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निगमबोध घाट पहुंची 32 साल की कुसुम के पिता की मौत आज सुबह ही कोरोना से हुई है। वे दिल्ली के ही एक निजी अस्पताल में बीते पांच दिनों से भर्ती थे। मौत के बाद अस्पताल प्रशासन ने उनके पिता के शव को सील करके अपनी ही गाड़ी से निगमबोध घाट पहुंचाया है। अस्पताल के ही दो कर्मचारी पीपीई किट पहने इस शव को घाट तक लेकर आए हैं। कुसुम ने आखिरी वक्त में अपने पिता का चेहरा भी नहीं देखा था, लिहाजा वे निगमबोध घाट के सेवादारों से हाथ जोड़कर और बिलखते हुए प्रार्थना कर रही हैं कि उन्हें एक आखिरी बार अपने पिता का चेहरा देखने की अनुमति दी जाए। निगमबोध घाट के एक सेवादार कुसुम को समझाते हैं कि कोरोना संक्रमित शवों का चेहरा खोलने की अनुमति नहीं है और ऐसा करने से संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है। लेकिन, अपने पिता के अंतिम दर्शन की कुसुम की जिद को देखते हुए ये सेवादार इसकी अनुमति दे देते हैं। कुसुम के पिता के शव को वापस उसी गाड़ी में कुछ देर के लिए रखा रखा जाता है, जिसमें अस्पताल से उन्हें यहां लाया गया था। पीपीई किट पहने दो लोग शव का चेहरा कुछ सेकंड के लिए खोलते हैं और जल्द ही शव को दोबारा सील करके चिता पर रख दिया जाता है। नाम न छापने की शर्त पर एक सेवादार बताते हैं, 'हम सभी लोग इस महामारी के बीच भी अंतिम संस्कार कर रहे हैं क्योंकि ये धर्म का काम है। इसमें हमें और हमारे परिवार को भी संक्रमण का खतरा है, लेकिन फिर भी हम पूरी लगन से प्रतिदिन दर्जनों लोगों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। हमें सख्त निर्देश हैं कि संक्रमित शवों से परिजनों को भी दूर रखा जाए और उन्हें खोलने की तो बिलकुल भी अनुमति नहीं है। लेकिन एक बेटी के आंसुओं और अपने पिता को अंतिम बार देखने की इच्छा के आगे हम भी बेबस हैं। आम तौर से इस घाट पर औसतन 50 शव प्रतिदिन आते थे। लेकिन इन दिनों सिर्फ़ कोरोना से होने वाली मौतों के चलते ही करीब 25 शव प्रतिदिन आ रहे हैं। मैं खुद एक बेटी का पिता हूं। मैं समझ सकता हूं कि इस बच्ची पर क्या बीत रही होगी। वो अगर आज आखिरी बार अपने पिता का चेहरा नहीं देख पाती तो शायद कभी इस गम से बाहर नहीं निकल पाती इसलिए हमने शव का चेहरा देखने की अनुमति दे दी।' दोपहर के एक बजे तक दिल्ली के निगमबोध घाट पर एक दर्जन से अधिक कोरोना संक्रमित मृतकों का शवदाह किया जा चुका है। इस परिसर में लकड़ी वाली कुल 104 चिताओं को जलाने की व्यवस्था है, जिसमें से 52 चिताओं को कोरोना संक्रमितों के लिए अलग कर दिया गया है। दिल्ली में जिस तेजी से कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ी है, उसका सीधा असर निगमबोध घाट पर देखा जा सकता है जो दिल्ली का सबसे बड़ा श्मशान घाट है। बीते रविवार सिर्फ निगमबोध घाट पर ही कुल 31 कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार किया गया। बीते एक पखवाड़े की बात करें तो इस घाट पर 287 कोरोना संक्रमित शव अग्नि के हवाले किए जा चुके हैं। इस घाट का प्रबंधन देखने वाली ‘बड़ी पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल’ समिति के मुख्य प्रबंधक सुमन कुमार गुप्ता बताते हैं, ‘आम तौर से इस घाट पर औसतन 50 शव प्रतिदिन आते थे। लेकिन इन दिनों सिर्फ कोरोना से होने वाली मौतों के चलते ही करीब 25 शव प्रतिदिन आ रहे हैं और कुल शवों की संख्या तो काफी बढ़ गई है। दो दिन पहले यहां 121 शव एक ही दिन में आए थे। इतनी संख्या पहले कभी नहीं देखी गई।’ आम तौर से निगमबोध घाट पर जो मंत्रों की गूंज सुनाई पड़ती थी, उसकी जगह अब कोरोना के निर्देशों के उद्घोष ने ले ली है। जगह-जगह लगे स्पीकर लोगों को बता रहे हैं कि वे सामाजिक दूरी का ध्यान रखें, घाट के सेवादारों का सहयोग करें और एक शव के साथ अधिकतम 20 ही लोग घाट पर आएं। घाट का नजारा इसलिए भी बदला हुआ दिखता है कि आम तौर पर जहां शव के साथ श्मशान घाट पहुंचा हर व्यक्ति ही शव को कंधा और लकडियां देता नजर आता था वहीं इन दिनों लोग शव के नजदीक जाने से भी बच रहे हैं और पीपीई किट पहने दो-तीन लोग ही शवों को कंधा दे रहे हैं। बीते रविवार सिर्फ निगमबोध घाट पर ही कुल 31 कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार किया गया। घाट के बाहर लगी दुकानें भी कुछ बदली-बदली दिखाई पड़ती हैं। जिन दुकानों पर अंतिम संस्कार से जुड़ी पूजा सामग्री बिका करती थी, वहीं अब पीपीई किट, दस्ताने और फेस शील्ड जैसी चीजें भी बिक रही हैं। ऐसी ही एक दुकान चलाने वाले गौरव बताते हैं, ‘इन दिनों कोरोना संक्रमित शवों की संख्या बढ़ी हैं लेकिन अब पहले जैसा भय लोगों में नहीं है। शुरुआती दौर में तो किसी को मालूम भी नहीं था इन शवों का अंतिम संस्कार कैसे करना है। कोई भी इनके नजदीक तक नहीं आ रहा था और सिर्फ सीएनजी वाले शवग्रहों में ही इन्हें जलाया जा रहा था। लेकिन अब स्थिति थोड़ा अलग है। अब तो इन शवों का भी पूरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार हो रहा है। पिंडदान से लेकर अस्थि विसर्जन तक सभी क्रियाएं पूरी करवाई जा रही हैं।’ निगमबोध घाट पर लकड़ी की चिताओं के साथ ही सीएनजी से चलने वाली भट्टियों में भी शवदाह किया जाता है। कोरोना से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हाल ही में ऐसी तीन नई भट्टियां शुरू की गई हैं। यहां के प्रबंधक सुमन गुप्ता बताते हैं कि नई बनाई गई तीन सीएनजी भट्टियों में से दो का निर्माण इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के सहयोग से और एक का निर्माण ‘बड़ी पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल’ समिति के सहयोग से हुआ है।’ इनके अलावा घाट के पास ही यमुना नदी के किनारे भी 13 प्लेटफॉर्म बने हैं जिन्हें जरूरत पड़ने पर कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बीते 15 दिनों दिल्ली में कोरोना से होने वाली मौतों में काफी तेजी आई है। इस दौरान यहां कई बार सौ से ज्यादा लोगों की प्रतिदिन मौत हुई और एक दिन तो ऐसा भी रहा है जब दिल्ली में हर घंटे पांच लोगों की मौत दर्ज की गई। पूरे देश में कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में दिल्ली की यह संख्या फिलहाल सबसे बड़ी है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें दिल्ली में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। https://ift.tt/3m6plr2 Dainik Bhaskar जिन दुकानों पर अंतिम संस्कार से जुड़ी पूजा सामग्री मिलती थीं, वहां अब पीपीई किट और दस्ताने बिक रहे

