री ऑपरेशन्स को फोन किया और बताया कि हमने किया। हमने किया, क्योंकि आपने उड़ी में आतंकवादी हमला किया। पाकिस्तान नकारता रहा, क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया दें, और अपने आवाम को क्या जवाब दें, लेकिन भारत ने नई लाल लकीर खींच दी थी। इसी प्रकार के तजुर्बे के साथ, पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक को पाकिस्तान के बिल्कुल अंदर लॉन्च किया गया। इलाके से एकदम अलग, हमें याद करना होगा कि हम चीन के खिलाफ भूटान के हक में खड़े रहे, इंडिया-चाइना-भूटान ट्राई जंक्शन पर, डोकलाम प्लैट्यू पर। चीन को अपना एडवांस रोकना पड़ा था। ये कुछ बड़े ऑपरेशन हैं जिसने सिक्योरिटी के नए आयाम दिए, जहां भारत ने मजबूत फैसले लेने शुरू किए, जब भी जरूरत पड़ी। इस साल भारत चीन के बीच लद्दाख में कुछ जगहों पर संघर्ष हुए। जिनमें से कुछ बाकियों से ज्यादा युद्धकारी थे। बातचीत चल ही रही थी जब गलवान टर्निंग पाॅइंट बन गया। जहां हमने चीन की टेक्नीक का ऐसा रूप देखा जिसकी कल्पना भी नहीं की थी। भारतीय जवानों ने भी हर तरीका इस्तेमाल किया, ट्रेनिंग के दायरे से परे जाकर। इसके बावजूद वीरता और मजबूती के बूते उन्होंने दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया। ऐसा करते हमने 20 वीरों को खोया है, जिनमें कर्नल संतोष बाबू का नेतृत्व और सर्वोच्च बलिदान भी शामिल है। इसके कुछ महीनों बाद हमारे जवानों ने पैन्गॉन्ग लेक के दक्षिण में कुछ चोटियों पर कब्जा कर लिया। इससे चीन बौखला गया, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि भारत यूं पहले कदम बढ़ाएगा। इसने चीन की ताकत को युद्ध क्षेत्र में और बातचीत के बीच कमजोर कर दिया। ये नया भारत है। ये बदला हुआ भारत है, ज्यादा नया और मजबूत। भारत ने आखिरकार नर्म देश का तमगा हटा दिया। ये तो बस मिलिट्री एक्शन की बात हुई, लेकिन राजनीतिक, राजनयिक और आर्थिक स्तर पर भी मजबूत कदम उठाए गए, जो देश के लिए फायदेमंद साबित हुए। लेकिन इस सबकी शुरुआत सर्जिकल स्ट्राइक से ही हुई थी, चार साल पहले। हमारे जवानों की वीरता ने न सिर्फ उड़ी में खोई जान का बदला लिया, बल्कि बालाकोट और गलवान जैसे कदम उठाने की राह भी खोली।आज मेरा सलाम उड़ी में जान गंवाने वाले शहीदों के नाम और सैल्यूट उन वीरों को जिन्होंने सीमा पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। सेना से जुड़ी ये खबरें भी आप पढ़ सकते हैं... 1. एक्सपर्ट कमेंट / चीन को लेकर भारत के पास ये 4 मिलिट्री ऑप्शन हैं, क्योंकि सेना की तैयारी तो सिर्फ मिलिट्री ऑप्शन की ही होती है 2.एक्सपर्ट एनालिसिस / बॉर्डर मीटिंग में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल के सामने चीन से मेजर जनरल आने पर देश में गुस्सा, लेकिन यह बात रैंक नहीं, रोल की है 3. एनालिसिस / हमारे देश में लोकतंत्र है इसलिए हम बता देते हैं, लेकिन चीन कभी नहीं बताएगा कि उसके कितने सैनिक मारे गए हैं आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Surgical strike day: Four years on Remembering the surgical strike, How army soldiers destroyed terror launchpads https://ift.tt/2Gf9Qgq Dainik Bhaskar रक्षामंत्री पर्रिकर और सेना प्रमुख मेरे साथ दफ्तर में थे, तीन घंटे में हमें सर्जिकल स्ट्राइक करने की इजाजत मिल गई

