बिस्तर पर लेटे हुए 44 साल के जावेद अहमद टाक फोन पर दिव्यांग लोगों की जानकारी जुटा रहे हैं। वे चल तक नहीं सकते हैं। लेकिन, उन्होंने लॉकडाउन के दौरान 1600 दिव्यांग परिवारों का जिम्मा उठाया है। इनकी टीम जरूरतमंद लोगों तक खाना, दवा और वित्तीय मदद पहुंचा रही है। टाक श्रीनगर से 50 किमी दूर बिजबेहाड़ा में रहते हैं। इन्होंने ह्यूमिनिटी वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन हेल्पलाइन नाम से एक एनजीओ बनाया है, जो दिव्यांगों और आतंक पीड़ितों की मदद करता है। टाक बताते हैं, ‘जब लॉकडाउन शुरू हुआ था तब मैं और मेरी टीम दिव्यांग लोगों की जानकारियां जुटा रहे थे। हम उन्हें पैसे, खाना और दवाएं पहुंचा रहे हैं। कुछ अच्छे साथी टीम में हैं इसलिए हम सबकी मदद कर पा रहे हैं।’ जावेद ने कइयों को बचाया अनंतनाग के बशीर अहमद बताते हैं, ‘वे पैरों से विकलांग हैं और टेलरिंग कर परिवार चलाते हैं। पर लॉकडाउन में काम बंद हो गया। पत्नी और 10 साल के बेटे का पेट भरने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था, लेकिन इस मुश्किल वक्त में जावेद टाक ने हमें बचाया। वे दो महीने से वित्तीय मदद और खाना हम तक पहुंचा रहे हैं।’ अनंतनाग डिग्री कॉलेज से की पढ़ाई टाक कश्मीर में सालों से जारी संघर्ष के शिकार हैं। 1997 से पहले वे एक आम और स्वस्थ कश्मीरी थे। दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन कर चुके थे। जावेद बताते हैं ‘कुछ बंदूकधारी मेरे चाचा का अपहरण करने आए थे। उन्होंने गोलियां चलाईं। इनमें से कुछ मुझे भी लगीं, जिससे मेरी रीढ़ की हड्डी ने हमेशा के लिए शरीर का साथ छोड़ दिया। मैं करीब दो साल तक अस्पताल में रहा। सिर्फ व्हीलचेयर ही मुझे इधर-उधर ले जा सकती थी। इसके बाद शरीर के निचले हिस्से में लकवा मार गया।’ लेकिन इस हादसे के बाद भी जावेद ने 2005-06 में कश्मीर यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया। जावेद की देखभाल के लिए उनकी बहन ने शादी तक नहीं की। हादसे के ठीक पहले ईरान में एमबीबीएस के लिए उनका सिलेक्शन हो चुका था। वे कहते हैं, मेरा सपना टूट गया, इसलिए मैं लोगों से मिले पैसों और दूसरी मदद से दिव्यांगों की मदद करता हूं ताकि उनके सपने सच होते रहें। दिव्यांगों को बुलंदियां छूना सिखाना ही मेरा मिशनः टाक टाक बिजबेहाड़ा में ही दिव्यांग बच्चों के लिए जेबुनिसा हेल्पलाइन स्कूल भी चलाते हैं। यहां फिलहाल 103 बच्चे हैं। वे कहते हैं कि दिव्यांगों में विश्वास जगाना, उन्हें समझाना कि वह भी आसमान छू सकते हैं, अब यही मेरा मिशन है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें जावेद बताते हैं ‘कुछ बंदूकधारी मेरे चाचा का अपहरण करने आए थे। उन्होंने गोलियां चलाईं। इनमें से कुछ मुझे भी लगीं, जिससे मेरी रीढ़ की हड्डी ने हमेशा के लिए शरीर का साथ छोड़ दिया। https://ift.tt/2P05R8k Dainik Bhaskar 20 साल पहले आतंकियों ने गोली मार दी थी, तब से बेड पर हैं, लॉकडाउन में 1600 दिव्यांगों के घर खाना और दवाइयां भेज रहे
बिस्तर पर लेटे हुए 44 साल के जावेद अहमद टाक फोन पर दिव्यांग लोगों की जानकारी जुटा रहे हैं। वे चल तक नहीं सकते हैं। लेकिन, उन्होंने लॉकडाउन के दौरान 1600 दिव्यांग परिवारों का जिम्मा उठाया है। इनकी टीम जरूरतमंद लोगों तक खाना, दवा और वित्तीय मदद पहुंचा रही है। टाक श्रीनगर से 50 किमी दूर बिजबेहाड़ा में रहते हैं।
इन्होंने ह्यूमिनिटी वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन हेल्पलाइन नाम से एक एनजीओ बनाया है, जो दिव्यांगों और आतंक पीड़ितों की मदद करता है। टाक बताते हैं, ‘जब लॉकडाउन शुरू हुआ था तब मैं और मेरी टीम दिव्यांग लोगों की जानकारियां जुटा रहे थे। हम उन्हें पैसे, खाना और दवाएं पहुंचा रहे हैं। कुछ अच्छे साथी टीम में हैं इसलिए हम सबकी मदद कर पा रहे हैं।’
जावेद ने कइयों को बचाया
अनंतनाग के बशीर अहमद बताते हैं, ‘वे पैरों से विकलांग हैं और टेलरिंग कर परिवार चलाते हैं। पर लॉकडाउन में काम बंद हो गया। पत्नी और 10 साल के बेटे का पेट भरने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था, लेकिन इस मुश्किल वक्त में जावेद टाक ने हमें बचाया। वे दो महीने से वित्तीय मदद और खाना हम तक पहुंचा रहे हैं।’
अनंतनाग डिग्री कॉलेज से की पढ़ाई
टाक कश्मीर में सालों से जारी संघर्ष के शिकार हैं। 1997 से पहले वे एक आम और स्वस्थ कश्मीरी थे। दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन कर चुके थे। जावेद बताते हैं ‘कुछ बंदूकधारी मेरे चाचा का अपहरण करने आए थे। उन्होंने गोलियां चलाईं। इनमें से कुछ मुझे भी लगीं, जिससे मेरी रीढ़ की हड्डी ने हमेशा के लिए शरीर का साथ छोड़ दिया।
मैं करीब दो साल तक अस्पताल में रहा। सिर्फ व्हीलचेयर ही मुझे इधर-उधर ले जा सकती थी। इसके बाद शरीर के निचले हिस्से में लकवा मार गया।’ लेकिन इस हादसे के बाद भी जावेद ने 2005-06 में कश्मीर यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया। जावेद की देखभाल के लिए उनकी बहन ने शादी तक नहीं की।
हादसे के ठीक पहले ईरान में एमबीबीएस के लिए उनका सिलेक्शन हो चुका था। वे कहते हैं, मेरा सपना टूट गया, इसलिए मैं लोगों से मिले पैसों और दूसरी मदद से दिव्यांगों की मदद करता हूं ताकि उनके सपने सच होते रहें।
दिव्यांगों को बुलंदियां छूना सिखाना ही मेरा मिशनः टाक
टाक बिजबेहाड़ा में ही दिव्यांग बच्चों के लिए जेबुनिसा हेल्पलाइन स्कूल भी चलाते हैं। यहां फिलहाल 103 बच्चे हैं। वे कहते हैं कि दिव्यांगों में विश्वास जगाना, उन्हें समझाना कि वह भी आसमान छू सकते हैं, अब यही मेरा मिशन है।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/30NMC7I
via IFTTT
No comments:
If you have any suggestions please send me a comment.