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Show HN: Open-source multi-tier website backups (files & MySQL DBs) using Docker https://ift.tt/2OBOJpk
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Show HN: Open-source multi-tier website backups (files & MySQL DBs) using Docker https://tractorbeam.me/ July 20, 2020 at 05:02AM
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Reviewed by Manish Pethev
on
July 20, 2020
Rating: 5
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- Previous 25 मार्च को पहली बार लॉकडाउन के बाद हजारों किमी पैदल चलकर लौटने वाले श्रमिक अब वापस काम के लिए अलग-अलग राज्यों में लौटने लगे हैं। कोरोना के खतरे के बावजूद। कारण, जिन कंपनी वालों ने, मालिकों ने लॉकडाउन में काम बंद होने पर उन्हें वेतन और आश्रय देने से मना कर दिया था, अब वहीउन्हें 20 हजार रुपए एडवांस, डेढ़ गुना पगार के साथ लौटने के लिए एसी बसें भी भेज रहे हैं। इसके पीछे मुख्य वजह राज्य सरकार की ओर से इन प्रवासी श्रमिकों के लिए लाई जा रही योजनाएं हैं। जिनके कारण अब काफी संख्या में प्रवासी वापस नहीं जाने का मन बना चुके हैं।दैनिक भास्कर की 9 टीमें उन 10 जिलों के 61 गांवों में पहुंची, जहां सबसे अधिक प्रवासी लौटे थे। इनमें 7 जिलों के गांवों से औसतन 50% से ज्यादा लोग वापस काम पर लौट चुके हैं। कुछ जो लौटे हैं, उनकी रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं कि दिल्ली-पंजाब-तेलंगाना आदि में काम कैसा चल रहा।उसी के मुताबिक, वे भी अपना जाने का प्रोग्राम बनाएंगे। कई ऐसे हैं, जिन्हें अपने गांव में ही काम मिल गया और कई अभी अपने गांव-क्षेत्र में ही काम का रास्ता देख रहे हैं। उनका कहना हैं कि हमारी पूरी कोशिश होगी कि लौटना न पड़े। अभी मनरेगा में काम मिल रहा है, लेकिन हम साल के 365 दिन का काम चाहते हैं।पूर्णिया के धीमा में तालाब निर्माण करते मजदूरों में ज्यादातर बाहर से लौटे हैं।ज्यादातर लोगों का मानना है कि सरकार अच्छा प्रयास कर रही है, लेकिनपरदेस जैसी कमाई यहां मुश्किल है। 90 प्रतिशत लोगों ने कहा कि अब फैक्ट्री मालिक और खेती कराने वाले पहले से ज्यादा पैसा दे रहे हैं। लौटने का खर्च और पिछला बकाया भी। इसी कारण अभी परिवार यहीं छोड़कर जा रहे हैं। अगर सब ठीक रहा तो परिवार भी ले जाएंगे। नहीं तो फिर लौटकर तो आना ही है।अररियाःलगभग 300 मजदूर लौटे हैं, कुछ और भी लौटना चाहतेहैंअररिया के भरगामा, धनेसरी, रानीगंज से एसी बसों में कितने लोग लौटे, इसका सरकारी रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन गांव वाले नाम गिनाते जाते हैं। बताते हैं- “बुलाने वाले ने एडवांस में 20-20 हजाररुपए तक दिए। जिन्हें अच्छा लगा- निकल पड़े पिछला दर्द भूलकर।”वैसे, सीमांचल में मनरेगा से मिली राहत दिखती है। बिजली कंपनियों ने भी बड़ी संख्या में लोगों को काम दिया है।