चार साल पहले भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। यह पहला मौका था जब हमने दुश्मन पर नियंत्रण रेखा के पार जाकर हमला किया था। तब...
- September 29, 2020
चार साल पहले भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। यह पहला मौका था जब हमने दुश्मन पर नियंत्रण रेखा के पार जाकर हमला किया था। तब क्यों, उससे पहले क्यों नहीं? जबकि पाकिस्तान तो नियंत्रण रेखा को पार कर कई दशकों से हम पर हमला करता आ रहा है। इसकी शुरुआत हुई थी उसी साल 18 सितंबर को। जब आतंकवादियों ने कश्मीर के उड़ी में आर्मी कैम्प पर हमला किया और हमने अपने 18 जवानों को खो दिया। शायद शुरुआत तो और पहले हो गई थी, जनवरी में जब आतंकियों ने पठानकोट के एयरफोर्स बेस पर हमला किया था, जिसमें जान और माल दोनों का नुकसान हुआ था। फरवरी में आतंकियों ने श्रीनगर के बाहरी इलाके में छह मंजिला इमारत पर कब्जा कर 66 लोगों को बंधक बना लिया, देश में बंधक बनाने की शायद सबसे बड़ी घटना थी वो। सीमा पार से पाकिस्तान ऐसी कई बड़ी आतंकी वारदातों को अंजाम देता आया है। आतंकियों को भेजने में कम खर्च था, ओछे हमले की घटनाएं, सैनिकों के शवों के साथ छेड़छाड़ और उस पर इंकार की राजनीति। यह कहना कि इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं, ये तो कश्मीरी आतंकियों की कारस्तानी है। उलट इसके हम कभी ये हथकंडे नहीं अपना सके। यही वजह रही की भारतीय सेना और ज्यादा रक्षात्मक बनती गई। हम जानते हैं कि जो शुरुआत करता है वो ज्यादा नुकसान पहुंचा पाता है। और पाकिस्तान जब आतंकी हमले करता तो अपने सैनिकों की जिंदगी को भी दांव पर नहीं लगाना पड़ता। वो उनके लिए कम खर्च में ज्यादा मुनाफे वाला सौदा बन जाता है। इसलिए उड़ी हमला आखरी कील साबित हुआ। मेरे लिए काला रविवार था वो, बतौर कोर कमांडर मैंने 18 जवानों को खोया था। उस आग को जलते देखना, उस जगह जाकर, उनके शवों को आखिरी सलामी देना, लेकिन वो दिन था प्रण लेने का था। उस दिन जब रक्षामंत्री और सेना प्रमुख एक ही दिन में मेरे दफ्तर में थे। वो दिन जब पूरे देश में उबाल था, नेता बौखलाए हुए थे, और वो दिन जब हर जवान बदला चाहता था, अपने साथी की मौत का बदला। रक्षामंत्री स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर और सेना प्रमुख के साथ मेरे दफ्तर में होने का ये फायदा हुआ कि तीन घंटे में हमें आतंकियों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की इजाजत मिल गई, ताकि पाकिस्तान को उपयुक्त सबक सिखाया जा सके। देश का नेतृत्व मजबूत था, इसलिए पाकिस्तान को वैसा ही दर्द देने का फैसला लिया गया। हम जंग को अब उनके इलाके में ले जाने को राजी थे, आतंकियों पर नियंत्रण रेखा के पार जाकर हमला करने को। कुछ ऐसा जो इससे पहले कभी नही हुआ था, जो हमारे देश ने पहले कभी नहीं किया था। राजनीतिक और राजनयिक पावर ने एक साथ आकर, यूएन जनरल एसेंबली में और उससे बाहर भी। दस दिन बाद एक ऑपरेशन लॉन्च किया गया। अलग-अलग जगहों से। जैसा प्लान किया था वैसा ही हुआ। अगली सुबह सेना के डीजी मिलिट्री ऑपरेशन्स ने पाकिस्तानी डीजी मिलिट्री ऑपरेशन्स को फोन किया और बताया कि हमने किया। हमने किया, क्योंकि आपने उड़ी में आतंकवादी हमला किया। पाकिस्तान नकारता रहा, क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया दें, और अपने आवाम को क्या जवाब दें, लेकिन भारत ने नई लाल लकीर खींच दी थी। इसी प्रकार के तजुर्बे के साथ, पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक को पाकिस्तान के बिल्कुल अंदर लॉन्च किया गया। इलाके से एकदम अलग, हमें याद करना होगा कि हम चीन के खिलाफ भूटान के हक में खड़े रहे, इंडिया-चाइना-भूटान ट्राई जंक्शन पर, डोकलाम प्लैट्यू पर। चीन को अपना एडवांस रोकना पड़ा था। ये कुछ बड़े ऑपरेशन हैं जिसने सिक्योरिटी के नए आयाम दिए, जहां भारत ने मजबूत फैसले लेने शुरू किए, जब भी जरूरत पड़ी। इस साल भारत चीन के बीच लद्दाख में कुछ जगहों पर संघर्ष हुए। जिनमें से कुछ बाकियों से ज्यादा युद्धकारी थे। बातचीत चल ही रही थी जब गलवान टर्निंग पाॅइंट बन गया। जहां हमने चीन की टेक्नीक का ऐसा रूप देखा जिसकी कल्पना भी नहीं की थी। भारतीय जवानों ने भी हर तरीका इस्तेमाल किया, ट्रेनिंग के दायरे से परे जाकर। इसके बावजूद वीरता और मजबूती के बूते उन्होंने दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया। ऐसा करते हमने 20 वीरों को खोया है, जिनमें कर्नल संतोष बाबू का नेतृत्व और सर्वोच्च बलिदान भी शामिल है। इसके कुछ महीनों बाद हमारे जवानों ने पैन्गॉन्ग लेक के दक्षिण में कुछ चोटियों पर कब्जा कर लिया। इससे चीन बौखला गया, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि भारत यूं पहले कदम बढ़ाएगा। इसने चीन की ताकत को युद्ध क्षेत्र में और बातचीत के बीच कमजोर कर दिया। ये नया भारत है। ये बदला हुआ भारत है, ज्यादा नया और मजबूत। भारत ने आखिरकार नर्म देश का तमगा हटा दिया। ये तो बस मिलिट्री एक्शन की बात हुई, लेकिन राजनीतिक, राजनयिक और आर्थिक स्तर पर भी मजबूत कदम उठाए गए, जो देश के लिए फायदेमंद साबित हुए। लेकिन इस सबकी शुरुआत सर्जिकल स्ट्राइक से ही हुई थी, चार साल पहले। हमारे जवानों की वीरता ने न सिर्फ उड़ी में खोई जान का बदला लिया, बल्कि बालाकोट और गलवान जैसे कदम उठाने की राह भी खोली।आज मेरा सलाम उड़ी में जान गंवाने वाले शहीदों के नाम और सैल्यूट उन वीरों को जिन्होंने सीमा पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। सेना से जुड़ी ये खबरें भी आप पढ़ सकते हैं... 1. एक्सपर्ट कमेंट / चीन को लेकर भारत के पास ये 4 मिलिट्री ऑप्शन हैं, क्योंकि सेना की तैयारी तो सिर्फ मिलिट्री ऑप्शन की ही होती है 2.एक्सपर्ट एनालिसिस / बॉर्डर मीटिंग में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल के सामने चीन से मेजर जनरल आने पर देश में गुस्सा, लेकिन यह बात रैंक नहीं, रोल की है 3. एनालिसिस / हमारे देश में लोकतंत्र है इसलिए हम बता देते हैं, लेकिन चीन कभी नहीं बताएगा कि उसके कितने सैनिक मारे गए हैं आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Surgical strike day: Four years on Remembering the surgical strike, How army soldiers destroyed terror launchpads https://ift.tt/2Gf9Qgq Dainik Bhaskar रक्षामंत्री पर्रिकर और सेना प्रमुख मेरे साथ दफ्तर में थे, तीन घंटे में हमें सर्जिकल स्ट्राइक करने की इजाजत मिल गई 

