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हर साल औसतन भारतीय सेना के 111 जवान सीमा पर दुश्मन की गोलियों से शहीद हो जाते हैं...मगर पिछले 6 साल में 24 जवान अपनी ही सेना के खराब गोला-बारूद के कारण जान गंवा बैठे। जबकि 131 जवान घायल हुए, इनमें कई हाथ-पैर तक खो चुके हैं। यह खुलासा ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) से खरीदे गए गोला-बारूद व अन्य सामान पर सेना के एक आंतरिक आकलन में हुआ है। ओएफबी, दुनिया के सबसे पुराने सरकारी रक्षा उत्पादन बोर्डों में से एक है। रक्षा मंत्रालय को सौंपी गई इस आंतरिक रिपोर्ट में बताया गया है कि ओएफबी से खरीदे गए गोला-बारूद की गुणवत्ता खराब थी, इसकी वजह से न सिर्फ हादसे हुए बल्कि 5 साल में 960 करोड़ रुपए का आयुध अपनी तय शेल्फ लाइफ से पहले ही खराब हो गया। सेना का आंतरिक आंकलन...ओएफबी के रसायनों की क्वालिटी व मिक्सिंग सही न होने से तय समय से पहले ही खराब हो गया 960 करोड़ का गोला-बारूद सेना के अधिकारियों ने बताया कि हर प्रोडक्ट की तरह गोला-बारूद की शेल्फ लाइफ यानी आयु तय होती है। शेल्फ लाइफ पूरी होने के बाद इसे डिस्पोज ऑफ कर दिया जाता हैै। आयुध की आयु इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें इस्तेमाल रसायन की क्वालिटी कैसी है और इसकी मिक्सिंग कैसे हुई है। ओएफबी में रसायनों की मिक्सिंग ऑटोमेटेड नहीं है। इसीलिए यह शेल्फ लाइफ भी पूरी नहीं कर पाते हैं। इसी वजह से हादसे भी होते हैं। रिपोर्ट में जिन आयुध पर सवाल उठाया गया है उनमें 25 मिमी. एयर डिफेंस शेल्स, आर्टिलरी शेल्स और 125 मिमी. टैंक शेल्स के साथ ही इंफेंट्री की असॉल्ट राइफल्स में इस्तेमाल होने वाली बुलेट्स भी हैं। 150 की कैप 500 में देता है ओएफबी, सेना बाजार दर पर वर्दी खरीदती तो छह साल में 480 करोड़ बच जाते ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड से मिलने वाली जवानों की वर्दी में सेना बड़ा घाटा उठा रही है। आंतरिक मूल्यांकन के अनुसार जो कॉम्बैट ड्रेस मार्केट में 1800 रुपये से कम में मिल सकती है वह 3300 रु में खरीदी जाती है। कैप 500 रुपये में खरीदी जाती है जो 150 रुपये से कम मिल रही है। ओएफबी से खरीदी एक जवान की पूरी वर्दी की कुल लागत 17950 रुपये है। इसकी बाजार में कीमत 9400 रुपये है। यानी ओएफबी हर जवान की वर्दी पर 8550 रुपए ज्यादा ले रहा है। 12 लाख जवानों के लिए साल में महज चार वर्दियों का हिसाब से भी जोड़ा जाए तो 480 करोड़ रुपये का अंतर आता है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें 403 accidents in the last six years from poor ammunition purchased from Ordnance Factory Board; 24 soldiers killed, 131 injured https://ift.tt/3ieYEOa Dainik Bhaskar ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड से खरीदे घटिया गोला-बारूद से पिछले छह वर्ष में 403 हादसे; 24 जवानों की मौत, 131 घायल हुए

हर साल औसतन भारतीय सेना के 111 जवान सीमा पर दुश्मन की गोलियों से शहीद हो जाते हैं...मगर पिछले 6 साल में 24 जवान अपनी ही सेना के खराब गोला-ब...
- September 30, 2020
हर साल औसतन भारतीय सेना के 111 जवान सीमा पर दुश्मन की गोलियों से शहीद हो जाते हैं...मगर पिछले 6 साल में 24 जवान अपनी ही सेना के खराब गोला-बारूद के कारण जान गंवा बैठे। जबकि 131 जवान घायल हुए, इनमें कई हाथ-पैर तक खो चुके हैं। यह खुलासा ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) से खरीदे गए गोला-बारूद व अन्य सामान पर सेना के एक आंतरिक आकलन में हुआ है। ओएफबी, दुनिया के सबसे पुराने सरकारी रक्षा उत्पादन बोर्डों में से एक है। रक्षा मंत्रालय को सौंपी गई इस आंतरिक रिपोर्ट में बताया गया है कि ओएफबी से खरीदे गए गोला-बारूद की गुणवत्ता खराब थी, इसकी वजह से न सिर्फ हादसे हुए बल्कि 5 साल में 960 करोड़ रुपए का आयुध अपनी तय शेल्फ लाइफ से पहले ही खराब हो गया। सेना का आंतरिक आंकलन...ओएफबी के रसायनों की क्वालिटी व मिक्सिंग सही न होने से तय समय से पहले ही खराब हो गया 960 करोड़ का गोला-बारूद सेना के अधिकारियों ने बताया कि हर प्रोडक्ट की तरह गोला-बारूद की शेल्फ लाइफ यानी आयु तय होती है। शेल्फ लाइफ पूरी होने के बाद इसे डिस्पोज ऑफ कर दिया जाता हैै। आयुध की आयु इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें इस्तेमाल रसायन की क्वालिटी कैसी है और इसकी मिक्सिंग कैसे हुई है। ओएफबी में रसायनों की मिक्सिंग ऑटोमेटेड नहीं है। इसीलिए यह शेल्फ लाइफ भी पूरी नहीं कर पाते हैं। इसी वजह से हादसे भी होते हैं। रिपोर्ट में जिन आयुध पर सवाल उठाया गया है उनमें 25 मिमी. एयर डिफेंस शेल्स, आर्टिलरी शेल्स और 125 मिमी. टैंक शेल्स के साथ ही इंफेंट्री की असॉल्ट राइफल्स में इस्तेमाल होने वाली बुलेट्स भी हैं। 150 की कैप 500 में देता है ओएफबी, सेना बाजार दर पर वर्दी खरीदती तो छह साल में 480 करोड़ बच जाते ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड से मिलने वाली जवानों की वर्दी में सेना बड़ा घाटा उठा रही है। आंतरिक मूल्यांकन के अनुसार जो कॉम्बैट ड्रेस मार्केट में 1800 रुपये से कम में मिल सकती है वह 3300 रु में खरीदी जाती है। कैप 500 रुपये में खरीदी जाती है जो 150 रुपये से कम मिल रही है। ओएफबी से खरीदी एक जवान की पूरी वर्दी की कुल लागत 17950 रुपये है। इसकी बाजार में कीमत 9400 रुपये है। यानी ओएफबी हर जवान की वर्दी पर 8550 रुपए ज्यादा ले रहा है। 12 लाख जवानों के लिए साल में महज चार वर्दियों का हिसाब से भी जोड़ा जाए तो 480 करोड़ रुपये का अंतर आता है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें 403 accidents in the last six years from poor ammunition purchased from Ordnance Factory Board; 24 soldiers killed, 131 injured https://ift.tt/3ieYEOa Dainik Bhaskar ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड से खरीदे घटिया गोला-बारूद से पिछले छह वर्ष में 403 हादसे; 24 जवानों की मौत, 131 घायल हुए 

हर साल औसतन भारतीय सेना के 111 जवान सीमा पर दुश्मन की गोलियों से शहीद हो जाते हैं...मगर पिछले 6 साल में 24 जवान अपनी ही सेना के खराब गोला-बारूद के कारण जान गंवा बैठे। जबकि 131 जवान घायल हुए, इनमें कई हाथ-पैर तक खो चुके हैं। यह खुलासा ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) से खरीदे गए गोला-बारूद व अन्य सामान पर सेना के एक आंतरिक आकलन में हुआ है।

ओएफबी, दुनिया के सबसे पुराने सरकारी रक्षा उत्पादन बोर्डों में से एक है। रक्षा मंत्रालय को सौंपी गई इस आंतरिक रिपोर्ट में बताया गया है कि ओएफबी से खरीदे गए गोला-बारूद की गुणवत्ता खराब थी, इसकी वजह से न सिर्फ हादसे हुए बल्कि 5 साल में 960 करोड़ रुपए का आयुध अपनी तय शेल्फ लाइफ से पहले ही खराब हो गया।

सेना का आंतरिक आंकलन...ओएफबी के रसायनों की क्वालिटी व मिक्सिंग सही न होने से तय समय से पहले ही खराब हो गया 960 करोड़ का गोला-बारूद

सेना के अधिकारियों ने बताया कि हर प्रोडक्ट की तरह गोला-बारूद की शेल्फ लाइफ यानी आयु तय होती है। शेल्फ लाइफ पूरी होने के बाद इसे डिस्पोज ऑफ कर दिया जाता हैै। आयुध की आयु इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें इस्तेमाल रसायन की क्वालिटी कैसी है और इसकी मिक्सिंग कैसे हुई है।

ओएफबी में रसायनों की मिक्सिंग ऑटोमेटेड नहीं है। इसीलिए यह शेल्फ लाइफ भी पूरी नहीं कर पाते हैं। इसी वजह से हादसे भी होते हैं। रिपोर्ट में जिन आयुध पर सवाल उठाया गया है उनमें 25 मिमी. एयर डिफेंस शेल्स, आर्टिलरी शेल्स और 125 मिमी. टैंक शेल्स के साथ ही इंफेंट्री की असॉल्ट राइफल्स में इस्तेमाल होने वाली बुलेट्स भी हैं।

150 की कैप 500 में देता है ओएफबी, सेना बाजार दर पर वर्दी खरीदती तो छह साल में 480 करोड़ बच जाते

ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड से मिलने वाली जवानों की वर्दी में सेना बड़ा घाटा उठा रही है। आंतरिक मूल्यांकन के अनुसार जो कॉम्बैट ड्रेस मार्केट में 1800 रुपये से कम में मिल सकती है वह 3300 रु में खरीदी जाती है। कैप 500 रुपये में खरीदी जाती है जो 150 रुपये से कम मिल रही है।

ओएफबी से खरीदी एक जवान की पूरी वर्दी की कुल लागत 17950 रुपये है। इसकी बाजार में कीमत 9400 रुपये है। यानी ओएफबी हर जवान की वर्दी पर 8550 रुपए ज्यादा ले रहा है। 12 लाख जवानों के लिए साल में महज चार वर्दियों का हिसाब से भी जोड़ा जाए तो 480 करोड़ रुपये का अंतर आता है।

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403 accidents in the last six years from poor ammunition purchased from Ordnance Factory Board; 24 soldiers killed, 131 injured

https://ift.tt/3ieYEOa Dainik Bhaskar ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड से खरीदे घटिया गोला-बारूद से पिछले छह वर्ष में 403 हादसे; 24 जवानों की मौत, 131 घायल हुए Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

एक अक्टूबर से ये नौ बदलाव होने वाले हैं। जानिए किस परिवर्तन से आपकाे कितना और कैसे फायदा हाेगा... लाइसेंस-आरसी रखने का झंझट नहीं : वाहन चलाते समय अब लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन के दस्तावेज रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इनकी साॅफ्ट काॅपी भी मान्य हाेगी। माेटर वाहन अधिनियम 1989 में संशाेधन के तहत गाड़ी से जुड़े दस्तावेजाें का रखरखाव आईटी पाेर्टल के जरिए होगा। गाड़ी चलाते हुए मोबाइल इस्तेमाल कर सकेंगे: गाड़ी चलाते समय हाथ में मोबाइल फोन का इस्तेमाल रूट नेविगेशन के लिए कर सकेंगे। हालांकि ड्राइवर का ध्यान भंग नहीं होना चाहिए। हालांकि, मोबाइल से बात करने पर 5 हजार रुपए तक जुर्माना लग सकता है। खुली मिठाई के लिए मियाद लिखनी हाेगी: बाजार में बिकने वाली खुली मिठाई के लिए विक्रेता काे लिखना होगा कि किस तारीख तक मिठाई इस्तेमाल की जा सकेगी। खाद्य नियामक एफएसएसएआई ने यह अनिवार्य कर दिया है। स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में बदलाव: बीमा नियामक इरडा के नए नियमों के अनुसार पॉलिसीधारक ने सतत 8 साल प्रीमियम चुकाई है तो कंपनियां क्लेम रिजेक्ट नहीं कर पाएंगी। अधिक बीमारियां भी कवर हाेंगी। हालांकि इससे प्रीमियम बढ़ सकती है। ग्राहक कंपनी बदलते हैं तो पुराना वेटिंग पीरियड जुड़ेगा। पैसा विदेश भेजने पर 5% टैक्स: विदेश में बच्चाें या रिश्तेदाराें काे पैसे भेजते हैं या प्राॅपर्टी खरीदते हैं ताे रकम पर 5% टीसीएस देना होगा। फाइनेंस एक्ट 2020 के मुताबिक, लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत 2.5 लाख डॉलर सालाना तक विदेश भेज सकते हैं। इसे टीसीएस के दायरे में लाया गया है। सरसाें तेल में मिलावट नहीं: अब सरसाें का शुद्ध तेल मिलेगा। एफएसएसएआई ने इसमेें अन्य तेल मिलाने पर राेक लगा दी है। अब तक चावल की भूसी यानी राइस ब्रान, तेल या सस्ते तेल मिलाए जाते थे। रंगीन टीवी खरीदना महंगा: केंद्र सरकार ने रंगीन टीवी की असेंबलिंग में इस्तेमाल हाेने वाले ओपन सेल कंपाेनेंट के आयात पर 5% सीमा शुल्क बहाल कर दिया है। इस पर सरकार ने एक साल की छूट दी थी। गूगल मीट पर फ्री मीटिंग 60 मिनट ही: ऑनलाइन मीटिंग के लिए चर्चित माध्यम गूगल मीट का इस्तेमाल सीमित होगा। फ्री यूजर अधिकतम 60 मिनट मीटिंग कर पाएंगे। पेड यूजर्स इससे लंबी मीटिंग कर पाएंगे। उज्ज्वला गैस कनेक्शन फ्री नहीं: मुफ्त रसाेई गैस कनेक्शन लेने की प्रक्रिया 30 सितंबर काे खत्म हाे रही है। काेराेना के चलते इसकी मियाद बढ़ाई गई थी। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें See date on open sweets, more diseases will be added to insurance; Know how much and how you will benefit https://ift.tt/348arZn Dainik Bhaskar खुली मिठाई पर देखें तारीख, बीमा में जुड़ेंगे अधिक रोग; जानिए आपकाे कितना और कैसे फायदा हाेगा

एक अक्टूबर से ये नौ बदलाव होने वाले हैं। जानिए किस परिवर्तन से आपकाे कितना और कैसे फायदा हाेगा... लाइसेंस-आरसी रखने का झंझट नहीं : वाहन च...
- September 30, 2020
एक अक्टूबर से ये नौ बदलाव होने वाले हैं। जानिए किस परिवर्तन से आपकाे कितना और कैसे फायदा हाेगा... लाइसेंस-आरसी रखने का झंझट नहीं : वाहन चलाते समय अब लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन के दस्तावेज रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इनकी साॅफ्ट काॅपी भी मान्य हाेगी। माेटर वाहन अधिनियम 1989 में संशाेधन के तहत गाड़ी से जुड़े दस्तावेजाें का रखरखाव आईटी पाेर्टल के जरिए होगा। गाड़ी चलाते हुए मोबाइल इस्तेमाल कर सकेंगे: गाड़ी चलाते समय हाथ में मोबाइल फोन का इस्तेमाल रूट नेविगेशन के लिए कर सकेंगे। हालांकि ड्राइवर का ध्यान भंग नहीं होना चाहिए। हालांकि, मोबाइल से बात करने पर 5 हजार रुपए तक जुर्माना लग सकता है। खुली मिठाई के लिए मियाद लिखनी हाेगी: बाजार में बिकने वाली खुली मिठाई के लिए विक्रेता काे लिखना होगा कि किस तारीख तक मिठाई इस्तेमाल की जा सकेगी। खाद्य नियामक एफएसएसएआई ने यह अनिवार्य कर दिया है। स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में बदलाव: बीमा नियामक इरडा के नए नियमों के अनुसार पॉलिसीधारक ने सतत 8 साल प्रीमियम चुकाई है तो कंपनियां क्लेम रिजेक्ट नहीं कर पाएंगी। अधिक बीमारियां भी कवर हाेंगी। हालांकि इससे प्रीमियम बढ़ सकती है। ग्राहक कंपनी बदलते हैं तो पुराना वेटिंग पीरियड जुड़ेगा। पैसा विदेश भेजने पर 5% टैक्स: विदेश में बच्चाें या रिश्तेदाराें काे पैसे भेजते हैं या प्राॅपर्टी खरीदते हैं ताे रकम पर 5% टीसीएस देना होगा। फाइनेंस एक्ट 2020 के मुताबिक, लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत 2.5 लाख डॉलर सालाना तक विदेश भेज सकते हैं। इसे टीसीएस के दायरे में लाया गया है। सरसाें तेल में मिलावट नहीं: अब सरसाें का शुद्ध तेल मिलेगा। एफएसएसएआई ने इसमेें अन्य तेल मिलाने पर राेक लगा दी है। अब तक चावल की भूसी यानी राइस ब्रान, तेल या सस्ते तेल मिलाए जाते थे। रंगीन टीवी खरीदना महंगा: केंद्र सरकार ने रंगीन टीवी की असेंबलिंग में इस्तेमाल हाेने वाले ओपन सेल कंपाेनेंट के आयात पर 5% सीमा शुल्क बहाल कर दिया है। इस पर सरकार ने एक साल की छूट दी थी। गूगल मीट पर फ्री मीटिंग 60 मिनट ही: ऑनलाइन मीटिंग के लिए चर्चित माध्यम गूगल मीट का इस्तेमाल सीमित होगा। फ्री यूजर अधिकतम 60 मिनट मीटिंग कर पाएंगे। पेड यूजर्स इससे लंबी मीटिंग कर पाएंगे। उज्ज्वला गैस कनेक्शन फ्री नहीं: मुफ्त रसाेई गैस कनेक्शन लेने की प्रक्रिया 30 सितंबर काे खत्म हाे रही है। काेराेना के चलते इसकी मियाद बढ़ाई गई थी। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें See date on open sweets, more diseases will be added to insurance; Know how much and how you will benefit https://ift.tt/348arZn Dainik Bhaskar खुली मिठाई पर देखें तारीख, बीमा में जुड़ेंगे अधिक रोग; जानिए आपकाे कितना और कैसे फायदा हाेगा 

एक अक्टूबर से ये नौ बदलाव होने वाले हैं। जानिए किस परिवर्तन से आपकाे कितना और कैसे फायदा हाेगा...

लाइसेंस-आरसी रखने का झंझट नहीं : वाहन चलाते समय अब लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन के दस्तावेज रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इनकी साॅफ्ट काॅपी भी मान्य हाेगी। माेटर वाहन अधिनियम 1989 में संशाेधन के तहत गाड़ी से जुड़े दस्तावेजाें का रखरखाव आईटी पाेर्टल के जरिए होगा।

गाड़ी चलाते हुए मोबाइल इस्तेमाल कर सकेंगे: गाड़ी चलाते समय हाथ में मोबाइल फोन का इस्तेमाल रूट नेविगेशन के लिए कर सकेंगे। हालांकि ड्राइवर का ध्यान भंग नहीं होना चाहिए। हालांकि, मोबाइल से बात करने पर 5 हजार रुपए तक जुर्माना लग सकता है।

खुली मिठाई के लिए मियाद लिखनी हाेगी: बाजार में बिकने वाली खुली मिठाई के लिए विक्रेता काे लिखना होगा कि किस तारीख तक मिठाई इस्तेमाल की जा सकेगी। खाद्य नियामक एफएसएसएआई ने यह अनिवार्य कर दिया है।

स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में बदलाव: बीमा नियामक इरडा के नए नियमों के अनुसार पॉलिसीधारक ने सतत 8 साल प्रीमियम चुकाई है तो कंपनियां क्लेम रिजेक्ट नहीं कर पाएंगी। अधिक बीमारियां भी कवर हाेंगी। हालांकि इससे प्रीमियम बढ़ सकती है। ग्राहक कंपनी बदलते हैं तो पुराना वेटिंग पीरियड जुड़ेगा।

पैसा विदेश भेजने पर 5% टैक्स: विदेश में बच्चाें या रिश्तेदाराें काे पैसे भेजते हैं या प्राॅपर्टी खरीदते हैं ताे रकम पर 5% टीसीएस देना होगा। फाइनेंस एक्ट 2020 के मुताबिक, लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत 2.5 लाख डॉलर सालाना तक विदेश भेज सकते हैं। इसे टीसीएस के दायरे में लाया गया है।

सरसाें तेल में मिलावट नहीं: अब सरसाें का शुद्ध तेल मिलेगा। एफएसएसएआई ने इसमेें अन्य तेल मिलाने पर राेक लगा दी है। अब तक चावल की भूसी यानी राइस ब्रान, तेल या सस्ते तेल मिलाए जाते थे।

रंगीन टीवी खरीदना महंगा: केंद्र सरकार ने रंगीन टीवी की असेंबलिंग में इस्तेमाल हाेने वाले ओपन सेल कंपाेनेंट के आयात पर 5% सीमा शुल्क बहाल कर दिया है। इस पर सरकार ने एक साल की छूट दी थी।

गूगल मीट पर फ्री मीटिंग 60 मिनट ही: ऑनलाइन मीटिंग के लिए चर्चित माध्यम गूगल मीट का इस्तेमाल सीमित होगा। फ्री यूजर अधिकतम 60 मिनट मीटिंग कर पाएंगे। पेड यूजर्स इससे लंबी मीटिंग कर पाएंगे।

उज्ज्वला गैस कनेक्शन फ्री नहीं: मुफ्त रसाेई गैस कनेक्शन लेने की प्रक्रिया 30 सितंबर काे खत्म हाे रही है। काेराेना के चलते इसकी मियाद बढ़ाई गई थी।

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https://ift.tt/348arZn Dainik Bhaskar खुली मिठाई पर देखें तारीख, बीमा में जुड़ेंगे अधिक रोग; जानिए आपकाे कितना और कैसे फायदा हाेगा Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5
CBI to probe lapses in Sushant's autopsy CBI to probe lapses in Sushant's autopsy Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

देश में कोरोना से ठीक होने वालों की संख्या 51 लाख के पार हो गई है जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी बोले हैं कि अब कुछ लोग किसान बिलों का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनकी काली कमाई का एक और जरिया खत्म हो गया है। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ... आज इन 4 इवेंट्स पर रहेगी नजर 1. IPL में आज राजस्थान रॉयल्स और कोलकाता नाइट राइडर्स आमने-सामने होंगे। शाम सात बजे टॉस होगा। मैच साढ़े सात बजे शुरू होगा। 2. बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसला आएगा। इस केस में आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती आरोपी हैं। 3. राशन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करने की आज आखिरी तारीख है। 4. 2018-19 का इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की भी आज आखिरी तारीख है। अब कल की 6 महत्वपूर्ण खबरें 1. 6 महीनों से हर घंटे 90 करोड़ रुपए कमा रहे हैं मुकेश अंबानी मुकेश अंबानी पिछले 6 महीने से हर घंटे 90 करोड़ रुपए कमा रहे हैं। यह जानकारी हुरुन इंडिया और आईआईएफएल वेल्थ मैनेजमेंट लिमिटेड ने अपनी रिपोर्ट में दी है। 31 अगस्त 2020 तक 1,000 करोड़ रुपए या उससे ज्यादा संपत्ति वाले 828 भारतीयों को इस लिस्ट में शामिल किया गया है। मुकेश अंबानी की कुल इनकम 6,58,400 करोड़ रुपए है। -पढ़ें पूरी खबर 2. दलित लड़की से गैंगरेप, रीढ़ की हड्डी तोड़ी, जीभ काट दी उतर प्रदेश के हाथरस जिले में जिस दलित लड़की का गैंगरेप हुआ था, उसने मंगलवार तड़के 3 बजे दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में अंतिम सांस ली। 14 सितंबर को दरिंदों ने गैंगरेप के बाद उसकी जीभ काट दी थी और रीढ़ की हड्डी तोड़ दी थी। पिता ने बताया कि ये लोग गांव के ठाकुर हैं। मेरे पिता से भी मारपीट कर चुके हैं। पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट... -पढ़ें पूरी खबर 3. मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग चुनाव आयोग ने मंगलवार को 56 विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव की तारीखों का ऐलान किया। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और उत्तर प्रदेश समेत 10 राज्यों की 54 विधानसभा सीटों पर 3 नवंबर को मतदान होगा। वहीं, बिहार की एक लोकसभा सीट और मणिपुर की दो विधानसभा सीटों पर 7 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। सभी सीटों के नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। 16 अक्टूबर तक नामांकन दाखिल होंगे। -पढ़ें पूरी खबर 4. एम्स ने सीबीआई को सौंपी सुशांत की विसरा रिपोर्ट एम्स की टीम ने सुशांत सिंह राजपूत की विसरा रिपोर्ट सीबीआई को सौंप दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, टीम को विसरा में किसी तरह का जहर नहीं मिला है। सुशांत की ऑटोप्सी रिपोर्ट की जांच के लिए 21 अगस्त को डॉ. सुधीर गुप्ता की लीडरशिप में एम्स के पांच डॉक्टर्स की टीम बनाई गई थी। -पढ़ें पूरी खबर 5. बाबरी मस्जिद विध्वंस केस पर केंद्रित भास्कर एक्सप्लेनर अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराए जाने के करीब 28 साल पूरे हो गए हैं। ढांचे को गिराने के क्रिमिनल केस की सुनवाई लखनऊ में स्पेशल सीबीआई कोर्ट में चल रही थी। विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में 32 आरोपी हैं। इनमें पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और साक्षी महाराज आरोपी हैं। -पढ़ें पूरी खबर 6. ड्रग्स मामले में दीपिका, सारा, श्रद्धा और रकुलप्रीत के बैंक खातों की जांच होगी ​​​​​​​सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़े ड्रग्स मामले की जांच में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो अब दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, श्रद्धा कपूर और रकुलप्रीत सिंह के बैंक खातों से हुए लेन-देन की जांच करेगा। इन एक्ट्रेस से NCB के अधिकारी ड्रग्स से जुड़ी वॉट्सऐप चैट के बारे में कई घंटे की पूछताछ कर चुके हैं। -पढ़ें पूरी खबर अब 30 सितंबर का इतिहास 1898ः अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर की स्थापना हुई। 1993ः भारत के महाराष्ट्र में भूकंप के कारण 10,000 हजार से ज्यादा लोग मारे गए, जबकि लाखों बेघर हो गए। 2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन को रामलला, निर्मोही अखाड़े और वक्फ बोर्ड में बराबर हिस्से में बांटने का फैसला सुनाया। अब जाते-जाते जिक्र पांच बार के वर्ल्ड चेस चैम्पियन विश्वनाथन आनंद का। 2003 में आज ही के दिन भारतीय शतरंज के बादशाह विश्वनाथन ने विश्व रैपिड शतरंज चैम्पियनशिप जीती थी। पढ़िए उन्हीं के शब्दों में जीत का मूल मंत्र... ​​​​​​​ आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Big decision of CBI court in Babri case today; Ambani earned 90 crores every hour in lockdown; Deepika-Shraddha's accounts will be investigated https://ift.tt/344VMOI Dainik Bhaskar बाबरी मामले में सीबीआई कोर्ट का बड़ा फैसला आज; लॉकडाउन में अंबानी ने हर घंटे कमाए 90 करोड़; दीपिका-श्रद्धा के खातों की जांच होगी

देश में कोरोना से ठीक होने वालों की संख्या 51 लाख के पार हो गई है जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी बोले हैं कि अब क...
- September 30, 2020
देश में कोरोना से ठीक होने वालों की संख्या 51 लाख के पार हो गई है जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी बोले हैं कि अब कुछ लोग किसान बिलों का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनकी काली कमाई का एक और जरिया खत्म हो गया है। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ... आज इन 4 इवेंट्स पर रहेगी नजर 1. IPL में आज राजस्थान रॉयल्स और कोलकाता नाइट राइडर्स आमने-सामने होंगे। शाम सात बजे टॉस होगा। मैच साढ़े सात बजे शुरू होगा। 2. बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसला आएगा। इस केस में आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती आरोपी हैं। 3. राशन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करने की आज आखिरी तारीख है। 4. 2018-19 का इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की भी आज आखिरी तारीख है। अब कल की 6 महत्वपूर्ण खबरें 1. 6 महीनों से हर घंटे 90 करोड़ रुपए कमा रहे हैं मुकेश अंबानी मुकेश अंबानी पिछले 6 महीने से हर घंटे 90 करोड़ रुपए कमा रहे हैं। यह जानकारी हुरुन इंडिया और आईआईएफएल वेल्थ मैनेजमेंट लिमिटेड ने अपनी रिपोर्ट में दी है। 31 अगस्त 2020 तक 1,000 करोड़ रुपए या उससे ज्यादा संपत्ति वाले 828 भारतीयों को इस लिस्ट में शामिल किया गया है। मुकेश अंबानी की कुल इनकम 6,58,400 करोड़ रुपए है। -पढ़ें पूरी खबर 2. दलित लड़की से गैंगरेप, रीढ़ की हड्डी तोड़ी, जीभ काट दी उतर प्रदेश के हाथरस जिले में जिस दलित लड़की का गैंगरेप हुआ था, उसने मंगलवार तड़के 3 बजे दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में अंतिम सांस ली। 14 सितंबर को दरिंदों ने गैंगरेप के बाद उसकी जीभ काट दी थी और रीढ़ की हड्डी तोड़ दी थी। पिता ने बताया कि ये लोग गांव के ठाकुर हैं। मेरे पिता से भी मारपीट कर चुके हैं। पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट... -पढ़ें पूरी खबर 3. मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग चुनाव आयोग ने मंगलवार को 56 विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव की तारीखों का ऐलान किया। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और उत्तर प्रदेश समेत 10 राज्यों की 54 विधानसभा सीटों पर 3 नवंबर को मतदान होगा। वहीं, बिहार की एक लोकसभा सीट और मणिपुर की दो विधानसभा सीटों पर 7 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। सभी सीटों के नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। 16 अक्टूबर तक नामांकन दाखिल होंगे। -पढ़ें पूरी खबर 4. एम्स ने सीबीआई को सौंपी सुशांत की विसरा रिपोर्ट एम्स की टीम ने सुशांत सिंह राजपूत की विसरा रिपोर्ट सीबीआई को सौंप दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, टीम को विसरा में किसी तरह का जहर नहीं मिला है। सुशांत की ऑटोप्सी रिपोर्ट की जांच के लिए 21 अगस्त को डॉ. सुधीर गुप्ता की लीडरशिप में एम्स के पांच डॉक्टर्स की टीम बनाई गई थी। -पढ़ें पूरी खबर 5. बाबरी मस्जिद विध्वंस केस पर केंद्रित भास्कर एक्सप्लेनर अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराए जाने के करीब 28 साल पूरे हो गए हैं। ढांचे को गिराने के क्रिमिनल केस की सुनवाई लखनऊ में स्पेशल सीबीआई कोर्ट में चल रही थी। विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में 32 आरोपी हैं। इनमें पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और साक्षी महाराज आरोपी हैं। -पढ़ें पूरी खबर 6. ड्रग्स मामले में दीपिका, सारा, श्रद्धा और रकुलप्रीत के बैंक खातों की जांच होगी ​​​​​​​सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़े ड्रग्स मामले की जांच में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो अब दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, श्रद्धा कपूर और रकुलप्रीत सिंह के बैंक खातों से हुए लेन-देन की जांच करेगा। इन एक्ट्रेस से NCB के अधिकारी ड्रग्स से जुड़ी वॉट्सऐप चैट के बारे में कई घंटे की पूछताछ कर चुके हैं। -पढ़ें पूरी खबर अब 30 सितंबर का इतिहास 1898ः अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर की स्थापना हुई। 1993ः भारत के महाराष्ट्र में भूकंप के कारण 10,000 हजार से ज्यादा लोग मारे गए, जबकि लाखों बेघर हो गए। 2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन को रामलला, निर्मोही अखाड़े और वक्फ बोर्ड में बराबर हिस्से में बांटने का फैसला सुनाया। अब जाते-जाते जिक्र पांच बार के वर्ल्ड चेस चैम्पियन विश्वनाथन आनंद का। 2003 में आज ही के दिन भारतीय शतरंज के बादशाह विश्वनाथन ने विश्व रैपिड शतरंज चैम्पियनशिप जीती थी। पढ़िए उन्हीं के शब्दों में जीत का मूल मंत्र... ​​​​​​​ आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Big decision of CBI court in Babri case today; Ambani earned 90 crores every hour in lockdown; Deepika-Shraddha's accounts will be investigated https://ift.tt/344VMOI Dainik Bhaskar बाबरी मामले में सीबीआई कोर्ट का बड़ा फैसला आज; लॉकडाउन में अंबानी ने हर घंटे कमाए 90 करोड़; दीपिका-श्रद्धा के खातों की जांच होगी 

देश में कोरोना से ठीक होने वालों की संख्या 51 लाख के पार हो गई है जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी बोले हैं कि अब कुछ लोग किसान बिलों का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनकी काली कमाई का एक और जरिया खत्म हो गया है। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...

