रोज़गार संदर्भ मराठी 14-20 जुलाई
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रोज़गार संदर्भ मराठी 14-20 जुलाई
Reviewed by Manish Pethev
on
July 14, 2020
Rating: 5

- Next 1. सरकार पर संकट के 4 दिन बीते राजस्थान में कांग्रेस के लिए सियासत का मौसम बिगड़ा हुआ है। मंगलवार को सरकार पर चल रहे संकट का चौथा दिन था। 72 घंटे की कोशिशों के बाद आखिरकार सीएम अशोक गहलोत को कांग्रेस से संजीवनी मिल गई। पार्टी ने उन्हें मजबूत करते हुए सचिन पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया। इस तरह पायलट की पहली गुगली को गहलोत फ्रंटफुट पर खेल गए। पायलट के अगले दांव पर सबकी नजर है, क्योंकि विकेट के पीछे भाजपा खड़ी है। इस बीच, ‘सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी वाली कांग्रेस’ के नेताओं ने कहा कि हमारी पार्टी ‘व्यक्तियों’ से नहीं चलती। इसलिए पायलट पर कार्रवाई हुई है। पायलट ने इसके बाद अपने ट्विटर हैंडल से कांग्रेस का नाम हटा दिया और लिखा- ‘सत्य को परेशान किया जा सकता है, पराजित नहीं।’ कांग्रेस ने भी जवाब दिया। कहा- ‘सत्य तो अभी पराजित ही नहीं हुआ।’ ...ये समझ नहीं आया कि सत्य पर दावा आखिर किसका है? उधर, सत्य-असत्य को अलग रखते हुए गहलोत ने पायलट खेमे की तुलना ‘आ बैल मुझे मार’ वाली कहावत से कर दी। तीन बातें, जो हमारे जर्नलिस्ट्स ने बताईं... पहली- सोनिया, राहुल, प्रियंका, चिदंबरम, वेणुगोपाल और अहमद पटेल ने सचिन पायलट को मनाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। दूसरी- पायलट को सीएम पद से कम कुछ मंजूर नहीं था। वे चाहते थे कि एसओजी से मिला नोटिस भी वापस लिया जाए। अब वे नई पार्टी बना सकते हैं। ऐसे में भाजपा उन्हें समर्थन दे सकती है। तीसरी- गहलोत ने अभी ट्रम्प कार्ड खेला नहीं है। वे अपनी टीम में आठ नए मंत्रियों को शामिल कर सकते हैं। नए चेहरों को जगह मिली, तो वे विधायकों को जोड़कर रखने में कामयाब रहेंगे। पढ़ें: सरकार बच गई, तो गहलोत का पार्टी में कद बढ़ेगा 2. अयोध्या किसकी! बात विदेश की। पड़ोसी देश नेपाल के प्रधानमंत्री हैं केपी शर्मा ओली। इन दिनों भारत विरोधी हो गए हैं। पहले उन्होंने कहा था कि नेपाल के कुछ हिस्सों पर भारत ने कब्जा कर रखा है। गुस्सा नहीं थमा, तो अब कह दिया कि भगवान राम नेपाल के थे। उनके वक्त की अयोध्या भारत में नहीं, बल्कि बीरगंज में थी। दरअसल, यह बयान देने में ओली लेट हो गए। उन्होंने पहले ही ऐसा कह दिया होता, तो शायद देश में चले अयोध्या विवाद के मुकदमे में उन्हें भी कोई मुद्दई बना देता। खैर, इस बयान पर उनके ही देश के लोगों ने चुटकियां लीं। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबू राम भट्टाराई कहते हैं- ‘ये आदि कवि ओली हैं, जो कलयुग की नई रामायण सुना रहे हैं।’ ओली के ही पूर्व मीडिया सलाहकार कुंदन आर्यल ने कहा- ‘शायद ओली भारत के न्यूज चैनलों से कॉम्पीटिशन कर रहे हैं।’ नेपाल के पूर्व डिप्टी पीएम कमल थापा बोले- ‘ओली भारत-नेपाल के रिश्तों को और खराब करना चाह रहे हैं।’ पढ़ें: ट्विटर यूजर्स ने कहा- ओली अब कहेंगे कि न्यूयॉर्क अमेरिका नहीं, नेपाल में है 3. बड़ी खबरों पर आगे बात करने से पहले आज से जुड़ी दो बातें सीबीएसई 10वीं का रिजल्ट आज दोपहर तक आ जाएगा। मंगलवार को भी रिजल्ट आने की अटकलें थीं, लेकिन आया नहीं। इस बार 18 लाख स्टूडेंट्स ने 10वीं की एग्जाम दी थी।