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मनमीत रावत पिछले सप्ताह देहरादून से किसी कामसे गोपेश्वर गए थे। वहां सेउन्होंनेबद्रीनाथ जाने का फैसला किया, लेकिन रास्ते में दर्जनों जगहोंपर पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है। इसवजह से10-15 किलोमीटर के सफर के बाद उन्हें 10 मिनट के लिए रुकना पड़ता था। इससे उन्हें जोशीमठ पहुंचने में देर हो गई और वेउस दिन बद्रीनाथ नहीं जा सके। उनके जैसे कई ऐसे लोग हैं जिन्हें रात जोशीमठ में ही बितानी पड़ी। ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ के पास भारत के अंतिम गांव माणा तक 300 किमीलंबे मार्ग को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को काटने का काम इस समय जोरों पर है, ताकि इस मार्ग को हर मौसम में यात्रा के लायक बनाया जा सके। कोरोना की वजह से इस बार अभी तक उत्तराखंड में तीर्थयात्रा पूरी तरहसे शुरू नहीं हो सकी है। अभी उत्तराखंड के लोगों को ही इसकी अनुमति है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अगले साल की यात्रा तक इसका ज्यादातर काम पूरा हो जाएगा।हालांकि, पर्यावरण विभाग कीमंजूरी और हाईकोर्ट में याचिका की वजह से कई कामअटके भी पड़े हैं। इन बाधाओं के दूर होने के बाद ही चारधाम की यात्रा को आसान बनाया जा सकता है। ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ के पास भारत के अंतिम गांव माणा तक 300 किमीलंबे मार्ग को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को काटने का काम इस समय जोरों पर है। हालांकि, जहां तक मार्ग पर काम पूरा हो रहा है, वहां स्थानीय लोग बड़ी राहत महसूस कर रहे हैं। रुद्रप्रयाग के रहने वाले महाबीर प्रसाद भट्‌ट बताते हैं कि लाल पहाड़ से लेकर सुमेरपुर तक के 5 किमीइलाके में पहाड़ों को काटने का काम पूरा होने के बाद बड़ी राहत होगी। क्योंकि यह रास्तासंकरा और मुश्किलथा। ऋषिकेश और व्यासी के बीच नए पुलों व एलीवेटेड रोड को बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है। देवप्रयाग में नया पुल बनने से भी आसानी होगी। ऋषिकेश से गंगोत्री-यमुनोत्री मार्ग पर धरासू तक सड़क बनाने का काम अंतिम चरण मेंहै। हालांकि धरासू से आगे दोनों ही तीर्थों के लिए मार्ग चौड़ा करने में वन व पर्यावरण विभाग की मंजूरी मिलनाबाकी है। इसके बावजूद धरासू तक सड़क चौड़ी होने से चंबा, टिहरी और उत्तरकाशी तक यातायात आसान हो जाएगा। ऋषिकेश और व्यासी के बीच नए पुलों व एलीवेटेड रोड को बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है। देवप्रयाग में नया पुल बनने से यात्रा में आसानी होगी। उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को जाने वाले सभी मार्गों को चार धाम यात्रा परियोजना के तहत चौड़ा व सुगम बनाया जा रहा है। 11 हजार 700 करोड़ की इस परियोजना के तहत कुल 889 किमीसड़क को चौड़ा किया जा रहा है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक करीब 300 किमीकी यात्रा में अभी 10 से 12 घंटे का समय लगता है। लेकिन, इस परियोजना के पूराहोने के बाद यह समय आधे से भी कम हो जाएगा। इसके लिए मौजूदा सड़कों की चौड़ाई को दोगुना किया जा रहा है। यानी अभी तक जिस रास्ते पर दो वाहन भी बड़ी मुश्किल से एक दूसरे को क्रॉस कर पाते थे, अब वहां से चार वाहन एक साथ गुजर सकेंगे। इससे दुर्घटनाओं की संख्या में भी बड़ी कमी आएगी। साथ ही बड़े पैमाने पर पुलों का निर्माण करके रास्तों को आसानभी बनाया जा रहा है। ऋषिकेश से गंगोत्री मार्ग पर चंबा में बनी 440 मीटर लंबी सुरंग का मई में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी उद्घाटन भी कर चुके हैं। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने रिकॉर्ड समय में इस सुरंग को बनाया है। इस मार्ग के बड़े हिस्से पर पहाड़ों को काटने का काम लगभग पूरा हो चुका है।