चार साल पहले भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। यह पहला मौका था जब हमने दुश्मन पर नियंत्रण रेखा के पार जाकर हमला किया था। तब क्यों, उससे पहले क्यों नहीं? जबकि पाकिस्तान तो नियंत्रण रेखा को पार कर कई दशकों से हम पर हमला करता आ रहा है। इसकी शुरुआत हुई थी उसी साल 18 सितंबर को। जब आतंकवादियों ने कश्मीर के उड़ी में आर्मी कैम्प पर हमला किया और हमने अपने 18 जवानों को खो दिया। शायद शुरुआत तो और पहले हो गई थी, जनवरी में जब आतंकियों ने पठानकोट के एयरफोर्स बेस पर हमला किया था, जिसमें जान और माल दोनों का नुकसान हुआ था।

फरवरी में आतंकियों ने श्रीनगर के बाहरी इलाके में छह मंजिला इमारत पर कब्जा कर 66 लोगों को बंधक बना लिया, देश में बंधक बनाने की शायद सबसे बड़ी घटना थी वो। सीमा पार से पाकिस्तान ऐसी कई बड़ी आतंकी वारदातों को अंजाम देता आया है। आतंकियों को भेजने में कम खर्च था, ओछे हमले की घटनाएं, सैनिकों के शवों के साथ छेड़छाड़ और उस पर इंकार की राजनीति। यह कहना कि इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं, ये तो कश्मीरी आतंकियों की कारस्तानी है। उलट इसके हम कभी ये हथकंडे नहीं अपना सके। यही वजह रही की भारतीय सेना और ज्यादा रक्षात्मक बनती गई।

हम जानते हैं कि जो शुरुआत करता है वो ज्यादा नुकसान पहुंचा पाता है। और पाकिस्तान जब आतंकी हमले करता तो अपने सैनिकों की जिंदगी को भी दांव पर नहीं लगाना पड़ता। वो उनके लिए कम खर्च में ज्यादा मुनाफे वाला सौदा बन जाता है। इसलिए उड़ी हमला आखरी कील साबित हुआ। मेरे लिए काला रविवार था वो, बतौर कोर कमांडर मैंने 18 जवानों को खोया था। उस आग को जलते देखना, उस जगह जाकर, उनके शवों को आखिरी सलामी देना, लेकिन वो दिन था प्रण लेने का था। उस दिन जब रक्षामंत्री और सेना प्रमुख एक ही दिन में मेरे दफ्तर में थे। वो दिन जब पूरे देश में उबाल था, नेता बौखलाए हुए थे, और वो दिन जब हर जवान बदला चाहता था, अपने साथी की मौत का बदला।

रक्षामंत्री स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर और सेना प्रमुख के साथ मेरे दफ्तर में होने का ये फायदा हुआ कि तीन घंटे में हमें आतंकियों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की इजाजत मिल गई, ताकि पाकिस्तान को उपयुक्त सबक सिखाया जा सके। देश का नेतृत्व मजबूत था, इसलिए पाकिस्तान को वैसा ही दर्द देने का फैसला लिया गया। हम जंग को अब उनके इलाके में ले जाने को राजी थे, आतंकियों पर नियंत्रण रेखा के पार जाकर हमला करने को। कुछ ऐसा जो इससे पहले कभी नही हुआ था, जो हमारे देश ने पहले कभी नहीं किया था। राजनीतिक और राजनयिक पावर ने एक साथ आकर, यूएन जनरल एसेंबली में और उससे बाहर भी। दस दिन बाद एक ऑपरेशन लॉन्च किया गया। अलग-अलग जगहों से।

जैसा प्लान किया था वैसा ही हुआ। अगली सुबह सेना के डीजी मिलिट्री ऑपरेशन्स ने पाकिस्तानी डीजी मिलिट्री ऑपरेशन्स को फोन किया और बताया कि हमने किया। हमने किया, क्योंकि आपने उड़ी में आतंकवादी हमला किया। पाकिस्तान नकारता रहा, क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया दें, और अपने आवाम को क्या जवाब दें, लेकिन भारत ने नई लाल लकीर खींच दी थी। इसी प्रकार के तजुर्बे के साथ, पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक को पाकिस्तान के बिल्कुल अंदर लॉन्च किया गया।

इलाके से एकदम अलग, हमें याद करना होगा कि हम चीन के खिलाफ भूटान के हक में खड़े रहे, इंडिया-चाइना-भूटान ट्राई जंक्शन पर, डोकलाम प्लैट्यू पर। चीन को अपना एडवांस रोकना पड़ा था। ये कुछ बड़े ऑपरेशन हैं जिसने सिक्योरिटी के नए आयाम दिए, जहां भारत ने मजबूत फैसले लेने शुरू किए, जब भी जरूरत पड़ी।