आज इन 4 इवेंट्स पर रहेगी नजर

1. IPL में आज राजस्थान रॉयल्स और कोलकाता नाइट राइडर्स आमने-सामने होंगे। शाम सात बजे टॉस होगा। मैच साढ़े सात बजे शुरू होगा।

2. बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसला आएगा। इस केस में आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती आरोपी हैं।

3. राशन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करने की आज आखिरी तारीख है।

4. 2018-19 का इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की भी आज आखिरी तारीख है।

अब कल की 6 महत्वपूर्ण खबरें

1. 6 महीनों से हर घंटे 90 करोड़ रुपए कमा रहे हैं मुकेश अंबानी

मुकेश अंबानी पिछले 6 महीने से हर घंटे 90 करोड़ रुपए कमा रहे हैं। यह जानकारी हुरुन इंडिया और आईआईएफएल वेल्थ मैनेजमेंट लिमिटेड ने अपनी रिपोर्ट में दी है। 31 अगस्त 2020 तक 1,000 करोड़ रुपए या उससे ज्यादा संपत्ति वाले 828 भारतीयों को इस लिस्ट में शामिल किया गया है। मुकेश अंबानी की कुल इनकम 6,58,400 करोड़ रुपए है।

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2. दलित लड़की से गैंगरेप, रीढ़ की हड्डी तोड़ी, जीभ काट दी

उतर प्रदेश के हाथरस जिले में जिस दलित लड़की का गैंगरेप हुआ था, उसने मंगलवार तड़के 3 बजे दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में अंतिम सांस ली। 14 सितंबर को दरिंदों ने गैंगरेप के बाद उसकी जीभ काट दी थी और रीढ़ की हड्डी तोड़ दी थी। पिता ने बताया कि ये लोग गांव के ठाकुर हैं। मेरे पिता से भी मारपीट कर चुके हैं। पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट...

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3. मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग

चुनाव आयोग ने मंगलवार को 56 विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव की तारीखों का ऐलान किया। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और उत्तर प्रदेश समेत 10 राज्यों की 54 विधानसभा सीटों पर 3 नवंबर को मतदान होगा। वहीं, बिहार की एक लोकसभा सीट और मणिपुर की दो विधानसभा सीटों पर 7 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। सभी सीटों के नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। 16 अक्टूबर तक नामांकन दाखिल होंगे।

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4. एम्स ने सीबीआई को सौंपी सुशांत की विसरा रिपोर्ट

एम्स की टीम ने सुशांत सिंह राजपूत की विसरा रिपोर्ट सीबीआई को सौंप दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, टीम को विसरा में किसी तरह का जहर नहीं मिला है। सुशांत की ऑटोप्सी रिपोर्ट की जांच के लिए 21 अगस्त को डॉ. सुधीर गुप्ता की लीडरशिप में एम्स के पांच डॉक्टर्स की टीम बनाई गई थी।

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5. बाबरी मस्जिद विध्वंस केस पर केंद्रित भास्कर एक्सप्लेनर

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराए जाने के करीब 28 साल पूरे हो गए हैं। ढांचे को गिराने के क्रिमिनल केस की सुनवाई लखनऊ में स्पेशल सीबीआई कोर्ट में चल रही थी। विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में 32 आरोपी हैं। इनमें पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और साक्षी महाराज आरोपी हैं।

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6. ड्रग्स मामले में दीपिका, सारा, श्रद्धा और रकुलप्रीत के बैंक खातों की जांच होगी

​​​​​​​सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़े ड्रग्स मामले की जांच में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो अब दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, श्रद्धा कपूर और रकुलप्रीत सिंह के बैंक खातों से हुए लेन-देन की जांच करेगा। इन एक्ट्रेस से NCB के अधिकारी ड्रग्स से जुड़ी वॉट्सऐप चैट के बारे में कई घंटे की पूछताछ कर चुके हैं।

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अब 30 सितंबर का इतिहास

1898ः अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर की स्थापना हुई।

1993ः भारत के महाराष्ट्र में भूकंप के कारण 10,000 हजार से ज्यादा लोग मारे गए, जबकि लाखों बेघर हो गए।

2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन को रामलला, निर्मोही अखाड़े और वक्फ बोर्ड में बराबर हिस्से में बांटने का फैसला सुनाया।

अब जाते-जाते जिक्र पांच बार के वर्ल्ड चेस चैम्पियन विश्वनाथन आनंद का। 2003 में आज ही के दिन भारतीय शतरंज के बादशाह विश्वनाथन ने विश्व रैपिड शतरंज चैम्पियनशिप जीती थी। पढ़िए उन्हीं के शब्दों में जीत का मूल मंत्र...

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Big decision of CBI court in Babri case today; Ambani earned 90 crores every hour in lockdown; Deepika-Shraddha's accounts will be investigated

https://ift.tt/344VMOI Dainik Bhaskar बाबरी मामले में सीबीआई कोर्ट का बड़ा फैसला आज; लॉकडाउन में अंबानी ने हर घंटे कमाए 90 करोड़; दीपिका-श्रद्धा के खातों की जांच होगी Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में गए वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया का प्राइवेट प्लेन 30 सितंबर 2001 को क्रैश हो गया था। वे कुछ पत्रकारों के साथ यूपी के मैनपुरी में एक सभा को संबोधित करने जा रहे थे, तब उनके सेसना सी-90 एयरक्राफ्ट ने आग पकड़ ली थी। खास बात यह थी कि उस समय देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका पार्थिव शरीर लाने के लिए विशेष विमान दिल्ली भेजा था। यह महत्वपूर्ण है कि सिंधिया ने ही 1984 में वाजपेयी को ग्वालियर में लोकसभा चुनाव में शिकस्त दी थी। ग्वालियर के सिंधिया राजवंश में माधवराव का जन्म 10 मार्च 1945 को हुआ था। शुरुआती पढ़ाई सिंधिया स्कूल से और फिर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में उन्होंने हायर स्टडीज की। सिंधिया उस समय कांग्रेस में शामिल हुए थे, जब इंदिरा गांधी ने सत्ता गंवा दी थी। उन्हें सबसे सफल रेल मंत्रियों में से एक माना जाता है। उनके कार्यकाल में ही शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनें चलाई गई थी। नरसिम्हा राव की कैबिनेट में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद भी हवाला कांड की वजह से 1996 में उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो उन्होंने मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस बना ली थी। हालांकि, सीताराम केसरी के कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही वे पार्टी में लौट आए थे। 1999 में जब सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा तो सिंधिया को कांग्रेस में प्रधानमंत्री पद का तगड़ा दावेदार समझा जाता था। सिंधिया लोकसभा में डिप्टी फ्लोर लीडर थे और उन्हें कांग्रेस प्रेसिडेंट और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी का विश्वासपात्र समझा जाता था। 1971 से 1999 तक वे सांसद रहे। फर्राटेदार हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले ग्वालियर के पूर्व श्रीमंत सिंधिया की जमीनी पकड़ बेहद मजबूत थी। एक और खास बात यह है कि वे हमेशा खेलों से जुड़े रहे। मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के लंबे समय तक अध्यक्ष भी रहे। 2010: राम जन्मभूमि केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर 2010 को विवादित बाबरी मस्जिद मामले में जमीन के मालिकाना हक को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने 2:1 के बहुमत से विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटकर रामलला, निर्मोही अखाड़े और वक्फ बोर्ड को एक-एक हिस्सा देने का फैसला सुनाया। हालांकि, बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। पिछले साल नवंबर में फैसला आया कि विवादित जमीन पर राम जन्मभूमि बनना चाहिए और अगस्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसके लिए भूमिपूजन किया है। आज की तारीख को इन घटनाओं के लिए भी याद किया जाता है... 1687ः औरंगजेब ने हैदराबाद के गोलकुंडा के किले पर कब्जा किया। 1841ः अमेरिका के मशहूर वैज्ञानिक सैमुएल स्लॉकम ने 'स्टेप्लर' का पेटेंट कराया। 1846: डॉ. विलियम मॉर्टन ने एनेस्थेशिया का इस्तेमाल कर पहली बार दांत निकाला। 1947ः पाकिस्तान और यमन संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल हुए। 1967ः अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने मौद्रिक प्रणाली में सुधार किया। 1975: AH-64 अपाचे अटैक हेलिकॉप्टर ने पहली बार उड़ान भरी। 1984ः उत्तरी एवं दक्षिणी कोरिया के बीच 1945 के बाद पहली बार सीमाएं खोली गईं। 1993ः महाराष्ट्र के लातुर में भूकंप के कारण 10,000 से अधिक लोग मारे गए। लाखों बेघर हुए। 1996: तमिलनाडु की राजधानी का नाम मद्रास से बदलकर चेन्नई रखा गया। 2001ः इजरायल की आतंरिक मंत्रिपरिषद ने फिलीस्तीन के साथ हुए समझौते को मंजूरी दी। 2008: जोधपुर में मेहरानगढ़ फोर्ट के देवी मंदिर में भगदड़ से 200 से ज्यादा मौतें हुई थी। 2013: कोर्ट ने चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव को भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Today History for September 30th/ What Happened Today | Madhav Rao Scindia Private Plane Crashed| Allahabad High Court Ordered Three Divisions of Disputed Land In Ayodhya | Earthquake in Latur Maharashtra in 1993 https://ift.tt/34cJyn1 Dainik Bhaskar 19 साल पहले माधवराव सिंधिया का प्लेन क्रैश हुआ था, 1984 में ग्वालियर सीट पर अटल जी को हराया था

हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में गए वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया का प्राइवेट प्लेन 30 सितंबर 2001 को क्रैश हो ...
- September 30, 2020
हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में गए वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया का प्राइवेट प्लेन 30 सितंबर 2001 को क्रैश हो गया था। वे कुछ पत्रकारों के साथ यूपी के मैनपुरी में एक सभा को संबोधित करने जा रहे थे, तब उनके सेसना सी-90 एयरक्राफ्ट ने आग पकड़ ली थी। खास बात यह थी कि उस समय देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका पार्थिव शरीर लाने के लिए विशेष विमान दिल्ली भेजा था। यह महत्वपूर्ण है कि सिंधिया ने ही 1984 में वाजपेयी को ग्वालियर में लोकसभा चुनाव में शिकस्त दी थी। ग्वालियर के सिंधिया राजवंश में माधवराव का जन्म 10 मार्च 1945 को हुआ था। शुरुआती पढ़ाई सिंधिया स्कूल से और फिर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में उन्होंने हायर स्टडीज की। सिंधिया उस समय कांग्रेस में शामिल हुए थे, जब इंदिरा गांधी ने सत्ता गंवा दी थी। उन्हें सबसे सफल रेल मंत्रियों में से एक माना जाता है। उनके कार्यकाल में ही शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनें चलाई गई थी। नरसिम्हा राव की कैबिनेट में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद भी हवाला कांड की वजह से 1996 में उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो उन्होंने मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस बना ली थी। हालांकि, सीताराम केसरी के कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही वे पार्टी में लौट आए थे। 1999 में जब सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा तो सिंधिया को कांग्रेस में प्रधानमंत्री पद का तगड़ा दावेदार समझा जाता था। सिंधिया लोकसभा में डिप्टी फ्लोर लीडर थे और उन्हें कांग्रेस प्रेसिडेंट और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी का विश्वासपात्र समझा जाता था। 1971 से 1999 तक वे सांसद रहे। फर्राटेदार हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले ग्वालियर के पूर्व श्रीमंत सिंधिया की जमीनी पकड़ बेहद मजबूत थी। एक और खास बात यह है कि वे हमेशा खेलों से जुड़े रहे। मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के लंबे समय तक अध्यक्ष भी रहे। 2010: राम जन्मभूमि केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर 2010 को विवादित बाबरी मस्जिद मामले में जमीन के मालिकाना हक को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने 2:1 के बहुमत से विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटकर रामलला, निर्मोही अखाड़े और वक्फ बोर्ड को एक-एक हिस्सा देने का फैसला सुनाया। हालांकि, बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। पिछले साल नवंबर में फैसला आया कि विवादित जमीन पर राम जन्मभूमि बनना चाहिए और अगस्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसके लिए भूमिपूजन किया है। आज की तारीख को इन घटनाओं के लिए भी याद किया जाता है... 1687ः औरंगजेब ने हैदराबाद के गोलकुंडा के किले पर कब्जा किया। 1841ः अमेरिका के मशहूर वैज्ञानिक सैमुएल स्लॉकम ने 'स्टेप्लर' का पेटेंट कराया। 1846: डॉ. विलियम मॉर्टन ने एनेस्थेशिया का इस्तेमाल कर पहली बार दांत निकाला। 1947ः पाकिस्तान और यमन संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल हुए। 1967ः अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने मौद्रिक प्रणाली में सुधार किया। 1975: AH-64 अपाचे अटैक हेलिकॉप्टर ने पहली बार उड़ान भरी। 1984ः उत्तरी एवं दक्षिणी कोरिया के बीच 1945 के बाद पहली बार सीमाएं खोली गईं। 1993ः महाराष्ट्र के लातुर में भूकंप के कारण 10,000 से अधिक लोग मारे गए। लाखों बेघर हुए। 1996: तमिलनाडु की राजधानी का नाम मद्रास से बदलकर चेन्नई रखा गया। 2001ः इजरायल की आतंरिक मंत्रिपरिषद ने फिलीस्तीन के साथ हुए समझौते को मंजूरी दी। 2008: जोधपुर में मेहरानगढ़ फोर्ट के देवी मंदिर में भगदड़ से 200 से ज्यादा मौतें हुई थी। 2013: कोर्ट ने चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव को भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Today History for September 30th/ What Happened Today | Madhav Rao Scindia Private Plane Crashed| Allahabad High Court Ordered Three Divisions of Disputed Land In Ayodhya | Earthquake in Latur Maharashtra in 1993 https://ift.tt/34cJyn1 Dainik Bhaskar 19 साल पहले माधवराव सिंधिया का प्लेन क्रैश हुआ था, 1984 में ग्वालियर सीट पर अटल जी को हराया था 

हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में गए वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया का प्राइवेट प्लेन 30 सितंबर 2001 को क्रैश हो गया था। वे कुछ पत्रकारों के साथ यूपी के मैनपुरी में एक सभा को संबोधित करने जा रहे थे, तब उनके सेसना सी-90 एयरक्राफ्ट ने आग पकड़ ली थी।

खास बात यह थी कि उस समय देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका पार्थिव शरीर लाने के लिए विशेष विमान दिल्ली भेजा था। यह महत्वपूर्ण है कि सिंधिया ने ही 1984 में वाजपेयी को ग्वालियर में लोकसभा चुनाव में शिकस्त दी थी।

ग्वालियर के सिंधिया राजवंश में माधवराव का जन्म 10 मार्च 1945 को हुआ था। शुरुआती पढ़ाई सिंधिया स्कूल से और फिर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में उन्होंने हायर स्टडीज की। सिंधिया उस समय कांग्रेस में शामिल हुए थे, जब इंदिरा गांधी ने सत्ता गंवा दी थी। उन्हें सबसे सफल रेल मंत्रियों में से एक माना जाता है। उनके कार्यकाल में ही शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनें चलाई गई थी।

नरसिम्हा राव की कैबिनेट में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद भी हवाला कांड की वजह से 1996 में उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो उन्होंने मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस बना ली थी। हालांकि, सीताराम केसरी के कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही वे पार्टी में लौट आए थे।

1999 में जब सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा तो सिंधिया को कांग्रेस में प्रधानमंत्री पद का तगड़ा दावेदार समझा जाता था। सिंधिया लोकसभा में डिप्टी फ्लोर लीडर थे और उन्हें कांग्रेस प्रेसिडेंट और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी का विश्वासपात्र समझा जाता था। 1971 से 1999 तक वे सांसद रहे।

फर्राटेदार हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले ग्वालियर के पूर्व श्रीमंत सिंधिया की जमीनी पकड़ बेहद मजबूत थी। एक और खास बात यह है कि वे हमेशा खेलों से जुड़े रहे। मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के लंबे समय तक अध्यक्ष भी रहे।

2010: राम जन्मभूमि केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर 2010 को विवादित बाबरी मस्जिद मामले में जमीन के मालिकाना हक को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने 2:1 के बहुमत से विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटकर रामलला, निर्मोही अखाड़े और वक्फ बोर्ड को एक-एक हिस्सा देने का फैसला सुनाया।

हालांकि, बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। पिछले साल नवंबर में फैसला आया कि विवादित जमीन पर राम जन्मभूमि बनना चाहिए और अगस्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसके लिए भूमिपूजन किया है।

आज की तारीख को इन घटनाओं के लिए भी याद किया जाता है...

1687ः औरंगजेब ने हैदराबाद के गोलकुंडा के किले पर कब्जा किया।

1841ः अमेरिका के मशहूर वैज्ञानिक सैमुएल स्लॉकम ने 'स्टेप्लर' का पेटेंट कराया।

1846: डॉ. विलियम मॉर्टन ने एनेस्थेशिया का इस्तेमाल कर पहली बार दांत निकाला।

1947ः पाकिस्तान और यमन संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल हुए।

1967ः अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने मौद्रिक प्रणाली में सुधार किया।

1975: AH-64 अपाचे अटैक हेलिकॉप्टर ने पहली बार उड़ान भरी।

1984ः उत्तरी एवं दक्षिणी कोरिया के बीच 1945 के बाद पहली बार सीमाएं खोली गईं।

1993ः महाराष्ट्र के लातुर में भूकंप के कारण 10,000 से अधिक लोग मारे गए। लाखों बेघर हुए।

1996: तमिलनाडु की राजधानी का नाम मद्रास से बदलकर चेन्नई रखा गया।

2001ः इजरायल की आतंरिक मंत्रिपरिषद ने फिलीस्तीन के साथ हुए समझौते को मंजूरी दी।

2008: जोधपुर में मेहरानगढ़ फोर्ट के देवी मंदिर में भगदड़ से 200 से ज्यादा मौतें हुई थी।

2013: कोर्ट ने चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव को भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया।

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Today History for September 30th/ What Happened Today | Madhav Rao Scindia Private Plane Crashed| Allahabad High Court Ordered Three Divisions of Disputed Land In Ayodhya | Earthquake in Latur Maharashtra in 1993

https://ift.tt/34cJyn1 Dainik Bhaskar 19 साल पहले माधवराव सिंधिया का प्लेन क्रैश हुआ था, 1984 में ग्वालियर सीट पर अटल जी को हराया था Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) ने 28 सितंबर को देश की खानपान आदतों पर एक रिपोर्ट जारी की है। What India Eats यानी भारत क्या खाता है टाइटल से प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के शहरों और गांवों में खानपान से जुड़ी आदतों में एक बहुत बड़ा गैप है। यह रिपोर्ट कहती है कि शहरों में एब्डोमिनल ओबेसिटी यानी तोंद की समस्या 53.6% लोगों को यानी हर दूसरे व्यक्ति को है। वहीं, गांवों में यह 18.8% लोगों की समस्या है। बात जब ओवरवेट और ओबेसिटी (मोटापे) की आती है तो उसमें भी शहर (31.4% और 12.5%) गांवों (16.6% और 4.9%) से आगे है। क्या बॉडी मास इंडेक्स का कैल्कुलेशन बदल गया है? आईसीएमआर-एनआईएन की रिपोर्ट के अनुसार भारतीयों का आदर्श वजन अब 60 किलो नहीं बल्कि 65 किलो है। इसी तरह महिलाओं का आदर्श वजन 50 नहीं बल्कि 55 किलो हो गया है। 2010 में जो सिफारिशें की गई थी, उसमें पांच किलो वजन बढ़ाया गया है। भारतीय पुरुषों का आदर्श कद 5.6 फीट (171 सेमी) से बढ़ाकर 5.8 फीट (177 सेमी) हो गया है। महिलाओं का आदर्श कद भी 5 फीट (152 सेमी) से बढ़ाकर 5.3 फीट (162 सेमी) किया है। इससे बॉडी मास इंडेक्स (BMI) इंडेक्स निकालने का फार्मूला भी बदल सकता है। क्यों खास है यह What India Eats रिपोर्ट? दस साल पहले भी इस तरह की रिपोर्ट बनी थी, लेकिन तब गांवों का डेटा नहीं था। पहली बार अलग-अलग फूड ग्रुप्स से कुल एनर्जी, प्रोटीन, फैट्स और कार्बोहाइड्स का योगदान बताया गया है। इसमें दो राष्ट्रीय स्तर के सर्वे डेटा का इस्तेमाल किया गया है। रिपोर्ट में माय प्लेट की सिफारिश की गई है। आपकी थाली में फूड्स का सही अनुपात क्या होना चाहिए, यह बताया है। इससे इम्युन फंक्शन मजबूत होगा। डाइबिटीज, हायपरटेंशन, कोरोनरी हार्ट डिसीज, स्ट्रोक, कैंसर, आर्थराइटिस आदि बीमारियों से बचा भी जा सकता है। What India Eats रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4, नेशनल न्यूट्रिशन मॉनिटरिंग ब्यूरो, डब्ल्यूएचओ और इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स 2015 की रिपोर्ट्स को स्टडी किया गया है। क्या आपका खाना आपके शरीर की एनर्जी की जरूरतों को पूरा करता है? नहीं। रिपोर्ट कहती है कि शहरों में क्रॉनिक एनर्जी डिफिशियंसी 9.3% थी, जबकि गांवों में यह 35.4% थी। इसका मतलब है कि गांवों में रहने वाला हर तीसरा व्यक्ति खानपान से जुड़े किसी न किसी विकार से जूझ रहा है। शरीर को एनर्जी की जरूरतों को पूरा करने लायक खाना उन्हें नहीं मिल पा रहा है। रिपोर्ट कहती है कि शहरों में लोग हर दिन 1943 किलो कैलोरी ले रहे हैं, जो 289 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 51.6 ग्राम फैट्स, 55.4 ग्राम प्रोटीन से आ रही है। वहीं, ग्रामीण इलाकों में लोग 2081 किलो कैलोरी ले रहे हैं। यह 368 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 36 ग्राम फैट्स और 69 ग्राम प्रोटीन से आ रही है। फूड ग्रुप्स देखें तो शहरों में 998 किलो कैलोरी अनाज से, 265 किलो कैलोरी फैट्स से और 119 किलो कैलोरी दालों-फलियों से आती है। वहीं, गांवों में एनर्जी सोर्स के तौर पर अनाजों की भागीदारी (1358 किलो कैलोरी) सबसे ज्यादा है। इसके बाद फैट्स (145), दाल व फलियां (144) आती है। रिपोर्ट कहती है कि 66% प्रोटीन का सोर्स दालें, फलियां, नट्स, दूध, मांस होना चाहिए। लेकिन, ऐसा हो नहीं रहा। फल और सब्जियां कम खाने से डाइबिटीज और दूध व दूध के प्रोडक्ट्स कम खाने से हायपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) का खतरा बढ़ाता है। एनर्जी सोर्स के तौर पर क्या अनाज पर निर्भरता सही है? आईसीएमआर के हैदराबाद स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के मुताबिक अनाज आपकी 45% एनर्जी का सोर्स होना चाहिए। हकीकत यह है कि शहरों में 51% और गांवों में 65.2% एनर्जी सोर्स के तौर पर अनाज का सेवन हो रहा है। एनर्जी सोर्स के तौर पर दालों, फलियों, मांस, अंडे और मछली का योगदान 11% है, जबकि यह 17% होना चाहिए। इसी तरह, गांवों में 8.7% और शहरों में 14.3% आबादी ही दूध और दूध के प्रोडक्ट्स का सही मात्रा में सेवन करती है। सब्जियों की सही मात्रा लेने वाले भी गांवों में सिर्फ 8.8% और शहरों में 17% ही है। यदि आप नट्स और ऑइल सीड्स की बात करें तो सिर्फ 22% आबादी गांवों में और 27% आबादी शहरों में इसका सही मात्रा में सेवन कर रही है। यह रिपोर्ट कहती है कि शहरों में लोग एनर्जी की जरूरत का 11% हिस्सा चिप्स, बिस्कुट्स, चॉकलेट्स, मिठाइयों और ज्यूस से लेते हैं। वहीं, गांवों में स्थिति अच्छी है। वहां ऐसा करने वाले सिर्फ 4% है। अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन 5% ग्रामीण और 18% शहरी आबादी ही कर रही है। माय प्लेट की सिफारिशें क्या कहती हैं? रिपोर्ट में माय प्लेट के नाम से बताया है कि आपके लिए आदर्श थाली क्या होगी, जहां से आपको पर्याप्त एनर्जी मिलें और वह बेलेंस्ड डाइट कहलाएं। इसके लिए आपकी 45% कैलोरी/एनर्जी का सोर्स अनाज होना चाहिए। 17% कैलोरी/एनर्जी दालों और फ्लेश फूड्स और 10% कैलोरी/एनर्जी दूध और दूध के प्रोडक्ट्स से मिलना चाहिए। फैट इनटेक 30% या उससे कम होना चाहिए। पहली बार सिफारिशों में फाइबर-बेस्ड एनर्जी इनटेक शामिल किया है। इसके अनुसार रोज 40 ग्राम फाइबर-युक्त भोजन सेफ है। 5 ग्राम आयोडिन या नमक और 2 ग्राम सोडियम की इनटेक लिमिट तय की गई है। 3,510 मिलीग्राम पोटेशियम भी शरीर में न्यूट्रिशनल वैल्यू जोड़ेगी। सीडेंटरी, मॉडरेट और हेवी एक्टिविटी वाले पुरुषों के लिए 25, 30 और 40 ग्राम फैट्स की सिफारिश की गई है। इसी तरह की एक्टिविटी वाली महिलाओं के लिए फैट्स के इनटेक 20, 25 और 30 ग्राम प्रतिदिन सेट किए गए हैं। 2010 में पुरुषों और महिलाओं के लिए फैट इनटेक की सिफारिशें समान रखी गई थी। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें ICMR-Nutrition Institute of India releases What India Eats reports | Your Nutrition Guide | New Height and Weight Criterion for Indian Males and Females | Nutrition India | What You Should Eat https://ift.tt/3l1w98u Dainik Bhaskar भारत की आधी शहरी आबादी तोंद वाली! जानिए आपका कितना वजन आपको रखेगा आइडियल शेप में

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) ने 28 सितंबर को देश की खानपान आदतों पर एक रिपोर्ट जा...
- September 30, 2020
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) ने 28 सितंबर को देश की खानपान आदतों पर एक रिपोर्ट जारी की है। What India Eats यानी भारत क्या खाता है टाइटल से प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के शहरों और गांवों में खानपान से जुड़ी आदतों में एक बहुत बड़ा गैप है। यह रिपोर्ट कहती है कि शहरों में एब्डोमिनल ओबेसिटी यानी तोंद की समस्या 53.6% लोगों को यानी हर दूसरे व्यक्ति को है। वहीं, गांवों में यह 18.8% लोगों की समस्या है। बात जब ओवरवेट और ओबेसिटी (मोटापे) की आती है तो उसमें भी शहर (31.4% और 12.5%) गांवों (16.6% और 4.9%) से आगे है। क्या बॉडी मास इंडेक्स का कैल्कुलेशन बदल गया है? आईसीएमआर-एनआईएन की रिपोर्ट के अनुसार भारतीयों का आदर्श वजन अब 60 किलो नहीं बल्कि 65 किलो है। इसी तरह महिलाओं का आदर्श वजन 50 नहीं बल्कि 55 किलो हो गया है। 2010 में जो सिफारिशें की गई थी, उसमें पांच किलो वजन बढ़ाया गया है। भारतीय पुरुषों का आदर्श कद 5.6 फीट (171 सेमी) से बढ़ाकर 5.8 फीट (177 सेमी) हो गया है। महिलाओं का आदर्श कद भी 5 फीट (152 सेमी) से बढ़ाकर 5.3 फीट (162 सेमी) किया है। इससे बॉडी मास इंडेक्स (BMI) इंडेक्स निकालने का फार्मूला भी बदल सकता है। क्यों खास है यह What India Eats रिपोर्ट? दस साल पहले भी इस तरह की रिपोर्ट बनी थी, लेकिन तब गांवों का डेटा नहीं था। पहली बार अलग-अलग फूड ग्रुप्स से कुल एनर्जी, प्रोटीन, फैट्स और कार्बोहाइड्स का योगदान बताया गया है। इसमें दो राष्ट्रीय स्तर के सर्वे डेटा का इस्तेमाल किया गया है। रिपोर्ट में माय प्लेट की सिफारिश की गई है। आपकी थाली में फूड्स का सही अनुपात क्या होना चाहिए, यह बताया है। इससे इम्युन फंक्शन मजबूत होगा। डाइबिटीज, हायपरटेंशन, कोरोनरी हार्ट डिसीज, स्ट्रोक, कैंसर, आर्थराइटिस आदि बीमारियों से बचा भी जा सकता है। What India Eats रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4, नेशनल न्यूट्रिशन मॉनिटरिंग ब्यूरो, डब्ल्यूएचओ और इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स 2015 की रिपोर्ट्स को स्टडी किया गया है। क्या आपका खाना आपके शरीर की एनर्जी की जरूरतों को पूरा करता है? नहीं। रिपोर्ट कहती है कि शहरों में क्रॉनिक एनर्जी डिफिशियंसी 9.3% थी, जबकि गांवों में यह 35.4% थी। इसका मतलब है कि गांवों में रहने वाला हर तीसरा व्यक्ति खानपान से जुड़े किसी न किसी विकार से जूझ रहा है। शरीर को एनर्जी की जरूरतों को पूरा करने लायक खाना उन्हें नहीं मिल पा रहा है। रिपोर्ट कहती है कि शहरों में लोग हर दिन 1943 किलो कैलोरी ले रहे हैं, जो 289 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 51.6 ग्राम फैट्स, 55.4 ग्राम प्रोटीन से आ रही है। वहीं, ग्रामीण इलाकों में लोग 2081 किलो कैलोरी ले रहे हैं। यह 368 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 36 ग्राम फैट्स और 69 ग्राम प्रोटीन से आ रही है। फूड ग्रुप्स देखें तो शहरों में 998 किलो कैलोरी अनाज से, 265 किलो कैलोरी फैट्स से और 119 किलो कैलोरी दालों-फलियों से आती है। वहीं, गांवों में एनर्जी सोर्स के तौर पर अनाजों की भागीदारी (1358 किलो कैलोरी) सबसे ज्यादा है। इसके बाद फैट्स (145), दाल व फलियां (144) आती है। रिपोर्ट कहती है कि 66% प्रोटीन का सोर्स दालें, फलियां, नट्स, दूध, मांस होना चाहिए। लेकिन, ऐसा हो नहीं रहा। फल और सब्जियां कम खाने से डाइबिटीज और दूध व दूध के प्रोडक्ट्स कम खाने से हायपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) का खतरा बढ़ाता है। एनर्जी सोर्स के तौर पर क्या अनाज पर निर्भरता सही है? आईसीएमआर के हैदराबाद स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के मुताबिक अनाज आपकी 45% एनर्जी का सोर्स होना चाहिए। हकीकत यह है कि शहरों में 51% और गांवों में 65.2% एनर्जी सोर्स के तौर पर अनाज का सेवन हो रहा है। एनर्जी सोर्स के तौर पर दालों, फलियों, मांस, अंडे और मछली का योगदान 11% है, जबकि यह 17% होना चाहिए। इसी तरह, गांवों में 8.7% और शहरों में 14.3% आबादी ही दूध और दूध के प्रोडक्ट्स का सही मात्रा में सेवन करती है। सब्जियों की सही मात्रा लेने वाले भी गांवों में सिर्फ 8.8% और शहरों में 17% ही है। यदि आप नट्स और ऑइल सीड्स की बात करें तो सिर्फ 22% आबादी गांवों में और 27% आबादी शहरों में इसका सही मात्रा में सेवन कर रही है। यह रिपोर्ट कहती है कि शहरों में लोग एनर्जी की जरूरत का 11% हिस्सा चिप्स, बिस्कुट्स, चॉकलेट्स, मिठाइयों और ज्यूस से लेते हैं। वहीं, गांवों में स्थिति अच्छी है। वहां ऐसा करने वाले सिर्फ 4% है। अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन 5% ग्रामीण और 18% शहरी आबादी ही कर रही है। माय प्लेट की सिफारिशें क्या कहती हैं? रिपोर्ट में माय प्लेट के नाम से बताया है कि आपके लिए आदर्श थाली क्या होगी, जहां से आपको पर्याप्त एनर्जी मिलें और वह बेलेंस्ड डाइट कहलाएं। इसके लिए आपकी 45% कैलोरी/एनर्जी का सोर्स अनाज होना चाहिए। 17% कैलोरी/एनर्जी दालों और फ्लेश फूड्स और 10% कैलोरी/एनर्जी दूध और दूध के प्रोडक्ट्स से मिलना चाहिए। फैट इनटेक 30% या उससे कम होना चाहिए। पहली बार सिफारिशों में फाइबर-बेस्ड एनर्जी इनटेक शामिल किया है। इसके अनुसार रोज 40 ग्राम फाइबर-युक्त भोजन सेफ है। 5 ग्राम आयोडिन या नमक और 2 ग्राम सोडियम की इनटेक लिमिट तय की गई है। 3,510 मिलीग्राम पोटेशियम भी शरीर में न्यूट्रिशनल वैल्यू जोड़ेगी। सीडेंटरी, मॉडरेट और हेवी एक्टिविटी वाले पुरुषों के लिए 25, 30 और 40 ग्राम फैट्स की सिफारिश की गई है। इसी तरह की एक्टिविटी वाली महिलाओं के लिए फैट्स के इनटेक 20, 25 और 30 ग्राम प्रतिदिन सेट किए गए हैं। 2010 में पुरुषों और महिलाओं के लिए फैट इनटेक की सिफारिशें समान रखी गई थी। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें ICMR-Nutrition Institute of India releases What India Eats reports | Your Nutrition Guide | New Height and Weight Criterion for Indian Males and Females | Nutrition India | What You Should Eat https://ift.tt/3l1w98u Dainik Bhaskar भारत की आधी शहरी आबादी तोंद वाली! जानिए आपका कितना वजन आपको रखेगा आइडियल शेप में 

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) ने 28 सितंबर को देश की खानपान आदतों पर एक रिपोर्ट जारी की है। What India Eats यानी भारत क्या खाता है टाइटल से प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के शहरों और गांवों में खानपान से जुड़ी आदतों में एक बहुत बड़ा गैप है।

यह रिपोर्ट कहती है कि शहरों में एब्डोमिनल ओबेसिटी यानी तोंद की समस्या 53.6% लोगों को यानी हर दूसरे व्यक्ति को है। वहीं, गांवों में यह 18.8% लोगों की समस्या है। बात जब ओवरवेट और ओबेसिटी (मोटापे) की आती है तो उसमें भी शहर (31.4% और 12.5%) गांवों (16.6% और 4.9%) से आगे है।

क्या बॉडी मास इंडेक्स का कैल्कुलेशन बदल गया है?