अब सड़कों पर तेजी से कारपेटिंग हो रही है। चारधाम परियोजना को अगले साल 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य है। इस मार्ग पर दो सुरंगें व तीन एलीवेटेड रोड भी बन रही हैं। चारधाम परियोजना एक नजर में ऋषिकेश से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री राजमार्ग को सात हिस्सों में बनाया जा रहा है। बद्रीनाथ मार्ग को ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग और रुद्रप्रयाग से माणा तक दो हिस्सों में बांटा गया है। जबकि, केदारनाथ के लिए रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड, गंगोत्री के लिए ऋषिकेश से धरासू व धरासू से गंगोत्री और यमुनोत्री मार्गे को धरासू से यमुनोत्री में विभक्त किया गया है। इस मार्ग पर दो सुरंगें व तीन एलीवेटेड रोड भी बन रही हैं। इस सड़क को सीमा सड़क संगठन, लोक निर्माण विभाग, पीआईयू मोर्थ, एनआईडीसीएल बना रहे हैं। सुरंग बनाने में ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल चंबा शहर के ठीक नीचे बनी 440 मीटर लंबी सुरंग में नवीनतम ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। सीमा सड़क संगठन के महानिदेशक हरपाल सिंह के मुताबिक, इस सुरंग को बनाना अत्यंत ही चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि इसकेठीक ऊपर पूरा शहर है। बीआरओ ने इस सुरंग के एक सिरे पर जनवरी 2019 में काम शुरू किया था, लेकिन दूसरे सिरे पर काम अक्टूबर 2019 में शुरू हो सका था। ऑस्ट्रियन तकनीक में सुरंग बनाते समय पहाड़ की खुद की ताकत का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए यह हॉर्स शू आकार की होती है। विस्फोट के बाद लगातार सुरंग को क्रमवार मजबूती देकर नियमित रूप से स्टील की प्लेट लगाई जाती हैं। चंबा शहर के ठीक नीचे बनी 440 मीटर लंबी सुरंग में नवीनतम ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इस मार्ग के स्पीड ब्रेकर जोशीमठ बायपास : अभी वनभूमि के हस्तांतरण का मामला अटका हुआ है। कलियासौड़ बायपास : इस मार्ग के सर्वाधिक भूस्खलन वाले कलियासौड़ में बायपास बनाने में कई पेड़ों को काटना होगा, जिसकी अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। धरासू-गंगोत्री मार्ग : इस मार्ग का करीब 87 किलोमीटर इलाका भागीरथी इको सेंसिटिव जोन में होने की वजह से वन भूमि के अधिग्रहण की मंजूरी नहीं मिल पा रही है। हाईकोर्ट का आदेश : सिटीजन फॉर ग्रीन दून व अन्य द्वारा दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने सिर्फ उन्हीं कार्यों को जारी रखने के लिए कहा है, जिन पर पहले से ही काम चल रहा है। चीन सीमा तक भी पहुंचता है यह मार्ग यह मार्ग सिर्फ चार धाम यात्रा की दृष्टि से ही अहम नहीं है। इस मार्ग का सामरिक महत्व भी है। हाल के दिनों में चीन के साथ चल रहे गतिरोध ने इसकी भूमिका को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। चीन सीमा पर जाने के लिए भारतीय सैनिक इसी मार्ग का इस्तेमाल करते हैं। ‘हमारी कोशिश है कि इस मार्ग को 2021 तक पूरा कर दिया जाए, क्योंकि सामरिक दृष्टि से अहम इस राजमार्ग के काम को हर तरह से प्राथमिकता दी जा रही है। सभी मंजूरी ली जा रही हैं व अन्य तकनीकी अवरोधों को दूर किया जा रहा है। - आर.के. सुधांशु सचिव, लोक निर्माण विभाग, उत्तराखंड आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Chardham project work started, 12-hour journey will be completed in 6 hours; Indian army will also have easy access to China border https://ift.tt/38YwEv5 Dainik Bhaskar 12 घंटे का सफर 6 घंटे में होगा पूरा; चीन सीमा तक पहुंचने में भारतीय फौज को होगी आसानी, 2021 तक काम पूरा करने का लक्ष्य

