इतिहास में आज के दिन से अच्छी और बुरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं। एक तो भारत को आकार देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन है। वहीं, आयरन लेडी यानी इंदिरा गांधी की हत्या का दिन भी यही है।
बात 36 साल पुरानी है। 1984 में 30 अक्टूबर को ओडिशा में चुनाव प्रचार से उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिल्ली लौटी थीं। उन पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने पीटर उस्तीनोव आए हुए थे। 31 अक्टूबर को मुलाकात का वक्त तय था। सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर इंटरव्यू की तैयारी पूरी हो चुकी थी। इंदिरा बाहर निकलीं। सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिंह और संतरी बूथ पर कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह स्टेनगन लेकर खड़ा था।
इंदिरा ने आगे बढ़कर बेअंत और सतवंत को नमस्ते कहा। इतने में बेअंत ने .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर तीन गोलियां दाग दीं। सतवंत ने भी स्टेनगन से गोलियां दागनी शुरू कर दीं। एक मिनट से कम वक्त में स्टेनगन की 30 गोलियों की मैगजीन खाली कर दी। साथ वाले लोग तो कुछ समझ नहीं सके। उस समय पीएम आवास पर खड़ी एंबुलेंस का ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था। कार से इंदिरा गांधी को एम्स ले गए। शरीर से लगातार खून बह रहा था।
एम्स के डॉक्टर सक्रिय हुए। खून बहने से रोकने की कोशिश की। बाहर से सपोर्ट दिया गया। 88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया, लेकिन कुछ काम नहीं आया। राजीव गांधी भी तब तक दिल्ली पहुंच गए थे। दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर औपचारिक रूप से इंदिरा गांधी की मौत की घोषणा हुई। उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं।
एम्स में सैकड़ों लोग जुटे थे। धीरे-धीरे यह खबर भी फैल गई कि इंदिरा गांधी को दो सिखों ने गोली मारी है। इससे माहौल बदलने लगा। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर पथराव हुआ। शाम को अस्पताल से लौटते लोगों ने कुछ इलाकों में तोड़फोड़ शुरू कर दी। धीरे-धीरे दिल्ली सिख दंगों की आग में झुलस गई थी। रात होते-होते तो देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क गए।
हत्या का कारणः पंजाब में सिख आतंकवाद को दबाने के लिए इंदिरा ने 5 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। इसमें प्रमुख आतंकी भिंडरावाला सहित कई की मौत हो गई। ऑपरेशन में स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों को क्षति पहुंची। इससे सिख समुदाय में एक तबका इंदिरा से नाराज हो गया था। इंदिरा के दो हत्यारों को 6 जनवरी 1989 को फांसी पर चढ़ाया गया था।
गुजरात में देश के सरदार का जन्म
महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के साथ सरदार पटेल।
वल्लभ भाई पटेल को भारत का लौह पुरुष भी कहते हैं और सरदार भी। 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में उनका जन्म हुआ था और उन्होंने अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली। सरदार पटेल का जन्म किसान परिवार में हुआ, लेकिन उन्हें कूटनीतिक क्षमताओं के लिए जाना जाता है। आजाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है।
आज 10वीं की परीक्षा आम तौर पर 16 साल में पास हो जाती है, लेकिन सरदार पटेल ने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। परिवार में आर्थिक तंगी थी और इस वजह से वो कॉलेज जाने के बजाय जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी में जुट गए। सबसे ज्यादा अंक भी हासिल किए। 36 साल की उम्र में वल्लभ भाई वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए। कॉलेज का अनुभव नहीं था, फिर 36 महीने का कोर्स सिर्फ 30 महीने में पूरा किया।
देश आजाद हुआ, तब पटेल प्रधानमंत्री पद के तगड़े दावेदार थे, लेकिन उन्होंने नेहरू के लिए यह पद छोड़ दिया। खुद उप-प्रधानमंत्री बने और ऐसा काम किया कि सदियों तक याद रखे जाएंगे। उन्होंने पाकिस्तान में जाने का मन बना रही जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों को कूटनीति से भारत में ही रोक लिया। जम्मू-कश्मीर आज भारत में है, तो उसका श्रेय भी कुछ हद तक पटेल को जाता है।
गुजरात के सरदार सरोवर डैम के पास दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति- स्टेच्यू ऑफ यूनिटी है, जो सरदार पटेल की याद में बनाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्टूबर 2018 को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को लॉन्च किया था।
भारत और विश्व इतिहास में 31 अक्टूबर की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं-
1759ः फिलीस्तीन के साफेद में भूकंप से 100 लोग मारे गए।
1864ः नेवादा अमेरिका का 36वां प्रांत बना।
1905ः अमेरिका के सेंट पीटर्सबर्ग में क्रांतिकारी प्रदर्शन।
1914ः ब्रिटेन तथा फ्रांस ने तुर्की के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
1920ः मध्य यूरोपीय देश रोमानिया ने पूर्वी यूरोप के बेसाराबिया पर कब्जा किया।
1943ः भारतीय वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर का जन्म हुआ।
1953ः बेल्जियम में टेलीविजन का प्रसारण शुरू हुआ।
1956ः स्वेज नहर को फिर से खोलने के लिए ब्रिटेन तथा फ्रांस ने मिस्र पर बमबारी शुरू की।
1966ः भारत के मशहूर तैराक मिहिर सेन ने पनामा नहर को तैरकर पार किया।
1975ः बांग्ला और हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक सचिन देव बर्मन का निधन।
1978ः यमन ने अपना संविधान अपनाया।
1999ः इजिप्टएयर फ्लाइट 990 अमेरिका के पूर्वी तट पर क्रैश हुई और 217 की मौत हुई।
2005ः भारत की प्रसिद्ध पंजाबी एवं हिन्दी लेखिका अमृता प्रीतम का निधन हुआ।
2011: दुनिया की आबादी औपचारिक रूप से 7 अरब हुई। यूएन पापुलेशन फंड ने इस दिन को डे ऑफ सेवन बिलियन कहा।
2015ः रूसी एयरलाइन कोगलीमाविया का विमान-9268 उत्तरी सिनाई में दुर्घटनाग्रस्त होने से विमान में सवार सभी 224 लोगों की मौत।
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Today History for October 31st/ What Happened Today | Indira Gandhi Shot Dead By Her Bodyguards In 1984 All You Need To Know | Sardar Vallabh Bhai Patel Birthday
https://ift.tt/3oKCmZ5 Dainik Bhaskar इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद के भयावह 12 घंटे; सरदार पटेल का जन्मदिन भी
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October 31, 2020
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लीसा डैमऑर. कोरोना के चलते इस साल बच्चों की पढ़ाई आधी-अधूरी ही हुई है। बच्चे करीब 8 महीने से घर पर ही हैं। बच्चों का एकेडमिक मोटिवेशन लेवल बहुत कम हो गया है। अब जरूरत उन्हें नए तरीके से मोटिवेट करने की है, लेकिन क्या आप उन्हें ज्यादा पढ़ाई और ज्यादा नंबर लाने के लिए मोटिवेट करने वाले हैं? यदि हां तो ऐसा बिल्कुल मत करिएगा, क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना की वजह से जीने का तौर-तरीका बदला है। आप भी खुद को बदलें। परंपरागत तौर-तरीकों से बाहर आएं। बच्चों की सोच को समझने की कोशिश करें।
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, मोटिवेशन दो तरीके के होते हैं। पहला आंतरिक (Internal) और दूसरा बाहरी (External)। जानते हैं कि दोनों क्या हैं-
इंटरनल मोटिवेशन से किसी काम को करने में हमें ज्यादा मजा आता है। काम के बाद संतुष्टि मिलती है। इसके अलावा सीखने की हमारी ललक और ज्यादा बढ़ जाती है।
एक्सटर्नल मोटिवेशन से किसी काम में हमारा आउटकम यानी परिणाम बेहतर होता है। जैसे- जब हम किसी परीक्षा से पहले कड़ी मेहनत करते हैं और नंबर अच्छा आ जाते हैं तो उसके पीछे हमारी एक्सटर्नल मोटिवेशन होती है।
यह भी पढ़ें- महामारी के बाद हम खुद को नहीं बदल रहे, इसलिए तनाव में; 4 तरीकों से खुद को मोटिवेट करें...
बच्चों पर रिजल्ट का बोझ कैसे कम करें?
पढ़ाई में हमारी मोटिवेशन ज्यादातर मौकों पर इंटरनल होनी चाहिए, न कि एक्सटर्नल। इंटरनल मोटिवेशन हमें बड़े और मजबूत लक्ष्य तक ले जाती है। इससे हमारा रहन-सहन भी बेहतर होता है। हालांकि, हमेशा हम सिर्फ इंटरनल रूप से मोटिवेट नहीं हो सकते हैं।
रोजमर्रा की जिंदगी में हम ज्यादातर मौकों पर रिजल्ट ओरिएंटेड हो जाते हैं, यानी हम नतीजे तलाशने लगते हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि युवाओं में सबसे ज्यादा इंटरनल मोटिवेशन की कमी देखी जाती है। पैरेंट्स बच्चों को तो सिर्फ रिजल्ट के बारे में ही बताते हैं। इसलिए बच्चे रिजल्ट से ही खुद की काबिलियत को आंकते हैं और रिजल्ट के बारे में सोचते हैं।
कोरोना की वजह से स्कूल न जाने से भी बच्चों में एंग्जाइटी और तनाव देखा जा सकता है। इसलिए बाहरी चीजों से प्रेरित बच्चों को इंटरनल तौर पर मोटिवेट करने की कोशिश करें। उनके बेहतर भविष्य के लिए उन्हें रिजल्ट के बोझ से मुक्त करें।
पैरेंट्स बच्चों को कैसे मोटिवेट करें?
इंटरनल मोटिवेशन कई मौकों पर बहुत मददगार होती है। हर पैरेंट्स को अपने बच्चों को आंतरिक तौर पर प्रेरित करना चाहिए। जिंदगी में कई मौके ऐसे आते हैं, जब हम असफल होते हैं, उस वक्त हम इंटरनल मोटिवेशन से अगले मौके के लिए तैयार हो सकते हैं।
जब हम जरूरत से ज्यादा रिजल्ट ओरिएंटेड होते हैं और असफलता मिल जाती है तो तनाव में आ जाते हैं। कोरोना के दौर में स्कूल से दूर हो चुके बच्चों को आप इंटरनल मोटिवेशन के बारे में बताएं।
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There are two motivations| wrong motivation can cause depression to the child| know how to motive|
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October 31, 2020
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क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें बिहार चुनाव में RJD से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। वीडियो बिहार चुनाव प्रचार का ही बताया जा रहा है।
चुनाव प्रचार में नोट बांटते हुए
तेजस्वी यादव 😂😂😂😂
क्या दिन आ गए
😂😂😂 pic.twitter.com/roWajI9K1c
— मनीषा मिश्रा 🇮🇳टी,,ए,,एफ🇮🇳 हिंदी में नाम लिखें (@Nisha2522) October 30, 2020
और सच क्या है ?
वायरल वीडियो में तेजस्वी मास्क लगाए दिख रहे हैं। साफ है कि वीडियो कोरोना काल का ही है यानी ज्यादा पुराना नहीं है।
अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि तेजस्वी यादव बिहार चुनाव प्रचार में वोटरों को नोट बांटते देखे गए हैं।
पड़ताल के दौरान हमें तेजस्वी यादव के 31 जुलाई के ट्वीट में वायरल वीडियो से मिलता-जुलता एक वीडियो मिला। इस वीडियो में भी तेजस्वी लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। यहां से हमें क्लू मिला कि वायरल वीडियो इसी साल बिहार में आई बाढ़ का हो सकता है।
मेरी नहीं जनता की सुनिए।
बिहार के जलसंसाधन मंत्री बाढ़ नियंत्रण और जल संसाधन छोड़कर जेडीयू के लिए संसाधन उत्पन्न करते मिलेंगे। 4 महीनों के विपदा काल में आपदा प्रबंधन मंत्री को किसी ने देखा ही नहीं। 135 दिन से मुख्यमंत्री घर से बाहर नहीं निकले है।जनता त्राहिमाम है। pic.twitter.com/sTr7gKzR2u
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) July 31, 2020
दैनिक भास्कर वेबसाइट पर 22 जुलाई, 2020 की एक खबर है। जिससे पता चलता है कि तेजस्वी यादव ने बाढ़ पीड़ितों के भोजन की व्यवस्था की थी।
हमें नवभारत टाइम्स वेबसाइट पर 31 जुलाई, 2020 की रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट में वही वीडियो है जिसमें तेजस्वी लोगों को पैसे बांटते दिख रहे हैं।
साफ है कि वायरल वीडियो का बिहार चुनाव से कोई संबंध नहीं है। 3 महीने पुराने वीडियो में तेजस्वी बाढ़ पीड़ितों को पैसे बांट रहे हैं। न की वोट के बदले नोट।
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Fact Check: In the midst of Bihar elections, Tejashwi Yadav distributed money? Know the reality of viral video
https://ift.tt/3kIOEid Dainik Bhaskar बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव ने वोट के बदले बांटे नोट, जानें वायरल वीडियो का सच
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October 31, 2020
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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रैलियों में जो शब्द बार-बार सुनाई दे रहा है, वो है ‘15 साल’। नीतीश लोगों को 15 साल पहले के बिहार की तस्वीर दिखा रहे हैं। अपने 15 साल की तुलना लालू के 15 साल से करते हैं। मानो इन सालों में बिहार की कायापलट हो गई हो।
पर, आंकड़े क्या कहते हैं? आंकड़े कहते हैं कि बिहार आज भी देश के बाकी राज्यों से पिछड़ा हुआ है। ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार में आज हर आदमी रोज सिर्फ 120 रुपए ही कमाता है। जबकि, झारखंड का आदमी रोज 220 रुपए तक की कमाई कर रहा। बिहार से 100 रुपए ज्यादा। सिर्फ कमाई ही नहीं, बेरोजगारी के मामले में भी बिहार, झारखंड से कोसों आगे है।
यहां बिहार की तुलना झारखंड से इसलिए, क्योंकि आज भले ही बिहार और झारखंड की पहचान दो अलग-अलग राज्यों की हो, लेकिन 20 साल पहले तक दोनों एक ही तो थे।
आइए 5 पैमानों पर परखते हैं कि नीतीश के 15 सालों में बिहार कितना बदला?