आईसीएमआर-एनआईएन की रिपोर्ट के अनुसार भारतीयों का आदर्श वजन अब 60 किलो नहीं बल्कि 65 किलो है। इसी तरह महिलाओं का आदर्श वजन 50 नहीं बल्कि 55 किलो हो गया है। 2010 में जो सिफारिशें की गई थी, उसमें पांच किलो वजन बढ़ाया गया है।

भारतीय पुरुषों का आदर्श कद 5.6 फीट (171 सेमी) से बढ़ाकर 5.8 फीट (177 सेमी) हो गया है। महिलाओं का आदर्श कद भी 5 फीट (152 सेमी) से बढ़ाकर 5.3 फीट (162 सेमी) किया है। इससे बॉडी मास इंडेक्स (BMI) इंडेक्स निकालने का फार्मूला भी बदल सकता है।

क्यों खास है यह What India Eats रिपोर्ट?

दस साल पहले भी इस तरह की रिपोर्ट बनी थी, लेकिन तब गांवों का डेटा नहीं था। पहली बार अलग-अलग फूड ग्रुप्स से कुल एनर्जी, प्रोटीन, फैट्स और कार्बोहाइड्स का योगदान बताया गया है। इसमें दो राष्ट्रीय स्तर के सर्वे डेटा का इस्तेमाल किया गया है।

रिपोर्ट में माय प्लेट की सिफारिश की गई है। आपकी थाली में फूड्स का सही अनुपात क्या होना चाहिए, यह बताया है। इससे इम्युन फंक्शन मजबूत होगा। डाइबिटीज, हायपरटेंशन, कोरोनरी हार्ट डिसीज, स्ट्रोक, कैंसर, आर्थराइटिस आदि बीमारियों से बचा भी जा सकता है।

What India Eats रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4, नेशनल न्यूट्रिशन मॉनिटरिंग ब्यूरो, डब्ल्यूएचओ और इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स 2015 की रिपोर्ट्स को स्टडी किया गया है।

क्या आपका खाना आपके शरीर की एनर्जी की जरूरतों को पूरा करता है?

नहीं। रिपोर्ट कहती है कि शहरों में क्रॉनिक एनर्जी डिफिशियंसी 9.3% थी, जबकि गांवों में यह 35.4% थी। इसका मतलब है कि गांवों में रहने वाला हर तीसरा व्यक्ति खानपान से जुड़े किसी न किसी विकार से जूझ रहा है। शरीर को एनर्जी की जरूरतों को पूरा करने लायक खाना उन्हें नहीं मिल पा रहा है।

रिपोर्ट कहती है कि शहरों में लोग हर दिन 1943 किलो कैलोरी ले रहे हैं, जो 289 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 51.6 ग्राम फैट्स, 55.4 ग्राम प्रोटीन से आ रही है। वहीं, ग्रामीण इलाकों में लोग 2081 किलो कैलोरी ले रहे हैं। यह 368 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 36 ग्राम फैट्स और 69 ग्राम प्रोटीन से आ रही है।

फूड ग्रुप्स देखें तो शहरों में 998 किलो कैलोरी अनाज से, 265 किलो कैलोरी फैट्स से और 119 किलो कैलोरी दालों-फलियों से आती है। वहीं, गांवों में एनर्जी सोर्स के तौर पर अनाजों की भागीदारी (1358 किलो कैलोरी) सबसे ज्यादा है। इसके बाद फैट्स (145), दाल व फलियां (144) आती है।

रिपोर्ट कहती है कि 66% प्रोटीन का सोर्स दालें, फलियां, नट्स, दूध, मांस होना चाहिए। लेकिन, ऐसा हो नहीं रहा। फल और सब्जियां कम खाने से डाइबिटीज और दूध व दूध के प्रोडक्ट्स कम खाने से हायपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) का खतरा बढ़ाता है।

एनर्जी सोर्स के तौर पर क्या अनाज पर निर्भरता सही है?

आईसीएमआर के हैदराबाद स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के मुताबिक अनाज आपकी 45% एनर्जी का सोर्स होना चाहिए। हकीकत यह है कि शहरों में 51% और गांवों में 65.2% एनर्जी सोर्स के तौर पर अनाज का सेवन हो रहा है।

एनर्जी सोर्स के तौर पर दालों, फलियों, मांस, अंडे और मछली का योगदान 11% है, जबकि यह 17% होना चाहिए। इसी तरह, गांवों में 8.7% और शहरों में 14.3% आबादी ही दूध और दूध के प्रोडक्ट्स का सही मात्रा में सेवन करती है।

सब्जियों की सही मात्रा लेने वाले भी गांवों में सिर्फ 8.8% और शहरों में 17% ही है। यदि आप नट्स और ऑइल सीड्स की बात करें तो सिर्फ 22% आबादी गांवों में और 27% आबादी शहरों में इसका सही मात्रा में सेवन कर रही है।

यह रिपोर्ट कहती है कि शहरों में लोग एनर्जी की जरूरत का 11% हिस्सा चिप्स, बिस्कुट्स, चॉकलेट्स, मिठाइयों और ज्यूस से लेते हैं। वहीं, गांवों में स्थिति अच्छी है। वहां ऐसा करने वाले सिर्फ 4% है। अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन 5% ग्रामीण और 18% शहरी आबादी ही कर रही है।

माय प्लेट की सिफारिशें क्या कहती हैं?

रिपोर्ट में माय प्लेट के नाम से बताया है कि आपके लिए आदर्श थाली क्या होगी, जहां से आपको पर्याप्त एनर्जी मिलें और वह बेलेंस्ड डाइट कहलाएं। इसके लिए आपकी 45% कैलोरी/एनर्जी का सोर्स अनाज होना चाहिए। 17% कैलोरी/एनर्जी दालों और फ्लेश फूड्स और 10% कैलोरी/एनर्जी दूध और दूध के प्रोडक्ट्स से मिलना चाहिए। फैट इनटेक 30% या उससे कम होना चाहिए।

पहली बार सिफारिशों में फाइबर-बेस्ड एनर्जी इनटेक शामिल किया है। इसके अनुसार रोज 40 ग्राम फाइबर-युक्त भोजन सेफ है। 5 ग्राम आयोडिन या नमक और 2 ग्राम सोडियम की इनटेक लिमिट तय की गई है। 3,510 मिलीग्राम पोटेशियम भी शरीर में न्यूट्रिशनल वैल्यू जोड़ेगी।

सीडेंटरी, मॉडरेट और हेवी एक्टिविटी वाले पुरुषों के लिए 25, 30 और 40 ग्राम फैट्स की सिफारिश की गई है। इसी तरह की एक्टिविटी वाली महिलाओं के लिए फैट्स के इनटेक 20, 25 और 30 ग्राम प्रतिदिन सेट किए गए हैं। 2010 में पुरुषों और महिलाओं के लिए फैट इनटेक की सिफारिशें समान रखी गई थी।

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बिहार की राजधानी पटना में एक जगह है वीर चंद पटेल पथ। ये वो जगह है, जहां भाजपा का प्रदेश कार्यालय बना है। बिहार भाजपा के प्रदेश कार्यालय के मेन गेट से जब आप अंदर आएंगे, तो दाईं तरफ आपको एक पोर्टिको दिखेगा। पोर्टिको भी एक तरह से गेट ही होता है। पोर्टिको के अंदर से एक मेन गेट और है, इसकी दाहिनी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल का ऑफिस दिखेगा। प्रदेश अध्यक्ष के दफ्तर जाने के भी दो रास्ते बने हैं। पहला तो सामने से ही है और दूसरा बाएं तरफ है। प्रदेश अध्यक्ष के दफ्तर के ठीक बगल में भाजपा ने बिहार चुनाव के लिए वॉर रूम तैयार किया है। इस वॉर रूम में अलग-अलग विभागों के लिए अलग-अलग कैबिन बने हुए हैं। यहां चुनाव से जुड़े जरूरी या यूं कहें सबसे जरूरी काम हो रहे हैं। इस पूरे वॉर रूम की जिम्मेदारी एक व्यक्ति को प्रभारी के रूप में दी गई है और यहां से चुनाव की सभी तैयारियों को आखिरी रूप दिया जा रहा है। भाजपा के वॉर रूम में 35 लोगों की टीम है, जो 12 घंटे काम कर रही है। उनके खाने-पीने की व्यवस्था पार्टी दफ्तर में ही हो रही है। तो चलिए जानते हैं, भाजपा के इस वॉर रूम में जो अलग-अलग डिपार्टमेंट हैं, उनका क्या काम है... वर्चुअल रैलियों की तैयारी इस बार बिहार में बड़ी-बड़ी रैलियां तो नहीं होंगी। लिहाजा पार्टियां वर्चुअल रैलियों पर फोकस कर रही हैं। भाजपा ने काफी पहले से ही वर्चुअल रैलियों की शुरुआत कर दी थी। सबसे पहले जून में अमित शाह ने बिहार में वर्चुअल रैली की थी। वर्चुअल रैली की तैयारियों को लेकर वॉर रूम में एक अलग सेगमेंट बनाया गया है, जिसमें आईटी से जुड़े लोग रैली की तैयारियों को देखते हैं। यहां बैठे लोग वर्चुअल रैलियां कब, कहां और कैसे करानी है, इसका पूरा प्लान तैयार करते हैं। आने वाले समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत भाजपा के कई बड़े नेताओं की वर्चुअल रैली भी होनी है, उसकी तैयारियां भी इसी वॉर रूम में हो रही हैं। बड़े नेताओं के कार्यक्रम की तैयारी वॉर रूम में एक सेगमेंट सिर्फ बड़े नेताओं के कार्यक्रम की तैयारी करने के लिए बनाया है। बिहार में चुनाव प्रचार के लिए भाजपा के केंद्रीय स्तर के बड़े नेता आएंगे। ऐसे में उनके रहने, खाने-पीने की व्यवस्था की जिम्मेदारी इस सेगमेंट के लोगों के ऊपर है। इसके साथ ही आने वाले नेता, जहां प्रचार करने जाएंगे, वहां की व्यवस्था भी यही लोग करेंगे। प्रदेश स्तर के नेताओं के कार्यक्रम की तैयारी इसके साथ ही एक कैबिन प्रदेश स्तर के नेताओं के कार्यक्रम तय करने के लिए भी बनाया गया है। यहां तय हो रहा है कि किस नेता का किस क्षेत्र में ज्यादा प्रभाव है। ऐसे क्षेत्रों में उनका कार्यक्रम तय किया जा रहा है। इन नेताओं को वहां जाकर जनसंपर्क करना है। जातीय समीकरण देखने के लिए भी अलग कैबिन कहा जाता है कि बिहार में रोटी, बेटी और वोट जाति देखकर ही दिया जाता है। बिहार की राजनीति में जाति ही बड़ा फैक्टर भी साबित होती है। इसलिए भाजपा ने अपने वॉर रूम में एक कैबिन ऐसा बनाया है, जिसका काम जातीय समीकरणों को देखते हुए उस जाति के नेताओं के कार्यक्रम तय करना है। भाजपा के एक नेता को इसका प्रभारी बनाया गया है, जो ये तय करते हैं कि किस क्षेत्र में किस जाति का बड़ा वोट बैंक है और वहां उस जाति के बड़े नेता का कितना बड़ा प्रभाव है। इस वॉर रूम से ही तय होता है कि किस जाति के नेता को किस क्षेत्र में जाना है। एक कैबिन इलेक्शन मैनेजमेंट और घोषणापत्र का भाजपा के वॉर रूम में एक कैबिन इलेक्शन मैनेजमेंट और घोषणापत्र का है। मंत्री प्रेम कुमार की अध्यक्षता में एक टीम बनी है, जो घोषणापत्र पर काम कर रही है। घोषणापत्र तैयार करने की अलग टीम इसी तरह मंत्री मंगल पांडे की भी एक टीम है, जो अलग-अलग क्षेत्रों में चुनाव प्रचार कैसे किया जा रहा है, उन्हें किस तरह चुनाव प्रचार सामग्री चाहिए, चुनाव प्रचार करने वाली टीम को किस तरह की व्यवस्था चाहिए, इस पर काम कर रही है। गोपनीय शाखा नाम से भी डिपार्टमेंट भाजपा के वॉर रूम में एक गोपनीय शाखा नाम से डिपार्टमेंट भी है, जहां कोर टीम बैठकर चुनावी रणनीति तैयार करती है। विपक्षी पार्टियों को कैसे काउंटर करना है, सब यहीं से तय होता है। हालांकि, पार्टी नेताओं ने इस डिपार्टमेंट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Bihar Assembly Election 2020/BJP War Room Update: Know What Are the Roles and Responsibilities? Update From Patna Office https://ift.tt/33fQVei Dainik Bhaskar 35 लोगों की टीम रोज 12 घंटे काम कर रही; मोदी-शाह की वर्चुअल रैलियों के मैनेजमेंट से जातिगत समीकरण साधने तक की जिम्मेदारी

बिहार की राजधानी पटना में एक जगह है वीर चंद पटेल पथ। ये वो जगह है, जहां भाजपा का प्रदेश कार्यालय बना है। बिहार भाजपा के प्रदेश कार्यालय के ...
- September 30, 2020
बिहार की राजधानी पटना में एक जगह है वीर चंद पटेल पथ। ये वो जगह है, जहां भाजपा का प्रदेश कार्यालय बना है। बिहार भाजपा के प्रदेश कार्यालय के मेन गेट से जब आप अंदर आएंगे, तो दाईं तरफ आपको एक पोर्टिको दिखेगा। पोर्टिको भी एक तरह से गेट ही होता है। पोर्टिको के अंदर से एक मेन गेट और है, इसकी दाहिनी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल का ऑफिस दिखेगा। प्रदेश अध्यक्ष के दफ्तर जाने के भी दो रास्ते बने हैं। पहला तो सामने से ही है और दूसरा बाएं तरफ है। प्रदेश अध्यक्ष के दफ्तर के ठीक बगल में भाजपा ने बिहार चुनाव के लिए वॉर रूम तैयार किया है। इस वॉर रूम में अलग-अलग विभागों के लिए अलग-अलग कैबिन बने हुए हैं। यहां चुनाव से जुड़े जरूरी या यूं कहें सबसे जरूरी काम हो रहे हैं। इस पूरे वॉर रूम की जिम्मेदारी एक व्यक्ति को प्रभारी के रूप में दी गई है और यहां से चुनाव की सभी तैयारियों को आखिरी रूप दिया जा रहा है। भाजपा के वॉर रूम में 35 लोगों की टीम है, जो 12 घंटे काम कर रही है। उनके खाने-पीने की व्यवस्था पार्टी दफ्तर में ही हो रही है। तो चलिए जानते हैं, भाजपा के इस वॉर रूम में जो अलग-अलग डिपार्टमेंट हैं, उनका क्या काम है... वर्चुअल रैलियों की तैयारी इस बार बिहार में बड़ी-बड़ी रैलियां तो नहीं होंगी। लिहाजा पार्टियां वर्चुअल रैलियों पर फोकस कर रही हैं। भाजपा ने काफी पहले से ही वर्चुअल रैलियों की शुरुआत कर दी थी। सबसे पहले जून में अमित शाह ने बिहार में वर्चुअल रैली की थी। वर्चुअल रैली की तैयारियों को लेकर वॉर रूम में एक अलग सेगमेंट बनाया गया है, जिसमें आईटी से जुड़े लोग रैली की तैयारियों को देखते हैं। यहां बैठे लोग वर्चुअल रैलियां कब, कहां और कैसे करानी है, इसका पूरा प्लान तैयार करते हैं। आने वाले समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत भाजपा के कई बड़े नेताओं की वर्चुअल रैली भी होनी है, उसकी तैयारियां भी इसी वॉर रूम में हो रही हैं। बड़े नेताओं के कार्यक्रम की तैयारी वॉर रूम में एक सेगमेंट सिर्फ बड़े नेताओं के कार्यक्रम की तैयारी करने के लिए बनाया है। बिहार में चुनाव प्रचार के लिए भाजपा के केंद्रीय स्तर के बड़े नेता आएंगे। ऐसे में उनके रहने, खाने-पीने की व्यवस्था की जिम्मेदारी इस सेगमेंट के लोगों के ऊपर है। इसके साथ ही आने वाले नेता, जहां प्रचार करने जाएंगे, वहां की व्यवस्था भी यही लोग करेंगे। प्रदेश स्तर के नेताओं के कार्यक्रम की तैयारी इसके साथ ही एक कैबिन प्रदेश स्तर के नेताओं के कार्यक्रम तय करने के लिए भी बनाया गया है। यहां तय हो रहा है कि किस नेता का किस क्षेत्र में ज्यादा प्रभाव है। ऐसे क्षेत्रों में उनका कार्यक्रम तय किया जा रहा है। इन नेताओं को वहां जाकर जनसंपर्क करना है। जातीय समीकरण देखने के लिए भी अलग कैबिन कहा जाता है कि बिहार में रोटी, बेटी और वोट जाति देखकर ही दिया जाता है। बिहार की राजनीति में जाति ही बड़ा फैक्टर भी साबित होती है। इसलिए भाजपा ने अपने वॉर रूम में एक कैबिन ऐसा बनाया है, जिसका काम जातीय समीकरणों को देखते हुए उस जाति के नेताओं के कार्यक्रम तय करना है। भाजपा के एक नेता को इसका प्रभारी बनाया गया है, जो ये तय करते हैं कि किस क्षेत्र में किस जाति का बड़ा वोट बैंक है और वहां उस जाति के बड़े नेता का कितना बड़ा प्रभाव है। इस वॉर रूम से ही तय होता है कि किस जाति के नेता को किस क्षेत्र में जाना है। एक कैबिन इलेक्शन मैनेजमेंट और घोषणापत्र का भाजपा के वॉर रूम में एक कैबिन इलेक्शन मैनेजमेंट और घोषणापत्र का है। मंत्री प्रेम कुमार की अध्यक्षता में एक टीम बनी है, जो घोषणापत्र पर काम कर रही है। घोषणापत्र तैयार करने की अलग टीम इसी तरह मंत्री मंगल पांडे की भी एक टीम है, जो अलग-अलग क्षेत्रों में चुनाव प्रचार कैसे किया जा रहा है, उन्हें किस तरह चुनाव प्रचार सामग्री चाहिए, चुनाव प्रचार करने वाली टीम को किस तरह की व्यवस्था चाहिए, इस पर काम कर रही है। गोपनीय शाखा नाम से भी डिपार्टमेंट भाजपा के वॉर रूम में एक गोपनीय शाखा नाम से डिपार्टमेंट भी है, जहां कोर टीम बैठकर चुनावी रणनीति तैयार करती है। विपक्षी पार्टियों को कैसे काउंटर करना है, सब यहीं से तय होता है। हालांकि, पार्टी नेताओं ने इस डिपार्टमेंट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Bihar Assembly Election 2020/BJP War Room Update: Know What Are the Roles and Responsibilities? Update From Patna Office https://ift.tt/33fQVei Dainik Bhaskar 35 लोगों की टीम रोज 12 घंटे काम कर रही; मोदी-शाह की वर्चुअल रैलियों के मैनेजमेंट से जातिगत समीकरण साधने तक की जिम्मेदारी 

बिहार की राजधानी पटना में एक जगह है वीर चंद पटेल पथ। ये वो जगह है, जहां भाजपा का प्रदेश कार्यालय बना है। बिहार भाजपा के प्रदेश कार्यालय के मेन गेट से जब आप अंदर आएंगे, तो दाईं तरफ आपको एक पोर्टिको दिखेगा। पोर्टिको भी एक तरह से गेट ही होता है। पोर्टिको के अंदर से एक मेन गेट और है, इसकी दाहिनी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल का ऑफिस दिखेगा।

प्रदेश अध्यक्ष के दफ्तर जाने के भी दो रास्ते बने हैं। पहला तो सामने से ही है और दूसरा बाएं तरफ है। प्रदेश अध्यक्ष के दफ्तर के ठीक बगल में भाजपा ने बिहार चुनाव के लिए वॉर रूम तैयार किया है। इस वॉर रूम में अलग-अलग विभागों के लिए अलग-अलग कैबिन बने हुए हैं। यहां चुनाव से जुड़े जरूरी या यूं कहें सबसे जरूरी काम हो रहे हैं।

इस पूरे वॉर रूम की जिम्मेदारी एक व्यक्ति को प्रभारी के रूप में दी गई है और यहां से चुनाव की सभी तैयारियों को आखिरी रूप दिया जा रहा है। भाजपा के वॉर रूम में 35 लोगों की टीम है, जो 12 घंटे काम कर रही है। उनके खाने-पीने की व्यवस्था पार्टी दफ्तर में ही हो रही है।

तो चलिए जानते हैं, भाजपा के इस वॉर रूम में जो अलग-अलग डिपार्टमेंट हैं, उनका क्या काम है...

वर्चुअल रैलियों की तैयारी
इस बार बिहार में बड़ी-बड़ी रैलियां तो नहीं होंगी। लिहाजा पार्टियां वर्चुअल रैलियों पर फोकस कर रही हैं। भाजपा ने काफी पहले से ही वर्चुअल रैलियों की शुरुआत कर दी थी। सबसे पहले जून में अमित शाह ने बिहार में वर्चुअल रैली की थी।

वर्चुअल रैली की तैयारियों को लेकर वॉर रूम में एक अलग सेगमेंट बनाया गया है, जिसमें आईटी से जुड़े लोग रैली की तैयारियों को देखते हैं। यहां बैठे लोग वर्चुअल रैलियां कब, कहां और कैसे करानी है, इसका पूरा प्लान तैयार करते हैं।

आने वाले समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत भाजपा के कई बड़े नेताओं की वर्चुअल रैली भी होनी है, उसकी तैयारियां भी इसी वॉर रूम में हो रही हैं।

बड़े नेताओं के कार्यक्रम की तैयारी
वॉर रूम में एक सेगमेंट सिर्फ बड़े नेताओं के कार्यक्रम की तैयारी करने के लिए बनाया है। बिहार में चुनाव प्रचार के लिए भाजपा के केंद्रीय स्तर के बड़े नेता आएंगे। ऐसे में उनके रहने, खाने-पीने की व्यवस्था की जिम्मेदारी इस सेगमेंट के लोगों के ऊपर है। इसके साथ ही आने वाले नेता, जहां प्रचार करने जाएंगे, वहां की व्यवस्था भी यही लोग करेंगे।

प्रदेश स्तर के नेताओं के कार्यक्रम की तैयारी
इसके साथ ही एक कैबिन प्रदेश स्तर के नेताओं के कार्यक्रम तय करने के लिए भी बनाया गया है। यहां तय हो रहा है कि किस नेता का किस क्षेत्र में ज्यादा प्रभाव है। ऐसे क्षेत्रों में उनका कार्यक्रम तय किया जा रहा है। इन नेताओं को वहां जाकर जनसंपर्क करना है।

जातीय समीकरण देखने के लिए भी अलग कैबिन
कहा जाता है कि बिहार में रोटी, बेटी और वोट जाति देखकर ही दिया जाता है। बिहार की राजनीति में जाति ही बड़ा फैक्टर भी साबित होती है। इसलिए भाजपा ने अपने वॉर रूम में एक कैबिन ऐसा बनाया है, जिसका काम जातीय समीकरणों को देखते हुए उस जाति के नेताओं के कार्यक्रम तय करना है।

भाजपा के एक नेता को इसका प्रभारी बनाया गया है, जो ये तय करते हैं कि किस क्षेत्र में किस जाति का बड़ा वोट बैंक है और वहां उस जाति के बड़े नेता का कितना बड़ा प्रभाव है। इस वॉर रूम से ही तय होता है कि किस जाति के नेता को किस क्षेत्र में जाना है।

एक कैबिन इलेक्शन मैनेजमेंट और घोषणापत्र का
भाजपा के वॉर रूम में एक कैबिन इलेक्शन मैनेजमेंट और घोषणापत्र का है। मंत्री प्रेम कुमार की अध्यक्षता में एक टीम बनी है, जो घोषणापत्र पर काम कर रही है।

घोषणापत्र तैयार करने की अलग टीम
इसी तरह मंत्री मंगल पांडे की भी एक टीम है, जो अलग-अलग क्षेत्रों में चुनाव प्रचार कैसे किया जा रहा है, उन्हें किस तरह चुनाव प्रचार सामग्री चाहिए, चुनाव प्रचार करने वाली टीम को किस तरह की व्यवस्था चाहिए, इस पर काम कर रही है।

गोपनीय शाखा नाम से भी डिपार्टमेंट
भाजपा के वॉर रूम में एक गोपनीय शाखा नाम से डिपार्टमेंट भी है, जहां कोर टीम बैठकर चुनावी रणनीति तैयार करती है। विपक्षी पार्टियों को कैसे काउंटर करना है, सब यहीं से तय होता है। हालांकि, पार्टी नेताओं ने इस डिपार्टमेंट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है।

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Bihar Assembly Election 2020/BJP War Room Update: Know What Are the Roles and Responsibilities? Update From Patna Office

https://ift.tt/33fQVei Dainik Bhaskar 35 लोगों की टीम रोज 12 घंटे काम कर रही; मोदी-शाह की वर्चुअल रैलियों के मैनेजमेंट से जातिगत समीकरण साधने तक की जिम्मेदारी Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

बिहार में चुनाव है और दीवाली से पहले नई विधानसभा का गठन भी हो जाएगा। एक सवाल आपसे, आप इस बार कैसी विधानसभा चाहते हैं? आपका जवाब शायद यही होगा कि ऐसी विधानसभा जिसमें साफ छवि के जमीनी नेता हों। लेकिन, पिछले तीन विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो पता चलता है कि आप ऐसी विधानसभा तो नहीं चुन रहे। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट बताती है कि 2015 में जितने विधायक चुनकर आए थे, उनमें से 57% यानी 142 पर आपराधिक मामले दर्ज थे, जो 2010 के मुकाबले 10% ज्यादा थे। 2010 में 141 दागी विधायक थे। 2005 में ऐसे 117 विधायक थे। दागी विधायकः सबसे ज्यादा राजद के विधायकों पर आपराधिक मामले 2015 में हुए विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा 46 दागी विधायक राजद से चुनकर आए थे। उसके बाद जदयू के 37 और भाजपा के 34 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज थे। कांग्रेस के 27 में से 16 विधायक दागी थे। करोड़पति विधायकः 2015 में जदयू के 71 में से 53 विधायक करोड़पति थे पिछले विधानसभा में चुनकर आए 243 विधायकों में से 162 विधायक ऐसे थे, जिनके पास 1 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति थी। सबसे ज्यादा करोड़पति विधायक जदयू के थे। जदयू के 71 में से 53 यानी 75% विधायक करोड़पति थे। पिछली तीन विधानसभा में करोड़पति विधायकों की संख्या तेजी से बढ़ी है। अक्टूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनावों में 8 करोड़पति विधायक जीतकर आए थे, जिनकी संख्या 2010 में बढ़कर 48 हो गई। महिला विधायकः तीन चुनावों से महिला विधायकों की संख्या घट रही बिहार विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या भी लगातार घट रही है। अक्टूबर 2005 में 35 महिलाएं विधायक बनी थीं। 2010 के चुनाव में इनकी संख्या घटकर 34 हो गई। जबकि, 2015 में तो 28 महिला विधायक ही रहीं। यानी अभी विधानसभा में सिर्फ 11.5% महिला विधायक हैं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Bihar Election 2020 Vs 2005 Vs 2010 2015: Bihar MLAs With Criminal Cases | How Many Crorepati and Criminal MLA From BJP JDU RJD Party? All You Need To Know https://ift.tt/2ScPqqR Dainik Bhaskar अभी तो 142 दागियन के बहार बा, करोड़पतियन के आंकड़ा 162 के पार बा, क्या इस बार भी ऐसी ही विधानसभा बनावे के बिचार बा?

बिहार में चुनाव है और दीवाली से पहले नई विधानसभा का गठन भी हो जाएगा। एक सवाल आपसे, आप इस बार कैसी विधानसभा चाहते हैं? आपका जवाब शायद यही हो...
- September 30, 2020
बिहार में चुनाव है और दीवाली से पहले नई विधानसभा का गठन भी हो जाएगा। एक सवाल आपसे, आप इस बार कैसी विधानसभा चाहते हैं? आपका जवाब शायद यही होगा कि ऐसी विधानसभा जिसमें साफ छवि के जमीनी नेता हों। लेकिन, पिछले तीन विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो पता चलता है कि आप ऐसी विधानसभा तो नहीं चुन रहे। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट बताती है कि 2015 में जितने विधायक चुनकर आए थे, उनमें से 57% यानी 142 पर आपराधिक मामले दर्ज थे, जो 2010 के मुकाबले 10% ज्यादा थे। 2010 में 141 दागी विधायक थे। 2005 में ऐसे 117 विधायक थे। दागी विधायकः सबसे ज्यादा राजद के विधायकों पर आपराधिक मामले 2015 में हुए विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा 46 दागी विधायक राजद से चुनकर आए थे। उसके बाद जदयू के 37 और भाजपा के 34 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज थे। कांग्रेस के 27 में से 16 विधायक दागी थे। करोड़पति विधायकः 2015 में जदयू के 71 में से 53 विधायक करोड़पति थे पिछले विधानसभा में चुनकर आए 243 विधायकों में से 162 विधायक ऐसे थे, जिनके पास 1 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति थी। सबसे ज्यादा करोड़पति विधायक जदयू के थे। जदयू के 71 में से 53 यानी 75% विधायक करोड़पति थे। पिछली तीन विधानसभा में करोड़पति विधायकों की संख्या तेजी से बढ़ी है। अक्टूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनावों में 8 करोड़पति विधायक जीतकर आए थे, जिनकी संख्या 2010 में बढ़कर 48 हो गई। महिला विधायकः तीन चुनावों से महिला विधायकों की संख्या घट रही बिहार विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या भी लगातार घट रही है। अक्टूबर 2005 में 35 महिलाएं विधायक बनी थीं। 2010 के चुनाव में इनकी संख्या घटकर 34 हो गई। जबकि, 2015 में तो 28 महिला विधायक ही रहीं। यानी अभी विधानसभा में सिर्फ 11.5% महिला विधायक हैं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Bihar Election 2020 Vs 2005 Vs 2010 2015: Bihar MLAs With Criminal Cases | How Many Crorepati and Criminal MLA From BJP JDU RJD Party? All You Need To Know https://ift.tt/2ScPqqR Dainik Bhaskar अभी तो 142 दागियन के बहार बा, करोड़पतियन के आंकड़ा 162 के पार बा, क्या इस बार भी ऐसी ही विधानसभा बनावे के बिचार बा? 

