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https://ift.tt/34BUqMw कहानी- नुकसान को लेकर महात्मा गांधी ने एक नई सोच दी थी। गांधीजी छोटी-छोटी बातों में भी बहुत सजग रहते थे। एक बार वे रेल से यात्रा कर रहे थे। किसी स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो गांधीजी कुछ देर के लिए नीचे उतरे। उस समय वे जहां जाते थे, वहां उनसे मिलने वालों की भीड़ लग जाती थी। गांधीजी भीड़ के बीच घिरे हुए थे और रेलगाड़ी चल दी। गांधीजी तुरंत भीड़ से बाहर निकले और तेजी से चलते हुए अपने डिब्बे में चढ़ गए। लेकिन, डिब्बे में चढ़ते समय गांधीजी की एक चप्पल नीचे गिरकर पटरियों के बीच में चली गई। डिब्बे के गेट पर खड़े होकर गांधीजी कुछ सोचने लगे। आसपास के सभी लोग उन्हें देख रहे थे। गांधीजी ने अपनी दूसरी चप्पल भी वहीं गिरा दी। तब किसी ने उनसे पूछा, 'आपने अपनी दूसरी चप्पल भी क्यों गिरा दी? गांधीजी बोले, 'मेरी एक चप्पल गिर चुकी थी और मेरे एक पैर में चप्पल रह गई थी। मैंने सोचा कि अब जो एक चप्पल मेरे पास है, वह किसी काम की नहीं है और जो चप्पल गिर गई है, वह भी किसी के काम नहीं आएगी। लेकिन, अगर मैं मेरी दूसरी चप्पल भी गिरा देता हूं तो जिसे ये दोनों चप्पलें मिल जाएंगी, उसके काम आ जाएंगी। यही सोचकर मैंने दूसरी चप्पल भी गिरा दी।' गांधीजी की ये सोच थी हमारा नुकसान तो हो चुका है, लेकिन क्या किसी और का भला किया जा सकता है। सीख- हमें भी हमारी सोच ऐसी ही रखनी चाहिए। अगर कहीं हमारा कोई नुकसान हो गया है और उस नुकसान में से किसी दूसरे का लाभ हो सकता है तो वह काम जरूर करना चाहिए। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, life management tips, story of mahatma gandhi, prerak prasang from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3paRsX0 via IFTTT https://ift.tt/3mKrI1Y कहानी- नुकसान को लेकर महात्मा गांधी ने एक नई सोच दी थी। गांधीजी छोटी-छोटी बातों में भी बहुत सजग रहते थे। एक बार वे रेल से यात्रा कर रहे थे। किसी स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो गांधीजी कुछ देर के लिए नीचे उतरे। उस समय वे जहां जाते थे, वहां उनसे मिलने वालों की भीड़ लग जाती थी। गांधीजी भीड़ के बीच घिरे हुए थे और रेलगाड़ी चल दी। गांधीजी तुरंत भीड़ से बाहर निकले और तेजी से चलते हुए अपने डिब्बे में चढ़ गए। लेकिन, डिब्बे में चढ़ते समय गांधीजी की एक चप्पल नीचे गिरकर पटरियों के बीच में चली गई। डिब्बे के गेट पर खड़े होकर गांधीजी कुछ सोचने लगे। आसपास के सभी लोग उन्हें देख रहे थे। गांधीजी ने अपनी दूसरी चप्पल भी वहीं गिरा दी। तब किसी ने उनसे पूछा, 'आपने अपनी दूसरी चप्पल भी क्यों गिरा दी? गांधीजी बोले, 'मेरी एक चप्पल गिर चुकी थी और मेरे एक पैर में चप्पल रह गई थी। मैंने सोचा कि अब जो एक चप्पल मेरे पास है, वह किसी काम की नहीं है और जो चप्पल गिर गई है, वह भी किसी के काम नहीं आएगी। लेकिन, अगर मैं मेरी दूसरी चप्पल भी गिरा देता हूं तो जिसे ये दोनों चप्पलें मिल जाएंगी, उसके काम आ जाएंगी। यही सोचकर मैंने दूसरी चप्पल भी गिरा दी।' गांधीजी की ये सोच थी हमारा नुकसान तो हो चुका है, लेकिन क्या किसी और का भला किया जा सकता है। सीख- हमें भी हमारी सोच ऐसी ही रखनी चाहिए। अगर कहीं हमारा कोई नुकसान हो गया है और उस नुकसान में से किसी दूसरे का लाभ हो सकता है तो वह काम जरूर करना चाहिए। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, life management tips, story of mahatma gandhi, prerak prasang https://ift.tt/34BUqMw Dainik Bhaskar हमारे नुकसान के बाद भी अगर किसी दूसरे का फायदा हो रहा हो तो हमें पीछे नहीं हटना चाहिए