मनमीत रावत पिछले सप्ताह देहरादून से किसी कामसे गोपेश्वर गए थे। वहां सेउन्होंनेबद्रीनाथ जाने का फैसला किया, लेकिन रास्ते में दर्जनों जगहोंपर पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है। इसवजह से10-15 किलोमीटर के सफर के बाद उन्हें 10 मिनट के लिए रुकना पड़ता था। इससे उन्हें जोशीमठ पहुंचने में देर हो गई और वेउस दिन बद्रीनाथ नहीं जा सके। उनके जैसे कई ऐसे लोग हैं जिन्हें रात जोशीमठ में ही बितानी पड़ी।

ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ के पास भारत के अंतिम गांव माणा तक 300 किमीलंबे मार्ग को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को काटने का काम इस समय जोरों पर है, ताकि इस मार्ग को हर मौसम में यात्रा के लायक बनाया जा सके। कोरोना की वजह से इस बार अभी तक उत्तराखंड में तीर्थयात्रा पूरी तरहसे शुरू नहीं हो सकी है।

अभी उत्तराखंड के लोगों को ही इसकी अनुमति है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अगले साल की यात्रा तक इसका ज्यादातर काम पूरा हो जाएगा।हालांकि, पर्यावरण विभाग कीमंजूरी और हाईकोर्ट में याचिका की वजह से कई कामअटके भी पड़े हैं। इन बाधाओं के दूर होने के बाद ही चारधाम की यात्रा को आसान बनाया जा सकता है।

ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ के पास भारत के अंतिम गांव माणा तक 300 किमीलंबे मार्ग को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को काटने का काम इस समय जोरों पर है।

हालांकि, जहां तक मार्ग पर काम पूरा हो रहा है, वहां स्थानीय लोग बड़ी राहत महसूस कर रहे हैं। रुद्रप्रयाग के रहने वाले महाबीर प्रसाद भट्‌ट बताते हैं कि लाल पहाड़ से लेकर सुमेरपुर तक के 5 किमीइलाके में पहाड़ों को काटने का काम पूरा होने के बाद बड़ी राहत होगी। क्योंकि यह रास्तासंकरा और मुश्किलथा। ऋषिकेश और व्यासी के बीच नए पुलों व एलीवेटेड रोड को बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है।

देवप्रयाग में नया पुल बनने से भी आसानी होगी। ऋषिकेश से गंगोत्री-यमुनोत्री मार्ग पर धरासू तक सड़क बनाने का काम अंतिम चरण मेंहै। हालांकि धरासू से आगे दोनों ही तीर्थों के लिए मार्ग चौड़ा करने में वन व पर्यावरण विभाग की मंजूरी मिलनाबाकी है। इसके बावजूद धरासू तक सड़क चौड़ी होने से चंबा, टिहरी और उत्तरकाशी तक यातायात आसान हो जाएगा।

ऋषिकेश और व्यासी के बीच नए पुलों व एलीवेटेड रोड को बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है। देवप्रयाग में नया पुल बनने से यात्रा में आसानी होगी।

उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को जाने वाले सभी मार्गों को चार धाम यात्रा परियोजना के तहत चौड़ा व सुगम बनाया जा रहा है। 11 हजार 700 करोड़ की इस परियोजना के तहत कुल 889 किमीसड़क को चौड़ा किया जा रहा है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक करीब 300 किमीकी यात्रा में अभी 10 से 12 घंटे का समय लगता है।

लेकिन, इस परियोजना के पूराहोने के बाद यह समय आधे से भी कम हो जाएगा। इसके लिए मौजूदा सड़कों की चौड़ाई को दोगुना किया जा रहा है। यानी अभी तक जिस रास्ते पर दो वाहन भी बड़ी मुश्किल से एक दूसरे को क्रॉस कर पाते थे, अब वहां से चार वाहन एक साथ गुजर सकेंगे। इससे दुर्घटनाओं की संख्या में भी बड़ी कमी आएगी।

