https://ift.tt/33RXrqM करीब 26 साल बाद 27 नवंबर को जगन्नाथ मंदिर में नागार्जुन वेशा उत्सव होगा। इसमें भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र का योद्धा जैसा श्रंगार किया जाता है। जब अश्विन अधिक मास होता है या कार्तिक मास में 6 दिन का पंचक होता है, तब यह उत्सव मनाया जाता है। इससे पहले 1994 में ये उत्सव मनाया गया था। इस सदी में ये पहला नागार्जुन वेशा उत्सव है। वैसे तो दशकों में एक बार होने वाले इस उत्सव को देखने लाखों की संख्या में लोग दुनियाभर से आते हैं, लेकिन इस साल कोरोना के चलते ये उड़ीसा का सबसे दुर्लभ उत्सव भी बिना भक्तों के मनाया जाएगा। मंदिर प्रबंधन समिति ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं। मंदिर समिति ने उत्सव के लिए 40 लाख रुपए का बजट रखा है। मंदिर समिति के सदस्य और पुजारी पं. श्याम महापात्रा के मुताबिक भगवान के नए वस्त्र और आभूषण आदि बनना शुरू हो गए हैं। मंदिर समिति ने अपने कर्मचारियों के लिए गाइडलाइन भी जारी कर दी है। उत्सव के पहले सभी कर्मचारियों का कोविड-19 टेस्ट होगा। कर्मचारियों को कुछ दिन होम आइसोलेशन में भी रहना होगा। नवंबर में 21 से 26 तक 6 दिन रहेगा पंचक पंचक हर महीने आता है। पांच नक्षत्रों से होकर जब चंद्रमा गुजरता है तो उसे पंचक कहते हैं। ये पांच नक्षत्र- धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी और रेवती हैं। इस दौरान चंद्रमा कुंभ और मीन राशि में रहता है। वैसे आमतौर पर पंचक पांच दिन का ही होता है। लेकिन, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पंचक 5 की बजाय 6 दिन का होता है। इस साल कार्तिक मास में 21 से 26 नवंबर तक पंचक रहेगा। पंचक समाप्त होते ही 27 नवंबर को ये उत्सव मनाया जाएगा। परशुराम और अर्जुन से जुड़ा है इस उत्सव का इतिहास भगवान का ये श्रंगार दो युगों से जुड़ा हुआ है। सतयुग के परशुराम और द्वापर युग के अर्जुन से। मान्यता है कि कार्तिक के महीने में ही भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने सहस्त्रार्जुन का वध किया था। कार्तिक मास में ही अर्जुन का अपने पुत्र नागार्जुन से युद्ध हुआ था। इन्ही घटनाओं के संदर्भ में भगवान जगन्नाथ का नागार्जुन श्रंगार किया जाता है। जगन्नाथ पुरी सनातन परंपरा के चार धामों में से एक है। यहां भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के साथ विराजित हैं। सोने के हाथ, अस्त्र-शस्त्र और आभूषण इस उत्सव में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम को सोने के हाथ,आभूषण पहनाए जाते हैं। उनके हाथों में धनुष-बाण, भाले आदि हथियार भी रखे जाते हैं। भगवान के सोने के हाथ, मुकुट आदि तो मंदिर समिति के पास हैं, जो रथयात्रा और दूसरे उत्सवों के दौरान भी उपयोग किए जाते हैं। इनकी कीमत लाखों में आंकी जाती है। उत्सव के दौरान कई तरह की परंपराएं निभाई जाती हैं। उत्सव के श्रंगार का खर्च भक्तों के दान से पुरानी परंपरा है कि श्रंगार के लिए भक्त दान करते हैं। करीब 3 लाख रुपए की श्रंगार सामग्री होती है। इसमें भगवान के कुछ आभूषण आदि भी शामिल होते हैं। भक्त खुद ही मंदिर से संपर्क करके इसका खर्च उठाते हैं। 1994 में भगदड़ में मारे गए थे 6 लोग पिछली बार 1993 और 1994 में नागार्जुन वेशा उत्सव लगातार 2 साल तक मनाया गया था, इस दौरान भक्तों की संख्या लाखों में थी। 1994 में ज्यादा भीड़ होने के कारण यहां भगदड़ मच गई थी और 6 लोगों की मौत हो गई थी। 26 साल बाद अब इस उत्सव का आयोजन हो रहा है। 1994 के पहले 1983 और 1966 में मनाया गया था। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें नागार्जुन वेशा में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम। 