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मानव इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि पूरा विश्व एक साथ संक्रामक बीमारी की चपेट में आ गया और ज्यादातर देशों को एक-दूसरे से अपना फिजिकल संपर्क तक तोड़ना पड़ा। लोगों को घरों में बंद रहना पड़ा, पूरा विश्व करीब-करीब लॉकडाउन में रहा। अमीर हो या गरीब देश कोई भी इस तरह की संक्रामक बीमारी से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं था। बीमारी फैलती जा रही थी। जांच से लेकर इलाज के लिए मरीज और दुनियाभर के देश जद्दोजहद करते दिखे। वर्ष 2020 ने दुनिया के देशों को सिखाया कि मेडिकल क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट कितना उपयोगी और जरूरी है। कोरोना के बाद इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाया गया और बहुत जल्द इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं। महज एक वर्ष से भी कम समय में इतने सारे वैक्सीन प्लेयर एक साथ आ चुके हैं। इस महामारी ने बताया कि निजी और सरकारी क्षेत्र यदि साथ मिलकर काम करें तो न सिर्फ रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिहाज से बल्कि इलाज की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण होगा। यदि दुनिया के विकसित देश भी इस ओर ध्यान देते, तो जो स्थिति 2020 में हुई, वैसी नहीं हाेती। विकसित देशों से विकासशील या गरीब देश भी सीख पाते लेकिन स्थिति ऐसी हुई कि कोई भी देश सिखाने की स्थिति में भी नहीं था। इंसान अपनी गलतियों से सीखता है, यह बात कोरोना काल में भी देखने को मिली है। पूरा विश्व इस संक्रामक बीमारी से निपटने में एकसाथ जुटा और इसके शुरुआती नतीजे भी देखने को मिले हैं। इस महामारी से पहले जीनोम सीक्वेंसिंग जैसे वैज्ञानिक कार्यों पर वैज्ञानिकों का भी ध्यान नहीं होता था। लेकिन कोविड-19 ने यह भी बताया कि जब कोई नया वायरस आता है तो सिर्फ उस वायरस की पहचान करने वाली जांच नहीं करनी है। बल्कि वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग भी जरूरी है, क्योंकि वायरस म्यूटेट करता है और कौन-सा स्ट्रेन कितना घातक होगा इसका अध्ययन बेहद जरूरी है। इसी पर आगे के इलाज से लेकर वैक्सीन डेवलपमेंट भी निर्भर करता है। इस बीमारी ने सिखाया कि कैसे कम से कम समय में जांच किट से लेकर इलाज के लिए दवा हो या तकनीक सब-कुछ विकसित किया जा सकता है। विश्वभर के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने एकसाथ मिलकर काम किया और इसका नतीजा यह रहा कि जांच किट से लेकर इलाज के लिए दवाई बहुत कम समय में दुनियाभर के लिए उपलब्ध हो पाई। देखते ही देखते दुनियाभर में हजारों बेड के हॉस्पिटल तैयार हो गए। बड़े मैदानों को क्वारैंटाइन सेंटरों में बदल दिया गया। हमने वेंटिलेटर की कमी का सामना किया तो दुनियाभर के इनोवेटर आगे आए और भारी-भरकम वेंटिलेटर के आसान विकल्प बना दिए। दुनियाभर में तेजी से किए गए इन प्रयासों ने कोरोना वायरस की रफ्तार को धीमा अवश्य किया। मानवजाति ने मान लिया था कि हम सबके गुरु हैं और कहीं भी पहुंच सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। प्रकृति के सामने किसी की नहीं चलती। उसे बर्बाद करने का नतीजा हम सबके सामने हैं। हम जंगल को खत्म कर रहे हैं, इससे पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है। इन सबका नतीजा बहुत खतरनाक हुआ है, जानवरों के अंदर के वायरस इंसानों में आ रहे हैं। स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण भी हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनेगी, तभी ऐसे अदृश्य खतरों को रोका जा सकता है। कोरोना ने ही सिखाया कि कैसे आपदा में एक साथ मिलकर काम करने से किसी भी तरह की चुनौती से निपटा जा सकता है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने एकसाथ कई बार ऑनलाइन बैठकें कीं और हर देश ने एक-दूसरे से अपने अनुभव साझा किये। जिसके परिणाम स्वरूप एक समय खतरनाक रूप ले रहे वायरस के बढ़ते दुष्प्रभाव को रोका गया। अब उम्मीद है कि वैक्सीन के प्रोडक्शन में भारत का लोहा दुनिया मानेगी क्योंकि विश्व की बड़ी आबादी को वैक्सीन की जरूरत भारत ही पूरी करेगा। विश्व के लोगों को सस्ती वैक्सीन तभी मिलेगी जब भारत में बड़े पैमाने पर वैक्सीन का उत्पादन होगा। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें सौम्या स्वामीनाथन, चीफ साइंटिस्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन https://ift.tt/37ZsKTM Dainik Bhaskar 2020 ने दुनिया को सिखाया कि मेडिकल क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट उपयोगी और जरूरी है