साथ ही बड़े पैमाने पर पुलों का निर्माण करके रास्तों को आसानभी बनाया जा रहा है। ऋषिकेश से गंगोत्री मार्ग पर चंबा में बनी 440 मीटर लंबी सुरंग का मई में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी उद्घाटन भी कर चुके हैं। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने रिकॉर्ड समय में इस सुरंग को बनाया है। इस मार्ग के बड़े हिस्से पर पहाड़ों को काटने का काम लगभग पूरा हो चुका है।अब सड़कों पर तेजी से कारपेटिंग हो रही है।

चारधाम परियोजना को अगले साल 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य है। इस मार्ग पर दो सुरंगें व तीन एलीवेटेड रोड भी बन रही हैं।

चारधाम परियोजना एक नजर में

ऋषिकेश से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री राजमार्ग को सात हिस्सों में बनाया जा रहा है। बद्रीनाथ मार्ग को ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग और रुद्रप्रयाग से माणा तक दो हिस्सों में बांटा गया है। जबकि, केदारनाथ के लिए रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड, गंगोत्री के लिए ऋषिकेश से धरासू व धरासू से गंगोत्री और यमुनोत्री मार्गे को धरासू से यमुनोत्री में विभक्त किया गया है। इस मार्ग पर दो सुरंगें व तीन एलीवेटेड रोड भी बन रही हैं। इस सड़क को सीमा सड़क संगठन, लोक निर्माण विभाग, पीआईयू मोर्थ, एनआईडीसीएल बना रहे हैं।

सुरंग बनाने में ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल

चंबा शहर के ठीक नीचे बनी 440 मीटर लंबी सुरंग में नवीनतम ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। सीमा सड़क संगठन के महानिदेशक हरपाल सिंह के मुताबिक, इस सुरंग को बनाना अत्यंत ही चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि इसकेठीक ऊपर पूरा शहर है। बीआरओ ने इस सुरंग के एक सिरे पर जनवरी 2019 में काम शुरू किया था, लेकिन दूसरे सिरे पर काम अक्टूबर 2019 में शुरू हो सका था।

ऑस्ट्रियन तकनीक में सुरंग बनाते समय पहाड़ की खुद की ताकत का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए यह हॉर्स शू आकार की होती है। विस्फोट के बाद लगातार सुरंग को क्रमवार मजबूती देकर नियमित रूप से स्टील की प्लेट लगाई जाती हैं।

चंबा शहर के ठीक नीचे बनी 440 मीटर लंबी सुरंग में नवीनतम ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

इस मार्ग के स्पीड ब्रेकर

जोशीमठ बायपास : अभी वनभूमि के हस्तांतरण का मामला अटका हुआ है।

कलियासौड़ बायपास : इस मार्ग के सर्वाधिक भूस्खलन वाले कलियासौड़ में बायपास बनाने में कई पेड़ों को काटना होगा, जिसकी अभी तक मंजूरी नहीं मिली है।

धरासू-गंगोत्री मार्ग : इस मार्ग का करीब 87 किलोमीटर इलाका भागीरथी इको सेंसिटिव जोन में होने की वजह से वन भूमि के अधिग्रहण की मंजूरी नहीं मिल पा रही है।

हाईकोर्ट का आदेश : सिटीजन फॉर ग्रीन दून व अन्य द्वारा दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने सिर्फ उन्हीं कार्यों को जारी रखने के लिए कहा है, जिन पर पहले से ही काम चल रहा है।

चीन सीमा तक भी पहुंचता है यह मार्ग

यह मार्ग सिर्फ चार धाम यात्रा की दृष्टि से ही अहम नहीं है। इस मार्ग का सामरिक महत्व भी है। हाल के दिनों में चीन के साथ चल रहे गतिरोध ने इसकी भूमिका को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। चीन सीमा पर जाने के लिए भारतीय सैनिक इसी मार्ग का इस्तेमाल करते हैं।

‘हमारी कोशिश है कि इस मार्ग को 2021 तक पूरा कर दिया जाए, क्योंकि सामरिक दृष्टि से अहम इस राजमार्ग के काम को हर तरह से प्राथमिकता दी जा रही है। सभी मंजूरी ली जा रही हैं व अन्य तकनीकी अवरोधों को दूर किया जा रहा है। - आर.के. सुधांशु सचिव, लोक निर्माण विभाग, उत्तराखंड



