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बिहार में चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। चुनाव आयोग जल्द ही तारीखों का ऐलान कर सकता है। कोरोना के चलते इस बार चुनाव थोड़ा बदला सा होगा। इसको लेकर चुनाव आयोग ने गाइडलाइन भी जारी कर दी है। कोरोनाकाल में देश का पहला चुनाव बिहार में ही होगा। इस बार का चुनाव लालू के 15 साल बनाम नीतीश के 15 साल की तर्ज पर होने जा रहा है। एनडीए इसकी घोषणा भी कर चुकी है, तो राजद भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। कुछ दिन पहले लालू यादव ने जेल से ही ट्वीट किया था और नीतीश कुमार के 15 साल की सरकार पर तंज कसा था। पर्दे में रहने दो पर्दा ना उठाओ पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा नीतीश कुमार के पंद्रह साल भ्रम और झूठ का काला काल pic.twitter.com/TSYBiEeSKa — Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) June 27, 2020 इधर चुनाव की सुगबुगाहट तेज होते ही बिहार में पाला बदलने का खेल भी शुरू हो गया है। श्याम रजक जदयू छोड़कर राजद में शामिल हो गए, उधर जीतन राम मांझी महा गठबंधन छोड़कर वापस एनडीए में आ गए हैं। राजद के तीन विधायक और तेज प्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय भी बगावत कर चुके हैं। इन सब के बीच इस बार सत्ता किस ओर करवट लेगी और क्या समीकरण बनेंगे? यह तो चुनाव बाद ही साफ हो पाएगा। पिछले 15 साल से बिहार की राजनीतिक उठापटक को देखें तो नीतीश कुमार 2005 से 2013 तक भाजपा के साथ एनडीए गठबंधन में रहे। फिर नरेंद्र मोदी को भाजपा ने पीएम उम्मीदवार घोषित किया, तो वे गठबंधन से अलग हो गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू को सिर्फ दो सीटें मिलीं, तो नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने। हालांकि, मांझी ज्यादा दिन तक सीएम नहीं रह सके और एक साल बाद उनसे इस्तीफा ले लिया गया और नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बने। 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू, राजद और कांग्रेस का महा-गठबंधन बना। चुनाव में इस गठबंधन को बहुमत भी मिला और नीतीश फिर से सीएम बने, लेकिन यह गठबंधन भी 2017 में टूट गया और नीतीश फिर से एनडीए का हिस्सा हो गए। वही नीतीश जिन्होंने एनडीए से अलग होने के बाद 18 फरवरी 2014 की एक सभा में कहा था ‘मिट्टी में मिल जाऊंगा, लेकिन अब कभी भाजपा के साथ नहीं जाऊंगा। पिछले 15 साल में बिहार में तीन विधानसभा और तीन लोकसभा के चुनाव हुए। इसमें से दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव में नीतीश एनडीए का हिस्सा रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में वे अकेले लड़े, जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में वे महा-गठबंधन का हिस्सा रहे। इस चुनाव में बेरोजगारी का मुद्दा खास हो सकता है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों की लॉकडाउन में नौकरी गई है। 2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार के लोगों को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा। लेकिन 15 साल के बाद भी स्थिति बहुत नहीं बदली है। लॉकडाउन के चलते करीब 40 लाख से ज्यादा श्रमिक बिहार लौटे हैं। इसका मतलब है कि बड़ी संख्या में लोग आज भी दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए जाते हैं। एक सर्वे के मुताबिक, 80 फीसदी श्रमिकों के पास जमीन नहीं है या है भी तो एक एकड़ से कम। ये श्रमिक दूसरे राज्यों में कमाने जाते हैं और अपने घर पैसे भेजते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, औसतन 2100 रुपए एक श्रमिक अपने घर भेजता है। देश में बिहार सबसे ज्यादा रेमिटेंस भेजने वालों में दूसरे पायदान पर है। बिहार की जीडीपी का 5 फीसदी रेमिटेंस से मिलता है। बेरोजगारी में टॉप 3 राज्यों में बिहार भी आज सबसे ज्यादा बेरोजगारी के मामले में बिहार टॉप थ्री स्टेट में शामिल है। तमिलनाडु और झारखंड के बाद बिहार तीसरे नंबर पर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) अप्रैल 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में बेरोजगारी दर 46.6 फीसदी है। 2018-19 में बिहार में बेरोजगारी दर 30.9 फीसदी और 2017-18 में 22.8 फीसदी थी। वहीं जिन राज्यों में बेरोजगारी दर सबसे कम है, उनमें पंजाब, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना है। पंजाब में बेरोजगारी दर सबसे कम 2.9 फीसदी है। 21.6% लोग गरीबी रेखा से बाहर आए प्लानिंग कमीशन के 2012 के डेटा के मुताबिक, बिहार में 33.7 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। 2005 में यह आंकड़ा 55.7 फीसदी था। यानी नीतीश कुमार की सरकार बनने के बाद 7 साल में 21.6 फीसदी लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले। पिछले 15 साल में बिहार की जीडीपी 7 गुना हुई 2006-07 में 1.0 लाख करोड़ रुपए थी, जबकि 2020-2021 में 6.86 लाख करोड़ रुपए है। वर्ष 2018-19 में बिहार की जीडीपी दर 10.53 फीसदी थी। कोरोना के बाद देशभर में इकोनॉमी प्रभावित हुई है, उसका असर बिहार की जीडीपी पर भी होगा। इन 15 सालों में बिहार का बजट करीब 8 गुना बढ़ा है। वित्त मंत्री सुशील मोदी ने इस साल के बजट भाषण में इस बात की जानकारी दी थी। 2004-05 के दौरान बिहार का बजट 23 हजार 885 करोड़ था जो 2020-21 में 2 लाख 11 हजार 761 करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया। 2005 में प्रति व्यक्ति आय 8 हजार रुपए थी। अभी प्रति व्यक्ति आय 43 हजार 822 रुपए है। यानी लगभग 5 गुना ज्यादा। अपराध बिहार के लिए हमेशा से चुनौती रहा है। लालू के समय अपराध की वजह से ही विपक्ष ने जंगलराज का टैग दिया था। हालांकि, नीतीश कुमार के सुशासन राज में भी आंकड़े उनके खिलाफ गवाही देते हैं। बिहार पुलिस के डेटा के मुताबिक, 2005 में 1 लाख 4 हजार 778 मामले दर्ज किए गए। 2019 में 2 लाख 69 हजार 96 मामले हो गए। यानी 2.6 गुना बढ़ गए। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Bihar's GDP grew 7 times in Nitish's 15 years, but 46% people became unemployed after Corona, crime increased 2.6 times https://ift.tt/2FUi2m9 Dainik Bhaskar जीडीपी 7 गुना और बजट आठ गुना बढ़ा, लेकिन सबसे पांच गरीब राज्यों में आज भी शामिल, इस दौरान 2.6 गुना अपराध भी बढ़ा