बिहार में चुनाव है और दीवाली से पहले नई विधानसभा का गठन भी हो जाएगा। एक सवाल आपसे, आप इस बार कैसी विधानसभा चाहते हैं? आपका जवाब शायद यही होगा कि ऐसी विधानसभा जिसमें साफ छवि के जमीनी नेता हों। लेकिन, पिछले तीन विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो पता चलता है कि आप ऐसी विधानसभा तो नहीं चुन रहे।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट बताती है कि 2015 में जितने विधायक चुनकर आए थे, उनमें से 57% यानी 142 पर आपराधिक मामले दर्ज थे, जो 2010 के मुकाबले 10% ज्यादा थे। 2010 में 141 दागी विधायक थे। 2005 में ऐसे 117 विधायक थे।

दागी विधायकः सबसे ज्यादा राजद के विधायकों पर आपराधिक मामले

2015 में हुए विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा 46 दागी विधायक राजद से चुनकर आए थे। उसके बाद जदयू के 37 और भाजपा के 34 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज थे। कांग्रेस के 27 में से 16 विधायक दागी थे।

करोड़पति विधायकः 2015 में जदयू के 71 में से 53 विधायक करोड़पति थे

पिछले विधानसभा में चुनकर आए 243 विधायकों में से 162 विधायक ऐसे थे, जिनके पास 1 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति थी। सबसे ज्यादा करोड़पति विधायक जदयू के थे। जदयू के 71 में से 53 यानी 75% विधायक करोड़पति थे।

पिछली तीन विधानसभा में करोड़पति विधायकों की संख्या तेजी से बढ़ी है। अक्टूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनावों में 8 करोड़पति विधायक जीतकर आए थे, जिनकी संख्या 2010 में बढ़कर 48 हो गई।

महिला विधायकः तीन चुनावों से महिला विधायकों की संख्या घट रही

बिहार विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या भी लगातार घट रही है। अक्टूबर 2005 में 35 महिलाएं विधायक बनी थीं। 2010 के चुनाव में इनकी संख्या घटकर 34 हो गई। जबकि, 2015 में तो 28 महिला विधायक ही रहीं। यानी अभी विधानसभा में सिर्फ 11.5% महिला विधायक हैं।

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Bihar Election 2020 Vs 2005 Vs 2010 2015: Bihar MLAs With Criminal Cases | How Many Crorepati and Criminal MLA From BJP JDU RJD Party? All You Need To Know

https://ift.tt/2ScPqqR Dainik Bhaskar अभी तो 142 दागियन के बहार बा, करोड़पतियन के आंकड़ा 162 के पार बा, क्या इस बार भी ऐसी ही विधानसभा बनावे के बिचार बा? Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

बेंगलुरु की रहने वाली स्नेहा सिरिवरा ने कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की है। एक आईटी कंपनी में उनकी जॉब भी लगी। अच्छी खासी सैलरी भी थी लेकिन, स्नेहा का मन नौकरी करने में नहीं लग रहा था। वह कुछ अपना बिजनेस करना चाहती थीं। सालभर बाद ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अपने घर से ही साउथ इंडियन मसालों का बिजनेस शुरू किया। आज हर महीने 1 हजार से ज्यादा मसालों के पैकेट वो बेचती हैं, भारत के साथ-साथ अमेरिका और कनाडा में वो प्रोडक्ट सप्लाई करती हैं। वो अभी 20 लाख रुपए सालाना कमा रही हैं। स्नेहा कहती हैं, 'मेरे कुछ रिश्तेदार दूसरे राज्यों में रहते हैं, अक्सर उनकी शिकायत रहती थी कि उन्हें साउथ इंडियन मसाले नहीं मिलते हैं। अगर किसी स्टोर या दुकान पर कुछ मसाले मिलते भी हैं तो उनमें न तो स्वाद होता है और न ही वो खुशबू होती है जो यहां के मसालों में होती है। स्नेहा कहती हैं कि लॉकडाउन के दौरान फिल्टर कॉफी की डिमांड खूब रही। लोग इसे ज्यादा पसंद करते हैं। इसके बाद मैंने घर से ही मसाले तैयार करके कुछ पैकेट्स उन्हें कुरियर से भेजे, जो उन्हें काफी पसंद आए। इसके बाद दूसरे लोग भी मुझसे मसालों की डिमांड करने लगे। तब मुझे लगा कि इसी फिल्ड में अपना बिजनेस शुरू करना चाहिए। 2013 में मैंने नौकरी छोड़ दी। 29 साल की स्नेहा के पेरेंट्स बैंक से रिटायर्ड हैं। दोनों स्नेहा के काम में हाथ बंटाते हैं। स्नेहा कहती हैं, 'नौकरी छोड़ने के बाद मैंने मां, दादी और रिश्तेदारों में जो महिलाएं हैं, उनसे मसालों के बारे में पूछा, बेसिक काम सीखा। कौन-कौन से मसालों की डिमांड ज्यादा है और वे कैसे तैयार होते हैं, इसके बारे में जानकारी जुटाई।' स्नेहा बताती हैं, 'मैंने 2013 में अपने घर के गैरेज से काम की शुरुआत की। वहीं, पर हम लोग प्रोडक्शन से लेकर पैकेजिंग का काम करते थे। जो मसाले हमने तैयार किए उसे कुछ लोगों को पार्सल भेज दिया फिर बाकी मसालों के लिए हम लोकल रिटेलर्स के पास गए और उन्हें अपने प्रोडक्ट के बारे में बताया। उन्हें हमारे प्रोडक्ट पसंद आए और वे लोग हमसे ऑर्डर लेने लगे। इस तरह हमारा काम बढ़ता गया और हम प्रोडक्ट की क्वांटिटी बढ़ाते गए। कुछ दिनों के बाद हमने सांभर स्टोरीज नाम से एक वेबसाइट लॉन्च की और सभी प्रोडक्ट्स उसपर अपलोड कर दिए।' स्नेहा बताती हैं कि हमारे प्रोडक्ट 100 फीसदी नेचुरल होते हैं। हम हर चीज घर की इस्तेमाल करते हैं। मसालों के लिए रॉ मटेरियल भी गांव से मंगाते हैं ताकि कहीं से कुछ भी मिलावट वाली नहीं हो। स्नेहा बताती हैं कि जिन रिश्तेदारों को अपना प्रोडक्ट भेजा था, उन्होंने माउथ पब्लिसिटी कर दी थी, हमें लोगों के ऑर्डर भी मिल रहे थे लेकिन इनकी संख्या कम थी। बड़े लेवल पर कस्टमर्स तक पहुंचने में हमें कुछ वक्त लगा, थोड़ी स्ट्रगल करनी पड़ी। इसके बाद हमने सोशल मीडिया की मदद ली, फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट किए। इसके बाद हमारे बिजनेस का दायरा बढ़ता गया। कुछ दिनों बाद हमने वॉट्सऐप बिजनेस भी शुरू किया। अपना ग्रुप बनाकर लोगों को जोड़ने का काम किया और उस पर ऑर्डर भी लेना शुरू कर दिया। जो लोग ऑनलाइन ऑर्डर नहीं कर सकते, उनके लिए वॉट्सऐप पर ऑर्डर करना आसान हो गया, खासकर कम पढ़ी लिखी महिलाओं के लिए। वो कहती हैं, 'जब काम का दायरा बढ़ गया तो 2018 में हमने सांभर स्टोरीज के नाम से अपनी फैक्ट्री की शुरुआत की। अभी 6-7 लोग हमारे यहां काम करते हैं। हम लोग मसाले के साथ-साथ चटनी पाउडर, पिकल पाउडर, फिल्टर कॉफी पाउडर, स्नैक्स सहित 50 प्रोडक्ट्स की सप्लाई करते हैं। इंडिया के साथ- साथ अब हम दूसरे देशों में भी प्रोडक्ट्स की सप्लाई कर रहे हैं।' स्नेहा अभी मसाले के साथ-साथ चटनी पाउडर, पिकल पाउडर, फिल्टर कॉफी पाउडर, स्नैक्स सहित 50 प्रोडक्ट्स की सप्लाई कर रही हैं। कोरोना और लॉकडाउन को लेकर स्नेहा कहती हैं, 'बिजनेस का फायदा हमें इस दौरान हुआ, जो लोग बाहर दुकान से सामान नहीं खरीद सकते थे वे ऑनलाइन ऑर्डर करने लगे। कई लोग तो हमारे परमानेंट कस्टमर्स बन गए हैं, वे रेगुलर हमारे प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं। सांभर पाउडर और फिल्टर कॉफी पाउडर की डिमांड इस दौरान सबसे ज्यादा रही।' स्नेहा बताती हैं कि हमारे प्रोडक्ट 100 फीसदी नेचुरल होते हैं। हम हर चीज घर की इस्तेमाल करते हैं। मसालों के लिए रॉ मटेरियल भी गांव से मंगाते हैं ताकि कहीं से कुछ भी मिलावट नहीं हो। हम लोग इन मसालों में कोई केमिकल या प्रिजर्वेटिव्स भी ऐड नहीं करते हैं। यही हमारा यूएसपी है, जिसे लोग पसंद करते हैं। ये पॉजिटिव खबरें भी आप पढ़ सकते हैं... 1. तीन साल पहले कपड़ों का ऑनलाइन बिजनेस शुरू किया, कोरोना आया तो लॉन्च की पीपीई किट, 5 करोड़ रु पहुंचा टर्नओवर 2. मेरठ की गीता ने दिल्ली में 50 हजार रु से शुरू किया बिजनेस, 6 साल में 7 करोड़ रु टर्नओवर, पिछले महीने यूरोप में भी एक ऑफिस खोला 3. पुणे की मेघा सलाद बेचकर हर महीने कमाने लगीं एक लाख रुपए, 3 हजार रुपए से काम शुरू किया था 4. इंजीनियरिंग के बाद सरपंच बनी इस बेटी ने बदल दी गांव की तस्वीर, गलियों में सीसीटीवी और सोलर लाइट्स लगवाए, यहां के बच्चे अब संस्कृत बोलते हैं आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें स्नेहा सिरिवरा कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग करने के बाद मसालों का ऑनलाइन बिजनेस कर रही हैं। उनके माता-पिता भी उनके इस काम में मदद करते हैं। https://ift.tt/36oul5n Dainik Bhaskar इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ घर के गैरेज से ऑनलाइन बेचने लगीं मसाले, 20 लाख रु टर्नओवर, अमेरिका-कनाडा से भी मिले ऑर्डर

बेंगलुरु की रहने वाली स्नेहा सिरिवरा ने कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की है। एक आईटी कंपनी में उनकी जॉब भी लगी। अच्छी खासी सैलरी भी थी लेक...
- September 30, 2020
बेंगलुरु की रहने वाली स्नेहा सिरिवरा ने कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की है। एक आईटी कंपनी में उनकी जॉब भी लगी। अच्छी खासी सैलरी भी थी लेकिन, स्नेहा का मन नौकरी करने में नहीं लग रहा था। वह कुछ अपना बिजनेस करना चाहती थीं। सालभर बाद ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अपने घर से ही साउथ इंडियन मसालों का बिजनेस शुरू किया। आज हर महीने 1 हजार से ज्यादा मसालों के पैकेट वो बेचती हैं, भारत के साथ-साथ अमेरिका और कनाडा में वो प्रोडक्ट सप्लाई करती हैं। वो अभी 20 लाख रुपए सालाना कमा रही हैं। स्नेहा कहती हैं, 'मेरे कुछ रिश्तेदार दूसरे राज्यों में रहते हैं, अक्सर उनकी शिकायत रहती थी कि उन्हें साउथ इंडियन मसाले नहीं मिलते हैं। अगर किसी स्टोर या दुकान पर कुछ मसाले मिलते भी हैं तो उनमें न तो स्वाद होता है और न ही वो खुशबू होती है जो यहां के मसालों में होती है। स्नेहा कहती हैं कि लॉकडाउन के दौरान फिल्टर कॉफी की डिमांड खूब रही। लोग इसे ज्यादा पसंद करते हैं। इसके बाद मैंने घर से ही मसाले तैयार करके कुछ पैकेट्स उन्हें कुरियर से भेजे, जो उन्हें काफी पसंद आए। इसके बाद दूसरे लोग भी मुझसे मसालों की डिमांड करने लगे। तब मुझे लगा कि इसी फिल्ड में अपना बिजनेस शुरू करना चाहिए। 2013 में मैंने नौकरी छोड़ दी। 29 साल की स्नेहा के पेरेंट्स बैंक से रिटायर्ड हैं। दोनों स्नेहा के काम में हाथ बंटाते हैं। स्नेहा कहती हैं, 'नौकरी छोड़ने के बाद मैंने मां, दादी और रिश्तेदारों में जो महिलाएं हैं, उनसे मसालों के बारे में पूछा, बेसिक काम सीखा। कौन-कौन से मसालों की डिमांड ज्यादा है और वे कैसे तैयार होते हैं, इसके बारे में जानकारी जुटाई।' स्नेहा बताती हैं, 'मैंने 2013 में अपने घर के गैरेज से काम की शुरुआत की। वहीं, पर हम लोग प्रोडक्शन से लेकर पैकेजिंग का काम करते थे। जो मसाले हमने तैयार किए उसे कुछ लोगों को पार्सल भेज दिया फिर बाकी मसालों के लिए हम लोकल रिटेलर्स के पास गए और उन्हें अपने प्रोडक्ट के बारे में बताया। उन्हें हमारे प्रोडक्ट पसंद आए और वे लोग हमसे ऑर्डर लेने लगे। इस तरह हमारा काम बढ़ता गया और हम प्रोडक्ट की क्वांटिटी बढ़ाते गए। कुछ दिनों के बाद हमने सांभर स्टोरीज नाम से एक वेबसाइट लॉन्च की और सभी प्रोडक्ट्स उसपर अपलोड कर दिए।' स्नेहा बताती हैं कि हमारे प्रोडक्ट 100 फीसदी नेचुरल होते हैं। हम हर चीज घर की इस्तेमाल करते हैं। मसालों के लिए रॉ मटेरियल भी गांव से मंगाते हैं ताकि कहीं से कुछ भी मिलावट वाली नहीं हो। स्नेहा बताती हैं कि जिन रिश्तेदारों को अपना प्रोडक्ट भेजा था, उन्होंने माउथ पब्लिसिटी कर दी थी, हमें लोगों के ऑर्डर भी मिल रहे थे लेकिन इनकी संख्या कम थी। बड़े लेवल पर कस्टमर्स तक पहुंचने में हमें कुछ वक्त लगा, थोड़ी स्ट्रगल करनी पड़ी। इसके बाद हमने सोशल मीडिया की मदद ली, फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट किए। इसके बाद हमारे बिजनेस का दायरा बढ़ता गया। कुछ दिनों बाद हमने वॉट्सऐप बिजनेस भी शुरू किया। अपना ग्रुप बनाकर लोगों को जोड़ने का काम किया और उस पर ऑर्डर भी लेना शुरू कर दिया। जो लोग ऑनलाइन ऑर्डर नहीं कर सकते, उनके लिए वॉट्सऐप पर ऑर्डर करना आसान हो गया, खासकर कम पढ़ी लिखी महिलाओं के लिए। वो कहती हैं, 'जब काम का दायरा बढ़ गया तो 2018 में हमने सांभर स्टोरीज के नाम से अपनी फैक्ट्री की शुरुआत की। अभी 6-7 लोग हमारे यहां काम करते हैं। हम लोग मसाले के साथ-साथ चटनी पाउडर, पिकल पाउडर, फिल्टर कॉफी पाउडर, स्नैक्स सहित 50 प्रोडक्ट्स की सप्लाई करते हैं। इंडिया के साथ- साथ अब हम दूसरे देशों में भी प्रोडक्ट्स की सप्लाई कर रहे हैं।' स्नेहा अभी मसाले के साथ-साथ चटनी पाउडर, पिकल पाउडर, फिल्टर कॉफी पाउडर, स्नैक्स सहित 50 प्रोडक्ट्स की सप्लाई कर रही हैं। कोरोना और लॉकडाउन को लेकर स्नेहा कहती हैं, 'बिजनेस का फायदा हमें इस दौरान हुआ, जो लोग बाहर दुकान से सामान नहीं खरीद सकते थे वे ऑनलाइन ऑर्डर करने लगे। कई लोग तो हमारे परमानेंट कस्टमर्स बन गए हैं, वे रेगुलर हमारे प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं। सांभर पाउडर और फिल्टर कॉफी पाउडर की डिमांड इस दौरान सबसे ज्यादा रही।' स्नेहा बताती हैं कि हमारे प्रोडक्ट 100 फीसदी नेचुरल होते हैं। हम हर चीज घर की इस्तेमाल करते हैं। मसालों के लिए रॉ मटेरियल भी गांव से मंगाते हैं ताकि कहीं से कुछ भी मिलावट नहीं हो। हम लोग इन मसालों में कोई केमिकल या प्रिजर्वेटिव्स भी ऐड नहीं करते हैं। यही हमारा यूएसपी है, जिसे लोग पसंद करते हैं। ये पॉजिटिव खबरें भी आप पढ़ सकते हैं... 1. तीन साल पहले कपड़ों का ऑनलाइन बिजनेस शुरू किया, कोरोना आया तो लॉन्च की पीपीई किट, 5 करोड़ रु पहुंचा टर्नओवर 2. मेरठ की गीता ने दिल्ली में 50 हजार रु से शुरू किया बिजनेस, 6 साल में 7 करोड़ रु टर्नओवर, पिछले महीने यूरोप में भी एक ऑफिस खोला 3. पुणे की मेघा सलाद बेचकर हर महीने कमाने लगीं एक लाख रुपए, 3 हजार रुपए से काम शुरू किया था 4. इंजीनियरिंग के बाद सरपंच बनी इस बेटी ने बदल दी गांव की तस्वीर, गलियों में सीसीटीवी और सोलर लाइट्स लगवाए, यहां के बच्चे अब संस्कृत बोलते हैं आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें स्नेहा सिरिवरा कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग करने के बाद मसालों का ऑनलाइन बिजनेस कर रही हैं। उनके माता-पिता भी उनके इस काम में मदद करते हैं। https://ift.tt/36oul5n Dainik Bhaskar इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ घर के गैरेज से ऑनलाइन बेचने लगीं मसाले, 20 लाख रु टर्नओवर, अमेरिका-कनाडा से भी मिले ऑर्डर 

बेंगलुरु की रहने वाली स्नेहा सिरिवरा ने कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की है। एक आईटी कंपनी में उनकी जॉब भी लगी। अच्छी खासी सैलरी भी थी लेकिन, स्नेहा का मन नौकरी करने में नहीं लग रहा था। वह कुछ अपना बिजनेस करना चाहती थीं। सालभर बाद ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अपने घर से ही साउथ इंडियन मसालों का बिजनेस शुरू किया।

आज हर महीने 1 हजार से ज्यादा मसालों के पैकेट वो बेचती हैं, भारत के साथ-साथ अमेरिका और कनाडा में वो प्रोडक्ट सप्लाई करती हैं। वो अभी 20 लाख रुपए सालाना कमा रही हैं। स्नेहा कहती हैं, 'मेरे कुछ रिश्तेदार दूसरे राज्यों में रहते हैं, अक्सर उनकी शिकायत रहती थी कि उन्हें साउथ इंडियन मसाले नहीं मिलते हैं। अगर किसी स्टोर या दुकान पर कुछ मसाले मिलते भी हैं तो उनमें न तो स्वाद होता है और न ही वो खुशबू होती है जो यहां के मसालों में होती है।

स्नेहा कहती हैं कि लॉकडाउन के दौरान फिल्टर कॉफी की डिमांड खूब रही। लोग इसे ज्यादा पसंद करते हैं।

इसके बाद मैंने घर से ही मसाले तैयार करके कुछ पैकेट्स उन्हें कुरियर से भेजे, जो उन्हें काफी पसंद आए। इसके बाद दूसरे लोग भी मुझसे मसालों की डिमांड करने लगे। तब मुझे लगा कि इसी फिल्ड में अपना बिजनेस शुरू करना चाहिए। 2013 में मैंने नौकरी छोड़ दी।

29 साल की स्नेहा के पेरेंट्स बैंक से रिटायर्ड हैं। दोनों स्नेहा के काम में हाथ बंटाते हैं। स्नेहा कहती हैं, 'नौकरी छोड़ने के बाद मैंने मां, दादी और रिश्तेदारों में जो महिलाएं हैं, उनसे मसालों के बारे में पूछा, बेसिक काम सीखा। कौन-कौन से मसालों की डिमांड ज्यादा है और वे कैसे तैयार होते हैं, इसके बारे में जानकारी जुटाई।'

स्नेहा बताती हैं, 'मैंने 2013 में अपने घर के गैरेज से काम की शुरुआत की। वहीं, पर हम लोग प्रोडक्शन से लेकर पैकेजिंग का काम करते थे। जो मसाले हमने तैयार किए उसे कुछ लोगों को पार्सल भेज दिया फिर बाकी मसालों के लिए हम लोकल रिटेलर्स के पास गए और उन्हें अपने प्रोडक्ट के बारे में बताया। उन्हें हमारे प्रोडक्ट पसंद आए और वे लोग हमसे ऑर्डर लेने लगे। इस तरह हमारा काम बढ़ता गया और हम प्रोडक्ट की क्वांटिटी बढ़ाते गए। कुछ दिनों के बाद हमने सांभर स्टोरीज नाम से एक वेबसाइट लॉन्च की और सभी प्रोडक्ट्स उसपर अपलोड कर दिए।'

स्नेहा बताती हैं कि हमारे प्रोडक्ट 100 फीसदी नेचुरल होते हैं। हम हर चीज घर की इस्तेमाल करते हैं। मसालों के लिए रॉ मटेरियल भी गांव से मंगाते हैं ताकि कहीं से कुछ भी मिलावट वाली नहीं हो।

स्नेहा बताती हैं कि जिन रिश्तेदारों को अपना प्रोडक्ट भेजा था, उन्होंने माउथ पब्लिसिटी कर दी थी, हमें लोगों के ऑर्डर भी मिल रहे थे लेकिन इनकी संख्या कम थी। बड़े लेवल पर कस्टमर्स तक पहुंचने में हमें कुछ वक्त लगा, थोड़ी स्ट्रगल करनी पड़ी। इसके बाद हमने सोशल मीडिया की मदद ली, फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट किए। इसके बाद हमारे बिजनेस का दायरा बढ़ता गया।

कुछ दिनों बाद हमने वॉट्सऐप बिजनेस भी शुरू किया। अपना ग्रुप बनाकर लोगों को जोड़ने का काम किया और उस पर ऑर्डर भी लेना शुरू कर दिया। जो लोग ऑनलाइन ऑर्डर नहीं कर सकते, उनके लिए वॉट्सऐप पर ऑर्डर करना आसान हो गया, खासकर कम पढ़ी लिखी महिलाओं के लिए।

वो कहती हैं, 'जब काम का दायरा बढ़ गया तो 2018 में हमने सांभर स्टोरीज के नाम से अपनी फैक्ट्री की शुरुआत की। अभी 6-7 लोग हमारे यहां काम करते हैं। हम लोग मसाले के साथ-साथ चटनी पाउडर, पिकल पाउडर, फिल्टर कॉफी पाउडर, स्नैक्स सहित 50 प्रोडक्ट्स की सप्लाई करते हैं। इंडिया के साथ- साथ अब हम दूसरे देशों में भी प्रोडक्ट्स की सप्लाई कर रहे हैं।'

स्नेहा अभी मसाले के साथ-साथ चटनी पाउडर, पिकल पाउडर, फिल्टर कॉफी पाउडर, स्नैक्स सहित 50 प्रोडक्ट्स की सप्लाई कर रही हैं।

कोरोना और लॉकडाउन को लेकर स्नेहा कहती हैं, 'बिजनेस का फायदा हमें इस दौरान हुआ, जो लोग बाहर दुकान से सामान नहीं खरीद सकते थे वे ऑनलाइन ऑर्डर करने लगे। कई लोग तो हमारे परमानेंट कस्टमर्स बन गए हैं, वे रेगुलर हमारे प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं। सांभर पाउडर और फिल्टर कॉफी पाउडर की डिमांड इस दौरान सबसे ज्यादा रही।'

स्नेहा बताती हैं कि हमारे प्रोडक्ट 100 फीसदी नेचुरल होते हैं। हम हर चीज घर की इस्तेमाल करते हैं। मसालों के लिए रॉ मटेरियल भी गांव से मंगाते हैं ताकि कहीं से कुछ भी मिलावट नहीं हो। हम लोग इन मसालों में कोई केमिकल या प्रिजर्वेटिव्स भी ऐड नहीं करते हैं। यही हमारा यूएसपी है, जिसे लोग पसंद करते हैं।

ये पॉजिटिव खबरें भी आप पढ़ सकते हैं...

1. तीन साल पहले कपड़ों का ऑनलाइन बिजनेस शुरू किया, कोरोना आया तो लॉन्च की पीपीई किट, 5 करोड़ रु पहुंचा टर्नओवर

2. मेरठ की गीता ने दिल्ली में 50 हजार रु से शुरू किया बिजनेस, 6 साल में 7 करोड़ रु टर्नओवर, पिछले महीने यूरोप में भी एक ऑफिस खोला

3. पुणे की मेघा सलाद बेचकर हर महीने कमाने लगीं एक लाख रुपए, 3 हजार रुपए से काम शुरू किया था

4. इंजीनियरिंग के बाद सरपंच बनी इस बेटी ने बदल दी गांव की तस्वीर, गलियों में सीसीटीवी और सोलर लाइट्स लगवाए, यहां के बच्चे अब संस्कृत बोलते हैं

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स्नेहा सिरिवरा कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग करने के बाद मसालों का ऑनलाइन बिजनेस कर रही हैं। उनके माता-पिता भी उनके इस काम में मदद करते हैं।