1. पर कैपिटा इनकमः झारखंड से भी पीछे बिहार
इकोनॉमिक सर्वे और RBI के आंकड़े बताते हैं कि 15 साल में बिहार में हर आदमी की कमाई 5 गुना बढ़ी है। नीतीश जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तब यहां हर आदमी की सालाना कमाई 7914 रुपए थी। आज 43,822 रुपए है। यानी रोज की कमाई 120 रुपए और महीने की कमाई 3651 रुपए।
इसकी तुलना जब झारखंड से करेंगे, तो यहां बिहार की तुलना में लोगों की कमाई 4 गुना से ज्यादा बढ़ी है। लेकिन, फिर भी झारखंड का आदमी बिहार के आदमी से हर साल डेढ़ गुना से ज्यादा कमाई करता है। झारखंड में हर आदमी की सालाना कमाई 79,873 रुपए है। वहीं, 15 साल में देश में हर आदमी की सालाना कमाई एक लाख रुपए से ज्यादा बढ़ गई, पर बिहार में सिर्फ 35,000 रुपए।
2.बेरोजगारी दरः झारखंड के मुकाबले बिहार में ज्यादा
देश में बेरोजगारी दर के आंकड़े अब केंद्र सरकार जारी करती है। 2011-12 तक नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी NSSO सर्वे करता था, लेकिन अब पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी PLFS सर्वे होता है। इसका डेटा बताता है कि बिहार और झारखंड ही नहीं, बल्कि देश में ही बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है।
2004-05 बिहार के गांवों में बेरोजगारी दर 1.5% और शहरों में 6.4% थी। अब यहां के गांवों में 10.2% और शहरों में 10.5% बेरोजगारी दर है। बेरोजगारी दर झारखंड और देश में भी बढ़ी है। बिहार के लिए ये इसलिए भी चिंताजनक हो जाती है, क्योंकि यहां की करीब 90% आबादी आज भी गांवों में ही रहती है।
तर्क या कुतर्क:नीतीश बोले- बिहार समुद्र किनारे नहीं, इसलिए उद्योग नहीं आते; उधर पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश भी ऐसे, पर बिहार से ज्यादा फैक्ट्रियां
3. गरीबी रेखाः बिहार में आज भी 34% आबादी गरीब
हमारे देश में गरीबी के आंकड़ों का हिसाब-किताब 1956 से रखा जा रहा है। गरीब कौन होगा? इसकी भी परिभाषा है, जो बताती है कि अगर शहर में रहने वाला व्यक्ति हर महीने 1000 रुपए से ज्यादा कमाता है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा। इसी तरह गांव का व्यक्ति अगर हर महीने 816 रुपए कमाता है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा।
नीतीश 15 साल पहले जब सत्ता में आए थे, तब बिहार की 54% से ज्यादा यानी 4.93 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011-12 के हैं। इसके मुताबिक, 2011-12 में बिहार में गरीबी रेखा के नीचे आने वाली आबादी 3.58 करोड़ यानी 33.7% है।
वहीं, बिहार की तुलना में झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे आने वाली आबादी ज्यादा है। झारखंड की अब भी 37% आबादी गरीबी रेखा से नीचे आती है, जबकि देश में ये आंकड़ा 22% का है।
4. GDP: यहां झारखंड के मुकाबले बिहार की हालत बेहतर
15 साल में बिहार की GDP 7.5 गुना बढ़ गई। RBI का डेटा बताता है कि 2005-06 में बिहार की GDP 82 हजार 490 करोड़ रुपए थी, जो 2019-20 में बढ़कर 6.11 लाख करोड़ रुपए हो गई। वहीं, 15 सालों में झारखंड और देश की GDP 5.5 गुना बढ़ी है।
लॉकडाउन में 15 लाख प्रवासी मजदूर लौटे थे बिहार, हर साल ढाई करोड़ से ज्यादा लोग बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों में जाते हैं
5. क्राइम रेट: अपराध के मामले में झारखंड के मुकाबले बिहार आगे
चाहें प्रधानमंत्री मोदी हों या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों ही कह रहे हैं कि पहले जंगलराज हुआ करता था। उधर, केंद्र सरकार की ही एजेंसी NCRB का डेटा बताता है कि नीतीश सरकार के आने के बाद बिहार में क्राइम बढ़ा है।
NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2005 में बिहार में 1.07 लाख क्रिमिनल केस दर्ज किए गए थे, यानी रोजाना 293 मामले। लेकिन, 2019 में बिहार में 2.69 लाख मामले सामने आए हैं यानी, रोज 737 केस। ये आंकड़े ये भी बताते हैं कि 15 सालों में देश में क्राइम बढ़ा तो था, लेकिन बाद में कम भी होने लगा, लेकिन बिहार और झारखंड में लगातार केस बढ़ रहे हैं।
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Nitish Kumar Government 15 Years Vs Tejashwi Yadav: Bihar Election 2020 | Bihar Per Capita Income | Bihar Crime Rate - Here's Latest News Updates
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October 31, 2020
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1. महामारी न फैलती तो ट्रम्प के जीतने की संभावना थी, वैसे उन्होंने देश को कई मोर्चों पर नुकसान पहुंचाया
2. महामारी के बाद भारत सहित कई देशों में अधिक बच्चों का जन्म संभव
3. कारीगरों की बढ़ती उम्र से मुसीबत, सिंगापुर में स्ट्रीट फूड सेंटरों के बंद होने का बढ़ता खतरा
4. पर्यावरण की ओर बढ़ते कदम, जलवायु के अनुकूल प्रोजेक्ट में 2.68 लाख करोड़ रुपए लगे
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October 31, 2020
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' के निर्माण का काम सिर्फ 33 महीनों में हो गया था। सरदार पटेल की यह प्रतिमा (182 मीटर) दुनिया में सबसे ऊंची है। 2010 में मोदी ने बतौर मुख्यमंत्री इसे स्थापित करने का ऐलान किया था। 2013 में प्रतिमा के निर्माण का काम शुरू हुआ था।
काम कितना अहम था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पटेल की प्रतिमा के हावभाव तय करने के लिए 2 हजार से ज्यादा तस्वीरों पर रिसर्च की गई थी।स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से जुड़े 21 प्रोजेक्ट शुरू किए गए थे। इनमें से 17 अब तक पूरे हो चुके हैं।
हालांकि, इनमें से 2 में काम बाकी है और 2 की जानकारी नहीं मिल सकी है। 13 का लेखा-जोखा है। सरदार पटेल की प्रतिमा विश्व प्रसिद्ध शिल्पकार राम सुतार ने डिजाइन की, निर्माण लार्सन एंड टुब्रो कंपनी ने किया। जानिए, क्या है जो 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' को खास बनाता है...
109 टन लोहे का इस्तेमाल किया गया
इस प्रतिमा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए देश भर के पांच लाख से अधिक किसानों के पास से 135 मीट्रिक टन खेती-किसानी के पुराने औजार दान में लिए गए, जिन्हें गलाकर 109 टन लोहा तैयार किया गया। इसी लोहे का उपयोग इस प्रतिमा में किया गया है।
2010 में मोदी ने की थी घोषणा
नरेंद्र मोदी जब गुजरात के सीएम थे, तब 7 अक्टूबर 2010 को अहमदाबाद में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इस स्मारक के निर्माण की घोषणा की थी। इसके बाद 31 अक्टूबर 2013 से प्रतिमा का निर्माण शुरू हुआ, जो पांच साल बाद यानी कि 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल की 143वीं जयंती पर पूरा हुआ। प्रतिमा का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी ने किया।
2.10 लाख क्यूबिक मीटर कन्क्रीट लगा
इस प्रतिमा की लागत 2989 करोड़ रुपए आई। मूर्ति में 2.10 लाख क्यूबिक मीटर सीमेंट-कन्क्रीट और 2000 टन कांसे का उपयोग हुआ है। 6 हजार 500 टन स्ट्रक्चरल स्टील और 18 हजार 500 टन सरियों का इस्तेमाल किया गया है। यह 12 किमी इलाके में बनाए गए तालाब से घिरी है।
मूर्तिकार राम सुतार ने डिजाइन तैयार किया
'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' की ओरिजनल डिजाइन महाराष्ट्र के राम सुतार ने तैयार की है। 93 साल के सुतार देश के सबसे वरिष्ठ मूर्तिकार हैं। उन्होंने छत्रपति शिवाजी का स्टेच्यू भी डिजाइन किया है। शिवाजी का यह स्टेच्यू मुंबई के समुद्र में कृत्रिम टापू पर स्थापित किया जाना है।
राम सुतार ने इन महान लोगों की मूर्तियां भी बनाईं
राम सुतार ने मिनिमम 18 फीट ऊंची मूर्तियां तैयार कीं। इनमें सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, महाराजा रणजीत सिंह, शहीद भगतसिंह, जयप्रकाश नारायण की मूर्तियां बनाई जा चुकी हैं। उनकी बनाई गांधीजी की मूर्तियां फ्रांस, इटली, अर्जेंटीना, रूस, इंग्लैंड, जर्मनी, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया में भी स्थापित की गई हैं।
अमेरिकी इतिहासकार ने बताया था कैसी होनी चाहिए पटेल की मूर्ति
राम सुतार के बेटे अनिल सुतार ने बताया कि एक अमेरिकी इतिहासकार को सरदार पटेल के नेचर, पहनावे और उनकी पर्सनैलिटी के बारे में अध्ययन करने को कहा गया था। ताकि पता चल सके कि मूर्ति को किस हाव-भाव में तैयार किया जाना है।
इन इतिहासकार ने तमाम मूर्तियां और फोटोज देखीं। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सरदार पटेल का जो स्टेच्यू अहमदाबाद एयरपोर्ट पर है, उसमें सरदार का स्वभाव और वेशभूषा हू-ब-हू नजर आती है। इसलिए 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' भी उसी डिजाइन की होनी चाहिए।
क्यों खास है 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी'
प्रतिमा 6.5 तीव्रता के भूकंप के झटके और 220 किमी की स्पीड के तूफान का भी सामना कर सकती है।
प्रतिमा के निर्माण में 85% तांबे का उपयोग होने से हजारों साल तक इमसें जंग नहीं लग सकती।
प्रतिमा की गैलरी में खड़े होकर एक बार में 40 लोग सरदार सरोवर डैम, विंध्य पर्वत के दर्शन कर सकते हैं।
स्टेच्यू में दो हाई-स्पीड लिफ्ट लगाई गई हैं। जो पर्यटकों को सरदार पटेल की मूर्ति के सीने के हिस्से में बनी व्यूइंग गैलरी तक ले जाती हैं। इस गैलरी में एक साथ 200 लोग खड़े रह सकते हैं।
स्टेच्यू ऑफ यूनिटी सिर्फ 33 महीनों में तैयार की गई है, जो एक रिकॉर्ड है। जबकि चीन के स्प्रिंग टेंपल में बुद्ध की प्रतिमा के निर्माण में 11 साल लगे थे।
स्टेच्यू की डिजाइन में इस बात का खास ध्यान रखा गया कि उसमें हू-ब-हू सरदार पटेल के हावभाव नजर आएं। इसके लिए सरदार पटेल की 2000 से ज्यादा फोटो पर रिसर्च की गई।
यूनिटी के आसपास के अन्य दर्शनीय स्थल
विश्व वन: यहां सभी सात खंडों की औषधि वनस्पति, पौधे और वृक्ष हैं, जो अनेकता में एकता के भाव को साकार करते नजर आते हैं।
एकता नर्सरी: इसे बनाने का मकसद है कि जब भी पर्यटक यहां आएं तो वे नर्सरी से 'प्लांट ऑफ यूनिटी' के नाम से एक पौधा जरूर ले जाएं। शुरुआती चरण में यहां एक लाख पौधे रोपे गए हैं, जिनमें से 30 हजार पौधे बेचने के लिए तैयार हो चुके हैं।
बटरफ्लाई गार्डन: 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' में पर्यटक कुदरत की सुंदर और रंग-बिरंगी रचनाएं भी देख सकें, इसके लिए इस बटरफ्लाई गार्डन का निर्माण किया गया है। करीब छह एकड़ में फैले इस विशाल बगीचे में 45 प्रजातियों की तितलियां हैं।
एकता ऑडिटोरियम: करीब 1700 वर्ग मीटर में फैला यह एक कम्युनिटी हॉल है। यहां संगीत, नृत्य, नाटक, कार्यशाला जैसे सभी सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