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मनमीत रावत पिछले सप्ताह देहरादून से किसी कामसे गोपेश्वर गए थे। वहां सेउन्होंनेबद्रीनाथ जाने का फैसला किया, लेकिन रास्ते में दर्जनों जगहोंपर पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है। इसवजह से10-15 किलोमीटर के सफर के बाद उन्हें 10 मिनट के लिए रुकना पड़ता था। इससे उन्हें जोशीमठ पहुंचने में देर हो गई और वेउस दिन बद्रीनाथ नहीं जा सके। उनके जैसे कई ऐसे लोग हैं जिन्हें रात जोशीमठ में ही बितानी पड़ी। ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ के पास भारत के अंतिम गांव माणा तक 300 किमीलंबे मार्ग को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को काटने का काम इस समय जोरों पर है, ताकि इस मार्ग को हर मौसम में यात्रा के लायक बनाया जा सके। कोरोना की वजह से इस बार अभी तक उत्तराखंड में तीर्थयात्रा पूरी तरहसे शुरू नहीं हो सकी है। अभी उत्तराखंड के लोगों को ही इसकी अनुमति है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अगले साल की यात्रा तक इसका ज्यादातर काम पूरा हो जाएगा।हालांकि, पर्यावरण विभाग कीमंजूरी और हाईकोर्ट में याचिका की वजह से कई कामअटके भी पड़े हैं। इन बाधाओं के दूर होने के बाद ही चारधाम की यात्रा को आसान बनाया जा सकता है। ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ के पास भारत के अंतिम गांव माणा तक 300 किमीलंबे मार्ग को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को काटने का काम इस समय जोरों पर है। हालांकि, जहां तक मार्ग पर काम पूरा हो रहा है, वहां स्थानीय लोग बड़ी राहत महसूस कर रहे हैं। रुद्रप्रयाग के रहने वाले महाबीर प्रसाद भट्‌ट बताते हैं कि लाल पहाड़ से लेकर सुमेरपुर तक के 5 किमीइलाके में पहाड़ों को काटने का काम पूरा होने के बाद बड़ी राहत होगी। क्योंकि यह रास्तासंकरा और मुश्किलथा। ऋषिकेश और व्यासी के बीच नए पुलों व एलीवेटेड रोड को बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है। देवप्रयाग में नया पुल बनने से भी आसानी होगी। ऋषिकेश से गंगोत्री-यमुनोत्री मार्ग पर धरासू तक सड़क बनाने का काम अंतिम चरण मेंहै। हालांकि धरासू से आगे दोनों ही तीर्थों के लिए मार्ग चौड़ा करने में वन व पर्यावरण विभाग की मंजूरी मिलनाबाकी है। इसके बावजूद धरासू तक सड़क चौड़ी होने से चंबा, टिहरी और उत्तरकाशी तक यातायात आसान हो जाएगा। ऋषिकेश और व्यासी के बीच नए पुलों व एलीवेटेड रोड को बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है। देवप्रयाग में नया पुल बनने से यात्रा में आसानी होगी। उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को जाने वाले सभी मार्गों को चार धाम यात्रा परियोजना के तहत चौड़ा व सुगम बनाया जा रहा है। 11 हजार 700 करोड़ की इस परियोजना के तहत कुल 889 किमीसड़क को चौड़ा किया जा रहा है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक करीब 300 किमीकी यात्रा में अभी 10 से 12 घंटे का समय लगता है। लेकिन, इस परियोजना के पूराहोने के बाद यह समय आधे से भी कम हो जाएगा। इसके लिए मौजूदा सड़कों की चौड़ाई को दोगुना किया जा रहा है। यानी अभी तक जिस रास्ते पर दो वाहन भी बड़ी मुश्किल से एक दूसरे को क्रॉस कर पाते थे, अब वहां से चार वाहन एक साथ गुजर सकेंगे। इससे दुर्घटनाओं की संख्या में भी बड़ी कमी आएगी। साथ ही बड़े पैमाने पर पुलों का निर्माण करके रास्तों को आसानभी बनाया जा रहा है। ऋषिकेश से गंगोत्री मार्ग पर चंबा में बनी 440 मीटर लंबी सुरंग का मई में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी उद्घाटन भी कर चुके हैं। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने रिकॉर्ड समय में इस सुरंग को बनाया है। इस मार्ग के बड़े हिस्से पर पहाड़ों को काटने का काम लगभग पूरा हो चुका है।