बिहार में चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। चुनाव आयोग जल्द ही तारीखों का ऐलान कर सकता है। कोरोना के चलते इस बार चुनाव थोड़ा बदला सा होगा। इसको लेकर चुनाव आयोग ने गाइडलाइन भी जारी कर दी है। कोरोनाकाल में देश का पहला चुनाव बिहार में ही होगा।

इस बार का चुनाव लालू के 15 साल बनाम नीतीश के 15 साल की तर्ज पर होने जा रहा है। एनडीए इसकी घोषणा भी कर चुकी है, तो राजद भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। कुछ दिन पहले लालू यादव ने जेल से ही ट्वीट किया था और नीतीश कुमार के 15 साल की सरकार पर तंज कसा था।

इधर चुनाव की सुगबुगाहट तेज होते ही बिहार में पाला बदलने का खेल भी शुरू हो गया है। श्याम रजक जदयू छोड़कर राजद में शामिल हो गए, उधर जीतन राम मांझी महा गठबंधन छोड़कर वापस एनडीए में आ गए हैं। राजद के तीन विधायक और तेज प्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय भी बगावत कर चुके हैं। इन सब के बीच इस बार सत्ता किस ओर करवट लेगी और क्या समीकरण बनेंगे? यह तो चुनाव बाद ही साफ हो पाएगा।

पिछले 15 साल से बिहार की राजनीतिक उठापटक को देखें तो नीतीश कुमार 2005 से 2013 तक भाजपा के साथ एनडीए गठबंधन में रहे। फिर नरेंद्र मोदी को भाजपा ने पीएम उम्मीदवार घोषित किया, तो वे गठबंधन से अलग हो गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू को सिर्फ दो सीटें मिलीं, तो नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने। हालांकि, मांझी ज्यादा दिन तक सीएम नहीं रह सके और एक साल बाद उनसे इस्तीफा ले लिया गया और नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बने।

2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू, राजद और कांग्रेस का महा-गठबंधन बना। चुनाव में इस गठबंधन को बहुमत भी मिला और नीतीश फिर से सीएम बने, लेकिन यह गठबंधन भी 2017 में टूट गया और नीतीश फिर से एनडीए का हिस्सा हो गए। वही नीतीश जिन्होंने एनडीए से अलग होने के बाद 18 फरवरी 2014 की एक सभा में कहा था ‘मिट्टी में मिल जाऊंगा, लेकिन अब कभी भाजपा के साथ नहीं जाऊंगा।

पिछले 15 साल में बिहार में तीन विधानसभा और तीन लोकसभा के चुनाव हुए। इसमें से दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव में नीतीश एनडीए का हिस्सा रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में वे अकेले लड़े, जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में वे महा-गठबंधन का हिस्सा रहे।

इस चुनाव में बेरोजगारी का मुद्दा खास हो सकता है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों की लॉकडाउन में नौकरी गई है। 2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार के लोगों को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा। लेकिन 15 साल के बाद भी स्थिति बहुत नहीं बदली है।

लॉकडाउन के चलते करीब 40 लाख से ज्यादा श्रमिक बिहार लौटे हैं। इसका मतलब है कि बड़ी संख्या में लोग आज भी दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए जाते हैं। एक सर्वे के मुताबिक, 80 फीसदी श्रमिकों के पास जमीन नहीं है या है भी तो एक एकड़ से कम। ये श्रमिक दूसरे राज्यों में कमाने जाते हैं और अपने घर पैसे भेजते हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, औसतन 2100 रुपए एक श्रमिक अपने घर भेजता है। देश में बिहार सबसे ज्यादा रेमिटेंस भेजने वालों में दूसरे पायदान पर है। बिहार की जीडीपी का 5 फीसदी रेमिटेंस से मिलता है।

बेरोजगारी में टॉप 3 राज्यों में बिहार भी

आज सबसे ज्यादा बेरोजगारी के मामले में बिहार टॉप थ्री स्टेट में शामिल है। तमिलनाडु और झारखंड के बाद बिहार तीसरे नंबर पर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) अप्रैल 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में बेरोजगारी दर 46.6 फीसदी है।

2018-19 में बिहार में बेरोजगारी दर 30.9 फीसदी और 2017-18 में 22.8 फीसदी थी। वहीं जिन राज्यों में बेरोजगारी दर सबसे कम है, उनमें पंजाब, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना है। पंजाब में बेरोजगारी दर सबसे कम 2.9 फीसदी है।

21.6% लोग गरीबी रेखा से बाहर आए

प्लानिंग कमीशन के 2012 के डेटा के मुताबिक, बिहार में 33.7 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। 2005 में यह आंकड़ा 55.7 फीसदी था। यानी नीतीश कुमार की सरकार बनने के बाद 7 साल में 21.6 फीसदी लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले।