रिवर राफ्टिंग: रिवर राफ्टिंग एक एडवेंचर गेम है। यहां साहसिक खिलाड़ी कई तरह के एडवेंचर गेम का लुत्फ उठा सकेंगे।
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After research on more than 2000 photographs, the facial expression of the Statue of Unity was decided
https://ift.tt/2TH37z3 Dainik Bhaskar 21 में से 17 प्रोजेक्ट पूरे, पटेल की प्रतिमा के हावभाव के लिए 2 हजार से ज्यादा तस्वीरों पर रिसर्च हुई
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IPL के 13वें सीजन का लीग राउंड अपने आखिरी चरण में पहुंच गया है। शनिवार को होने वाले डबल हेडर (एक दिन में 2 मैच) में 4 में से दो टीमों के पास प्ले-ऑफ में अपनी जगह पक्की करने का मौका है। मुंबई इंडियंस पहले ही अपनी जगह प्ले-ऑफ में पहुंच चुकी है। उसका मुकाबला दोपहर में 3:30 बजे दिल्ली कैपिटल्स से होगा।
इसके बाद शाम 7:30 बजे शारजाह में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु और सनराइजर्स हैदराबाद के बीच मुकाबला होगा। यदि दिल्ली और बेंगलुरु अपने-अपने मुकाबले जीत लेतीं हैं, तो दोनों की प्ले-ऑफ में जगह पक्की हो जाएगी।
सीजन के 51वें मैच में मुंबई के साथ होने वाले मुकाबले में दिल्ली जीत की पटरी पर लौटना चाहेगी। लगातार 3 मैच हारने के बाद दिल्ली दबाव में है। वहीं, मुंबई के रेगुलर कप्तान रोहित शर्मा अनफिट हैं। उनकी जगह कुछ मैचों में कीरोन पोलार्ड कप्तानी संभाल रहे हैं।
हैदराबाद के लिए एलिमिनेटर जैसा मुकाबला होगा
वहीं, सीजन का 52वां मैच बेंगलुरु और हैदराबाद के बीच खेला जाएगा। हैदराबाद के लिए यह मैच एलिमिनेटर की तरह होगा। अगर यहां हारे, तो उसके लिए प्ले-ऑफ के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे। दूसरी ओर, लगातार 2 मैच हार कर आ रही बेंगलुरु इस मैच को जीतकर प्ले-ऑफ में अपनी जगह पक्की करना चाहेगी।
पॉइंट्स टेबल में मुंबई टॉप पर, दिल्ली नंबर-3 पर
पॉइंट्स टेबल की बात करें, तो मुंबई टॉप पर है। उसने सीजन में 12 मैच खेले हैं, जिसमें उसने 8 जीते और 4 हारे हैं। वहीं, दिल्ली ने सीजन में अब तक 12 में से 7 जीते और 4 हारे हैं और 14 पॉइंट्स के साथ वह तीसरे स्थान पर है।
पिछली भिड़ंत में मुंबई ने दिल्ली को हराया था
सीजन में पिछली बार जब मुंबई और दिल्ली का आमना-सामना हुआ था, तब मुंबई ने दिल्ली को 5 विकेट से हराया था। अबु धाबी में सीजन के 27वें मैच में दिल्ली ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 4 विकेट पर 162 रन बनाए थे। जवाब में मुंबई ने 5 विकेट पर 166 रन बनाकर मैच जीत लिया था।
बेंगलुरु टॉप-2 और हैदराबाद बॉटम-4 में
पॉइंट्स टेबल में बेंगलुरु टॉप-2 और हैदराबाद बॉटम-4 में है। बेंगलुरु ने सीजन में 12 में से 7 मैच जीते और 5 हारे हैं। उसके 14 पॉइंट्स हैं। वहीं, हैदराबाद ने सीजन में 12 मैच में से 5 जीते और 7 हारे हैं। उसके 10 पॉइंट्स हैं।
बेंगलुरु ने हैदराबाद को हराया था
सीजन के 11वें मैच में बेंगलुरु ने हैदराबाद को 10 रन से हराया था। दुबई में खेले गए मुकाबले में बेंगलुरु ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 5 विकेट पर 163 रन बनाए थे। जवाब में हैदराबाद 153 रन पर सिमट गई थी।
दिल्ली-मुंबई के सबसे महंगे खिलाड़ी
दिल्ली में ऋषभ पंत 15 करोड़ और शिमरॉन हेटमायर 7.75 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं। वहीं, मुंबई में कप्तान रोहित शर्मा 15 करोड़ और हार्दिक पंड्या 11 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं।
बेंगलुरु-हैदराबाद के महंगे खिलाड़ी
RCB में कप्तान विराट कोहली 17 करोड़ और एबी डिविलियर्स 11 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं। वहीं, हैदराबाद में वॉर्नर सबसे महंगे खिलाड़ी हैं। टीम उन्हें एक सीजन के 12.50 करोड़ रुपए देगी। उनके बाद टीम में मनीष पांडे का नाम है, जिन्हें इस सीजन में 11 करोड़ रुपए मिलेंगे।
पिच और मौसम रिपोर्ट
दुबई और शारजाह में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। दोनों जगह तापमान 22 से 33 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। दोनों जगह पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। दुबई में टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। वहीं, अबु धाबी में टॉस जीतने वाली टीम पहले गेंदबाजी करना पसंद करेगी।
दुबई में इस आईपीएल से पहले हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है। वहीं, शारजाह में हुए पिछले 13 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 69% रहा है।
दुबई में रिकॉर्ड
इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 61
पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 34
पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 26
पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 144
दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 122
शारजाह में रिकॉर्ड
इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 13
पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 9
पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 4
पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 149
दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 131
मुंबई ने सबसे ज्यादा 4 बार खिताब जीता
आईपीएल इतिहास में मुंबई ने सबसे ज्यादा 4 बार (2019, 2017, 2015, 2013) खिताब जीता है। पिछली बार उसने फाइनल में चेन्नई को 1 रन से हराया था। मुंबई ने अब तक 5 बार फाइनल खेला है। वहीं, दिल्ली अकेली ऐसी टीम है, जो अब तक फाइनल नहीं खेल सकी। हालांकि, दिल्ली टूर्नामेंट के शुरुआती दो सीजन (2008, 2009) में सेमीफाइनल तक पहुंची थी।
हैदराबाद ने 2 बार खिताब जीता
हैदराबाद ने अब तक तीन बार फाइनल (2009, 2016, 2018) खेला है। जिसमें उसे 2 बार (2009, 2016) जीत मिली और एक बार (2018) हार का सामना करना पड़ा। वहीं, दिल्ली अकेली ऐसी टीम है, जो अब तक फाइनल नहीं खेल सकी। वहीं, आरसीबी ने 2009 में अनिल कुंबले और 2011 में डेनियल विटोरी की कप्तानी में फाइनल खेला था। 2016 में विराट की कप्तानी में भी टीम फाइनल में पहुंची।
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DC vs MI Head To Head Record - RCB vs SRH Playing DREAM11 | Indian Premier League (IPL) Match Preview Update
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Manish Pethev
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October 31, 2020
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ये कैटलॉग तैयार करना भी बेहद मुश्किल काम है कि डोनाल्ड ट्रम्प के चार साल राष्ट्रपति रहने के दौरान हमने क्या-क्या गंवाया। जब मैं इन बातों को लिख रहा हूं तब तक कोरोनावायरस के चलते 2 लाख 25 हजार अमेरिकी नागरिक मौत का शिकार बन चुके हैं। महीनों से हमारे यानी अमेरिकी बच्चे स्कूल नहीं गए हैं। बहुत जल्द देश का बड़ा हिस्सा थैंक्सगिविंग भी सेलिब्रेट नहीं कर पाएगा।
बच्चों को परिवार से जुदा कर दिया
ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन ने क्रूर फैमिली सेपरेशन पॉलिसी बनाई। बहुत मुमकिन है कि इसका शिकार बने 545 बच्चे अब कभी अपने पैरेंट्स से न मिल पाएं। अग्रणी लोकतंत्र के तौर पर अमेरिका अपना रुतबा और सम्मान खो चुका है। हमने सुप्रीम कोर्ट की जज रूथ बेंदर गिन्सबर्ग को खोया। सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद यह पहला मौका जब इतने अमेरिकियों ने नौकरियां गंवाईं। इनके साथ उन सांस्कृतिक घटनाओं को हुआ नुकसान भी जोड़ लीजिए, जो ट्रम्प के दौर में हुआ।
पिछले चार साल का अनुभव
जब मैं पिछले चार साल अपनी तरह से देखता हूं तो उसमें ऐसा लगता है कि जैसे इस प्रेसिडेंट का दौर किसी ब्लैकहोल की तरह रहा। अपनी तरह के और अलग नुकसान हुए। हर वक्त यह महसूस हुआ कि ट्रम्प अपनी तरह की बातें गढ़ते हैं और तारीफ किसी और चीज की करते हैं। मुझे लगता है कि पिछले चार साल में काफी बेहतर हुआ होगा। लेकिन, इसमें से ज्यादातर का फायदा मुझे नहीं हुआ। क्योंकि, मैं अपने फोन में ही बिजी रहा। ये उस आदमी के साथ होता है जो पॉलिटिक्स में जिंदगी खोजता रहा। ऐसा मैं अकेला नहीं हूं।
कई किताबें लिखी गईं
इस दौर में कई किताबें लिखी गईं। ट्रम्प पर उनके दौर का जिक्र करते हुए। पुलित्जर प्राइज विनर आलोचक कार्लोस लोजदा कहते हैं- ट्रम्प के दौर में कई राजनीतिक किताबें लिखी गईं। मैंने भी इनमें से कई किताबें पढ़ीं और उनकी तारीफ भी की। 2015 के बाद से फिक्शन पर नॉन फिक्शन भारी हो गया। यह बदलाव ट्रम्प के सत्ता में आने से पहले ही नजर आने लगा था। लेकिन, चार साल में तो यह चरम पर पहुंच गया। एनपीडी की क्रिस्टीन मैक्लीन कहती हैं- ट्रम्प ने हमारे दिमाग में जगह बना ली और वहां इतनी भीड़ है कि हम कुछ और सोच नहीं पाते।
फिक्शन पर जोर
एक लेखक पूछते हैं- यह सब क्या चल रहा है और कब खत्म होगा। यह तो उससे बहुत अलग है जिसकी हम बतौर अमेरिकी कल्पना करते आए हैं। हम दुनिया में रहना चाहते हैं लेकिन अब यह सोच जैसे सस्पेंड हो रही है। ट्रम्प के पहले मैंने कभी नहीं सोचा कि जिंदगी का यह हिस्सा फास्ट फॉरवर्ड हो और गुजर जाए। इस दौर में टीवी ड्रामा ही बेहतर हैं क्योंकि सच्चाई बहुत जहरीली होती जा रही है। तब बहुत अच्छा लगता जब आर्ट और पॉलिटिक्स में सामंजस्य हो। लेकिन, जब सियासित आपको चेतावनी देने लगे तो संस्कृति भी मुश्किल में दिखाई देने लगती है। इस दौर में आर्ट तबाह हुआ। इसके लिए ट्रम्प जिम्मेदार हैं।
संस्कृति का दम घुट रहा है
चाहे दक्षिणपंथी हों या वामपंथी। ये मिले हुए हैं और इस दौर में सांस्कृतिक तौर पर दम घुट रहा है। परंपरावादी डेमोक्रेट्स का मजाक उड़ाते हैं और वे ट्रम्प के साथ हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी के घर में आग लगाकर हम हंसने लगें। उसके जख्मों पर नमक छिड़कें। ट्रम्प के दौर में क्रिएटिविटी के लिए जगह नहीं बची। इसके लिए राष्ट्रपति जिम्मेदार हैं, वे लोग नहीं जिन्होंने इसका खामियाजा भुगता।
रोशनी की गुंजाइश नहीं छोड़ी
ट्रम्प का दौर कला यानी आर्ट के लिए अच्छा नहीं रहा। यह कल्पना के लिए भी खराब वक्त था। लोगों को अब आगे आना होगा। इस परेशानी से बाहर निकलने की कोशिश करनी होगी। इसके लिए ज्यादा ताकत और ऊर्जा लगानी होगी। ट्रम्प ने रोशनी को रोका है। जब वो चले जाएंगे तब हम देख पाएंगे कि हमने कितना और क्या खोया है।
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Donald Trump Four Wasted Years of Americans; Here's New York Times (NYT) Opinion On US Election 2020
