Demographic change will be good for J&K, says Dr Jitendra Singh
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Demographic change will be good for J&K, says Dr Jitendra Singh
Reviewed by Manish Pethev
on
October 29, 2020
Rating: 5
- Next अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर की चुनावी सरगर्मी के बीच भारत यात्रा बताती है कि भारत और अमेरिका के रिश्ते बहुत गहरे हो चुके हैं। कयास लगाए जा सकते हैं कि क्या इस यात्रा का अमेरिकी चुनाव पर कोई असर पड़ेगा। मेरा मत है कि इस दौरे को चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। असल में अमेरिका के कूटनीतिक और सुरक्षा खेमे की सोच में पिछले एक दशक में मूलभूत बदलाव आया है। जैसे अमेरिका शीत युद्ध के समय रूस को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानता था। उसी प्रकार अब अमेरिका का सुरक्षा तंत्र चीन को सबसे बड़े खतरे के तौर पर देखने लगा है। भारत की समस्या ये थी कि उसने पाकिस्तान पर जरूरत से ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रखा था और चीन के मामले में संभलकर चलने की कोशिश की। लेकिन भारत की मौजूदा सरकार ने अपना पूरा ध्यान चीन पर केंद्रित कर दिया है और ये बात अमेरिका की सुरक्षा व्यवस्था के लिए अच्छी खबर है। चीन ने भी भारत के रुख को बदलने में मदद की है। आखिर चीन ही तो सीमा पर भारत को आंख दिखाता आया है, लेकिन जब 2020 में चीन ने हरकत की तो भारत ने अप्रत्याशित तौर पर कड़ा रुख अपना लिया। चीन के प्रति भारत के रवैये ने अमेरिका को भारत के और करीब ला कर खड़ा कर दिया है। वैश्विक व्यापार (तेल सहित) और उसकी सुरक्षा के लिए अमेरिका को दुनियाभर में आवश्यकतानुसार अपनी सेना उतारने की जरूरत पड़ी। कोविड से पहले ही वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी से गुजर रही थी, लेकिन कोविड ने एक तरह से अर्थव्यवस्था पर रोक ही लगा दी है। ऐसे में अमेरिका चाहता है कि मध्य एशिया से लेकर इंडो पेसिफिक क्षेत्र में जापान और ऑस्ट्रेलिया तक पुलिसिंग करने के लिए उसे पार्टनर मिले, ताकि उसका इस पर खर्च कम हो। इतने बड़े क्षेत्र में अमेरिका की मदद अकेले न तो जापान कर सकता है और न ही ऑस्ट्रेलिया। दोनों देश मिलकर भी अमेरिका के साथ साझेदारी कर लें तो भी काफी नहीं होगा। लेकिन अगर अमेरिका को भारत का साथ मिल जाता है तो वो हिंद महासागर से निश्चिंत हो जा सकता है। उलटे अमेरिका को आर्थिक लाभ भी अप्रत्याशित होगा। मान लीजिए कि भारत हिंद महासागर में सैन्य दखल बढ़ाता है तो जिस तेजी से और जितनी मात्रा में उसे अत्याधुनिक हथियार चाहिए होंगे, उसकी पूर्ति अमेरिका के अलावा कोई और देश नहीं कर सकता। ये बात अमेरिका की वार मशीनरी को पता है। उसको इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि देश की सरकार किस पार्टी के हाथ में है। उसे तो बस ये पता है कि जितने हथियार अमेरिका से भारत खरीद सकता है, उतना कोई और देश नहीं खरीद सकता। लिहाजा भारत से गहरे रिश्ते का मतलब है कि अमेरिका का सैन्य खर्च कम होगा, हथियारों की बिक्री बढ़ जाएगी और चीन को नियंत्रित करना आसान हो जाएगा। भारत अगर साथ आ जाता है तो जापान, ऑस्ट्रेलिया समेत अन्य कई देश साथ आ सकते हैं। क्योंकि भारत के रिश्ते रूस के साथ भी अच्छे हैं, इसलिए चीन से मुकाबला करने में भारत रूस को भी अमेरिका के विरोध में जाने से रोक सकता है। आज अमेरिका में भारत के महत्व पर कोई संदेह नहीं है। अब जब चीन ने खुलकर भारत को सीमा पर ललकार ही दिया है, ऐसे में भारत को भी खुलकर आमना-सामना करने में परहेज नहीं होगा। भारत को पता है कि अगर अमेरिका उसके साथ है तो वो पाकिस्तान को चीन की मदद नहीं करने देगा। भारत की बस एक ही समस्या है। भारत अमेरिका का सहयोगी बनना नहीं चाहता। अमेरिका का सहयोगी होने का मतलब है हर मामले में अमेरिका का साथ देना। भारत ऐसा गठबंधन नहीं चाहता। भारत चीन के मामले में अमेरिका के साथ आ सकता है लेकिन वो अमेरिका के नजरिए से रूस या ईरान या अन्य देशों के पक्ष या विपक्ष में बैठना नहीं चाहता। (जैसा रितेश शुक्ल को बताया) आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें अपर्णा पांडे, डायरेक्टर, इनीशिएटिव ऑन द फ्यूचर ऑफ इंडिया एंड साउथ एशिया (हडसन इंस्टीट्यूट) https://ift.tt/2TASAp3 Dainik Bhaskar अमेरिकी विदेश और रक्षा मंत्री की चुनावी सरगर्मी के बीच भारत यात्रा के मायने
- Previous Air pollution not being tackled effectively, say 75% Delhi-NCR residents in survey