दोपहर से पहले का वक्त है। दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल का कैम्पस है। भीड़ न के बराबर है। अस्पताल के बाहर मास्क लगाकर खड़े गार्ड को देखकर ही अंदाज़ा हो जाता है कि दिल्ली में कोरोना के मरीजों में कमी आई है। अस्पताल के अंदर एक हेल्प डेस्क है। यहां अस्पताल में भर्ती मरीजों के परिजन जरूरी सामान भिजवाने और वीडियो कॉल से बात करने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं। इस काउंटर के बगल में ही एक दूसरा कमरा है। वहां कोरोना के टेस्ट के लिए सैंपल इकट्ठा किए जा रहे हैं। कमरे में पीपीई किट पहने डॉक्टर्स और पैरामेडिकल स्टाफ के कुछ लोग मौजूद हैं। इस कमरे के बाहर खड़े रहना मना है, तो एक गार्ड आकर हमें यहां से हटने के लिए कहते हैं। लवलित इसी कमरे से बाहर निकले हैं। वो अस्पताल के पैरा मेडिकल स्टाफ का हिस्सा हैं। कमरे से थोड़ी दूर रखी ईंटों पर वो पीपीई किट पहने हुए बैठे हैं। शायद सुस्ता रहे हैं। जरूरी दूरी बनाए रखते हुए हम लवलित से बातचीत शुरू करते हैं। पहला सवाल यही कि अब स्थिति कैसी है? लवलित हंसते हुए कहते हैं, ‘अब तो थोड़ी राहत है। अगर आप मई या जून के महीने में आते तो यहां खड़े भी नहीं हो पाते। बात करना तो भूल ही जाओ।’ मेडिकल स्टाफ लवलित बताते हैं कि अब दिल्ली में कोरोना काबू में है, हालात सुधर रहे हैं। जांच करने के लिए लाइन में लगे लोगों की तरफ इशारा करते हुए लवलित कहते हैं, ‘ये लोग तो वो हैं जो दिल्ली के अलग-अलग अस्पतालों में काम करते हैं। इनमें से कोई नर्स है और कोई डॉक्टर। आम आदमी तो अब जांच के लिए कम ही आ रहा है।’ मार्च के शुरू में ही दिल्ली में कोरोनावायरस का पहला केस मिला था। उसके बाद स्थिति ऐसी बनी कि डेढ़ महीने में ही दिल्ली में कोरोना के मामले 1510 हो गए और देखते ही देखते दिल्ली देश के उन राज्यों में शामिल हो गई जहां ये वायरस तेजी से पैर पसार रहा है। अभी दिल्ली में कोरोना के कुल मामले 1,28,389 हैं। दिल्ली सरकार भी ये मान रही है कि राजधानी में अब कोरोना पर क़ाबू पा लिया गया है। सरकार ने दिल्ली में मेट्रो को शुरू करने के संकेत भी दिए हैं। दिल्ली के कोविड अस्पतालों में सन्नाटा पसरा है, जब राजधानी में कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़कर 1,30,606 हो चुकी है। राजधानी दिल्ली में लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के अलावा, जीबी पंत अस्पताल, राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटीज हॉस्पिटल, गुरु तेग बहादुर अस्पताल, दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल और डॉ भीम राव अम्बेडकर अस्पताल में जांच एवं इलाज की सुविधा है। इन सभी अस्पतालों में हम गए। हर अस्पताल में एक बेफिक्री और राहत का माहौल दिखा। मरीजों की संख्या कम होने से अस्पताल में काम कर रहे सभी कर्मचारी राहत की सांस लेते हुए मिले। गुरु तेग बहादुर अस्पताल के कोरोना वार्ड के हेल्प डेस्क पर हमें शाहिद मिले। वो लंच करने नहीं जा सके तो वही बैठे-बैठे पैकेट बंद भुजिया खा रहे हैं। पूछने पर बोले, ‘बहुत राहत है। अब तो कुछ है ही नहीं। न जांच के लिए भीड़ है और न ही हर कुछ मिनट पर आ रहे एम्बुलेंस के सायरन की आवाज़ है। भगवान करें कि सब कुछ ऐसा ही रहे।’ कर्मचारी बताते हैं कि अब थोड़ी राहत है, न जांच के लिए भीड़ है और न ही थोड़ी-थोड़ी देर पर आने वाली एंबुलेंस की आवाज ही गूंजती है। लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के अहाते में थोड़ी हलचल मिली थी जिसका ज़िक्र हमने सबसे पहले किया। इसके अलावे बाक़ी सभी सरकारी अस्पतालों में जो दृश्य था वो ठीक वैसा ही था जैसा बारात को विदा कर चुके घर में होता है। सब अलसाए हुए। सब सुस्ताते हुए। बेफिक्री में डूबे हुए हैं। लेकिन उनका क्या हाल है जिनका इलाज अभी भी इन सरकारी अस्पतालों में चल रहा है? क्या अस्पताल के अंदर भर्ती मरीज़ और बाहर उनकी चिंता में टहलते परिवार वाले भी बेफिक्र हैं? क्या वो भी राहत की सांस ले रहे हैं? इन सवालों के जवाब के लिए हम आपको एक बार फिर लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल ले चल रहे हैं। यहां हमें मिले दिलीप। दिलीप के भाई अस्पताल में भर्ती हैं और 21 जुलाई को उनकी निगेटिव रिपोर्ट आई गई थी, लेकिन 24 जलाई तक उन्हें डिस्चार्ज नहीं किया जा सकता है। दिलीप बताते हैं, ‘दो दिन से हम अपने मरीज़ को डिस्चार्ज करवाने के लिए भटक रहे हैं। कोई सुनने वाला नहीं है। हेल्पलाइन नंबर्स काम नहीं करते। मैंने ऐप पर शिकायत करने से लेकर मेल तक किया लेकिन किसी का कोई जवाब नहीं मिला।’ दिल्ली में लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के अलावा, जीबी पंत अस्पताल, राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटीज हॉस्पिटल, गुरु तेग बहादुर अस्पताल, दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल और डॉ भीमराव अम्बेडकर अस्पताल में जांच एवं इलाज की सुविधा है। दिलीप की शिकायत के बारे में लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल का पक्ष जानने के लिए हमने अस्पताल के पीआरओ डॉ अभय से सम्पर्क करने की कई बार कोशिशें कीं लेकिन उनसे सम्पर्क नहीं हो सका। उन्होंने हमारे फोन कॉल्स का जवाब नहीं दिया और मिलने के लिए समय मांगने पर उनकी तरफ से मैसेज आया, ‘मैं अस्पताल में नहीं हूं।’ अब आते हैं इस बात पर कि दिल्ली के कोविड अस्पतालों में सन्नाटा क्यों पसरा है, जब राजधानी में कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़कर 1,30,606 हो चुकी है। जून में दिल्ली सरकार ने माइल्ड सिमटम वाले कोरोना मरीजों को अस्पताल आने की जगह होम आइसोलेशन में रहने की सलाह दी। इस पर विवाद भी हुआ और आखिरी आदेश में सरकार ने कहा कि मरीजों को विकल्प दिया जाएगा। दिल्ली में 6976 मरीज होम आइसोलेशन में हैं। दिल्ली सरकार ने एलएनजेपी में आईसीयू बेड 60 से बढ़ाकर 180 और राजीव गांधी में 45 से बढ़ाकर 200 कर दिए थे। मौजूदा आकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में 6976 मरीज होम आइसोलेशन में हैं। इसके अलावा वक्त रहते दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार ने आनंद विहार रेलवे स्टेशन को पांच सौ बेड की क्षमता वाले आइसोलेशन वार्ड में बदल दिया। जुलाई के पहले हफ्ते में दिल्ली सरकार ने एलएनजेपी में आईसीयू बेड 60 से बढ़ाकर 180 और राजीव गांधी में 45 से बढ़ाकर 200 कर दिए थे। लेकिन ख़तरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है। 