https://ift.tt/2JomATt Dainik Bhaskar ट्रम्प के दौर में अमेरिका ने अपना सम्मान खो दिया, उनकी फैमिली सेपरेशन पॉलिसी बहुत क्रूर रही
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October 31, 2020
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अधिक वोटिंग या कम वोटिंग के बारे में लोगों की अपनी-अपनी व्याख्या हो सकती है, लेकिन तथ्य यह है कि हमें संभावित परिणाम और वोटिंग में कोई बहुत मजबूत संबंध नजर नहीं आता है। मुझसे उम्मीद की जा रही है कि मैं बिहार में पहले चरण के 71 विधानसभा क्षेत्रों में हुए मतदान के आधार पर अपनी विवेचना पेश करूं। सौभाग्य से मैं इस सवाल से आसानी से बच गया, क्योंकि पहले चरण में इन क्षेत्रों में मतदान कमोवेश 2015 के चुनावों के समान ही रहा।
2015 में इन क्षेत्रों में 54.87 फीसदी मतदान हुआ था और चुनाव आयोग के अस्थाई आंकड़ों के अनुसार भी यह करीब 54 फीसदी ही है। 3 नवंबर और 7 नवंबर को अभी मतदान के दो चरण और होने हैं और इनके आंकड़ों से ही इस बात की बड़ी व्याख्या होगी कि हवा किस तरफ बह रही है। मेरा मानना है कि पहले चरण के मतदान के आंकड़ों से कोई बहुत ही साधारण लेकिन साथ ही बहुत महत्वपूर्ण अनुमान निकाल सकता है।
चुनाव की तैयारी से पहले ही इस बात की अनेक आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि महामारी के इस दौर में चुनाव किस तरह से कराए जा सकते हैं। इस बात की भी आशंकाएं थीं कि क्या लोग वोट डालने के लिए आएंगे, खासकर बुजुर्ग, जिन्हें इस महामारी में सर्वाधिक खतरा है। लेकिन पहले चरण के मतदान के आंकड़े बताते हैं कि बिहार के वोटरों में महामारी का निडरता से सामना किया, बहुत हद तक नियमों का पूरी तरह पालन किया, जिनका पोलिंग स्टेशन पर पालन जरूरी भी था।
इसने उन सभी आशंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया, जिसमें कहा जा रहा था कि लोग वोट डालने आएंगे या नहीं। इन चुनावों में युवा और बुजुर्गों, पुरुष और महिलाओं, गरीब और अमीरों, सभी ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। पिछले चुनावों के रुझानों को देखते हुए अगले दो चरणों में और भी अधिक मतदान हो सकता है। 2010 और 2015 के आंकड़ों के मुताबिक जिन सीटों पर दूसरे और तीसरे चरण में मतदान होना है, उनमें पहले चरण की सीटों की तुलना में अधिक मतदान हुआ था।
2015 में राज्य में कुछ 56.88 फीसदी मतदान हुआ था, जिसमें पहले चरण में 54.87%, दूसरे में 55.47% और तीसरे चरण में 60.51% वोट डाले गए थे। तीसरे चरण में जिन सीटों पर वोट डाले जाने हैं, उनमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 26.37% है, इसकी वजह से 2010 और 2015 की तरह इन क्षेत्रों में भारी मतदान हो सकता है। कोई भी संभावित ध्रुवीकरण की वजह से तीसरे चरण में भारी मतदान से इनकार नहीं कर सकता।
मतदान के आंकड़ों से दो ही अनुमान लगाए जा सकते हैं। ज्यादा मतदान का अर्थ सरकार के पक्ष में या सरकार के खिलाफ मतदान हो सकता है और यही बात कम मतदान पर भी लागू होती है। जैसे ही मतदान पूरा होता है, हम आंकड़ों से अनुमान लगाना शुरू कर देते हैं और बिना किसी सबूत के अंतिम फैसला भी दे देते हैं। केवल मतदान के आंकड़ों से यह बताना कि हवा किस ओर बह रही है, उतना ही कठिन है, जितना किसी के चेहरे को देखकर यह बताना कि उसने किसे वोट दिया।
1952 से लेकर 2019 के बीच हुए विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों के डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि अब तक कुल 365 चुनाव हुए हैं, जिनमें 189 चुनावों (52%) में मतदान में बढ़ोतरी हुई और 66 बार (35%) सत्ताधारी दल की जीत हुई। 142 बार (40%) मतदान में कमी हुई और सत्ताधारी दल की 44 बार (32%) जीत हुई।
इस चुनाव से पहले बिहार में हुए 15 चुनावों में से 10 बार मतदान में बढ़ोतरी हुई, जिसमें चार बार सत्ताधारी दल जीता और छह बार हारा। 15 चुनावों में सिर्फ तीन बार मतदान में कमी हुई और सत्ताधारी दल एक ही बार जीत सका। इसलिए पहले चरण के मतदान के आधार पर हमें किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए, मैं तो आगे बढ़कर यह कहना चाहूंगा कि पूरे राज्य के मतदान के आंकड़ों के आधार पर भी हमें कोई नतीजा नहीं निकालना चाहिए।
इस चुनाव में एनडीए के गठबंधन के जटिल पैटर्न को देखते हुए, इन्हें सावधानी से देखने की जरूरत है, विशेषकर कुछ सीटों पर एलजेपी की मौजूदगी की वजह से वहां का पैटर्न अलग हो सकता है, यह भी ध्यान रखें कि एलजेपी के कुछ प्रत्याशी भाजपा के बागी हैं।
पहले चरण के मतदान और मौजूदा प्रचार के बाद कोई भी सीमित अनुमान ही लगा सकता है कि अगले दो चरणों में मतदान अधिक होने जा रहा है, कम नहीं। तेजस्वी यादव की रैलियों में उमड़ रही भीड़ से भी साफ है कि यह चुनाव 2015 और 2010 की तरह एकतरफा नहीं हो सकता। कुछ महीनों पहले ये चुनाव जिस तरह के दिख रहे थे, ये उससे कहीं अधिक करीबी हो सकते हैं।
अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी बाकी बची छह रैलियों में वोटरों से संपर्क कायम कर पाते हैं तो उससे एनडीए की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। अगर बेरोजगारी के मुद्दे पर तेजस्वी का युवा वोटरों से संपर्क इसी तरह बना रहता है तो चीजें कुछ अलग हो सकती हैं। यह चुनाव नीतीश कुमार पर एक जनमत सर्वेक्षण के रूप में बदलता दिख रहा है। वह पूर्व के कुछ चुनावों में भी केंद्र में रहे हैं, लेकिन इतना कभी नहीं रहे, जितना इस चुनाव में हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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संजय कुमार, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएडीएस) में प्रोफेसर और राजनीतिक टिप्पणीकार
https://ift.tt/35SEMw3 Dainik Bhaskar दो चरणों के चुनाव अभी बाकी हैं, अनुमानों पर ब्रेक लगाएं
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October 31, 2020
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घाटी में युवा नेताओं की हत्या की साजिश सिर्फ कुलगाम तक सीमित नहीं है। 370 हटने के बाद बदले हुए माहौल में युवाओं का मुख्यधारा में आना आतंकियों को बड़ा खतरा दिख रहा है। क्योंकि, कश्मीरी युवाओं के दम पर ही सरहद पार बैठे आतंक के आका यहां दहशत बनाए हुए हैं। गुरुवार को भाजपा नेता फिदा हुसैन, उमर राशिद और उमर हाजम की हत्या भी इसी साजिश का हिस्सा है।
आतंकियों ने इस हमले में दो परिवारों के इकलौते बेटे छीने हैं। फिदा हुसैन परिवार का इकलौता सहारा था। मां-बाप बुजुर्ग हैं। दो बहनें हैं। मां ने बिलखते हुए कहा- ‘अब हम किसके सहारे जिएंगे।’ बुजुर्ग पिता भीड़ के बीच बात करने की स्थिति में भी नहीं थे। इसी तरह उमर राशिद ड्राइवर था। वह भी बुजुर्ग मां-बाप और दो बहनों का इकलौता सहारा था। बहनें गहरे सदमे में हैं।
उन्होंने बताया कि वे सिर्फ भाई के लिए इंसाफ चाहती हैं। चीत्कार के बीच उठे तीनों जनाजों में हजारों की भीड़ उमड़ी। अंतिम रस्म अता करते हुए मौलवी कह रहे थे- हे अल्लाह! इस कत्लेआम को रोकें। कश्मीर में और कितने लोग इस तरह मारे जाएंगे? इन हत्याओं से इलाके के लोग बहुत गुस्से में हैं। उन्होंने सुरक्षा एजेंसियों से मांग की कि हत्यारों को जल्द उनके अंजाम तक पहुंचाया जाए। वहीं, दूसरी ओर इस घटना से नेताओं में खौफ बढ़ गया है।
फिदा हुसैन (बाएं) उमर राशिद (बीच में) उमर हाजम (दाएं)
कुलगाम में ही दर्जनों नेता सुरक्षा मांग रहे हैं। क्योंकि, पंचायत सदस्यों पर हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे। इससे खौफजदा कई पंचायत सदस्य इस्तीफा दे रहे हैं। तीनों युवाओं को सुपुर्द-ए-खाक किए जाने के वक्त भाजपा नेता सोफी यूसुफ ने कहा- ‘कुलगाम के एसएसपी और डीसी को तुरंत हटाया जाए। उन्होंने सुरक्षा नहीं बढ़ाई, इसलिए वारदात हुई। जब तक दोनों अफसरों को हटाया नहीं जाता, तब तक भाजपा इस जिले में किसी भी कार्यक्रम या चुनाव में भाग नहीं लेगी।’
हत्यारे आतंकी भी इसी इलाके के, दोनों लश्कर से जुड़े हैं
आईजी विजय कुमार ने कहा कि हत्या करने वाले आतंकी भी इसी इलाके के हैं। वे अल्ताफ नाम के एक स्थानीय युवक की गाड़ी में आए थे। उनके नाम निसार अहमद खांडे और अब्बास शेख हैं। ये दोनों लश्कर से जुड़े हैं।
पाकिस्तानी संसद में मंत्री के कबूलनामे के बाद भारत अब आईसीजे जाने की तैयारी में
नई दिल्ली. पुलवामा में आतंकी हमला कराने के पाकिस्तानी मंत्री फवाद चौधरी के कबूलनामे के बाद भारत अंतरराष्ट्रीय कोर्ट (आईसीजे) जा सकता है। केंद्रीय राज्य मंत्री वीके सिंह ने कहा- ‘भारत शुरू से कहता आया है कि इसमें पाकिस्तान का हाथ है। अच्छा हुआ कि उसने खुद सच्चाई स्वीकार ली है। मुझे यकीन है कि हमारी सरकार इस कबूलनामे का इस्तेमाल दुनिया को यह बताने के लिए करेगी और दुनिया पाक को एफएटीएफ से ब्लैकलिस्ट करने के लिए साथ आएगी।’ अभी पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में है। पिछली बैठक में यह स्टेटस बरकरार रखा गया था।
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कश्मीर के कुलगाम में आतंकियों की गोलियों का निशाना बने तीनों भाजपा कार्यकताओं को शुक्रवार को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। उनके जनाजों में हजारों की भीड़ जुटी।
https://ift.tt/35QkyCV Dainik Bhaskar आतंकियों ने दो परिवारों के इकलौते बेटे छीने; लोग गुस्से में हैं और नेता खौफजदा
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Manish Pethev
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October 31, 2020
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' के निर्माण का काम सिर्फ 33 महीनों में हो गया था। सरदार पटेल की यह प्रतिमा (182 मीटर) दुनिया में सबसे ऊंची है। 2010 में मोदी ने बतौर मुख्यमंत्री इसे स्थापित करने का ऐलान किया था। 2013 में प्रतिमा के निर्माण का काम शुरू हुआ था।
काम कितना अहम था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पटेल की प्रतिमा के हावभाव तय करने के लिए 2 हजार से ज्यादा तस्वीरों पर रिसर्च की गई थी।स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से जुड़े 21 प्रोजेक्ट शुरू किए गए थे। इनमें से 17 अब तक पूरे हो चुके हैं।
हालांकि, इनमें से 2 में काम बाकी है और 2 की जानकारी नहीं मिल सकी है। 13 का लेखा-जोखा है। सरदार पटेल की प्रतिमा विश्व प्रसिद्ध शिल्पकार राम सुतार ने डिजाइन की, निर्माण लार्सन एंड टुब्रो कंपनी ने किया। जानिए, क्या है जो 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' को खास बनाता है...