अब सड़कों पर तेजी से कारपेटिंग हो रही है। चारधाम परियोजना को अगले साल 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य है। इस मार्ग पर दो सुरंगें व तीन एलीवेटेड रोड भी बन रही हैं। चारधाम परियोजना एक नजर में ऋषिकेश से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री राजमार्ग को सात हिस्सों में बनाया जा रहा है। बद्रीनाथ मार्ग को ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग और रुद्रप्रयाग से माणा तक दो हिस्सों में बांटा गया है। जबकि, केदारनाथ के लिए रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड, गंगोत्री के लिए ऋषिकेश से धरासू व धरासू से गंगोत्री और यमुनोत्री मार्गे को धरासू से यमुनोत्री में विभक्त किया गया है। इस मार्ग पर दो सुरंगें व तीन एलीवेटेड रोड भी बन रही हैं। इस सड़क को सीमा सड़क संगठन, लोक निर्माण विभाग, पीआईयू मोर्थ, एनआईडीसीएल बना रहे हैं। सुरंग बनाने में ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल चंबा शहर के ठीक नीचे बनी 440 मीटर लंबी सुरंग में नवीनतम ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। सीमा सड़क संगठन के महानिदेशक हरपाल सिंह के मुताबिक, इस सुरंग को बनाना अत्यंत ही चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि इसकेठीक ऊपर पूरा शहर है। बीआरओ ने इस सुरंग के एक सिरे पर जनवरी 2019 में काम शुरू किया था, लेकिन दूसरे सिरे पर काम अक्टूबर 2019 में शुरू हो सका था। ऑस्ट्रियन तकनीक में सुरंग बनाते समय पहाड़ की खुद की ताकत का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए यह हॉर्स शू आकार की होती है। विस्फोट के बाद लगातार सुरंग को क्रमवार मजबूती देकर नियमित रूप से स्टील की प्लेट लगाई जाती हैं। चंबा शहर के ठीक नीचे बनी 440 मीटर लंबी सुरंग में नवीनतम ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इस मार्ग के स्पीड ब्रेकर जोशीमठ बायपास : अभी वनभूमि के हस्तांतरण का मामला अटका हुआ है। कलियासौड़ बायपास : इस मार्ग के सर्वाधिक भूस्खलन वाले कलियासौड़ में बायपास बनाने में कई पेड़ों को काटना होगा, जिसकी अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। धरासू-गंगोत्री मार्ग : इस मार्ग का करीब 87 किलोमीटर इलाका भागीरथी इको सेंसिटिव जोन में होने की वजह से वन भूमि के अधिग्रहण की मंजूरी नहीं मिल पा रही है। हाईकोर्ट का आदेश : सिटीजन फॉर ग्रीन दून व अन्य द्वारा दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने सिर्फ उन्हीं कार्यों को जारी रखने के लिए कहा है, जिन पर पहले से ही काम चल रहा है। चीन सीमा तक भी पहुंचता है यह मार्ग यह मार्ग सिर्फ चार धाम यात्रा की दृष्टि से ही अहम नहीं है। इस मार्ग का सामरिक महत्व भी है। हाल के दिनों में चीन के साथ चल रहे गतिरोध ने इसकी भूमिका को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। चीन सीमा पर जाने के लिए भारतीय सैनिक इसी मार्ग का इस्तेमाल करते हैं। ‘हमारी कोशिश है कि इस मार्ग को 2021 तक पूरा कर दिया जाए, क्योंकि सामरिक दृष्टि से अहम इस राजमार्ग के काम को हर तरह से प्राथमिकता दी जा रही है। सभी मंजूरी ली जा रही हैं व अन्य तकनीकी अवरोधों को दूर किया जा रहा है। - आर.के. सुधांशु सचिव, लोक निर्माण विभाग, उत्तराखंड आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Chardham project work started, 12-hour journey will be completed in 6 hours; Indian army will also have easy access to China border https://ift.tt/38YwEv5 Dainik Bhaskar 12 घंटे का सफर 6 घंटे में होगा पूरा; चीन सीमा तक पहुंचने में भारतीय फौज को होगी आसानी, 2021 तक काम पूरा करने का लक्ष्य 