इस साल भारत चीन के बीच लद्दाख में कुछ जगहों पर संघर्ष हुए। जिनमें से कुछ बाकियों से ज्यादा युद्धकारी थे। बातचीत चल ही रही थी जब गलवान टर्निंग पाॅइंट बन गया। जहां हमने चीन की टेक्नीक का ऐसा रूप देखा जिसकी कल्पना भी नहीं की थी। भारतीय जवानों ने भी हर तरीका इस्तेमाल किया, ट्रेनिंग के दायरे से परे जाकर। इसके बावजूद वीरता और मजबूती के बूते उन्होंने दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया। ऐसा करते हमने 20 वीरों को खोया है, जिनमें कर्नल संतोष बाबू का नेतृत्व और सर्वोच्च बलिदान भी शामिल है।

इसके कुछ महीनों बाद हमारे जवानों ने पैन्गॉन्ग लेक के दक्षिण में कुछ चोटियों पर कब्जा कर लिया। इससे चीन बौखला गया, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि भारत यूं पहले कदम बढ़ाएगा। इसने चीन की ताकत को युद्ध क्षेत्र में और बातचीत के बीच कमजोर कर दिया। ये नया भारत है। ये बदला हुआ भारत है, ज्यादा नया और मजबूत। भारत ने आखिरकार नर्म देश का तमगा हटा दिया।

ये तो बस मिलिट्री एक्शन की बात हुई, लेकिन राजनीतिक, राजनयिक और आर्थिक स्तर पर भी मजबूत कदम उठाए गए, जो देश के लिए फायदेमंद साबित हुए। लेकिन इस सबकी शुरुआत सर्जिकल स्ट्राइक से ही हुई थी, चार साल पहले। हमारे जवानों की वीरता ने न सिर्फ उड़ी में खोई जान का बदला लिया, बल्कि बालाकोट और गलवान जैसे कदम उठाने की राह भी खोली।आज मेरा सलाम उड़ी में जान गंवाने वाले शहीदों के नाम और सैल्यूट उन वीरों को जिन्होंने सीमा पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया।

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1. एक्सपर्ट कमेंट / चीन को लेकर भारत के पास ये 4 मिलिट्री ऑप्शन हैं, क्योंकि सेना की तैयारी तो सिर्फ मिलिट्री ऑप्शन की ही होती है

2.एक्सपर्ट एनालिसिस / बॉर्डर मीटिंग में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल के सामने चीन से मेजर जनरल आने पर देश में गुस्सा, लेकिन यह बात रैंक नहीं, रोल की है

3. एनालिसिस / हमारे देश में लोकतंत्र है इसलिए हम बता देते हैं, लेकिन चीन कभी नहीं बताएगा कि उसके कितने सैनिक मारे गए हैं

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https://ift.tt/2Gf9Qgq Dainik Bhaskar रक्षामंत्री पर्रिकर और सेना प्रमुख मेरे साथ दफ्तर में थे, तीन घंटे में हमें सर्जिकल स्ट्राइक करने की इजाजत मिल गई Reviewed by Manish Pethev on September 29, 2020 Rating: 5