पिछले 15 साल में बिहार की जीडीपी 7 गुना हुई

2006-07 में 1.0 लाख करोड़ रुपए थी, जबकि 2020-2021 में 6.86 लाख करोड़ रुपए है। वर्ष 2018-19 में बिहार की जीडीपी दर 10.53 फीसदी थी। कोरोना के बाद देशभर में इकोनॉमी प्रभावित हुई है, उसका असर बिहार की जीडीपी पर भी होगा।

इन 15 सालों में बिहार का बजट करीब 8 गुना बढ़ा है। वित्त मंत्री सुशील मोदी ने इस साल के बजट भाषण में इस बात की जानकारी दी थी। 2004-05 के दौरान बिहार का बजट 23 हजार 885 करोड़ था जो 2020-21 में 2 लाख 11 हजार 761 करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया। 2005 में प्रति व्यक्ति आय 8 हजार रुपए थी। अभी प्रति व्यक्ति आय 43 हजार 822 रुपए है। यानी लगभग 5 गुना ज्यादा।

अपराध बिहार के लिए हमेशा से चुनौती रहा है। लालू के समय अपराध की वजह से ही विपक्ष ने जंगलराज का टैग दिया था। हालांकि, नीतीश कुमार के सुशासन राज में भी आंकड़े उनके खिलाफ गवाही देते हैं। बिहार पुलिस के डेटा के मुताबिक, 2005 में 1 लाख 4 हजार 778 मामले दर्ज किए गए। 2019 में 2 लाख 69 हजार 96 मामले हो गए। यानी 2.6 गुना बढ़ गए।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Bihar's GDP grew 7 times in Nitish's 15 years, but 46% people became unemployed after Corona, crime increased 2.6 times