निगमबोध घाट पहुंची 32 साल की कुसुम के पिता की मौत आज सुबह ही कोरोना से हुई है। वे दिल्ली के ही एक निजी अस्पताल में बीते पांच दिनों से भर्ती थे। मौत के बाद अस्पताल प्रशासन ने उनके पिता के शव को सील करके अपनी ही गाड़ी से निगमबोध घाट पहुंचाया है।

अस्पताल के ही दो कर्मचारी पीपीई किट पहने इस शव को घाट तक लेकर आए हैं। कुसुम ने आखिरी वक्त में अपने पिता का चेहरा भी नहीं देखा था, लिहाजा वे निगमबोध घाट के सेवादारों से हाथ जोड़कर और बिलखते हुए प्रार्थना कर रही हैं कि उन्हें एक आखिरी बार अपने पिता का चेहरा देखने की अनुमति दी जाए।

निगमबोध घाट के एक सेवादार कुसुम को समझाते हैं कि कोरोना संक्रमित शवों का चेहरा खोलने की अनुमति नहीं है और ऐसा करने से संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है। लेकिन, अपने पिता के अंतिम दर्शन की कुसुम की जिद को देखते हुए ये सेवादार इसकी अनुमति दे देते हैं।

कुसुम के पिता के शव को वापस उसी गाड़ी में कुछ देर के लिए रखा रखा जाता है, जिसमें अस्पताल से उन्हें यहां लाया गया था। पीपीई किट पहने दो लोग शव का चेहरा कुछ सेकंड के लिए खोलते हैं और जल्द ही शव को दोबारा सील करके चिता पर रख दिया जाता है।

नाम न छापने की शर्त पर एक सेवादार बताते हैं, 'हम सभी लोग इस महामारी के बीच भी अंतिम संस्कार कर रहे हैं क्योंकि ये धर्म का काम है। इसमें हमें और हमारे परिवार को भी संक्रमण का खतरा है, लेकिन फिर भी हम पूरी लगन से प्रतिदिन दर्जनों लोगों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। हमें सख्त निर्देश हैं कि संक्रमित शवों से परिजनों को भी दूर रखा जाए और उन्हें खोलने की तो बिलकुल भी अनुमति नहीं है। लेकिन एक बेटी के आंसुओं और अपने पिता को अंतिम बार देखने की इच्छा के आगे हम भी बेबस हैं।

आम तौर से इस घाट पर औसतन 50 शव प्रतिदिन आते थे। लेकिन इन दिनों सिर्फ़ कोरोना से होने वाली मौतों के चलते ही करीब 25 शव प्रतिदिन आ रहे हैं।

मैं खुद एक बेटी का पिता हूं। मैं समझ सकता हूं कि इस बच्ची पर क्या बीत रही होगी। वो अगर आज आखिरी बार अपने पिता का चेहरा नहीं देख पाती तो शायद कभी इस गम से बाहर नहीं निकल पाती इसलिए हमने शव का चेहरा देखने की अनुमति दे दी।'

दोपहर के एक बजे तक दिल्ली के निगमबोध घाट पर एक दर्जन से अधिक कोरोना संक्रमित मृतकों का शवदाह किया जा चुका है। इस परिसर में लकड़ी वाली कुल 104 चिताओं को जलाने की व्यवस्था है, जिसमें से 52 चिताओं को कोरोना संक्रमितों के लिए अलग कर दिया गया है।

दिल्ली में जिस तेजी से कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ी है, उसका सीधा असर निगमबोध घाट पर देखा जा सकता है जो दिल्ली का सबसे बड़ा श्मशान घाट है। बीते रविवार सिर्फ निगमबोध घाट पर ही कुल 31 कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार किया गया।