रिजल्ट cbseresults.nic.in पर देखा जा सकता है। आईआईटी दिल्ली की लो-कॉस्ट कोरोना टेस्ट किट आज लॉन्च होगी। आईआईटी दिल्ली देश का ऐसा पहला एकेडमिक इंस्टिट्यूट है, जिसने कोरोना की टेस्टिंग मैथड डेवलप की है। उसने इसका नॉन-एक्स्क्लूसिव ओपन लाइसेंस कंपनियों को दिया है। आईआईटी ने एक किट की कीमत 500 रुपए रखी है। देखना होगा कि कंपनियां मुनाफा कमाने की कोशिश में इसे किस कीमत पर बेचती हैं। 4. अब गूगल भी जियो में इन्वेस्ट करेगी रिलायंस जियो में टी-20 स्टाइल में इन्वेस्टमेंट आ रहा है। अब उसकी गूगल से बातचीत चल रही है। गूगल जियो में करीब 30 हजार करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट कर सकती है। ऐसा हुआ तो यह जियो में 14वां इन्वेस्टमेंट होगा। रकम के लिहाज से यह कंपनी में दूसरा बड़ा निवेश होगा। इससे पहले फेसबुक ने 43 हजार करोड़ रुपए इन्वेस्ट कर जियो में 9.99% की हिस्सेदारी खरीदी थी। पिछले 12 हफ्ते में रिलायंस जियो को 13 निवेश मिल चुके हैं। जियो ने 25.24% हिस्सेदारी बेचकर 1.18 लाख करोड़ रुपए जुटाए हैं। 5. पिछले वर्ल्ड कप फाइनल के मैच विनर के बारे में एक खुलासा 2019 के वनडे वर्ल्ड कप के फाइनल को एक साल पूरे हो गए। इसी के साथ एक खुलासा भी हुआ है। वर्ल्ड कप जीतने वाली इंग्लैंड टीम के ऑलराउंडर बेन स्टोक्स ने फाइनल में नाबाद 84 रन की पारी खेली थी। सुपर ओवर में भी 8 रन बनाए थे। उन्हें मैन ऑफ द मैच चुना गया था। इंग्लैंड ज्यादा बाउंड्री लगाने की वजह से वर्ल्ड चैम्पियन बना था। फाइनल में 2 घंटे 27 मिनट तक बैटिंग करने के बाद स्टोक्स इतने तनाव में आ चुके थे कि ड्रेसिंग रूम में लौटकर उन्होंने बाथरूम में सिगरेट जला ली थी। पढ़ें: पहली बार वर्ल्ड कप फाइनल और सुपर ओवर टाई हुआ था 6. आज का दिन कैसा रहेगा? एस्ट्रोलॉजी कह रही है कि बुधवार को दो अशुभ योग बन रहे हैं। इनके नाम हैं शूल और काण। अगर नाम पढ़कर उलझन महसूस कर रहे हैं, तो काम की बात जान लीजिए। बुधवार को मेष, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, मकर, कुंभ और मीन राशि वालों को जॉब और बिजनेस में संभलकर रहना होगा। वृष, सिंह, वृश्चिक और धनु राशि वालों के लिए दिन अच्छा रहेगा। पढ़ें: सभी 12 राशि वालों के लिए कैसा रहेगा दिन? एस्ट्रोलॉजी के हिसाब से आठ राशि वालों के लिए दिन चुनौतीपूर्ण है, लेकिन टैराकार्ड्स के हिसाब से नौ राशियों के लिए दिन अच्छा रहेगा। इनमें वृष, मिथुन, तुला और मीन शामिल है। पढ़ें: सभी राशियों के लिए क्या कहते हैं टैरोकार्ड्स? आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें फोटो 26 मार्च 2019 की है। तब जयपुर में कांग्रेस की रैली हुई थी। राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष थे। सीएम होने के नाते अशोक गहलोत और बतौर डिप्टी सीएम सचिन पायलट इस रैली में मौजूद थे। राहुल एक साल पहले ही पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ चुके हैं। मंगलवार को पायलट से डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष पद छीना जा चुका है। https://ift.tt/3euBfX0 Dainik Bhaskar पायलट की पहली गुगली को गहलोत फ्रंटफुट पर खेल गए; आज CBSE 10वीं के नतीजे आएंगे और आईआईटी की कोरोना टेस्ट किट लॉन्च होगी