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बिहार में चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। चुनाव आयोग जल्द ही तारीखों का ऐलान कर सकता है। कोरोना के चलते इस बार चुनाव थोड़ा बदला सा होगा। इसको लेकर चुनाव आयोग ने गाइडलाइन भी जारी कर दी है। कोरोनाकाल में देश का पहला चुनाव बिहार में ही होगा। इस बार का चुनाव लालू के 15 साल बनाम नीतीश के 15 साल की तर्ज पर होने जा रहा है। एनडीए इसकी घोषणा भी कर चुकी है, तो राजद भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। कुछ दिन पहले लालू यादव ने जेल से ही ट्वीट किया था और नीतीश कुमार के 15 साल की सरकार पर तंज कसा था। पर्दे में रहने दो पर्दा ना उठाओ पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा नीतीश कुमार के पंद्रह साल भ्रम और झूठ का काला काल pic.twitter.com/TSYBiEeSKa — Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) June 27, 2020 इधर चुनाव की सुगबुगाहट तेज होते ही बिहार में पाला बदलने का खेल भी शुरू हो गया है। श्याम रजक जदयू छोड़कर राजद में शामिल हो गए, उधर जीतन राम मांझी महा गठबंधन छोड़कर वापस एनडीए में आ गए हैं। राजद के तीन विधायक और तेज प्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय भी बगावत कर चुके हैं। इन सब के बीच इस बार सत्ता किस ओर करवट लेगी और क्या समीकरण बनेंगे? यह तो चुनाव बाद ही साफ हो पाएगा। पिछले 15 साल से बिहार की राजनीतिक उठापटक को देखें तो नीतीश कुमार 2005 से 2013 तक भाजपा के साथ एनडीए गठबंधन में रहे। फिर नरेंद्र मोदी को भाजपा ने पीएम उम्मीदवार घोषित किया, तो वे गठबंधन से अलग हो गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू को सिर्फ दो सीटें मिलीं, तो नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने। हालांकि, मांझी ज्यादा दिन तक सीएम नहीं रह सके और एक साल बाद उनसे इस्तीफा ले लिया गया और नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बने। 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू, राजद और कांग्रेस का महा-गठबंधन बना। चुनाव में इस गठबंधन को बहुमत भी मिला और नीतीश फिर से सीएम बने, लेकिन यह गठबंधन भी 2017 में टूट गया और नीतीश फिर से एनडीए का हिस्सा हो गए। वही नीतीश जिन्होंने एनडीए से अलग होने के बाद 18 फरवरी 2014 की एक सभा में कहा था ‘मिट्टी में मिल जाऊंगा, लेकिन अब कभी भाजपा के साथ नहीं जाऊंगा। पिछले 15 साल में बिहार में तीन विधानसभा और तीन लोकसभा के चुनाव हुए। इसमें से दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव में नीतीश एनडीए का हिस्सा रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में वे अकेले लड़े, जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में वे महा-गठबंधन का हिस्सा रहे। इस चुनाव में बेरोजगारी का मुद्दा खास हो सकता है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों की लॉकडाउन में नौकरी गई है। 