बीते एक पखवाड़े की बात करें तो इस घाट पर 287 कोरोना संक्रमित शव अग्नि के हवाले किए जा चुके हैं। इस घाट का प्रबंधन देखने वाली ‘बड़ी पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल’ समिति के मुख्य प्रबंधक सुमन कुमार गुप्ता बताते हैं, ‘आम तौर से इस घाट पर औसतन 50 शव प्रतिदिन आते थे। लेकिन इन दिनों सिर्फ कोरोना से होने वाली मौतों के चलते ही करीब 25 शव प्रतिदिन आ रहे हैं और कुल शवों की संख्या तो काफी बढ़ गई है। दो दिन पहले यहां 121 शव एक ही दिन में आए थे। इतनी संख्या पहले कभी नहीं देखी गई।’

आम तौर से निगमबोध घाट पर जो मंत्रों की गूंज सुनाई पड़ती थी, उसकी जगह अब कोरोना के निर्देशों के उद्घोष ने ले ली है। जगह-जगह लगे स्पीकर लोगों को बता रहे हैं कि वे सामाजिक दूरी का ध्यान रखें, घाट के सेवादारों का सहयोग करें और एक शव के साथ अधिकतम 20 ही लोग घाट पर आएं।

घाट का नजारा इसलिए भी बदला हुआ दिखता है कि आम तौर पर जहां शव के साथ श्मशान घाट पहुंचा हर व्यक्ति ही शव को कंधा और लकडियां देता नजर आता था वहीं इन दिनों लोग शव के नजदीक जाने से भी बच रहे हैं और पीपीई किट पहने दो-तीन लोग ही शवों को कंधा दे रहे हैं।

बीते रविवार सिर्फ निगमबोध घाट पर ही कुल 31 कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार किया गया।

घाट के बाहर लगी दुकानें भी कुछ बदली-बदली दिखाई पड़ती हैं। जिन दुकानों पर अंतिम संस्कार से जुड़ी पूजा सामग्री बिका करती थी, वहीं अब पीपीई किट, दस्ताने और फेस शील्ड जैसी चीजें भी बिक रही हैं। ऐसी ही एक दुकान चलाने वाले गौरव बताते हैं, ‘इन दिनों कोरोना संक्रमित शवों की संख्या बढ़ी हैं लेकिन अब पहले जैसा भय लोगों में नहीं है। शुरुआती दौर में तो किसी को मालूम भी नहीं था इन शवों का अंतिम संस्कार कैसे करना है।

कोई भी इनके नजदीक तक नहीं आ रहा था और सिर्फ सीएनजी वाले शवग्रहों में ही इन्हें जलाया जा रहा था। लेकिन अब स्थिति थोड़ा अलग है। अब तो इन शवों का भी पूरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार हो रहा है। पिंडदान से लेकर अस्थि विसर्जन तक सभी क्रियाएं पूरी करवाई जा रही हैं।’

निगमबोध घाट पर लकड़ी की चिताओं के साथ ही सीएनजी से चलने वाली भट्टियों में भी शवदाह किया जाता है। कोरोना से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हाल ही में ऐसी तीन नई भट्टियां शुरू की गई हैं। यहां के प्रबंधक सुमन गुप्ता बताते हैं कि नई बनाई गई तीन सीएनजी भट्टियों में से दो का निर्माण इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के सहयोग से और एक का निर्माण ‘बड़ी पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल’ समिति के सहयोग से हुआ है।’

इनके अलावा घाट के पास ही यमुना नदी के किनारे भी 13 प्लेटफॉर्म बने हैं जिन्हें जरूरत पड़ने पर कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बीते 15 दिनों दिल्ली में कोरोना से होने वाली मौतों में काफी तेजी आई है।

इस दौरान यहां कई बार सौ से ज्यादा लोगों की प्रतिदिन मौत हुई और एक दिन तो ऐसा भी रहा है जब दिल्ली में हर घंटे पांच लोगों की मौत दर्ज की गई। पूरे देश में कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में दिल्ली की यह संख्या फिलहाल सबसे बड़ी है।



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दिल्ली में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।