109 टन लोहे का इस्तेमाल किया गया
इस प्रतिमा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए देश भर के पांच लाख से अधिक किसानों के पास से 135 मीट्रिक टन खेती-किसानी के पुराने औजार दान में लिए गए, जिन्हें गलाकर 109 टन लोहा तैयार किया गया। इसी लोहे का उपयोग इस प्रतिमा में किया गया है।
2010 में मोदी ने की थी घोषणा
नरेंद्र मोदी जब गुजरात के सीएम थे, तब 7 अक्टूबर 2010 को अहमदाबाद में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इस स्मारक के निर्माण की घोषणा की थी। इसके बाद 31 अक्टूबर 2013 से प्रतिमा का निर्माण शुरू हुआ, जो पांच साल बाद यानी कि 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल की 143वीं जयंती पर पूरा हुआ। प्रतिमा का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी ने किया।
2.10 लाख क्यूबिक मीटर कन्क्रीट लगा
इस प्रतिमा की लागत 2989 करोड़ रुपए आई। मूर्ति में 2.10 लाख क्यूबिक मीटर सीमेंट-कन्क्रीट और 2000 टन कांसे का उपयोग हुआ है। 6 हजार 500 टन स्ट्रक्चरल स्टील और 18 हजार 500 टन सरियों का इस्तेमाल किया गया है। यह 12 किमी इलाके में बनाए गए तालाब से घिरी है।
मूर्तिकार राम सुतार ने डिजाइन तैयार किया
'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' की ओरिजनल डिजाइन महाराष्ट्र के राम सुतार ने तैयार की है। 93 साल के सुतार देश के सबसे वरिष्ठ मूर्तिकार हैं। उन्होंने छत्रपति शिवाजी का स्टेच्यू भी डिजाइन किया है। शिवाजी का यह स्टेच्यू मुंबई के समुद्र में कृत्रिम टापू पर स्थापित किया जाना है।
राम सुतार ने इन महान लोगों की मूर्तियां भी बनाईं
राम सुतार ने मिनिमम 18 फीट ऊंची मूर्तियां तैयार कीं। इनमें सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, महाराजा रणजीत सिंह, शहीद भगतसिंह, जयप्रकाश नारायण की मूर्तियां बनाई जा चुकी हैं। उनकी बनाई गांधीजी की मूर्तियां फ्रांस, इटली, अर्जेंटीना, रूस, इंग्लैंड, जर्मनी, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया में भी स्थापित की गई हैं।
अमेरिकी इतिहासकार ने बताया था कैसी होनी चाहिए पटेल की मूर्ति
राम सुतार के बेटे अनिल सुतार ने बताया कि एक अमेरिकी इतिहासकार को सरदार पटेल के नेचर, पहनावे और उनकी पर्सनैलिटी के बारे में अध्ययन करने को कहा गया था। ताकि पता चल सके कि मूर्ति को किस हाव-भाव में तैयार किया जाना है।
इन इतिहासकार ने तमाम मूर्तियां और फोटोज देखीं। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सरदार पटेल का जो स्टेच्यू अहमदाबाद एयरपोर्ट पर है, उसमें सरदार का स्वभाव और वेशभूषा हू-ब-हू नजर आती है। इसलिए 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' भी उसी डिजाइन की होनी चाहिए।
क्यों खास है 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी'
प्रतिमा 6.5 तीव्रता के भूकंप के झटके और 220 किमी की स्पीड के तूफान का भी सामना कर सकती है।
प्रतिमा के निर्माण में 85% तांबे का उपयोग होने से हजारों साल तक इमसें जंग नहीं लग सकती।
प्रतिमा की गैलरी में खड़े होकर एक बार में 40 लोग सरदार सरोवर डैम, विंध्य पर्वत के दर्शन कर सकते हैं।
स्टेच्यू में दो हाई-स्पीड लिफ्ट लगाई गई हैं। जो पर्यटकों को सरदार पटेल की मूर्ति के सीने के हिस्से में बनी व्यूइंग गैलरी तक ले जाती हैं। इस गैलरी में एक साथ 200 लोग खड़े रह सकते हैं।
स्टेच्यू ऑफ यूनिटी सिर्फ 33 महीनों में तैयार की गई है, जो एक रिकॉर्ड है। जबकि चीन के स्प्रिंग टेंपल में बुद्ध की प्रतिमा के निर्माण में 11 साल लगे थे।
स्टेच्यू की डिजाइन में इस बात का खास ध्यान रखा गया कि उसमें हू-ब-हू सरदार पटेल के हावभाव नजर आएं। इसके लिए सरदार पटेल की 2000 से ज्यादा फोटो पर रिसर्च की गई।
यूनिटी के आसपास के अन्य दर्शनीय स्थल
विश्व वन: यहां सभी सात खंडों की औषधि वनस्पति, पौधे और वृक्ष हैं, जो अनेकता में एकता के भाव को साकार करते नजर आते हैं।
एकता नर्सरी: इसे बनाने का मकसद है कि जब भी पर्यटक यहां आएं तो वे नर्सरी से 'प्लांट ऑफ यूनिटी' के नाम से एक पौधा जरूर ले जाएं। शुरुआती चरण में यहां एक लाख पौधे रोपे गए हैं, जिनमें से 30 हजार पौधे बेचने के लिए तैयार हो चुके हैं।
बटरफ्लाई गार्डन: 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' में पर्यटक कुदरत की सुंदर और रंग-बिरंगी रचनाएं भी देख सकें, इसके लिए इस बटरफ्लाई गार्डन का निर्माण किया गया है। करीब छह एकड़ में फैले इस विशाल बगीचे में 45 प्रजातियों की तितलियां हैं।
एकता ऑडिटोरियम: करीब 1700 वर्ग मीटर में फैला यह एक कम्युनिटी हॉल है। यहां संगीत, नृत्य, नाटक, कार्यशाला जैसे सभी सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
रिवर राफ्टिंग: रिवर राफ्टिंग एक एडवेंचर गेम है। यहां साहसिक खिलाड़ी कई तरह के एडवेंचर गेम का लुत्फ उठा सकेंगे।
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After research on more than 2000 photographs, the facial expression of the Statue of Unity was decided
https://ift.tt/3oIkRsb Dainik Bhaskar 21 में से 17 प्रोजेक्ट पूरे, पटेल की प्रतिमा के हावभाव के लिए 2 हजार से ज्यादा तस्वीरों पर रिसर्च हुई
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Manish Pethev
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October 31, 2020
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इतिहास में आज के दिन से अच्छी और बुरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं। एक तो भारत को आकार देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन है। वहीं, आयरन लेडी यानी इंदिरा गांधी की हत्या का दिन भी यही है।
बात 36 साल पुरानी है। 1984 में 30 अक्टूबर को ओडिशा में चुनाव प्रचार से उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिल्ली लौटी थीं। उन पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने पीटर उस्तीनोव आए हुए थे। 31 अक्टूबर को मुलाकात का वक्त तय था। सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर इंटरव्यू की तैयारी पूरी हो चुकी थी। इंदिरा बाहर निकलीं। सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिंह और संतरी बूथ पर कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह स्टेनगन लेकर खड़ा था।
इंदिरा ने आगे बढ़कर बेअंत और सतवंत को नमस्ते कहा। इतने में बेअंत ने .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर तीन गोलियां दाग दीं। सतवंत ने भी स्टेनगन से गोलियां दागनी शुरू कर दीं। एक मिनट से कम वक्त में स्टेनगन की 30 गोलियों की मैगजीन खाली कर दी। साथ वाले लोग तो कुछ समझ नहीं सके। उस समय पीएम आवास पर खड़ी एंबुलेंस का ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था। कार से इंदिरा गांधी को एम्स ले गए। शरीर से लगातार खून बह रहा था।
एम्स के डॉक्टर सक्रिय हुए। खून बहने से रोकने की कोशिश की। बाहर से सपोर्ट दिया गया। 88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया, लेकिन कुछ काम नहीं आया। राजीव गांधी भी तब तक दिल्ली पहुंच गए थे। दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर औपचारिक रूप से इंदिरा गांधी की मौत की घोषणा हुई। उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं।
एम्स में सैकड़ों लोग जुटे थे। धीरे-धीरे यह खबर भी फैल गई कि इंदिरा गांधी को दो सिखों ने गोली मारी है। इससे माहौल बदलने लगा। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर पथराव हुआ। शाम को अस्पताल से लौटते लोगों ने कुछ इलाकों में तोड़फोड़ शुरू कर दी। धीरे-धीरे दिल्ली सिख दंगों की आग में झुलस गई थी। रात होते-होते तो देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क गए।
हत्या का कारणः पंजाब में सिख आतंकवाद को दबाने के लिए इंदिरा ने 5 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। इसमें प्रमुख आतंकी भिंडरावाला सहित कई की मौत हो गई। ऑपरेशन में स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों को क्षति पहुंची। इससे सिख समुदाय में एक तबका इंदिरा से नाराज हो गया था। इंदिरा के दो हत्यारों को 6 जनवरी 1989 को फांसी पर चढ़ाया गया था।
गुजरात में देश के सरदार का जन्म
महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के साथ सरदार पटेल।
वल्लभ भाई पटेल को भारत का लौह पुरुष भी कहते हैं और सरदार भी। 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में उनका जन्म हुआ था और उन्होंने अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली। सरदार पटेल का जन्म किसान परिवार में हुआ, लेकिन उन्हें कूटनीतिक क्षमताओं के लिए जाना जाता है। आजाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है।
आज 10वीं की परीक्षा आम तौर पर 16 साल में पास हो जाती है, लेकिन सरदार पटेल ने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। परिवार में आर्थिक तंगी थी और इस वजह से वो कॉलेज जाने के बजाय जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी में जुट गए। सबसे ज्यादा अंक भी हासिल किए। 36 साल की उम्र में वल्लभ भाई वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए। कॉलेज का अनुभव नहीं था, फिर 36 महीने का कोर्स सिर्फ 30 महीने में पूरा किया।
देश आजाद हुआ, तब पटेल प्रधानमंत्री पद के तगड़े दावेदार थे, लेकिन उन्होंने नेहरू के लिए यह पद छोड़ दिया। खुद उप-प्रधानमंत्री बने और ऐसा काम किया कि सदियों तक याद रखे जाएंगे। उन्होंने पाकिस्तान में जाने का मन बना रही जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों को कूटनीति से भारत में ही रोक लिया। जम्मू-कश्मीर आज भारत में है, तो उसका श्रेय भी कुछ हद तक पटेल को जाता है।
गुजरात के सरदार सरोवर डैम के पास दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति- स्टेच्यू ऑफ यूनिटी है, जो सरदार पटेल की याद में बनाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्टूबर 2018 को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को लॉन्च किया था।
भारत और विश्व इतिहास में 31 अक्टूबर की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं-
1759ः फिलीस्तीन के साफेद में भूकंप से 100 लोग मारे गए।
1864ः नेवादा अमेरिका का 36वां प्रांत बना।
1905ः अमेरिका के सेंट पीटर्सबर्ग में क्रांतिकारी प्रदर्शन।
1914ः ब्रिटेन तथा फ्रांस ने तुर्की के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
1920ः मध्य यूरोपीय देश रोमानिया ने पूर्वी यूरोप के बेसाराबिया पर कब्जा किया।
1943ः भारतीय वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर का जन्म हुआ।
1953ः बेल्जियम में टेलीविजन का प्रसारण शुरू हुआ।
1956ः स्वेज नहर को फिर से खोलने के लिए ब्रिटेन तथा फ्रांस ने मिस्र पर बमबारी शुरू की।
1966ः भारत के मशहूर तैराक मिहिर सेन ने पनामा नहर को तैरकर पार किया।
1975ः बांग्ला और हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक सचिन देव बर्मन का निधन।
1978ः यमन ने अपना संविधान अपनाया।
1999ः इजिप्टएयर फ्लाइट 990 अमेरिका के पूर्वी तट पर क्रैश हुई और 217 की मौत हुई।
2005ः भारत की प्रसिद्ध पंजाबी एवं हिन्दी लेखिका अमृता प्रीतम का निधन हुआ।
2011: दुनिया की आबादी औपचारिक रूप से 7 अरब हुई। यूएन पापुलेशन फंड ने इस दिन को डे ऑफ सेवन बिलियन कहा।
2015ः रूसी एयरलाइन कोगलीमाविया का विमान-9268 उत्तरी सिनाई में दुर्घटनाग्रस्त होने से विमान में सवार सभी 224 लोगों की मौत।
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Today History for October 31st/ What Happened Today | Indira Gandhi Shot Dead By Her Bodyguards In 1984 All You Need To Know | Sardar Vallabh Bhai Patel Birthday
https://ift.tt/3jCX5u0 Dainik Bhaskar इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद के भयावह 12 घंटे; सरदार पटेल का जन्मदिन भी
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October 31, 2020
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नमस्कार!