https://ift.tt/36oul5n Dainik Bhaskar इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ घर के गैरेज से ऑनलाइन बेचने लगीं मसाले, 20 लाख रु टर्नओवर, अमेरिका-कनाडा से भी मिले ऑर्डर Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराए जाने के करीब 28 साल हो गए हैं। इस मामले के क्रिमिनल केस की सुनवाई लखनऊ में सीबीआई की विशेष कोर्ट कर रही थी, जो आज अपना फैसला सुनाएगी। ढांचा गिराने के मामले में 32 आरोपी हैं। इनमें पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार आदि। इस पूरे मामले की जांच सीबीआई कर रही थी। पूरे मामले में सबसे ज्यादा गवाही पत्रकारों की हुई। पत्रकारों ने ही सबसे ज्यादा एफआईआर भी दर्ज करवाई थी। दरअसल, विवादित ढांचा गिराए जाने के दिन बड़ी संख्या में पत्रकारों के साथ अयोध्या में मारपीट हुई थी। भीड़ ने उनके कैमरे तोड़ दिए थे या छीन लिए थे। इसलिए आज फैसले के दिन 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कवरेज के लिए मौजूद 4 पत्रकारों की आंखों-देखी जानते हैं। उन्होंने उस दिन क्या देखा था और बाद में सीबीआई ने उनसे गवाही में क्या पूछा। एक दिन पहले ही लिख दिया था- विवादित ढांचे का राम ही मालिक राजेंद्र सोनी, 30 साल से अयोध्या में पत्रकार हैं। फिलहाल आकाशवाणी और दूरदर्शन में काम करते हैं। सोनी बताते हैं कि सीबीआई ने मुझे भी समन भेजा था, लेकिन मैं जवाब देने को तैयार नहीं हुआ। मैं 1992 में आज अखबार का संवाददाता था। मैंने 6 दिसंबर से एक दिन पहले लिख दिया था कि 'विवादित ढांचे का राम ही मालिक...'। सुबह को जब अखबार आया तो खुफिया विभाग के लोगों ने मुझसे पूछा कि आपने ने ऐसे कैसे लिख दिया। फिर मैंने उन्हें सबूत बताए। दरअसल, 6 दिसंबर की सुबह कारसेवा एकदम सांकेतिक थी। विहिप के लोग सरयू-जल और बालू से राम जन्मभूमि परिसर में पूजा-पाठ करना चाह रहे थे। इसी के लिए देशभर से लोगों को बुलाया भी था। विहिप ने विवादित ढांचे के किनारे संघ के लोगों को खड़ा कर रखा था, ताकि वहां किसी तरह की गड़बड़ी न हो। सुबह जब वहां मौजूद भीड़ कुदाल-फावड़े आदि लेकर ढांचे की तरफ बढ़नी शुरू हुई तो संघ के लोगों ने उन्हें रोका और फिर छीना-झपटी भी हुई। लेकिन, भीड़ नहीं मानी। विहिप नेता अशोक सिंघल माइक से बोल रहे थे कि हमारी सभा में अराजक तत्व आ गए हैं। विहिप ने भूमि पूजन कार्यक्रम की कवरेज के लिए मीडिया के लोगों को बगल में मानस भवन की छत पर रोका हुआ था। लेकिन, ढांचा गिरने के बाद पत्रकारों की बहुत पिटाई हुई। भीड़ ने पत्रकारों के कैमरे छीन लिए। बाद में पत्रकारों ने एफआईआर दर्ज करवाई, सरकार ने उन्हें इसका भुगतान भी किया। हालांकि, मैंने ऐसा नहीं किया। कल्याण सिंह की खबर को लेकर सीबीआई ने समन भेजा था, मैंने कहा- जो लिखा था, वही सही है वीएन दास करीब 35 साल से अयोध्या में नवभारत टाइम्स के संवाददाता हैं। विवादित ढांचा गिराए जाने के दिन भी वे अयोध्या में मौजूद थे। सीबीआई ने इन्हें भी गवाही के लिए समन भेजा था। दास बताते हैं कि मुझे सीबीआई ने कल्याण सिंह की सभाओं की कवरेज से जुड़ी खबर को लेकर बुलाया था। दरअसल, कल्याण सिंह ने ढांचा गिराए जाने के बाद गोंडा, बलरामपुर, अयोध्या समेत आसपास के कई जिलों में सभाएं की थीं। इनमें उन्होंने ढांचा गिराए जाने को सही ठहराया था। इसी खबर को लेकर सीबीआई मुझसे पूछताछ करना चाह रही थी। मैं हाजिर भी हुआ था, मैंने सीबीआई के सामने साफ कह दिया कि जो मेरी खबर में लिखा है, वह एकदम सही है। 6 दिसंबर की बात करूं तो उस दिन परिसर में एक मंच पर लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, अशोक सिंहल जैसे तमाम लोग मौजूद थे। दूसरी ओर मानस भवन हम पत्रकार लोग मौजूद थे। विहिप इसे दूसरे चरण की कारसेवा बता रही थी। उसका कहना था कि इसमें सिर्फ मंदिर परिसर की साफ-सफाई ओर पूजा-पाठ करेंगे। लेकिन, कारसेवक इससे सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि वे यहां इतनी दूर-दूर से साफ-सफाई करने नहीं, ढांचे को गिराने आए हैं। उत्तेजित भीड़ ने दोपहर तक ढांचा भी गिराना शुरू कर दिया। इस बीच मुझे अपने सांध्य अखबार के लिए खबर देनी थी और ऑफिस निकल पड़ा। लेकिन, रास्ते में देखा की भीड़ में महंत नृत्यगोपाल दास फंसे हुए हैं, उन्हें मैंने कार में बैठाकर मणिराम छावनी छोड़ा। शाम को फिर लौटा तो देखा ढांचा ध्वस्त था। विहिप के लोग तो वहां से गायब हो गए थे, लेकिन दुर्गावाहिनी की महिलाएं गिराए गए ढांचे के किनारे मंदिर बना रही हैं और जय श्री राम के नारे लगा रही थीं। फिर मैंने अखबार में हेडिंग दिया- विवादित परिसर में रात 9 बजे..। उस दिन बीबीसी के पत्रकार मार्क टुली को रामनामी पहनाकर भीड़ से निकालना पड़ा था, तब जाकर उनकी जान बची थी वरिष्ठ पत्रकार डाॅक्टर उपेंद्र, उस समय दैनिक जागरण की अयोध्या डेस्क देख रहे थे। इससे पहले वह अयोध्या के ब्यूरो चीफ भी रह चुके थे। डॉ. उपेंद्र बताते हैं कि उस दिन मैं लखनऊ में था। मेरे संपादक विनोद शुक्ला अयोध्या में थे। शाम तक उनसे बात होती रही, वे बता रहे थे कि सब सामान्य है। लेकिन, 5 दिसंबर की रात करीब 10 बजे मेरे पास कुछ लोगों के फोन आए। सबने मुझसे- पूछा कि आप लखनऊ में क्या कर रहे हैं। यहां आ जाओ, नहीं तो ये दिन हमेशा मिस करोगे। मैं ऑफिस से निकला और नेशनल हेराल्ड अखबार की गाड़ी पकड़कर किसी तरह फैजाबाद पहुंचा। पहले होटल शाने अवध गया। यहां से एकदम भोर में सीधे जन्मभूमि परिसर पहुंच गया। यहां विनोद शुक्ला, बीबीसी के पत्रकार मार्क टली आदि मौजूद थे। विहिप के कार्यकर्ता पत्रकारों को चाय पिला रहे थे। सुबह 9 बजे का वक्त रहा होगा। पूजा-अर्चना चल रही थी। अचानक कारसेवकों का एक समूह आया और अशोक सिंहल को धक्का मार दिया। फिर तो उपद्रव शुरू हो गया। इस बीच कुछ लोगों ने मार्क टुली को देख लिया। दरअसल, तब कारसेवकों में रोष था कि बीबीसी उन्हें उग्रवादी कहता है। फिर क्या कारसेवक टुली को पीटने लगे, किसी तरह हम लोगों ने उन्हें एक मंदिर में छिपाया। फिर उनके गले में रामनामी लपेटा। और बाद में जय श्रीराम बोलते हुए उन्हें सुरक्षित जगह पहुंचाया। सहारा अखबार के फोटोग्राफर राजेंद्र कुमार काे भीड़ ने इतना मारा कि उनका जबड़ा टूट गया। वो ढाई महीने तक अस्पताल में भर्ती रहे। पूरे 32 साल के करिअर में मैंने तमाम बड़ी घटनाओं की कवरेज की, लेकिन पत्रकारों की इतनी बुरी पिटाई कभी नहीं देखी। बीबीसी, सीएनएन, एनवाईटी से लेकर दुनिया भर के पत्रकार पीटे गए। बाद में कुछ साल पहले सीबीआई ने मुझे समन भेजा। मैं हाजिर हुआ था, तो पता चला कि पूछताछ में मेरी खबरों और मेरे एक बयान को आधार बनाया गया था। सीबीआई ने मुझसे कई सवाल किए थे। इसमें पूछा कि उस दिन वहां उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, पवन पांडेय, संतोष दुबे क्या कर रहे थे? मैंने उन्हें बताया कि हम 800 मीटर की दूरी पर थे, वहां से कुछ साफ देखा नहीं जा सकता था कि गुंबद पर कौन चढ़ा था। इसके बाद फिर मेरा बयान रिकॉर्ड नहीं हुआ। सीबीआई ने कहा कि मैं अपने बयान से मुकर गया। अभियुक्तों के प्रेशर में आ गया। लेकिन, ऐसा बिल्कुल नहीं था। यह फोटो 6 दिसंबर 1992 की है। इसे उस वक्त नार्दन-इंडिया पत्रिका और अमृत प्रभात अखबार के फोटो जर्नलिस्ट सुरेंद्र कुमार यादव ने खींचा था। उपद्रवियों ने मेरा कैमरा छीन लिया था, पीटा भी; एफआईआर दर्ज करवाया पर कुछ नहीं हुआ सुरेंद्र कुमार यादव उस वक्त नार्दन-इंडिया पत्रिका और अमृत प्रभात अखबार में फोटो जर्नलिस्ट थे। फिलहाल इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फोटोग्राफी के टीचर हैं। सुरेंद्र यादव बताते हैं कि सीबीआई की विशेष अदालत ने बाबरी विध्वंस मामले में गवाही के लिए 4 साल पहले मुझे भी समन किया था। क्या संयोग था, सामने जज के उच्च आसन पर विराजे जज सुरेंद्र कुमार यादव और इधर गवाह के रूप में सामने खड़ा मैं भी सुरेंद्र कुमार यादव। करीब तीन घंटे की गवाही के दौरान मेरा साक्ष्य रिकॉर्ड किया गया। इस दौरान जज साहब ने मेरे द्वारा बताए गए 6 दिसंबर 1992 के अयोध्या के घटनाक्रम को बड़े गौर से सुना। वहां पता चला मेरी तरह कई अन्य पत्रकार जो 6 दिसंबर 1992 को मौके पर मौजूद थे, उनकी भी गवाही ली गई है। दुखद यह है कि बाबरी विध्वंस के दौरान अपनी ड्यूटी कर रहे प्रेस छायाकारों को बुरी तरह पीटा गया था, उनके कैमरे तोड़े और छीने गए थे, जिसमें मैं भी शामिल था। इस बारे में राम जन्मभूमि थाने में 8 दिसंबर 1992 को मैंने एफआईआर भी दर्ज कराई थी, लेकिन उस पर क्या कार्यवाही हुई, आज तक पता नहीं। हिंसक कारसेवकों द्वारा छीना गया मेरा कैमरा भी नहीं मिल सका और ना ही उसकी कोई क्षतिपूर्ति हुई। लिब्रहान जांच आयोग नई दिल्ली और सीबीआई की विशेष अदालत लखनऊ में मैं कई बार गवाही के लिए उपस्थित होने को विवश किया गया। एक बार तो मैं व्यस्तता के कारण गवाही के लिए जाने की स्थिति में नहीं था, तो सीबीआई ने अरेस्ट वारंट जारी करने तक की धमकी दे दी थी। बहरहाल आज फैसले का पता चलेगा। मुझे भी फैसले की बेसब्री से प्रतीक्षा है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Babri Masjid Demolition Truth | Here's Eyewitness Report Updates From Ayodhya https://ift.tt/34a0QkL Dainik Bhaskar 6 दिसंबर को अयोध्या में मौजूद पत्रकारों की आंखों-देखी; विहिप नेता कह रहे थे कि सिर्फ साफ-सफाई, पूजा-पाठ होगा, कारसेवक बोल रहे थे, बाबरी गिराएंगे

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराए जाने के करीब 28 साल हो गए हैं। इस मामले के क्रिमिनल केस की सुनवाई लखनऊ में सीबीआई की विश...
- September 30, 2020
अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराए जाने के करीब 28 साल हो गए हैं। इस मामले के क्रिमिनल केस की सुनवाई लखनऊ में सीबीआई की विशेष कोर्ट कर रही थी, जो आज अपना फैसला सुनाएगी। ढांचा गिराने के मामले में 32 आरोपी हैं। इनमें पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार आदि। इस पूरे मामले की जांच सीबीआई कर रही थी। पूरे मामले में सबसे ज्यादा गवाही पत्रकारों की हुई। पत्रकारों ने ही सबसे ज्यादा एफआईआर भी दर्ज करवाई थी। दरअसल, विवादित ढांचा गिराए जाने के दिन बड़ी संख्या में पत्रकारों के साथ अयोध्या में मारपीट हुई थी। भीड़ ने उनके कैमरे तोड़ दिए थे या छीन लिए थे। इसलिए आज फैसले के दिन 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कवरेज के लिए मौजूद 4 पत्रकारों की आंखों-देखी जानते हैं। उन्होंने उस दिन क्या देखा था और बाद में सीबीआई ने उनसे गवाही में क्या पूछा। एक दिन पहले ही लिख दिया था- विवादित ढांचे का राम ही मालिक राजेंद्र सोनी, 30 साल से अयोध्या में पत्रकार हैं। फिलहाल आकाशवाणी और दूरदर्शन में काम करते हैं। सोनी बताते हैं कि सीबीआई ने मुझे भी समन भेजा था, लेकिन मैं जवाब देने को तैयार नहीं हुआ। मैं 1992 में आज अखबार का संवाददाता था। मैंने 6 दिसंबर से एक दिन पहले लिख दिया था कि 'विवादित ढांचे का राम ही मालिक...'। सुबह को जब अखबार आया तो खुफिया विभाग के लोगों ने मुझसे पूछा कि आपने ने ऐसे कैसे लिख दिया। फिर मैंने उन्हें सबूत बताए। दरअसल, 6 दिसंबर की सुबह कारसेवा एकदम सांकेतिक थी। विहिप के लोग सरयू-जल और बालू से राम जन्मभूमि परिसर में पूजा-पाठ करना चाह रहे थे। इसी के लिए देशभर से लोगों को बुलाया भी था। विहिप ने विवादित ढांचे के किनारे संघ के लोगों को खड़ा कर रखा था, ताकि वहां किसी तरह की गड़बड़ी न हो। सुबह जब वहां मौजूद भीड़ कुदाल-फावड़े आदि लेकर ढांचे की तरफ बढ़नी शुरू हुई तो संघ के लोगों ने उन्हें रोका और फिर छीना-झपटी भी हुई। लेकिन, भीड़ नहीं मानी। विहिप नेता अशोक सिंघल माइक से बोल रहे थे कि हमारी सभा में अराजक तत्व आ गए हैं। विहिप ने भूमि पूजन कार्यक्रम की कवरेज के लिए मीडिया के लोगों को बगल में मानस भवन की छत पर रोका हुआ था। लेकिन, ढांचा गिरने के बाद पत्रकारों की बहुत पिटाई हुई। भीड़ ने पत्रकारों के कैमरे छीन लिए। बाद में पत्रकारों ने एफआईआर दर्ज करवाई, सरकार ने उन्हें इसका भुगतान भी किया। हालांकि, मैंने ऐसा नहीं किया। कल्याण सिंह की खबर को लेकर सीबीआई ने समन भेजा था, मैंने कहा- जो लिखा था, वही सही है वीएन दास करीब 35 साल से अयोध्या में नवभारत टाइम्स के संवाददाता हैं। विवादित ढांचा गिराए जाने के दिन भी वे अयोध्या में मौजूद थे। सीबीआई ने इन्हें भी गवाही के लिए समन भेजा था। दास बताते हैं कि मुझे सीबीआई ने कल्याण सिंह की सभाओं की कवरेज से जुड़ी खबर को लेकर बुलाया था। दरअसल, कल्याण सिंह ने ढांचा गिराए जाने के बाद गोंडा, बलरामपुर, अयोध्या समेत आसपास के कई जिलों में सभाएं की थीं। इनमें उन्होंने ढांचा गिराए जाने को सही ठहराया था। इसी खबर को लेकर सीबीआई मुझसे पूछताछ करना चाह रही थी। मैं हाजिर भी हुआ था, मैंने सीबीआई के सामने साफ कह दिया कि जो मेरी खबर में लिखा है, वह एकदम सही है। 6 दिसंबर की बात करूं तो उस दिन परिसर में एक मंच पर लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, अशोक सिंहल जैसे तमाम लोग मौजूद थे। दूसरी ओर मानस भवन हम पत्रकार लोग मौजूद थे। विहिप इसे दूसरे चरण की कारसेवा बता रही थी। उसका कहना था कि इसमें सिर्फ मंदिर परिसर की साफ-सफाई ओर पूजा-पाठ करेंगे। लेकिन, कारसेवक इससे सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि वे यहां इतनी दूर-दूर से साफ-सफाई करने नहीं, ढांचे को गिराने आए हैं। उत्तेजित भीड़ ने दोपहर तक ढांचा भी गिराना शुरू कर दिया। इस बीच मुझे अपने सांध्य अखबार के लिए खबर देनी थी और ऑफिस निकल पड़ा। लेकिन, रास्ते में देखा की भीड़ में महंत नृत्यगोपाल दास फंसे हुए हैं, उन्हें मैंने कार में बैठाकर मणिराम छावनी छोड़ा। शाम को फिर लौटा तो देखा ढांचा ध्वस्त था। विहिप के लोग तो वहां से गायब हो गए थे, लेकिन दुर्गावाहिनी की महिलाएं गिराए गए ढांचे के किनारे मंदिर बना रही हैं और जय श्री राम के नारे लगा रही थीं। फिर मैंने अखबार में हेडिंग दिया- विवादित परिसर में रात 9 बजे..। उस दिन बीबीसी के पत्रकार मार्क टुली को रामनामी पहनाकर भीड़ से निकालना पड़ा था, तब जाकर उनकी जान बची थी वरिष्ठ पत्रकार डाॅक्टर उपेंद्र, उस समय दैनिक जागरण की अयोध्या डेस्क देख रहे थे। इससे पहले वह अयोध्या के ब्यूरो चीफ भी रह चुके थे। डॉ. उपेंद्र बताते हैं कि उस दिन मैं लखनऊ में था। मेरे संपादक विनोद शुक्ला अयोध्या में थे। शाम तक उनसे बात होती रही, वे बता रहे थे कि सब सामान्य है। लेकिन, 5 दिसंबर की रात करीब 10 बजे मेरे पास कुछ लोगों के फोन आए। सबने मुझसे- पूछा कि आप लखनऊ में क्या कर रहे हैं। यहां आ जाओ, नहीं तो ये दिन हमेशा मिस करोगे। मैं ऑफिस से निकला और नेशनल हेराल्ड अखबार की गाड़ी पकड़कर किसी तरह फैजाबाद पहुंचा। पहले होटल शाने अवध गया। यहां से एकदम भोर में सीधे जन्मभूमि परिसर पहुंच गया। यहां विनोद शुक्ला, बीबीसी के पत्रकार मार्क टली आदि मौजूद थे। विहिप के कार्यकर्ता पत्रकारों को चाय पिला रहे थे। सुबह 9 बजे का वक्त रहा होगा। पूजा-अर्चना चल रही थी। अचानक कारसेवकों का एक समूह आया और अशोक सिंहल को धक्का मार दिया। फिर तो उपद्रव शुरू हो गया। इस बीच कुछ लोगों ने मार्क टुली को देख लिया। दरअसल, तब कारसेवकों में रोष था कि बीबीसी उन्हें उग्रवादी कहता है। फिर क्या कारसेवक टुली को पीटने लगे, किसी तरह हम लोगों ने उन्हें एक मंदिर में छिपाया। फिर उनके गले में रामनामी लपेटा। और बाद में जय श्रीराम बोलते हुए उन्हें सुरक्षित जगह पहुंचाया। सहारा अखबार के फोटोग्राफर राजेंद्र कुमार काे भीड़ ने इतना मारा कि उनका जबड़ा टूट गया। वो ढाई महीने तक अस्पताल में भर्ती रहे। पूरे 32 साल के करिअर में मैंने तमाम बड़ी घटनाओं की कवरेज की, लेकिन पत्रकारों की इतनी बुरी पिटाई कभी नहीं देखी। बीबीसी, सीएनएन, एनवाईटी से लेकर दुनिया भर के पत्रकार पीटे गए। बाद में कुछ साल पहले सीबीआई ने मुझे समन भेजा। मैं हाजिर हुआ था, तो पता चला कि पूछताछ में मेरी खबरों और मेरे एक बयान को आधार बनाया गया था। सीबीआई ने मुझसे कई सवाल किए थे। इसमें पूछा कि उस दिन वहां उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, पवन पांडेय, संतोष दुबे क्या कर रहे थे? मैंने उन्हें बताया कि हम 800 मीटर की दूरी पर थे, वहां से कुछ साफ देखा नहीं जा सकता था कि गुंबद पर कौन चढ़ा था। इसके बाद फिर मेरा बयान रिकॉर्ड नहीं हुआ। सीबीआई ने कहा कि मैं अपने बयान से मुकर गया। अभियुक्तों के प्रेशर में आ गया। लेकिन, ऐसा बिल्कुल नहीं था। यह फोटो 6 दिसंबर 1992 की है। इसे उस वक्त नार्दन-इंडिया पत्रिका और अमृत प्रभात अखबार के फोटो जर्नलिस्ट सुरेंद्र कुमार यादव ने खींचा था। उपद्रवियों ने मेरा कैमरा छीन लिया था, पीटा भी; एफआईआर दर्ज करवाया पर कुछ नहीं हुआ सुरेंद्र कुमार यादव उस वक्त नार्दन-इंडिया पत्रिका और अमृत प्रभात अखबार में फोटो जर्नलिस्ट थे। फिलहाल इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फोटोग्राफी के टीचर हैं। सुरेंद्र यादव बताते हैं कि सीबीआई की विशेष अदालत ने बाबरी विध्वंस मामले में गवाही के लिए 4 साल पहले मुझे भी समन किया था। क्या संयोग था, सामने जज के उच्च आसन पर विराजे जज सुरेंद्र कुमार यादव और इधर गवाह के रूप में सामने खड़ा मैं भी सुरेंद्र कुमार यादव। करीब तीन घंटे की गवाही के दौरान मेरा साक्ष्य रिकॉर्ड किया गया। इस दौरान जज साहब ने मेरे द्वारा बताए गए 6 दिसंबर 1992 के अयोध्या के घटनाक्रम को बड़े गौर से सुना। वहां पता चला मेरी तरह कई अन्य पत्रकार जो 6 दिसंबर 1992 को मौके पर मौजूद थे, उनकी भी गवाही ली गई है। दुखद यह है कि बाबरी विध्वंस के दौरान अपनी ड्यूटी कर रहे प्रेस छायाकारों को बुरी तरह पीटा गया था, उनके कैमरे तोड़े और छीने गए थे, जिसमें मैं भी शामिल था। इस बारे में राम जन्मभूमि थाने में 8 दिसंबर 1992 को मैंने एफआईआर भी दर्ज कराई थी, लेकिन उस पर क्या कार्यवाही हुई, आज तक पता नहीं। हिंसक कारसेवकों द्वारा छीना गया मेरा कैमरा भी नहीं मिल सका और ना ही उसकी कोई क्षतिपूर्ति हुई। लिब्रहान जांच आयोग नई दिल्ली और सीबीआई की विशेष अदालत लखनऊ में मैं कई बार गवाही के लिए उपस्थित होने को विवश किया गया। एक बार तो मैं व्यस्तता के कारण गवाही के लिए जाने की स्थिति में नहीं था, तो सीबीआई ने अरेस्ट वारंट जारी करने तक की धमकी दे दी थी। बहरहाल आज फैसले का पता चलेगा। मुझे भी फैसले की बेसब्री से प्रतीक्षा है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Babri Masjid Demolition Truth | Here's Eyewitness Report Updates From Ayodhya https://ift.tt/34a0QkL Dainik Bhaskar 6 दिसंबर को अयोध्या में मौजूद पत्रकारों की आंखों-देखी; विहिप नेता कह रहे थे कि सिर्फ साफ-सफाई, पूजा-पाठ होगा, कारसेवक बोल रहे थे, बाबरी गिराएंगे 

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराए जाने के करीब 28 साल हो गए हैं। इस मामले के क्रिमिनल केस की सुनवाई लखनऊ में सीबीआई की विशेष कोर्ट कर रही थी, जो आज अपना फैसला सुनाएगी। ढांचा गिराने के मामले में 32 आरोपी हैं। इनमें पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार आदि।

इस पूरे मामले की जांच सीबीआई कर रही थी। पूरे मामले में सबसे ज्यादा गवाही पत्रकारों की हुई। पत्रकारों ने ही सबसे ज्यादा एफआईआर भी दर्ज करवाई थी। दरअसल, विवादित ढांचा गिराए जाने के दिन बड़ी संख्या में पत्रकारों के साथ अयोध्या में मारपीट हुई थी। भीड़ ने उनके कैमरे तोड़ दिए थे या छीन लिए थे।

इसलिए आज फैसले के दिन 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कवरेज के लिए मौजूद 4 पत्रकारों की आंखों-देखी जानते हैं। उन्होंने उस दिन क्या देखा था और बाद में सीबीआई ने उनसे गवाही में क्या पूछा।

एक दिन पहले ही लिख दिया था- विवादित ढांचे का राम ही मालिक

राजेंद्र सोनी, 30 साल से अयोध्या में पत्रकार हैं। फिलहाल आकाशवाणी और दूरदर्शन में काम करते हैं। सोनी बताते हैं कि सीबीआई ने मुझे भी समन भेजा था, लेकिन मैं जवाब देने को तैयार नहीं हुआ। मैं 1992 में आज अखबार का संवाददाता था। मैंने 6 दिसंबर से एक दिन पहले लिख दिया था कि 'विवादित ढांचे का राम ही मालिक...'। सुबह को जब अखबार आया तो खुफिया विभाग के लोगों ने मुझसे पूछा कि आपने ने ऐसे कैसे लिख दिया। फिर मैंने उन्हें सबूत बताए।

दरअसल, 6 दिसंबर की सुबह कारसेवा एकदम सांकेतिक थी। विहिप के लोग सरयू-जल और बालू से राम जन्मभूमि परिसर में पूजा-पाठ करना चाह रहे थे। इसी के लिए देशभर से लोगों को बुलाया भी था। विहिप ने विवादित ढांचे के किनारे संघ के लोगों को खड़ा कर रखा था, ताकि वहां किसी तरह की गड़बड़ी न हो।

सुबह जब वहां मौजूद भीड़ कुदाल-फावड़े आदि लेकर ढांचे की तरफ बढ़नी शुरू हुई तो संघ के लोगों ने उन्हें रोका और फिर छीना-झपटी भी हुई। लेकिन, भीड़ नहीं मानी। विहिप नेता अशोक सिंघल माइक से बोल रहे थे कि हमारी सभा में अराजक तत्व आ गए हैं।

विहिप ने भूमि पूजन कार्यक्रम की कवरेज के लिए मीडिया के लोगों को बगल में मानस भवन की छत पर रोका हुआ था। लेकिन, ढांचा गिरने के बाद पत्रकारों की बहुत पिटाई हुई। भीड़ ने पत्रकारों के कैमरे छीन लिए। बाद में पत्रकारों ने एफआईआर दर्ज करवाई, सरकार ने उन्हें इसका भुगतान भी किया। हालांकि, मैंने ऐसा नहीं किया।

कल्याण सिंह की खबर को लेकर सीबीआई ने समन भेजा था, मैंने कहा- जो लिखा था, वही सही है

वीएन दास करीब 35 साल से अयोध्या में नवभारत टाइम्स के संवाददाता हैं। विवादित ढांचा गिराए जाने के दिन भी वे अयोध्या में मौजूद थे। सीबीआई ने इन्हें भी गवाही के लिए समन भेजा था। दास बताते हैं कि मुझे सीबीआई ने कल्याण सिंह की सभाओं की कवरेज से जुड़ी खबर को लेकर बुलाया था।

दरअसल, कल्याण सिंह ने ढांचा गिराए जाने के बाद गोंडा, बलरामपुर, अयोध्या समेत आसपास के कई जिलों में सभाएं की थीं। इनमें उन्होंने ढांचा गिराए जाने को सही ठहराया था। इसी खबर को लेकर सीबीआई मुझसे पूछताछ करना चाह रही थी। मैं हाजिर भी हुआ था, मैंने सीबीआई के सामने साफ कह दिया कि जो मेरी खबर में लिखा है, वह एकदम सही है।

6 दिसंबर की बात करूं तो उस दिन परिसर में एक मंच पर लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, अशोक सिंहल जैसे तमाम लोग मौजूद थे। दूसरी ओर मानस भवन हम पत्रकार लोग मौजूद थे। विहिप इसे दूसरे चरण की कारसेवा बता रही थी। उसका कहना था कि इसमें सिर्फ मंदिर परिसर की साफ-सफाई ओर पूजा-पाठ करेंगे। लेकिन, कारसेवक इससे सहमत नहीं थे।

उनका कहना था कि वे यहां इतनी दूर-दूर से साफ-सफाई करने नहीं, ढांचे को गिराने आए हैं। उत्तेजित भीड़ ने दोपहर तक ढांचा भी गिराना शुरू कर दिया। इस बीच मुझे अपने सांध्य अखबार के लिए खबर देनी थी और ऑफिस निकल पड़ा। लेकिन, रास्ते में देखा की भीड़ में महंत नृत्यगोपाल दास फंसे हुए हैं, उन्हें मैंने कार में बैठाकर मणिराम छावनी छोड़ा।

शाम को फिर लौटा तो देखा ढांचा ध्वस्त था। विहिप के लोग तो वहां से गायब हो गए थे, लेकिन दुर्गावाहिनी की महिलाएं गिराए गए ढांचे के किनारे मंदिर बना रही हैं और जय श्री राम के नारे लगा रही थीं। फिर मैंने अखबार में हेडिंग दिया- विवादित परिसर में रात 9 बजे..।

उस दिन बीबीसी के पत्रकार मार्क टुली को रामनामी पहनाकर भीड़ से निकालना पड़ा था, तब जाकर उनकी जान बची थी

वरिष्ठ पत्रकार डाॅक्टर उपेंद्र, उस समय दैनिक जागरण की अयोध्या डेस्क देख रहे थे। इससे पहले वह अयोध्या के ब्यूरो चीफ भी रह चुके थे। डॉ. उपेंद्र बताते हैं कि उस दिन मैं लखनऊ में था। मेरे संपादक विनोद शुक्ला अयोध्या में थे। शाम तक उनसे बात होती रही, वे बता रहे थे कि सब सामान्य है। लेकिन, 5 दिसंबर की रात करीब 10 बजे मेरे पास कुछ लोगों के फोन आए। सबने मुझसे- पूछा कि आप लखनऊ में क्या कर रहे हैं। यहां आ जाओ, नहीं तो ये दिन हमेशा मिस करोगे।

मैं ऑफिस से निकला और नेशनल हेराल्ड अखबार की गाड़ी पकड़कर किसी तरह फैजाबाद पहुंचा। पहले होटल शाने अवध गया। यहां से एकदम भोर में सीधे जन्मभूमि परिसर पहुंच गया। यहां विनोद शुक्ला, बीबीसी के पत्रकार मार्क टली आदि मौजूद थे। विहिप के कार्यकर्ता पत्रकारों को चाय पिला रहे थे।

सुबह 9 बजे का वक्त रहा होगा। पूजा-अर्चना चल रही थी। अचानक कारसेवकों का एक समूह आया और अशोक सिंहल को धक्का मार दिया। फिर तो उपद्रव शुरू हो गया। इस बीच कुछ लोगों ने मार्क टुली को देख लिया। दरअसल, तब कारसेवकों में रोष था कि बीबीसी उन्हें उग्रवादी कहता है।

फिर क्या कारसेवक टुली को पीटने लगे, किसी तरह हम लोगों ने उन्हें एक मंदिर में छिपाया। फिर उनके गले में रामनामी लपेटा। और बाद में जय श्रीराम बोलते हुए उन्हें सुरक्षित जगह पहुंचाया।

सहारा अखबार के फोटोग्राफर राजेंद्र कुमार काे भीड़ ने इतना मारा कि उनका जबड़ा टूट गया। वो ढाई महीने तक अस्पताल में भर्ती रहे। पूरे 32 साल के करिअर में मैंने तमाम बड़ी घटनाओं की कवरेज की, लेकिन पत्रकारों की इतनी बुरी पिटाई कभी नहीं देखी। बीबीसी, सीएनएन, एनवाईटी से लेकर दुनिया भर के पत्रकार पीटे गए।

बाद में कुछ साल पहले सीबीआई ने मुझे समन भेजा। मैं हाजिर हुआ था, तो पता चला कि पूछताछ में मेरी खबरों और मेरे एक बयान को आधार बनाया गया था। सीबीआई ने मुझसे कई सवाल किए थे। इसमें पूछा कि उस दिन वहां उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, पवन पांडेय, संतोष दुबे क्या कर रहे थे? मैंने उन्हें बताया कि हम 800 मीटर की दूरी पर थे, वहां से कुछ साफ देखा नहीं जा सकता था कि गुंबद पर कौन चढ़ा था। इसके बाद फिर मेरा बयान रिकॉर्ड नहीं हुआ। सीबीआई ने कहा कि मैं अपने बयान से मुकर गया। अभियुक्तों के प्रेशर में आ गया। लेकिन, ऐसा बिल्कुल नहीं था।

यह फोटो 6 दिसंबर 1992 की है। इसे उस वक्त नार्दन-इंडिया पत्रिका और अमृत प्रभात अखबार के फोटो जर्नलिस्ट सुरेंद्र कुमार यादव ने खींचा था।

उपद्रवियों ने मेरा कैमरा छीन लिया था, पीटा भी; एफआईआर दर्ज करवाया पर कुछ नहीं हुआ

सुरेंद्र कुमार यादव उस वक्त नार्दन-इंडिया पत्रिका और अमृत प्रभात अखबार में फोटो जर्नलिस्ट थे। फिलहाल इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फोटोग्राफी के टीचर हैं। सुरेंद्र यादव बताते हैं कि सीबीआई की विशेष अदालत ने बाबरी विध्वंस मामले में गवाही के लिए 4 साल पहले मुझे भी समन किया था।

क्या संयोग था, सामने जज के उच्च आसन पर विराजे जज सुरेंद्र कुमार यादव और इधर गवाह के रूप में सामने खड़ा मैं भी सुरेंद्र कुमार यादव। करीब तीन घंटे की गवाही के दौरान मेरा साक्ष्य रिकॉर्ड किया गया। इस दौरान जज साहब ने मेरे द्वारा बताए गए 6 दिसंबर 1992 के अयोध्या के घटनाक्रम को बड़े गौर से सुना।

वहां पता चला मेरी तरह कई अन्य पत्रकार जो 6 दिसंबर 1992 को मौके पर मौजूद थे, उनकी भी गवाही ली गई है। दुखद यह है कि बाबरी विध्वंस के दौरान अपनी ड्यूटी कर रहे प्रेस छायाकारों को बुरी तरह पीटा गया था, उनके कैमरे तोड़े और छीने गए थे, जिसमें मैं भी शामिल था।

इस बारे में राम जन्मभूमि थाने में 8 दिसंबर 1992 को मैंने एफआईआर भी दर्ज कराई थी, लेकिन उस पर क्या कार्यवाही हुई, आज तक पता नहीं। हिंसक कारसेवकों द्वारा छीना गया मेरा कैमरा भी नहीं मिल सका और ना ही उसकी कोई क्षतिपूर्ति हुई।

लिब्रहान जांच आयोग नई दिल्ली और सीबीआई की विशेष अदालत लखनऊ में मैं कई बार गवाही के लिए उपस्थित होने को विवश किया गया। एक बार तो मैं व्यस्तता के कारण गवाही के लिए जाने की स्थिति में नहीं था, तो सीबीआई ने अरेस्ट वारंट जारी करने तक की धमकी दे दी थी। बहरहाल आज फैसले का पता चलेगा। मुझे भी फैसले की बेसब्री से प्रतीक्षा है।

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Babri Masjid Demolition Truth | Here's Eyewitness Report Updates From Ayodhya

https://ift.tt/34a0QkL Dainik Bhaskar 6 दिसंबर को अयोध्या में मौजूद पत्रकारों की आंखों-देखी; विहिप नेता कह रहे थे कि सिर्फ साफ-सफाई, पूजा-पाठ होगा, कारसेवक बोल रहे थे, बाबरी गिराएंगे Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