कहानी- नुकसान को लेकर महात्मा गांधी ने एक नई सोच दी थी। गांधीजी छोटी-छोटी बातों में भी बहुत सजग रहते थे। एक बार वे रेल से यात्रा कर रहे थे। किसी स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो गांधीजी कुछ देर के लिए नीचे उतरे। उस समय वे जहां जाते थे, वहां उनसे मिलने वालों की भीड़ लग जाती थी। गांधीजी भीड़ के बीच घिरे हुए थे और रेलगाड़ी चल दी। गांधीजी तुरंत भीड़ से बाहर निकले और तेजी से चलते हुए अपने डिब्बे में चढ़ गए। लेकिन, डिब्बे में चढ़ते समय गांधीजी की एक चप्पल नीचे गिरकर पटरियों के बीच में चली गई। डिब्बे के गेट पर खड़े होकर गांधीजी कुछ सोचने लगे। आसपास के सभी लोग उन्हें देख रहे थे। गांधीजी ने अपनी दूसरी चप्पल भी वहीं गिरा दी। तब किसी ने उनसे पूछा, 'आपने अपनी दूसरी चप्पल भी क्यों गिरा दी? गांधीजी बोले, 'मेरी एक चप्पल गिर चुकी थी और मेरे एक पैर में चप्पल रह गई थी। मैंने सोचा कि अब जो एक चप्पल मेरे पास है, वह किसी काम की नहीं है और जो चप्पल गिर गई है, वह भी किसी के काम नहीं आएगी। लेकिन, अगर मैं मेरी दूसरी चप्पल भी गिरा देता हूं तो जिसे ये दोनों चप्पलें मिल जाएंगी, उसके काम आ जाएंगी। यही सोचकर मैंने दूसरी चप्पल भी गिरा दी।' गांधीजी की ये सोच थी हमारा नुकसान तो हो चुका है, लेकिन क्या किसी और का भला किया जा सकता है। सीख- हमें भी हमारी सोच ऐसी ही रखनी चाहिए। अगर कहीं हमारा कोई नुकसान हो गया है और उस नुकसान में से किसी दूसरे का लाभ हो सकता है तो वह काम जरूर करना चाहिए। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, life management tips, story of mahatma gandhi, prerak prasang https://ift.tt/34BUqMw Dainik Bhaskar हमारे नुकसान के बाद भी अगर किसी दूसरे का फायदा हो रहा हो तो हमें पीछे नहीं हटना चाहिए

कहानी- नुकसान को लेकर महात्मा गांधी ने एक नई सोच दी थी। गांधीजी छोटी-छोटी बातों में भी बहुत सजग रहते थे। एक बार वे रेल से यात्रा कर रहे थे। किसी स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो गांधीजी कुछ देर के लिए नीचे उतरे। उस समय वे जहां जाते थे, वहां उनसे मिलने वालों की भीड़ लग जाती थी।

गांधीजी भीड़ के बीच घिरे हुए थे और रेलगाड़ी चल दी। गांधीजी तुरंत भीड़ से बाहर निकले और तेजी से चलते हुए अपने डिब्बे में चढ़ गए। लेकिन, डिब्बे में चढ़ते समय गांधीजी की एक चप्पल नीचे गिरकर पटरियों के बीच में चली गई।

डिब्बे के गेट पर खड़े होकर गांधीजी कुछ सोचने लगे। आसपास के सभी लोग उन्हें देख रहे थे। गांधीजी ने अपनी दूसरी चप्पल भी वहीं गिरा दी। तब किसी ने उनसे पूछा, 'आपने अपनी दूसरी चप्पल भी क्यों गिरा दी?

