कहानी- रामायण में विभीषण ने रावण को समझाया कि सीता को सकुशल श्रीराम को लौटा देना चाहिए। श्रीराम से युद्ध करने में हमारा ही नुकसान होगा। ये बातें सुनकर रावण गुस्सा हो गया और विभीषण को लात मारकर लंका से निकाल दिया। विभीषण श्रीराम से मिलने पहुंचे। श्रीराम हर काम सभी से सलाह लेकर करते थे। उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि क्या करना चाहिए? सुग्रीव वानर सेना के राजा थे और श्रीराम के मित्र भी थे। उन्होंने कहा, 'हमें शत्रु के भाई पर भरोसा नहीं करना चाहिए, उसे बंदी बना लेना चाहिए।' इसके बाद जामवंत और अंगद ने भी कहा, 'शत्रु का भाई भी शत्रु ही होता है।' श्रीराम ने कहा कि ये बिलकुल सही बात है। उस समय हनुमानजी मौन खड़े थे। श्रीराम ने सभी की सलाह सुनी और फिर अपनी सोच के बारे में कहा, 'मेरा प्रण है कि जो कोई मेरी शरण में आता है, मैं उसकी रक्षा जरूर करता हूं। अगर विभीषण की वजह से भविष्य में कोई धोखा हुआ तो मेरे साथ लक्ष्मण और हनुमान जैसे शक्तिशाली साथी हैं। मैं खुद भी हर विपत्ति का सामना करने के लिए सक्षम हूं। हम मिलकर उस परेशानी को हल कर लेंगे।' श्रीराम ने विभीषण को शरण दी और उसे लंका का राजा भी घोषित कर दिया। ये देखकर सभी हैरान थे कि राम ने अपने शत्रु के भाई पर इतना भरोसा किया है। सीख- श्रीराम ने सीख दी है कि हमें दूसरों पर भरोसा करना ही पड़ता है। लेकिन, हमें वह तैयारी भी रखनी चाहिए, जिससे भविष्य में धोखा मिलने पर आने वाली परेशानियों को दूर किया जा सके। श्रीराम ने विभीषण पर विश्वास किया, लेकिन विश्वासघात होने की स्थिति में उन्हें लक्ष्मण और हनुमान के बल पर और खुद पर भरोसा था। हम सभी पर शक करेंगे तो कोई काम कर ही नहीं पाएंगे, इसलिए हमें अपनी तैयारी के साथ दूसरों पर भरोसा करना चाहिए। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, life management tips by pandit vijayshankar mehta, ramayana story, ram and ravan war https://ift.tt/3oemX26 Dainik Bhaskar लोगों पर भरोसा करना चाहिए, लेकिन धोखे की आशंका हो तो उससे निपटने की तैयारी जरूर रखें
कहानी- रामायण में विभीषण ने रावण को समझाया कि सीता को सकुशल श्रीराम को लौटा देना चाहिए। श्रीराम से युद्ध करने में हमारा ही नुकसान होगा। ये बातें सुनकर रावण गुस्सा हो गया और विभीषण को लात मारकर लंका से निकाल दिया।
विभीषण श्रीराम से मिलने पहुंचे। श्रीराम हर काम सभी से सलाह लेकर करते थे। उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि क्या करना चाहिए?
सुग्रीव वानर सेना के राजा थे और श्रीराम के मित्र भी थे। उन्होंने कहा, 'हमें शत्रु के भाई पर भरोसा नहीं करना चाहिए, उसे बंदी बना लेना चाहिए।' इसके बाद जामवंत और अंगद ने भी कहा, 'शत्रु का भाई भी शत्रु ही होता है।' श्रीराम ने कहा कि ये बिलकुल सही बात है।
उस समय हनुमानजी मौन खड़े थे। श्रीराम ने सभी की सलाह सुनी और फिर अपनी सोच के बारे में कहा, 'मेरा प्रण है कि जो कोई मेरी शरण में आता है, मैं उसकी रक्षा जरूर करता हूं। अगर विभीषण की वजह से भविष्य में कोई धोखा हुआ तो मेरे साथ लक्ष्मण और हनुमान जैसे शक्तिशाली साथी हैं। मैं खुद भी हर विपत्ति का सामना करने के लिए सक्षम हूं। हम मिलकर उस परेशानी को हल कर लेंगे।'
श्रीराम ने विभीषण को शरण दी और उसे लंका का राजा भी घोषित कर दिया। ये देखकर सभी हैरान थे कि राम ने अपने शत्रु के भाई पर इतना भरोसा किया है।
सीख- श्रीराम ने सीख दी है कि हमें दूसरों पर भरोसा करना ही पड़ता है। लेकिन, हमें वह तैयारी भी रखनी चाहिए, जिससे भविष्य में धोखा मिलने पर आने वाली परेशानियों को दूर किया जा सके। श्रीराम ने विभीषण पर विश्वास किया, लेकिन विश्वासघात होने की स्थिति में उन्हें लक्ष्मण और हनुमान के बल पर और खुद पर भरोसा था। हम सभी पर शक करेंगे तो कोई काम कर ही नहीं पाएंगे, इसलिए हमें अपनी तैयारी के साथ दूसरों पर भरोसा करना चाहिए।
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