24 जुलाई को पत्रकारों से बात करते हुए ख़ुद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि दिल्ली में कोरोना का पीक जा चुका है। कोविड 19 की तुलना 1918 के स्पैनिश फ्लू से भी की जा रही है, जिसमें तीन पीक आए थे। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें दिल्ली के अस्पतालों में अब भीड़ नहीं के बराबर है, यहां काम करने वाले मेडिकल स्टाफ भी राहत की सांस ले रहे हैं। दिल्ली में कोरोना पर अब काबू पाया जा रहा है। https://ift.tt/2OZ46Iv Dainik Bhaskar सुस्ताते बेफिक्र अस्पतालों में माहौल ऐसा, जैसा बारात को विदा कर चुके घर में होता है, हॉस्पिटल में मरीज कम हुए, लेकिन दिल्ली में नहीं
दोपहर से पहले का वक्त है। दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल का कैम्पस है। भीड़ न के बराबर है। अस्पताल के बाहर मास्क लगाकर खड़े गार्ड को देखकर ही अंदाज़ा हो जाता है कि दिल्ली में कोरोना के मरीजों में कमी आई है। अस्पताल के अंदर एक हेल्प डेस्क है। यहां अस्पताल में भर्ती मरीजों के परिजन जरूरी सामान भिजवाने और वीडियो कॉल से बात करने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं।
इस काउंटर के बगल में ही एक दूसरा कमरा है। वहां कोरोना के टेस्ट के लिए सैंपल इकट्ठा किए जा रहे हैं। कमरे में पीपीई किट पहने डॉक्टर्स और पैरामेडिकल स्टाफ के कुछ लोग मौजूद हैं। इस कमरे के बाहर खड़े रहना मना है, तो एक गार्ड आकर हमें यहां से हटने के लिए कहते हैं।
लवलित इसी कमरे से बाहर निकले हैं। वो अस्पताल के पैरा मेडिकल स्टाफ का हिस्सा हैं। कमरे से थोड़ी दूर रखी ईंटों पर वो पीपीई किट पहने हुए बैठे हैं। शायद सुस्ता रहे हैं। जरूरी दूरी बनाए रखते हुए हम लवलित से बातचीत शुरू करते हैं। पहला सवाल यही कि अब स्थिति कैसी है? लवलित हंसते हुए कहते हैं, ‘अब तो थोड़ी राहत है। अगर आप मई या जून के महीने में आते तो यहां खड़े भी नहीं हो पाते। बात करना तो भूल ही जाओ।’
जांच करने के लिए लाइन में लगे लोगों की तरफ इशारा करते हुए लवलित कहते हैं, ‘ये लोग तो वो हैं जो दिल्ली के अलग-अलग अस्पतालों में काम करते हैं। इनमें से कोई नर्स है और कोई डॉक्टर। आम आदमी तो अब जांच के लिए कम ही आ रहा है।’
मार्च के शुरू में ही दिल्ली में कोरोनावायरस का पहला केस मिला था। उसके बाद स्थिति ऐसी बनी कि डेढ़ महीने में ही दिल्ली में कोरोना के मामले 1510 हो गए और देखते ही देखते दिल्ली देश के उन राज्यों में शामिल हो गई जहां ये वायरस तेजी से पैर पसार रहा है। अभी दिल्ली में कोरोना के कुल मामले 1,28,389 हैं। दिल्ली सरकार भी ये मान रही है कि राजधानी में अब कोरोना पर क़ाबू पा लिया गया है। सरकार ने दिल्ली में मेट्रो को शुरू करने के संकेत भी दिए हैं।
राजधानी दिल्ली में लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के अलावा, जीबी पंत अस्पताल, राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटीज हॉस्पिटल, गुरु तेग बहादुर अस्पताल, दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल और डॉ भीम राव अम्बेडकर अस्पताल में जांच एवं इलाज की सुविधा है। इन सभी अस्पतालों में हम गए। हर अस्पताल में एक बेफिक्री और राहत का माहौल दिखा। मरीजों की संख्या कम होने से अस्पताल में काम कर रहे सभी कर्मचारी राहत की सांस लेते हुए मिले।