गांधीजी बोले, 'मेरी एक चप्पल गिर चुकी थी और मेरे एक पैर में चप्पल रह गई थी। मैंने सोचा कि अब जो एक चप्पल मेरे पास है, वह किसी काम की नहीं है और जो चप्पल गिर गई है, वह भी किसी के काम नहीं आएगी। लेकिन, अगर मैं मेरी दूसरी चप्पल भी गिरा देता हूं तो जिसे ये दोनों चप्पलें मिल जाएंगी, उसके काम आ जाएंगी। यही सोचकर मैंने दूसरी चप्पल भी गिरा दी।'

गांधीजी की ये सोच थी हमारा नुकसान तो हो चुका है, लेकिन क्या किसी और का भला किया जा सकता है।

सीख- हमें भी हमारी सोच ऐसी ही रखनी चाहिए। अगर कहीं हमारा कोई नुकसान हो गया है और उस नुकसान में से किसी दूसरे का लाभ हो सकता है तो वह काम जरूर करना चाहिए।



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December 23, 2020 at 06:13AM
https://ift.tt/34BUqMw कहानी- नुकसान को लेकर महात्मा गांधी ने एक नई सोच दी थी। गांधीजी छोटी-छोटी बातों में भी बहुत सजग रहते थे। एक बार वे रेल से यात्रा कर रहे थे। किसी स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो गांधीजी कुछ देर के लिए नीचे उतरे। उस समय वे जहां जाते थे, वहां उनसे मिलने वालों की भीड़ लग जाती थी। गांधीजी भीड़ के बीच घिरे हुए थे और रेलगाड़ी चल दी। गांधीजी तुरंत भीड़ से बाहर निकले और तेजी से चलते हुए अपने डिब्बे में चढ़ गए। लेकिन, डिब्बे में चढ़ते समय गांधीजी की एक चप्पल नीचे गिरकर पटरियों के बीच में चली गई। डिब्बे के गेट पर खड़े होकर गांधीजी कुछ सोचने लगे। आसपास के सभी लोग उन्हें देख रहे थे। गांधीजी ने अपनी दूसरी चप्पल भी वहीं गिरा दी। तब किसी ने उनसे पूछा, 'आपने अपनी दूसरी चप्पल भी क्यों गिरा दी? गांधीजी बोले, 'मेरी एक चप्पल गिर चुकी थी और मेरे एक पैर में चप्पल रह गई थी। मैंने सोचा कि अब जो एक चप्पल मेरे पास है, वह किसी काम की नहीं है और जो चप्पल गिर गई है, वह भी किसी के काम नहीं आएगी। लेकिन, अगर मैं मेरी दूसरी चप्पल भी गिरा देता हूं तो जिसे ये दोनों चप्पलें मिल जाएंगी, उसके काम आ जाएंगी। यही सोचकर मैंने दूसरी चप्पल भी गिरा दी।' गांधीजी की ये सोच थी हमारा नुकसान तो हो चुका है, लेकिन क्या किसी और का भला किया जा सकता है। सीख- हमें भी हमारी सोच ऐसी ही रखनी चाहिए। अगर कहीं हमारा कोई नुकसान हो गया है और उस नुकसान में से किसी दूसरे का लाभ हो सकता है तो वह काम जरूर करना चाहिए। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, life management tips, story of mahatma gandhi, prerak prasang from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3paRsX0 via IFTTT https://ift.tt/3mKrI1Y कहानी- नुकसान को लेकर महात्मा गांधी ने एक नई सोच दी थी। गांधीजी छोटी-छोटी बातों में भी बहुत सजग रहते थे। एक बार वे रेल से यात्रा कर रहे थे। किसी स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो गांधीजी कुछ देर के लिए नीचे उतरे। उस समय वे जहां जाते थे, वहां उनसे मिलने वालों की भीड़ लग जाती थी। गांधीजी भीड़ के बीच घिरे हुए थे और रेलगाड़ी चल दी। गांधीजी तुरंत भीड़ से बाहर निकले और तेजी से चलते हुए अपने डिब्बे में चढ़ गए। लेकिन, डिब्बे में चढ़ते समय गांधीजी की एक चप्पल नीचे गिरकर पटरियों के बीच में चली गई। डिब्बे के गेट पर खड़े होकर गांधीजी कुछ सोचने लगे। आसपास के सभी लोग उन्हें देख रहे थे। गांधीजी ने अपनी दूसरी चप्पल भी वहीं गिरा दी। तब किसी ने उनसे पूछा, 'आपने अपनी दूसरी चप्पल भी क्यों गिरा दी? गांधीजी बोले, 'मेरी एक चप्पल गिर चुकी थी और मेरे एक पैर में चप्पल रह गई थी। मैंने सोचा कि अब जो एक चप्पल मेरे पास है, वह किसी काम की नहीं है और जो चप्पल गिर गई है, वह भी किसी के काम नहीं आएगी। लेकिन, अगर मैं मेरी दूसरी चप्पल भी गिरा देता हूं तो जिसे ये दोनों चप्पलें मिल जाएंगी, उसके काम आ जाएंगी। यही सोचकर मैंने दूसरी चप्पल भी गिरा दी।' गांधीजी की ये सोच थी हमारा नुकसान तो हो चुका है, लेकिन क्या किसी और का भला किया जा सकता है। सीख- हमें भी हमारी सोच ऐसी ही रखनी चाहिए। अगर कहीं हमारा कोई नुकसान हो गया है और उस नुकसान में से किसी दूसरे का लाभ हो सकता है तो वह काम जरूर करना चाहिए। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, life management tips, story of mahatma gandhi, prerak prasang https://ift.tt/34BUqMw Dainik Bhaskar हमारे नुकसान के बाद भी अगर किसी दूसरे का फायदा हो रहा हो तो हमें पीछे नहीं हटना चाहिए https://ift.tt/34BUqMw 