मनमीत रावत पिछले सप्ताह देहरादून से किसी कामसे गोपेश्वर गए थे। वहां सेउन्होंनेबद्रीनाथ जाने का फैसला किया, लेकिन रास्ते में दर्जनों जगहोंपर पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है। इसवजह से10-15 किलोमीटर के सफर के बाद उन्हें 10 मिनट के लिए रुकना पड़ता था। इससे उन्हें जोशीमठ पहुंचने में देर हो गई और वेउस दिन बद्रीनाथ नहीं जा सके। उनके जैसे कई ऐसे लोग हैं जिन्हें रात जोशीमठ में ही बितानी पड़ी।

ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ के पास भारत के अंतिम गांव माणा तक 300 किमीलंबे मार्ग को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को काटने का काम इस समय जोरों पर है, ताकि इस मार्ग को हर मौसम में यात्रा के लायक बनाया जा सके। कोरोना की वजह से इस बार अभी तक उत्तराखंड में तीर्थयात्रा पूरी तरहसे शुरू नहीं हो सकी है।

अभी उत्तराखंड के लोगों को ही इसकी अनुमति है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अगले साल की यात्रा तक इसका ज्यादातर काम पूरा हो जाएगा।हालांकि, पर्यावरण विभाग कीमंजूरी और हाईकोर्ट में याचिका की वजह से कई कामअटके भी पड़े हैं। इन बाधाओं के दूर होने के बाद ही चारधाम की यात्रा को आसान बनाया जा सकता है।

ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ के पास भारत के अंतिम गांव माणा तक 300 किमीलंबे मार्ग को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को काटने का काम इस समय जोरों पर है।

हालांकि, जहां तक मार्ग पर काम पूरा हो रहा है, वहां स्थानीय लोग बड़ी राहत महसूस कर रहे हैं। रुद्रप्रयाग के रहने वाले महाबीर प्रसाद भट्‌ट बताते हैं कि लाल पहाड़ से लेकर सुमेरपुर तक के 5 किमीइलाके में पहाड़ों को काटने का काम पूरा होने के बाद बड़ी राहत होगी। क्योंकि यह रास्तासंकरा और मुश्किलथा। ऋषिकेश और व्यासी के बीच नए पुलों व एलीवेटेड रोड को बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है।

देवप्रयाग में नया पुल बनने से भी आसानी होगी। ऋषिकेश से गंगोत्री-यमुनोत्री मार्ग पर धरासू तक सड़क बनाने का काम अंतिम चरण मेंहै। हालांकि धरासू से आगे दोनों ही तीर्थों के लिए मार्ग चौड़ा करने में वन व पर्यावरण विभाग की मंजूरी मिलनाबाकी है। इसके बावजूद धरासू तक सड़क चौड़ी होने से चंबा, टिहरी और उत्तरकाशी तक यातायात आसान हो जाएगा।

ऋषिकेश और व्यासी के बीच नए पुलों व एलीवेटेड रोड को बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है। देवप्रयाग में नया पुल बनने से यात्रा में आसानी होगी।

उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को जाने वाले सभी मार्गों को चार धाम यात्रा परियोजना के तहत चौड़ा व सुगम बनाया जा रहा है। 11 हजार 700 करोड़ की इस परियोजना के तहत कुल 889 किमीसड़क को चौड़ा किया जा रहा है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक करीब 300 किमीकी यात्रा में अभी 10 से 12 घंटे का समय लगता है।

लेकिन, इस परियोजना के पूराहोने के बाद यह समय आधे से भी कम हो जाएगा। इसके लिए मौजूदा सड़कों की चौड़ाई को दोगुना किया जा रहा है। यानी अभी तक जिस रास्ते पर दो वाहन भी बड़ी मुश्किल से एक दूसरे को क्रॉस कर पाते थे, अब वहां से चार वाहन एक साथ गुजर सकेंगे। इससे दुर्घटनाओं की संख्या में भी बड़ी कमी आएगी।

