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कहानी- घटना महात्मा गांधी से जुड़ी है, जब वे दक्षिण अफ्रीका में वकालत कर रहे थे। गांधीजी सादगी से जीवन जीने पर विश्वास करते थे। एक दिन उन्हें अपने घर का बजट बनाया तो देखा कि कपड़े धुलवाने के लिए काफी पैसे खर्च हो रहे हैं। वकील थे, तो वे अपनी शर्ट के ऊपर कॉलर बदल-बदलकर पहनते थे। गांधीजी ने सोचा, 'शर्ट को रोज धोने की जरूरत नहीं है, लेकिन कॉलर तो रोज धोनी ही पड़ती है। इसके लिए धोबी को काफी पैसा देना पड़ता है, तो अब से मैं अपने कपड़े खुद धोना शुरू करूंगा।' कॉलर में कलफ लगाना पड़ता था, जिससे वह कड़क रहे। गांधीजी ने कपड़े धोने का नया काम सीखा था तो एक दिन कॉलर पर कलफ ज्यादा लग गया। ऐसी ही कॉलर लगाकर वे अपने काम पर चले गए। गांधीजी के साथी वकीलों ने देखा कि उनकी कॉलर से कुछ गिर रहा है। इस बात का सभी वकीलों ने मजाक बनाया और कहा कि क्या हमारे यहां धोबियों का अकाल पड़ गया है। तब गांधीजी ने कहा, 'अपने कपड़े खुद धोना कोई छोटी बात नहीं है। कोई भी नया काम सीखते हैं तो जीवन में काम ही आता है।' गांधीजी कुछ ही समय में कपड़े बहुत अच्छी तरह धोने लगे और वे प्रेस भी बहुत अच्छी तरह करने लगे थे। काफी समय बाद उन्हें इसका फायदा भी मिला। एक बार गोपालकृष्ण गोखले को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में सम्मान समारोह जाना था। वहां गोखले जी का ही सम्मान होना था। उस समय उनके पास एक खास चादर थी। ये चादर उन्हें स्व. महादेव गोविंद रानाडे ने दी थी। इस वजह से वे चादर बहुत संभालकर रखते थे। गोखले जी वही चादर ओढ़कर सम्मान समारोह में जाना चाहते थे, लेकिन चादर पर सिलवटें पड़ रही थीं। उस समय वहां कोई धोबी भी नहीं था। तब गांधीजी ने कहा, 'ये चादर मुझे दीजिए, मैं इसे प्रेस कर देता हूं।' गोखले जी ने व्यंग्य करते हुए कहा, 'तुम्हारी वकालत पर तो मैं भरोसा कर सकता हूं, लेकिन धोबीगिरी पर भरोसा नहीं कर सकता। तुम मेरी प्रिय चादर बिगाड़ दोगे।' तब गांधीजी ने इस बात कि जिम्मेदारी ली कि चादर खराब नहीं होगी। इसके बाद गांधीजी ने चादर बहुत अच्छी प्रेस कर दी। चादर देखकर गोखले जी ने कहा, 'गांधी तुम सच में निराले हो, जो भी काम करते हो, पूरे मन से करते हो।' सीख- अपने निजी काम खुद करना चाहिए। अपने काम खुद करने का मतलब गरीबी में जीना नहीं होता। अपनी सभी चीजों का सही उपयोग करना और अपने काम खुद करना ही सादगी है। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, life management tips by vijayshankar mehta, story of mahatma gandhi https://ift.tt/33ywF7k Dainik Bhaskar सादगी का मतलब गरीबी में जीना नहीं होता, अपनी सभी चीजों का सही उपयोग करना ही सादगी है

कहानी- घटना महात्मा गांधी से जुड़ी है, जब वे दक्षिण अफ्रीका में वकालत कर रहे थे। गांधीजी सादगी से जीवन जीने पर विश्वास करते थे। एक दिन उन्हें अपने घर का बजट बनाया तो देखा कि कपड़े धुलवाने के लिए काफी पैसे खर्च हो रहे हैं। वकील थे, तो वे अपनी शर्ट के ऊपर कॉलर बदल-बदलकर पहनते थे।

गांधीजी ने सोचा, 'शर्ट को रोज धोने की जरूरत नहीं है, लेकिन कॉलर तो रोज धोनी ही पड़ती है। इसके लिए धोबी को काफी पैसा देना पड़ता है, तो अब से मैं अपने कपड़े खुद धोना शुरू करूंगा।'

कॉलर में कलफ लगाना पड़ता था, जिससे वह कड़क रहे। गांधीजी ने कपड़े धोने का नया काम सीखा था तो एक दिन कॉलर पर कलफ ज्यादा लग गया। ऐसी ही कॉलर लगाकर वे अपने काम पर चले गए।

गांधीजी के साथी वकीलों ने देखा कि उनकी कॉलर से कुछ गिर रहा है। इस बात का सभी वकीलों ने मजाक बनाया और कहा कि क्या हमारे यहां धोबियों का अकाल पड़ गया है। तब गांधीजी ने कहा, 'अपने कपड़े खुद धोना कोई छोटी बात नहीं है। कोई भी नया काम सीखते हैं तो जीवन में काम ही आता है।'

गांधीजी कुछ ही समय में कपड़े बहुत अच्छी तरह धोने लगे और वे प्रेस भी बहुत अच्छी तरह करने लगे थे। काफी समय बाद उन्हें इसका फायदा भी मिला।

