रूस द्वारा दुनिया का सबसे शक्तिशाली परमाणु बम सार बॉम्बा बनाने के पीछे की वजह अमेरिका है। 1954 में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध चरम पर था। तत्कालीन सोवियत संघ ने अमेरिका के थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस कैसल ब्रावो को टक्कर देने के लिए यह बम बनाया था। उस वक्त अमेरिका ने डिवाइस का मार्शल आइलैंड पर परीक्षण किया था। 15 मेगाटन का यह डिवाइस उस दौर के परमाणु बमों में सर्वाधिक शक्तिशाली था। तत्कालीन सोवियत संघ को जब यह पता लगा तो उसने अमेरिका को टक्कर देने का फैसला लिया। इस परमाणु बम को पहले ट्रेन के जरिए ओलेन्या एयरबेस ले जाया गया जहां से उसे लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम टीयू-95 पर लादा गया। 30 अक्टूबर 1961 को इस बॉम्बर ने उड़ान भरी और करीब 965 किमी का सफर करके सेवेर्नी द्वीप पहुंचा। बम धीरे-धीरे धरती पर गिरा यह द्वीप आर्कटिक के काफी अंदर है। बॉम्बर ने बम को गिरा दिया, उसमें एक पैराशूट लगा था। इससे बम धीरे-धीरे धरती पर गिरा और विमान को इतना समय मिल गया कि वह विस्फोट की जद में नहीं आ सका। जब यह बम जमीन से करीब 13 हजार फुट की ऊंचाई पर पहुंचा तो उसमें विस्फोट कर दिया गया। इस बम के विस्फोट से रिक्टर स्केल पर 5 की तीव्रता का भूकंप आता है और इसे दुनियाभर में महसूस किया जाता है। इस विस्फोट के बाद अमेरिका और रूस ने वर्ष 1963 में एक संधि पर दस्तखत किए थे। इसके बाद दोनों देशों ने हवा में परमाणु बम के परीक्षणों पर पूरी तरह रोक लगा दी। कैमरों को सैकड़ों मील दूर रखा गया था, ताकि वे चमक से खराब न हो जाएं इस बम का खौफ इतना ज्यादा था कि कैमरों को सैकड़ों मील की दूरी पर लगाया गया था। साथ ही उन्हें लो लाइट पोजिशन में रखा गया था ताकि वे परमाणु विस्फोट की चमक में खराब न हो जाएं। इन शक्तिशाली कैमरों ने 40 सेकंड तक आग के गोले का वीडियो बनाया और उसके बाद यह मशरूम के बादल के रूप में बदल गया। बताया गया है कि विस्फोट की चमक नॉर्वे तक दिखाई दी थी। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें इस बम के विस्फोट से रिक्टर स्केल पर 5 की तीव्रता का भूकंप आता है और इसे दुनियाभर में महसूस किया जाता है। (फाइल फोटो) https://ift.tt/3jiMNPS Dainik Bhaskar अमेरिका ने दुनिया का सबसे शक्तिशाली बम कैसल ब्रावो बनाया था, इसी को टक्कर देने सात साल में रूस ने सार बॉम्बो बना दिया

रूस द्वारा दुनिया का सबसे शक्तिशाली परमाणु बम सार बॉम्बा बनाने के पीछे की वजह अमेरिका है। 1954 में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध चरम पर था। तत्कालीन सोवियत संघ ने अमेरिका के थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस कैसल ब्रावो को टक्कर देने के लिए यह बम बनाया था।
उस वक्त अमेरिका ने डिवाइस का मार्शल आइलैंड पर परीक्षण किया था। 15 मेगाटन का यह डिवाइस उस दौर के परमाणु बमों में सर्वाधिक शक्तिशाली था। तत्कालीन सोवियत संघ को जब यह पता लगा तो उसने अमेरिका को टक्कर देने का फैसला लिया।
इस परमाणु बम को पहले ट्रेन के जरिए ओलेन्या एयरबेस ले जाया गया जहां से उसे लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम टीयू-95 पर लादा गया। 30 अक्टूबर 1961 को इस बॉम्बर ने उड़ान भरी और करीब 965 किमी का सफर करके सेवेर्नी द्वीप पहुंचा।
बम धीरे-धीरे धरती पर गिरा
यह द्वीप आर्कटिक के काफी अंदर है। बॉम्बर ने बम को गिरा दिया, उसमें एक पैराशूट लगा था। इससे बम धीरे-धीरे धरती पर गिरा और विमान को इतना समय मिल गया कि वह विस्फोट की जद में नहीं आ सका। जब यह बम जमीन से करीब 13 हजार फुट की ऊंचाई पर पहुंचा तो उसमें विस्फोट कर दिया गया।
इस बम के विस्फोट से रिक्टर स्केल पर 5 की तीव्रता का भूकंप आता है और इसे दुनियाभर में महसूस किया जाता है। इस विस्फोट के बाद अमेरिका और रूस ने वर्ष 1963 में एक संधि पर दस्तखत किए थे। इसके बाद दोनों देशों ने हवा में परमाणु बम के परीक्षणों पर पूरी तरह रोक लगा दी।
कैमरों को सैकड़ों मील दूर रखा गया था, ताकि वे चमक से खराब न हो जाएं
इस बम का खौफ इतना ज्यादा था कि कैमरों को सैकड़ों मील की दूरी पर लगाया गया था। साथ ही उन्हें लो लाइट पोजिशन में रखा गया था ताकि वे परमाणु विस्फोट की चमक में खराब न हो जाएं। इन शक्तिशाली कैमरों ने 40 सेकंड तक आग के गोले का वीडियो बनाया और उसके बाद यह मशरूम के बादल के रूप में बदल गया। बताया गया है कि विस्फोट की चमक नॉर्वे तक दिखाई दी थी।
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