2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार के लोगों को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा। लेकिन 15 साल के बाद भी स्थिति बहुत नहीं बदली है। लॉकडाउन के चलते करीब 40 लाख से ज्यादा श्रमिक बिहार लौटे हैं। इसका मतलब है कि बड़ी संख्या में लोग आज भी दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए जाते हैं। एक सर्वे के मुताबिक, 80 फीसदी श्रमिकों के पास जमीन नहीं है या है भी तो एक एकड़ से कम। ये श्रमिक दूसरे राज्यों में कमाने जाते हैं और अपने घर पैसे भेजते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, औसतन 2100 रुपए एक श्रमिक अपने घर भेजता है। देश में बिहार सबसे ज्यादा रेमिटेंस भेजने वालों में दूसरे पायदान पर है। बिहार की जीडीपी का 5 फीसदी रेमिटेंस से मिलता है। बेरोजगारी में टॉप 3 राज्यों में बिहार भी आज सबसे ज्यादा बेरोजगारी के मामले में बिहार टॉप थ्री स्टेट में शामिल है। तमिलनाडु और झारखंड के बाद बिहार तीसरे नंबर पर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) अप्रैल 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में बेरोजगारी दर 46.6 फीसदी है। 2018-19 में बिहार में बेरोजगारी दर 30.9 फीसदी और 2017-18 में 22.8 फीसदी थी। वहीं जिन राज्यों में बेरोजगारी दर सबसे कम है, उनमें पंजाब, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना है। पंजाब में बेरोजगारी दर सबसे कम 2.9 फीसदी है। 21.6% लोग गरीबी रेखा से बाहर आए प्लानिंग कमीशन के 2012 के डेटा के मुताबिक, बिहार में 33.7 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। 2005 में यह आंकड़ा 55.7 फीसदी था। यानी नीतीश कुमार की सरकार बनने के बाद 7 साल में 21.6 फीसदी लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले। पिछले 15 साल में बिहार की जीडीपी 7 गुना हुई 2006-07 में 1.0 लाख करोड़ रुपए थी, जबकि 2020-2021 में 6.86 लाख करोड़ रुपए है। वर्ष 2018-19 में बिहार की जीडीपी दर 10.53 फीसदी थी। कोरोना के बाद देशभर में इकोनॉमी प्रभावित हुई है, उसका असर बिहार की जीडीपी पर भी होगा। इन 15 सालों में बिहार का बजट करीब 8 गुना बढ़ा है। वित्त मंत्री सुशील मोदी ने इस साल के बजट भाषण में इस बात की जानकारी दी थी। 2004-05 के दौरान बिहार का बजट 23 हजार 885 करोड़ था जो 2020-21 में 2 लाख 11 हजार 761 करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया। 2005 में प्रति व्यक्ति आय 8 हजार रुपए थी। अभी प्रति व्यक्ति आय 43 हजार 822 रुपए है। यानी लगभग 5 गुना ज्यादा। अपराध बिहार के लिए हमेशा से चुनौती रहा है। लालू के समय अपराध की वजह से ही विपक्ष ने जंगलराज का टैग दिया था। हालांकि, नीतीश कुमार के सुशासन राज में भी आंकड़े उनके खिलाफ गवाही देते हैं। बिहार पुलिस के डेटा के मुताबिक, 2005 में 1 लाख 4 हजार 778 मामले दर्ज किए गए। 2019 में 2 लाख 69 हजार 96 मामले हो गए। यानी 2.6 गुना बढ़ गए। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Bihar's GDP grew 7 times in Nitish's 15 years, but 46% people became unemployed after Corona, crime increased 2.6 times https://ift.tt/2FUi2m9 Dainik Bhaskar जीडीपी 7 गुना और बजट आठ गुना बढ़ा, लेकिन सबसे पांच गरीब राज्यों में आज भी शामिल, इस दौरान 2.6 गुना अपराध भी बढ़ा 