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की नई बनी इमारत के बाहर लोगों की भीड़ है। वहीं एक कोने में एक बुजुर्ग उदास बैठे हैं। उनके इर्द-गिर्द लोग जुटे हैं। कुछ को वो जानते हैं, कुछ को नहीं। कुछ उन्हें सांत्वना दे रहे हैं, कुछ ये भरोसा की उनकी बेटी जिंदगी की जंग जीत जाएगी। दो सप्ताह पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में गैंगरेप का शिकार हुई उनकी बेटी अस्पताल में वेंटीलेटर पर है। उसकी जीभ काट दी गई थी। रीढ़ की हड्डी टूटी हुई है। जिस्म पर कई गहरे जख्म हैं। दुपट्टे से उसका गला घोटा गया और उसे मरा जानकर छोड़ा गया। उसके पास अभी कोई नहीं है। उसका छोटा भाई जो पिछले दो सप्ताह से उसकी देखभाल कर रहा है, दिल्ली पुलिस के जवानों के साथ गया है, जो ये देखने आए थे कि परिवार को अस्पताल में सुरक्षा मिली है या नहीं। पिता दीवार से कमर टिकाए गुमसुम बैठे हैं। लोग उनसे क्या कह रहे हैं इसका उन्हें बहुत ज्यादा होश नहीं है। मैं उनसे बात करने की कोशिश करती हूं तो वो कहते हैं कि मैं बहुत बोल नहीं पाउंगा। मैं उनके पास ही बैठ जाती हूं। कुछ देर बाद वो बोलना शुरू करते हैं। बेटी का नाम आते ही फफक पड़ते हैं। चेहरा मास्क से ढका था, आंखों में दर्द और डर साफ नजर आ रहा था। वो कहते हैं, "ये लोग गांव के ठाकुर हैं। ये लोग मेरी बेटी से दरिंदगी करने से पहले मेरे पिता से भी मारपीट कर चुके हैं। उनकी उंगलियां तक काट दी थी। इनकी विचारधारा पहले से ऐसी ही है। ये हमें डराते-धमकाते रहते थे, हम हमेशा बर्दाश्त करते और सोचते कि चलो जाने दो। अब इन्होंने हमारी बेटी के साथ ऐसा अत्याचार किया है।" हाथरस में गैंगरेप की शिकार दलित लड़की की हालत नाजुक है। उसे आईसीयू में शिफ्ट किया गया है। वो बोलते-बोलते अचानक खामोश हो जाते हैं। खौफ उनके चेहरे पर तैरने लगता है। दलित संगठनों से जुड़े लोग उन्हें भरोसा देने की कोशिश करते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को अब कुछ नहीं होगा। लेकिन उनका डर कम नहीं होता। इसी बीच उनका सबसे छोटा बेटा हांफता हुआ आता है। उसका फोन दोपहर से ही बंद है। बहन की देखभाल, कागजों की लिखत-पड़त और अस्पताल में अलग-अलग जगहों के चक्कर काटने में उसे इतना भी समय नहीं मिला है कि कुछ देर रुककर अपना फोन ही चार्ज कर सके। उसके आते ही कई फोन बात करने के लिए उसे पकड़ा दिए जाते हैं। कुछ पारिवारिक रिश्तेदारों के हैं, कुछ पत्रकारों के, सभी बस वेंटिलेटर पर भर्ती उसकी बहन का हाल जानना चाहते हैं। वो बताता है, "मैं 12 दिनों से घर नहीं गया हूं। बहन बोल नहीं पा रही है। बस वो आंखों से पहचान रही है। कभी-कभी इशारा करती है। उसकी हालत देखी नहीं जा रही है। मैं उसकी आवाज सुनने को बेचैन हूं। वो मौत से लड़ रही है।" वो कहता है, "मैं नोएडा में रहकर काम करता था। फोन करता था तो बहन से बहुत बात नहीं हो पाती थी। वो घर के काम-धंधों में लगी रहती थी। अभी मैं कोशिश कर रहा हूं कि बहन से दो बातें हो जाएं तो वो बोल ही नहीं पा रही है क्योंकि उसकी जीभ कटी हुई है।" 13 दिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने के बाद उसे एंबुलेंस के जरिए सोमवार को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया है। 14 सितंबर को हुआ क्या था? परिवार के मुताबिक, 14 सितंबर को सुबह-सुबह पीड़िता, उसका बड़ा भाई और मां गांव के जंगल में घास काटने गए थे। जब घास की एक गठरी बंध गई तो बड़ा भाई उसे लेकर घर चला आया। मां और बेटी खेत में अकेले रह गए। मां आगे घास काट रही थी। बेटी पीछे कुछ दूर उसे इकट्ठा कर रही थी। इसी दौरान चारों अभियुक्तों ने पीड़िता के गले में पड़े दुपट्टे से उसे बाजरे के खेत में खींच कर उसका गैंगरेप किया। उस दिन की घटना के बारे में पीड़िता का भाई बताता है, "मां ने बहन को आवाज़ें दी तो उसका कोई जवाब नहीं आया। पहले उन्हें पानी देने के लिए बनाई गई मेढ़ में उसके चप्पल दिखे, फिर बाजरे के टूटे पौधे दिखे तो वो खेत में अंदर गईं जहां बीस मीटर भीतर वो बहुत ही बुरी हालत में बेहोश पड़ी हुई थी। मां चिल्लाई तो कुछ बच्चे आए, उन्होंने उन्हें तुरंत लोगों को बुलाने और पानी लाने भेजा। बच्चे मेढ़ में भरा पानी पॉलीथीन में भरकर लाए। वो उसके मुंह पर डाला लेकिन उसे होश नहीं आया।" परिवार के मुताबिक14 सितंबर की घटना है ये जब वे लोग खेत में घास काटने गए थे। वो बताते हैं, "मेरी मां और भाई उसे तुरंत थाने गए और तहरीर दी। तब तक ये नहीं पता था कि किसने हमला किया है। कितने लोग थे और उसके साथ क्या हुआ है।" पीड़िता के पिता बताते हैं, 'वो दरिंदे खेत के चक्कर लगा रहे थे। लेकिन मेरी बेटी और पत्नी उनके इरादे को भांप नहीं पाए। उन्होंने मेरी बेटी को घात लगाकर शिकार बनाया। उन्हें किसी का डर नहीं था।' पुलिस की भूमिका पर उठ रहे हैं सवाल हाथरस पुलिस ने अब तक इस मामले में संदीप, रामकुमार, लवकुश और रवि नाम के चार अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है। चारों ही तथाकथित उच्च जाति के है। हालांकि दलित संगठनों का आरोप है कि पुलिस ने इस मामले में लीपापोती करने की कोशिश की। पहले सिर्फ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया। एक ही व्यक्ति को अभियुक्त बनाया गया। दस दिनों तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया। जब दलित नेता चंद्रशेखर ने ट्वीट किया और अलीगढ़ जाने का ऐलान किया तब अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया। गैंगरेप की धारा भी बाद में जोड़ी गई। हालांकि पुलिस का कहना है कि परिवार ने जो शिकायत दी थी उसी के आधार पर पहला मुकदमा दर्ज किया गया था और बाद में पीड़िता के बयान के आधार पर गैंगरेप का मुकदमा दर्ज किया गया। पीड़िता को अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। जहां पुलिस 19 सितंबर को उसका बयान लेने के लिए पहुंची थी। यानी घटना के पांच दिन बाद। उस दिन पीड़िता की हालत गंभीर थी और वो अपना बयान दर्ज नहीं करा सकी थी। फिर 21 और 22 सितंबर को सर्किल ऑफिसर और महिला पुलिस कर्मी पीड़िता का बयान लेने पहुंचे थे। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें हाथरस के थाना चंदपा इलाके के गांव में 14 सितंबर को चार दबंग युवकों ने 19 साल की दलित लड़की के साथ बाजरे के खेत में गैंगरेप किया था। https://ift.tt/3cCIwVt Dainik Bhaskar वो वेंटीलेटर पर है, जीभ काट दी थी, इसलिए सिर्फ इशारे से बताती है, रीढ़ की हड्डी टूटी है, चारों उसे मरा समझकर छोड़ गए थे