1994 में ये श्रंगार किया गया था। जिसके बाद अब 27 नवंबर को ये श्रंगार होगा। from Dainik Bhaskar https://ift.tt/36cAxgm via IFTTT https://ift.tt/2EvmNly करीब 26 साल बाद 27 नवंबर को जगन्नाथ मंदिर में नागार्जुन वेशा उत्सव होगा। इसमें भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र का योद्धा जैसा श्रंगार किया जाता है। जब अश्विन अधिक मास होता है या कार्तिक मास में 6 दिन का पंचक होता है, तब यह उत्सव मनाया जाता है। इससे पहले 1994 में ये उत्सव मनाया गया था। इस सदी में ये पहला नागार्जुन वेशा उत्सव है। वैसे तो दशकों में एक बार होने वाले इस उत्सव को देखने लाखों की संख्या में लोग दुनियाभर से आते हैं, लेकिन इस साल कोरोना के चलते ये उड़ीसा का सबसे दुर्लभ उत्सव भी बिना भक्तों के मनाया जाएगा। मंदिर प्रबंधन समिति ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं। मंदिर समिति ने उत्सव के लिए 40 लाख रुपए का बजट रखा है। मंदिर समिति के सदस्य और पुजारी पं. श्याम महापात्रा के मुताबिक भगवान के नए वस्त्र और आभूषण आदि बनना शुरू हो गए हैं। मंदिर समिति ने अपने कर्मचारियों के लिए गाइडलाइन भी जारी कर दी है। उत्सव के पहले सभी कर्मचारियों का कोविड-19 टेस्ट होगा। कर्मचारियों को कुछ दिन होम आइसोलेशन में भी रहना होगा। नवंबर में 21 से 26 तक 6 दिन रहेगा पंचक पंचक हर महीने आता है। पांच नक्षत्रों से होकर जब चंद्रमा गुजरता है तो उसे पंचक कहते हैं। ये पांच नक्षत्र- धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी और रेवती हैं। इस दौरान चंद्रमा कुंभ और मीन राशि में रहता है। वैसे आमतौर पर पंचक पांच दिन का ही होता है। लेकिन, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पंचक 5 की बजाय 6 दिन का होता है। इस साल कार्तिक मास में 21 से 26 नवंबर तक पंचक रहेगा। पंचक समाप्त होते ही 27 नवंबर को ये उत्सव मनाया जाएगा। परशुराम और अर्जुन से जुड़ा है इस उत्सव का इतिहास भगवान का ये श्रंगार दो युगों से जुड़ा हुआ है। सतयुग के परशुराम और द्वापर युग के अर्जुन से। मान्यता है कि कार्तिक के महीने में ही भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने सहस्त्रार्जुन का वध किया था। कार्तिक मास में ही अर्जुन का अपने पुत्र नागार्जुन से युद्ध हुआ था। इन्ही घटनाओं के संदर्भ में भगवान जगन्नाथ का नागार्जुन श्रंगार किया जाता है। जगन्नाथ पुरी सनातन परंपरा के चार धामों में से एक है। यहां भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के साथ विराजित हैं। सोने के हाथ, अस्त्र-शस्त्र और आभूषण इस उत्सव में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम को सोने के हाथ,आभूषण पहनाए जाते हैं। उनके हाथों में धनुष-बाण, भाले आदि हथियार भी रखे जाते हैं। भगवान के सोने के हाथ, मुकुट आदि तो मंदिर समिति के पास हैं, जो रथयात्रा और दूसरे उत्सवों के दौरान भी उपयोग किए जाते हैं। इनकी कीमत लाखों में आंकी जाती है। उत्सव के दौरान कई तरह की परंपराएं निभाई जाती हैं। उत्सव के श्रंगार का खर्च भक्तों के दान से पुरानी परंपरा है कि श्रंगार के लिए भक्त दान करते हैं। करीब 3 लाख रुपए की श्रंगार सामग्री होती है। इसमें भगवान के कुछ आभूषण आदि भी शामिल होते हैं। भक्त खुद ही मंदिर से संपर्क करके इसका खर्च उठाते हैं। 1994 में भगदड़ में मारे गए थे 6 लोग पिछली बार 1993 और 1994 में नागार्जुन वेशा उत्सव लगातार 2 साल तक मनाया गया था, इस दौरान भक्तों की संख्या लाखों में थी। 1994 में ज्यादा भीड़ होने के कारण यहां भगदड़ मच गई थी और 6 लोगों की मौत हो गई थी। 26 साल बाद अब इस उत्सव का आयोजन हो रहा है। 1994 के पहले 1983 और 1966 में मनाया गया था। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें नागार्जुन वेशा में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम। 1994 में ये श्रंगार किया गया था। जिसके बाद अब 27 नवंबर को ये श्रंगार होगा। https://ift.tt/33RXrqM Dainik Bhaskar पुरी के जगन्नाथ मंदिर में 26 साल बाद नागार्जुन वेशा उत्सव 27 नवंबर को होगा; इस पर 40 लाख रुपए खर्च होंगे, लेकिन भक्त दर्शन नहीं कर पाएंगे