- Previous https://ift.tt/3iXuikB धार्वी वेद. दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में 17 साल का नानकेश बिना मास्क लगाए कचरा बीनने में व्यस्त है। कोरोनावायरस के बाद उसकी रोजी-रोटी पर खासा असर पड़ा है। उसका कहना है, "कचरा बीनना कभी इतना मुश्किल नहीं रहा। लॉकडाउन के दौरान मेरे पास बिल्कुल पैसे नहीं थे। जीना इतना मुश्किल पहले कभी नहीं था।"नानकेशन उन लाखों बच्चों में से हैं, जो भारत में सड़कों पर रहते हैं। इनमें से कई के पास कोई कानूनी कागज नहीं हैं, जो उनके वजूद का सबूत हो। इतना ही नहीं, डॉक्यूमेंट्स न होने के कारण इन्हें बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं।सबसे ज्यादा संकट में थे बच्चेचाइल्डहुड एन्हेंसमेंट थ्रू ट्रेनिंग एंड एक्शन (CHETNA) के डायरेक्टर संजय गुप्ता कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान सड़क पर रहने वाले बच्चे सबसे ज्यादा संकट में थे। अगर आप उनके कमाने केतरीकेदेखेंगे तो वे भीख मांगने, सामान बेचने या किसी परिवार के लिए काम करने परनिर्भर थे। कोविड के कारण सब पर असर पड़ा है।आंखों में गंदगी, कान में मैल, खराब दिखने की वजह से खाना भी नहीं मिलागुप्ता बताते हैं कि आवाजाही बंद होने के कारण बच्चों से जुड़े रहना चुनौती था। बातचीत नहीं होने के कारण इन बच्चों के ठिकानों का भी पता नहीं चल सका। उन्होंने कहा कि सबकुछ सही नहीं था। बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां हो गईं थीं।कई बच्चे गंदगीभरेहालात में मिले। उनकी आंखों में कीचड़ और कान में मैल जमा हुआ था। उन्होंने अपनी डाइट का आधा खाना भी नहीं खाया था।कुछ बच्चों ने दावा किया कि खाना बांटने के वक्त बुरे हाल होने के कारण उनसे भेदभाव किया गया।गुप्ता बताते हैं कि सरकार राहत को लेकर काफी तेज थी, लेकिन जातिऔर वर्ग जैसे भेदभावझुग्गियों में आज भी हावी हैं। अगर खाना बांटने के लिए लाइन लगती थी तो इन बच्चों को आखिर में खड़ा होने के लिए कह दिया जाता था। उनके कपड़े, उलझे हुए बाल और बदबू के कारण लोगों को डर था कि वे बच्चों से वायरस का शिकार हो जाएंगे।एक चुनौती सोशल डिस्टेंसिंगयहां वायरस को लेकर जागरूकता और फिजिकल डिस्टेंसिंग को सुनिश्चित करना भी एक चुनौती थी। दिल्ली स्थित एक नाइट शेल्टर में रहने वाली 16 साल की संगीता बताती हैं कि इस कमरे में कम से कम 60 लोग रहते हैं। जब दुनिया सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में बात कर रही हैं, तब हमारे पास कोईविकल्प नहीं है। हम एक-दूसरे के करीब सोते हैं।यूनिसेफ की रिपोर्ट- भारत में पांच साल और इससे कम उम्रके बच्चों की होंगी मौतेंयूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साउथ एशिया में कोविड 19 के कारण 60 करोड़ बच्चों का भविष्य खतरे में है। जहां 24 करोड़ बच्चे पहले ही कई तरह की गरीबी में रह रहे हैं। वहां इस संकट के कारण और 12 करोड़ बच्चे गरीबी में धकेले जाएंगे। रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत में पांच साल या इससे कम उम्र के बच्चों की मौत का हिस्सा बड़ा होगा।यूनिसेफ इंडिया के चीफ ऑफ चाइल्ड प्रोटेक्शन के सोलेदाद हेरेरो कहते हैं कि संकट से पहले यह अनुमान था कि भारत में करीब 15.5 करोड़ बच्चे मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी लाइन के नीचे थे, जो रूस की पूरी आबादी के लगभग बराबर है। एक पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी के तौर पर शुरू हुआ कोरोना अब बहुआयामी संकट में बदल गया है, जिससे कुपोषण, गरीबी, हिंसा और खराब मानसिक बीमारियों की महामारी आई है।