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निगमबोध घाट पहुंची 32 साल की कुसुम के पिता की मौत आज सुबह ही कोरोना से हुई है। वे दिल्ली के ही एक निजी अस्पताल में बीते पांच दिनों से भर्ती थे। मौत के बाद अस्पताल प्रशासन ने उनके पिता के शव को सील करके अपनी ही गाड़ी से निगमबोध घाट पहुंचाया है। अस्पताल के ही दो कर्मचारी पीपीई किट पहने इस शव को घाट तक लेकर आए हैं। कुसुम ने आखिरी वक्त में अपने पिता का चेहरा भी नहीं देखा था, लिहाजा वे निगमबोध घाट के सेवादारों से हाथ जोड़कर और बिलखते हुए प्रार्थना कर रही हैं कि उन्हें एक आखिरी बार अपने पिता का चेहरा देखने की अनुमति दी जाए। निगमबोध घाट के एक सेवादार कुसुम को समझाते हैं कि कोरोना संक्रमित शवों का चेहरा खोलने की अनुमति नहीं है और ऐसा करने से संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है। लेकिन, अपने पिता के अंतिम दर्शन की कुसुम की जिद को देखते हुए ये सेवादार इसकी अनुमति दे देते हैं। कुसुम के पिता के शव को वापस उसी गाड़ी में कुछ देर के लिए रखा रखा जाता है, जिसमें अस्पताल से उन्हें यहां लाया गया था। पीपीई किट पहने दो लोग शव का चेहरा कुछ सेकंड के लिए खोलते हैं और जल्द ही शव को दोबारा सील करके चिता पर रख दिया जाता है। नाम न छापने की शर्त पर एक सेवादार बताते हैं, 'हम सभी लोग इस महामारी के बीच भी अंतिम संस्कार कर रहे हैं क्योंकि ये धर्म का काम है। इसमें हमें और हमारे परिवार को भी संक्रमण का खतरा है, लेकिन फिर भी हम पूरी लगन से प्रतिदिन दर्जनों लोगों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। हमें सख्त निर्देश हैं कि संक्रमित शवों से परिजनों को भी दूर रखा जाए और उन्हें खोलने की तो बिलकुल भी अनुमति नहीं है। लेकिन एक बेटी के आंसुओं और अपने पिता को अंतिम बार देखने की इच्छा के आगे हम भी बेबस हैं। आम तौर से इस घाट पर औसतन 50 शव प्रतिदिन आते थे। लेकिन इन दिनों सिर्फ़ कोरोना से होने वाली मौतों के चलते ही करीब 25 शव प्रतिदिन आ रहे हैं। मैं खुद एक बेटी का पिता हूं। मैं समझ सकता हूं कि इस बच्ची पर क्या बीत रही होगी। वो अगर आज आखिरी बार अपने पिता का चेहरा नहीं देख पाती तो शायद कभी इस गम से बाहर नहीं निकल पाती इसलिए हमने शव का चेहरा देखने की अनुमति दे दी।' दोपहर के एक बजे तक दिल्ली के निगमबोध घाट पर एक दर्जन से अधिक कोरोना संक्रमित मृतकों का शवदाह किया जा चुका है। इस परिसर में लकड़ी वाली कुल 104 चिताओं को जलाने की व्यवस्था है, जिसमें से 52 चिताओं को कोरोना संक्रमितों के लिए अलग कर दिया गया है। दिल्ली में जिस तेजी से कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ी है, उसका सीधा असर निगमबोध घाट पर देखा जा सकता है जो दिल्ली का सबसे बड़ा श्मशान घाट है। बीते रविवार सिर्फ निगमबोध घाट पर ही कुल 31 कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार किया गया। बीते एक पखवाड़े की बात करें तो इस घाट पर 287 कोरोना संक्रमित शव अग्नि के हवाले किए जा चुके हैं। इस घाट का प्रबंधन देखने वाली ‘बड़ी पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल’ समिति के मुख्य प्रबंधक सुमन कुमार गुप्ता बताते हैं, ‘आम तौर से इस घाट पर औसतन 50 शव प्रतिदिन आते थे। लेकिन इन दिनों सिर्फ कोरोना से होने वाली मौतों के चलते ही करीब 25 शव प्रतिदिन आ रहे हैं और कुल शवों की संख्या तो काफी बढ़ गई है। दो दिन पहले यहां 121 शव एक ही दिन में आए थे। इतनी संख्या पहले कभी नहीं देखी गई।’ आम तौर से निगमबोध घाट पर जो मंत्रों की गूंज सुनाई पड़ती थी, उसकी जगह अब कोरोना के निर्देशों के उद्घोष ने ले ली है। जगह-जगह लगे स्पीकर लोगों को बता रहे हैं कि वे सामाजिक दूरी का ध्यान रखें, घाट के सेवादारों का सहयोग करें और एक शव के साथ अधिकतम 20 ही लोग घाट पर आएं। घाट का नजारा इसलिए भी बदला हुआ दिखता है कि आम तौर पर जहां शव के साथ श्मशान घाट पहुंचा हर व्यक्ति ही शव को कंधा और लकडियां देता नजर आता था वहीं इन दिनों लोग शव के नजदीक जाने से भी बच रहे हैं और पीपीई किट पहने दो-तीन लोग ही शवों को कंधा दे रहे हैं। बीते रविवार सिर्फ निगमबोध घाट पर ही कुल 31 कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार किया गया। घाट के बाहर लगी दुकानें भी कुछ बदली-बदली दिखाई पड़ती हैं। जिन दुकानों पर अंतिम संस्कार से जुड़ी पूजा सामग्री बिका करती थी, वहीं अब पीपीई किट, दस्ताने और फेस शील्ड जैसी चीजें भी बिक रही हैं। ऐसी ही एक दुकान चलाने वाले गौरव बताते हैं, ‘इन दिनों कोरोना संक्रमित शवों की संख्या बढ़ी हैं लेकिन अब पहले जैसा भय लोगों में नहीं है। शुरुआती दौर में तो किसी को मालूम भी नहीं था इन शवों का अंतिम संस्कार कैसे करना है। कोई भी इनके नजदीक तक नहीं आ रहा था और सिर्फ सीएनजी वाले शवग्रहों में ही इन्हें जलाया जा रहा था। लेकिन अब स्थिति थोड़ा अलग है। अब तो इन शवों का भी पूरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार हो रहा है। पिंडदान से लेकर अस्थि विसर्जन तक सभी क्रियाएं पूरी करवाई जा रही हैं।’ निगमबोध घाट पर लकड़ी की चिताओं के साथ ही सीएनजी से चलने वाली भट्टियों में भी शवदाह किया जाता है। कोरोना से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हाल ही में ऐसी तीन नई भट्टियां शुरू की गई हैं। यहां के प्रबंधक सुमन गुप्ता बताते हैं कि नई बनाई गई तीन सीएनजी भट्टियों में से दो का निर्माण इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के सहयोग से और एक का निर्माण ‘बड़ी पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल’ समिति के सहयोग से हुआ है।’ इनके अलावा घाट के पास ही यमुना नदी के किनारे भी 13 प्लेटफॉर्म बने हैं जिन्हें जरूरत पड़ने पर कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बीते 15 दिनों दिल्ली में कोरोना से होने वाली मौतों में काफी तेजी आई है। इस दौरान यहां कई बार सौ से ज्यादा लोगों की प्रतिदिन मौत हुई और एक दिन तो ऐसा भी रहा है जब दिल्ली में हर घंटे पांच लोगों की मौत दर्ज की गई। पूरे देश में कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में दिल्ली की यह संख्या फिलहाल सबसे बड़ी है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें दिल्ली में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। https://ift.tt/3m6plr2 Dainik Bhaskar जिन दुकानों पर अंतिम संस्कार से जुड़ी पूजा सामग्री मिलती थीं, वहां अब पीपीई किट और दस्ताने बिक रहे 