करीब 26 साल बाद 27 नवंबर को जगन्नाथ मंदिर में नागार्जुन वेशा उत्सव होगा। इसमें भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र का योद्धा जैसा श्रंगार किया जाता है। जब अश्विन अधिक मास होता है या कार्तिक मास में 6 दिन का पंचक होता है, तब यह उत्सव मनाया जाता है। इससे पहले 1994 में ये उत्सव मनाया गया था।
इस सदी में ये पहला नागार्जुन वेशा उत्सव है। वैसे तो दशकों में एक बार होने वाले इस उत्सव को देखने लाखों की संख्या में लोग दुनियाभर से आते हैं, लेकिन इस साल कोरोना के चलते ये उड़ीसा का सबसे दुर्लभ उत्सव भी बिना भक्तों के मनाया जाएगा।
मंदिर प्रबंधन समिति ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं। मंदिर समिति ने उत्सव के लिए 40 लाख रुपए का बजट रखा है। मंदिर समिति के सदस्य और पुजारी पं. श्याम महापात्रा के मुताबिक भगवान के नए वस्त्र और आभूषण आदि बनना शुरू हो गए हैं। मंदिर समिति ने अपने कर्मचारियों के लिए गाइडलाइन भी जारी कर दी है। उत्सव के पहले सभी कर्मचारियों का कोविड-19 टेस्ट होगा। कर्मचारियों को कुछ दिन होम आइसोलेशन में भी रहना होगा।
नवंबर में 21 से 26 तक 6 दिन रहेगा पंचक
पंचक हर महीने आता है। पांच नक्षत्रों से होकर जब चंद्रमा गुजरता है तो उसे पंचक कहते हैं। ये पांच नक्षत्र- धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी और रेवती हैं। इस दौरान चंद्रमा कुंभ और मीन राशि में रहता है। वैसे आमतौर पर पंचक पांच दिन का ही होता है। लेकिन, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पंचक 5 की बजाय 6 दिन का होता है। इस साल कार्तिक मास में 21 से 26 नवंबर तक पंचक रहेगा। पंचक समाप्त होते ही 27 नवंबर को ये उत्सव मनाया जाएगा।
परशुराम और अर्जुन से जुड़ा है इस उत्सव का इतिहास
भगवान का ये श्रंगार दो युगों से जुड़ा हुआ है। सतयुग के परशुराम और द्वापर युग के अर्जुन से। मान्यता है कि कार्तिक के महीने में ही भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने सहस्त्रार्जुन का वध किया था। कार्तिक मास में ही अर्जुन का अपने पुत्र नागार्जुन से युद्ध हुआ था। इन्ही घटनाओं के संदर्भ में भगवान जगन्नाथ का नागार्जुन श्रंगार किया जाता है।
सोने के हाथ, अस्त्र-शस्त्र और आभूषण
इस उत्सव में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम को सोने के हाथ,आभूषण पहनाए जाते हैं। उनके हाथों में धनुष-बाण, भाले आदि हथियार भी रखे जाते हैं। भगवान के सोने के हाथ, मुकुट आदि तो मंदिर समिति के पास हैं, जो रथयात्रा और दूसरे उत्सवों के दौरान भी उपयोग किए जाते हैं। इनकी कीमत लाखों में आंकी जाती है। उत्सव के दौरान कई तरह की परंपराएं निभाई जाती हैं।
उत्सव के श्रंगार का खर्च भक्तों के दान से
पुरानी परंपरा है कि श्रंगार के लिए भक्त दान करते हैं। करीब 3 लाख रुपए की श्रंगार सामग्री होती है। इसमें भगवान के कुछ आभूषण आदि भी शामिल होते हैं। भक्त खुद ही मंदिर से संपर्क करके इसका खर्च उठाते हैं।
1994 में भगदड़ में मारे गए थे 6 लोग
पिछली बार 1993 और 1994 में नागार्जुन वेशा उत्सव लगातार 2 साल तक मनाया गया था, इस दौरान भक्तों की संख्या लाखों में थी। 1994 में ज्यादा भीड़ होने के कारण यहां भगदड़ मच गई थी और 6 लोगों की मौत हो गई थी। 26 साल बाद अब इस उत्सव का आयोजन हो रहा है। 1994 के पहले 1983 और 1966 में मनाया गया था।
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September 25, 2020 at 06:13AM
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