एक बार गोपालकृष्ण गोखले को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में सम्मान समारोह जाना था। वहां गोखले जी का ही सम्मान होना था। उस समय उनके पास एक खास चादर थी। ये चादर उन्हें स्व. महादेव गोविंद रानाडे ने दी थी। इस वजह से वे चादर बहुत संभालकर रखते थे।

गोखले जी वही चादर ओढ़कर सम्मान समारोह में जाना चाहते थे, लेकिन चादर पर सिलवटें पड़ रही थीं। उस समय वहां कोई धोबी भी नहीं था। तब गांधीजी ने कहा, 'ये चादर मुझे दीजिए, मैं इसे प्रेस कर देता हूं।'

गोखले जी ने व्यंग्य करते हुए कहा, 'तुम्हारी वकालत पर तो मैं भरोसा कर सकता हूं, लेकिन धोबीगिरी पर भरोसा नहीं कर सकता। तुम मेरी प्रिय चादर बिगाड़ दोगे।'

तब गांधीजी ने इस बात कि जिम्मेदारी ली कि चादर खराब नहीं होगी। इसके बाद गांधीजी ने चादर बहुत अच्छी प्रेस कर दी। चादर देखकर गोखले जी ने कहा, 'गांधी तुम सच में निराले हो, जो भी काम करते हो, पूरे मन से करते हो।'

सीख- अपने निजी काम खुद करना चाहिए। अपने काम खुद करने का मतलब गरीबी में जीना नहीं होता। अपनी सभी चीजों का सही उपयोग करना और अपने काम खुद करना ही सादगी है।



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कहानी- घटना महात्मा गांधी से जुड़ी है, जब वे दक्षिण अफ्रीका में वकालत कर रहे थे। गांधीजी सादगी से जीवन जीने पर विश्वास करते थे। एक दिन उन्हें अपने घर का बजट बनाया तो देखा कि कपड़े धुलवाने के लिए काफी पैसे खर्च हो रहे हैं। वकील थे, तो वे अपनी शर्ट के ऊपर कॉलर बदल-बदलकर पहनते थे।

गांधीजी ने सोचा, 'शर्ट को रोज धोने की जरूरत नहीं है, लेकिन कॉलर तो रोज धोनी ही पड़ती है। इसके लिए धोबी को काफी पैसा देना पड़ता है, तो अब से मैं अपने कपड़े खुद धोना शुरू करूंगा।'

कॉलर में कलफ लगाना पड़ता था, जिससे वह कड़क रहे। गांधीजी ने कपड़े धोने का नया काम सीखा था तो एक दिन कॉलर पर कलफ ज्यादा लग गया। ऐसी ही कॉलर लगाकर वे अपने काम पर चले गए।

गांधीजी के साथी वकीलों ने देखा कि उनकी कॉलर से कुछ गिर रहा है। इस बात का सभी वकीलों ने मजाक बनाया और कहा कि क्या हमारे यहां धोबियों का अकाल पड़ गया है। तब गांधीजी ने कहा, 'अपने कपड़े खुद धोना कोई छोटी बात नहीं है। कोई भी नया काम सीखते हैं तो जीवन में काम ही आता है।'

गांधीजी कुछ ही समय में कपड़े बहुत अच्छी तरह धोने लगे और वे प्रेस भी बहुत अच्छी तरह करने लगे थे। काफी समय बाद उन्हें इसका फायदा भी मिला।

एक बार गोपालकृष्ण गोखले को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में सम्मान समारोह जाना था। वहां गोखले जी का ही सम्मान होना था। उस समय उनके पास एक खास चादर थी। ये चादर उन्हें स्व. महादेव गोविंद रानाडे ने दी थी। इस वजह से वे चादर बहुत संभालकर रखते थे।

गोखले जी वही चादर ओढ़कर सम्मान समारोह में जाना चाहते थे, लेकिन चादर पर सिलवटें पड़ रही थीं। उस समय वहां कोई धोबी भी नहीं था। तब गांधीजी ने कहा, 'ये चादर मुझे दीजिए, मैं इसे प्रेस कर देता हूं।'

गोखले जी ने व्यंग्य करते हुए कहा, 'तुम्हारी वकालत पर तो मैं भरोसा कर सकता हूं, लेकिन धोबीगिरी पर भरोसा नहीं कर सकता। तुम मेरी प्रिय चादर बिगाड़ दोगे।'

तब गांधीजी ने इस बात कि जिम्मेदारी ली कि चादर खराब नहीं होगी। इसके बाद गांधीजी ने चादर बहुत अच्छी प्रेस कर दी। चादर देखकर गोखले जी ने कहा, 'गांधी तुम सच में निराले हो, जो भी काम करते हो, पूरे मन से करते हो।'

सीख- अपने निजी काम खुद करना चाहिए। अपने काम खुद करने का मतलब गरीबी में जीना नहीं होता। अपनी सभी चीजों का सही उपयोग करना और अपने काम खुद करना ही सादगी है।

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https://ift.tt/33ywF7k Dainik Bhaskar सादगी का मतलब गरीबी में जीना नहीं होता, अपनी सभी चीजों का सही उपयोग करना ही सादगी है Reviewed by Manish Pethev on December 01, 2020 Rating: 5

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