निगमबोध घाट पहुंची 32 साल की कुसुम के पिता की मौत आज सुबह ही कोरोना से हुई है। वे दिल्ली के ही एक निजी अस्पताल में बीते पांच दिनों से भर्ती थे। मौत के बाद अस्पताल प्रशासन ने उनके पिता के शव को सील करके अपनी ही गाड़ी से निगमबोध घाट पहुंचाया है।

अस्पताल के ही दो कर्मचारी पीपीई किट पहने इस शव को घाट तक लेकर आए हैं। कुसुम ने आखिरी वक्त में अपने पिता का चेहरा भी नहीं देखा था, लिहाजा वे निगमबोध घाट के सेवादारों से हाथ जोड़कर और बिलखते हुए प्रार्थना कर रही हैं कि उन्हें एक आखिरी बार अपने पिता का चेहरा देखने की अनुमति दी जाए।

निगमबोध घाट के एक सेवादार कुसुम को समझाते हैं कि कोरोना संक्रमित शवों का चेहरा खोलने की अनुमति नहीं है और ऐसा करने से संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है। लेकिन, अपने पिता के अंतिम दर्शन की कुसुम की जिद को देखते हुए ये सेवादार इसकी अनुमति दे देते हैं।

कुसुम के पिता के शव को वापस उसी गाड़ी में कुछ देर के लिए रखा रखा जाता है, जिसमें अस्पताल से उन्हें यहां लाया गया था। पीपीई किट पहने दो लोग शव का चेहरा कुछ सेकंड के लिए खोलते हैं और जल्द ही शव को दोबारा सील करके चिता पर रख दिया जाता है।

नाम न छापने की शर्त पर एक सेवादार बताते हैं, 'हम सभी लोग इस महामारी के बीच भी अंतिम संस्कार कर रहे हैं क्योंकि ये धर्म का काम है। इसमें हमें और हमारे परिवार को भी संक्रमण का खतरा है, लेकिन फिर भी हम पूरी लगन से प्रतिदिन दर्जनों लोगों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। हमें सख्त निर्देश हैं कि संक्रमित शवों से परिजनों को भी दूर रखा जाए और उन्हें खोलने की तो बिलकुल भी अनुमति नहीं है। लेकिन एक बेटी के आंसुओं और अपने पिता को अंतिम बार देखने की इच्छा के आगे हम भी बेबस हैं।

आम तौर से इस घाट पर औसतन 50 शव प्रतिदिन आते थे। लेकिन इन दिनों सिर्फ़ कोरोना से होने वाली मौतों के चलते ही करीब 25 शव प्रतिदिन आ रहे हैं।

मैं खुद एक बेटी का पिता हूं। मैं समझ सकता हूं कि इस बच्ची पर क्या बीत रही होगी। वो अगर आज आखिरी बार अपने पिता का चेहरा नहीं देख पाती तो शायद कभी इस गम से बाहर नहीं निकल पाती इसलिए हमने शव का चेहरा देखने की अनुमति दे दी।'

दोपहर के एक बजे तक दिल्ली के निगमबोध घाट पर एक दर्जन से अधिक कोरोना संक्रमित मृतकों का शवदाह किया जा चुका है। इस परिसर में लकड़ी वाली कुल 104 चिताओं को जलाने की व्यवस्था है, जिसमें से 52 चिताओं को कोरोना संक्रमितों के लिए अलग कर दिया गया है।

दिल्ली में जिस तेजी से कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ी है, उसका सीधा असर निगमबोध घाट पर देखा जा सकता है जो दिल्ली का सबसे बड़ा श्मशान घाट है। बीते रविवार सिर्फ निगमबोध घाट पर ही कुल 31 कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार किया गया।

बीते एक पखवाड़े की बात करें तो इस घाट पर 287 कोरोना संक्रमित शव अग्नि के हवाले किए जा चुके हैं। इस घाट का प्रबंधन देखने वाली ‘बड़ी पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल’ समिति के मुख्य प्रबंधक सुमन कुमार गुप्ता बताते हैं, ‘आम तौर से इस घाट पर औसतन 50 शव प्रतिदिन आते थे। लेकिन इन दिनों सिर्फ कोरोना से होने वाली मौतों के चलते ही करीब 25 शव प्रतिदिन आ रहे हैं और कुल शवों की संख्या तो काफी बढ़ गई है। दो दिन पहले यहां 121 शव एक ही दिन में आए थे। इतनी संख्या पहले कभी नहीं देखी गई।’