लेकिन, इन सभी पर परदेस के ऑफर भारी हैं।भरगामा आसपास के 50 श्रमिकों ने बताया कि बड़ी संख्या में मजदूर लौट रहे हैं। इन्होंने कहा- “दिल्ली में फैक्ट्री खुल गई है, बुलावा आ रहा है।” भटगामा बाजार में 20-25 मजदूरों से बात हुई तो कहा- “लगभग 300 मजदूर लौटे हैं। कुछ और भी लौटना चाह रहे हैं।”किशनगंजः यहां काम नहीं मिला तो वापस दिल्ली लौट जाएंगेतीन गांवों में 150 लोगों से मुलाकात हुई। बहादुरगंज में मिले मजदूरों ने कहा- “हाथों में हुनर है, लेकिन काम नहीं मिल रहा। बाहर थे तो कमाकर भेजते थे। अभी खुद बोझ हैं। मनरेगा से काम मिलता है, मगर रोज नहीं और पैसे भी कम हैं।” तारिक, फैजान, रुस्तम, साकिब, दिलशाद, नजीम कहते हैं कि ढंग का काम मिला तो जरूर रुकेंगे, नहीं तो दिल्ली वापस लौट जाएंगे।नौतन प्रखंड के प्रवासी मजदूरों की तस्वीर। इनमें से ज्यादातर लोग वापस लौटना चाहते हैं।बेतियाः कई लोग पंजाब जाना चाहते हैं13 गांवों के 250 लोगों ने जब लॉकडाउन में अपने लौटने की कहानी सुनाई तो हमारी भी आंखें नम हो गई। उन्होंने कहा कि- भूख और कोरोना में से एक को चुनने की बारी आई तो हमने कोरोना को चुना, इससे बड़ी बीमारी कोई नहीं। इन लोगों से भास्कर टीम ने आग्रह किया कि कुछ ऐसे लोगों से बात करवाएं जो दूसरे राज्यों मेंदोबारा काम पर लग चुके हैं।नवलपुर बलुआ के भूटन राम ने पटियाला से मोबाइल पर कहा- “वहां खेत पर काम कर रहा है। कीमत पहले से अधिक। कोरोना का डर अभी मालिक और श्रमिक दोनों को है...लेकिन मजबूरी दोनों की है। अब काफी लोग उनके पास (पंजाब) जाना चाहते हैं।”मोतिहारीः लोगों को इस बात का डर है कि पुरानी नौकरी मिलेगी कि नहींयहां अलग-अलग गांवों के 125 लोगों से बातचीत की। ढाका प्रखंड में पचपकड़ी पंचायत के रूपौलिया गांव में मिले डेढ़ दर्जन से ज्यादा मजदूरों ने फिर से वापस जाने की बात कही। हरिशंकर प्रसाद, श्यामदेव पासवान ने कहा- जहां-तहां दुकान लगाकर परिवार चलाते थे, अब दिनभर इस चिंता में अकेले बैठे रहते हैं।राम जायसवाल, आशिफ आलम, शाह आलम, मंगल प्रसाद, विनय पासवान, मो. अल्लाउद्दीन...कोरोना से ज्यादा भूख से डरे हुए हैं। पताही के नोनफोरवा में मिले विजय सिंह ढाई महीने से बेकार बैठे हैं। उन्हें इस बात का भी डर है कि लौटे तो उन्हें पुरानी नौकरी भी मिलेगी या नहीं।कटिहार के कुरसेला में मनरेगा के तहत काम करते प्रवासी मजदूर।कटिहारः लगभग 500 मजदूर सूरत और दिल्ली लौट चुके हैंमनरेगा से मजदूरी और जीविका की मदद से काम चला रहे हैं, लेकिन लगभग सभी की नजर वापसी पर ही है। चांदी पंचायत में मिले 125 लोगों में से नयाटोला के मेहरूल, गनी, जालिम, मिनहाज, इस्तेखार, अब्दुल मतीन, जब्बार बताते हैं कि जॉब कार्ड तो बना, मजदूरी भी मिली, लेकिन परदेस जैसी कमाई यहां कहां है। बलरामपुर के आबादपुर और शिकारपुर पंचायत से लगभग 500 मजदूर सूरत और दिल्ली लौट चुके हैं।