गुरु तेग बहादुर अस्पताल के कोरोना वार्ड के हेल्प डेस्क पर हमें शाहिद मिले। वो लंच करने नहीं जा सके तो वही बैठे-बैठे पैकेट बंद भुजिया खा रहे हैं। पूछने पर बोले, ‘बहुत राहत है। अब तो कुछ है ही नहीं। न जांच के लिए भीड़ है और न ही हर कुछ मिनट पर आ रहे एम्बुलेंस के सायरन की आवाज़ है। भगवान करें कि सब कुछ ऐसा ही रहे।’
लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के अहाते में थोड़ी हलचल मिली थी जिसका ज़िक्र हमने सबसे पहले किया। इसके अलावे बाक़ी सभी सरकारी अस्पतालों में जो दृश्य था वो ठीक वैसा ही था जैसा बारात को विदा कर चुके घर में होता है। सब अलसाए हुए। सब सुस्ताते हुए। बेफिक्री में डूबे हुए हैं। लेकिन उनका क्या हाल है जिनका इलाज अभी भी इन सरकारी अस्पतालों में चल रहा है? क्या अस्पताल के अंदर भर्ती मरीज़ और बाहर उनकी चिंता में टहलते परिवार वाले भी बेफिक्र हैं? क्या वो भी राहत की सांस ले रहे हैं?
इन सवालों के जवाब के लिए हम आपको एक बार फिर लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल ले चल रहे हैं। यहां हमें मिले दिलीप। दिलीप के भाई अस्पताल में भर्ती हैं और 21 जुलाई को उनकी निगेटिव रिपोर्ट आई गई थी, लेकिन 24 जलाई तक उन्हें डिस्चार्ज नहीं किया जा सकता है। दिलीप बताते हैं, ‘दो दिन से हम अपने मरीज़ को डिस्चार्ज करवाने के लिए भटक रहे हैं। कोई सुनने वाला नहीं है। हेल्पलाइन नंबर्स काम नहीं करते। मैंने ऐप पर शिकायत करने से लेकर मेल तक किया लेकिन किसी का कोई जवाब नहीं मिला।’
दिलीप की शिकायत के बारे में लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल का पक्ष जानने के लिए हमने अस्पताल के पीआरओ डॉ अभय से सम्पर्क करने की कई बार कोशिशें कीं लेकिन उनसे सम्पर्क नहीं हो सका। उन्होंने हमारे फोन कॉल्स का जवाब नहीं दिया और मिलने के लिए समय मांगने पर उनकी तरफ से मैसेज आया, ‘मैं अस्पताल में नहीं हूं।’
अब आते हैं इस बात पर कि दिल्ली के कोविड अस्पतालों में सन्नाटा क्यों पसरा है, जब राजधानी में कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़कर 1,30,606 हो चुकी है। जून में दिल्ली सरकार ने माइल्ड सिमटम वाले कोरोना मरीजों को अस्पताल आने की जगह होम आइसोलेशन में रहने की सलाह दी। इस पर विवाद भी हुआ और आखिरी आदेश में सरकार ने कहा कि मरीजों को विकल्प दिया जाएगा।
मौजूदा आकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में 6976 मरीज होम आइसोलेशन में हैं। इसके अलावा वक्त रहते दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार ने आनंद विहार रेलवे स्टेशन को पांच सौ बेड की क्षमता वाले आइसोलेशन वार्ड में बदल दिया। जुलाई के पहले हफ्ते में दिल्ली सरकार ने एलएनजेपी में आईसीयू बेड 60 से बढ़ाकर 180 और राजीव गांधी में 45 से बढ़ाकर 200 कर दिए थे।
लेकिन ख़तरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है। 24 जुलाई को पत्रकारों से बात करते हुए ख़ुद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि दिल्ली में कोरोना का पीक जा चुका है। कोविड 19 की तुलना 1918 के स्पैनिश फ्लू से भी की जा रही है, जिसमें तीन पीक आए थे।
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