ये बात साल 1971 की है। तब प्रतापगढ़ जिले का एक लड़का वहाज खान सौ रुपए लेकर मुंबई आया था। वहाज ने अपने वालिद के साथ कानपुर में चमड़े की फैक्ट्री में काम किया था, इसलिए मुंबई आकर भी यही काम करने लगा। चार-पांच साल तक यहां-वहां काम करने के बाद कुछ पैसा जोड़ लिया और उसी से धारावी में 1200 रुपए में एक झोपड़ी खरीद ली। उस समय धारावी में चमड़े का काम करने वाले गिने-चुने ही थे। वहाज ने सोचा जब मुझे काम आता है और थोड़े पैसे भी जुड़ गए हैं तो दूसरे की नौकरी करने के बजाए क्यों न खुद का काम शुरू करूं? फिर उन्होंने 35 हजार रुपए में जमीन खरीदकर खुद की फैक्ट्री शुरू की, जहां चमड़े के प्रोडक्ट्स बनाने का काम होता था। शुरूआत में काम थोड़ा बहुत ही था, लेकिन धीरे-धीरे बढ़ते गया। आज कंपनी का सालाना टर्नओवर 15 करोड़ रुपए से ज्यादा है और दुनियाभर में उनकी कंपनी के लेदर प्रोडक्ट्स की डिमांड है। वो कहते हैं, मुझे बनाने में धारावी का बहुत बड़ा रोल है। लोग आज मेरे प्रोडक्ट्स को धारावी ब्रांड कहकर बुलाते हैं। धारावी लाखों लोगों को रोजगार देता है। इसमें अधिकतर वर्कर यूपी, बिहार, गुजरात जैसे राज्यों से होते हैं। यूं तो 500 एकड़ में फैला धारावी स्लम के तौर पर दुनियाभर में जाना जाता है, लेकिन यहां ऐसे हजारों वहाज खान हैं जो फर्श से अर्श तक पहुंचे हैं। धारावी स्मॉल स्केल इंडस्ट्री का हब है। यहां लेदर, गारमेंट्स, तेल-साबुन से लेकर वेस्ट रिसाइक्लिंग तक की यूनिट हैं। मिट्टी के प्रोडक्ट्स बड़े लेवल पर बनाए जाते हैं, दिवाली के पहले तो यहां सैकड़ों घरों में दिए से लेकर मूर्ति तक तैयार होती है, जो मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में बिकती है। 1 बिलियन डॉलर से ज्यादा का एक्सपोर्ट धारावी से होता है। दस लाख से ज्यादा लोग रहते हैं, जिनमें 50 से 60% मजदूर हैं। 15 हजार से ज्यादा ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जो सिंगल रूम में चल रही हैं। यूपी, बिहार, गुजरात जैसे राज्यों से बड़ी संख्या में आने वाले कामगारों का मुंबई में पहला ठिकाना धारावी की है। ये लोग इन छोटी छोटी फैक्ट्रियों में ही काम करते हैं। यहीं रहते हैं। यहीं खाते-पीते हैं और साल में एक या दो बार अपने घर जाते हैं। धारावी की गलियों के ये हाल हैं। यहीं हजारों फैक्ट्रियां चल रही हैं, जिनका सामान विदेशों तक पहुंच रहा है। अभी धारावी में एक बार फिर कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन यहां रहने वालों में उसकी फ्रिक नजर नहीं आती। वे पहले की तरह बिना मास्क के घूमते दिखाई देते हैं, लेकिन धारावी से चलने वाली फैक्ट्रियों की कमर जरूर कोरोना ने तोड़ दी। धारावी को जानने के लिए हम दो दिन यहां की गली-गली में घूमें। हमारे साथी बने यहीं रहने वाले फोटोग्राफर रवि दिनाकरण। रवि एक तमिल अखबार के लिए फोटोग्राफी करते हैं और सालों से धारावी में ही रह रहे हैं। वे कहते हैं, यहां तमिल भी बहुत बड़ी संख्या में हैं, जो अधिकतर खाने-पीने के बिजनेस से जुड़े हुए हैं। तमिल महिलाएं घर में इडली-सांभर, वड़ा-सांभर तैयार करती हैं और उनके पति-लड़के यह सायन में बेचते हैं। इस तरह से छोटी सी जगह में दस-दस, बारह-बारह वर्कर्स काम करते हैं। खैर, हम अंदर गलियों में घुसे तो पाया कि धारावी में छोटे-छोटे कारखाने तो खूब हैं, लेकिन न यहां साफ-सफाई है और न ही ड्रेनेज का अच्छा सिस्टम है। जिन कारखानों में वर्कर्स काम करते हैं, उन्हीं में सो भी जाते हैं। कुछ कारखानों के हॉल का साइज बड़ा है तो कुछ दस बाय दस के कमरे में भी चल रहे हैं। कारखानों के सामने से ड्रेनेज लाइन निकली है, जो मलबे से भरी हुई रहती है। इससे न सिर्फ कारखाने के अंदर तक बदबू आती है बल्कि मच्छर और दूसरे जीव-जंतु भी घूमते रहते हैं, लेकिन उससे यहां काम करने वालों को अब कोई फर्क नहीं पड़ता। वो कहते हैं, यहां सेठ रहने को भी देता है और काम तो मिल ही रहा है। बारिश के मौसम में तो ये लोग घुटने-घुटने पानी में भी काम करने को मजबूर हो जाते हैं। खास बात ये है कि इन कारखानों में काम करने वाले धारावी के मजदूर कम हैं और यूपी-बिहार के ज्यादा हैं। धारावी के जो मजदूर हैं, वो अधिकतर दूसरे एरिया में मजदूरी करने जाते हैं या खुद ही खाने-पीने का सामान बेचते हैं। कुछ तेल-साबुन बनाते हैं। कपड़ों से लेकर चमड़े तक का काम यहां होता है।। ये कारीगर चमड़े को फिनिश कर रहा है। गोरखपुर के अरमान शेख जींस के कारखाने में काम करते हैं। सुबह दस से रात दस बजे तक काम करने के बाद वो कारखाने में ही सो जाते हैं। खाना कहां खाते हो? इस पर कहते हैं, पास में एक होटल है, धारावी के सब मजदूर वहीं खाना खाते हैं। वहां 500 रुपए में एक हफ्ते तक दोनों टाइम भरपेट खाना मिलता है। आपकी कमाई कितनी हो जाती है? इस पर बोले, कमा लेता हूं, दिन का 400-500 रुपए। लेकिन अभी तो बिल्कुल काम नहीं मिल रहा। यहीं पर घूमते हुए हमें गारमेंट का कारखाना दिखा। अंदर कुछ लोग काम करते दिखे। कारखाना मालिक पप्पू भी मजदूरों के साथ ही काम में जुटे थे। बोले, पंद्रह साल से कारखाना चला रहा हूं। लेकिन जो कमर इस बार टूटी है, वो पहले कभी नहीं टूटी। न गाड़ी की ईएमआई चुका पा रहा हूं और न ही पूरे वर्कर्स को बुला पा रहा हूं, क्योंकि अभी तो जो हैं, उन्हीं के खाने के वांदे हैं। माल बिक ही नहीं रहा। पहले पंद्रह लोग मेरे कारखाने पर काम करते थे। यहीं सोते थे। अभी सिर्फ तीन वर्कर हैं। धारावी में क्या-क्या बनता है? यह सवाल हमने पप्पू से किया तो बोले, सर यहां चिड़िया का दूध भी बनता है लेकिन अभी कुछ नहीं हो रहा। कई व्यापारियों ने किराये पर ऐसे कमरे लिए हैं, जहां से काम कर रहे हैं। कहते हैं, लॉकडाउन ने हालत इतनी खराब कर दी कि अब कर्जे में दब गए हैं। आगे बढ़ने पर मोहम्मद शाहिद का कारखाना नजर आया। वो नाइट सूट बनाने का काम करते हैं। इनके कारखाने में भी लॉकडाउन के पहले 22 वर्कर थे, लेकिन अभी दो आदमी ही हैं। प्रदीप सिंह बैग बनाने का काम करते हैं। पहले 12 लोग रखे थे, अभी तीन से काम चला रहे हैं। प्रदीप कहते हैं, हम 50 रुपए से लेकर 500 रुपए तक के बैग बनाते हैं। यही बैग बाहर हजारों में भी बिकते हैं। वहाज खान कहते हैं पिछले छ माह में सौ रुपए की बौनी भी नहीं हुई।। पहले 50 वर्कर थे, अब सिर्फ दो-तीन आदमी हैं। अब लोकल का कुछ शुरू हो, बिजनेस बढ़े तब उनको बुलाऊं। धारावी में बिजनेस करने वाले राकेश गौतम के मुताबिक, धारावी नेताओं के लिए सिर्फ वोटबैंक है। न यहां पर प्रॉपर रोड हैं, न ही प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम है। इलेक्ट्रिसिटी एक बड़ा इश्यू है। अभी लॉकडाउन था, इसके बावजूद फैक्ट्रियों में 50-50 हजार रुपए के बिल थमा दिए गए जबकि फैक्ट्रीज बंद थीं। यदि सरकार यहां पर थोड़ा भी सीरियस होकर डेवलपमेंट करे तो यह देश का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल हब बन सकता है। ये भी पढ़ें एशिया के सबसे बड़े स्लम से ग्राउंड रिपोर्ट:'धारावी मॉडल' की दुनियाभर में तारीफ हो रही थी, तो अचानक क्या हुआ कि यहां दोबारा कोरोना ब्लास्ट हो गया? एक्सपोर्ट हब से रिपोर्ट:कोरोना से धारावी की बदनामी, 50 फीसदी दुकानें खाली हो गईं, मुंबई में इस दिवाली हो सकती है दीये की किल्लत कोरोना से जंग:भागलपुर में धारावी मॉडल से होगा कोरोना कंट्रोल, ट्रेसिंग और ट्रैकिंग होगी, फिर ट्रीटमेंट से कोरोना को हराएंगे आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Dharavi Slum Largest Small Scale Industry https://ift.tt/34eIaAm Dainik Bhaskar छोटी-छोटी गलियों में ड्रैनेज लाइन के बीच चल रहीं हजारों फैक्ट्रियां, साबुन से लेकर कपड़े-जूते तक सब बनता है यहां

ये बात साल 1971 की है। तब प्रतापगढ़ जिले का एक लड़का वहाज खान सौ रुपए लेकर मुंबई आया था। वहाज ने अपने वालिद के साथ कानपुर में चमड़े की फैक्...
- September 30, 2020
ये बात साल 1971 की है। तब प्रतापगढ़ जिले का एक लड़का वहाज खान सौ रुपए लेकर मुंबई आया था। वहाज ने अपने वालिद के साथ कानपुर में चमड़े की फैक्ट्री में काम किया था, इसलिए मुंबई आकर भी यही काम करने लगा। चार-पांच साल तक यहां-वहां काम करने के बाद कुछ पैसा जोड़ लिया और उसी से धारावी में 1200 रुपए में एक झोपड़ी खरीद ली। उस समय धारावी में चमड़े का काम करने वाले गिने-चुने ही थे। वहाज ने सोचा जब मुझे काम आता है और थोड़े पैसे भी जुड़ गए हैं तो दूसरे की नौकरी करने के बजाए क्यों न खुद का काम शुरू करूं? फिर उन्होंने 35 हजार रुपए में जमीन खरीदकर खुद की फैक्ट्री शुरू की, जहां चमड़े के प्रोडक्ट्स बनाने का काम होता था। शुरूआत में काम थोड़ा बहुत ही था, लेकिन धीरे-धीरे बढ़ते गया। आज कंपनी का सालाना टर्नओवर 15 करोड़ रुपए से ज्यादा है और दुनियाभर में उनकी कंपनी के लेदर प्रोडक्ट्स की डिमांड है। वो कहते हैं, मुझे बनाने में धारावी का बहुत बड़ा रोल है। लोग आज मेरे प्रोडक्ट्स को धारावी ब्रांड कहकर बुलाते हैं। धारावी लाखों लोगों को रोजगार देता है। इसमें अधिकतर वर्कर यूपी, बिहार, गुजरात जैसे राज्यों से होते हैं। यूं तो 500 एकड़ में फैला धारावी स्लम के तौर पर दुनियाभर में जाना जाता है, लेकिन यहां ऐसे हजारों वहाज खान हैं जो फर्श से अर्श तक पहुंचे हैं। धारावी स्मॉल स्केल इंडस्ट्री का हब है। यहां लेदर, गारमेंट्स, तेल-साबुन से लेकर वेस्ट रिसाइक्लिंग तक की यूनिट हैं। मिट्टी के प्रोडक्ट्स बड़े लेवल पर बनाए जाते हैं, दिवाली के पहले तो यहां सैकड़ों घरों में दिए से लेकर मूर्ति तक तैयार होती है, जो मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में बिकती है। 1 बिलियन डॉलर से ज्यादा का एक्सपोर्ट धारावी से होता है। दस लाख से ज्यादा लोग रहते हैं, जिनमें 50 से 60% मजदूर हैं। 15 हजार से ज्यादा ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जो सिंगल रूम में चल रही हैं। यूपी, बिहार, गुजरात जैसे राज्यों से बड़ी संख्या में आने वाले कामगारों का मुंबई में पहला ठिकाना धारावी की है। ये लोग इन छोटी छोटी फैक्ट्रियों में ही काम करते हैं। यहीं रहते हैं। यहीं खाते-पीते हैं और साल में एक या दो बार अपने घर जाते हैं। धारावी की गलियों के ये हाल हैं। यहीं हजारों फैक्ट्रियां चल रही हैं, जिनका सामान विदेशों तक पहुंच रहा है। अभी धारावी में एक बार फिर कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन यहां रहने वालों में उसकी फ्रिक नजर नहीं आती। वे पहले की तरह बिना मास्क के घूमते दिखाई देते हैं, लेकिन धारावी से चलने वाली फैक्ट्रियों की कमर जरूर कोरोना ने तोड़ दी। धारावी को जानने के लिए हम दो दिन यहां की गली-गली में घूमें। हमारे साथी बने यहीं रहने वाले फोटोग्राफर रवि दिनाकरण। रवि एक तमिल अखबार के लिए फोटोग्राफी करते हैं और सालों से धारावी में ही रह रहे हैं। वे कहते हैं, यहां तमिल भी बहुत बड़ी संख्या में हैं, जो अधिकतर खाने-पीने के बिजनेस से जुड़े हुए हैं। तमिल महिलाएं घर में इडली-सांभर, वड़ा-सांभर तैयार करती हैं और उनके पति-लड़के यह सायन में बेचते हैं। इस तरह से छोटी सी जगह में दस-दस, बारह-बारह वर्कर्स काम करते हैं। खैर, हम अंदर गलियों में घुसे तो पाया कि धारावी में छोटे-छोटे कारखाने तो खूब हैं, लेकिन न यहां साफ-सफाई है और न ही ड्रेनेज का अच्छा सिस्टम है। जिन कारखानों में वर्कर्स काम करते हैं, उन्हीं में सो भी जाते हैं। कुछ कारखानों के हॉल का साइज बड़ा है तो कुछ दस बाय दस के कमरे में भी चल रहे हैं। कारखानों के सामने से ड्रेनेज लाइन निकली है, जो मलबे से भरी हुई रहती है। इससे न सिर्फ कारखाने के अंदर तक बदबू आती है बल्कि मच्छर और दूसरे जीव-जंतु भी घूमते रहते हैं, लेकिन उससे यहां काम करने वालों को अब कोई फर्क नहीं पड़ता। वो कहते हैं, यहां सेठ रहने को भी देता है और काम तो मिल ही रहा है। बारिश के मौसम में तो ये लोग घुटने-घुटने पानी में भी काम करने को मजबूर हो जाते हैं। खास बात ये है कि इन कारखानों में काम करने वाले धारावी के मजदूर कम हैं और यूपी-बिहार के ज्यादा हैं। धारावी के जो मजदूर हैं, वो अधिकतर दूसरे एरिया में मजदूरी करने जाते हैं या खुद ही खाने-पीने का सामान बेचते हैं। कुछ तेल-साबुन बनाते हैं। कपड़ों से लेकर चमड़े तक का काम यहां होता है।। ये कारीगर चमड़े को फिनिश कर रहा है। गोरखपुर के अरमान शेख जींस के कारखाने में काम करते हैं। सुबह दस से रात दस बजे तक काम करने के बाद वो कारखाने में ही सो जाते हैं। खाना कहां खाते हो? इस पर कहते हैं, पास में एक होटल है, धारावी के सब मजदूर वहीं खाना खाते हैं। वहां 500 रुपए में एक हफ्ते तक दोनों टाइम भरपेट खाना मिलता है। आपकी कमाई कितनी हो जाती है? इस पर बोले, कमा लेता हूं, दिन का 400-500 रुपए। लेकिन अभी तो बिल्कुल काम नहीं मिल रहा। यहीं पर घूमते हुए हमें गारमेंट का कारखाना दिखा। अंदर कुछ लोग काम करते दिखे। कारखाना मालिक पप्पू भी मजदूरों के साथ ही काम में जुटे थे। बोले, पंद्रह साल से कारखाना चला रहा हूं। लेकिन जो कमर इस बार टूटी है, वो पहले कभी नहीं टूटी। न गाड़ी की ईएमआई चुका पा रहा हूं और न ही पूरे वर्कर्स को बुला पा रहा हूं, क्योंकि अभी तो जो हैं, उन्हीं के खाने के वांदे हैं। माल बिक ही नहीं रहा। पहले पंद्रह लोग मेरे कारखाने पर काम करते थे। यहीं सोते थे। अभी सिर्फ तीन वर्कर हैं। धारावी में क्या-क्या बनता है? यह सवाल हमने पप्पू से किया तो बोले, सर यहां चिड़िया का दूध भी बनता है लेकिन अभी कुछ नहीं हो रहा। कई व्यापारियों ने किराये पर ऐसे कमरे लिए हैं, जहां से काम कर रहे हैं। कहते हैं, लॉकडाउन ने हालत इतनी खराब कर दी कि अब कर्जे में दब गए हैं। आगे बढ़ने पर मोहम्मद शाहिद का कारखाना नजर आया। वो नाइट सूट बनाने का काम करते हैं। इनके कारखाने में भी लॉकडाउन के पहले 22 वर्कर थे, लेकिन अभी दो आदमी ही हैं। प्रदीप सिंह बैग बनाने का काम करते हैं। पहले 12 लोग रखे थे, अभी तीन से काम चला रहे हैं। प्रदीप कहते हैं, हम 50 रुपए से लेकर 500 रुपए तक के बैग बनाते हैं। यही बैग बाहर हजारों में भी बिकते हैं। वहाज खान कहते हैं पिछले छ माह में सौ रुपए की बौनी भी नहीं हुई।। पहले 50 वर्कर थे, अब सिर्फ दो-तीन आदमी हैं। अब लोकल का कुछ शुरू हो, बिजनेस बढ़े तब उनको बुलाऊं। धारावी में बिजनेस करने वाले राकेश गौतम के मुताबिक, धारावी नेताओं के लिए सिर्फ वोटबैंक है। न यहां पर प्रॉपर रोड हैं, न ही प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम है। इलेक्ट्रिसिटी एक बड़ा इश्यू है। अभी लॉकडाउन था, इसके बावजूद फैक्ट्रियों में 50-50 हजार रुपए के बिल थमा दिए गए जबकि फैक्ट्रीज बंद थीं। यदि सरकार यहां पर थोड़ा भी सीरियस होकर डेवलपमेंट करे तो यह देश का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल हब बन सकता है। ये भी पढ़ें एशिया के सबसे बड़े स्लम से ग्राउंड रिपोर्ट:'धारावी मॉडल' की दुनियाभर में तारीफ हो रही थी, तो अचानक क्या हुआ कि यहां दोबारा कोरोना ब्लास्ट हो गया? एक्सपोर्ट हब से रिपोर्ट:कोरोना से धारावी की बदनामी, 50 फीसदी दुकानें खाली हो गईं, मुंबई में इस दिवाली हो सकती है दीये की किल्लत कोरोना से जंग:भागलपुर में धारावी मॉडल से होगा कोरोना कंट्रोल, ट्रेसिंग और ट्रैकिंग होगी, फिर ट्रीटमेंट से कोरोना को हराएंगे आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Dharavi Slum Largest Small Scale Industry https://ift.tt/34eIaAm Dainik Bhaskar छोटी-छोटी गलियों में ड्रैनेज लाइन के बीच चल रहीं हजारों फैक्ट्रियां, साबुन से लेकर कपड़े-जूते तक सब बनता है यहां 

ये बात साल 1971 की है। तब प्रतापगढ़ जिले का एक लड़का वहाज खान सौ रुपए लेकर मुंबई आया था। वहाज ने अपने वालिद के साथ कानपुर में चमड़े की फैक्ट्री में काम किया था, इसलिए मुंबई आकर भी यही काम करने लगा। चार-पांच साल तक यहां-वहां काम करने के बाद कुछ पैसा जोड़ लिया और उसी से धारावी में 1200 रुपए में एक झोपड़ी खरीद ली।

उस समय धारावी में चमड़े का काम करने वाले गिने-चुने ही थे। वहाज ने सोचा जब मुझे काम आता है और थोड़े पैसे भी जुड़ गए हैं तो दूसरे की नौकरी करने के बजाए क्यों न खुद का काम शुरू करूं? फिर उन्होंने 35 हजार रुपए में जमीन खरीदकर खुद की फैक्ट्री शुरू की, जहां चमड़े के प्रोडक्ट्स बनाने का काम होता था।

शुरूआत में काम थोड़ा बहुत ही था, लेकिन धीरे-धीरे बढ़ते गया। आज कंपनी का सालाना टर्नओवर 15 करोड़ रुपए से ज्यादा है और दुनियाभर में उनकी कंपनी के लेदर प्रोडक्ट्स की डिमांड है। वो कहते हैं, मुझे बनाने में धारावी का बहुत बड़ा रोल है। लोग आज मेरे प्रोडक्ट्स को धारावी ब्रांड कहकर बुलाते हैं।

धारावी लाखों लोगों को रोजगार देता है। इसमें अधिकतर वर्कर यूपी, बिहार, गुजरात जैसे राज्यों से होते हैं।

यूं तो 500 एकड़ में फैला धारावी स्लम के तौर पर दुनियाभर में जाना जाता है, लेकिन यहां ऐसे हजारों वहाज खान हैं जो फर्श से अर्श तक पहुंचे हैं। धारावी स्मॉल स्केल इंडस्ट्री का हब है। यहां लेदर, गारमेंट्स, तेल-साबुन से लेकर वेस्ट रिसाइक्लिंग तक की यूनिट हैं।

मिट्टी के प्रोडक्ट्स बड़े लेवल पर बनाए जाते हैं, दिवाली के पहले तो यहां सैकड़ों घरों में दिए से लेकर मूर्ति तक तैयार होती है, जो मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में बिकती है। 1 बिलियन डॉलर से ज्यादा का एक्सपोर्ट धारावी से होता है। दस लाख से ज्यादा लोग रहते हैं, जिनमें 50 से 60% मजदूर हैं।

15 हजार से ज्यादा ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जो सिंगल रूम में चल रही हैं। यूपी, बिहार, गुजरात जैसे राज्यों से बड़ी संख्या में आने वाले कामगारों का मुंबई में पहला ठिकाना धारावी की है। ये लोग इन छोटी छोटी फैक्ट्रियों में ही काम करते हैं। यहीं रहते हैं। यहीं खाते-पीते हैं और साल में एक या दो बार अपने घर जाते हैं।

धारावी की गलियों के ये हाल हैं। यहीं हजारों फैक्ट्रियां चल रही हैं, जिनका सामान विदेशों तक पहुंच रहा है।

अभी धारावी में एक बार फिर कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन यहां रहने वालों में उसकी फ्रिक नजर नहीं आती। वे पहले की तरह बिना मास्क के घूमते दिखाई देते हैं, लेकिन धारावी से चलने वाली फैक्ट्रियों की कमर जरूर कोरोना ने तोड़ दी। धारावी को जानने के लिए हम दो दिन यहां की गली-गली में घूमें।

हमारे साथी बने यहीं रहने वाले फोटोग्राफर रवि दिनाकरण। रवि एक तमिल अखबार के लिए फोटोग्राफी करते हैं और सालों से धारावी में ही रह रहे हैं। वे कहते हैं, यहां तमिल भी बहुत बड़ी संख्या में हैं, जो अधिकतर खाने-पीने के बिजनेस से जुड़े हुए हैं। तमिल महिलाएं घर में इडली-सांभर, वड़ा-सांभर तैयार करती हैं और उनके पति-लड़के यह सायन में बेचते हैं।

इस तरह से छोटी सी जगह में दस-दस, बारह-बारह वर्कर्स काम करते हैं।

खैर, हम अंदर गलियों में घुसे तो पाया कि धारावी में छोटे-छोटे कारखाने तो खूब हैं, लेकिन न यहां साफ-सफाई है और न ही ड्रेनेज का अच्छा सिस्टम है। जिन कारखानों में वर्कर्स काम करते हैं, उन्हीं में सो भी जाते हैं। कुछ कारखानों के हॉल का साइज बड़ा है तो कुछ दस बाय दस के कमरे में भी चल रहे हैं। कारखानों के सामने से ड्रेनेज लाइन निकली है, जो मलबे से भरी हुई रहती है।

इससे न सिर्फ कारखाने के अंदर तक बदबू आती है बल्कि मच्छर और दूसरे जीव-जंतु भी घूमते रहते हैं, लेकिन उससे यहां काम करने वालों को अब कोई फर्क नहीं पड़ता। वो कहते हैं, यहां सेठ रहने को भी देता है और काम तो मिल ही रहा है। बारिश के मौसम में तो ये लोग घुटने-घुटने पानी में भी काम करने को मजबूर हो जाते हैं।

खास बात ये है कि इन कारखानों में काम करने वाले धारावी के मजदूर कम हैं और यूपी-बिहार के ज्यादा हैं। धारावी के जो मजदूर हैं, वो अधिकतर दूसरे एरिया में मजदूरी करने जाते हैं या खुद ही खाने-पीने का सामान बेचते हैं। कुछ तेल-साबुन बनाते हैं।

कपड़ों से लेकर चमड़े तक का काम यहां होता है।। ये कारीगर चमड़े को फिनिश कर रहा है।

गोरखपुर के अरमान शेख जींस के कारखाने में काम करते हैं। सुबह दस से रात दस बजे तक काम करने के बाद वो कारखाने में ही सो जाते हैं। खाना कहां खाते हो? इस पर कहते हैं, पास में एक होटल है, धारावी के सब मजदूर वहीं खाना खाते हैं। वहां 500 रुपए में एक हफ्ते तक दोनों टाइम भरपेट खाना मिलता है। आपकी कमाई कितनी हो जाती है? इस पर बोले, कमा लेता हूं, दिन का 400-500 रुपए। लेकिन अभी तो बिल्कुल काम नहीं मिल रहा।

यहीं पर घूमते हुए हमें गारमेंट का कारखाना दिखा। अंदर कुछ लोग काम करते दिखे। कारखाना मालिक पप्पू भी मजदूरों के साथ ही काम में जुटे थे। बोले, पंद्रह साल से कारखाना चला रहा हूं। लेकिन जो कमर इस बार टूटी है, वो पहले कभी नहीं टूटी। न गाड़ी की ईएमआई चुका पा रहा हूं और न ही पूरे वर्कर्स को बुला पा रहा हूं, क्योंकि अभी तो जो हैं, उन्हीं के खाने के वांदे हैं।

माल बिक ही नहीं रहा। पहले पंद्रह लोग मेरे कारखाने पर काम करते थे। यहीं सोते थे। अभी सिर्फ तीन वर्कर हैं। धारावी में क्या-क्या बनता है? यह सवाल हमने पप्पू से किया तो बोले, सर यहां चिड़िया का दूध भी बनता है लेकिन अभी कुछ नहीं हो रहा।

कई व्यापारियों ने किराये पर ऐसे कमरे लिए हैं, जहां से काम कर रहे हैं। कहते हैं, लॉकडाउन ने हालत इतनी खराब कर दी कि अब कर्जे में दब गए हैं।

आगे बढ़ने पर मोहम्मद शाहिद का कारखाना नजर आया। वो नाइट सूट बनाने का काम करते हैं। इनके कारखाने में भी लॉकडाउन के पहले 22 वर्कर थे, लेकिन अभी दो आदमी ही हैं। प्रदीप सिंह बैग बनाने का काम करते हैं। पहले 12 लोग रखे थे, अभी तीन से काम चला रहे हैं।

प्रदीप कहते हैं, हम 50 रुपए से लेकर 500 रुपए तक के बैग बनाते हैं। यही बैग बाहर हजारों में भी बिकते हैं। वहाज खान कहते हैं पिछले छ माह में सौ रुपए की बौनी भी नहीं हुई।। पहले 50 वर्कर थे, अब सिर्फ दो-तीन आदमी हैं। अब लोकल का कुछ शुरू हो, बिजनेस बढ़े तब उनको बुलाऊं।

धारावी में बिजनेस करने वाले राकेश गौतम के मुताबिक, धारावी नेताओं के लिए सिर्फ वोटबैंक है। न यहां पर प्रॉपर रोड हैं, न ही प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम है। इलेक्ट्रिसिटी एक बड़ा इश्यू है। अभी लॉकडाउन था, इसके बावजूद फैक्ट्रियों में 50-50 हजार रुपए के बिल थमा दिए गए जबकि फैक्ट्रीज बंद थीं। यदि सरकार यहां पर थोड़ा भी सीरियस होकर डेवलपमेंट करे तो यह देश का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल हब बन सकता है।

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कई बार राजनीतिक टिप्पणीकारों पर बुद्धिजीवी जिमनास्ट कहकर व्यंग्य कसा जाता है। तो हम इसी छवि के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय विवाद ट्रिब्यूनल द्वारा 20,000 करोड़ के टैक्स मामले में वोडाफोन के पक्ष में दिए गए फैसले और बिहार में होने वाले चुनावों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ये दोनों ही मामले पुरानी के मुकाबले नई अर्थव्यवस्था और नई राजनीति के लिए एक चुनौती और अवसर उपलब्ध कराते हैं। वोडाफोन का यह फैसला ऐसे समय पर आया है, जब पिछले तीन दशकों से अर्थव्यवस्था और राजनीति के पुराने तरीकों के सबसे बड़े पक्षकार प्रणब मुखर्जी का निधन हुआ है। उनके साथ कई दशकों में हुई बातचीत के आधार पर मैं कह सकता हूं कि ट्रिब्यूनल के फैसले पर भी उनकी प्रतिक्रिया काफी गुस्से भरी होती और वे यह कहते कि हम एक संप्रभु राष्ट्र है और यह फैसला देने वाले वे कौन होते हैं। वह तत्काल ही इस फैसले को चुनौती देते और पूरे गणराज्य की ताकत इसके पीछे लगा देते। फिर बिहार चुनाव मोदी सरकार के उन सुधारों के बाद हो रहे पहले चुनाव हैं, जिनपर गर्व करते हुए वह अपने विरोधियों पर तंज कसती है: आप कहते थे कि हमने कोई बड़ा सुधार नहीं किया? आप इनके बारे में क्या कहेंगे? कृषि और श्रम से जुड़े इन दोनों ही सुधारों से आर्थिक संकट से जूझ रहे वोटरों के बड़े हिस्से में कुछ समय के लिए नाराजगी उत्पन्न हो सकती है। यह देखना रोचक होगा कि मोदी और अमित शाह बिहार चुनाव अभियान कैसे तैयार करते हैं। क्या वे इन सुधारों व जोखिम लेने की क्षमता का प्रचार करेंगे? या सिर्फ महामारी के दौरान बांटे गए अनाज और पैसों की बात करेंगे? राजनीतिक अनुभव कहता है कि चुनाव प्रचार में सुधार या भविष्य में संपन्नता के वादे टालने चाहिए। वह पुरानी गरीबी ही है, जो वोट दिलाती है। एक खराब अर्थव्यवस्था के बावजूद मोदी की 2019 की जीत में काफी हद तक घरेलू गैस, शौचालय और मुद्रा ऋण जैसी योजनाओं की भूमिका थी, जिन्होंने गरीबों पर असर डाला। बड़े व गरीब राज्य बिहार में मोदी कौन-सी राह चुनेंगे? वोडाफोन पर आदेश और बिहार चुनाव मोदी के सामने दोहरी चुनौती पेश करते हैं। पुरानी अर्थव्यवस्था व पुरानी राजनीति तो कहती है कि वह ट्रिब्यूनल के ऑर्डर को चुनौती दें और बिहार में सौगात बांटने की बात करें। लेकिन, अगर यदि वह साहस दिखाएंगे तो वोडाफोन मामले में निर्णय को मानेंगे और बिहार में सुधार व संपन्नता के आधार पर प्रचार करेंगे। परंतु यह बिहार में मोदी के गठबंधन को चुनाव जीतने की गारंटी देगा या नहीं, हम नहीं कह सकते। नई अर्थव्यवस्था के खिलाफ पुरानी राजनीति के जबरदस्त तर्क हैं। सुधारों का दर्द तत्काल होता है और यह अनेक लोगों को प्रभावित करते हैं। इसका फायदा बहुत बाद में होता है और इसके बाद भी यह अनेक को नाखुश छोड़ देता है। यूपीए के सत्ता में आने के बाद जब बिल क्लिंटन 2006 में भारत आए तो उन्होंने राष्ट्रपति भवन में अपने भाषण में इस बात को अच्छे से बताया। उन्होंने कहा कि हम सभी चकित हैं कि वाजपेयी सरकार भारत की विकास दर को सात फीसदी पर पहुंचाने के बाद भी चुनाव हार गई। जब आपकी विकास दर इतनी ऊंची हो तो आप चुनाव कैसे हार सकते हैं? क्योंकि इससे फायदे में दिखने वाले लोग पीछे छूट गए लोगों की तुलना में बेहद कम होते हैं। यह राजनीति की कड़वी सच्चाई है। देश का शहरी मध्य वर्ग, जो बीते तीन दशक में मनमोहन सिंह और कांग्रेस के कारण समृद्ध हुआ, उसने 2014 में भाजपा को जमकर वोट दिया। वाम दलों और लालू प्रसाद यादव द्वारा अपने-अपने राज्यों में दशकों तक आधुनिकीकरण और वृद्धि को नहीं आने देने की यह एक वजह हो सकती है। उन्होंने लोगों को जाति और विचारधारा के बंकर में ही सड़ने दिया। बिहार की राजनीति में हमेशा जटिल व स्थानीय मुद्दे हावी रहे हैं। परंतु यह चुनाव एक बुरे दौर में हो रहा है। बढ़ती महामारी, चीन समस्या और अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट है। साथ ही यह अनुभव कि सुधार और वृद्धि की बातें चुनाव में काम नहीं आतीं। खासतौर पर जब आप दोबारा जीतना चाहते हों। आप यह पूछें कि क्या मोदी ने 2014 में वृद्धि का वादा नहीं किया था तो हम बता दें कि तब वह तत्कालीन सत्ता को चुनौती दे रहे थे। 2019 में दोबारा जीतने के लिए लड़े तो मुद्दा पाकिस्तान और भ्रष्टाचार थे। 2004 में वाजपेयी इंडिया शाइनिंग के प्रचार के बावजूद चुनाव हार गए थे। कांग्रेस भी मानती है कि वह 1996 और 2014 का चुनाव सुधारों के कारण ही हारे। फिर मोदी जोखिम क्यों लेंगे? यदि वह सही मायनों में सुधारक और न्यूनतम सरकार में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं तो उन्हें वोडाफोन के भूत को दफन कर देना चाहिए। फिर वे बिहार में अपने राजनीतिक रूप से विवादास्पद सुधारों के साथ चुनाव करें। इन दोनों कामों के लिए उन्हें अपनी राजनीतिक पूंजी दांव पर लगानी होगी। वह ऐसा कर पाते हैं या नहीं इससे ही हमारे मुख्य सवाल का जवाब मिलेगा। हमारा सवाल है कि क्या सुधारों को हमारी राजनीति के केंद्र में लाया जा सकता है? अन्यथा, इन्हें किस्तों में और चोरी से लागू करने का सिलसिला जारी रहेगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं) आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’ https://ift.tt/3cGpcXn Dainik Bhaskar हमारा सवाल है कि क्या सुधारों को हमारी राजनीति के केंद्र में लाया जा सकता है? या, इन्हें किस्तों में और चोरी से लागू करने का सिलसिला जारी रहेगा