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की नई बनी इमारत के बाहर लोगों की भीड़ है। वहीं एक कोने में एक बुजुर्ग उदास बैठे हैं। उनके इर्द-गिर्द लोग जुटे हैं...
- September 29, 2020
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की नई बनी इमारत के बाहर लोगों की भीड़ है। वहीं एक कोने में एक बुजुर्ग उदास बैठे हैं। उनके इर्द-गिर्द लोग जुटे हैं। कुछ को वो जानते हैं, कुछ को नहीं। कुछ उन्हें सांत्वना दे रहे हैं, कुछ ये भरोसा की उनकी बेटी जिंदगी की जंग जीत जाएगी। दो सप्ताह पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में गैंगरेप का शिकार हुई उनकी बेटी अस्पताल में वेंटीलेटर पर है। उसकी जीभ काट दी गई थी। रीढ़ की हड्डी टूटी हुई है। जिस्म पर कई गहरे जख्म हैं। दुपट्टे से उसका गला घोटा गया और उसे मरा जानकर छोड़ा गया। उसके पास अभी कोई नहीं है। उसका छोटा भाई जो पिछले दो सप्ताह से उसकी देखभाल कर रहा है, दिल्ली पुलिस के जवानों के साथ गया है, जो ये देखने आए थे कि परिवार को अस्पताल में सुरक्षा मिली है या नहीं। पिता दीवार से कमर टिकाए गुमसुम बैठे हैं। लोग उनसे क्या कह रहे हैं इसका उन्हें बहुत ज्यादा होश नहीं है। मैं उनसे बात करने की कोशिश करती हूं तो वो कहते हैं कि मैं बहुत बोल नहीं पाउंगा। मैं उनके पास ही बैठ जाती हूं। कुछ देर बाद वो बोलना शुरू करते हैं। बेटी का नाम आते ही फफक पड़ते हैं। चेहरा मास्क से ढका था, आंखों में दर्द और डर साफ नजर आ रहा था। वो कहते हैं, "ये लोग गांव के ठाकुर हैं। ये लोग मेरी बेटी से दरिंदगी करने से पहले मेरे पिता से भी मारपीट कर चुके हैं। उनकी उंगलियां तक काट दी थी। इनकी विचारधारा पहले से ऐसी ही है। ये हमें डराते-धमकाते रहते थे, हम हमेशा बर्दाश्त करते और सोचते कि चलो जाने दो। अब इन्होंने हमारी बेटी के साथ ऐसा अत्याचार किया है।" हाथरस में गैंगरेप की शिकार दलित लड़की की हालत नाजुक है। उसे आईसीयू में शिफ्ट किया गया है। वो बोलते-बोलते अचानक खामोश हो जाते हैं। खौफ उनके चेहरे पर तैरने लगता है। दलित संगठनों से जुड़े लोग उन्हें भरोसा देने की कोशिश करते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को अब कुछ नहीं होगा। लेकिन उनका डर कम नहीं होता। इसी बीच उनका सबसे छोटा बेटा हांफता हुआ आता है। उसका फोन दोपहर से ही बंद है। बहन की देखभाल, कागजों की लिखत-पड़त और अस्पताल में अलग-अलग जगहों के चक्कर काटने में उसे इतना भी समय नहीं मिला है कि कुछ देर रुककर अपना फोन ही चार्ज कर सके। उसके आते ही कई फोन बात करने के लिए उसे पकड़ा दिए जाते हैं। कुछ पारिवारिक रिश्तेदारों के हैं, कुछ पत्रकारों के, सभी बस वेंटिलेटर पर भर्ती उसकी बहन का हाल जानना चाहते हैं। वो बताता है, "मैं 12 दिनों से घर नहीं गया हूं। बहन बोल नहीं पा रही है। बस वो आंखों से पहचान रही है। कभी-कभी इशारा करती है। उसकी हालत देखी नहीं जा रही है। मैं उसकी आवाज सुनने को बेचैन हूं। वो मौत से लड़ रही है।" वो कहता है, "मैं नोएडा में रहकर काम करता था। फोन करता था तो बहन से बहुत बात नहीं हो पाती थी। वो घर के काम-धंधों में लगी रहती थी। अभी मैं कोशिश कर रहा हूं कि बहन से दो बातें हो जाएं तो वो बोल ही नहीं पा रही है क्योंकि उसकी जीभ कटी हुई है।" 13 दिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने के बाद उसे एंबुलेंस के जरिए सोमवार को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया है। 14 सितंबर को हुआ क्या था? परिवार के मुताबिक, 14 सितंबर को सुबह-सुबह पीड़िता, उसका बड़ा भाई और मां गांव के जंगल में घास काटने गए थे। जब घास की एक गठरी बंध गई तो बड़ा भाई उसे लेकर घर चला आया। मां और बेटी खेत में अकेले रह गए। मां आगे घास काट रही थी। बेटी पीछे कुछ दूर उसे इकट्ठा कर रही थी। इसी दौरान चारों अभियुक्तों ने पीड़िता के गले में पड़े दुपट्टे से उसे बाजरे के खेत में खींच कर उसका गैंगरेप किया। उस दिन की घटना के बारे में पीड़िता का भाई बताता है, "मां ने बहन को आवाज़ें दी तो उसका कोई जवाब नहीं आया। पहले उन्हें पानी देने के लिए बनाई गई मेढ़ में उसके चप्पल दिखे, फिर बाजरे के टूटे पौधे दिखे तो वो खेत में अंदर गईं जहां बीस मीटर भीतर वो बहुत ही बुरी हालत में बेहोश पड़ी हुई थी। मां चिल्लाई तो कुछ बच्चे आए, उन्होंने उन्हें तुरंत लोगों को बुलाने और पानी लाने भेजा। बच्चे मेढ़ में भरा पानी पॉलीथीन में भरकर लाए। वो उसके मुंह पर डाला लेकिन उसे होश नहीं आया।" परिवार के मुताबिक14 सितंबर की घटना है ये जब वे लोग खेत में घास काटने गए थे। वो बताते हैं, "मेरी मां और भाई उसे तुरंत थाने गए और तहरीर दी। तब तक ये नहीं पता था कि किसने हमला किया है। कितने लोग थे और उसके साथ क्या हुआ है।" पीड़िता के पिता बताते हैं, 'वो दरिंदे खेत के चक्कर लगा रहे थे। लेकिन मेरी बेटी और पत्नी उनके इरादे को भांप नहीं पाए। उन्होंने मेरी बेटी को घात लगाकर शिकार बनाया। उन्हें किसी का डर नहीं था।' पुलिस की भूमिका पर उठ रहे हैं सवाल हाथरस पुलिस ने अब तक इस मामले में संदीप, रामकुमार, लवकुश और रवि नाम के चार अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है। चारों ही तथाकथित उच्च जाति के है। हालांकि दलित संगठनों का आरोप है कि पुलिस ने इस मामले में लीपापोती करने की कोशिश की। पहले सिर्फ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया। एक ही व्यक्ति को अभियुक्त बनाया गया। दस दिनों तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया। जब दलित नेता चंद्रशेखर ने ट्वीट किया और अलीगढ़ जाने का ऐलान किया तब अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया। गैंगरेप की धारा भी बाद में जोड़ी गई। हालांकि पुलिस का कहना है कि परिवार ने जो शिकायत दी थी उसी के आधार पर पहला मुकदमा दर्ज किया गया था और बाद में पीड़िता के बयान के आधार पर गैंगरेप का मुकदमा दर्ज किया गया। पीड़िता को अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। जहां पुलिस 19 सितंबर को उसका बयान लेने के लिए पहुंची थी। यानी घटना के पांच दिन बाद। उस दिन पीड़िता की हालत गंभीर थी और वो अपना बयान दर्ज नहीं करा सकी थी। फिर 21 और 22 सितंबर को सर्किल ऑफिसर और महिला पुलिस कर्मी पीड़िता का बयान लेने पहुंचे थे। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें हाथरस के थाना चंदपा इलाके के गांव में 14 सितंबर को चार दबंग युवकों ने 19 साल की दलित लड़की के साथ बाजरे के खेत में गैंगरेप किया था। https://ift.tt/3cCIwVt Dainik Bhaskar वो वेंटीलेटर पर है, जीभ काट दी थी, इसलिए सिर्फ इशारे से बताती है, रीढ़ की हड्डी टूटी है, चारों उसे मरा समझकर छोड़ गए थे 