बिहार में चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। चुनाव आयोग जल्द ही तारीखों का ऐलान कर सकता है। कोरोना के चलते इस बार चुनाव थोड़ा बदला सा होगा। इसको लेकर चुनाव आयोग ने गाइडलाइन भी जारी कर दी है। कोरोनाकाल में देश का पहला चुनाव बिहार में ही होगा।

इस बार का चुनाव लालू के 15 साल बनाम नीतीश के 15 साल की तर्ज पर होने जा रहा है। एनडीए इसकी घोषणा भी कर चुकी है, तो राजद भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। कुछ दिन पहले लालू यादव ने जेल से ही ट्वीट किया था और नीतीश कुमार के 15 साल की सरकार पर तंज कसा था।

पर्दे में रहने दो पर्दा ना उठाओ
पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा

नीतीश कुमार के पंद्रह साल
भ्रम और झूठ का काला काल pic.twitter.com/TSYBiEeSKa

— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) June 27, 2020

इधर चुनाव की सुगबुगाहट तेज होते ही बिहार में पाला बदलने का खेल भी शुरू हो गया है। श्याम रजक जदयू छोड़कर राजद में शामिल हो गए, उधर जीतन राम मांझी महा गठबंधन छोड़कर वापस एनडीए में आ गए हैं। राजद के तीन विधायक और तेज प्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय भी बगावत कर चुके हैं। इन सब के बीच इस बार सत्ता किस ओर करवट लेगी और क्या समीकरण बनेंगे? यह तो चुनाव बाद ही साफ हो पाएगा।

पिछले 15 साल से बिहार की राजनीतिक उठापटक को देखें तो नीतीश कुमार 2005 से 2013 तक भाजपा के साथ एनडीए गठबंधन में रहे। फिर नरेंद्र मोदी को भाजपा ने पीएम उम्मीदवार घोषित किया, तो वे गठबंधन से अलग हो गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू को सिर्फ दो सीटें मिलीं, तो नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने। हालांकि, मांझी ज्यादा दिन तक सीएम नहीं रह सके और एक साल बाद उनसे इस्तीफा ले लिया गया और नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बने।

2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू, राजद और कांग्रेस का महा-गठबंधन बना। चुनाव में इस गठबंधन को बहुमत भी मिला और नीतीश फिर से सीएम बने, लेकिन यह गठबंधन भी 2017 में टूट गया और नीतीश फिर से एनडीए का हिस्सा हो गए। वही नीतीश जिन्होंने एनडीए से अलग होने के बाद 18 फरवरी 2014 की एक सभा में कहा था ‘मिट्टी में मिल जाऊंगा, लेकिन अब कभी भाजपा के साथ नहीं जाऊंगा।

पिछले 15 साल में बिहार में तीन विधानसभा और तीन लोकसभा के चुनाव हुए। इसमें से दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव में नीतीश एनडीए का हिस्सा रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में वे अकेले लड़े, जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में वे महा-गठबंधन का हिस्सा रहे।

इस चुनाव में बेरोजगारी का मुद्दा खास हो सकता है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों की लॉकडाउन में नौकरी गई है। 2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार के लोगों को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा। लेकिन 15 साल के बाद भी स्थिति बहुत नहीं बदली है।