साथ ही बड़े पैमाने पर पुलों का निर्माण करके रास्तों को आसानभी बनाया जा रहा है। ऋषिकेश से गंगोत्री मार्ग पर चंबा में बनी 440 मीटर लंबी सुरंग का मई में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी उद्घाटन भी कर चुके हैं। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने रिकॉर्ड समय में इस सुरंग को बनाया है। इस मार्ग के बड़े हिस्से पर पहाड़ों को काटने का काम लगभग पूरा हो चुका है।अब सड़कों पर तेजी से कारपेटिंग हो रही है।

चारधाम परियोजना को अगले साल 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य है। इस मार्ग पर दो सुरंगें व तीन एलीवेटेड रोड भी बन रही हैं।

चारधाम परियोजना एक नजर में

ऋषिकेश से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री राजमार्ग को सात हिस्सों में बनाया जा रहा है। बद्रीनाथ मार्ग को ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग और रुद्रप्रयाग से माणा तक दो हिस्सों में बांटा गया है। जबकि, केदारनाथ के लिए रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड, गंगोत्री के लिए ऋषिकेश से धरासू व धरासू से गंगोत्री और यमुनोत्री मार्गे को धरासू से यमुनोत्री में विभक्त किया गया है। इस मार्ग पर दो सुरंगें व तीन एलीवेटेड रोड भी बन रही हैं। इस सड़क को सीमा सड़क संगठन, लोक निर्माण विभाग, पीआईयू मोर्थ, एनआईडीसीएल बना रहे हैं।

सुरंग बनाने में ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल

चंबा शहर के ठीक नीचे बनी 440 मीटर लंबी सुरंग में नवीनतम ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। सीमा सड़क संगठन के महानिदेशक हरपाल सिंह के मुताबिक, इस सुरंग को बनाना अत्यंत ही चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि इसकेठीक ऊपर पूरा शहर है। बीआरओ ने इस सुरंग के एक सिरे पर जनवरी 2019 में काम शुरू किया था, लेकिन दूसरे सिरे पर काम अक्टूबर 2019 में शुरू हो सका था।

ऑस्ट्रियन तकनीक में सुरंग बनाते समय पहाड़ की खुद की ताकत का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए यह हॉर्स शू आकार की होती है। विस्फोट के बाद लगातार सुरंग को क्रमवार मजबूती देकर नियमित रूप से स्टील की प्लेट लगाई जाती हैं।

चंबा शहर के ठीक नीचे बनी 440 मीटर लंबी सुरंग में नवीनतम ऑस्ट्रियन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

इस मार्ग के स्पीड ब्रेकर

जोशीमठ बायपास : अभी वनभूमि के हस्तांतरण का मामला अटका हुआ है।

कलियासौड़ बायपास : इस मार्ग के सर्वाधिक भूस्खलन वाले कलियासौड़ में बायपास बनाने में कई पेड़ों को काटना होगा, जिसकी अभी तक मंजूरी नहीं मिली है।

धरासू-गंगोत्री मार्ग : इस मार्ग का करीब 87 किलोमीटर इलाका भागीरथी इको सेंसिटिव जोन में होने की वजह से वन भूमि के अधिग्रहण की मंजूरी नहीं मिल पा रही है।

हाईकोर्ट का आदेश : सिटीजन फॉर ग्रीन दून व अन्य द्वारा दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने सिर्फ उन्हीं कार्यों को जारी रखने के लिए कहा है, जिन पर पहले से ही काम चल रहा है।

चीन सीमा तक भी पहुंचता है यह मार्ग

यह मार्ग सिर्फ चार धाम यात्रा की दृष्टि से ही अहम नहीं है। इस मार्ग का सामरिक महत्व भी है। हाल के दिनों में चीन के साथ चल रहे गतिरोध ने इसकी भूमिका को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। चीन सीमा पर जाने के लिए भारतीय सैनिक इसी मार्ग का इस्तेमाल करते हैं।

‘हमारी कोशिश है कि इस मार्ग को 2021 तक पूरा कर दिया जाए, क्योंकि सामरिक दृष्टि से अहम इस राजमार्ग के काम को हर तरह से प्राथमिकता दी जा रही है। सभी मंजूरी ली जा रही हैं व अन्य तकनीकी अवरोधों को दूर किया जा रहा है। - आर.के. सुधांशु सचिव, लोक निर्माण विभाग, उत्तराखंड

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