अमेरिका में हर सेकंड एक से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हो रहे हैं। भारत की तुलना में संक्रमण की यह रफ्तार दोगुनी है। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
सबसे पहले देखते हैं, बाजार क्या कह रहा है…
BSE का मार्केट कैप 157 लाख करोड़ रुपए रहा। BSE पर करीब 46% कंपनियों के शेयरों में गिरावट रही।
2,751 कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग हुई। इसमें 1,319 कंपनियों के शेयर बढ़े और 1,271 कंपनियों के शेयर गिरे।
आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर
IPL में आज डबल हेडर मुकाबले। पहला मैच दिल्ली और मुंबई के बीच दोपहर साढ़े तीन बजे से दुबई में होगा। दूसरा मैच बेंगलुरु और हैदराबाद के बीच शाम साढ़े सात बजे से शारजाह में होगा।
महाराष्ट्र में आज लॉकडाउन को लेकर नई गाइडलाइन जारी हो सकती है। गुरुवार को राज्य में 30 नवंबर तक लॉकडाउन बढ़ाने का ऐलान किया गया था।
प्रधानमंत्री मोदी आज साबरमती से स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के बीच सी-प्लेन सर्विस का उद्घाटन करेंगे।
देश-विदेश
चुनाव आयोग ने कमलनाथ से स्टार प्रचारक का दर्जा छीना
चुनाव प्रचार के दौरान आचार संहिता के उल्लंघन के लिए चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ से स्टार प्रचारक का दर्जा छीन लिया है। कमलनाथ ने पिछले दिनों शिवराज कैबिनेट की मंत्री इमरती देवी को आइटम कहा था। इस मामले पर EC कमलनाथ के जवाब से संतुष्ट नहीं है।
मास्क न पहनने पर मुंबई में सख्ती, 200 रु. जुर्माना
मुंबई में बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) ने मास्क न पहनने वालों पर सख्ती बढ़ा दी है। BMC ने कहा है कि अब कोई बिना मास्क के पकड़ में आया तो उसे सड़कों पर झाड़ू लगानी पड़ सकती है। 200 रुपए जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। मुंबई में एपेडमिक एक्ट लागू होने तक मास्क को अनिवार्य किया गया है।
उत्तर प्रदेश में अमेठी में दलित प्रधान के पति को जिंदा जलाया
उत्तर प्रदेश में अमेठी में गुरुवार रात दलित प्रधान के पति को जिंदा जला दिया गया। अधजली हालत में लखनऊ के ट्रामा सेंटर ले जाते वक्त उनकी मौत हो गई। हत्या के बाद से गांव में तनाव है। पुलिसबल तैनात हैं। अमेठी से सांसद स्मृति ईरानी के दखल के बाद पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है।
गुड़गांव में फोर्टिस हॉस्पिटल में वेंटिलेटर पर भर्ती युवती से रेप
गुड़गांव के फोर्टिस अस्पताल में जिंदगी बचाने के लिए लड़ रही 21 साल की युवती से रेप का मामला सामने आया है। लड़की वेंटिलेटर पर है। 22 से 27 अक्टूबर के बीच उससे रेप हुआ। पीड़ित को होश आने पर 28 अक्टूबर को उसने अपने पिता को टूटे-फूटे शब्दों में आपबीती बताई। आरोपी का नाम विकास बताया है।
तुर्की और ग्रीस में भूकंप, कई इमारतें गिरीं, सैकड़ों घायल
तुर्की और ग्रीस में शुक्रवार शाम भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7 मापी गई है। तुर्की में ज्यादा नुकसान की आशंका है। यहां 4 लोगों की जान गई और 120 लोग घायल हो गए। कई इमारतें भी जमींदोज हो गईं। ग्रीस में झटकों के बाद लोग दहशत में घरों से बाहर आ गए।
ओरिजिनल
मुंबई में गार्ड को देख तय किया, गांव लौट खेती करूंगा
औरंगाबाद के बरौली गांव के रहने वाले अभिषेक कुमार मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर थे। अच्छी खासी सैलरी थी। अचानक 2011 में गांव लौट आए। आज वो 20 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। दो लाख से ज्यादा किसान देशभर में उनसे जुड़े हैं। सालाना 25 लाख रुपए का टर्नओवर है।
पढ़ें पूरी खबर...
एक्सप्लेनर
अब आप भी खरीद सकते हैं कश्मीर में जमीन, मगर कैसे?
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 26 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के कानूनों में बड़े बदलाव किए। इसने राज्य के 12 पुराने कानून खत्म कर दिए। 14 कानूनों में बदलाव किया। दरअसल, भारत के लिए यह फैसला जितना साफ-सुथरा दिख रहा है, वैसा है नहीं। जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोग जमीन की खरीद-फरोख्त कैसे कर सकेंगे? ऐसे समझें।
पढ़ें पूरी खबर...
सुर्खियों में और क्या है...
खेती और इससे जुड़े कामकाज के लिए अगर आपने कर्ज लिया है तो सरकार एक्स ग्रेशिया का फायदा नहीं देगी। यानी ब्याज पर ब्याज और साधारण ब्याज के बीच जो अंतर है, वह आपको नहीं मिलेगा।
प्रधानमंत्री मोदी 2 दिन के गुजरात दौरे पर हैं। वे शुक्रवार को गांधीनगर से नर्मदा जिले के केवडिया पहुंचे। टूरिज्म से जुड़े कई प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया। इनमें आरोग्य वन और जंगल पार्क शामिल हैं।
भारत में कोरोना के 24 घंटे में 45 से 50 हजार नए केस सामने आ रहे हैं। दूसरी तरफ ताइवान में 200 दिन (12 अप्रैल के बाद) से कोई नया मामला सामने नहीं आया है।
केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने न्यूज एजेंसी ANI से कहा, "जो नेता चीन के प्रवक्ता हैं, उन्हें यहां नहीं रहना चाहिए, बल्कि कोई दूसरी जगह तलाशनी चाहिए।"
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Rape at Fortis Hospital, Gurgaon; Earthquake devastation in Turkey; If you do not put a mask in Mumbai, you will have to sweep
https://ift.tt/2HQEJbw Dainik Bhaskar मुंबई में मास्क नहीं लगाया तो लगाना पड़ेगी झाड़ू; तुर्की में भूकंप से तबाही; गुड़गांव के फोर्टिस हॉस्पिटल में रेप
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Riteish Deshmukh shares a throwback picture
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DNA Exclusive - How Sukant Kadam, a para-badminton athlete, is grateful to Saina Nehwal and PM Modi for Mission 2021?
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कोरोना महामारी के दौरान तमाम ऐसे किस्से सामने आए, जिनमें संतानों ने पिता को और भाई ने भाई को छूने से इनकार कर दिया। नेता भी दूर-दूर से कोरोना की लड़ाई लड़ते नजर आए। ऐसे लोगों और नेताओं के लिए भी सरदार पटेल एक नजीर हैं। उन्होंने अंग्रेजों से ही नहीं, बल्कि कोरोना जैसी तब की महामारी, प्लेग से भी जबरदस्त जंग लड़ी। दहशत भरे माहौल के बावजूद बेखौफ पटेल प्लेग के मरीजों के बीच जा पहुंचे। पेड़ के नीचे तंबू गाड़ दिया। आम लोगों को जमा किया और उनके बूते ही प्लेग को मात दे दी।
आम के पेड़ के नीचे पंडाल, वही घर था और वही दफ्तर
बात 1935 की है। गुजरात के मौजूदा आणंद जिले के बोरसद तालुका में प्लेग महामारी बन चुका था। सैकड़ों लोगों की मौत के बाद भी अंग्रेज सरकार इसे लेकर जरा भी गंभीर नहीं थी। तब तक खेड़ा और बारडोली आंदोलन के जरिए सरदार अंग्रेजों को आम लोगों की ताकत का स्वाद चखा चुके थे। मगर इस बार यही आम लोग मुसीबत में थे।
यों तो बोरसद में 1932 से ही प्लेग के मामले सामने आ रहे थे, लेकिन 1935 का जून आते-आते इस इलाके के 27 गांवों में 450 से ज्यादा लोग प्लेग का शिकार हो गए। यह खबर लगते ही पटेल ने सबसे पहले भास्कर पटेल नाम के डॉक्टर से हालात को गहराई से समझा। उन्होंने पता किया कि वहां मौजूद संसाधनों के हिसाब से वैज्ञानिक आधार पर क्या किया जा जाना चाहिए।
इसके बाद पटेल खुद बोरसद पहुंच गए। चारों ओर हाहाकार मचा था। तमाम गांववाले चूहों और बीमारों के डर से अपने घर छोड़कर खेतों में किसी तरह बसर कर रहे थे। ऐसे माहौल में पटेल ने एक आम के पेड़ के नीचे पंडाल लगा लिया। यही तंबू उनका दफ्तर और घर बन गया। पटेल ने यहीं से वॉलंटियर्स को भर्ती किया। उन्हें प्लेग के खिलाफ लड़ाई में शामिल जोखिम के बारे में बताया। यहीं से उन्होंने आस-पास के अस्पतालों में मरीजों को भर्ती कराने का इंतजाम किया। प्रभावित गांवों में बड़े स्तर पर सफाई अभियान चलाए। गांववालों को प्लेग के खतरों, उससे बचने के तरीकों और बीमार होने पर सावधानियों के बारे में बताने के लिए पर्चे बांटने शुरू किए।
सरदार पटेल ने प्लेग का शिकार सभी गांवों में खुद पहुंचे। बाद में महात्मा गांधी भी बोरसद गांव के एक-एक घर में गए और लोगों को सरदार का साथ देने को कहा।
एक-एक गांव में खुद गए पटेल
इस लड़ाई के दौरान सरदार पटेल एक-एक प्रभावित गांव में खुद पहुंचे। एक ऐसे समय में जब बीमारों के घरवाले ही मारे खौफ के इलाज कराने को तैयार नहीं थे, बीच मैदान-ए-जंग से पटेल की सरदारी ने लोकल वॉलेंटियर्स में ऐसा जोश भरा कि प्लेग की हार तय हो गई। और हुई भी।
महात्मा गांधी भी पहुंचे और सरदार की मदद करने को कहा
कुछ दिनों बाद ही महात्मा गांधी भी बोरसद पहुंचे। वे भी सरदार पटेल के साथ पेड़ के नीचे वाले तम्बू में रहे। गांधी भी प्रभावित गांवों में पहुंचे। घर-घर जाकर लोगों से मिले। गांधी ने लोगों से सफाई का ध्यान रखने और सरदार पटेल का साथ देने को कहा।
सरकार जांच को राजी नहीं हुई तो सरदार ने कमेटी बनाई, पता चला- ब्रिटिश इलाकों के गांवों में 4% टीके लगे, वहीं बड़ौदा राज में 60%
बोरसद में प्लेग के लगातार बढ़ते मामलों के बीच तत्कालीन बॉम्बे प्रांत सरकार ने अफसरों की अनदेखी की जांच कराने से इनकार कर दिया। जवाब में सरदार पटेल ने अपनी ओर से एक विशेषज्ञ कमेटी बनाकर जांच कराई। कमेटी ने सरदार पटेल के सरकार पर लगाए आरोपों और उसके जवाब में प्रांत सरकार के कांग्रेस पर लगाए प्रत्यारोपों की जांच की। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सरदार पटेल के आरोपों को सही पाया। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि प्लेग प्रभावित ब्रिटिश इलाकों के गांवों में केवल 4% और शहरों में 25% लोगों की टीके लगा गए थे, जबकि बड़ौदा राज के दोनों इलाकों में 60% लोगों को टीके लग चुके थे।
ब्रिटिश सरकार ने किए बड़े-बड़े दावे, 5 हजार टीके लगाए, 2500 रुपए किए खर्च
सरदार पटेल और इस लड़ाई में उनका साथ दे रहे दरबार गोपाल दास देसाई ने मार्च 1935 में महामारी के खिलाफ काम शुरू किया। इस बारे में अखबारों में खबरें छपी तो बॉम्बे सरकार ने 27 अप्रैल 1935 को पहली बार बयान जारी कर बड़े-बड़े दावे किए।
- प्लेग के मामलों का पता चलते ही सितंबर 1934 में ही चूहे पकडऩे के लिए लोकल बोर्ड ने प्लेग ड्यूटी अफसर तैनात कर दिया था।
- इसरामा नाम के गांव में सफाई और टीके लगाने के लिए इंस्पेक्टर को भेजा गया।
- फरवरी में एक और प्लेग ड्यूटी अफसर तैनात किया गया।
- इससे पहले 1932, 1933 और 1934 में भी कई बार स्पेशल प्लेग ड्यूटी अफसर भेजे गए।
- 5000 लोगों को टीके लगाए गए। मार्च तक बोर्ड ने बचाव कार्यों में 2,500 रुपए खर्च किए।
पटेल ने चुन-चुनकर दिए जवाब- एक डॉक्टर 5 हजार टीके कैसे लगाता, सिर्फ 1699 रुपए किए खर्च
सरदार पटेल और उनकी जांच कमेटी ने सरकार के सभी दावों के चुन-चुनकर जवाब दिए। उन्होंने लिखा, बोरसद में 1932 से ही प्लेग के मामले में सामने आ रहे हैं और सरकार को तीन साल बाद बयान देने की फुर्सत मिली। सरकार ने प्रभावित गांवों की संख्या नहीं बताई। 1932 में केवल एक गांव में प्लेग फैला था। 1933 में ऐसे गांव 10 हो गए। 1934 में संख्या बढ़कर 14 हो गई और 1935 तक 27 गांवों तक यह बीमारी फैल गई। मरने वालों की संख्या 52 से बढ़कर 589 हो गई। सरदार ने पूछा, अगर सरकार सही कदम उठाए होते तो क्या ऐसा होता?