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की नई बनी इमारत के बाहर लोगों की भीड़ है। वहीं एक कोने में एक बुजुर्ग उदास बैठे हैं। उनके इर्द-गिर्द लोग जुटे हैं। कुछ को वो जानते हैं, कुछ को नहीं। कुछ उन्हें सांत्वना दे रहे हैं, कुछ ये भरोसा की उनकी बेटी जिंदगी की जंग जीत जाएगी।

दो सप्ताह पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में गैंगरेप का शिकार हुई उनकी बेटी अस्पताल में वेंटीलेटर पर है। उसकी जीभ काट दी गई थी। रीढ़ की हड्डी टूटी हुई है। जिस्म पर कई गहरे जख्म हैं। दुपट्टे से उसका गला घोटा गया और उसे मरा जानकर छोड़ा गया।

उसके पास अभी कोई नहीं है। उसका छोटा भाई जो पिछले दो सप्ताह से उसकी देखभाल कर रहा है, दिल्ली पुलिस के जवानों के साथ गया है, जो ये देखने आए थे कि परिवार को अस्पताल में सुरक्षा मिली है या नहीं। पिता दीवार से कमर टिकाए गुमसुम बैठे हैं। लोग उनसे क्या कह रहे हैं इसका उन्हें बहुत ज्यादा होश नहीं है। मैं उनसे बात करने की कोशिश करती हूं तो वो कहते हैं कि मैं बहुत बोल नहीं पाउंगा। मैं उनके पास ही बैठ जाती हूं।

कुछ देर बाद वो बोलना शुरू करते हैं। बेटी का नाम आते ही फफक पड़ते हैं। चेहरा मास्क से ढका था, आंखों में दर्द और डर साफ नजर आ रहा था। वो कहते हैं, "ये लोग गांव के ठाकुर हैं। ये लोग मेरी बेटी से दरिंदगी करने से पहले मेरे पिता से भी मारपीट कर चुके हैं। उनकी उंगलियां तक काट दी थी। इनकी विचारधारा पहले से ऐसी ही है। ये हमें डराते-धमकाते रहते थे, हम हमेशा बर्दाश्त करते और सोचते कि चलो जाने दो। अब इन्होंने हमारी बेटी के साथ ऐसा अत्याचार किया है।"

हाथरस में गैंगरेप की शिकार दलित लड़की की हालत नाजुक है। उसे आईसीयू में शिफ्ट किया गया है।

वो बोलते-बोलते अचानक खामोश हो जाते हैं। खौफ उनके चेहरे पर तैरने लगता है। दलित संगठनों से जुड़े लोग उन्हें भरोसा देने की कोशिश करते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को अब कुछ नहीं होगा। लेकिन उनका डर कम नहीं होता।