कई बार राजनीतिक टिप्पणीकारों पर बुद्धिजीवी जिमनास्ट कहकर व्यंग्य कसा जाता है। तो हम इसी छवि के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय विवाद ट्रिब्यूनल द्वार...
- September 30, 2020
कई बार राजनीतिक टिप्पणीकारों पर बुद्धिजीवी जिमनास्ट कहकर व्यंग्य कसा जाता है। तो हम इसी छवि के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय विवाद ट्रिब्यूनल द्वारा 20,000 करोड़ के टैक्स मामले में वोडाफोन के पक्ष में दिए गए फैसले और बिहार में होने वाले चुनावों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ये दोनों ही मामले पुरानी के मुकाबले नई अर्थव्यवस्था और नई राजनीति के लिए एक चुनौती और अवसर उपलब्ध कराते हैं। वोडाफोन का यह फैसला ऐसे समय पर आया है, जब पिछले तीन दशकों से अर्थव्यवस्था और राजनीति के पुराने तरीकों के सबसे बड़े पक्षकार प्रणब मुखर्जी का निधन हुआ है। उनके साथ कई दशकों में हुई बातचीत के आधार पर मैं कह सकता हूं कि ट्रिब्यूनल के फैसले पर भी उनकी प्रतिक्रिया काफी गुस्से भरी होती और वे यह कहते कि हम एक संप्रभु राष्ट्र है और यह फैसला देने वाले वे कौन होते हैं। वह तत्काल ही इस फैसले को चुनौती देते और पूरे गणराज्य की ताकत इसके पीछे लगा देते। फिर बिहार चुनाव मोदी सरकार के उन सुधारों के बाद हो रहे पहले चुनाव हैं, जिनपर गर्व करते हुए वह अपने विरोधियों पर तंज कसती है: आप कहते थे कि हमने कोई बड़ा सुधार नहीं किया? आप इनके बारे में क्या कहेंगे? कृषि और श्रम से जुड़े इन दोनों ही सुधारों से आर्थिक संकट से जूझ रहे वोटरों के बड़े हिस्से में कुछ समय के लिए नाराजगी उत्पन्न हो सकती है। यह देखना रोचक होगा कि मोदी और अमित शाह बिहार चुनाव अभियान कैसे तैयार करते हैं। क्या वे इन सुधारों व जोखिम लेने की क्षमता का प्रचार करेंगे? या सिर्फ महामारी के दौरान बांटे गए अनाज और पैसों की बात करेंगे? राजनीतिक अनुभव कहता है कि चुनाव प्रचार में सुधार या भविष्य में संपन्नता के वादे टालने चाहिए। वह पुरानी गरीबी ही है, जो वोट दिलाती है। एक खराब अर्थव्यवस्था के बावजूद मोदी की 2019 की जीत में काफी हद तक घरेलू गैस, शौचालय और मुद्रा ऋण जैसी योजनाओं की भूमिका थी, जिन्होंने गरीबों पर असर डाला। बड़े व गरीब राज्य बिहार में मोदी कौन-सी राह चुनेंगे? वोडाफोन पर आदेश और बिहार चुनाव मोदी के सामने दोहरी चुनौती पेश करते हैं। पुरानी अर्थव्यवस्था व पुरानी राजनीति तो कहती है कि वह ट्रिब्यूनल के ऑर्डर को चुनौती दें और बिहार में सौगात बांटने की बात करें। लेकिन, अगर यदि वह साहस दिखाएंगे तो वोडाफोन मामले में निर्णय को मानेंगे और बिहार में सुधार व संपन्नता के आधार पर प्रचार करेंगे। परंतु यह बिहार में मोदी के गठबंधन को चुनाव जीतने की गारंटी देगा या नहीं, हम नहीं कह सकते। नई अर्थव्यवस्था के खिलाफ पुरानी राजनीति के जबरदस्त तर्क हैं। सुधारों का दर्द तत्काल होता है और यह अनेक लोगों को प्रभावित करते हैं। इसका फायदा बहुत बाद में होता है और इसके बाद भी यह अनेक को नाखुश छोड़ देता है। यूपीए के सत्ता में आने के बाद जब बिल क्लिंटन 2006 में भारत आए तो उन्होंने राष्ट्रपति भवन में अपने भाषण में इस बात को अच्छे से बताया। उन्होंने कहा कि हम सभी चकित हैं कि वाजपेयी सरकार भारत की विकास दर को सात फीसदी पर पहुंचाने के बाद भी चुनाव हार गई। जब आपकी विकास दर इतनी ऊंची हो तो आप चुनाव कैसे हार सकते हैं? क्योंकि इससे फायदे में दिखने वाले लोग पीछे छूट गए लोगों की तुलना में बेहद कम होते हैं। यह राजनीति की कड़वी सच्चाई है। देश का शहरी मध्य वर्ग, जो बीते तीन दशक में मनमोहन सिंह और कांग्रेस के कारण समृद्ध हुआ, उसने 2014 में भाजपा को जमकर वोट दिया। वाम दलों और लालू प्रसाद यादव द्वारा अपने-अपने राज्यों में दशकों तक आधुनिकीकरण और वृद्धि को नहीं आने देने की यह एक वजह हो सकती है। उन्होंने लोगों को जाति और विचारधारा के बंकर में ही सड़ने दिया। बिहार की राजनीति में हमेशा जटिल व स्थानीय मुद्दे हावी रहे हैं। परंतु यह चुनाव एक बुरे दौर में हो रहा है। बढ़ती महामारी, चीन समस्या और अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट है। साथ ही यह अनुभव कि सुधार और वृद्धि की बातें चुनाव में काम नहीं आतीं। खासतौर पर जब आप दोबारा जीतना चाहते हों। आप यह पूछें कि क्या मोदी ने 2014 में वृद्धि का वादा नहीं किया था तो हम बता दें कि तब वह तत्कालीन सत्ता को चुनौती दे रहे थे। 2019 में दोबारा जीतने के लिए लड़े तो मुद्दा पाकिस्तान और भ्रष्टाचार थे। 2004 में वाजपेयी इंडिया शाइनिंग के प्रचार के बावजूद चुनाव हार गए थे। कांग्रेस भी मानती है कि वह 1996 और 2014 का चुनाव सुधारों के कारण ही हारे। फिर मोदी जोखिम क्यों लेंगे? यदि वह सही मायनों में सुधारक और न्यूनतम सरकार में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं तो उन्हें वोडाफोन के भूत को दफन कर देना चाहिए। फिर वे बिहार में अपने राजनीतिक रूप से विवादास्पद सुधारों के साथ चुनाव करें। इन दोनों कामों के लिए उन्हें अपनी राजनीतिक पूंजी दांव पर लगानी होगी। वह ऐसा कर पाते हैं या नहीं इससे ही हमारे मुख्य सवाल का जवाब मिलेगा। हमारा सवाल है कि क्या सुधारों को हमारी राजनीति के केंद्र में लाया जा सकता है? अन्यथा, इन्हें किस्तों में और चोरी से लागू करने का सिलसिला जारी रहेगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं) आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’ https://ift.tt/3cGpcXn Dainik Bhaskar हमारा सवाल है कि क्या सुधारों को हमारी राजनीति के केंद्र में लाया जा सकता है? या, इन्हें किस्तों में और चोरी से लागू करने का सिलसिला जारी रहेगा 

कई बार राजनीतिक टिप्पणीकारों पर बुद्धिजीवी जिमनास्ट कहकर व्यंग्य कसा जाता है। तो हम इसी छवि के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय विवाद ट्रिब्यूनल द्वारा 20,000 करोड़ के टैक्स मामले में वोडाफोन के पक्ष में दिए गए फैसले और बिहार में होने वाले चुनावों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ये दोनों ही मामले पुरानी के मुकाबले नई अर्थव्यवस्था और नई राजनीति के लिए एक चुनौती और अवसर उपलब्ध कराते हैं।

वोडाफोन का यह फैसला ऐसे समय पर आया है, जब पिछले तीन दशकों से अर्थव्यवस्था और राजनीति के पुराने तरीकों के सबसे बड़े पक्षकार प्रणब मुखर्जी का निधन हुआ है। उनके साथ कई दशकों में हुई बातचीत के आधार पर मैं कह सकता हूं कि ट्रिब्यूनल के फैसले पर भी उनकी प्रतिक्रिया काफी गुस्से भरी होती और वे यह कहते कि हम एक संप्रभु राष्ट्र है और यह फैसला देने वाले वे कौन होते हैं। वह तत्काल ही इस फैसले को चुनौती देते और पूरे गणराज्य की ताकत इसके पीछे लगा देते।

फिर बिहार चुनाव मोदी सरकार के उन सुधारों के बाद हो रहे पहले चुनाव हैं, जिनपर गर्व करते हुए वह अपने विरोधियों पर तंज कसती है: आप कहते थे कि हमने कोई बड़ा सुधार नहीं किया? आप इनके बारे में क्या कहेंगे? कृषि और श्रम से जुड़े इन दोनों ही सुधारों से आर्थिक संकट से जूझ रहे वोटरों के बड़े हिस्से में कुछ समय के लिए नाराजगी उत्पन्न हो सकती है।

यह देखना रोचक होगा कि मोदी और अमित शाह बिहार चुनाव अभियान कैसे तैयार करते हैं। क्या वे इन सुधारों व जोखिम लेने की क्षमता का प्रचार करेंगे? या सिर्फ महामारी के दौरान बांटे गए अनाज और पैसों की बात करेंगे? राजनीतिक अनुभव कहता है कि चुनाव प्रचार में सुधार या भविष्य में संपन्नता के वादे टालने चाहिए। वह पुरानी गरीबी ही है, जो वोट दिलाती है। एक खराब अर्थव्यवस्था के बावजूद मोदी की 2019 की जीत में काफी हद तक घरेलू गैस, शौचालय और मुद्रा ऋण जैसी योजनाओं की भूमिका थी, जिन्होंने गरीबों पर असर डाला। बड़े व गरीब राज्य बिहार में मोदी कौन-सी राह चुनेंगे?

वोडाफोन पर आदेश और बिहार चुनाव मोदी के सामने दोहरी चुनौती पेश करते हैं। पुरानी अर्थव्यवस्था व पुरानी राजनीति तो कहती है कि वह ट्रिब्यूनल के ऑर्डर को चुनौती दें और बिहार में सौगात बांटने की बात करें। लेकिन, अगर यदि वह साहस दिखाएंगे तो वोडाफोन मामले में निर्णय को मानेंगे और बिहार में सुधार व संपन्नता के आधार पर प्रचार करेंगे। परंतु यह बिहार में मोदी के गठबंधन को चुनाव जीतने की गारंटी देगा या नहीं, हम नहीं कह सकते। नई अर्थव्यवस्था के खिलाफ पुरानी राजनीति के जबरदस्त तर्क हैं। सुधारों का दर्द तत्काल होता है और यह अनेक लोगों को प्रभावित करते हैं।

इसका फायदा बहुत बाद में होता है और इसके बाद भी यह अनेक को नाखुश छोड़ देता है। यूपीए के सत्ता में आने के बाद जब बिल क्लिंटन 2006 में भारत आए तो उन्होंने राष्ट्रपति भवन में अपने भाषण में इस बात को अच्छे से बताया। उन्होंने कहा कि हम सभी चकित हैं कि वाजपेयी सरकार भारत की विकास दर को सात फीसदी पर पहुंचाने के बाद भी चुनाव हार गई। जब आपकी विकास दर इतनी ऊंची हो तो आप चुनाव कैसे हार सकते हैं? क्योंकि इससे फायदे में दिखने वाले लोग पीछे छूट गए लोगों की तुलना में बेहद कम होते हैं।

यह राजनीति की कड़वी सच्चाई है। देश का शहरी मध्य वर्ग, जो बीते तीन दशक में मनमोहन सिंह और कांग्रेस के कारण समृद्ध हुआ, उसने 2014 में भाजपा को जमकर वोट दिया। वाम दलों और लालू प्रसाद यादव द्वारा अपने-अपने राज्यों में दशकों तक आधुनिकीकरण और वृद्धि को नहीं आने देने की यह एक वजह हो सकती है। उन्होंने लोगों को जाति और विचारधारा के बंकर में ही सड़ने दिया।

बिहार की राजनीति में हमेशा जटिल व स्थानीय मुद्दे हावी रहे हैं। परंतु यह चुनाव एक बुरे दौर में हो रहा है। बढ़ती महामारी, चीन समस्या और अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट है। साथ ही यह अनुभव कि सुधार और वृद्धि की बातें चुनाव में काम नहीं आतीं। खासतौर पर जब आप दोबारा जीतना चाहते हों। आप यह पूछें कि क्या मोदी ने 2014 में वृद्धि का वादा नहीं किया था तो हम बता दें कि तब वह तत्कालीन सत्ता को चुनौती दे रहे थे। 2019 में दोबारा जीतने के लिए लड़े तो मुद्दा पाकिस्तान और भ्रष्टाचार थे।

2004 में वाजपेयी इंडिया शाइनिंग के प्रचार के बावजूद चुनाव हार गए थे। कांग्रेस भी मानती है कि वह 1996 और 2014 का चुनाव सुधारों के कारण ही हारे। फिर मोदी जोखिम क्यों लेंगे? यदि वह सही मायनों में सुधारक और न्यूनतम सरकार में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं तो उन्हें वोडाफोन के भूत को दफन कर देना चाहिए। फिर वे बिहार में अपने राजनीतिक रूप से विवादास्पद सुधारों के साथ चुनाव करें।

इन दोनों कामों के लिए उन्हें अपनी राजनीतिक पूंजी दांव पर लगानी होगी। वह ऐसा कर पाते हैं या नहीं इससे ही हमारे मुख्य सवाल का जवाब मिलेगा। हमारा सवाल है कि क्या सुधारों को हमारी राजनीति के केंद्र में लाया जा सकता है? अन्यथा, इन्हें किस्तों में और चोरी से लागू करने का सिलसिला जारी रहेगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’

https://ift.tt/3cGpcXn Dainik Bhaskar हमारा सवाल है कि क्या सुधारों को हमारी राजनीति के केंद्र में लाया जा सकता है? या, इन्हें किस्तों में और चोरी से लागू करने का सिलसिला जारी रहेगा Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

नरेंद्र मोदी के साढ़े छह साल के कार्यकाल में उनके खिलाफ दूसरा किसान आंदोलन शुरू हो गया है। पहला आंदोलन तब हुआ था जब 2014 में सत्ता में आने के फौरन बाद मोदी ने अध्यादेश लाकर कॉर्पोरेट इस्तेमाल के लिए उनकी ज़मीनों के अधिग्रहण की कोशिश करनी चाही थी। इस बार भी किसानों को वही अंदेशा है कि उनकी पैदावार की खरीद का लंबे अरसे से चला आ रहा बंदोबस्त बदलने का आखिरी नतीजा उनसे उनकी ज़मीन छिनने में निकलेगा। किसानों की नाराज़गी के पीछे समझ यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अनाज की सरकारी खरीद बंद हो जाने से उन्हें बाज़ार और बड़ी पूंजी के रहमो-करम पर रह जाना पड़ेगा। खेती से होने वाली आमदनी उत्तरोत्तर अनिश्चित होती चली जाएगी। अंत में होगा यह कि वे कांट्रेक्ट फार्मिंग और कॉर्पोरेट फार्मिंग के चंगुल में फंस जाएंगे। यह नई स्थिति किसानों के तौर पर उनकी पहचान को हमेशा के लिए संकटग्रस्त कर देगी और कुल मिलाकर खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था का चेहरा पूरी तरह से बदल जाएगा। सवाल यह है कि कृषि मंत्री और प्रधानमंत्री के आश्वासनों के बावजूद पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तप्रदेश, कर्नाटक, मप्र और छत्तीसगढ़ के किसान अपनी यह राय बदलने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं? इस सवाल के जवाब में खेती के मामलों के जानकार 1998 में जारी की गई विश्व बैंक की डेवलपमेंट रपट का हवाला देते हैं। इस रपट में इस संस्था ने भारत सरकार को डांट लगाई थी कि उसे 2005 तक चालीस करोड़ ग्रामीणों को शहरों में लाने की जो जिम्मेदारी दी गई थी, उसे पूरा करने में वह बहुत देर लगा रही है। विश्व बैंक की मान्यता स्पष्ट थी कि भारत में देहाती ज़मीन ‘अकुशल’ हाथों में है। उसे वहां से निकालकर शहरों में बैठे ‘कुशल’ हाथों में लाने की जरूरत है। जब ऐसा हो जाएगा तो न केवल जमीन जैसी बेशकीमती चीज़ औद्योगिक पूंजी के हत्थे चढ़ जाएगी, बल्कि उस ज़मीन से बंधी ग्रामीण आबादी शहरों में सस्ता श्रम मुहैया कराने के लिए आ जाएगी। मोदी सरकार विश्व बैंक द्वारा दिए गए इस दायित्व को अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा सरकार और मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार के मुकाबले अधिक उत्साह से पूरा करने में जुटी हुई है। दोनों पिछली सरकारें शायद राजनीतिक नुकसान के डर से विश्व बैंक की लताड़ खाती रहीं, पर काम पूरा नहीं कर पाईं। नरेंद्र मोदी को राजनीतिक नुकसान का कोई खास डर नहीं है। पुराने सहयोगी अकाली दल के सरकार छोड़ देने से भी वे विचलित नहीं हैं। भाजपा पहले से ही अकालियों के ढींढसा गुट के साथ जुड़ने के बारे में सोच रही थी। नागरिकता कानून के सवाल पर भी अकालियों का समर्थन सरकार को नहीं मिला था। वैसे भी अकाली पंजाब में एक के बाद एक तीन चुनावों में मोदी की लहर का फायदा उठाने में नाकाम रहकर अपनी उपयोगिता खोते जा रहे थे। जाहिर है कि अब भाजपा पंजाब में नए सिरे से राजनीतिक पेशबंदी करेगी। दूसरे, मोदी और उनके रणनीतिकारों को लगता है कि यह किसान आंदोलन न बहुत दूर तक जाएगा और ना ही दूर तक फैलेगा। कारण यह कि मौजूदा अंदेशे मुख्य तौर पर मंझोले और बड़े किसानों तक सीमित हैं और देश के 80% से ज्यादा किसान छोटे और सीमांत श्रेणी में आते हैं। मोदी सरकार का मानना है कि इन किसानों को संतुष्ट रखने के लिए उसके पास सीधे इन खातों में रुपया पहुंचाने से लेकर मुफ्त अनाज बांटने जैसी युक्तियां हैं। मोटे तौर पर भाजपा की यह रणनीति ठीक लगती है। लेकिन, अगर मंझोले और बड़े किसानों का आंदोलन उग्र हो गया तो उससे बनने वाली विषम राजनीतिक परिस्थिति को एक संगीन सांसत में डाल सकती है। क्या इस रणनीति ने ऐसी परिस्थिति का काट भी सोच लिया है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।) आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Why is Modi government disinterested with the peasant movement? https://ift.tt/36hOIAZ Dainik Bhaskar मोदी और उनके रणनीतिकारों को लगता है कि यह किसान आंदोलन न बहुत दूर तक जाएगा और ना ही दूर तक फैलेगा

नरेंद्र मोदी के साढ़े छह साल के कार्यकाल में उनके खिलाफ दूसरा किसान आंदोलन शुरू हो गया है। पहला आंदोलन तब हुआ था जब 2014 में सत्ता में आने ...
- September 30, 2020
नरेंद्र मोदी के साढ़े छह साल के कार्यकाल में उनके खिलाफ दूसरा किसान आंदोलन शुरू हो गया है। पहला आंदोलन तब हुआ था जब 2014 में सत्ता में आने के फौरन बाद मोदी ने अध्यादेश लाकर कॉर्पोरेट इस्तेमाल के लिए उनकी ज़मीनों के अधिग्रहण की कोशिश करनी चाही थी। इस बार भी किसानों को वही अंदेशा है कि उनकी पैदावार की खरीद का लंबे अरसे से चला आ रहा बंदोबस्त बदलने का आखिरी नतीजा उनसे उनकी ज़मीन छिनने में निकलेगा। किसानों की नाराज़गी के पीछे समझ यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अनाज की सरकारी खरीद बंद हो जाने से उन्हें बाज़ार और बड़ी पूंजी के रहमो-करम पर रह जाना पड़ेगा। खेती से होने वाली आमदनी उत्तरोत्तर अनिश्चित होती चली जाएगी। अंत में होगा यह कि वे कांट्रेक्ट फार्मिंग और कॉर्पोरेट फार्मिंग के चंगुल में फंस जाएंगे। यह नई स्थिति किसानों के तौर पर उनकी पहचान को हमेशा के लिए संकटग्रस्त कर देगी और कुल मिलाकर खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था का चेहरा पूरी तरह से बदल जाएगा। सवाल यह है कि कृषि मंत्री और प्रधानमंत्री के आश्वासनों के बावजूद पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तप्रदेश, कर्नाटक, मप्र और छत्तीसगढ़ के किसान अपनी यह राय बदलने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं? इस सवाल के जवाब में खेती के मामलों के जानकार 1998 में जारी की गई विश्व बैंक की डेवलपमेंट रपट का हवाला देते हैं। इस रपट में इस संस्था ने भारत सरकार को डांट लगाई थी कि उसे 2005 तक चालीस करोड़ ग्रामीणों को शहरों में लाने की जो जिम्मेदारी दी गई थी, उसे पूरा करने में वह बहुत देर लगा रही है। विश्व बैंक की मान्यता स्पष्ट थी कि भारत में देहाती ज़मीन ‘अकुशल’ हाथों में है। उसे वहां से निकालकर शहरों में बैठे ‘कुशल’ हाथों में लाने की जरूरत है। जब ऐसा हो जाएगा तो न केवल जमीन जैसी बेशकीमती चीज़ औद्योगिक पूंजी के हत्थे चढ़ जाएगी, बल्कि उस ज़मीन से बंधी ग्रामीण आबादी शहरों में सस्ता श्रम मुहैया कराने के लिए आ जाएगी। मोदी सरकार विश्व बैंक द्वारा दिए गए इस दायित्व को अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा सरकार और मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार के मुकाबले अधिक उत्साह से पूरा करने में जुटी हुई है। दोनों पिछली सरकारें शायद राजनीतिक नुकसान के डर से विश्व बैंक की लताड़ खाती रहीं, पर काम पूरा नहीं कर पाईं। नरेंद्र मोदी को राजनीतिक नुकसान का कोई खास डर नहीं है। पुराने सहयोगी अकाली दल के सरकार छोड़ देने से भी वे विचलित नहीं हैं। भाजपा पहले से ही अकालियों के ढींढसा गुट के साथ जुड़ने के बारे में सोच रही थी। नागरिकता कानून के सवाल पर भी अकालियों का समर्थन सरकार को नहीं मिला था। वैसे भी अकाली पंजाब में एक के बाद एक तीन चुनावों में मोदी की लहर का फायदा उठाने में नाकाम रहकर अपनी उपयोगिता खोते जा रहे थे। जाहिर है कि अब भाजपा पंजाब में नए सिरे से राजनीतिक पेशबंदी करेगी। दूसरे, मोदी और उनके रणनीतिकारों को लगता है कि यह किसान आंदोलन न बहुत दूर तक जाएगा और ना ही दूर तक फैलेगा। कारण यह कि मौजूदा अंदेशे मुख्य तौर पर मंझोले और बड़े किसानों तक सीमित हैं और देश के 80% से ज्यादा किसान छोटे और सीमांत श्रेणी में आते हैं। मोदी सरकार का मानना है कि इन किसानों को संतुष्ट रखने के लिए उसके पास सीधे इन खातों में रुपया पहुंचाने से लेकर मुफ्त अनाज बांटने जैसी युक्तियां हैं। मोटे तौर पर भाजपा की यह रणनीति ठीक लगती है। लेकिन, अगर मंझोले और बड़े किसानों का आंदोलन उग्र हो गया तो उससे बनने वाली विषम राजनीतिक परिस्थिति को एक संगीन सांसत में डाल सकती है। क्या इस रणनीति ने ऐसी परिस्थिति का काट भी सोच लिया है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।) आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Why is Modi government disinterested with the peasant movement? https://ift.tt/36hOIAZ Dainik Bhaskar मोदी और उनके रणनीतिकारों को लगता है कि यह किसान आंदोलन न बहुत दूर तक जाएगा और ना ही दूर तक फैलेगा 

नरेंद्र मोदी के साढ़े छह साल के कार्यकाल में उनके खिलाफ दूसरा किसान आंदोलन शुरू हो गया है। पहला आंदोलन तब हुआ था जब 2014 में सत्ता में आने के फौरन बाद मोदी ने अध्यादेश लाकर कॉर्पोरेट इस्तेमाल के लिए उनकी ज़मीनों के अधिग्रहण की कोशिश करनी चाही थी। इस बार भी किसानों को वही अंदेशा है कि उनकी पैदावार की खरीद का लंबे अरसे से चला आ रहा बंदोबस्त बदलने का आखिरी नतीजा उनसे उनकी ज़मीन छिनने में निकलेगा।

किसानों की नाराज़गी के पीछे समझ यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अनाज की सरकारी खरीद बंद हो जाने से उन्हें बाज़ार और बड़ी पूंजी के रहमो-करम पर रह जाना पड़ेगा। खेती से होने वाली आमदनी उत्तरोत्तर अनिश्चित होती चली जाएगी। अंत में होगा यह कि वे कांट्रेक्ट फार्मिंग और कॉर्पोरेट फार्मिंग के चंगुल में फंस जाएंगे। यह नई स्थिति किसानों के तौर पर उनकी पहचान को हमेशा के लिए संकटग्रस्त कर देगी और कुल मिलाकर खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था का चेहरा पूरी तरह से बदल जाएगा।

सवाल यह है कि कृषि मंत्री और प्रधानमंत्री के आश्वासनों के बावजूद पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तप्रदेश, कर्नाटक, मप्र और छत्तीसगढ़ के किसान अपनी यह राय बदलने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं? इस सवाल के जवाब में खेती के मामलों के जानकार 1998 में जारी की गई विश्व बैंक की डेवलपमेंट रपट का हवाला देते हैं। इस रपट में इस संस्था ने भारत सरकार को डांट लगाई थी कि उसे 2005 तक चालीस करोड़ ग्रामीणों को शहरों में लाने की जो जिम्मेदारी दी गई थी, उसे पूरा करने में वह बहुत देर लगा रही है।

विश्व बैंक की मान्यता स्पष्ट थी कि भारत में देहाती ज़मीन ‘अकुशल’ हाथों में है। उसे वहां से निकालकर शहरों में बैठे ‘कुशल’ हाथों में लाने की जरूरत है। जब ऐसा हो जाएगा तो न केवल जमीन जैसी बेशकीमती चीज़ औद्योगिक पूंजी के हत्थे चढ़ जाएगी, बल्कि उस ज़मीन से बंधी ग्रामीण आबादी शहरों में सस्ता श्रम मुहैया कराने के लिए आ जाएगी। मोदी सरकार विश्व बैंक द्वारा दिए गए इस दायित्व को अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा सरकार और मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार के मुकाबले अधिक उत्साह से पूरा करने में जुटी हुई है।

दोनों पिछली सरकारें शायद राजनीतिक नुकसान के डर से विश्व बैंक की लताड़ खाती रहीं, पर काम पूरा नहीं कर पाईं। नरेंद्र मोदी को राजनीतिक नुकसान का कोई खास डर नहीं है। पुराने सहयोगी अकाली दल के सरकार छोड़ देने से भी वे विचलित नहीं हैं। भाजपा पहले से ही अकालियों के ढींढसा गुट के साथ जुड़ने के बारे में सोच रही थी। नागरिकता कानून के सवाल पर भी अकालियों का समर्थन सरकार को नहीं मिला था। वैसे भी अकाली पंजाब में एक के बाद एक तीन चुनावों में मोदी की लहर का फायदा उठाने में नाकाम रहकर अपनी उपयोगिता खोते जा रहे थे। जाहिर है कि अब भाजपा पंजाब में नए सिरे से राजनीतिक पेशबंदी करेगी।

दूसरे, मोदी और उनके रणनीतिकारों को लगता है कि यह किसान आंदोलन न बहुत दूर तक जाएगा और ना ही दूर तक फैलेगा। कारण यह कि मौजूदा अंदेशे मुख्य तौर पर मंझोले और बड़े किसानों तक सीमित हैं और देश के 80% से ज्यादा किसान छोटे और सीमांत श्रेणी में आते हैं। मोदी सरकार का मानना है कि इन किसानों को संतुष्ट रखने के लिए उसके पास सीधे इन खातों में रुपया पहुंचाने से लेकर मुफ्त अनाज बांटने जैसी युक्तियां हैं।

मोटे तौर पर भाजपा की यह रणनीति ठीक लगती है। लेकिन, अगर मंझोले और बड़े किसानों का आंदोलन उग्र हो गया तो उससे बनने वाली विषम राजनीतिक परिस्थिति को एक संगीन सांसत में डाल सकती है। क्या इस रणनीति ने ऐसी परिस्थिति का काट भी सोच लिया है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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Why is Modi government disinterested with the peasant movement?