लॉकडाउन के चलते करीब 40 लाख से ज्यादा श्रमिक बिहार लौटे हैं। इसका मतलब है कि बड़ी संख्या में लोग आज भी दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए जाते हैं। एक सर्वे के मुताबिक, 80 फीसदी श्रमिकों के पास जमीन नहीं है या है भी तो एक एकड़ से कम। ये श्रमिक दूसरे राज्यों में कमाने जाते हैं और अपने घर पैसे भेजते हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, औसतन 2100 रुपए एक श्रमिक अपने घर भेजता है। देश में बिहार सबसे ज्यादा रेमिटेंस भेजने वालों में दूसरे पायदान पर है। बिहार की जीडीपी का 5 फीसदी रेमिटेंस से मिलता है।

बेरोजगारी में टॉप 3 राज्यों में बिहार भी

आज सबसे ज्यादा बेरोजगारी के मामले में बिहार टॉप थ्री स्टेट में शामिल है। तमिलनाडु और झारखंड के बाद बिहार तीसरे नंबर पर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) अप्रैल 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में बेरोजगारी दर 46.6 फीसदी है।

2018-19 में बिहार में बेरोजगारी दर 30.9 फीसदी और 2017-18 में 22.8 फीसदी थी। वहीं जिन राज्यों में बेरोजगारी दर सबसे कम है, उनमें पंजाब, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना है। पंजाब में बेरोजगारी दर सबसे कम 2.9 फीसदी है।

21.6% लोग गरीबी रेखा से बाहर आए

प्लानिंग कमीशन के 2012 के डेटा के मुताबिक, बिहार में 33.7 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। 2005 में यह आंकड़ा 55.7 फीसदी था। यानी नीतीश कुमार की सरकार बनने के बाद 7 साल में 21.6 फीसदी लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले।

पिछले 15 साल में बिहार की जीडीपी 7 गुना हुई

2006-07 में 1.0 लाख करोड़ रुपए थी, जबकि 2020-2021 में 6.86 लाख करोड़ रुपए है। वर्ष 2018-19 में बिहार की जीडीपी दर 10.53 फीसदी थी। कोरोना के बाद देशभर में इकोनॉमी प्रभावित हुई है, उसका असर बिहार की जीडीपी पर भी होगा।

इन 15 सालों में बिहार का बजट करीब 8 गुना बढ़ा है। वित्त मंत्री सुशील मोदी ने इस साल के बजट भाषण में इस बात की जानकारी दी थी। 2004-05 के दौरान बिहार का बजट 23 हजार 885 करोड़ था जो 2020-21 में 2 लाख 11 हजार 761 करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया। 2005 में प्रति व्यक्ति आय 8 हजार रुपए थी। अभी प्रति व्यक्ति आय 43 हजार 822 रुपए है। यानी लगभग 5 गुना ज्यादा।

अपराध बिहार के लिए हमेशा से चुनौती रहा है। लालू के समय अपराध की वजह से ही विपक्ष ने जंगलराज का टैग दिया था। हालांकि, नीतीश कुमार के सुशासन राज में भी आंकड़े उनके खिलाफ गवाही देते हैं। बिहार पुलिस के डेटा के मुताबिक, 2005 में 1 लाख 4 हजार 778 मामले दर्ज किए गए। 2019 में 2 लाख 69 हजार 96 मामले हो गए। यानी 2.6 गुना बढ़ गए।

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें

Bihar's GDP grew 7 times in Nitish's 15 years, but 46% people became unemployed after Corona, crime increased 2.6 times

https://ift.tt/2FUi2m9 Dainik Bhaskar जीडीपी 7 गुना और बजट आठ गुना बढ़ा, लेकिन सबसे पांच गरीब राज्यों में आज भी शामिल, इस दौरान 2.6 गुना अपराध भी बढ़ा Reviewed by Manish Pethev on August 24, 2020 Rating: 5

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