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Kathiawadi Stuffed Onion Recipe for those who love spicy food, it will double the fun of eating
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Reviewed by Manish Pethev
on
December 29, 2020
Rating: 5
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- Next मेरठ के रहने वाले अमित त्यागी ने MBA किया है। कई साल तक उन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी सैलरी पर काम किया। लेकिन, पत्नी की सलाह पर अपना जमा-जमाया काम छोड़कर गांव लौटने का फैसला किया। 20 साल पहले उन्होंने एक किलो केंचुए के साथ वर्मीकंपोस्ट बनाना शुरू किया था। आज उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उड़ीसा, असम समेत 14 राज्यों में उनकी करीब आठ हजार यूनिट हैं। इससे वे सालाना एक करोड़ रुपए कमा रहे हैं। 49 साल के अमित कहते हैं, "मेरी पत्नी ने भी MBA किया है। उन्हें एक कार्यक्रम में वर्मीकंपोस्ट तैयार करने की जानकारी मिली थी। उसके बाद उन्होंने कुछ ऐसा ही काम शुरू करने पर जोर दिया। फिर हमने तय किया कि कोशिश करके देखते हैं। काम शुरू करने के बाद हमने पहला सैंपल एक नर्सरी वाले को बेचा। करीब हफ्तेभर बाद नर्सरी वाला फिर से खाद की डिमांड करने लगा। खाद तैयार नहीं थी, तो हमने बहाना बनाया और कह दिया कि खाद 10 रुपए प्रति किलो है। हालांकि उस समय खाद की कीमत महज 50 पैसे प्रति किलो थी। नर्सरी वाला उसे 10 रुपए किलो में खरीदने के लिए तैयार हो गया।" अमित बताते हैं कि इससे हमारा मनोबल बढ़ा और लगा कि इस कारोबार को आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन, ये सफर आसान नहीं था। तब बहुत कम लोग ऑर्गेनिक खेती करते थे। ज्यादातर लोग तो इसके बारे में जानते तक नहीं थे। ऐसी स्थिति में केमिकल फर्टिलाइजर की जगह वर्मीकंपोस्ट खरीदने के लिए लोगों को समझाना मुश्किल टास्क था। फिर उन्होंने अपनी मार्केटिंग स्किल्स का इस्तेमाल शुरू किया। अमित मेरठ में हर महीने 100 टन से ज्यादा खाद तैयार करते हैं। देश के 14 राज्यों में उनके प्लांट हैं। अमित ने गांवों का दौरा करना शुरू किया। वे हर दिन किसी न किसी गांव में जाते और चौपाल लगाकर लोगों को वर्मीकंपोस्ट के बारे में बताते थे। इस तरह धीरे-धीरे लोग उनसे जुड़ते गए। अब वे देशभर में अपना खाद सप्लाई कर रहे हैं। कई लोगों ने तो एडवांस बुकिंग कर ली है। उन्होंने मेरठ में ही 300 से ज्यादा वर्मीकंपोस्ट बेड लगाए हैं। हर महीने वे 100 टन से ज्यादा खाद तैयार करते हैं। वर्मीकंपोस्ट कैसे तैयार की जाती है अमित बताते हैं कि वर्मीकंपोस्ट तैयार करने के कई तरीके हैं। लोग अपनी सुविधा के मुताबिक कोई भी तरीका अपना सकते हैं। सबसे आसान तरीका है बेड सिस्टम। इसमें तीन से चार फीट चौड़ा और जरूरत के हिसाब से लंबा बेड बनाया जाता है। इसके लिए जमीन पर प्लास्टिक डाल दी जाती है। फिर उसके चारों तरह ईंट से बाउंड्री दी जाती है। बीच में गोबर डालकर उसे अच्छी तरह से फैला दिया जाता है। उसके बाद केंचुआ डालकर ऊपर से पुआल या घासफूस