13 सालों की प्रगति पर खतराएनजीओ चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) कहते हैं कि 2005-06 से 2017-18 के बीच भारत के मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स में 0.283 से 0.123 का सुधार हुआ था। अब महामारी के कारण इस प्रोग्रेस पर खतरा बना हुआ है, क्योंकि सभी सोशियोइकोनॉमिक इंडिकेटर्स पर बुरा प्रभाव पड़ा है।CRY की प्रमुख पूजा मारवाह बताती हैं कि लॉकडाउन से बच्चों को मिलने वाली कई बुनियादी सुविधाएं जैसे ग्रोथ मॉनिटरिंग, न्यूट्रिशन, इम्युनाइजेशन, सेक्सुअल और रिप्रोडक्टिव हेल्थ सुविधाएं, एजुकेशन और प्रोटेक्शन बाधित हुई हैं। इससे मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी में रहने वाले बच्चे प्रभावित हुए हैं,क्योंकि वे अपने अधिकारों को लेकर काफी हद तक निर्भर हैं।सड़कों पर हुई कई बच्चों की मौतेंमहामारी के बाद भारत ने सबसे बुरा प्रवासी संकट देखा है। कई प्रवासी मजदूर पैदल ही घर के लिए निकल गए थे। इस दौरान बड़े और असुरक्षित सफर के कारण कई बच्चों की मौत की खबर आई थी।हेरेरो ने कहा "यह जानना जरूरी है कि भारत में प्रवासी मजदूरों में बच्चों का हिस्सा ज्यादा है। अगर आप सेंसस की जानकारी देखेंगे,भले ही पुरानी तोआप पाएंगे कि 5 में से 1 बच्चा प्रवासी है। ऐसे में रातों-रात जगह छोड़ने के कारण बच्चे ट्रॉमा और तनाव का शिकार हुए थे।""इन प्रवासी यात्राओं में कई बच्चे बिना साथी के या अकेले थे। हमारे पास सबूत थे कि जब बिहार ने माइग्रेशन के आंकड़ों को रजिस्टर करना शुरू किया तो शुरुआत में पाया गया कि इनमें से 5 प्रतिशत प्रवासी अकेले चलने वाले बच्चे हो सकते हैं"।मारवाह के अनुसार, शुरुआती सालों में बच्चों में यह तनाव पूरे जीवन में फैसला लेने और आत्मसम्मान को प्रभावित कर सकता है।चाइल्ड लेबर और मैरिज के लिए खतराकोविड 19 से चाइल्ड लेवर और मैरिज के खिलाफ लंबी लड़ाई भीप्रभावित हो सकती है। जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, चाइल्डलाइन इंडिया हेल्पलाइन पर बाल विवाह से जुड़े 5500 से ज्यादा कॉल आ चुके हैं। हेरेरो कहते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में गरीबी, नौकरी जाना और आर्थिक तनाव के साथ यह साफ है कि परिवार नकारात्मक रास्ते की तरफ जाएंगे। संकट में घिरे परिवारचाइल्ड लेबर और मैरिज जैसे दो रास्तों का सहारा सबसे ज्यादा लेंगे।"एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अब कई सेक्टरखर्च में कटौती और ज्यादा लेबर के लिए उतारू हैं। यह हालात चाइल्ड लेबर बढ़ाने सहायक होंगे। घर के बड़ों में कमाई का बंद होना और केयरगिवर्स की मौत के बाद ज्यादा बच्चे काम के लिए मजबूर होंगे। मारवाह कहती हैं कि स्कूल बंद होने के साथ घर में बढ़ी गरीबी लड़कियों में बाल विवाह को बढ़ा सकती है,क्योंकि इनमें से ज्यादातर को दायित्व समझा जाता है।"अमीरों के लिए है कोरोनावायरसनानकेश कम उम्र में ही अनाथ हो गया था और तब से सड़कों पर रह रहा है। वो जानता है कि जीने का मतलब क्या होता है। नानकेश का कहना है कि कोरोनावायरस अमीरों के लिए है, हमारे लिए नहीं। गरीबों को काम करना होगा। मेरा कोई परिवार नहीं है, इसलिए मुझे चिंता करने के लिए कुछ नहीं है। मैं केवल रोज की मजदूरी चाहता हूं।"आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करेंखाना बांटने वाले लोग बच्चों के मैले शरीर और खराब हालत को देखकर लाइन में आखिर में खड़ा कर देते हैं। उन्हें बच्चों के जरिए कोरोनावायरस संक्रमण होने का डर है।