- 1932 में तैनात स्पेशल मेडिकल अफसर के पास उपकरण ही नहीं थे। उसे सितंबर में भेजा गया, जबकि अप्रैल तक बड़ी संख्या में प्लेग के मामले सामने आ चुके थे।
- दिसंबर 1933 में प्लेग फैला लेकिन तब स्पेशल अफसर को मार्च 1934 में भेजा गया।
- टीकाकरण की जानकर अनदेखी की गई। एक ही मेडिकल अफसर को पूरे देहात की जिम्मेदारी दे दी गई।
- विरसद में एक ही मेडि़कल अफसर ने छह महीनों में 3 हजार टीके लगाए। इनमें भी 2 हजार टीके केवल पांच सप्ताह में ही लगाए गए।
- बोरसद में एक ही डॉक्टर तैनात किया गया, वह पांच हजार से टीके नहीं लगा सकता था।
- डॉ. शाह नाम के डॉक्टर ने इतनी खराब तरह से टीके लगा कि लोगों पर इनके बेहद परेशानी उठानी पड़ी, आखिर सरकार को केवल 400 टीके लगाने के बाद ही उन्हें हटाना पड़ा।
- बोरसद में प्लेग से प्रभावित इलाकों से 27 प्रवासियों को हटाने या आइसोलेट नहीं किया गया। जबकि तब तक 300 लोगों की मौत हो चुकी थी।
- महामारी फैलने के पांच महीनों बाद भी कलेक्टर या असिस्टेंट डायरेक्टर पब्लिक हेल्थ ने इलाके का दौरा नहीं किया।
- लोकल बोर्ड ने 2500 रुपए नहीं 2486 रुपए बचाव कार्य में खर्च किए। यह रकम प्रभावित इलाके में नहीं बल्कि पूरे जिले में खर्च की गई। वहीं इसमें 787 रुपए कॉलरा राहत की रकम थी।
महामारी में ऐसी ही अगुवाई कर दोबारा न्यूजीलैंड की पीएम बनीं जैसिंडा, ट्रंप कमजोर साबित हुए तो पिछड़े
पीएम जैसिंडा अर्डर्न कोरोना से न्यूजीलैंड को बाहर निकाला और दोबारा चुनी गईं।
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न कोरोना के खिलाफ अपनी जबरदस्त लड़ाई के बूते चुनाव में दोबारा शानदार जीत दर्ज की। वहीं, अमेरिका में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को कोरोना के खिलाफ अपने तौर तरीकों के चलते भारी नाराजगी झेलना पड़ रही है। राष्ट्रपति चुनाव में अब तक सामने आए सर्वे में डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन राष्ट्रपति ट्रंप से आगे नजर आ रहे हैं। कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी काफी तेजी से बढ़ी।
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मई 1935 की इस तस्वीर में सरदार पटेल और महात्मा गांधी बोरसद के कैंप में प्लेग के खिलाफ लड़ाई में जुटे बाकी साथियों से बातचीत करते नजर आ रहे हैं। इनके पीछे खड़े हैं महादेव देसाई।
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via IFTTT https://ift.tt/3eaR6LI कोरोना महामारी के दौरान तमाम ऐसे किस्से सामने आए, जिनमें संतानों ने पिता को और भाई ने भाई को छूने से इनकार कर दिया। नेता भी दूर-दूर से कोरोना की लड़ाई लड़ते नजर आए। ऐसे लोगों और नेताओं के लिए भी सरदार पटेल एक नजीर हैं। उन्होंने अंग्रेजों से ही नहीं, बल्कि कोरोना जैसी तब की महामारी, प्लेग से भी जबरदस्त जंग लड़ी। दहशत भरे माहौल के बावजूद बेखौफ पटेल प्लेग के मरीजों के बीच जा पहुंचे। पेड़ के नीचे तंबू गाड़ दिया। आम लोगों को जमा किया और उनके बूते ही प्लेग को मात दे दी। आम के पेड़ के नीचे पंडाल, वही घर था और वही दफ्तर बात 1935 की है। गुजरात के मौजूदा आणंद जिले के बोरसद तालुका में प्लेग महामारी बन चुका था। सैकड़ों लोगों की मौत के बाद भी अंग्रेज सरकार इसे लेकर जरा भी गंभीर नहीं थी। तब तक खेड़ा और बारडोली आंदोलन के जरिए सरदार अंग्रेजों को आम लोगों की ताकत का स्वाद चखा चुके थे। मगर इस बार यही आम लोग मुसीबत में थे। यों तो बोरसद में 1932 से ही प्लेग के मामले सामने आ रहे थे, लेकिन 1935 का जून आते-आते इस इलाके के 27 गांवों में 450 से ज्यादा लोग प्लेग का शिकार हो गए। यह खबर लगते ही पटेल ने सबसे पहले भास्कर पटेल नाम के डॉक्टर से हालात को गहराई से समझा। उन्होंने पता किया कि वहां मौजूद संसाधनों के हिसाब से वैज्ञानिक आधार पर क्या किया जा जाना चाहिए। इसके बाद पटेल खुद बोरसद पहुंच गए। चारों ओर हाहाकार मचा था। तमाम गांववाले चूहों और बीमारों के डर से अपने घर छोड़कर खेतों में किसी तरह बसर कर रहे थे। ऐसे माहौल में पटेल ने एक आम के पेड़ के नीचे पंडाल लगा लिया। यही तंबू उनका दफ्तर और घर बन गया। पटेल ने यहीं से वॉलंटियर्स को भर्ती किया। उन्हें प्लेग के खिलाफ लड़ाई में शामिल जोखिम के बारे में बताया। यहीं से उन्होंने आस-पास के अस्पतालों में मरीजों को भर्ती कराने का इंतजाम किया। प्रभावित गांवों में बड़े स्तर पर सफाई अभियान चलाए। गांववालों को प्लेग के खतरों, उससे बचने के तरीकों और बीमार होने पर सावधानियों के बारे में बताने के लिए पर्चे बांटने शुरू किए। सरदार पटेल ने प्लेग का शिकार सभी गांवों में खुद पहुंचे। बाद में महात्मा गांधी भी बोरसद गांव के एक-एक घर में गए और लोगों को सरदार का साथ देने को कहा। एक-एक गांव में खुद गए पटेल इस लड़ाई के दौरान सरदार पटेल एक-एक प्रभावित गांव में खुद पहुंचे। एक ऐसे समय में जब बीमारों के घरवाले ही मारे खौफ के इलाज कराने को तैयार नहीं थे, बीच मैदान-ए-जंग से पटेल की सरदारी ने लोकल वॉलेंटियर्स में ऐसा जोश भरा कि प्लेग की हार तय हो गई। और हुई भी। महात्मा गांधी भी पहुंचे और सरदार की मदद करने को कहा कुछ दिनों बाद ही महात्मा गांधी भी बोरसद पहुंचे। वे भी सरदार पटेल के साथ पेड़ के नीचे वाले तम्बू में रहे। गांधी भी प्रभावित गांवों में पहुंचे। घर-घर जाकर लोगों से मिले। गांधी ने लोगों से सफाई का ध्यान रखने और सरदार पटेल का साथ देने को कहा। सरकार जांच को राजी नहीं हुई तो सरदार ने कमेटी बनाई, पता चला- ब्रिटिश इलाकों के गांवों में 4% टीके लगे, वहीं बड़ौदा राज में 60% बोरसद में प्लेग के लगातार बढ़ते मामलों के बीच तत्कालीन बॉम्बे प्रांत सरकार ने अफसरों की अनदेखी की जांच कराने से इनकार कर दिया। जवाब में सरदार पटेल ने अपनी ओर से एक विशेषज्ञ कमेटी बनाकर जांच कराई। कमेटी ने सरदार पटेल के सरकार पर लगाए आरोपों और उसके जवाब में प्रांत सरकार के कांग्रेस पर लगाए प्रत्यारोपों की जांच की। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सरदार पटेल के आरोपों को सही पाया। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि प्लेग प्रभावित ब्रिटिश इलाकों के गांवों में केवल 4% और शहरों में 25% लोगों की टीके लगा गए थे, जबकि बड़ौदा राज के दोनों इलाकों में 60% लोगों को टीके लग चुके थे। ब्रिटिश सरकार ने किए बड़े-बड़े दावे, 5 हजार टीके लगाए, 2500 रुपए किए खर्च सरदार पटेल और इस लड़ाई में उनका साथ दे रहे दरबार गोपाल दास देसाई ने मार्च 1935 में महामारी के खिलाफ काम शुरू किया। इस बारे में अखबारों में खबरें छपी तो बॉम्बे सरकार ने 27 अप्रैल 1935 को पहली बार बयान जारी कर बड़े-बड़े दावे किए। - प्लेग के मामलों का पता चलते ही सितंबर 1934 में ही चूहे पकडऩे के लिए लोकल बोर्ड ने प्लेग ड्यूटी अफसर तैनात कर दिया था। - इसरामा नाम के गांव में सफाई और टीके लगाने के लिए इंस्पेक्टर को भेजा गया। - फरवरी में एक और प्लेग ड्यूटी अफसर तैनात किया गया। - इससे पहले 1932, 1933 और 1934 में भी कई बार स्पेशल प्लेग ड्यूटी अफसर भेजे गए। - 5000 लोगों को टीके लगाए गए। मार्च तक बोर्ड ने बचाव कार्यों में 2,500 रुपए खर्च किए। पटेल ने चुन-चुनकर दिए जवाब- एक डॉक्टर 5 हजार टीके कैसे लगाता, सिर्फ 1699 रुपए किए खर्च सरदार पटेल और उनकी जांच कमेटी ने सरकार के सभी दावों के चुन-चुनकर जवाब दिए। उन्होंने लिखा, बोरसद में 1932 से ही प्लेग के मामले में सामने आ रहे हैं और सरकार को तीन साल बाद बयान देने की फुर्सत मिली। सरकार ने प्रभावित गांवों की संख्या नहीं बताई। 1932 में केवल एक गांव में प्लेग फैला था। 1933 में ऐसे गांव 10 हो गए। 1934 में संख्या बढ़कर 14 हो गई और 1935 तक 27 गांवों तक यह बीमारी फैल गई। मरने वालों की संख्या 52 से बढ़कर 589 हो गई। सरदार ने पूछा, अगर सरकार सही कदम उठाए होते तो क्या ऐसा होता? - 1932 में तैनात स्पेशल मेडिकल अफसर के पास उपकरण ही नहीं थे। उसे सितंबर में भेजा गया, जबकि अप्रैल तक बड़ी संख्या में प्लेग के मामले सामने आ चुके थे। - दिसंबर 1933 में प्लेग फैला लेकिन तब स्पेशल अफसर को मार्च 1934 में भेजा गया। - टीकाकरण की जानकर अनदेखी की गई। एक ही मेडिकल अफसर को पूरे देहात की जिम्मेदारी दे दी गई। - विरसद में एक ही मेडि़कल अफसर ने छह महीनों में 3 हजार टीके लगाए। इनमें भी 2 हजार टीके केवल पांच सप्ताह में ही लगाए गए। - बोरसद में एक ही डॉक्टर तैनात किया गया, वह पांच हजार से टीके नहीं लगा सकता था। - डॉ. शाह नाम के डॉक्टर ने इतनी खराब तरह से टीके लगा कि लोगों पर इनके बेहद परेशानी उठानी पड़ी, आखिर सरकार को केवल 400 टीके लगाने के बाद ही उन्हें हटाना पड़ा। - बोरसद में प्लेग से प्रभावित इलाकों से 27 प्रवासियों को हटाने या आइसोलेट नहीं किया गया। जबकि तब तक 300 लोगों की मौत हो चुकी थी। - महामारी फैलने के पांच महीनों बाद भी कलेक्टर या असिस्टेंट डायरेक्टर पब्लिक हेल्थ ने इलाके का दौरा नहीं किया। - लोकल बोर्ड ने 2500 रुपए नहीं 2486 रुपए बचाव कार्य में खर्च किए। यह रकम प्रभावित इलाके में नहीं बल्कि पूरे जिले में खर्च की गई। वहीं इसमें 787 रुपए कॉलरा राहत की रकम थी। महामारी में ऐसी ही अगुवाई कर दोबारा न्यूजीलैंड की पीएम बनीं जैसिंडा, ट्रंप कमजोर साबित हुए तो पिछड़े पीएम जैसिंडा अर्डर्न कोरोना से न्यूजीलैंड को बाहर निकाला और दोबारा चुनी गईं। न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न कोरोना के खिलाफ अपनी जबरदस्त लड़ाई के बूते चुनाव में दोबारा शानदार जीत दर्ज की। वहीं, अमेरिका में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को कोरोना के खिलाफ अपने तौर तरीकों के चलते भारी नाराजगी झेलना पड़ रही है। राष्ट्रपति चुनाव में अब तक सामने आए सर्वे में डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन राष्ट्रपति ट्रंप से आगे नजर आ रहे हैं। कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी काफी तेजी से बढ़ी। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें मई 1935 की इस तस्वीर में सरदार पटेल और महात्मा गांधी बोरसद के कैंप में प्लेग के खिलाफ लड़ाई में जुटे बाकी साथियों से बातचीत करते नजर आ रहे हैं। इनके पीछे खड़े हैं महादेव देसाई। https://ift.tt/3eeo1Pr Dainik Bhaskar आज कोरोना है तब प्लेग था, अपनों को छू नहीं रहे थे लोग; पटेल ने बीमारों के बीच तंबू गाड़ा और प्लेग को उखाड़ फेंका