डालकर ढंक दिया जाता है। फिर इसके ऊपर नियमित रूप से पानी का छिड़काव किया जाता है। बेड की लंबाई कितनी हो, गोबर और केंचुआ का अनुपात क्या हो, इसको लेकर वे कहते हैं कि किसान अपनी जरूरत के हिसाब से बेड की लंबाई रख सकता है। लेकिन उसे ध्यान रखना होगा कि उसी अनुपात में उसके पास मटेरियल भी होना चाहिए। अमूमन एक फिट लंबे बेड के लिए 50 किलो गोबर की जरूरत होती है। अगर हम 30 फीट लंबा बेड बना रहे हैं तो हमें 1500 किलो गोबर और 30 किलो केंचुआ चाहिए। वर्मीकंपोस्ट बनने के बाद ऊपर से खाद निकाल ली जाती है, नीचे जो बचता है, उसमें केंचुए होते हैं। वहां से जरूरत के हिसाब से केंचुए निकालकर दूसरे बेड पर डाले जा सकते हैं। अगर किसी किसान के पास गोबर की उपलब्धता कम है, तो वह 30 फीसदी गोबर और बाकी घासफूस या ऐसी कोई भी चीज मिला सकता है जो आसानी से सड़ सके। एक फुट के बेड के लिए एक किलो केंचुए की जरूरत होती है। अगर केंचुआ कम होगा, तो खाद तैयार होने में वक्त ज्यादा लगेगा। पर्याप्त तौर पर सभी चीजें मिलाने के बाद 30 फीट लंबे बेड से खाद बनने में एक महीने का वक्त लगता है। अमित कहते हैं कि केंचुए की कई प्रजातियां होती हैं। मैं जो यूज करता हूं, वो है आस्ट्रेलियाई आइसोनिया फेटिडा। यह एक दिन में एक किलो गोबर खाता है और वह डबल भी हो जाता है। यानी जो लोग खाद के साथ केंचुए का बिजनेस करना चाहते हैं, उनके लिए यह बेहतर विकल्प है। इसके लिए क्या- क्या चीजें जरूरी हैं? अमित के मुताबिक, इसके लिए सबसे जरूरी चीज जमीन और उसकी लोकेशन है। जमीन ऐसी जगह होनी चाहिए, जहां पानी उपलब्ध हो और वहां आने-जाने के लिए रास्ता हो। ये भी ध्यान रखना जरूरी है कि वहां जलजमाव न होता हो। इसके बाद लंबी प्लास्टिक शीट, गोबर, पुआल और केंचुए की जरूरत होती है। अमित देशभर में सजग इंटरनेशनल ब्रांड के नाम से केंचुआ खाद बेचते हैं। नर्सरी, घरेलू बागवानी, खेत और पॉली हाउस में इनके खाद की सप्लाई होती है। क्या- क्या सावधानियां जरूरी हैं? अमित बताते हैं कि गोबर 15-20 दिन से ज्यादा पुराना नहीं चाहिए। ऐसा होने पर गोबर में पाई जाने वाली मीथेन गैस केंचुए के लिए नुकसानदायक हो जाती है। इसके साथ ही नियमित रूप से पानी का छिड़काव जरूरी है। साथ ही बेड की ऊंचाई डेढ़ फीट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। कम लागत में ज्यादा मुनाफा कैसे कमाएं? अमित हजारों किसानों को ट्रेंड कर चुके हैं। वे कहते हैं कि वर्मीकंपोस्ट तैयार करने के लिए बहुत ज्यादा लागत की जरूरत नहीं होती। बहुत कम लागत से इसकी शुरुआत की जा सकती है। हमें पहले एक बेड से शुरुआत करनी चाहिए। वो बेड तैयार हो जाए, तो उसी के केंचुए से दूसरी और फिर ऐसे करके तीसरी, चौथी बेड तैयार करनी चाहिए। वर्मीकंपोस्ट बनने के बाद ऊपर से खाद निकाल ली जाती है और नीचे जो बचता है, उसमें केंचुए होते हैं। वहां से जरूरत के हिसाब से केंचुए निकालकर दूसरे बेड पर डाले जा सकते हैं। ऐसा करने से हमें बार-बार केंचुआ खरीदने की जरूरत नहीं होगी। उनके मुताबिक खाद की लागत 3 रुपए प्रति किलो आती है। वह इसे थोक में छह रुपए से लेकर बीस रुपए प्रति किलो तक बेचते हैं। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें मेरठ के रहने वाले अमित त्यागी ने 20 साल पहले एक किलो केंचुए के साथ वर्मीकंपोस्ट बनाना शुरू किया था। अब वे देशभर में खाद सप्लाई करते हैं। https://ift.tt/3aQD0zp Dainik Bhaskar लाखों की नौकरी छोड़ वर्मीकंपोस्ट बनाना शुरू किया; 14 राज्यों में फैला बिजनेस, सालाना कमाई एक करोड़