from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2DFrhFzvia IFTTT https://ift.tt/2DvUrqr धार्वी वेद. दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में 17 साल का नानकेश बिना मास्क लगाए कचरा बीनने में व्यस्त है। कोरोनावायरस के बाद उसकी रोजी-रोटी पर खासा असर पड़ा है। उसका कहना है, "कचरा बीनना कभी इतना मुश्किल नहीं रहा। लॉकडाउन के दौरान मेरे पास बिल्कुल पैसे नहीं थे। जीना इतना मुश्किल पहले कभी नहीं था।" नानकेशन उन लाखों बच्चों में से हैं, जो भारत में सड़कों पर रहते हैं। इनमें से कई के पास कोई कानूनी कागज नहीं हैं, जो उनके वजूद का सबूत हो। इतना ही नहीं, डॉक्यूमेंट्स न होने के कारण इन्हें बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं। सबसे ज्यादा संकट में थे बच्चे चाइल्डहुड एन्हेंसमेंट थ्रू ट्रेनिंग एंड एक्शन (CHETNA) के डायरेक्टर संजय गुप्ता कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान सड़क पर रहने वाले बच्चे सबसे ज्यादा संकट में थे। अगर आप उनके कमाने केतरीकेदेखेंगे तो वे भीख मांगने, सामान बेचने या किसी परिवार के लिए काम करने परनिर्भर थे। कोविड के कारण सब पर असर पड़ा है। आंखों में गंदगी, कान में मैल, खराब दिखने की वजह से खाना भी नहीं मिला गुप्ता बताते हैं कि आवाजाही बंद होने के कारण बच्चों से जुड़े रहना चुनौती था। बातचीत नहीं होने के कारण इन बच्चों के ठिकानों का भी पता नहीं चल सका। उन्होंने कहा कि सबकुछ सही नहीं था। बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां हो गईं थीं। कई बच्चे गंदगीभरेहालात में मिले। उनकी आंखों में कीचड़ और कान में मैल जमा हुआ था। उन्होंने अपनी डाइट का आधा खाना भी नहीं खाया था।कुछ बच्चों ने दावा किया कि खाना बांटने के वक्त बुरे हाल होने के कारण उनसे भेदभाव किया गया। गुप्ता बताते हैं कि सरकार राहत को लेकर काफी तेज थी, लेकिन जातिऔर वर्ग जैसे भेदभावझुग्गियों में आज भी हावी हैं। अगर खाना बांटने के लिए लाइन लगती थी तो इन बच्चों को आखिर में खड़ा होने के लिए कह दिया जाता था। उनके कपड़े, उलझे हुए बाल और बदबू के कारण लोगों को डर था कि वे बच्चों से वायरस का शिकार हो जाएंगे। एक चुनौती सोशल डिस्टेंसिंग यहां वायरस को लेकर जागरूकता और फिजिकल डिस्टेंसिंग को सुनिश्चित करना भी एक चुनौती थी। दिल्ली स्थित एक नाइट शेल्टर में रहने वाली 16 साल की संगीता बताती हैं कि इस कमरे में कम से कम 60 लोग रहते हैं। जब दुनिया सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में बात कर रही हैं, तब हमारे पास कोईविकल्प नहीं है। हम एक-दूसरे के करीब सोते हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट- भारत में पांच साल और इससे कम उम्रके बच्चों की होंगी मौतें यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साउथ एशिया में कोविड 19 के कारण 60 करोड़ बच्चों का भविष्य खतरे में है। जहां 24 करोड़ बच्चे पहले ही कई तरह की गरीबी में रह रहे हैं। वहां इस संकट के कारण और 12 करोड़ बच्चे गरीबी में धकेले जाएंगे। रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत में पांच साल या इससे कम उम्र के बच्चों की मौत का हिस्सा बड़ा होगा। यूनिसेफ इंडिया के चीफ ऑफ चाइल्ड प्रोटेक्शन के सोलेदाद हेरेरो कहते हैं कि संकट से पहले यह अनुमान था कि भारत में करीब 15.5 करोड़ बच्चे मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी लाइन के नीचे थे, जो रूस की पूरी आबादी के लगभग बराबर है। एक पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी के तौर पर शुरू हुआ कोरोना अब बहुआयामी संकट में बदल गया है, जिससे कुपोषण, गरीबी, हिंसा और खराब मानसिक बीमारियों की महामारी आई है। 