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गांधीजी भीड़ के बीच घिरे हुए थे और रेलगाड़ी चल दी। गांधीजी तुरंत भीड़ से बाहर निकले और तेजी से चलते हुए अपने डिब्बे में चढ़ गए। लेकिन, डिब्बे में चढ़ते समय गांधीजी की एक चप्पल नीचे गिरकर पटरियों के बीच में चली गई।

डिब्बे के गेट पर खड़े होकर गांधीजी कुछ सोचने लगे। आसपास के सभी लोग उन्हें देख रहे थे। गांधीजी ने अपनी दूसरी चप्पल भी वहीं गिरा दी। तब किसी ने उनसे पूछा, 'आपने अपनी दूसरी चप्पल भी क्यों गिरा दी?

गांधीजी बोले, 'मेरी एक चप्पल गिर चुकी थी और मेरे एक पैर में चप्पल रह गई थी। मैंने सोचा कि अब जो एक चप्पल मेरे पास है, वह किसी काम की नहीं है और जो चप्पल गिर गई है, वह भी किसी के काम नहीं आएगी। लेकिन, अगर मैं मेरी दूसरी चप्पल भी गिरा देता हूं तो जिसे ये दोनों चप्पलें मिल जाएंगी, उसके काम आ जाएंगी। यही सोचकर मैंने दूसरी चप्पल भी गिरा दी।'

गांधीजी की ये सोच थी हमारा नुकसान तो हो चुका है, लेकिन क्या किसी और का भला किया जा सकता है।

सीख- हमें भी हमारी सोच ऐसी ही रखनी चाहिए। अगर कहीं हमारा कोई नुकसान हो गया है और उस नुकसान में से किसी दूसरे का लाभ हो सकता है तो वह काम जरूर करना चाहिए।

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