- Previous प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (EDFC) के न्यू भाउपुर-न्यू खुर्जा सेक्शन का उद्घाटन करेंगे। पूरा कार्यक्रम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुबह 11 बजे किया जाएगा। इस इवेंट के दौरान ही वह प्रयागराज में EDFC के ऑपरेशनल कंट्रोल सेंटर (OCC) का भी उद्घाटन करेंगे। इस दौरान यूपी की गवर्नर आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल भी मौजूद रहेंगे। क्या है EDFC? ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर यानी EDFC प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। इसे मालवाहक ट्रेनों के लिए खासतौर पर बनाया गया है। मतलब इस पर केवल माल गाड़ियां ही दौड़ेंगी। 351 किलोमीटर लंबा यह कॉरिडोर न्यू भाउपुर- न्यू खुर्जा सेक्शन तक है। इसे 5,750 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया गया है। इसकी कुल लंबाई 1856 किलोमीटर होनी है। जो पंजाब के लुधियाना से शुरू होकर हरियाणा, यूपी, बिहार और झारखंड से होते हुए पश्चिम बंगाल के दानकुनी तक जाएगा। इसके साथ ही केंद्र सरकार 1504 किलोमीटर लंबे वेस्टर्न कॉरिडोर का भी निर्माण करवा रही है। ये ग्रेटर नोएडा के दादरी से शुरू होकर मुंबई जवाहरलाल नेहरू पोर्ट तक बन रहा है। केंद्र सरकार ने आने वाले दिनों में पूरे देश में माल वाहक ट्रेनों के लिए अलग से पटरियां बिछाने का फैसला लिया है। इससे क्या फायदा होगा? कानपुर, कन्नौज, कानपुर देहात, औरैया, फतेहपुर, इटावा, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़ और आस-पास लगी इंडस्ट्री के लिए फायदेमंद साबित होगा। नॉर्मल रेल लाइन पर दबाव कम होगा और इससे यात्री ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जा सकेगी। यात्री ट्रेनों की लेटलतीफी कम होगी। अनाज व अन्य माल समय पर डेस्टिनेशन तक पहुंचाए जा सकेंगे। प्रयागराज में कंट्रोल सेंटर होगा पूरे EDFC के लिए प्रयागराज का ऑपरेशन कंट्रोल सेंटर एक कमांड सेंटर की तरह काम करेगा। ये सेंटर दुनिया भर में इस तरह के सबसे बड़े स्ट्रक्चर में से एक है। इसमें आधुनिक इंटीरियर्स का इस्तेमाल किया गया है और इसका डिजाइन भी शानदार है। यह बिल्डिंग इको फ्रेंडली है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर यानी EDFC प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। इसे मालवाहक ट्रेनों के लिए खासतौर पर बनाया गया है। -फाइल फोटो https://ift.tt/3mWwSIg Dainik Bhaskar ईस्टर्न डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे PM मोदी; कानपुर-दिल्ली रूट पर खत्म होगी ट्रेनों की लेटलतीफी