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कोरोना महामारी के दौरान तमाम ऐसे किस्से सामने आए, जिनमें संतानों ने पिता को और भाई ने भाई को छूने से इनकार कर दिया। नेता भी दूर-दूर से कोरोना की लड़ाई लड़ते नजर आए। ऐसे लोगों और नेताओं के लिए भी सरदार पटेल एक नजीर हैं। उन्होंने अंग्रेजों से ही नहीं, बल्कि कोरोना जैसी तब की महामारी, प्लेग से भी जबरदस्त जंग लड़ी। दहशत भरे माहौल के बावजूद बेखौफ पटेल प्लेग के मरीजों के बीच जा पहुंचे। पेड़ के नीचे तंबू गाड़ दिया। आम लोगों को जमा किया और उनके बूते ही प्लेग को मात दे दी।
आम के पेड़ के नीचे पंडाल, वही घर था और वही दफ्तर
बात 1935 की है। गुजरात के मौजूदा आणंद जिले के बोरसद तालुका में प्लेग महामारी बन चुका था। सैकड़ों लोगों की मौत के बाद भी अंग्रेज सरकार इसे लेकर जरा भी गंभीर नहीं थी। तब तक खेड़ा और बारडोली आंदोलन के जरिए सरदार अंग्रेजों को आम लोगों की ताकत का स्वाद चखा चुके थे। मगर इस बार यही आम लोग मुसीबत में थे।
यों तो बोरसद में 1932 से ही प्लेग के मामले सामने आ रहे थे, लेकिन 1935 का जून आते-आते इस इलाके के 27 गांवों में 450 से ज्यादा लोग प्लेग का शिकार हो गए। यह खबर लगते ही पटेल ने सबसे पहले भास्कर पटेल नाम के डॉक्टर से हालात को गहराई से समझा। उन्होंने पता किया कि वहां मौजूद संसाधनों के हिसाब से वैज्ञानिक आधार पर क्या किया जा जाना चाहिए।
इसके बाद पटेल खुद बोरसद पहुंच गए। चारों ओर हाहाकार मचा था। तमाम गांववाले चूहों और बीमारों के डर से अपने घर छोड़कर खेतों में किसी तरह बसर कर रहे थे। ऐसे माहौल में पटेल ने एक आम के पेड़ के नीचे पंडाल लगा लिया। यही तंबू उनका दफ्तर और घर बन गया। पटेल ने यहीं से वॉलंटियर्स को भर्ती किया। उन्हें प्लेग के खिलाफ लड़ाई में शामिल जोखिम के बारे में बताया। यहीं से उन्होंने आस-पास के अस्पतालों में मरीजों को भर्ती कराने का इंतजाम किया। प्रभावित गांवों में बड़े स्तर पर सफाई अभियान चलाए। गांववालों को प्लेग के खतरों, उससे बचने के तरीकों और बीमार होने पर सावधानियों के बारे में बताने के लिए पर्चे बांटने शुरू किए।
सरदार पटेल ने प्लेग का शिकार सभी गांवों में खुद पहुंचे। बाद में महात्मा गांधी भी बोरसद गांव के एक-एक घर में गए और लोगों को सरदार का साथ देने को कहा।
एक-एक गांव में खुद गए पटेल
इस लड़ाई के दौरान सरदार पटेल एक-एक प्रभावित गांव में खुद पहुंचे। एक ऐसे समय में जब बीमारों के घरवाले ही मारे खौफ के इलाज कराने को तैयार नहीं थे, बीच मैदान-ए-जंग से पटेल की सरदारी ने लोकल वॉलेंटियर्स में ऐसा जोश भरा कि प्लेग की हार तय हो गई। और हुई भी।
महात्मा गांधी भी पहुंचे और सरदार की मदद करने को कहा
कुछ दिनों बाद ही महात्मा गांधी भी बोरसद पहुंचे। वे भी सरदार पटेल के साथ पेड़ के नीचे वाले तम्बू में रहे। गांधी भी प्रभावित गांवों में पहुंचे। घर-घर जाकर लोगों से मिले। गांधी ने लोगों से सफाई का ध्यान रखने और सरदार पटेल का साथ देने को कहा।
सरकार जांच को राजी नहीं हुई तो सरदार ने कमेटी बनाई, पता चला- ब्रिटिश इलाकों के गांवों में 4% टीके लगे, वहीं बड़ौदा राज में 60%
बोरसद में प्लेग के लगातार बढ़ते मामलों के बीच तत्कालीन बॉम्बे प्रांत सरकार ने अफसरों की अनदेखी की जांच कराने से इनकार कर दिया। जवाब में सरदार पटेल ने अपनी ओर से एक विशेषज्ञ कमेटी बनाकर जांच कराई। कमेटी ने सरदार पटेल के सरकार पर लगाए आरोपों और उसके जवाब में प्रांत सरकार के कांग्रेस पर लगाए प्रत्यारोपों की जांच की। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सरदार पटेल के आरोपों को सही पाया। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि प्लेग प्रभावित ब्रिटिश इलाकों के गांवों में केवल 4% और शहरों में 25% लोगों की टीके लगा गए थे, जबकि बड़ौदा राज के दोनों इलाकों में 60% लोगों को टीके लग चुके थे।
ब्रिटिश सरकार ने किए बड़े-बड़े दावे, 5 हजार टीके लगाए, 2500 रुपए किए खर्च
सरदार पटेल और इस लड़ाई में उनका साथ दे रहे दरबार गोपाल दास देसाई ने मार्च 1935 में महामारी के खिलाफ काम शुरू किया। इस बारे में अखबारों में खबरें छपी तो बॉम्बे सरकार ने 27 अप्रैल 1935 को पहली बार बयान जारी कर बड़े-बड़े दावे किए।
- प्लेग के मामलों का पता चलते ही सितंबर 1934 में ही चूहे पकडऩे के लिए लोकल बोर्ड ने प्लेग ड्यूटी अफसर तैनात कर दिया था।
- इसरामा नाम के गांव में सफाई और टीके लगाने के लिए इंस्पेक्टर को भेजा गया।
- फरवरी में एक और प्लेग ड्यूटी अफसर तैनात किया गया।
- इससे पहले 1932, 1933 और 1934 में भी कई बार स्पेशल प्लेग ड्यूटी अफसर भेजे गए।
- 5000 लोगों को टीके लगाए गए। मार्च तक बोर्ड ने बचाव कार्यों में 2,500 रुपए खर्च किए।
पटेल ने चुन-चुनकर दिए जवाब- एक डॉक्टर 5 हजार टीके कैसे लगाता, सिर्फ 1699 रुपए किए खर्च
सरदार पटेल और उनकी जांच कमेटी ने सरकार के सभी दावों के चुन-चुनकर जवाब दिए। उन्होंने लिखा, बोरसद में 1932 से ही प्लेग के मामले में सामने आ रहे हैं और सरकार को तीन साल बाद बयान देने की फुर्सत मिली। सरकार ने प्रभावित गांवों की संख्या नहीं बताई। 1932 में केवल एक गांव में प्लेग फैला था। 1933 में ऐसे गांव 10 हो गए। 1934 में संख्या बढ़कर 14 हो गई और 1935 तक 27 गांवों तक यह बीमारी फैल गई। मरने वालों की संख्या 52 से बढ़कर 589 हो गई। सरदार ने पूछा, अगर सरकार सही कदम उठाए होते तो क्या ऐसा होता?
- 1932 में तैनात स्पेशल मेडिकल अफसर के पास उपकरण ही नहीं थे। उसे सितंबर में भेजा गया, जबकि अप्रैल तक बड़ी संख्या में प्लेग के मामले सामने आ चुके थे।
- दिसंबर 1933 में प्लेग फैला लेकिन तब स्पेशल अफसर को मार्च 1934 में भेजा गया।
- टीकाकरण की जानकर अनदेखी की गई। एक ही मेडिकल अफसर को पूरे देहात की जिम्मेदारी दे दी गई।
- विरसद में एक ही मेडि़कल अफसर ने छह महीनों में 3 हजार टीके लगाए। इनमें भी 2 हजार टीके केवल पांच सप्ताह में ही लगाए गए।
- बोरसद में एक ही डॉक्टर तैनात किया गया, वह पांच हजार से टीके नहीं लगा सकता था।
- डॉ. शाह नाम के डॉक्टर ने इतनी खराब तरह से टीके लगा कि लोगों पर इनके बेहद परेशानी उठानी पड़ी, आखिर सरकार को केवल 400 टीके लगाने के बाद ही उन्हें हटाना पड़ा।
- बोरसद में प्लेग से प्रभावित इलाकों से 27 प्रवासियों को हटाने या आइसोलेट नहीं किया गया। जबकि तब तक 300 लोगों की मौत हो चुकी थी।
- महामारी फैलने के पांच महीनों बाद भी कलेक्टर या असिस्टेंट डायरेक्टर पब्लिक हेल्थ ने इलाके का दौरा नहीं किया।
- लोकल बोर्ड ने 2500 रुपए नहीं 2486 रुपए बचाव कार्य में खर्च किए। यह रकम प्रभावित इलाके में नहीं बल्कि पूरे जिले में खर्च की गई। वहीं इसमें 787 रुपए कॉलरा राहत की रकम थी।
महामारी में ऐसी ही अगुवाई कर दोबारा न्यूजीलैंड की पीएम बनीं जैसिंडा, ट्रंप कमजोर साबित हुए तो पिछड़े
पीएम जैसिंडा अर्डर्न कोरोना से न्यूजीलैंड को बाहर निकाला और दोबारा चुनी गईं।
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न कोरोना के खिलाफ अपनी जबरदस्त लड़ाई के बूते चुनाव में दोबारा शानदार जीत दर्ज की। वहीं, अमेरिका में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को कोरोना के खिलाफ अपने तौर तरीकों के चलते भारी नाराजगी झेलना पड़ रही है। राष्ट्रपति चुनाव में अब तक सामने आए सर्वे में डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन राष्ट्रपति ट्रंप से आगे नजर आ रहे हैं। कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी काफी तेजी से बढ़ी।
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मई 1935 की इस तस्वीर में सरदार पटेल और महात्मा गांधी बोरसद के कैंप में प्लेग के खिलाफ लड़ाई में जुटे बाकी साथियों से बातचीत करते नजर आ रहे हैं। इनके पीछे खड़े हैं महादेव देसाई।
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