मानव इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि पूरा विश्व एक साथ संक्रामक बीमारी की चपेट में आ गया और ज्यादातर देशों को एक-दूसरे से अपना फिजिकल संपर्क तक तोड़ना पड़ा। लोगों को घरों में बंद रहना पड़ा, पूरा विश्व करीब-करीब लॉकडाउन में रहा।

अमीर हो या गरीब देश कोई भी इस तरह की संक्रामक बीमारी से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं था। बीमारी फैलती जा रही थी। जांच से लेकर इलाज के लिए मरीज और दुनियाभर के देश जद्दोजहद करते दिखे। वर्ष 2020 ने दुनिया के देशों को सिखाया कि मेडिकल क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट कितना उपयोगी और जरूरी है।

कोरोना के बाद इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाया गया और बहुत जल्द इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं। महज एक वर्ष से भी कम समय में इतने सारे वैक्सीन प्लेयर एक साथ आ चुके हैं। इस महामारी ने बताया कि निजी और सरकारी क्षेत्र यदि साथ मिलकर काम करें तो न सिर्फ रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिहाज से बल्कि इलाज की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण होगा।

यदि दुनिया के विकसित देश भी इस ओर ध्यान देते, तो जो स्थिति 2020 में हुई, वैसी नहीं हाेती। विकसित देशों से विकासशील या गरीब देश भी सीख पाते लेकिन स्थिति ऐसी हुई कि कोई भी देश सिखाने की स्थिति में भी नहीं था। इंसान अपनी गलतियों से सीखता है, यह बात कोरोना काल में भी देखने को मिली है।

पूरा विश्व इस संक्रामक बीमारी से निपटने में एकसाथ जुटा और इसके शुरुआती नतीजे भी देखने को मिले हैं। इस महामारी से पहले जीनोम सीक्वेंसिंग जैसे वैज्ञानिक कार्यों पर वैज्ञानिकों का भी ध्यान नहीं होता था। लेकिन कोविड-19 ने यह भी बताया कि जब कोई नया वायरस आता है तो सिर्फ उस वायरस की पहचान करने वाली जांच नहीं करनी है।

बल्कि वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग भी जरूरी है, क्योंकि वायरस म्यूटेट करता है और कौन-सा स्ट्रेन कितना घातक होगा इसका अध्ययन बेहद जरूरी है। इसी पर आगे के इलाज से लेकर वैक्सीन डेवलपमेंट भी निर्भर करता है।

इस बीमारी ने सिखाया कि कैसे कम से कम समय में जांच किट से लेकर इलाज के लिए दवा हो या तकनीक सब-कुछ विकसित किया जा सकता है। विश्वभर के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने एकसाथ मिलकर काम किया और इसका नतीजा यह रहा कि जांच किट से लेकर इलाज के लिए दवाई बहुत कम समय में दुनियाभर के लिए उपलब्ध हो पाई।

देखते ही देखते दुनियाभर में हजारों बेड के हॉस्पिटल तैयार हो गए। बड़े मैदानों को क्वारैंटाइन सेंटरों में बदल दिया गया। हमने वेंटिलेटर की कमी का सामना किया तो दुनियाभर के इनोवेटर आगे आए और भारी-भरकम वेंटिलेटर के आसान विकल्प बना दिए। दुनियाभर में तेजी से किए गए इन प्रयासों ने कोरोना वायरस की रफ्तार को धीमा अवश्य किया।
मानवजाति ने मान लिया था कि हम सबके गुरु हैं और कहीं भी पहुंच सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। प्रकृति के सामने किसी की नहीं चलती। उसे बर्बाद करने का नतीजा हम सबके सामने हैं। हम जंगल को खत्म कर रहे हैं, इससे पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है। इन सबका नतीजा बहुत खतरनाक हुआ है, जानवरों के अंदर के वायरस इंसानों में आ रहे हैं। स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण भी हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनेगी, तभी ऐसे अदृश्य खतरों को रोका जा सकता है।
कोरोना ने ही सिखाया कि कैसे आपदा में एक साथ मिलकर काम करने से किसी भी तरह की चुनौती से निपटा जा सकता है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने एकसाथ कई बार ऑनलाइन बैठकें कीं और हर देश ने एक-दूसरे से अपने अनुभव साझा किये। जिसके परिणाम स्वरूप एक समय खतरनाक रूप ले रहे वायरस के बढ़ते दुष्प्रभाव को रोका गया। अब उम्मीद है कि वैक्सीन के प्रोडक्शन में भारत का लोहा दुनिया मानेगी क्योंकि विश्व की बड़ी आबादी को वैक्सीन की जरूरत भारत ही पूरी करेगा। विश्व के लोगों को सस्ती वैक्सीन तभी मिलेगी जब भारत में बड़े पैमाने पर वैक्सीन का उत्पादन होगा।



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सौम्या स्वामीनाथन, चीफ साइंटिस्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन


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मानव इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि पूरा विश्व एक साथ संक्रामक बीमारी की चपेट में आ गया और ज्यादातर देशों को एक-दूसरे से अपना फिजिकल संपर्क तक तोड़ना पड़ा। लोगों को घरों में बंद रहना पड़ा, पूरा विश्व करीब-करीब लॉकडाउन में रहा।

अमीर हो या गरीब देश कोई भी इस तरह की संक्रामक बीमारी से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं था। बीमारी फैलती जा रही थी। जांच से लेकर इलाज के लिए मरीज और दुनियाभर के देश जद्दोजहद करते दिखे। वर्ष 2020 ने दुनिया के देशों को सिखाया कि मेडिकल क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट कितना उपयोगी और जरूरी है।

कोरोना के बाद इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाया गया और बहुत जल्द इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं। महज एक वर्ष से भी कम समय में इतने सारे वैक्सीन प्लेयर एक साथ आ चुके हैं। इस महामारी ने बताया कि निजी और सरकारी क्षेत्र यदि साथ मिलकर काम करें तो न सिर्फ रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिहाज से बल्कि इलाज की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण होगा।

यदि दुनिया के विकसित देश भी इस ओर ध्यान देते, तो जो स्थिति 2020 में हुई, वैसी नहीं हाेती। विकसित देशों से विकासशील या गरीब देश भी सीख पाते लेकिन स्थिति ऐसी हुई कि कोई भी देश सिखाने की स्थिति में भी नहीं था। इंसान अपनी गलतियों से सीखता है, यह बात कोरोना काल में भी देखने को मिली है।

पूरा विश्व इस संक्रामक बीमारी से निपटने में एकसाथ जुटा और इसके शुरुआती नतीजे भी देखने को मिले हैं। इस महामारी से पहले जीनोम सीक्वेंसिंग जैसे वैज्ञानिक कार्यों पर वैज्ञानिकों का भी ध्यान नहीं होता था। लेकिन कोविड-19 ने यह भी बताया कि जब कोई नया वायरस आता है तो सिर्फ उस वायरस की पहचान करने वाली जांच नहीं करनी है।

बल्कि वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग भी जरूरी है, क्योंकि वायरस म्यूटेट करता है और कौन-सा स्ट्रेन कितना घातक होगा इसका अध्ययन बेहद जरूरी है। इसी पर आगे के इलाज से लेकर वैक्सीन डेवलपमेंट भी निर्भर करता है।

इस बीमारी ने सिखाया कि कैसे कम से कम समय में जांच किट से लेकर इलाज के लिए दवा हो या तकनीक सब-कुछ विकसित किया जा सकता है। विश्वभर के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने एकसाथ मिलकर काम किया और इसका नतीजा यह रहा कि जांच किट से लेकर इलाज के लिए दवाई बहुत कम समय में दुनियाभर के लिए उपलब्ध हो पाई।

देखते ही देखते दुनियाभर में हजारों बेड के हॉस्पिटल तैयार हो गए। बड़े मैदानों को क्वारैंटाइन सेंटरों में बदल दिया गया। हमने वेंटिलेटर की कमी का सामना किया तो दुनियाभर के इनोवेटर आगे आए और भारी-भरकम वेंटिलेटर के आसान विकल्प बना दिए। दुनियाभर में तेजी से किए गए इन प्रयासों ने कोरोना वायरस की रफ्तार को धीमा अवश्य किया।
मानवजाति ने मान लिया था कि हम सबके गुरु हैं और कहीं भी पहुंच सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। प्रकृति के सामने किसी की नहीं चलती। उसे बर्बाद करने का नतीजा हम सबके सामने हैं। हम जंगल को खत्म कर रहे हैं, इससे पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है। इन सबका नतीजा बहुत खतरनाक हुआ है, जानवरों के अंदर के वायरस इंसानों में आ रहे हैं। स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण भी हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनेगी, तभी ऐसे अदृश्य खतरों को रोका जा सकता है।
कोरोना ने ही सिखाया कि कैसे आपदा में एक साथ मिलकर काम करने से किसी भी तरह की चुनौती से निपटा जा सकता है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने एकसाथ कई बार ऑनलाइन बैठकें कीं और हर देश ने एक-दूसरे से अपने अनुभव साझा किये। जिसके परिणाम स्वरूप एक समय खतरनाक रूप ले रहे वायरस के बढ़ते दुष्प्रभाव को रोका गया। अब उम्मीद है कि वैक्सीन के प्रोडक्शन में भारत का लोहा दुनिया मानेगी क्योंकि विश्व की बड़ी आबादी को वैक्सीन की जरूरत भारत ही पूरी करेगा। विश्व के लोगों को सस्ती वैक्सीन तभी मिलेगी जब भारत में बड़े पैमाने पर वैक्सीन का उत्पादन होगा।

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सौम्या स्वामीनाथन, चीफ साइंटिस्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन

https://ift.tt/37ZsKTM Dainik Bhaskar 2020 ने दुनिया को सिखाया कि मेडिकल क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट उपयोगी और जरूरी है Reviewed by Manish Pethev on December 30, 2020 Rating: 5

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