आम तौर से निगमबोध घाट पर जो मंत्रों की गूंज सुनाई पड़ती थी, उसकी जगह अब कोरोना के निर्देशों के उद्घोष ने ले ली है। जगह-जगह लगे स्पीकर लोगों को बता रहे हैं कि वे सामाजिक दूरी का ध्यान रखें, घाट के सेवादारों का सहयोग करें और एक शव के साथ अधिकतम 20 ही लोग घाट पर आएं।

घाट का नजारा इसलिए भी बदला हुआ दिखता है कि आम तौर पर जहां शव के साथ श्मशान घाट पहुंचा हर व्यक्ति ही शव को कंधा और लकडियां देता नजर आता था वहीं इन दिनों लोग शव के नजदीक जाने से भी बच रहे हैं और पीपीई किट पहने दो-तीन लोग ही शवों को कंधा दे रहे हैं।

बीते रविवार सिर्फ निगमबोध घाट पर ही कुल 31 कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार किया गया।

घाट के बाहर लगी दुकानें भी कुछ बदली-बदली दिखाई पड़ती हैं। जिन दुकानों पर अंतिम संस्कार से जुड़ी पूजा सामग्री बिका करती थी, वहीं अब पीपीई किट, दस्ताने और फेस शील्ड जैसी चीजें भी बिक रही हैं। ऐसी ही एक दुकान चलाने वाले गौरव बताते हैं, ‘इन दिनों कोरोना संक्रमित शवों की संख्या बढ़ी हैं लेकिन अब पहले जैसा भय लोगों में नहीं है। शुरुआती दौर में तो किसी को मालूम भी नहीं था इन शवों का अंतिम संस्कार कैसे करना है।

कोई भी इनके नजदीक तक नहीं आ रहा था और सिर्फ सीएनजी वाले शवग्रहों में ही इन्हें जलाया जा रहा था। लेकिन अब स्थिति थोड़ा अलग है। अब तो इन शवों का भी पूरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार हो रहा है। पिंडदान से लेकर अस्थि विसर्जन तक सभी क्रियाएं पूरी करवाई जा रही हैं।’

निगमबोध घाट पर लकड़ी की चिताओं के साथ ही सीएनजी से चलने वाली भट्टियों में भी शवदाह किया जाता है। कोरोना से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हाल ही में ऐसी तीन नई भट्टियां शुरू की गई हैं। यहां के प्रबंधक सुमन गुप्ता बताते हैं कि नई बनाई गई तीन सीएनजी भट्टियों में से दो का निर्माण इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के सहयोग से और एक का निर्माण ‘बड़ी पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल’ समिति के सहयोग से हुआ है।’

इनके अलावा घाट के पास ही यमुना नदी के किनारे भी 13 प्लेटफॉर्म बने हैं जिन्हें जरूरत पड़ने पर कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बीते 15 दिनों दिल्ली में कोरोना से होने वाली मौतों में काफी तेजी आई है।

इस दौरान यहां कई बार सौ से ज्यादा लोगों की प्रतिदिन मौत हुई और एक दिन तो ऐसा भी रहा है जब दिल्ली में हर घंटे पांच लोगों की मौत दर्ज की गई। पूरे देश में कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में दिल्ली की यह संख्या फिलहाल सबसे बड़ी है।

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दिल्ली में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

https://ift.tt/3m6plr2 Dainik Bhaskar जिन दुकानों पर अंतिम संस्कार से जुड़ी पूजा सामग्री मिलती थीं, वहां अब पीपीई किट और दस्ताने बिक रहे Reviewed by Manish Pethev on November 26, 2020 Rating: 5

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