बोचहां प्रखंड मुख्यालय पर काम मांगने के लिए पहुंचे प्रवासी मजदूर।मुजफ्फरपुरः ज्यादातर लोगों ने गांव में रहकर सब्जी बेचने की बात कहीअनलॉक-1 में पंजाब-हरियाणा से गाड़ियां आकर मीनापुर, मोतीपुर और औराई प्रखंड से काफी संख्या में मजदूरों को ले गईं। जाने वालों को बस समय का इंतजार है। बंदरा प्रखंड के तेपरी गांव में दो दर्जन लोगों से बात हुई। मुंबई से लौटे अमरजीत और विकास 6 लोगों का परिवार नहीं चला पा रहे। हरियाणा में टाइल्स मिस्त्री रहे रजनीश कुमार हालत में सुधार का इंतजार कर रहे हैं।साहेबगंज प्रखंड के जीता छपरा गांव के कौलेश्वर पंडित कहते हैं- “राजस्थान में 15 हजार रुपए महीने का मिलता था, खाना-कमरा फ्री था। वहां से फिर बुलावा है, लेकिन कोरोना में कैसे जाएं। चले भी जाएं और फिर लॉकडाउन हो गया तो क्या करेंगे।बोचहां प्रखंड के सरफुद्दीनपुर समेत आसपास के 5 गांवों में 150 लोगों में से अधिकतर ने सब्जी बेचकर गुजारा करने की बात कही।”दरभंगाः लोगों का कहना है कि सरकार यहीं काम दिला दे तो बेहतर होगाभास्कर की टीम ने यहां चार प्रखंडों के लोगों से बात की। लोगों ने बताया कि194 रुपए का काम, वह भी रोज नहीं। इसलिए, लोग टूट जा रहे हैं। जिसे बुलावा आ रहा, निकल जा रहा। सदर प्रखंड के अतिहर गांव में मंदिर पर 50-60 मजदूर मिले। ललन, ध्यानी, रामचंद्र, लक्ष्मी, रामउद्गार, सुबोध, रमेश, संतोष मंडल सभी ने कहा- जल्दी काम नहीं मिला तो परदेस जाना ही पड़ेगा।हर बाढ़ को झेलने वाले कुशेश्वरस्थान प्रखंड में अलग- अलग जगहों पर 250 लोगों से बात हुई। बहादुरपुर प्रखंड के उसमामठ गांव में मिले 70 लोगों ने कहा कि काम ही नहीं मिल रहा। कई लोगों ने कहा कि सरकार यहीं काम दिला दे तो बेहतर होगा।गया में भास्कर टीम से बात करते श्रमिकों के परिजन।दुबहल गांव में लौटे 65 श्रमिक फिर वापसी की तैयारी में हैं।गयाः यहां के ज्यादातर प्रवासी वापस लौटना चाहते हैंसारा दुख-पीड़ा भूल मजदूर फिर परेदस जाने की तैयारी में हैं। छह गांवों के 250 लोगों से बातचीत में यही निकला। भास्कर टीम जब गुरारू प्रखंड के बरोरह और डबूर पंचायत मुख्यालय पहुंची तो प्रवासी मजदूरों का डाटा अपलोड कैंप लगा था।लुधियाना से अंबा गांव लौटे संजीव कुमार ने कहा- “वहां रोज 600 रुपए कमाता था। यहां संभव नहीं दिख रहा” डबूर गांव के विनय पाल को भी नोएडा जाना है, स्थिति सुधरे तो। रौंदा निवासी मनीष और उसकी पत्नी दिव्यांग हैं। दोनों फिर दिल्ली जाना चाह रहे हैं। इमामगंज प्रखंड के दुबहल गांव में लौटे 65 श्रमिक फिर वापसी की तैयारी में हैं।आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करेंतस्वीर बिहार के कटिहार जिले की है। जहां प्रवासी मजदूरों को वापस ले जाने के लिए एसी बस लगी हुई है।https://ift.tt/3fIsUjO Dainik Bhaskar जिन कंपनियों ने श्रमिकों को भगाया अब वे ही बुला रहे हैं, डेढ़ गुना पगार, एडवांस और एसी बसों का किराया भी दे रहे हैं