इसी बीच उनका सबसे छोटा बेटा हांफता हुआ आता है। उसका फोन दोपहर से ही बंद है। बहन की देखभाल, कागजों की लिखत-पड़त और अस्पताल में अलग-अलग जगहों के चक्कर काटने में उसे इतना भी समय नहीं मिला है कि कुछ देर रुककर अपना फोन ही चार्ज कर सके।

उसके आते ही कई फोन बात करने के लिए उसे पकड़ा दिए जाते हैं। कुछ पारिवारिक रिश्तेदारों के हैं, कुछ पत्रकारों के, सभी बस वेंटिलेटर पर भर्ती उसकी बहन का हाल जानना चाहते हैं।

वो बताता है, "मैं 12 दिनों से घर नहीं गया हूं। बहन बोल नहीं पा रही है। बस वो आंखों से पहचान रही है। कभी-कभी इशारा करती है। उसकी हालत देखी नहीं जा रही है। मैं उसकी आवाज सुनने को बेचैन हूं। वो मौत से लड़ रही है।"

वो कहता है, "मैं नोएडा में रहकर काम करता था। फोन करता था तो बहन से बहुत बात नहीं हो पाती थी। वो घर के काम-धंधों में लगी रहती थी। अभी मैं कोशिश कर रहा हूं कि बहन से दो बातें हो जाएं तो वो बोल ही नहीं पा रही है क्योंकि उसकी जीभ कटी हुई है।"

13 दिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने के बाद उसे एंबुलेंस के जरिए सोमवार को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया है।

14 सितंबर को हुआ क्या था?

परिवार के मुताबिक, 14 सितंबर को सुबह-सुबह पीड़िता, उसका बड़ा भाई और मां गांव के जंगल में घास काटने गए थे। जब घास की एक गठरी बंध गई तो बड़ा भाई उसे लेकर घर चला आया। मां और बेटी खेत में अकेले रह गए। मां आगे घास काट रही थी। बेटी पीछे कुछ दूर उसे इकट्ठा कर रही थी। इसी दौरान चारों अभियुक्तों ने पीड़िता के गले में पड़े दुपट्टे से उसे बाजरे के खेत में खींच कर उसका गैंगरेप किया।

उस दिन की घटना के बारे में पीड़िता का भाई बताता है, "मां ने बहन को आवाज़ें दी तो उसका कोई जवाब नहीं आया। पहले उन्हें पानी देने के लिए बनाई गई मेढ़ में उसके चप्पल दिखे, फिर बाजरे के टूटे पौधे दिखे तो वो खेत में अंदर गईं जहां बीस मीटर भीतर वो बहुत ही बुरी हालत में बेहोश पड़ी हुई थी। मां चिल्लाई तो कुछ बच्चे आए, उन्होंने उन्हें तुरंत लोगों को बुलाने और पानी लाने भेजा। बच्चे मेढ़ में भरा पानी पॉलीथीन में भरकर लाए। वो उसके मुंह पर डाला लेकिन उसे होश नहीं आया।"

परिवार के मुताबिक14 सितंबर की घटना है ये जब वे लोग खेत में घास काटने गए थे।

वो बताते हैं, "मेरी मां और भाई उसे तुरंत थाने गए और तहरीर दी। तब तक ये नहीं पता था कि किसने हमला किया है। कितने लोग थे और उसके साथ क्या हुआ है।" पीड़िता के पिता बताते हैं, 'वो दरिंदे खेत के चक्कर लगा रहे थे। लेकिन मेरी बेटी और पत्नी उनके इरादे को भांप नहीं पाए। उन्होंने मेरी बेटी को घात लगाकर शिकार बनाया। उन्हें किसी का डर नहीं था।'

पुलिस की भूमिका पर उठ रहे हैं सवाल

हाथरस पुलिस ने अब तक इस मामले में संदीप, रामकुमार, लवकुश और रवि नाम के चार अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है। चारों ही तथाकथित उच्च जाति के है। हालांकि दलित संगठनों का आरोप है कि पुलिस ने इस मामले में लीपापोती करने की कोशिश की।

पहले सिर्फ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया। एक ही व्यक्ति को अभियुक्त बनाया गया। दस दिनों तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया। जब दलित नेता चंद्रशेखर ने ट्वीट किया और अलीगढ़ जाने का ऐलान किया तब अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया। गैंगरेप की धारा भी बाद में जोड़ी गई। हालांकि पुलिस का कहना है कि परिवार ने जो शिकायत दी थी उसी के आधार पर पहला मुकदमा दर्ज किया गया था और बाद में पीड़िता के बयान के आधार पर गैंगरेप का मुकदमा दर्ज किया गया।

पीड़िता को अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। जहां पुलिस 19 सितंबर को उसका बयान लेने के लिए पहुंची थी। यानी घटना के पांच दिन बाद। उस दिन पीड़िता की हालत गंभीर थी और वो अपना बयान दर्ज नहीं करा सकी थी। फिर 21 और 22 सितंबर को सर्किल ऑफिसर और महिला पुलिस कर्मी पीड़िता का बयान लेने पहुंचे थे।

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हाथरस के थाना चंदपा इलाके के गांव में 14 सितंबर को चार दबंग युवकों ने 19 साल की दलित लड़की के साथ बाजरे के खेत में गैंगरेप किया था।

https://ift.tt/3cCIwVt Dainik Bhaskar वो वेंटीलेटर पर है, जीभ काट दी थी, इसलिए सिर्फ इशारे से बताती है, रीढ़ की हड्डी टूटी है, चारों उसे मरा समझकर छोड़ गए थे Reviewed by Manish Pethev on September 29, 2020 Rating: 5

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