13 सालों की प्रगति पर खतरा एनजीओ चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) कहते हैं कि 2005-06 से 2017-18 के बीच भारत के मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स में 0.283 से 0.123 का सुधार हुआ था। अब महामारी के कारण इस प्रोग्रेस पर खतरा बना हुआ है, क्योंकि सभी सोशियोइकोनॉमिक इंडिकेटर्स पर बुरा प्रभाव पड़ा है। CRY की प्रमुख पूजा मारवाह बताती हैं कि लॉकडाउन से बच्चों को मिलने वाली कई बुनियादी सुविधाएं जैसे ग्रोथ मॉनिटरिंग, न्यूट्रिशन, इम्युनाइजेशन, सेक्सुअल और रिप्रोडक्टिव हेल्थ सुविधाएं, एजुकेशन और प्रोटेक्शन बाधित हुई हैं। इससे मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी में रहने वाले बच्चे प्रभावित हुए हैं,क्योंकि वे अपने अधिकारों को लेकर काफी हद तक निर्भर हैं। सड़कों पर हुई कई बच्चों की मौतें महामारी के बाद भारत ने सबसे बुरा प्रवासी संकट देखा है। कई प्रवासी मजदूर पैदल ही घर के लिए निकल गए थे। इस दौरान बड़े और असुरक्षित सफर के कारण कई बच्चों की मौत की खबर आई थी। हेरेरो ने कहा "यह जानना जरूरी है कि भारत में प्रवासी मजदूरों में बच्चों का हिस्सा ज्यादा है। अगर आप सेंसस की जानकारी देखेंगे,भले ही पुरानी तोआप पाएंगे कि 5 में से 1 बच्चा प्रवासी है। ऐसे में रातों-रात जगह छोड़ने के कारण बच्चे ट्रॉमा और तनाव का शिकार हुए थे।" "इन प्रवासी यात्राओं में कई बच्चे बिना साथी के या अकेले थे। हमारे पास सबूत थे कि जब बिहार ने माइग्रेशन के आंकड़ों को रजिस्टर करना शुरू किया तो शुरुआत में पाया गया कि इनमें से 5 प्रतिशत प्रवासी अकेले चलने वाले बच्चे हो सकते हैं"। मारवाह के अनुसार, शुरुआती सालों में बच्चों में यह तनाव पूरे जीवन में फैसला लेने और आत्मसम्मान को प्रभावित कर सकता है। चाइल्ड लेबर और मैरिज के लिए खतरा कोविड 19 से चाइल्ड लेवर और मैरिज के खिलाफ लंबी लड़ाई भीप्रभावित हो सकती है। जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, चाइल्डलाइन इंडिया हेल्पलाइन पर बाल विवाह से जुड़े 5500 से ज्यादा कॉल आ चुके हैं। हेरेरो कहते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में गरीबी, नौकरी जाना और आर्थिक तनाव के साथ यह साफ है कि परिवार नकारात्मक रास्ते की तरफ जाएंगे। संकट में घिरे परिवारचाइल्ड लेबर और मैरिज जैसे दो रास्तों का सहारा सबसे ज्यादा लेंगे।" एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अब कई सेक्टरखर्च में कटौती और ज्यादा लेबर के लिए उतारू हैं। यह हालात चाइल्ड लेबर बढ़ाने सहायक होंगे। घर के बड़ों में कमाई का बंद होना और केयरगिवर्स की मौत के बाद ज्यादा बच्चे काम के लिए मजबूर होंगे। मारवाह कहती हैं कि स्कूल बंद होने के साथ घर में बढ़ी गरीबी लड़कियों में बाल विवाह को बढ़ा सकती है,क्योंकि इनमें से ज्यादातर को दायित्व समझा जाता है।" अमीरों के लिए है कोरोनावायरस नानकेश कम उम्र में ही अनाथ हो गया था और तब से सड़कों पर रह रहा है। वो जानता है कि जीने का मतलब क्या होता है। नानकेश का कहना है कि कोरोनावायरस अमीरों के लिए है, हमारे लिए नहीं। गरीबों को काम करना होगा। मेरा कोई परिवार नहीं है, इसलिए मुझे चिंता करने के लिए कुछ नहीं है। मैं 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