https://ift.tt/36hOIAZ Dainik Bhaskar मोदी और उनके रणनीतिकारों को लगता है कि यह किसान आंदोलन न बहुत दूर तक जाएगा और ना ही दूर तक फैलेगा Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें विमान से कुछ सैनिक पैराशूट के जरिए उतरते दिखाई दे रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि ये भारतीय पैराट्रूपर्स हैं, जो लद्दाख में अपना मूवमेंट बढ़ा रहे हैं। एक तरफ भारत-चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जहां सैन्य और राजनयिक स्तर की बातचीत का दौर जारी है। वहीं दूसरी तरफ इस वीडियो को भारतीय पैराट्रूपर्स का बताकर सीमा विवाद से जोड़कर शेयर किया जा रहा है। Indian paratroopers @Ladakh pic.twitter.com/XQLIRpePx3 — Ladakh News Updates (@LadakhNews) September 24, 2020 और सच क्या है? अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से भी इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि हाल में भारतीय पैराट्रूपर्स ने लद्दाख में कोई सैन्य अभ्यास किया है। वायरल वीडियो के स्क्रीनशॉट्स को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें यूट्यूब पर एक वीडियो मिला। असल में ये वायरल हो रही एक छोटी क्लिप का पूरा वीडियो है। वीडियो में पहले सैनिक एयरक्राफ्ट में बैठे दिख रहे हैं। फिर एक-एक करके पैराशूट के जरिए हवा में छलांग लगाते हैं। यूनिफॉर्म और सैनिकों को देखकर स्पष्ट हो रहा है कि ये भारतीय वायुसेना के जवान या पैराट्रूपर्स नहीं हैं। यूट्यूब पर ये वीडियो 23 जनवरी 2020 को ही अपलोड किया जा चुका है। इससे साफ है कि वीडियो का वर्तमान में चल रहे भारत-चीन सीमा विवाद से कोई संबंध नहीं है। इस यूट्यूब वीडियो के कैप्शन के अनुसार, ये स्पैनिश फोर्स का वीडियो है। स्पैनिश फोर्स द्वारा लगाई गई पहली पैराशूट जंप की 72वीं सालगिरह सेना ने ऐसे मनाई थी। चूंकि ये किसी न्यूज एजेंसी या स्पेन की सेना का ऑफिशियल यूट्यूब चैनल नहीं है। इसलिए ये पुष्टि नहीं होती कि कैप्शन की जानकारी सही है या। लेकिन, ये स्पष्ट हो रहा है कि वीडियो का भारत से कोई लेना-देना नहीं है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Fact Check: Did Indian Paratroopers Landed in Ladakh? 8 month old video goes viral with false claim https://ift.tt/3kWHzKv Dainik Bhaskar क्या लद्दाख में लैंड कर चुके हैं भारतीय पैराट्रूपर? 8 महीने पुराना वीडियो गलत दावे के साथ वायरल

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें विमान से कुछ सैनिक पैराशूट के जरिए उतरते दिखाई दे रहे हैं। दावा किया...
- September 30, 2020
क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें विमान से कुछ सैनिक पैराशूट के जरिए उतरते दिखाई दे रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि ये भारतीय पैराट्रूपर्स हैं, जो लद्दाख में अपना मूवमेंट बढ़ा रहे हैं। एक तरफ भारत-चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जहां सैन्य और राजनयिक स्तर की बातचीत का दौर जारी है। वहीं दूसरी तरफ इस वीडियो को भारतीय पैराट्रूपर्स का बताकर सीमा विवाद से जोड़कर शेयर किया जा रहा है। Indian paratroopers @Ladakh pic.twitter.com/XQLIRpePx3 — Ladakh News Updates (@LadakhNews) September 24, 2020 और सच क्या है? अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से भी इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि हाल में भारतीय पैराट्रूपर्स ने लद्दाख में कोई सैन्य अभ्यास किया है। वायरल वीडियो के स्क्रीनशॉट्स को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें यूट्यूब पर एक वीडियो मिला। असल में ये वायरल हो रही एक छोटी क्लिप का पूरा वीडियो है। वीडियो में पहले सैनिक एयरक्राफ्ट में बैठे दिख रहे हैं। फिर एक-एक करके पैराशूट के जरिए हवा में छलांग लगाते हैं। यूनिफॉर्म और सैनिकों को देखकर स्पष्ट हो रहा है कि ये भारतीय वायुसेना के जवान या पैराट्रूपर्स नहीं हैं। यूट्यूब पर ये वीडियो 23 जनवरी 2020 को ही अपलोड किया जा चुका है। इससे साफ है कि वीडियो का वर्तमान में चल रहे भारत-चीन सीमा विवाद से कोई संबंध नहीं है। इस यूट्यूब वीडियो के कैप्शन के अनुसार, ये स्पैनिश फोर्स का वीडियो है। स्पैनिश फोर्स द्वारा लगाई गई पहली पैराशूट जंप की 72वीं सालगिरह सेना ने ऐसे मनाई थी। चूंकि ये किसी न्यूज एजेंसी या स्पेन की सेना का ऑफिशियल यूट्यूब चैनल नहीं है। इसलिए ये पुष्टि नहीं होती कि कैप्शन की जानकारी सही है या। लेकिन, ये स्पष्ट हो रहा है कि वीडियो का भारत से कोई लेना-देना नहीं है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Fact Check: Did Indian Paratroopers Landed in Ladakh? 8 month old video goes viral with false claim https://ift.tt/3kWHzKv Dainik Bhaskar क्या लद्दाख में लैंड कर चुके हैं भारतीय पैराट्रूपर? 8 महीने पुराना वीडियो गलत दावे के साथ वायरल 

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें विमान से कुछ सैनिक पैराशूट के जरिए उतरते दिखाई दे रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि ये भारतीय पैराट्रूपर्स हैं, जो लद्दाख में अपना मूवमेंट बढ़ा रहे हैं।

एक तरफ भारत-चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जहां सैन्य और राजनयिक स्तर की बातचीत का दौर जारी है। वहीं दूसरी तरफ इस वीडियो को भारतीय पैराट्रूपर्स का बताकर सीमा विवाद से जोड़कर शेयर किया जा रहा है।

Indian paratroopers @Ladakh pic.twitter.com/XQLIRpePx3

— Ladakh News Updates (@LadakhNews) September 24, 2020

और सच क्या है?

अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से भी इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि हाल में भारतीय पैराट्रूपर्स ने लद्दाख में कोई सैन्य अभ्यास किया है।

वायरल वीडियो के स्क्रीनशॉट्स को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें यूट्यूब पर एक वीडियो मिला। असल में ये वायरल हो रही एक छोटी क्लिप का पूरा वीडियो है।

वीडियो में पहले सैनिक एयरक्राफ्ट में बैठे दिख रहे हैं। फिर एक-एक करके पैराशूट के जरिए हवा में छलांग लगाते हैं। यूनिफॉर्म और सैनिकों को देखकर स्पष्ट हो रहा है कि ये भारतीय वायुसेना के जवान या पैराट्रूपर्स नहीं हैं। यूट्यूब पर ये वीडियो 23 जनवरी 2020 को ही अपलोड किया जा चुका है। इससे साफ है कि वीडियो का वर्तमान में चल रहे भारत-चीन सीमा विवाद से कोई संबंध नहीं है।

इस यूट्यूब वीडियो के कैप्शन के अनुसार, ये स्पैनिश फोर्स का वीडियो है। स्पैनिश फोर्स द्वारा लगाई गई पहली पैराशूट जंप की 72वीं सालगिरह सेना ने ऐसे मनाई थी। चूंकि ये किसी न्यूज एजेंसी या स्पेन की सेना का ऑफिशियल यूट्यूब चैनल नहीं है। इसलिए ये पुष्टि नहीं होती कि कैप्शन की जानकारी सही है या। लेकिन, ये स्पष्ट हो रहा है कि वीडियो का भारत से कोई लेना-देना नहीं है।

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Fact Check: Did Indian Paratroopers Landed in Ladakh? 8 month old video goes viral with false claim

https://ift.tt/3kWHzKv Dainik Bhaskar क्या लद्दाख में लैंड कर चुके हैं भारतीय पैराट्रूपर? 8 महीने पुराना वीडियो गलत दावे के साथ वायरल Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

आईपीएल के 13वें सीजन का 12वां मैच कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) और राजस्थान रॉयल्स के बीच आज दुबई में खेला जाएगा। राजस्थान ने अपने पिछले मैच में लीग का सबसे बड़ा टारगेट चेज किया था। वहीं, केकेआर ने पिछले मैच में सनराइजर्स हैदराबाद को हराया था। पिछले 5 साल की बात करें, तो राजस्थान की टीम केकेआर के खिलाफ सिर्फ एक मैच ही जीत पाई है। इस दौरान दोनों के बीच 5 मुकाबले खेले गए। वहीं, इस सीजन में राजस्थान का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है। उसने अपने दोनों मैच शारजाह में खेले हैं। दोनों बार 200 से ज्यादा रन का स्कोर बनाकर मैच जीते। केकेआर ने सीजन में अब तक दो मैच खेले हैं, जिसमें उसे एक में जीत मिली है और एक में हार का सामना करना पड़ा है। दुबई में पिछले मैच में सुपर ओवर से निकला नतीजा दुबई में खेले गए पिछले मैच में का नतीजा सुपर ओवर से निकला था। जिसमें रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) ने मुंबई इंडियंस को हराया। आईपीएल इतिहास में पहली बार 200+ रन बनाने के बावजूद कोई मैच टाई हुआ है। इस मैच में बेंगलुरु ने टॉस हारकर पहले बल्लेबाजी करते हुए 3 विकेट पर 201 रन बनाए थे। इसके जवाब में मुंबई भी 5 विकेट पर 201 रन ही बना पाई। सीजन में यहां कोई टीम चेज नहीं कर पाई दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में होने वाले मुकाबले में गेंदबाजों की भूमिका अहम होगी। इस सीजन में अब तक यहां 5 मैच खेले गए हैं। पांचों मैचों में यहां कोई भी टीम चेज नहीं कर पाई। दिल्ली-पंजाब और बेंगलुरु-मुंबई के मैच का फैसला सुपर ओवर में हुआ था, लेकिन दोनों मैचों में पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम को ही जीत मिली थी। पिछले मैच के हीरो राहुल तेवतिया पर रहेगी नजर पंजाब के शेल्डन कॉटरेल के एक ओवर में 5 छक्के लगाकर राजस्थान को जीत दिलाने वाले राहुल तेवतिया से इस मैच में भी वैसे ही प्रदर्शन की उम्मीद होगी। तेवतिया ने पिछले मैच में शानदार फिफ्टी लगाकर अपनी टीम को हारा हुआ मैच जिताया था। रॉयल्स टीम में स्मिथ, सैमसन और आर्चर की-प्लेयर्स राजस्थान रॉयल्स में कप्तान स्मिथ के अलावा संजू सैमसन और जोस बटलर अहम बल्लेबाज हैं। ऑलराउंडर्स में टॉम करन और श्रेयस गोपाल रह सकते हैं। इनके अलावा बॉलिंग डिपार्टमेंट में इंग्लैंड को वर्ल्ड कप जिताने वाले जोफ्रा आर्चर के अलावा जयदेव उनादकट बड़े प्लेयर रहेंगे। केकेआर के लिए गिल, रसेल और नरेन की-प्लेयर्स कोलकाता को ऑफ स्पिनर और ओपनर बल्लेबाज सुनील नरेन के अलावा आंद्रे रसेल और युवा बल्लेबाज शुभमन गिल से सबसे ज्यादा उम्मीदें होंगी। 2019 सीजन में रसेल ने आक्रामक बल्लेबाजी करते हुए 52 छक्के लगाए थे। आईपीएल में रसेल का सबसे ज्यादा 186.41 का स्ट्राइक रेट भी रहा है। दोनों टीम के महंगे खिलाड़ी राजस्थान में कप्तान स्मिथ 12.50 करोड़ और संजू सैमसन 8 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं। वहीं, कोलकाता के सबसे महंगे खिलाड़ी पैट कमिंस हैं। उन्हें सीजन के 15.50 करोड़ रुपए मिलेंगे। इसके बाद सुनील नरेन का नंबर आता है, जिन्हें सीजन के 12.50 करोड़ रुपए मिलेंगे। हेड-टु-हेड आईपीएल में राजस्थान और कोलकाता के बीच बराबरी की टक्कर रही है। दोनों के बीच अब तक 21 मुकाबले खेले गए। राजस्थान और कोलकाता ने 10-10 मैच जीते हैं। एक मैच बेनतीजा रहा पिच और मौसम रिपोर्ट दुबई में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 27 से 39 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। इस आईपीएल से पहले यहां हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है। इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 61 पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 34 पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 26 पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 144 दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 122 कोलकाता ने 2 और राजस्थान ने एक बार खिताब जीता आईपीएल इतिहास में कोलकाता ने अब तक दो बार फाइनल (2014, 2012) खेला और दोनों बार चैम्पियन रही है। वहीं, राजस्थान ने लीग के पहले सीजन में ही फाइनल (2008) खेला था। उसमें उसने चेन्नई को हराकर खिताब अपने नाम किया था। आईपीएल दोनों टीमों का सक्सेस रेट लगभग बराबर राजस्थान रॉयल्स ने लीग में अब तक 149 मैच खेले, जिसमें 77 जीते और 70 हारे हैं। 2 मुकाबले बेनतीजा रहे। वहीं, कोलकाता ने अब तक 180 में से 93 मैच जीते और 87 हारे हैं। इस तरह लीग में रॉयल्स की जीत सक्सेस रेट 52.04% और कोलकाता का 52.50% रहा। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें KKR Vs RR Head To Head Record IPL Dream Playing 11 Match Preview Kolkata Knight Riders vs Rajasthan Royals https://ift.tt/3ieFNmh Dainik Bhaskar लीग का सबसे बड़ा टारगेट चेज करने वाली रॉयल्स 5 साल में केकेआर के खिलाफ एक ही मैच जीत सकी; यूएई में दो हाईस्कोर भी इसी टीम के नाम

आईपीएल के 13वें सीजन का 12वां मैच कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) और राजस्थान रॉयल्स के बीच आज दुबई में खेला जाएगा। राजस्थान ने अपने पिछले म...
- September 30, 2020
आईपीएल के 13वें सीजन का 12वां मैच कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) और राजस्थान रॉयल्स के बीच आज दुबई में खेला जाएगा। राजस्थान ने अपने पिछले मैच में लीग का सबसे बड़ा टारगेट चेज किया था। वहीं, केकेआर ने पिछले मैच में सनराइजर्स हैदराबाद को हराया था। पिछले 5 साल की बात करें, तो राजस्थान की टीम केकेआर के खिलाफ सिर्फ एक मैच ही जीत पाई है। इस दौरान दोनों के बीच 5 मुकाबले खेले गए। वहीं, इस सीजन में राजस्थान का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है। उसने अपने दोनों मैच शारजाह में खेले हैं। दोनों बार 200 से ज्यादा रन का स्कोर बनाकर मैच जीते। केकेआर ने सीजन में अब तक दो मैच खेले हैं, जिसमें उसे एक में जीत मिली है और एक में हार का सामना करना पड़ा है। दुबई में पिछले मैच में सुपर ओवर से निकला नतीजा दुबई में खेले गए पिछले मैच में का नतीजा सुपर ओवर से निकला था। जिसमें रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) ने मुंबई इंडियंस को हराया। आईपीएल इतिहास में पहली बार 200+ रन बनाने के बावजूद कोई मैच टाई हुआ है। इस मैच में बेंगलुरु ने टॉस हारकर पहले बल्लेबाजी करते हुए 3 विकेट पर 201 रन बनाए थे। इसके जवाब में मुंबई भी 5 विकेट पर 201 रन ही बना पाई। सीजन में यहां कोई टीम चेज नहीं कर पाई दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में होने वाले मुकाबले में गेंदबाजों की भूमिका अहम होगी। इस सीजन में अब तक यहां 5 मैच खेले गए हैं। पांचों मैचों में यहां कोई भी टीम चेज नहीं कर पाई। दिल्ली-पंजाब और बेंगलुरु-मुंबई के मैच का फैसला सुपर ओवर में हुआ था, लेकिन दोनों मैचों में पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम को ही जीत मिली थी। पिछले मैच के हीरो राहुल तेवतिया पर रहेगी नजर पंजाब के शेल्डन कॉटरेल के एक ओवर में 5 छक्के लगाकर राजस्थान को जीत दिलाने वाले राहुल तेवतिया से इस मैच में भी वैसे ही प्रदर्शन की उम्मीद होगी। तेवतिया ने पिछले मैच में शानदार फिफ्टी लगाकर अपनी टीम को हारा हुआ मैच जिताया था। रॉयल्स टीम में स्मिथ, सैमसन और आर्चर की-प्लेयर्स राजस्थान रॉयल्स में कप्तान स्मिथ के अलावा संजू सैमसन और जोस बटलर अहम बल्लेबाज हैं। ऑलराउंडर्स में टॉम करन और श्रेयस गोपाल रह सकते हैं। इनके अलावा बॉलिंग डिपार्टमेंट में इंग्लैंड को वर्ल्ड कप जिताने वाले जोफ्रा आर्चर के अलावा जयदेव उनादकट बड़े प्लेयर रहेंगे। केकेआर के लिए गिल, रसेल और नरेन की-प्लेयर्स कोलकाता को ऑफ स्पिनर और ओपनर बल्लेबाज सुनील नरेन के अलावा आंद्रे रसेल और युवा बल्लेबाज शुभमन गिल से सबसे ज्यादा उम्मीदें होंगी। 2019 सीजन में रसेल ने आक्रामक बल्लेबाजी करते हुए 52 छक्के लगाए थे। आईपीएल में रसेल का सबसे ज्यादा 186.41 का स्ट्राइक रेट भी रहा है। दोनों टीम के महंगे खिलाड़ी राजस्थान में कप्तान स्मिथ 12.50 करोड़ और संजू सैमसन 8 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं। वहीं, कोलकाता के सबसे महंगे खिलाड़ी पैट कमिंस हैं। उन्हें सीजन के 15.50 करोड़ रुपए मिलेंगे। इसके बाद सुनील नरेन का नंबर आता है, जिन्हें सीजन के 12.50 करोड़ रुपए मिलेंगे। हेड-टु-हेड आईपीएल में राजस्थान और कोलकाता के बीच बराबरी की टक्कर रही है। दोनों के बीच अब तक 21 मुकाबले खेले गए। राजस्थान और कोलकाता ने 10-10 मैच जीते हैं। एक मैच बेनतीजा रहा पिच और मौसम रिपोर्ट दुबई में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 27 से 39 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। इस आईपीएल से पहले यहां हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है। इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 61 पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 34 पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 26 पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 144 दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 122 कोलकाता ने 2 और राजस्थान ने एक बार खिताब जीता आईपीएल इतिहास में कोलकाता ने अब तक दो बार फाइनल (2014, 2012) खेला और दोनों बार चैम्पियन रही है। वहीं, राजस्थान ने लीग के पहले सीजन में ही फाइनल (2008) खेला था। उसमें उसने चेन्नई को हराकर खिताब अपने नाम किया था। आईपीएल दोनों टीमों का सक्सेस रेट लगभग बराबर राजस्थान रॉयल्स ने लीग में अब तक 149 मैच खेले, जिसमें 77 जीते और 70 हारे हैं। 2 मुकाबले बेनतीजा रहे। वहीं, कोलकाता ने अब तक 180 में से 93 मैच जीते और 87 हारे हैं। इस तरह लीग में रॉयल्स की जीत सक्सेस रेट 52.04% और कोलकाता का 52.50% रहा। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें KKR Vs RR Head To Head Record IPL Dream Playing 11 Match Preview Kolkata Knight Riders vs Rajasthan Royals https://ift.tt/3ieFNmh Dainik Bhaskar लीग का सबसे बड़ा टारगेट चेज करने वाली रॉयल्स 5 साल में केकेआर के खिलाफ एक ही मैच जीत सकी; यूएई में दो हाईस्कोर भी इसी टीम के नाम 

आईपीएल के 13वें सीजन का 12वां मैच कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) और राजस्थान रॉयल्स के बीच आज दुबई में खेला जाएगा। राजस्थान ने अपने पिछले मैच में लीग का सबसे बड़ा टारगेट चेज किया था। वहीं, केकेआर ने पिछले मैच में सनराइजर्स हैदराबाद को हराया था। पिछले 5 साल की बात करें, तो राजस्थान की टीम केकेआर के खिलाफ सिर्फ एक मैच ही जीत पाई है। इस दौरान दोनों के बीच 5 मुकाबले खेले गए।

वहीं, इस सीजन में राजस्थान का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है। उसने अपने दोनों मैच शारजाह में खेले हैं। दोनों बार 200 से ज्यादा रन का स्कोर बनाकर मैच जीते। केकेआर ने सीजन में अब तक दो मैच खेले हैं, जिसमें उसे एक में जीत मिली है और एक में हार का सामना करना पड़ा है।

दुबई में पिछले मैच में सुपर ओवर से निकला नतीजा
दुबई में खेले गए पिछले मैच में का नतीजा सुपर ओवर से निकला था। जिसमें रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) ने मुंबई इंडियंस को हराया। आईपीएल इतिहास में पहली बार 200+ रन बनाने के बावजूद कोई मैच टाई हुआ है। इस मैच में बेंगलुरु ने टॉस हारकर पहले बल्लेबाजी करते हुए 3 विकेट पर 201 रन बनाए थे। इसके जवाब में मुंबई भी 5 विकेट पर 201 रन ही बना पाई।

सीजन में यहां कोई टीम चेज नहीं कर पाई
दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में होने वाले मुकाबले में गेंदबाजों की भूमिका अहम होगी। इस सीजन में अब तक यहां 5 मैच खेले गए हैं। पांचों मैचों में यहां कोई भी टीम चेज नहीं कर पाई। दिल्ली-पंजाब और बेंगलुरु-मुंबई के मैच का फैसला सुपर ओवर में हुआ था, लेकिन दोनों मैचों में पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम को ही जीत मिली थी।

पिछले मैच के हीरो राहुल तेवतिया पर रहेगी नजर
पंजाब के शेल्डन कॉटरेल के एक ओवर में 5 छक्के लगाकर राजस्थान को जीत दिलाने वाले राहुल तेवतिया से इस मैच में भी वैसे ही प्रदर्शन की उम्मीद होगी। तेवतिया ने पिछले मैच में शानदार फिफ्टी लगाकर अपनी टीम को हारा हुआ मैच जिताया था।

रॉयल्स टीम में स्मिथ, सैमसन और आर्चर की-प्लेयर्स
राजस्थान रॉयल्स में कप्तान स्मिथ के अलावा संजू सैमसन और जोस बटलर अहम बल्लेबाज हैं। ऑलराउंडर्स में टॉम करन और श्रेयस गोपाल रह सकते हैं। इनके अलावा बॉलिंग डिपार्टमेंट में इंग्लैंड को वर्ल्ड कप जिताने वाले जोफ्रा आर्चर के अलावा जयदेव उनादकट बड़े प्लेयर रहेंगे।

केकेआर के लिए गिल, रसेल और नरेन की-प्लेयर्स
कोलकाता को ऑफ स्पिनर और ओपनर बल्लेबाज सुनील नरेन के अलावा आंद्रे रसेल और युवा बल्लेबाज शुभमन गिल से सबसे ज्यादा उम्मीदें होंगी। 2019 सीजन में रसेल ने आक्रामक बल्लेबाजी करते हुए 52 छक्के लगाए थे। आईपीएल में रसेल का सबसे ज्यादा 186.41 का स्ट्राइक रेट भी रहा है।

दोनों टीम के महंगे खिलाड़ी
राजस्थान में कप्तान स्मिथ 12.50 करोड़ और संजू सैमसन 8 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं। वहीं, कोलकाता के सबसे महंगे खिलाड़ी पैट कमिंस हैं। उन्हें सीजन के 15.50 करोड़ रुपए मिलेंगे। इसके बाद सुनील नरेन का नंबर आता है, जिन्हें सीजन के 12.50 करोड़ रुपए मिलेंगे।

हेड-टु-हेड
आईपीएल में राजस्थान और कोलकाता के बीच बराबरी की टक्कर रही है। दोनों के बीच अब तक 21 मुकाबले खेले गए। राजस्थान और कोलकाता ने 10-10 मैच जीते हैं। एक मैच बेनतीजा रहा

पिच और मौसम रिपोर्ट
दुबई में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 27 से 39 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। इस आईपीएल से पहले यहां हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है।

इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 61

पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 34

पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 26

पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 144

दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 122

कोलकाता ने 2 और राजस्थान ने एक बार खिताब जीता
आईपीएल इतिहास में कोलकाता ने अब तक दो बार फाइनल (2014, 2012) खेला और दोनों बार चैम्पियन रही है। वहीं, राजस्थान ने लीग के पहले सीजन में ही फाइनल (2008) खेला था। उसमें उसने चेन्नई को हराकर खिताब अपने नाम किया था।

आईपीएल दोनों टीमों का सक्सेस रेट लगभग बराबर
राजस्थान रॉयल्स ने लीग में अब तक 149 मैच खेले, जिसमें 77 जीते और 70 हारे हैं। 2 मुकाबले बेनतीजा रहे। वहीं, कोलकाता ने अब तक 180 में से 93 मैच जीते और 87 हारे हैं। इस तरह लीग में रॉयल्स की जीत सक्सेस रेट 52.04% और कोलकाता का 52.50% रहा।

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क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें विमान से कुछ सैनिक पैराशूट के जरिए उतरते दिखाई दे रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि ये भारतीय पैराट्रूपर्स हैं, जो लद्दाख में अपना मूवमेंट बढ़ा रहे हैं। एक तरफ भारत-चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जहां सैन्य और राजनयिक स्तर की बातचीत का दौर जारी है। वहीं दूसरी तरफ इस वीडियो को भारतीय पैराट्रूपर्स का बताकर सीमा विवाद से जोड़कर शेयर किया जा रहा है। Indian paratroopers @Ladakh pic.twitter.com/XQLIRpePx3 — Ladakh News Updates (@LadakhNews) September 24, 2020 और सच क्या है? अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से भी इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि हाल में भारतीय पैराट्रूपर्स ने लद्दाख में कोई सैन्य अभ्यास किया है। वायरल वीडियो के स्क्रीनशॉट्स को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें यूट्यूब पर एक वीडियो मिला। असल में ये वायरल हो रही एक छोटी क्लिप का पूरा वीडियो है। वीडियो में पहले सैनिक एयरक्राफ्ट में बैठे दिख रहे हैं। फिर एक-एक करके पैराशूट के जरिए हवा में छलांग लगाते हैं। यूनिफॉर्म और सैनिकों को देखकर स्पष्ट हो रहा है कि ये भारतीय वायुसेना के जवान या पैराट्रूपर्स नहीं हैं। यूट्यूब पर ये वीडियो 23 जनवरी 2020 को ही अपलोड किया जा चुका है। इससे साफ है कि वीडियो का वर्तमान में चल रहे भारत-चीन सीमा विवाद से कोई संबंध नहीं है। इस यूट्यूब वीडियो के कैप्शन के अनुसार, ये स्पैनिश फोर्स का वीडियो है। स्पैनिश फोर्स द्वारा लगाई गई पहली पैराशूट जंप की 72वीं सालगिरह सेना ने ऐसे मनाई थी। चूंकि ये किसी न्यूज एजेंसी या स्पेन की सेना का ऑफिशियल यूट्यूब चैनल नहीं है। इसलिए ये पुष्टि नहीं होती कि कैप्शन की जानकारी सही है या। लेकिन, ये स्पष्ट हो रहा है कि वीडियो का भारत से कोई लेना-देना नहीं है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Fact Check: Did Indian Paratroopers Landed in Ladakh? 8 month old video goes viral with false claim https://ift.tt/3kY1Uiv Dainik Bhaskar क्या लद्दाख में लैंड कर चुके हैं भारतीय पैराट्रूपर? 8 महीने पुराना वीडियो गलत दावे के साथ वायरल

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें विमान से कुछ सैनिक पैराशूट के जरिए उतरते दिखाई दे रहे हैं। दावा किया...
- September 30, 2020
क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें विमान से कुछ सैनिक पैराशूट के जरिए उतरते दिखाई दे रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि ये भारतीय पैराट्रूपर्स हैं, जो लद्दाख में अपना मूवमेंट बढ़ा रहे हैं। एक तरफ भारत-चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जहां सैन्य और राजनयिक स्तर की बातचीत का दौर जारी है। वहीं दूसरी तरफ इस वीडियो को भारतीय पैराट्रूपर्स का बताकर सीमा विवाद से जोड़कर शेयर किया जा रहा है। Indian paratroopers @Ladakh pic.twitter.com/XQLIRpePx3 — Ladakh News Updates (@LadakhNews) September 24, 2020 और सच क्या है? अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से भी इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि हाल में भारतीय पैराट्रूपर्स ने लद्दाख में कोई सैन्य अभ्यास किया है। वायरल वीडियो के स्क्रीनशॉट्स को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें यूट्यूब पर एक वीडियो मिला। असल में ये वायरल हो रही एक छोटी क्लिप का पूरा वीडियो है। वीडियो में पहले सैनिक एयरक्राफ्ट में बैठे दिख रहे हैं। फिर एक-एक करके पैराशूट के जरिए हवा में छलांग लगाते हैं। यूनिफॉर्म और सैनिकों को देखकर स्पष्ट हो रहा है कि ये भारतीय वायुसेना के जवान या पैराट्रूपर्स नहीं हैं। यूट्यूब पर ये वीडियो 23 जनवरी 2020 को ही अपलोड किया जा चुका है। इससे साफ है कि वीडियो का वर्तमान में चल रहे भारत-चीन सीमा विवाद से कोई संबंध नहीं है। इस यूट्यूब वीडियो के कैप्शन के अनुसार, ये स्पैनिश फोर्स का वीडियो है। स्पैनिश फोर्स द्वारा लगाई गई पहली पैराशूट जंप की 72वीं सालगिरह सेना ने ऐसे मनाई थी। चूंकि ये किसी न्यूज एजेंसी या स्पेन की सेना का ऑफिशियल यूट्यूब चैनल नहीं है। इसलिए ये पुष्टि नहीं होती कि कैप्शन की जानकारी सही है या। लेकिन, ये स्पष्ट हो रहा है कि वीडियो का भारत से कोई लेना-देना नहीं है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Fact Check: Did Indian Paratroopers Landed in Ladakh? 8 month old video goes viral with false claim https://ift.tt/3kY1Uiv Dainik Bhaskar क्या लद्दाख में लैंड कर चुके हैं भारतीय पैराट्रूपर? 8 महीने पुराना वीडियो गलत दावे के साथ वायरल 

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें विमान से कुछ सैनिक पैराशूट के जरिए उतरते दिखाई दे रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि ये भारतीय पैराट्रूपर्स हैं, जो लद्दाख में अपना मूवमेंट बढ़ा रहे हैं।

एक तरफ भारत-चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जहां सैन्य और राजनयिक स्तर की बातचीत का दौर जारी है। वहीं दूसरी तरफ इस वीडियो को भारतीय पैराट्रूपर्स का बताकर सीमा विवाद से जोड़कर शेयर किया जा रहा है।

Indian paratroopers @Ladakh pic.twitter.com/XQLIRpePx3

— Ladakh News Updates (@LadakhNews) September 24, 2020

और सच क्या है?

अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से भी इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि हाल में भारतीय पैराट्रूपर्स ने लद्दाख में कोई सैन्य अभ्यास किया है।

वायरल वीडियो के स्क्रीनशॉट्स को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें यूट्यूब पर एक वीडियो मिला। असल में ये वायरल हो रही एक छोटी क्लिप का पूरा वीडियो है।

वीडियो में पहले सैनिक एयरक्राफ्ट में बैठे दिख रहे हैं। फिर एक-एक करके पैराशूट के जरिए हवा में छलांग लगाते हैं। यूनिफॉर्म और सैनिकों को देखकर स्पष्ट हो रहा है कि ये भारतीय वायुसेना के जवान या पैराट्रूपर्स नहीं हैं। यूट्यूब पर ये वीडियो 23 जनवरी 2020 को ही अपलोड किया जा चुका है। इससे साफ है कि वीडियो का वर्तमान में चल रहे भारत-चीन सीमा विवाद से कोई संबंध नहीं है।

इस यूट्यूब वीडियो के कैप्शन के अनुसार, ये स्पैनिश फोर्स का वीडियो है। स्पैनिश फोर्स द्वारा लगाई गई पहली पैराशूट जंप की 72वीं सालगिरह सेना ने ऐसे मनाई थी। चूंकि ये किसी न्यूज एजेंसी या स्पेन की सेना का ऑफिशियल यूट्यूब चैनल नहीं है। इसलिए ये पुष्टि नहीं होती कि कैप्शन की जानकारी सही है या। लेकिन, ये स्पष्ट हो रहा है कि वीडियो का भारत से कोई लेना-देना नहीं है।

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Fact Check: Did Indian Paratroopers Landed in Ladakh? 8 month old video goes viral with false claim

https://ift.tt/3kY1Uiv Dainik Bhaskar क्या लद्दाख में लैंड कर चुके हैं भारतीय पैराट्रूपर? 8 महीने पुराना वीडियो गलत दावे के साथ वायरल Reviewed by Manish Pethev on September 30, 2020 Rating: 5

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